Read this article in Hindi to learn about various barriers to communication in an organisation along with its resolutions.

संचार के अवरोधों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है:

भाषा सम्बन्धी अवरोध (Semantic or Language Barriers):

अंगेजी के शब्द Semantic से हमारा अर्थ शब्दों के अध्ययन व उनके अर्थ से है । शब्दार्थ अवरोध से हमारा तात्पर्य संचार सम्बन्धी भाषा में अवरोध की उत्पत्ति से है संचार में सहायक साधनों में भाषा सबसे शक्तिशाली साधन है । अत: इसका लापरवाही से प्रयोग संचार को अवरुद्ध कर सकता है । भाषा के प्रयोग के कारण ही संचार में भाषा सम्बन्धी अवरोध आते हैं ।

प्रमुख भाषा सम्बन्धी अवरोध निम्न है:

(i) त्रुटिपूर्ण अनुवाद (Faulty Translation):

किसी संगठन में एक प्रबन्धक संदेशों के सम्प्रेषक व सम्प्रेषणग्राही के रूप में क्रियाशील रहते हैं अर्थात एक प्रबन्धक अपने उच्च अधिकारियों को या अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को संदेश का आदान-प्रदान उनकी समझ के स्तर के अनुसार अनुवादित कर उन्हें आगे बढ़ा देते हैं बहुधा यह किया लापरवाही, अनुवाद में त्रुटि के फलस्वरूप संचार में अवरोध उत्पन्न करती है । अत: संदेश का वास्तविक स्वरूप सम्प्रेषणग्राही तक पहुँचाने के लिए संदेश को सरल न स्पष्ट शब्दों में अनुवादित कर उसे संचालित किया जाना आवश्यक है ।

(ii) अस्पष्ट पूर्ण धारणाएँ (Uncleared Pre-Concept):

प्रत्येक संदेश प्राय: अस्पष्ट पूर्ण धारणाओं से परिपूर्ण होता है जोकि संचार में बाधाएँ उत्पन्न करता है क्योंकि सम्प्रेषक संदेश में समाहित समस्त बातों की विस्तृत जानकारी प्रेषकग्राही को नहीं देता बल्कि वह यह पूर्ण अनुमान लगा लेता है कि संदेशग्राही इन बातों को स्वयं समझ पाने में सक्षम है ।

(iii) त्रुटिपूर्ण शब्द में अभिव्यक्त संदेश (Wrongly Expressed Message):

अर्थहीन, निर्बल शब्दों में अभिव्यक्त संदेश सदैव सम्प्रेषण का अर्थ बदल देता है । अत: सदैव संदेश की गलत व्याख्या की सम्भावना प्रबल रहती है यह स्थिति तब अधिक जटिल हो जाती है जब गर्मी के गलत चुनाव के अतिरिक्त संदेश में अशिष्ट शब्दों का प्रयोग, वाक्यों का गलत क्रम व उनकी पुनरावृत्ति होती है ।

(iv) तकनीकी भाषा का प्रयोग (Use of Technical Language):

कुछ तकनीकी व विशिष्ट समूह वर्ग के व्यक्तिक, जैसे- डॉक्टर, इंजीनियर अपनी विशिष्ट भाषा शैली का प्रयोग करते हैं । इस विशिष्ट भाषा का संचार इस शैली से अपरिचित सम्प्रेषणग्राही के लिए कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न करता है क्योंकि इनका प्रसारण/संचारण व समझ प्रत्येक व्यक्ति के लिए आसान नहीं होती । अत: तकनीकी भाषा-शैली सम्प्रेषण में बाधा उत्पन्न करती है ।

(v) अस्पष्ट मान्यताएं (Unclarified Assumptions):

बहुधा संचार इस मान्यता के आधार पर किया जाता है कि सम्प्रेषणग्राही संचार की आधारभूत पृष्ठभूमि से पूर्णत: परिचित है परन्तु अधिकांश स्थितियों में यह मान्यता गलत साबित हो जाती है । इसलिए सम्प्रेषणग्राही को संदेश की विषय-वस्तु/क्षेत्र के सम्बन्ध में जानकारी का पूर्वानुमान अत्यन्त आवश्यक है अर्थात् संचार क्रिया में संदेश में निहित मान्यताओं की स्पष्टता सम्प्रेषणग्राही हेतु अत्यन्त अनिवार्य है ।

संगठनात्मक अवरोध (Organisational Barriers):

संचार के मार्ग में संगठनात्मक अवरोध वे अवरोध होते हैं जो दोषपूर्ण संगठन ढाँचे के कारण, दोषपूर्ण निमयों एवं नीतियों को लागू करने से तथा संगम स्तर पर उपलब्ध संचार सुविधाओं की कमी के कारण उत्पन्न होते हैं ।

एक संचार प्रक्रिया में संगठन सम्बन्धी अवरोध निम्नलिखित हैं:

(i) जटिल संगठनात्मक संरचना (Complicated Organisational Structure):

जब किसी संगठन में प्रबन्धन में कई स्तर होते है तो संदेश के प्रसारण में अत्यन्त विलम्ब होता है । संचार प्रक्रिया में अधिक विलम्ब संदेश के स्वरूप को बदल देता है क्योंकि संदेश के प्रतिकूल या आलोचनात्मक प्रश्न को छिपाने का पर्याप्त अवसर प्राप्त हो जाता है । अत: किसी भी संगठन का प्रबन्धन स्तर जितना जटिल होगा । संचार उतना ही अधिक भ्रमात्मक होगा ।

(ii) प्रतिष्ठात्मक सम्बन्ध (Repertory Relation):

एक संगठन में कार्य स्तर के आधार पर कर्मचारियों को विभिन्न विभाग/उप-विभाग में विभाजित कर दिया जाता है इन विभागों/उप-विभागों के अपने अलग-अलग उद्देश्य व लक्ष्य होते हैं अर्थात् कर्मचारियों की अपनी एक श्रेणी बन जाती है यह औपचारिक विभाग वांछित संचार में बाधा उत्पन्न करता है क्योंकि कर्मचारी अपनी प्रतिष्ठ के कारण भयभीत होते हैं या फिर विवादों को जन्म देते है जिससे संचार का स्तर न्यूनतम हो जाता है, जबकि सम्प्रेषण का कार्य एक संगठन में विवादों को न्यूनतम करना होता है ।

(iii) संचार सामग्री का घटिया रक्त-रखाव (Bad Maintenance of Communication Objects):

एक संगठन में संचार सामग्री यथा, लिखित (सम्प्रेषण) संदेशों को रखने में गम्भीरता नहीं बरती जाती, जबकि इन संचारों की भविष्य में पुनरावृत्ति की आवश्यकता मूल दस्तावेजों के स्वरूप में पड़ती है ।

(iv) संगठनात्मक नियमन नीतियों (Organisational Regulatory Policies):

किसी भी व्यवसाय के अपने कायदे-कानून होते हैं । इन कायदे-कानून के तहत उस व्यवसाय के कर्मचारी अपनी सेवाएँ देते हैं । व्यवसाय के ये कायदे कानून प्राय: सम्प्रेषण के प्रवाह की दिशा या मार्ग को प्रभावित करते हैं । यदि किसी संगठन में नियम, नीतियाँ या कानून अत्यन्त जटिल व विषम ही तो संचार के प्रवाह में बाधा की सम्भावना अधिक होती है जिसके कारण संदेश के प्रवाह में विलम्ब, विस्तार का अभाव, मौलिक स्वरूप में बदलाव की आशंका व अपुष्ट संचार की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं ।

(v) संगठनात्मक सुविधाएँ (Organisational Facilities):

संगठनात्मक सुविधाओं से अभिप्राय संगठन में उपलब्ध संचार सामग्री, यथा, लेखन, दृश्य-श्रव्य, अनुवाद सामग्री से है । जिस संगठन में इस प्रकार की समस्त सुविधाओं की उपलब्धता होगी, वहां संचार स्पष्ट, आवश्यकतानुरूप अनुकूल व समय पर सम्पन्न होगा । इन सुविधाओं का अभाव संचार में बाधा को जन्म देगा ।

भावनात्मक अवरोध (Emotional/Preception Barriers):

भावनात्मक अवरोध से अभिप्राय एक व्यक्ति के दृष्टिकोण, नजरिया इत्यादि में कमी के पाये जाने से है क्योंकि संचार मूलत: दोनों पक्षों यथा सम्प्रेषक व संदेशग्राही की मानसिक दशा पर निर्भर करता है । यदि सम्प्रेषक या संदेश प्राप्तकर्त्ता किसी में भी घबराहट, चिन्ता, उत्तेजना, डर, अधीनता उपस्थित है तो न तो सम्प्रेषक संदेश को अच्छी तरह से संचारित कर सकेगा और न ही संदेश प्राप्तकर्त्ता संदेश के वास्तविक स्वरूप व अर्थ से भली-भांति परिचित हो पायेगा अर्थात् संचार प्रक्रियाओं में भावनाओं का संचार प्रक्रिया पर आधिपत्य होता है जिससे सन्देश अपनी मौलिकता को खो देगा और सही ढंग से प्रेषित नहीं हो पायेगा ।

संचार प्रक्रिया में भावनात्मक अवरोध में निम्न तत्त्वों को शामिल किया जाता है:

(i) भावनात्मक दृष्टिकोण (Emotional Attitude):

अधिकांश व्यक्ति स्वभाव से भावनात्मक होने के कारण अपना मानसिक सन्तुलन खो देते हैं जिससे उनके वरिष्ठ या अधीनस्थ कर्मी क्रोधित हो जाते है परिणामस्वरूप सम्प्रेषण भ्रमित हो जाता है । यदि भावनाओं का प्राप्तकर्त्ता पर आधिपत्य है तो संदेश सदैव प्रतिकूल अर्थ ग्रहण करेगा ।

(ii) अल्प धारणशीलता (Less Grasping Power):

अल्प या न्यून धारणशीलता से अभिप्राय सम्प्रेषण प्रक्रिया में संदेश के प्रत्येक चरण में उसकी मौलिकता का निरन्तर क्षति से है । डाल्मर फिशर का यह अनुमान है कि एक संगठन या व्यवसाय में मौलिक संदेश का 20 प्रतिशत हिस्सा ही विभिन्न अवरोधों की उपस्थिति के कारण प्राप्तकर्त्ता तक पहुँचता है । वे इस बात को भी स्पष्ट करते हैं कि एक संगठन के प्रबन्धन में एक मौलिक संदेश निदेशक मण्डल से उपाध्यक्ष तक पहुंचने में लगभग 37 प्रतिशत का क्षय हो जाता है । संदेश या सूचना में निरन्तर क्षय का होना सम्प्रेषण के अन्य अवरोधों की उपस्थिति के अतिरिक्त संदेश की ग्राह्यता के प्रति हमारी निष्क्रियता व लापरवाही का होना है ।

(iii) चयनात्मक दृष्टिकोण (Selective Attitude):

एक संगठन में व्यक्ति का चयनात्मक नजरिया संचार में बाधा उत्पन्न करता है । यह सामान्य मान्यता है कि एक सफल संचार प्रक्रिया में सम्प्रेषण व प्राप्तकर्त्ता दोनों का खुला दिमाग (Open Mind) होना अनिवार्य है । यदि व्यक्ति अपने निजी स्वार्थी के प्रति अधिक सजग होंगे अर्थात् संकीर्ण मानसिकता वाले होंगे तो संचार प्रभावशाली नहीं हो सकेगा अर्थात व्यक्ति का चयनात्मक दृष्टिकोण संचार के अस्तित्व को खत्म कर देगा ।

(iv) अनावश्यक मिश्रण व विरूपण (Unusual Mixing and Killing of Orginality):

एक संगठन में प्रत्येक कर्मचारी अपने निहित दृष्टिकोण की समर्थता के अनुरूप संदेश का अवलोकन व मूल्यांकन कर उसके अर्थ को ग्रहण करता है । कई बार जब संदेश सम्प्रेषण प्रक्रिया के विभिन्न चरणों से होकर गुजरता है तो उसमें व्यक्ति अपने निजी स्वार्थों के कारण संदेश में अनावश्यक मिलावट कर उसके मौलिक स्वरूप को विरूपित (Distort) कर देता है जिससे संदेश अपने मौलिक स्वरूप व विश्वसनीयता को खो देता है ।

(v) संचार पर अविश्वास (Distrust on Communication):

एक संगठन में कई वरिष्ठ या अधीनस्थ कर्मचारी बदसलूकी के लिए जाने जाते हैं, अत: संचार प्रक्रिया में इस प्रकार के व्यक्तियों द्वारा सम्प्रेषित संदेश शनै:-शनै: सम्बन्धित व्यक्तियों को हतोत्साहित करता है और भविष्य में इनके द्वारा प्रेषित सदेशों को गम्भीरता से नहीं लिया जाता है अर्थात् सम्प्रेषणग्राही का संचार के प्रति अविश्वास संचार के प्रभाव को नष्ट कर देता है ।

(vi) अपरिपक्व मूल्यांकन (Immature Evaluation):

बहुतायत संदेशग्राही संदेश ग्रहण करने के पूर्व ही बिना प्रतीक्षा किये अपनी सुविधानुसार संदेश का अर्थ निकाल लेते हैं जिससे संदेश में भ्रम उत्पन्न हो जाता है अर्थात्‌ संदेश के मूल्यांकन में जल्दबाजी एक संदेश प्राप्तकर्त्ता के लिए हानिकारक तो है ही बल्कि इससे सम्प्रेषक भी हतोत्साहित हो जाता है ।

भौतिक अवरोध (Physical Barriers):

भौतिक अवरोध वे अवरोध होते हैं जो दोषपूर्ण भौतिक अवस्थाओं के कारण पैदा होते हैं ये अवरोध कई प्रकार के शोर के कारम बनते है, जैसे- बाहर चलने वाले ट्रैफिक की आवाज का आना, साथ वाले कमरे में टाईपिस्ट द्वारा टाईप किये जाने वाले विषय से टाईपिंग की आवाज का आना, कर्मचारियों का बार-बार अन्दर-बाहर जाना, हाथ में रखे पेन को बार-बार डेस्क पर बजाना अथवा संचार प्रक्रिया के चलते मध्य में चाय या कॉफी का दिया जाना इत्यादि ।

प्रमुख भौतिक अवरोध निम्नलिखित हैं:

(i) साहित्यिक विस्फोट (Literary Explosion):

आज ज्ञान की कई शाखाएँ हैं । प्रत्येक विषय पर अथाह साहित्य उपलब्ध है अर्थात् साहित्य के विस्फोट के कारण किसी विषय-वस्तु पर सम्पूर्ण साहित्य की उपलब्धता किसी संचार केन्द्र से प्राप्त करना असम्भव है । अत: एक स्वतन्त्र प्रक्रिया में साहित्यिक विस्फोट बाधा उत्पन्न करता है ।

(ii) शोर, समय व दूरी (Noise, Time and Distance):

संचार प्रक्रिया में शोर एक प्रमुख भौतिक बाधा है । एक व्यवसाय के कारखानों में क्रियाशील मशीनी की आवाज में मौखिक संदेश प्राय: दब जाते है एवं प्रभावहीन हो जाते हैं । साथ ही साथ समय व दूरी भी एक संचार के स्वाभाविक संचारण में बाधा उत्पन्न करते हैं ।

एक सम्प्रेषण व प्राप्तकर्त्ता के बीच की दूरी व समय अन्तराल संचार में अनेक प्रकार की भ्रान्तियां पैदा करता है संचार के औपचारिक माध्यम प्राय: संदेश के प्रवाह में अधिक समय लेते हैं क्योंकि इनके प्रसारण व प्राप्तकर्त्ता तक पहुँचने में अधिक समय व दूरी तय करनी पड़ती है । एक स्थान की भौगोलिक स्थिति व जलवायु भी संदेश के संचारण को प्रभावित करती है । इससे संदेश का सरल प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है ।

(iii) वित्त सम्बन्धी बाधा (Finance Related Obstacles):

एक संचार प्रक्रिया में वित्तीय सीमितता संदेश के प्रवाह में बाधा उत्पन्न करती है । वित्तीय संकट के कारण अधिकांश लिखित सामग्री का संचार केन्द्र तक पहुँच पाना असम्भव होता है । साथ ही साथ वित्तीय संकट शोधकर्त्ताओं को विभिन्न स्थानों पर आयोजित संगोष्ठियों, परिचर्चाओं, सम्मेलन, कार्यशालाओं में सहभागिता से वंचित कर देता है । वर्तमान में आधुनिक तकनीक का महंगा होना भी संदेश के प्रसारण में अवरोध पैदा करता है ।

(iv) हैलो प्रभाव (Hallo Effect):

एक संचार प्रक्रिया में जब दो या दो से अधिक संदेश प्राप्तकर्त्ता क्रियाशील होते है, तब एक सम्प्रेषक द्वारा प्रेषित संदेश के आधार पर अपनी प्रतिक्रियाएँ व्यक्त की जाती हैं संचार प्रक्रिया की इस दिशा में वाद-विवाद की सम्भावना बढ़ जाती है क्योंकि दोनों संदेश को किस स्वरूप में प्रेषित करते है यह उन दोनों के आपसी विश्वास पर निर्भर होता है । इसे हैलो प्रभाव कहा जाता है ।

व्यक्तिगत अवरोध (Personal Barriers):

संचार एक अन्तवैंयक्तिक सम्बन्धों की प्रक्रिया है यह संचार प्रक्रिया में सम्प्रेषक प्राप्तकर्त्ता के बीच विभिन्न मात्राओं व स्तरों में अन्तवैंयक्तिक सम्बन्ध निहित होता है, उनके शारीरिक हाव-भाव, अंग-विच्छेद एक संदेश के वास्तविक स्वरूप में बदलने की क्षमता रखते हैं, साथ ही साथ एक संगठन में स्थिति, पद, अधिकार सम्बन्धी कटाव व विरोध भी एक सामान्य घटना है जोकि संचार प्रक्रिया को प्रभावित करती है ये सब बातें व्यक्ति के व्यक्तिगत हित व व्यक्तित्व से सम्बन्धित हैं ।

एक संचार प्रक्रिया में व्यक्तिगत बाधाएँ निम्न स्वरूप में पायी जाती हैं:

(1) उच्चाधिकारियों सम्बन्धी अवरोध (Senior Officer Related Obstacles):

(a) व्यवहार (Attitude):

एक सम्प्रेषण प्रक्रिया में संगठन के उच्चाधिकारियों का व्यवहार या दृष्टिकोण संदेश के प्रवाह को प्रत्यक्षत: प्रभावित करता है । व्यवहार से अभिप्राय एक सम्प्रेषक द्वारा संदेश को सम्प्रेषित करने की इच्छा व आवश्यकता से है ।

(b) डर (Fear):

एक संगठन में प्रत्येक व्यक्ति की आकांक्षा उच्च पद स्थान या स्तर को प्राप्त करने की होती है, साथ ही साथ एक अधिकारी अपने उच्च स्थान को कायम रखने की दृष्टि से सम्प्रेषक प्रक्रिया में संदेश के मौलिक स्वरूप को प्रभावित होने से रोक देता है । उन्हें निरन्तर इस बात का भय बना रहता है कि संदेश में वास्तविकता के प्रकट होने से कहीं उनको वर्तमान पद व स्थान से हाथ न धोना पड़े ।

(c) उचित माध्यम (Proper Mediums):

उच्च पदाधिकारियों की एक सामान्य प्रवृत्ति संदेशों को उचित माध्यम से स्वीकारने/ग्रहण करने की होती है । वे सम्प्रेषण प्रक्रिया में संदेश प्रवाह के किसी भी माध्यम/चरण की अवहेलना नहीं करते । प्रत्येक चरण उनके लिए महत्त्वपूर्ण होता है । कार्य को शीघ्रता से कराने के लिए जब सम्प्रेषण के किसी चरण (Step) को अनदेखा किया जाता है तो यह उनके प्राधिकार के विपरीत होता है और वे संचार के मार्ग में अवरोधक बन जाते हैं और संदेश के प्रवाह में अनावश्यक विलम्ब होता है ।

(d) समयाभाव (Lack of Time):

एक संगठना/व्यवसाय के उच्चाधिकारियों की सोच यह होती है कि उन पर कार्य का अधिक बोझ व दबाव है, अत: समय के अभाव के कारण ये संदेश के प्रवाह पर ध्यान नहीं दे पाते ।

(e) ध्यानाभाव/अरुचि (Lack of Interest):

अधिकांशत: उच्चाधिकारी संदेश के प्रसारण के प्रति जागरूक नहीं होते, साथ ही साथ वे उसकी उपयोगिता व महत्व को नजरअंदाज करते हैं । इसके फलस्वरूप संचार के प्रवाह में रुकावट आती है और एक उद्यमी को कार्य में देरी व असुविधा का सामना करना पड़ता है ।

(ii) शारीरिक भाषा (Body Language):

पूर्व में स्पष्ट किया जा चुका है कि किसी सम्प्रेषण प्रक्रिया में शारीरिक भाषा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है । शारीरिक अंग-विक्षेप की प्रत्येक क्रिया संदेश के अर्थ के बदलने में सक्षम है । उदाहरणार्थ-यदि अंगूठे व तर्जनी को एक वृत्त आकार दें तो उसका अर्थ अमेरिकी तहजीब में ‘OK’ होगा अर्थात् आपने अपना कार्य ठीक ढंग से किया परन्तु फ्रांस या बेल्जियम ने इसका अर्थ ‘you are worth zero’ होगा ।

(iii) अधीनस्थों सम्बन्धी अवरोध (Problems due to Subordinates):

अधीनस्थों सम्बन्धी अवरोधों को निम्न दो भागों में बाँट सकते है:

(a) संचार के लिए अनिच्छुकता (Unwillingness to Communicate):

कभी-कभी अधीनस्थ किसी प्रकार की सूचना अपने अधिकारियों को नहीं भेजना चाहते । अधीनस्थ स्टाफ जब यह महसूस करता है कि भेजी जाने वाली सूचना ऋणात्मक प्रकृति की है और इसका उन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, तब यह प्रयत्न किया जाता है कि उस सूचना को छिपाया जाये यदि इस सूचना का भेजा जाना आवश्यक ही हो जाता है, तब इसे संशोधित रूप में भेजा जाता है । इस प्रकार, अधीनस्थों के द्वारा तथ्यों को स्पष्ट न करने से, संचार में बाधा आती है ।

(b) सही प्रेरणा का अभाव (Lack of Proper Incentives):

अधीनस्थों के लिए प्रेरणा का अभाव संचार में अड़चन पैदा करता है । उनमें प्रेरणा का अभाव इस तथ्य के कारण होता है कि उनके द्वारा दिये गये सुझावों एवं विचारों को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता यदि उच्च अधिकारी अधीनस्थों की अवहेलना करते हैं, तो वे भविष्य में किन्हीं विचारों के विनिमय के प्रति तटस्थ (Indifferent) हो जाते हैं ।

(iv) प्रेरणा का अभाव (Lack of Inspiration):

एक संगठन में अधीनस्थों में संस्था की पुरस्कार व दण्ड नीति तथा उनके सुझावों एवं विचारों की महत्ता न होने के कारण प्रेरणा जागृत नहीं हो पाती, अत: प्रेरणा के अभाव में संदेश का प्रवाह प्रभावित होता है ।

अन्य अवरोध (Other Barriers):

एक संचार प्रक्रिया में संदेश के संवहन प्रवाह के लिए अनुचित माध्यमों का प्रयोग, दोषपूर्ण यांत्रिक साधन, संचार का दबाव व संचार प्राप्तकर्त्ता की सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की विभिन्नताएँ आदि संचार के प्रभाव को कम कर देती हैं ।

इनको निम्न भागों में बाटा जा सकता:

(i) सूचनाओं का अतिभार (Overload of Information):

जब एक संचार प्रक्रिया में संदेश प्रवाह के माध्यम पर अधिक सूचनाओं का दबाव होता है तो संदेश या सूचनाओं की प्रकृति जटिल रूप धारण कर लेती है व जटिल सूचनाएँ/संदेश सम्प्रेषणग्राही तक पहुंचते हैं एवं ये जटिल संदेश या सूचनाएँ सम्प्रेषणग्राही तक पहुंचते ही अप्रभावी हो सकती हैं ।

(ii) शासकीय प्रकाशन सम्बन्धी बाधा (Problem due to Governmental Publication):

अधिकांश शासकीय प्रकाशनों का सार्वजनिक प्रकाशन असम्भव होता है, अत: शासकीय प्रकाशनों की सीमितता भी आशिक रूप में संचार को प्रभावित करती है ।

(iii) आधुनिक यान्त्रिक साधन (Modern Mechanical Equipment):

वर्तमान में कम्प्यूटर के माध्यम से संचार प्रक्रिया सम्पन्न करना प्रत्येक के वश की बात नहीं है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति इस तकनीक के अभ्यस्त नहीं होते, साथ ही साथ जिन स्थानों पर संदेश का प्रवाह कम्प्यूटर के जरिए किया जाता है, वहां प्राप्तकर्त्ता कठिनाइयों का अनुभव करते है ।

(iv) सामाजिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि फी विभिनताएं (Diversifications of Social and Cultural Background):

एक संगठन में अलग-अलग सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के लोग कार्यरत होते है । अत: संचार लिंग, जाति, वर्ग, राष्ट्रीयता व सामाजिक-सांस्कृतिक व अन्य बातों से प्रभावित होता है सामाजिक-सांस्कृतिक विभिन्नताएँ संदेशों, सूचनाओं व उनके प्रभाव को भिन्न-भिन्न रूप प्रदान करती हैं ।

संचार के अवरोधों का कैसे निराकरण किया जा सकता है ? (How To Remove Barriers To Communication ?)

एक व्यावसायिक संगठन में संचार के महत्व को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक है कि संचार के मार्ग में आने वाले अवरोधों को दूर किया जाये । यदि इन अवरोधों को दूर नहीं किया गया तो संगठन संचार के लोगों से वंचित रह जायेगा ।

संचार प्रक्रिया को सुधार कर उसे अधिक प्रभावशाली बनाने हेतु, संचार में आने वाली बाधाओं के निराकरण हेतु, कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं:

(1) स्पष्ट उद्देश्य (Clear Objective):

एक संचार प्रक्रिया में सम्प्रेषण को सर्वप्रथम अपने-उद्देश्य को पूर्णतया परिभाषित करना चाहिए अर्थात् सम्प्रेषित संदेश की विषय-वस्तु, सन्दर्भ व नियम इत्यादि से सम्प्रेषकग्राही को परिचित करा देना उचित होगा, ताकि सम्प्रेषक द्वारा प्रेषित संदेश को वास्तविक स्वरूप व अर्थ में प्राप्तकर्त्ता द्वारा ग्रहण किया जाये ।

(2) श्रोताओं की सामान्य जानकारी (General Idea about Audience):

एक संचार प्रक्रिया में सम्प्रेषक द्वारा अपने उद्देश्य को स्पष्ट करने के उपरान्त श्रोताओं की स्थिति की जानकारी लेना आवश्यक है अर्थात् श्रोताओं को आपके द्वारा सम्प्रेषित की जाने वाली संदेश की विषय-सामग्री के बारे में सामान्य जानकारी है या नहीं ।

वे आपके विषय से कितन परिचित है यदि श्रोताओं से आप पूर्व परिचित हैं तो संचार में श्रोता सम्बन्धी कोई व्यवधान की उत्पत्ति की सम्भावना कम होती है परन्तु यदि आप श्रोताओं से अपरिचित हैं तो उनके सम्बन्ध में सामान्य जानकारी अर्जित करना आवश्यक है, ताकि सम्प्रेषण प्रक्रिया में सम्प्रेषक व प्राप्तकर्त्ता परस्पर सहयोगी बनें ।

(3) सरल व स्पष्ट भाषा का प्रयोग (Use of Easy and Clear Language):

एक संचार प्रक्रिया में सम्प्रेषित संदेश में प्रयुक्त भाषा अत्यन्त सरल, समझने योग्य व प्राप्तकर्त्ता के ग्राह्य योग्य होनी चाहिए, ताकि प्राप्तकर्त्ता संदेश को उसके मौलिक स्वरूप में ग्रहण कर उस संदेश के वास्तविक अर्थ को समझ सके ।

(4) प्रभावपूर्ण श्रवणता (Effective Listening):

एक प्रभावी संचार मूलत: प्रभावपूर्ण श्रवणता पर निर्भर होता है । प्रभावपूर्ण श्रवणता सम्प्रेषक व प्राप्तकर्त्ता दोनों के लिए अनावश्यक है, ताकि संदेश का वास्तविक स्वरूप व अर्थ प्राप्तकर्त्ता तक सरलता से प्रवाहित हो सके ।

(5) भावनाओं पर सम्पूर्ण नियन्त्रण (Total Control over Emotions):

एक सफल व प्रभावी संचार के लिए भावनाओं पर दोनों ही पक्षों सम्प्रेषक व प्राप्तकर्त्ता का नियन्त्रण होना आवश्यक है । भावनाओं पर नियन्त्रण न होने से संदेश के प्रवाह में बाधा उत्पन्न होगी ।

(6) शोर को कम करना (Less in the Noise):

संचार प्रक्रिया के दौरान शोर की उपस्थिति संदेश के प्रवाह में बाधक होती है, ताकि संदेश अपना वांछित परिणाम प्राप्त करने में सफल न हो सके । इस हेतु संदेश के संचारण हेतु उपयुक्त माध्यम का चुनाव करें । इस हेतु प्राप्तकर्त्ता की सुविधा का ध्यान रखें, ताकि प्राप्तकर्त्ता की संदेश के प्रति रुचि पैदा हो ।

(7) संदेश की पूर्णता (Completion of Message):

सम्प्रेषित किया जाने वाला संदेश उद्देश्य की दृष्टि से पूर्ण होना चाहिए । संदेश की अपूर्णता संदशग्राही की रुचि को कम करती है ।

(8) अनुकूल वातावरण (Suitable Environment):

एक संदेश का वास्तविक स्वरूप प्राप्तकर्त्ता तक उसी स्थिति में पहुँचेगा जब आस-पास का पर्यावरण संचार प्रक्रिया के अनुकूल हो संचार का व्यक्तित्व, स्थान व शान्त वातावरण इत्यादि प्रेषित संदेश के अनुकूल हों ।

(9) शारीरिक भाषा का प्रभावी प्रयोग (Effective Use of Body Language):

सम्पूर्ण संचार प्रक्रिया में शारीरिक भाषा की एक अहम् भूमिका होती है अत: सकारात्मक शारीरिक भाषा सम्प्रेषणग्राही के अतिरिक्त युक्तियों, विचारों को उत्पन्न करती है और संदेश मौलिक रूप में प्राप्तकर्त्ता तक पहुँचता है ।

(10) प्रतिपुष्टि का उचित प्रयोग (Proper Use of Feedback):

एक संचार प्रक्रिया की पूर्णतया प्रतिपुष्टि पर निर्भर होती है । यदि प्रतिपुष्टि जटिल हो तो सम्प्रेषण की प्रक्रिया अपूर्ण हो जाती है । यद्यपि आमने-सामने के सम्प्रेषण में प्रतिपुष्टि स्पष्ट व शीघ्र होती है परन्तु लिखित संचार में प्रतिपुष्टि स्पष्ट व शीघ्र होती है परन्तु लिखित संचार में प्रतिपुष्टि में विलम्ब हो जाता है अत: वांछित प्रतिपुष्टि के लिए संचार माध्यम संदेश के अनुकूल हों ।

आपके सन्देश का जवाब लिखित हो अथवा मौखिक आपको लोगों को प्रोत्साहित करना पड़ेगा कि वे अपने विचार खुलकर प्रस्तुत करें । आपका उद्देश्य यह जानने का होना चाहिए कि श्रोताओं ने आपके सन्देश को समझ लिया है और स्वीकार कर लिया है । यदि आपको लगता है कि उन्होंने आपके सन्देश को नहीं समझा है तो आप अपना सन्तुलन न खोंये क्योंकि इसमें थोड़ा-बहुत आपका कसूर भी हो सकता है । ऐसी स्थति में आपको अपने सन्देश में वांछित संशोधन (Revision) करना चाहिए ।

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