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प्रभावपूर्ण संचार के सिद्धान्तों को सात सी (Seven C’s) के नाम से पुकारा जा सकता है:

1. पहला सी (1st C) – पूर्णता (Completeness)

2. दूसरा सी (2nd C) – संक्षिप्तता (Conciseness)

3. तीसरा सी (3rd C) – विचारणीयता या प्रतिफल (Considerations)

4. चौथा सी (4th C) – विशिष्टता या शुद्धता (Concreteness)

5. पाँचवा सी (5th C) – स्पष्टता (Clarity)

6. छठा सी (6th C) – शिष्टता या नम्रता (Courtesy)

7. सातवाँ सी (7th C) – शुद्धता (Correctness).

1. पूर्णता (Completeness):

यह संचार का प्रथम महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है । इस सिद्धान्त का अभिप्राय यह है कि व्यावसायिक सन्देश सदैव अपने आप में पूर्ण होना चाहिए । इसमें सभी तथ्यों एवं विचारों का समावेश होना चाहिए ।

पूर्णता में निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है:

(i) सन्देश किसको जा रहा है ?

(ii) सन्देश क्या है ?

(iii) सन्देश किस स्थान पर जायेगा ?

(iv) सन्देश कब तक पहुंचना है और कब भेजा जायेगा ?

(v) सन्देश का कारण क्या है ?

एक पूर्ण सन्देश में उपर्युक्त सभी बातें स्पष्ट होना अनिवार्य है । एक ”व्यावसायिक सन्देश तब पूर्ण माना जाता है जब इसमें वे सभी तथ्य हों जिनकी प्राप्तकर्त्ता को प्रतिपुष्टि (Feedback) करने के लिए जरूरत हो ।”

पूर्णता के लिए एक व्यावसायिक सन्देश में अग्र तीन तत्त्वों का शामिल होना आवश्यक है:

(i) सभी आवश्यक सूचनाओं का समावेश (Inclusion of all Necessary Information’s):

जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया जा चुका है कि पूर्ण संचार में वे सभी सूचनाएं शामिल होनी चाहिए जिसे प्राप्तकर्त्ता पूरी तरह समझना चाहता है । पूर्ण सन्देश पाँच ‘W’ प्रश्नों एवं कुछ अन्य बातों जैसे कैसे (How) का उत्तर देता है । पांच W में शामिल हैं: कौन (Who), क्या (What), कब (When), कहाँ (Where), एवं क्यों (Why) ।

उदाहरण के लिए, किसी वस्तु का आदेश देने के लिए यह स्पष्ट होना चाहिए कि आप क्या (What) चाहते है ?, कब (When) चाहते हैं, किसके लिए (To Whom) चाहते हैं और इसे कहाँ (Where) भेजना है, तथा इसका भुगतान कैसे (How) किया जायेगा ।

(ii) सन्देश में सभी प्रश्नों के उत्तरोंका समावेश (Inclusion of Answer of all the Questions in the Message):

एक व्यावसायिक सन्देश तभी पूरा माना जायेगा जब उसमें सभी सम्भावित प्रश्नों के उत्तर हों । प्रश्नों के उत्तर देते समय यह कोशिश करनी चाहिए कि कोई भी साधारण से साधारण बात छुपाई नहीं गई हो और न ही कोई बात रह गई हो ।

(iii) आवश्यक अन्य बातों का समावेश (Inclusion of All Required Things):

सन्देश में पूछे गये प्रश्नों के उत्तर देने के अतिरिक्त अन्य तथ्यों को भी शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि ग्राहक कई बार यह नहीं जानते कि उन्हें किन चीजों की आवश्यकता है । पूछे गये प्रश्न अपूर्ण हो सकते हैं लेकिन उत्तर देते समय इस कमी को दूर किया जा सकता है ।

इस प्रकार सन्देश को पूर्ण बनाने के लिए उसमें-पाँच W को ध्यान में रखना चाहिए, पूछे गये सभी प्रश्नों के उत्तर होने चाहिए एवं अपनी तरफ से अतिरिक्त सूचना भी दी जानी चाहिए ।

विद्वानों ने पूर्णता के बारे में कहा है कि संचार में वे सभी बातें शामिल होनी चाहिए जो पूछी गई है तथा उन बातों को शामिल करना चाहिए जो अपनी बातों को स्पष्ट करने के लिए आवश्यक है । संचार में पूर्णता व्यवसाय के लिए लाभप्रद होती है ।

इसमें निम्न लाभों की प्राप्ति होती है:

(a) व्यवसाय में ग्राहकों की रुचि बढ़ती है;

(b) व्यवसाय दीर्घकालीन स्थापना की ओर बढ़ता है;

(c) व्यवसाय में अनुकूल परिणाम प्राप्त होते हैं; एवं

(d) व्यवसाय की ख्याति (Goodwill) में वृद्धि होती है ।

2. संक्षिप्तता (Conciseness):

प्रभावपूर्ण संचार का दूसरा महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त सन्देश का संक्षिप्त होना है । संक्षिप्तता से हमारा अभिप्राय संचार के अन्तर्गत सन्देश को उसी अर्थ में प्राप्तकर्त्ता तक पहुँचाना है जिस अर्थ में प्रेषक ने उसे भेजा है इसके लिए यह आवश्यक है कि शब्दों का उचित चयन किया जाये ।

ताकि दिया जाने वाला सन्देश सही अर्थों में समझ में आ जाये । इसमें अनावश्यक भाषा के प्रयोग से बचना चाहिए ऐसा करने से सन्देश भेजने वाले तथा प्राप्त करने वाले दोनों का समय बचता है । प्रयत्न यह रहना चाहिए कि छोटे सन्देश में सभी बातों का समावेश हो अर्थात् गागर में सागर भरने का प्रयास किया जाना चाहिए ।

उदाहरण:

संक्षिप्त संचार से प्रेषक तथा प्राप्तकर्त्ता दोनों के समय व खर्च की बचत होती है ।

संचार को संक्षिप्त करने के लिए निम्न तीन बातों का ध्यान रखना होगा:

(i) शब्द बहुल वाक्यों का त्याग (Eliminate Wordy Expressions):

जैसा कि उदाहरण दिया जा चुका है कि बड़े-बड़े वाक्यों को बिना उनके अर्थ को बदले संक्षिप्त रूप में दिया जाना चाहिए । आहरण के लिए, Attached herewith के स्थान पर Attached एवं Due to the fact that के स्थान पर Because का प्रयोग करना चाहिए ।

(ii) केवल उपयुक्त सामग्री का समावेश (Use Only Relevant Material):

प्रभावपूर्ण संक्षिप्त सन्देश में असम्बद्ध कथनों (Irrelevant Material), लम्बी हिदायतों (Long Instructions), अनावश्यक स्पष्टीकरणों (Unwanted Clarifications), व्याख्याओं (Explanations), अत्यधिक विशेषणों एवं प्रस्तावों (Excessive Adjectives and Prepositions) को छोड़ देना चाहिए ।

(iii) समस्त अनावश्यक पुनरावृत्ति से बचें (Avoid All Needless Repetitions):

प्रभावपूर्ण संक्षिप्त संचार में अनावश्यक शब्दों पर वाक्यों को दोहराने से बचना चाहिए । संचार की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि जहाँ तक सम्भव हो सके संचार सम्बन्धित व्यक्ति को प्रत्यक्ष रूप में भेजा जाना चाहिए प्रत्यक्ष रूप में सन्देश भेजे जाने से समय की बचत तो होती ही है साथ में सन्देश प्राप्तकर्त्ता को सन्देश को समझने में कोई परेशानी नहीं होती । किसी भी प्रकार की परेशानी होने पर सन्देश प्राप्तकर्त्ता प्रेषक से उसी समय स्पष्टीकरण ले सकता है ।

इससे सन्देश प्राप्तकर्त्ता को उसी अर्थ में प्राप्त हो जाता है जिस अर्थ में प्रेषक ने उसे भेजा है । ध्यान रहे संचार के अन्तर्गत कर्मचारियों को सन्देश देना ही नहीं होता वरन् सन्देश के अनुरूप कार्य करना भी होता है । और ऐसा केवल तभी सम्भव है जब सन्देश प्राप्तकर्त्ता द्वारा सही अर्थ में समझा जाये ।

3. विचारणीयता या प्रतिफल (Considerations):

प्रभावपूर्ण संचार का तीसरा महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त उसका विचारणीय होना है । विचारणीयता का अर्थ है कि प्राप्तकर्त्ता को ध्यान में रखते हुए किसी सन्देश को प्रसारित करना (Consideration means transmitting the message with the receiver in mind) ।

संचारित सन्देश में शिष्टाचार (Courtsey) का पालन किया जाना चाहिए । सन्देश प्राप्तकर्त्ता को यह स्पष्ट होना चाहिए कि सन्देश के प्रत्युत्तर में वह क्या भेजना चाहता है ?

प्रतिपुष्टि में निम्न बातों का होना आवश्यक है:

(i) इसमें मैं (I) या हम (We) के स्थान पर तुम (You) या आप का प्रयोग किया जाना चाहिए ।

(ii) सकारात्मक व सुखदायक तथ्यों को अधिक महत्त्व दिया जाना चाहिए । व्यावसायिक सन्देशों में नहीं, क्षमा व मतभेद इस प्रकार के शब्दों के स्थान पर सुन्दर व सकारात्मक भाषा का प्रयोग करना चाहिए ।

(iii) सन्देश में विश्वसनीयता का होना अनिवार्य है क्योंकि इससे व्यक्ति के चरित्र व विश्वास का अधिक प्रभाव पड़ता है तथा सन्देश की प्राथमिकता भी बढ़ती है ।

उदाहरण 1:

एक उत्पादक अपने उत्पादन का विज्ञापन करते समय ग्राहकों को विश्वास दिला सकता है कि हम ग्राहकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए अपने व्यावसायिक कार्य दिवस सात दिन करते हैं और कह सकता है कि आपके पधारने की हम तत्परता से प्रतीक्षा कर रहे हैं ।

उदाहरण 2:

एक बैंक अपने विज्ञापन में कह सकती है कि हमने ग्राहकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए अपना कार्य समय 4 बजे तक कर दिया है । हम आपके पधारने की तत्परता से प्रतीक्षा कर रहे हैं ।

4. विशिष्टता या शुद्धता (Concreteness):

प्रभावपूर्ण संचार का चौथा सिद्धान्त विशिष्टता है । विशिष्टता का-अर्थ है विशिष्ट, स्पष्ट व निश्चित सूचना का प्रयोग । संचार में अनिश्चित सूचनाओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि अनिश्चितता के आधार पर लिये गये निर्णय गलत साबित हो सकते हैं ।

सन्देश की शुद्धता के सन्दर्भ में निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए:

(a) सही तथ्य देना- सन्देशप्रेषक के लिए यह सुनिश्चित हो कि उसकी भाषा सही है ।

(b) सही समय पर सन्देश भेजना- कार्य पूर्ण होने के उपरान्त सन्देश निरर्थक हो जाता है । अत: सही व उचित समय पर सन्देश भेजना उचित होगा ।

(c) सन्देश सही स्थिति में भेजना- सन्देश इस प्रकार प्रेषित किया जाये कि सन्देशग्राही को किसी की कठिनाई न हो । आज के व्यावसायिक वातावरण में व्यावसायिक सम्प्रेषण अत्यधिक महगे हो गये हैं एवं अत्यन्त व्यस्त व्यावसायिक माहौल भी निर्मित हो गया है अत: एक सन्देशप्रेषक को उपर्युक्त बार्तो का ध्यान रखना अनिवार्य है ।

5. स्पष्टता (Clarity):

संचार व्यवस्था का प्रत्येक हिस्सा पूर्ण रूप से स्पष्ट होना चाहिए जिससे सम्बन्धित व्यक्ति सन्देश को उसी रूप व अर्थ में समझे जिस रूप व अर्थ में सन्देश को प्रसारित किया गया है ।

स्पष्टता के अन्तर्गत सम्प्रेषण व्यवस्था में निम्न बातों आवश्यक होती हैं:

(i) विचारों की स्पष्टता:

सन्देश देने वाले व्यक्ति के मस्तिष्क में जब विचार आता है, उसी स्थिति में सन्देशकर्त्ता को स्वयं सुनिश्चित कर लेना चाहए कि:

(a) सम्प्रेषण का उद्देश्य क्या है ?

(b) सम्प्रेषण की सामग्री क्या है ?

(c) सम्प्रेषण के उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए संचार का कौन-सा माध्यम उपयुक्त होगा ?

उदाहरण:

यदि किसी गोदाम में ज्वलनशील पदार्थ रखे हैं तो उस स्थिति में सम्प्रेषण का उद्देश्य चेतावनी “धूम्रपान न करें” होना चाहिए ।

(ii) अभिव्यक्ति की स्पष्टता:

सन्देशग्राही को स्पष्ट होना चाहिए कि सन्देशप्रेषक से किस प्रकार का सन्देश लिया जाये । सेना में कोड शब्द प्रचलित होते है । दोनों पक्षों का कोड स्पष्ट होना चाहिए ।

शब्दों के चयन में निम्न बातें ध्यान में रखनी चाहिए:

(a) सरल शब्दों का प्रयोग करना चाहिए ।

(b) स्पष्ट एवं निश्चित अभिव्यक्ति का प्रयोग होना चाहिए ।

(c) निवारक रूपों को प्राथमिकता देनी चाहिए ।

उदाहरण:

आपके प्रयत्नों की हम सबने प्रशंसा की है- अनिवारक ।

हम सब आपके प्रत्यनों के प्रशंसक हैं- निवारक ।

(iii) अपरिमित रूप का प्रयोग न करना:

अपरिमित रूप का प्रयोग सन्देश को अवैयक्तिक या औपचारिक बना देता है ।

जैसे:

रोकड़िये का कर्त्तव्य है कि वेतन भुगतान करे- अपरिमित ।

रोकड़िया वेतन भुगतान करता है- उपयुक्त ।

(iv) निरर्थक शब्दों का प्रयोग न करना:

निरर्थक शब्द अर्थहीन हो जाते हैं क्योंकि इन शब्दों का अर्थ स्पष्ट नहीं होता । अत: ऐसे शब्दों का प्रयोग उचित नहीं है ।

जैसे:

We beg to, This is to acknowledge, at all time, at the present time.

(v) सन्देहात्मक शब्दों का प्रयोग न करना:

यदि किसी सन्देश का अर्थ स्पष्ट नहीं है तो इस स्थिति में सन्देश का प्रयोग करना उचित न होगा ।

जैसे:

रोको मत जाने दो इसके दो अर्थ निकलते हैं:

(a) रोको, मत जाने दो

(b) रोको मत जाने दो ।

(vi) छोटे वाक्यों का प्रयोग:

बेटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि बड़े वाक्य जटिल व अस्पष्ट होते हैं ।

6. शिष्टता या नम्रता (Courtesy):

प्रभावपूर्ण व्यावसायिक संचार का एक महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक सिद्धान्त शिष्टता या नम्रता है । शिष्टता शब्द से अभिप्राय उस नप्रता से है जो दूसरों के प्रति सम्मान से उदय होती है ।  व्यावसायिक सन्देश की भाषा जिनती नम्र होगी उतना ही अनुकूल प्रभाव सन्देशग्राही पर पड़ता है । नम्र व्यवहार से ही व्यवहार में नम्रता प्राप्त होती है ।

नम्रता में वृद्धि के लिए निम्न बातें ध्यान में रखनी चाहिए:

(i) सन्देश का उत्तर व पावती शीघ्र देवें ।

(ii) किसी भी प्रकार की उत्तेजनीय अभिव्यक्ति नहीं होनी चाहिए ।

(iii) किसी भी त्रुटि की शीघ्र क्षमा मांगना या खेद प्रकट करना लाभप्रद होगा ।

(iv) धन्यवाद व उदारता सन्देश का प्रमुख हिस्सा होती है । इसे ध्यान में रखना चाहिए ।

उदाहरण:

(a) मुझे खेद है कि आप समय पर बैग प्राप्त नहीं कर पाये ।

(b) आपके पत्र दिनांक 5 अगस्त, 2005 का बहुत-बहुत धन्यवाद ।

7. शुद्धता (Correctness):

प्रभावी संचार के लिए शुद्धता का गुण अत्यन्त आवश्यक है । संचार में शुद्धता लाने के लिए सही भाषा का प्रयोग करना चाहिए । सन्देश में असत्य या अनावश्यक तथ्यों का प्रयोग उचित नहीं होता । भाषा औपचारिक व अनौपचारिक दोनों प्रकार की हो सकती है । समयानुसार इसका प्रयोग होना चाहिए संचार सही तथ्यों पर आधारित होना चाहिए । इसमें प्रयुक्त कड़े शुद्ध एवं विश्वसनीयता प्रमाणित होने चाहिए ।

हमें कोई भी ऐसा संचार प्रेषित नहीं करना चाहिए जिसकी प्रामाणिकता एवं विश्वसनीयता के विषय में हमें पूर्ण रूप से विश्वास न हो । संचार को सही समय पर प्रेषित किया जाना चाहिए । शुद्ध संचार प्रमाणित तथ्यों (Facts), आंकड़ों (Statistics) व विवरण (Particulars) पर निर्भर करता है ।

प्रभावपूर्ण संचार के सिद्धान्तों का सारांश हम मर्फी (Murphy), हिल्लब्राण्डट (Hildbrandt) तथा थॉमस (Thomas) के शब्दों में इस प्रकार व्यक्त कर सकते हैं, “सात सी की जानकारी और इनका प्रयोग आपको एक उत्तम संचारकर्त्ता बनाने में सहायता देगा, अच्छे संचार के लिए ये सात मानदण्डों के सिद्धान्त प्रभावपूर्ण संचार के सिद्धान्त का एक महत्त्वपूर्ण अंश हैं ।”

“Knowing the seven C’s and using them, will help you become a better communicator, the principles for these seven criteria for good communication are core principles of effective communication.”

प्रभावपूर्ण संचार के सात सी (Seven C’s) के अतिरिक्त एक प्रभावपूर्ण संचार व्यवस्था में निम्नलिखित सिद्धान्तों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए ।

इन्हें हम अन्य महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों (Other Important Principles) के रूप में जान सकते हैं:

(1) सरल भाषा का सिद्धान्त (Principle of Simple Language):

इस सिद्धान्त के अनुसार संचार हमेशा सरल भाषा में किया जाना चाहिए ताकि संचार का भाव श्रोता को समझ आ सके । तकनीकी व दोहरे अर्थ वाले शब्दों का प्रयोग कम-से-कम किया जाना चाहिए । स्पष्ट किए गए विचार स्पष्ट व भ्रम रहित होने चाहिए ।

(2) अचित माध्यम का सिद्धान्त (Principle of Adequate Medium):

संचार को प्रभावपूर्ण बनाने के लिए विचारें। की स्पष्टता समानता तथा पूर्णता के साथ-साथ संचार के प्रेषण का माध्यम भी उपयुक्त होना चाहिए ताकि मिथ्या धारणाएँ जन्म न ले सकें । संचार माध्यम की उपयुक्तता का निर्धारण परिस्थितियों व प्राप्तकर्त्ता को दृष्टिगत रखते हुए ही किया जाना चाहिए ।

(3) अनौपचारिकता का सिद्धान्त (Principle of Informality):

संचार प्रक्रिया में औपचारिक (Formal) सम्प्रेषण के साथ-साथ अनौपचारिक (Informal) सम्प्रेषण का महत्त्व भी किसी तरह कम नहीं है । कुछ ऐसी समस्याएँ होती है, जो औपचारिक संचार प्रक्रिया के द्वारा कम नहीं हो सकतीं उन्हें अनौपचारिक संचार द्वारा हल किया जाता है । अत: संगठन में अनौपचारिक संचार को भी पूरी-पूरी मान्यता दी जानी चाहिए ।

(4) बचत का सिद्धान्त (Principle of Saving):

संचार प्रक्रिया में अनावश्यक रूप से अधिक व्यय नहीं करना चाहिए । जहां तक सम्भव हो सदेशों को कम करना चाहिए । इसके साथ-साथ किसी एक कर्मचारी पर संचार का अधिक भार नहीं डालना चाहिए ।

(5) समानता का सिद्धान्त (Principle of Equality):

संचार प्रक्रिया समानता के सिद्धान्त पर आधारित होनी चाहिए । यह संगठन के उद्देश्यों (Objectives), नीतियों (Policies) व कार्य विधियों (Work Procedure) में समानता पर आधारित होनी चाहिए ।

(6) विचारों की स्पष्टता का सिद्धान्त (Principle of Clarity of Thoughts):

प्रभावी संचार का यह सिद्धान्त है कि पहले अपने आपको पूर्णत: स्पष्ट होना चाहिए कि वह क्या सन्देश भेजना चाहता है ? जितना अधिक उसको स्वयं को स्पष्ट होगा, उतना ही प्रभावी संचार होगा । इसी को विचारों की स्पष्टता का सिद्धान्त कहते हैं ।

(7) लोचशीलता का सिद्धान्त (Principle of Flexibility):

लोचशीलता का सिद्धान्त यह बताता है कि संचार व्यवस्था इस प्रकार की होनी चाहिए जिसमें संगठन की संचार व्यवस्था में हुए परिवर्तनों को आसानी से समायोजित किया जा सके ।

(8) प्रतिपुष्टि का सिद्धान्त (Principle of Feedback):

प्रतिपुष्टि का सिद्धान्त यह बताता है कि प्राप्तकर्त्ता ने सन्देश का सही अर्थ निकाल लिया है अथवा नहीं । आमने-सामने (Face-to-Face) के संचार में तो प्रतिपुष्टि का काम प्राप्तकर्त्ता के चेहरे के भावी (हाव-भाव) से ही प्राप्त हो जाता है परन्तु लिखित संचार (Written Communication) में प्रतिपुष्टि का कार्य प्राप्तकर्त्ता द्वारा भेजने पर ही प्राप्त होता है ।

(9) उचित समय का सिद्धान्त (Principle of Proper Time):

सन्देश यदि समय पर प्राप्त न हो तो उसका कोई अर्थ ही नहीं रहता । आवश्यकता पड़ने से पहले, संचार में प्रेषण में समय लगने का अनुमान लगाकर ही सन्देश भेजा जाना चाहिए क्योंकि देर से सन्देश पर वह अर्थहीन हो जाता है ।

(10) परामर्श का सिद्धान्त (Principle of Advice):

संचार की विधिवत् योजना बनाते समय सम्बन्धित व्यक्तियों से सुझाव (Suggestions) व परामर्श (Advice) ले लेने चाहिए । इससे जहां उनके विश्वास में वृद्धि होगी, वहां वे पूरे योगदान से काम करने मे अपने आपको सक्षम पायेंगे । इसके साथ-साथ यह भी तय कर लेना चाहिए कि संगठन के विभिन्न स्तरों पर संचार कब (When) व कैसे (How) किया जायेगा ।

(11) पर्याप्तता का सिद्धान्त (Principle of Completeness):

जिन सूचनाओं को प्राप्तकर्त्ता के पास भेजा गया है वे पर्याप्त (Sufficient) तथा पूर्ण (Complete) होनी चाहिए । यदि प्राप्तकर्त्ता अधिक योग्य है तो उसे कम शब्दों में अधिक सूचनाओं को समझाया जा सकता है परन्तु इसके विपरीत यदि वह कम योग्य है तो अधिक विवरण (Detail) की आवश्यकता होगी ।

(12) ध्यान आकर्षित करने वाला सिद्धान्त (Principle of Attention):

मात्र सूचना प्राप्त होने पर यह नहीं समझा जा सकता है कि संचार प्रक्रिया पूरी हो गई । संचार प्रक्रिया तब पूरी हुई मानी जायेगी जब सन्देश प्राप्तकर्त्ता को वह समझ आ जाये व उसमें उसके प्रति रुचि उत्पन्न हो जाये ।

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