Here is an essay on ‘Collective Bargaining’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Collective Bargaining’ especially written for school and college students in Hindi language.

Essay on Collective Bargaining


Essay Contents:

  1. सामूहिक सौदेबाजी की विचारधारा (Concept of Collective Bargaining)
  2. सामूहिक सौदेबाजी के कार्य (Functions of Collective Bargaining)
  3. सामूहिक सौदेबाजी के स्वरूप (Forms of Collective Bargaining)
  4. सामूहिक सौदेबाजी की मुख्य विशेषताएँ (Features of Collective Bargaining)
  5. सौदेबाजी सम्बन्ध को विकसित करना (Developing a Bargaining Relationship)
  6. सफल सामूहिक सौदेबाजी के लिए पूर्व शर्तें (Pre-Requisites of Successful Collective Bargaining)


Essay # 1. सामूहिक सौदेबाजी की विचारधारा (Concept of Collective Bargaining):

सामूहिक सौदेबाजी एक ऐसी तकनीक है जिसको यूनियन तथा प्रबन्ध द्वारा अपने परस्पर विरोधी हितों के समाधान हेतु अपनाया जाता है । इसे ‘सामूहिक’ (Collective) इसलिए कहा जाता है, क्योंकि एक समूह के रूप में कर्मचारी सेवायोजक के साथ मतभेदो पर मिलने तथा विचार-विमर्श करने के लिए प्रतिनिधियों का चयन करती हैं ।

सामूहिक सौदेबाजी (Collective Bargaining) बिल्कुल विपरीत होती है, व्यक्तिगत सौदेबाजी (Individual Bargaining) से, जो प्रबन्ध तथा एक श्रमिक के बीच है, एक व्यक्ति के तौर पर, अपने सहकर्मियों से एकदम अलगा-थलग, होती ।

सामूहिक सौदेबाजी श्रम-प्रबन्ध सम्बन्धों को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, तथा औद्योगिक एकता को सुनिश्चित करती है । सामूहिक सौदेबाजी के लिए विचार विनिमय (Negotiation) श्रम तथा प्रबन्ध के प्रतिनिधियों के संयुक्त सत्रों (Joint Sessions) की अपेक्षा करते हैं ।

ये एक-दूसरे के नजरिये का भली प्रकार समर्थन तथा उनके सामने आ रही समस्याओं को जानने में सहायता करती है । विचार-विमर्श तथा अन्त: सम्पकों के माध्यम से प्रत्येक पक्षकार दूसरे के बारे में और अधिक सीखता है, तथा गलतफहमियाँ बहुधा दूर हो जाती हैं ।

यद्यपि यह आवश्यकनहीं है कि सभी महत्वपूर्ण मतभेद सदा ही हल हो जायें, तो भी सामूहिक सौदेबाजी अनेक हल्के-फुल्के मतभेदों के समाधान में तो सफल रहती ही है, तथा ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिनमें बड़े-बड़े विषयों को भी बिना काम रोके या बाहरी हस्तक्षेप के भली प्रकार सुलझा लिया गया है ।

तदनुसार विवाद निदान में सामूहिक सौदेबाजी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है । यह सुरक्षा कवच का निर्माण करती है, विरोधी ग्रुप को अपनी भड़ास निकालने के पूरे अवसर देती है, ताकि सम्पूर्ण तंत्र को छिन्न-भिन्न किये बिना ही बात बन जाये ।

वाक्यांश Collective Bargaining को Great Britain के सिडनी और बैद्धिक वेब (Sydney and Beactrice Webb) द्वारा लिया गया है, जिसको “Home of Collective Bargaining” कहा जाता है । सामूहिक सौदेबाजी की विचारधारा औद्योगिक तनाव तथा ट्रेड यूनियन आन्दोलन के विकास के फलस्वरूप उभरी तथा इसको Samuel Gompers द्वारा सर्वप्रथम अमेरिका में विकसित किया गया ।

भारत में पहला (Collective Bargaining Agreement) 1920 में महात्मा गाँधी के कहने पर हुआ ताकि अहमदाबाद में वस्त्र उद्योग के श्रमिकों तथा उनके सेवायोजकों के बीच श्रम-सम्बन्धों को नियंत्रित किया जा सके ।

वाक्यांश Collective Bargaining दो शब्दों से बना है Collective जिसमें अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से ग्रुप गतिविधि का समावेश होता है, तथा Bargaining जो सौदेबाजी (Haggling and/or Negotiating) का सुझाव देती है ।

अत: इस वाक्यांश से समावेश होता है, “Collective negotiation of a contract between the management’s representatives on one side and those of the worker, on the other .” इसमें एक मौलिक या फिर लोचदार स्थिति का समावेश होता है, जिससे समझौते के पक्षकारों में से एक या दोनों, अत्यन्त नम्रता से समझौते की स्थिति तक पीछे मुड़ सकते हैं ।

सामूहिक सौदेबाजी में सामान्यत: एक Give-and-take सिद्धान्त शामिल रहता है, क्योंकि एक कठोर, बेलोच तथा अनुदार स्थिति एक Compromise settlement के लिए व्यवस्था नहीं कर पाती Bakke and kerr ने Collective Bargaining के लोचपूर्ण चरित्र पर बारबार जोर दिया है ।

सामूहिक सौदेबाजी से आशय उस स्थिति से है, जिसमें रोजगार की आवश्यक शर्तों का निर्धारण श्रमिकों के एक समूह के प्रतिनिधियों तथा दूसरी ओर एक या अधिक नियोक्ताओं के प्रतिनिधियों के बीच सौदेबाजी की विधि से किया जाता है ।

यह समझौते सामूहिक इसलिए कहलाते हैं, क्योंकि श्रमिक वर्ग अपने हितों का संयुक्त रूप से एक समूह के रूप में सौदा अथवा समझौता (Agreements) करते हैं ।

यह सिद्धान्त इस बात पर आधारित है, कि श्रम बाजार में अकेला श्रमिक अपनी सेवाओं के बदले उचित मजदूरी प्राप्त करने में असफल रहता है, क्योंकि उसको श्रम बाजार की स्थिति का ज्ञान नहीं होता । ऐसी दशा में श्रमिक श्रम संघ को अपना प्रतिनिधि बना देता है, तथा श्रम संघ के द्वारा नियोक्ताओं से समझौता किया जाता है, जिसे श्रमिक स्वीकार कर लेता है ।


Essay # 2. सामूहिक सौदेबाजी के कार्य (Functions of Collective Bargaining):

सामूहिक सौदेबाजी के कार्यों को निम्न तीन शीर्षकों में बाँटा है:

(1) सामूहिक सौदेबाजी एक सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया के रूप में (Collective Bargaining as a process of social change),

(2) सामूहिक सौदेबाजी सत् टकराव में दोनों पक्षकारों के बीच एक शान्ति संधि के रूप में (Collective bargaining as a peace treaty between two parties in continual conflict)

(3) सामूहिक सौदेबाजी औद्योगिक न्याय क्षेत्र के एक तंत्र के रूप में (Collective bargaining as a system of industrial jurisprudence)

संक्षेप में सामूहिक सौदेबाजी के कार्यो को निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है:

(1) सामाजिक परिवर्तन से सम्बन्धित कार्य:

इसके अन्तर्गत वे समस्त कार्य सम्मिलित होते हैं, जो दोनों पक्षों के बीच शक्ति सन्तुलन बनाये रखने के लिए आवश्यक होते हैं । श्रमिक वर्ग-नियोक्ता वर्ग को नष्ट नहीं करना चाहता अपितु सामूहिक सौदेबाजी प्रक्रिया से स्वयं उसके बराबर होना चाहता है ।

(2) औद्योगिक सन्धि या समझौता करना:

सामूहिक सौदेबाजी में उसी पक्ष का पलड़ा भारी रहता है, जो शक्तिशाली होंगे और वे अपने पक्ष में समझौता करने में सफल होंगे । यदि नियोक्ता शक्तिशाली होगा तो समझौता उनके पक्ष में होगा । इसलिए यदि समझौता एक पक्षीय होगा तो वह समझौता अधिक देर तक नहीं चलेगा लेकिन नैतिक दृष्टि से दोनों पक्ष उसको मानने के लिए बाध्य होते हैं ।

औद्योगिक सन्धि ही सामूहिक सौदेबाजी का आधार हो सकती है, और इसके लिए श्रम संघों को कई आर्थिक और अनार्थिक कार्य करने होते हैं ।

(3) औद्योगिक न्याय की रक्षा से सम्बन्धित कार्य:

सामूहिक सौदेबाजी से औद्योगिक न्याय का प्रारम्भ होता है, इसलिए सामूहिक सौदेबाजी की प्रक्रिया ऐसी होनी चाहिए जिससे औद्योगिक न्याय की रक्षा हो सके ।

औद्योगिक न्याय में नागरिक अधिकार को लागू करने की प्रक्रिया सम्मिलित होती है, अर्थात् सामूहिक सौदेबाजी में कानूनी अधिकारों की हत्या न की जाये । यदि कोई समझौता लिखित न हो तो प्रचलित परम्परानुसार उसको लागू किया जाना चाहिए ।


Essay # 3. सामूहिक सौदेबाजी के स्वरूप (Forms of Collective Bargaining):

अपने निश्चित अर्थों में सामूहिक सौदेबाजी को कर्मचारियों तथा सेवायोजकों के बीच एक धनात्मक Give-and-Take की प्रक्रिया के रूप में समझा जाता है । Give-and-Take की भावना तथा परस्पर विश्वास का भाव उसके सम्पूर्ण परिचालन में सामूहिक सौदेबाजी में अन्तर्निहित होना चाहिए ।

लेकिन व्यवहार में सामूहिक सौदेबाजी कुल मिलाकर तभी अपनाई जाती है, जब यूनियन तथा प्रबन्ध के बीच टकराव पैदा होते हैं । एक निश्चित सामूहिक सौदेबाजी स्थिति में जो प्रत्याशित है, वह है अनुबन्ध/ठहराव के समापन के तुरन्त बाद या पहले विचार-विमर्श का प्रारम्भ ।

लेकिन अधिकांश मामलों में विचार-विनियम एक श्रम सम्बन्ध स्थिति के विकसित होने के बाद ही प्रारम्भ होता है । साथ ही सामूहिक सौदेबाजी सेवायोजकों के विरुद्ध एक लड़ाई के भाग के रूप में उभर चुकी है ।

लेकिन व्यापक तौर से सामूहिक सौदेबाजी निम्न स्वरूप ले सकती है:

(1) यह एक एकाकी संयंत्र सौदेबाजी हो सकती है, अर्थात् सौदेबाजी प्रबन्ध तथा एकल ट्रेड यूनियन के बीच हो सकती है । इस प्रकार की सामूहिक सौदेबाजी संयुक्त राज्य अमेरिका तथा भारत में व्याप्त है ।

(2) यह एक बहुआयामी संयंत्र सौदेबाजी हो सकती है, अर्थात् सौदेबाजी एक एकल कारखाना या संस्थान जिसके कई सयंत्र हैं, तथा इन सभी संयत्रों में कार्यरत श्रमिकों के बीच हो सकती है ।

(3) यह एक बहुआयामी सेवायोजक सौदेबाजी हो सकती है, अर्थात् उनके federal organizations के माध्यम से उसी उद्योग में श्रमिकों की सभी ट्रेड यूनियनों तथा सेवायोजकों के federation के बीच सौदेबाजी । यह स्थानीय तथा क्षेत्रीय दोनों ही स्तरों पर सम्भव है, तथा इसका सामान्यत: वस्त्र उद्योग में सहारा लिया जाता है ।

भारत में सामूहिक सौदेबाजी को निम्न चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:

(1) ऐसे ठहराव जिनको Conciliation proceedings के दौरान अधिकारियों द्वारा विचार-विमर्श किया जाता है, तथा इनको Settlements under the Industrial disputes कहा जाता है ।

(2) ऐसे ठहराव जिनको Board of Conciliation के संदर्भ के बिना स्वयं पक्षकारों द्वारा किया जाता है, तथा उनके द्वारा हस्ताक्षर किये जाते हैं । ऐसे ठहरावों की प्रतियाँ उपयुक्त सरकारो तथा Conciliation Officers को भेजी जाती हैं ।

(3) ऐसे ठहराव जिन पर स्वैच्छिक आधार पर पक्षकारों द्वारा विचार-विमर्श किये जाते हैं, जब विवाद अर्द्ध न्यायिक होते हैं, तथा जिनको बाद में औद्योगिक ट्रिब्यूनलों, श्रम अदालतों या श्रम पंच निर्णायकों को निर्णयों के भागों के रूप में

प्रपत्रों में समावेश हेतु सौंपा जाता है । इनको Consent Awards के रूप में जाना जाता है ।

(ये तीनों प्रकार के ठहराव निश्चित रूप से Memoranda of Settlements होते हैं, तथा ओद्योगिक विवाद अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत पक्षकारों पर बाध्यकारी होते हैं ।)

(4) ऐसे ठहराव जो श्रम तथा प्रबन्ध के बीच प्रत्यक्ष विचार-विमर्श के बाद बनाये जाते हैं, तथा स्वभाव में पूर्णत: स्वैच्छिक होते हैं । ये अपने क्रियान्वयन के लिए नैतिक शक्तियों तथा ख्याति पर एवं पक्षकारों के सहयोग पर निर्भर करते हैं ।


Essay # 4. सामूहिक सौदेबाजी की मुख्य विशेषताएँ (Features of Collective Bargaining):

a. यह एक द्विपक्षीय प्रक्रिया है:

यह किसी विवाद के निपटान तक पहुँचने की Take-it-or-Leave-it विधि की अपेक्षा पारस्परिक Give-and-take विधि है । चूंकि इसमें दो पक्षकार शामिल होते हैं ।

इस सम्बन्ध में Clark Kerr कहते हैं, ”सामूहिक सौदेबाजी केवल अपने-अपने उपयुक्त उत्तरदायित्वों की प्रबन्ध तथा श्रम द्वारा स्वीकृति पर ही काम कर सकती है । यह केवल तभी सफल हो सकती है, जब श्रम तथा प्रबन्ध दोनों सफल होना चाहें ।”

b. यह एक सतत् प्रक्रिया है:

यह प्रबन्ध त था ट्रेड यूनियनों के बीच सतत् त था संगठित सम्बन्धों के लिए एक तंत्र व्यवस्था प्रदान करती है । “सामूहिक सौदेबाजी का हृदय संयंत्र समस्याओं के सतत् संयुक्त विचार विमर्श तथा समायोजन के लिए प्रक्रिया होती है ।” यह समझौते पर आकर समाप्त नहीं हो जाती लेकिन जैसा Glen Gardiner ने कहा है, – “It begins and ends with the writing of a contract. Actually, it is only the beginning of collective bargaining. It goes on for 365 days of the year. The most important part of collective bargaining…. Is the bargaining that goes on form day to day under the rules established by labour agreement.”

c. यह गतिशील होती है न कि स्थिर (It is Dynamic and not Statics):

यह अपेक्षाकृत एक नई विचारधारा है, तथा निरन्तर बढ़ रही है तथा पलपल बदल रही है । विगत में इसको भावनात्मक, उत्पाती तथा भावुक माना जाता था लेकिन अब यह वैज्ञानिक, तथ्यगत तथा व्यवस्थित हो चुकी है । इसका कार्यक्षेत्र तथा शैली बदल चुके हैं ।

इस सम्बन्ध में जे.एम.द्बाकि कहते हैं, “सामूहिक सौदेबाजी अद्‌भुत नम्रता के साथ, हमारे समाज की महानतम शक्तियों में से एक बन चुकी है । किसी भी बात में, अपनी वर्तमान शक्ति तथा पैमाने की तरह, यह एक नई चीज है ।”

यह एक प्रक्रिया है जो वकालत को विचार-विमर्श में बदल देती है, तथा जो कर्मचारियों को इज्जत प्रदान करती है, क्योंकि वे रोजगार की अपनी शर्तों के सृजन में भाग लेते हैं । यह प्रजातांत्रिक आदर्शों का समावेश करती है, तथा काम के स्थान पर उसको सही तौर से तथा प्रभावी तरीके से लागू कर देती है ।

d. यह व्यक्तिगत कार्यवाही की अपेक्षा सामूहिक गतिविधि है जो श्रमिकों के प्रतिनिधित्व के माध्यम से शुरू की जाती है:

प्रबन्ध की ओर से समझौता मंच (Bargaining Table) पर 11 डेलीगेट होते हैं; श्रमिकों की ओर से उनकी ट्रेड यूनियन होती है, जो स्थानीय संयंत्र, उद्योग सदस्यता या राष्ट्रव्यापी सदस्यता का प्रतिनिधित्व कर सकता है ।

e. यह लोचपूर्ण तथा गतिमान होती है, न कि स्थिर तथा कठोर:

अन्तिम समझौता होने या अन्तत: निर्णय होने से पूर्व इसमें समझौते के लिए, पारस्परिक Give-and-take हेतु पूरा क्षेत्र रहता है । Bakke and Kerr कहते हैं, “अनिवार्यत: एक सफल सामूहिक सौदेबाजी विनम्रतापूर्वक पीछे रहने का अभ्यास है, बिना यह दिखाये कि पीछे हट रहे हैं ।”

सामान्यत: पक्षकार अधिक की माँग करते हैं, या अन्तत: स्वीकृत या प्रदत्त की अपेक्षा कम ही प्रदान करते हैं । Take-it-or-leave-it का सिद्धान्त इस खेल के नियमों में नहीं देखा जाता । एक सबसे दुखद आलोचना रही है, जब एक पक्षकार अपनी मूल स्थिति को पकड़े रहने में हठधर्मिता दिखाता है ।

उतनी नम्रता के साथ पीछे इटने से पूर्व, जितना परिस्थितियाँ आज्ञा दें, प्रत्येक पक्षकार जितना सम्भव होता है कम ही पीछे हटने का प्रयास करते हैं । इसमें अपनी निजी अन्तिम रियायतों को बताये बिना opposing negotiator की अधिकतम रियायतों के निर्धारण का समावेश होता है । जब तक ठहराव हो नहीं जाता जब तक एक तरह से सभी Negotiations गवेषणात्मक होते हैं ।

f. यह काम पर औद्योगिक प्रजातंत्र है:

Industrial democracy is the government of labour with the consent of the governed-the workers, मनमाने एक पक्षीयवाद का सिद्धान्त उद्योग में आत्म-नियंत्रण (self-government) के सिद्धान्त को जन्म दे चुका है । सामूहिक सौदेबाजी मात्र वरिष्ठता छुट्टियों तथा मजदूरी वृद्धियों के स्वीकृति के एक ठहराव पर signing ही नहीं है ।

यह शिकायतों पर विचार करने के लिए एक टेबल के ईद-गिर्द बैठना मात्र नहीं है । यह मूलत: प्रजातांत्रिक है; सभी ऐसे विषयों पर कम्पनी की नीति का संयुक्त सृजन है, जो एक संयंत्र में श्रमिकों को प्रत्यक्षत: प्रभावित करती है । यह प्रबन्ध की एक नीति का प्रयोजन है, जो श्रमिकों को सुनवाई का अधिकार देता है । यह सामान्य हित पर आधारित कारखाने के कानून की स्थापना है ।

g. सामूहिक सौदेबाजी एक प्रतिस्पर्द्धी प्रक्रिया नहीं है वरन् अनिवार्यत: एक पूरक प्रक्रिया है:

अर्थात् प्रत्येक पक्षकार को कुछ ऐसी चीज की आवश्यकता होती है, जो अन्य पक्षकार यथा श्रम अपेक्षाकृत अधिक उत्तपादकीय प्रयास कर सकता है, तथा प्रबन्ध में उस प्रयास के लिए चुकाने की ताकत होती है, तथा उसके उद्देश्यों की अभिप्राप्ति हेतु उसके संगठित तथा मार्गदर्शित करने के लिए क्षमता होती है ।

व्यवहारात्मक वैज्ञानिकों ने ‘distributive bargaining’ तथा ‘integrative bargaining’ में भेद किया था । उनके अनुसार ‘distributive bargaining’ उस ‘cake’ को वितरित करने की प्रक्रिया है, जो प्रबन्ध तथा श्रम के संयुक्त प्रयास से उत्पन्न होता है ।

इस प्रक्रिया में यदि एक पक्षकार दूसरे पक्षकार पर जीत प्राप्त कर लेता है, केक के रूपक को जारी रखते हुए, तो दूसरे पर उसका अपेक्षाकृत छोटा आकार ही मिल पाता है । यह एक Win-LOOSE Relationship होता है । दूसरे शब्दों में, Distributive Bargaining ऐसे विषयों से सम्बन्ध रखती है, जिसमें दो या अधिक पक्षकारों का परस्पर विरोधी या विपरीत हित होता है ।

दूसरी ओर integrative bargaining एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा दोनों पक्षकार जीत सकते हैं । प्रत्येक एक-दूसरे पक्षकार के लाभार्थ कुछ न कुछ योगदान दे रहा होता है ।

सम्पूर्ण उपक्रम की खुशहाली तथा विकास के प्रति ऐसी एक प्रक्रिया सामान्य उद्देश्यों को विकसित करती है, एक-दूसरे की आवश्यकताओं तथा क्षमताओं की कहीं अच्छी समझ होती है, एक-दूसरे के प्रति और अधिक सम्मान तथा उसमें अधिक सन्निहितता या कटिबद्धता आती है ।

h. यह एक कला है, मानवीय सम्बन्धों का एक परिष्कृत स्वरूप:

इसको समझाने के लिए हमको bluffing, the oratory dramatics तथा एक inexplicable fashion में मिली गुप्तता को देखने की जरूरत है, जो एक bargaining session का लक्षण हो सकती है ।

Devey के शब्दों में:

“सामूहिक सौदेबाजी एक जटिल प्रक्रिया है । इसमें कार्य समूहकी शक्ति, राजनीति, मनोविज्ञान का समावेश होता है । यह through-minded calculus तथा horse-trading एक प्रक्रिया है । यह स्तर तथा शक्ति की ओर अग्रसर व्यक्ति तथा ग्रुप का एक सामूहिक आयाम भी है । इसमें बार-बार प्रभुसत्ता सम्पन्न सस्थागत सत्ताओं, जिनकी अस्तित्व अपेक्षाएँ हैं, के बीच प्रतियोगिता का समावेश होता है, कुछ उदाहरणों के सम्बद्ध तथा कुछ अन्य उदाहरणों में पूर्णत: स्वतंत्र या एक-दूसरे से टकराते हुए ।”


Essay # 5. सौदेबाजी सम्बन्ध को विकसित करना (Developing a Bargaining Relationship):

सामूहिक सौदेबाजी एक संस्थागत प्रतिनिधिक प्रक्रिया है । इसमें समझौते के लिए मूल स्थिति से पीछे हटने में एक अभ्यास का समावेश होता है ।

इसमें निम्न चरणों का समावेश होता है:

(i) यह निर्णय लेना कि कौन-सी यूनियन को सौदेबाजी उद्देश्यों के लिए श्रमिकों के प्रतिनिधि के रूप में माना जाये;

(ii) निर्धारित करना कि सौदेबाजी का क्या स्तर रहे; तथा

(iii) निर्धारित करना कि सामूहिक सौदेबाजी के अन्तर्गत मुद्दों का क्षेत्र क्या होना चाहिए ।

(1) सौदेबाजी वाहकों कीमान्यता (Recognition of the Bargaining Agent):

उन संगठनों में जिनमें एक एकाकी ट्रेड यूनियन है, उस यूनियन को सामान्यत: श्रमिकों का प्रतिनिधित्व के लिए मान्यता दी जाती है । लेकिन जहाँ एक से अधिक यूनियनें हैं ।

इनमें से किसी भी कसौटी को प्रतिनिधिक यूनियन की पहचान हेतु काम में लाया जा सकता है:

(a) गुप्त मतदान द्वारा प्रतिनिधिक यूनियन का चयन;

(b) किसी सरकारी संस्था द्वारा सदस्यता के सत्यापन के माध्यम से चय;

(c) सभी महत्वपूर्ण यूनियनों की संयुक्त समिति के साथ सौदेबाजी;

(d) एक विचार विनिमय समिति के साथ सौदेबाजी जिसमें विभिन्न यूनियनों का उनकी सत्यापित सदस्यता के अनुपात में प्रतिनिधित्व किया जायेगा; तथा

(e) एक Negotiation Committee के साथ सौदेबाजी जिसमें शामिल हैं, संगठन के प्रत्येक विभाग के चुने हुए प्रतिनिधि, जिनको गुप्त मतदान द्वारा चुना जायेगा, उनकी यूनियन सम्बद्धता की अनदेखी करके ।

गुप्त मतदान प्रणाली को अमेरिका, पश्चिमी जर्मनी, आदि देशों में व्यापक तौर से काम में लाया जाता है । भारत में AITUC, BMS, UTUC तथा CITU ने इस विधिका समर्थन किया है, लेकिन INTUC ने इसका विरोध किया है ।

The National commission on Labour ने प्रतिनिधिक यूनियन के निर्धारण को प्रस्तावित Industrial Commission पर छोड़ने को प्राथमिकता दी, या तो गुप्त मतदान या इस उद्देश्य के लिए सत्यापन प्रक्रिया पर जोर दिया ।

एक संयुक्त समिति (Joint Committee) बनाने के लिए प्रयास का सबसे बडी यूनियन या मान्यता प्राप्त यूनियन द्वारा विरोध किया जा सकता है, जो संस्थान या उद्योग के सभी कर्मचारियों की ओर से बोलने के अधिकार का दावा कर सकती है ।

इस Bargaining Committee को यूनियनों की आनुपातिक शक्ति के साथ केवल तभी प्रयास करने चाहिए जब सबसे बड़ी यूनियन अभी भी एक अल्पमत यूनियन हो, तथा उसके अन्य मजबूत प्रतिद्वन्ही मौजूद हों ।

यदि गुप्त मतदान या एक स्वतंत्र अधिसत्ता द्वारा सत्यापन किया जाता है, जो स्पष्ट करता है कि कोई यूनियन विशेष को समर्थ कर्मचारियों को निरपेक्ष बहुमत प्राप्त है, तो उसको ही ‘Sole Bargaining Agent’ के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए तथा अन्य यूनियनों को अपने सदस्यों की शिकायतों की अभिव्यक्ति करने का अधिकार दिया जा सकता है ।

(2) सामूहिक सौदेबाजी का स्तर (Level of Collective Bargaining):

सामूहिक सौदेबाजी व्यावहारिक तौर पर सभी स्तरों पर सम्भव है, यथा उपक्रम स्तर पर, देश में सम्पूर्ण उद्योग के स्तर पर अर्थात् राष्ट्रीय स्तर पर, यह किसी क्षेत्र विशेष में उद्योग के सार पर हो सकती है अर्थात् क्षेत्रीय उद्योग स्तर पर ।

एक व्यक्तिगत संस्थान, उपक्रम-स्तर की सौदेबाजी के नजरिये से यह सामान्यत: उपयोगी होती है, इसलिए कि निपटान प्रक्रिया संस्था की परिस्थितियों के आधार पर की गई है । उदाहरणार्थ उसकी भुगतान करने की क्षमता उसकी बाजार परिस्थितियाँ तथा उद्देश्य, आदि ।

एक उद्योग की बड़ी मात्रा में यूनिटों को शामिल करना आधुनिक प्रवृत्ति है, ताकि समझौते (Settlements) सम्पूर्ण उद्योग के प्रति लागू हों या एक क्षेत्र विशेष में उद्योग के प्रति लागू हों ।

(3) सामूहिक सौदेबाजी का क्षेत्र (Scope and Coverage Bargaining):

यद्यपि अनेक संगठनों में सौदेबाजी केवल विशिष्ट मुद्दों पर ही की जाती है, जैसे मजदूरी वृद्धि, बोनस, या वरिष्ठता, पदोन्नति आदि तथापि इसको प्रबन्ध तथा ट्रेड यूनियनों दोनों के लिए लाभकारी माना जाता है । इसमें जहाँ तक सम्भव हो सके दोनों पक्षों के हित के अनेक मुद्दों को शामिल कर लिया जाना चाहिए ।


Essay # 6. सफल सामूहिक सौदेबाजी के लिए पूर्व शर्तें (Pre-Requisites of Successful Collective Bargaining):

सामूहिक सौदेबाजी को प्रगतिशील तथा अधिक सार्थक बनाने के लिए निम्न चरणों को ध्यान में रखा जाना चाहिए:

(1) सेवायोजकों तथा कर्मचारियों के रुझानों में बदलाव आना चाहिए कि सामूहिक सौदेबाजी की व्यवस्था में मुकदमेबाजी का समावेश नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा न्यायीकरण में होता है । यह एक ऐसी व्यवस्था है, जो संकेत देती है कि दोनों पक्षकार एक शान्तिपूर्ण तरीके से अपने-अपने दावों में अपने मतभेदों को सुलझाने के लिए वचनबद्ध है ।

उन्हें अपनी-अपनी शक्ति तथा संसाधनों पर ही भरोसा है, तथा उन्हें अपनी समस्याओं के समाधान के लिए किसी तृतीय पक्षकार की ओर नहीं देखना ।

(2) सामूहिक सौदेबाजी को सर्वोत्तम तरीके से सयन्त्र स्तर पर किया जाता है । दोनों ही पक्षकारों के Bargaining Agent को अपनी अपनी समस्याओं के एक सहमत समाधान तक पहुँचने के लिए वचनबद्ध होना चाहिए ।

सेवायोजकों का प्रतिनिधित्व प्रबन्ध द्वारा तथा श्रमिकों का ट्रेड यूनियन द्वारा किया जाना चाहिए तो यदि संयंत्र में एक से अधिक यूनियनें हैं, दोनों को यह पता होना चाहिए कि कौनसी मान्यता प्राप्त यूनियन है । Bargaining Agent की उचित तरीके से पहचान की जानी चाहिए ।

(3) सेवायोजकों तथा कर्मचारियों को एक ठहराव पर पहुँचने के लिए माँगों पर या मतभेद के मुद्दी पर समझौते को समझना चाहिए । ट्रेड यूनियन को अनुचित माँगे नहीं रखनी चाहिए ।

किसी भी पक्षकार की ओर से वार्ता के लिए किसी भी मनाही को एक अनुचित व्यवहार माना जाना चाहिए । सामूहिक सौदेबाजी प्रणाली में हठधर्मिता वाला रुख कोई स्थान नहीं रखता ।

(4) समझौता वार्ता केवल तभी सफल हो सकती है, जब पक्षकार अपने विचारों के समर्थन में तथ्यों तथा आकड़ों पर भरोसा करें । ट्रेड यूनियन को अर्थशास्त्रियों, उत्पादकता विशेषज्ञों तथा पेशेवर विशेषज्ञों द्वारा सहायता मिलनी चाहिए ताकि उनकी समस्या प्रबन्ध के प्रतिनिधियों के सामने भली प्रकार रखी जा सके ।

ऐसा करने के लिए एक ट्रेड यूनियन के संगठनात्मक ढाँचे को बदला जाना होगा तथा उसको आन्दोलनकारी या मुकदमा-उन्मुखी प्रणाली को पेश करने के स्थान पर Bargaining Table पर एक रचनात्मक व्यवस्था को अपनाना चाहिए ।

(5) यह सुनिश्चित करने के लिए कि सामूहिक सौदेबाजी सही तौर पर काम करे दोनों पक्षों की ओर से अनुचित श्रम व्यवहारों का निराकरण किया जाना चाहिए । उनके बीच समझौता वार्ता फिर एक ख्याति के वातावरण में होगी जो गलत व्यवहारों द्वारा विषाक्त नहीं हो पायेगी तथा कोई पक्ष अनुचित व्यवहारों का सहारा लेकर लाभ नहीं उठा पायेगा ।

(6) जब समझौता वार्ता किसी ठहराव को जन्म दे तो अनुबन्ध की शर्तों को लिखित में रखा जाना चाहिए तथा एक प्रपत्र बनाया जाना चाहिए । जब कोई ठहराव नहीं होता तो पक्षकारों को समझौते, मध्यस्थता तथा पंच निर्णय पर सहमत होना चाहिए ।

यदि फिर भी कोई निपटारा नहीं होता तो श्रमिकों को हड़ताल पर जाने की स्वतंत्रता होनी चाहिए तथा सेवायोजकों को तालाबन्दी घोषित करने का अधिकार होना चाहिए । इस अधिकार को प्रतिबाधित करने से तो सामूहिक सौदेबाजी की प्रक्रिया का महत्व ही समाप्त हो जायेगा ।

(7) एक बार जब एक ठहराव हो जाता है, तो उसका सम्मान किया जाना चाहिए तथा पूरी तरह से क्रियान्वित किया जाना चाहिए । ऐसे विषयों पर किसी हड़ताल या तालेबन्दी की आज्ञा नहीं दी जानी चाहिये जो अनुबन्ध में पहले ही आ चुका है, तथा ट्रेड यूनियन को कभी नई माँगें नहीं प्रस्तुत करनी चाहिए ।

(8) पंच निर्णय हेतु एक व्यवस्था ठहराव में शामिल कर लेनी चाहिए जो तब कार्य रूप में आये जब कोई मतभेद ठहराव की व्याख्या के सम्बन्ध में उत्पन्न हो जाये । ठहराव से उत्पन्न होने वाले विवादों को एक सहमत तृतीय पक्षकार को सौंप देना चाहिए ताकि किसी अन्तिम तथा बाध्यकारी निर्णय तक पहुँचा जा सके ।

यह सुनिश्चित करने के लिए सामूहिक सौदेबाजी भारत में आज की अपेक्षा कहीं अधिक प्रभावी हो सके,

The Indian Institute of Personnel Management ने अग्र पूर्व शर्तों को दोहराया है:

(1) एक सही अर्थों में प्रतिनिधिक प्रबुद्ध तथा दृढ़ ट्रेड यूनियन अस्तित्व में आये तथा पूरी तरह से वैधानिक आधारों पर काम करे ।

(2) प्रबन्ध पूरी तरह प्रगतिशील तथा दृढ़ हो जो अपने व्यवसाय के मालिकों कर्मचारियों उपभोक्ताओं तथा समाज के प्रति अपने दायित्वों के प्रति सतर्क रहो ।

(3) संगठन के तथा श्रमिकों के मौलिक लक्ष्यों पर श्रम तथा प्रबन्ध के बीच एकमत होना चाहिए तथा उनके अधिकारों तथा दायित्वों की पारस्परिक मान्यता होनी जरूरी है ।

(4) जब कम्पनी में कई यूनिटें हों तो स्थानीय प्रबन्ध की पर्याप्त अधिसत्ता भारपिण होना चाहिए ।

(5) एक तथ्य-खोजी उपागमन तथा नये-नये उपकरणों को काम लेने की इच्छा जैसे Industrial Engineering औद्योगिक समस्याओं के समाधान हेतु अपनाई जानी चाहिए ।

यदि सामूहिक सौदेबाजी को प्रभावी तथा अर्थपूर्ण होना है, तो ये परिस्थितियाँ अनिवार्यत: विद्यमान होनी चाहिए । यदि इनमें से कोई विद्यमान नहीं होती तो वैधानिक तरीकों से या किसी अन्य उपयुक्त तरीकों का प्रयोग करके बाधाओं को दूर किया जाना चाहिए ।


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