Here is an essay on ‘Business Environment’ for class 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Business Environment’ especially written for school and college students in Hindi language.

Essay on Business Environment


Essay Contents:

  1. व्यावसायिक पर्यावरण का अर्थ (Meaning of Business Environment)
  2. व्यावसायिक पर्यावरण की परिभाषा और अवधारणा (Concept and Definition of Business Environment)
  3. व्यावसायिक पर्यावरण का महत्व (Importance of Business Environment)
  4. व्यावसायिक पर्यावरण की विशेषताएँ (Features of Business Environment)
  5. व्यावसायिक पर्यावरण के संघटक (Components of Business Environment)


Essay # 1. व्यावसायिक पर्यावरण का अर्थ (Meaning of Business Environment):

व्यवसाय अपने आस-पास के पर्यावरण अथवा परिवेश का एक अभिन्न अंग होता है । व्यवसाय की क्रियाएँ पर्यावरण की आवश्यकताओं और अपेक्षाओं द्वारा प्रभावित होती हैं । कोई भी व्यवसाय सामाजिक और आर्थिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए ही अस्तित्व में बना रहता है । व्यवसाय के कार्य आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक पर्यावरण से प्रभावित हैं ।

उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने के लिए वस्तुओं और सेवाओं के निर्माण के लिए व्यवसाय को आवश्यक उत्पादन साधनों की आवश्यकता पड़ती है । जैसे – सामग्री, ऊर्जा, धन, मानवीय शक्ति आदि । ये सभी उत्पादन साधन समाज से ही प्राप्त किये जाते हैं ।

ये साधन उत्पादन अथवा निर्माण की विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरते हुए उत्पादों और सेवाओं में रूपान्तरित हो जाते हैं और इन्हें उपयोग के लिए समाज के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है । समाज को उत्पाद अथवा सेवाएँ निःशुल्क प्राप्त नहीं होती हैं, बल्कि इसके बदले कुछ धन का भुगतान किया जाता है, जिसे कीमत अथवा मूल्य कहते हैं ।

समाज से प्राप्त कीमत का पुनः उत्पादन साधनों की प्राप्ति हेतु प्रयोग किया जाता है, जिससे कि उत्पादन की प्रक्रियाएँ निरन्तर जारी रहें । व्यवसाय एवं समाज एक-दूसरे के अस्तित्व के आधार होते हैं । किसी व्यवसाय का तब तक अस्तित्व बना रहेगा, जब तक कि समाज द्वारा व्यवसाय के उत्पादों की माँग जारी रहेगी ।

व्यावसायिक पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है । व्यवसाय शब्द से आशय मनुष्य को व्यस्त रखने वाली आर्यिक क्रियाओं से है । अर्थशास्त्र में व्यवसाय का अर्थ उन सभी मानवीय आर्थिक क्रियाओं से है, जो वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन तथा वितरण के लिए की जाती हैं और जिनका उद्देश्य पारस्परिक हित है ।

इस तरह मनुष्य के द्वारा धनोपार्जन के लिए की जाने वाली समस्त क्रियाएँ व्यवसाय के अन्तर्गत आती हैं । किसी भी अनार्थिक क्रिया को व्यवसाय में सम्मिलित नहीं किया जाता है । व्यवसाय में केवल उन्हीं मानवीय क्रियाओं को शामिल किया जाता है, जो समाज की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए की जाती हैं ।

इसी प्रकार पर्यावरण का तात्पर्य उन सभी घटकों से है, जो किसी भी इकाई के चारों ओर विद्यमान रहते हैं और इकाई को इन घटकों में ही कार्य करना पड़ता है ।


Essay # 2. व्यावसायिक पर्यावरण की परिभाषा और अवधारणा (Concept and Definition of Business Environment):

व्यावसायिक पर्यावरण की सर्वप्रथम अवधारणा व्यवसाय के लोगों को काम करने के उपयुक्त पर्यावरण से ही लगायी गयी थी!

इस आधार पर व्यावसायिक पर्यावरण की अवधारणा को निम्नानुसार स्पष्ट कर सकते हैं:

(i) रेनकी एवं शॉल के मतानुसार, ”यह उन समस्त बाह्य घटकों का योग है, जिनके प्रति व्यवसाय अपने को अनावृत करता है तथा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता है ।”

(ii) प्रो. वीमर के अनुसार, ”व्यावसायिक पर्यावरण में वह परिवेश अथवा उन आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक या संस्थागत दशाओं का समूह सम्मिलित होता है, जिनके अन्तर्गत व्यावसायिक कार्य-कलापों का संचालन किया जाता है ।”

(iii) विलियम एवं लारेन्स के शब्दों में, ”पर्यावरण उन समस्त बाह्य घटकों को सम्मिलित करता है, जो उपक्रम को अवसरों या जोखिमों की ओर अग्रसर करते हैं । यद्यपि ऐसे कई घटक हैं तथापि उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक सामाजिक, आर्थिक, प्रौद्योगिकी, आपूर्तिकर्त्ता, प्रतिस्पर्धा एवं सरकार हैं ।”

(iv) रॉबिन्स के अनुसार, ”पर्यावरण उन संस्थाओं या शक्तियों से बना होता है, जो किसी संगठन के कार्य निष्पादन को प्रभावित करती है किन्तु उस संगठन का उन पर बहुत कम नियन्त्रण होता है ।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि व्यावसायिक पर्यावरण या परिवेश किसी भी व्यावसायिक इकाई के वे बाहरी तत्व या घटक होते हैं जिनमें रहकर वह इकाई कार्य करती है और जिनसे उस इकाई की कार्य कुशलता और लाभ प्रभावित होता है । अतः पर्यावरण का उस व्यावसायिक इकाई की सफलता या असफलता में महत्वपूर्ण योगदान रहता है ।


Essay # 3. व्यावसायिक पर्यावरण का महत्व (Importance of Business Environment):

व्यवसाय अपने आस-पास के वातावरण से न केवल प्रभावित होता है वरन् स्वयं अपनी गतिविधियों से पर्यावरण के निर्माण में योगदान भी देता है । आज वैश्वीकरण के युग में जहाँ अनेक आन्तरिक एवं बाह्य घटक व्यवसाय के निर्धारक होते हैं वहाँ पर्यावरण का व्यवसाय में अत्यधिक महत्व है ।

विश्व आर्थिक परिदृश्य में कुछ राष्ट्र समृद्ध एवं उन्नतशील हैं और कुछ गरीबी, बेरोजगारी एवं अशिक्षा जैसी समस्याओं से अनवरत संघर्ष कर रहे हैं । आर्थिक असमानता में व्यावसायिक पिछड़ेपन के जो कारक हैं उसके मूल में पर्यावरण का अन्तर ही है जो पिछड़े और गरीब राष्ट्रों के व्यावसायिक क्षेत्र में प्रगति को प्रतिबन्धित करता है ।

व्यावसायिक क्षेत्र में पर्यावरण के महत्व को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है:

i. समग्र विकास में सहायक (Helpful in Overall Development):

व्यवसाय के सर्वांगीण विकास में उस क्षेत्र का व्यावसायिक पर्यावरण ही सहायक होता है । उत्पादन विनिमय और इनके लिये सभी सहायक सेवाएँ व्यवसाय पर्यावरण से ही ग्रहण करता है । वस्तु की माँग, कच्चे माल की आपूर्ति, श्रमिक, परिवहन साधन एवं सरचनात्मक सुविधाएँ आदि सभी समग्र विकास के सूत्र हैं, जिन्हें व्यवसाय पर्यावरण से ही प्राप्त करता है ।

ii. सामाजिक परिवर्तनों का महत्व (Importance of Social Changes):

व्यवसाय की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि वह समाज की बदलती हुई परिस्थितियों के अनुरूप स्वयं को परिवर्तित करे । समाज में उपभोग प्रवृत्ति, उदय और अन्य सांस्कृतिक पर्यावरण में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है । व्यवसाय आदि इन सामाजिक पर्यावरण पर सतत् ध्यान देते हैं और इसके अनुरूप अपने व्यवसाय में आवश्यक समायोजन भी करते हैं, तभी इसमें दीर्घजीवी तथा उत्तरोत्तर उन्नति करने की सम्भावनाएँ बनी रहती हैं ।

iii. दीर्धकालीन योजना बनाना (Preparing Long Term Plans):

व्यवसाय अपनी भावी दीर्घकालीन योजनाएँ बनाने के लिए पर्यावरण पर अवलम्बित रहता है । यह पर्यावरण योजनाओं के निर्माण के विभिन्न स्तरों जैसे – अनुसन्धान एवं प्रोजेक्ट निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाता है । योजनाओं की अभिकल्पना पर्यावरण से प्राप्त पूर्वानुमानों से ही प्रस्तुत होती है । व्यापक अनुसन्धान तथा विश्लेषण के माध्यम से ही व्यवसाय अपनी दीर्घकालीन योजनाओं का निर्माण करता है ।

iv. बाजार की स्थितियों का ज्ञान (Knowledge of Market Positions):

प्रत्येक व्यवसाय को अपने आस-पास के पर्यावरण से ही बाजार की बदलती हुई स्थितियों का ज्ञान होता है । उपभोक्ताओं की रुचि, फैशन, नये व्यवसायी, उत्पादन लागत में परिवर्तन, माँग का रुझान, ज्ञान पूर्ति के स्रोत एवं अवरोध आदि स्थितियाँ पर्यावरण से ही पूर्वानुमानित की जाती हैं । यह पर्यावरण वास्तव में व्यवसायी के लिए विभिन्न निर्माण हेतु आधार प्रस्तुत करते हैं ।

v. तकनीकी परिवर्तनों का महत्व (Importance of Technological Changes):

आधुनिक तकनीक व्यवसाय की प्रगति की धुरी है । आधुनिक विश्व व्यवस्था में तकनीक में नवीनतम परिवर्तन अत्यन्त कम समय में संसार के कोने-कोने में पहुँच जाता है । संसार में हो रहे तकनीकी परिवर्तनों का भी प्रभाव व्यवसाय पर पड़ रहा है । ई-कॉमर्स एवं ई-बैंकिंग आदि इसी परिवर्तन का परिणाम है ।

vi. शासकीय नीतियों का प्रभाव (Effect of Government Policies):

व्यवसाय के परिणाम अपने विशुद्ध आर्थिक स्वरूप से ही निर्धारित न होकर विभिन्न शासकीय नीतियों से भी महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित होते हैं । सरकार की कर नीति, वित्तीय नीति, आयात-निर्यात नीति, औद्योगिक नीति, मौद्रिक नीति, लाइसेंसिंग नीति आदि व्यवसाय के अनुकूल पर्यावरण का निर्माण करती है तभी व्यवसाय प्रगति कर पाते हैं । अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अब व्यवसाय के अनुकूल पर्यावरण बनाने के लिए शासकीय नीतियों में आमूल-चूल परिवर्तन किये जा रहे हैं ।

vii. समस्याओं के विरुद्ध संघर्ष की क्षमता का विकास (Development of Struggle Capacity against Problem):

व्यवसाय में चुनौतियाँ तथा समस्याएँ निरन्तर आती रहती हैं । बाजार अर्थव्यवस्था में जो सबसे शक्तिशाली है वही संघर्ष में अपना अस्तित्व बनाये रखते हैं । पर्यावरण की परिस्थितियों से व्यवसाय अपनी समस्याओं के समाधान के रास्ते खोजते हैं । व्यवसाय माँग, उत्पादन, लागत, प्रतिस्पर्धा, वित्त सम्बन्धी एवं कार्मिक समस्याओं के विरुद्ध संघर्ष कर इन पर विजय प्राप्त करने के लिए अपने ही पर्यावरण से ऊर्जा एवं सहयोग प्राप्त करता है ।

viii. अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं का महत्व (Importance of International Events):

व्यवसाय का स्वरूप अब इस तरह का हो गया है कि उस पर केवल स्थानीय तत्वों का ही प्रभाव नहीं पड़ता है वरन् अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी होने वाली घटनाओं का प्रभाव भी पड़ता है । विश्व व्यापार संगठन के अस्तित्व में आने पर हमारे घरेलू व्यवसाय भी इसके अन्तर्गत आने वाले समझौतों से प्रभावित हो रहे हैं । इस प्रकार अब व्यवसाय के लिए अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं का भी व्यापक महत्व है ।

उपर्युक्त विवरण से यह निष्कर्ष निकलता है कि व्यवसाय का उसके पर्यावरण से अत्यधिक घनिष्ठ सम्बन्ध है । व्यवसाय के विकास की अवस्था से उस स्थान के पर्यावरण का सहज ही आकलन किया जा सकता है । समाज एवं शासन मिलकर यदि व्यवसाय का अनुकूल पर्यावरण सृजित कर पाते हैं तो उन राष्ट्रों की प्रगति में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती है ।

व्यावसायिक पर्यावरण के महत्व को देखते हुए अब सुनियोजित ढंग से इसे विकसित करने के प्रयत्न किये जाते हैं, तभी अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में व्यवसाय का अस्तित्व बचा रह सकता है ।


Essay # 4. व्यावसायिक पर्यावरण की विशेषताएँ (Features of Business Environment):

व्यावसायिक पर्यावरण बहुत ही जटिल, गतिशील एवं व्यापक प्रभाव रखने वाला बहु-आयामी परिदृश्य होता है जो भिन्न-भिन्न व्यावसायिक संस्थाओं को भिन्न-भिन्न ढंग से प्रभावित करता है ।

इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

(1) पर्यावरण के तत्वों की जटिलता (Complexity of Environmental Factors):

व्यावसायिक पर्यावरण में शामिल भिन्न-भन्न तत्व जैसे आर्थिक एवं राजनीतिक तत्व परस्पर इस प्रकार जुड़े होते हैं कि एक में परिवर्तन स्वयं दूसरे में परिवर्तन कर देता है और दूसरे में परिवर्तन लौटकर पुनः पहले में या किसी तीसरे में परिवर्तन कर देता है ।

जैसे – सरकार में समाजवादी विचार के राजनेताओं का शासन उन्हें समाजवादी आर्थिक नीतियाँ बनाने के लिए प्रोत्साहित करेगा और समाजवादी नीतियों का अर्थ है, व्यवसाय संचालन में सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र की व्यावसायिक संस्थाओं की प्रभुता । इससे सरकार की प्रशासनिक व्यवस्था प्रभावित होगी – अधिकांशतः अधिकारी तन्त्र और पुनः इससे सरकारी कम्पनियों की प्रबन्ध व्यवस्था अत्यधिक नियमों और कानूनों में बँध जायेगी ।

(2) पर्यावरण की गतिशीलता तथा अनिश्चितता (Dynamism and Uncertainty of the Environment):

व्यवसाय का पर्यावरण निरन्तर बदलता भी रहता है । जैसे – ‘कार बाजार’ को लीजिये । सन् 1991 के उदारीकरण के परिणामस्वरूप अनेक नयी भारतीय तथा विदेशी कम्पनियों ने नये-नये मॉडल की कारों की लाइन लगा दी । परिणामस्वरूप, लाइसेन्स राज में संरक्षित बाजार वाली हिन्दुस्तान मोटर की एम्बेसडर तथा प्रीमियर कम्पनी की फियट गाड़ियाँ इसके सामने नहीं टिक सकीं और कालान्तर में सबसे अधिक लोकप्रिय कार मारुति का बाजार का नेतृत्व भी डगमगाने लगा ।

फलस्वरूप, एक ओर मारुति ने भी नये मॉडल निकाले, प्रक्रिया प्रौद्योगिकी में सुधार किये और बाजार में अपनी पकड़ मजबूत की और दूसरी ओर अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अनेक कार कम्पनियाँ जैसे डैवू का अनेक कारणों से दिवाला निकल गया । परिणामस्वरूप डी. सी. एम. डैवू कम्पनी कठिनाई में आ गयी । इस उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि व्यावसायिक उपक्रम को प्रभावित करने वाला राजनीतिक, आर्थिक तथा प्रौद्योगिक पर्यावरण लगातार बदलता रहता है ।

(3) व्यवसाय पर पर्यावरण का व्यापक प्रभाव (Extensive Impact of Environment on Business):

व्यावसायिक पर्यावरण प्रायः सम्पूर्ण व्यवसाय को व्यापक रूप से प्रभावित करता है । जैसे – आर्थिक मन्दी, राजनीतिक अस्थिरता, सरकारी कानूनों तथा कराधान व आयात-निर्यात नीतियों में रोज नये परिवर्तन सभी व्यवसायों को कम – या अत्यधिक रूप से प्रभावित करते हैं – उनकी भविष्य की योजनाएँ अपनी धुरी से हिल जाती हैं तथापि इनका प्रभाव भिन्न-भिन्न व्यवसायों पर भिन्न-भिन्न होता है ।

विलासिता की वस्तुएँ निर्मित करने वाले उद्योग जैसे कार उद्योग लोचदार माँग के कारण मन्दी से अत्यधिक प्रभावित होते हैं तो निर्यात और विदेशी सहयोग पर आश्रित उद्योग जैसे निर्यात के लिए तैयार वस्त्र निर्मित करने वाले उद्योग विदेशों में होने वाले परिवर्तनों से अधिक प्रभावित होते हैं ।

(4) बहु-आयामी वातावरण (Multi-Dimensional Environment):

व्यावसायिक पर्यावरण अनेक तत्वों, शक्तियों तथा दशाओं से प्रभावित होता है; जैसे – इसे प्रभावित करने वाले अनेक तत्व हैं – राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, नियामक तथा प्रौद्योगिकी तत्व जिनमें स्वयं अनेक उपतत्व भी शामिल हैं । इन्हें प्रभावित करने वाली कुछ शक्तियाँ जैसे – सरकार, प्रतियोगिता, विदेशी पूँजी, प्रौद्योगिकी, बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ, तेल कार्टेल, आदि हैं ।

इसी प्रकार, इसको प्रभावित करने वाली कुछ दशाएँ भी हैं । उदाहरण के लिए विश्व बाजार में तेजी अथवा मंदी, विश्व पटल पर युद्ध व आतंक के बादल आदि । इन सबसे अधिक प्रभावित व्यवसायकर्त्ता का भविष्य में अपनी योजनाओं की सफलता में विश्वास होता है ।

(5) व्यवसायकर्त्ता के नियन्त्रण से बाहर (Out of Control of Businessman):

सामान्यतया व्यवसाय के पर्यावरण पर किसी भी एक व्यावसायिक उपक्रम का नियन्त्रण नहीं होता है ।

वे सब मिलकर भले ही इस पर कुछ प्रभाव डाल सकते हैं, उदाहरण के लिए – व्यवसाय संघों के द्वारा सरकार को आर्थिक नीतियों के बारे में सुझाव देना तथा उन्हें इन पर विचार-विमर्श करने के लिए मनवाना या विश्वव्यापी कार्टेल बनाकर जैसे तेल उत्पादक देशों का कार्टेल, तेल की कीमतों को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावित करना परन्तु मूल रूप से इन पर एकाकी व्यवसायी का कोई नियन्त्रण स्थापित नहीं होता है ।


Essay # 5. व्यावसायिक पर्यावरण के संघटक (Components of Business Environment):

व्यावसायिक फर्म की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह अपने पर्यावरण के विभिन्न संघटकों से किस प्रकार अन्तर्क्रिया करती है । यही कारण है कि फर्म का कार्य अपने पर्यावरण की सूक्ष्म जाँच कर इसके संघटकों तथा उनके परस्पर सम्बन्धों की पहचान करना एवं इनसे व्यवहार करने के लिए प्रभावी नीतियों को निर्माण करना है ।

इस प्रकार व्यावसायिक पर्यावरण उन समस्त पर्यावरणीय संघटकों का कुल योग है जो व्यावसायिक फर्म को उसका परिवेश प्रदान करता है ।

व्यावसायिक पर्यावरण में फर्म के आन्तरिक एवं बाह्य तत्व दोनों सम्मिलित होते हैं ।

जिनको निम्न रूप से प्रस्तुत किया जा सकता है:

(I) आन्तरिक पर्यावरण (Internal Environment):

आन्तरिक पर्यावरण की निम्नलिखित विशेषताएँ व्यापक रूप में होती हैं:

1. इसमें व्यवसाय को प्रभावित करने वाले वे आन्तरिक तत्व शामिल होते हैं जो व्यवसाय के नियन्त्रण में रहते हैं ।

2. ये फर्म के आन्तरिक संगठनात्मक घटकों से निर्मित होता है जिन पर फर्म का स्वयं नियन्त्रण होता है । संक्षिप्त में आन्तरिक पर्यावरण संगठन के अन्दर ही पाए जाते हैं ।

3. व्यवसाय के आन्तरिक पर्यावरण में निम्नलिखित घटक महत्वपूर्ण माने जाते हैं:

i. व्यावसायिक लक्ष्य एवं उद्देश्य

ii. व्यावसायिक एवं प्रबन्धकीय नीतियाँ

iii. व्यावसायिक क्षमता एवं वृद्धि सम्भावनाएँ

iv. उत्पादन प्रणाली, अभिकल्पना, यन्त्र एवं तकनीकें

v. श्रम एवं प्रबन्ध की कुशलता व सक्षमता का स्तर

vi. व्यवसायिक योजनाएँ एवं व्यूह रचनाएँ

vii. व्यावसायिक प्रबन्ध सूचना प्रणाली एवं सम्प्रेषण व्यवस्था

viii. सामाजिक दायित्वों के प्रति दृष्टिकोण

ix. व्यावसायिक दृष्टि

x. कार्य का समग्र पर्यावरण

xi. वित्त व्यवस्था ।

आन्तरिक पर्यावरण में 5 Ms को भी शामिल किया जाता है – Man (मनुष्य), Material (सामग्री), Money (मुद्रा), Machinery (मशीनरी), व Management (प्रबन्ध) ।

4. यद्यपि आन्तरिक पर्यावरण नियन्त्रण योग्य है, लेकिन इसमें भी निरन्तर जटिलताएँ एवं बाधाएँ उत्पन्न होती रहती हैं । इसलिए व्यवसाय के आन्तरिक पर्यावरण की पहचान करना इसे पूर्णरूप से समझना व्यवसाय का प्रथम उत्तरदायित्व है ।

5. यद्यपि प्रबन्धक, संचालक व अधिकारी संस्था के आन्तरिक पर्यावरण के अंग होते हैं, परन्तु बाह्य पर्यावरण के सम्बन्ध में भी जानकारी प्राप्त करके व पर्यावरण में आ रहे परिवर्तनों को समय से विश्लेषित करके उनके अनुसार व्यवसाय की नीतियों में आवश्यक परिवर्तन करते रहते हैं ।

6. आन्तरिक पर्यावरण व्यवस्था (संस्था) की ताकत (Strength) व कमजोरियाँ (Weaknesses) को उजागर करते हैं । उदाहरण के लिए यदि संस्था के कर्मचारी कुशल व योग्य हैं तो ये कर्मचारी संस्था को नई ऊँचाईयों पर ले जा सकते हैं । इसके विपरीत यदि वे असन्तुष्ट हैं तो उनका मनोबल कम होता है जिसका संगठन के निष्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि व्यवसाय की सफलता के लिए कि व्यवसाय के आन्तरिक पर्यावरण को पूर्ण रूप से समझना आवश्यक है ।

(II) व्यवसाय का बाह्य पर्यावरण (External Environment of Business):

व्यवसाय किसी रिक्तता (Vacuum) में संचालित नहीं किया जाता वरन् समाज के अन्तर्गत कार्यशील विभिन्न शक्तियों, दशाओं एवं तत्वों की अनुक्रिया में किया जाता है । ये पर्यावरण की वास्तविकताएँ व्यवसाय के संचालन एवं प्रगति को प्रभावित करती रहती हैं । इनमें आर्थिक तत्व, सामाजिक व सांस्कृतिक तत्व जनांकिकी तत्व, प्राकृतिक तत्व अन्तर्राष्ट्रीय तत्व प्रथम सम्मिलित होते हैं ।

संक्षेप में बाह्य पर्यावरण की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:

i. बाह्य पर्यावरण व्यवसाय को प्रभावित करने वाले बाहरी तत्वों के समूह को कहा जाता है । आर्थिक तत्व, सामाजिक-सांस्कृतिक-तत्व, सहकारी और कानूनी तत्व, जनांकिकीय तत्व तथा प्राकृतिक तत्व शामिल हैं । इन तत्वों पर व्यवसायी का नियन्त्रण नहीं होता ।

ii. बाह्य पर्यावरण व्यवसाय के अवसरों (Opportunities) एवं चुनौतियों (Threts) को उजागर करते हैं । जिनका विश्लेषण करके प्रबन्धक विभिन्न राजनीतियों में से सर्वोत्तम राजनीति में से सर्वोत्तम राजनीति का चयन करना ।

iii. बाह्य पर्यावरण वे व्यावसायिक इकाई के नियन्त्रण के बाहर होता है और कई बार इनका व्यवसाय पर इतना गम्भीर प्रभाव पड़ता है कि व्यवसाय को ही बन्द करने के लिए बाध्य होना पड़ता है ।


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