Here is an essay on ‘Committee Organisation’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Committee Organisation’ especially written for college and management students in Hindi language.

Essay on Committee Organisation


Essay Contents:

  1. समिति संगठन की परिभाषाएँ (Definitions of Committee Organisation)
  2. समिति संगठन की विशेषताएँ (Characteristics of Committee Organisation)
  3. समिति के प्रकार (Types of Committee)
  4. समिति संगठन के लाभ (Advantages of Committee Organisation)
  5. समिति संगठन के दोष (Disadvantages of Committee Organisation)
  6. समिति संगठन को प्रभावशाली बनाने के लिए सुझाव (Suggestions for Making Committee Organisation Effective)


Essay # 1. समिति संगठन की परिभाषाएँ (Definitions of Committee Organisation):

कुछ विद्वान् समिति संगठन को संगठन के प्रकार के रूप में मानते हैं परन्तु यह ठीक नहीं है । वास्तव में यह संगठन का कोई प्रारूप नहीं है । यह मूल संगठन के रूप-लाइन अथवा लाइन व स्टॉफ संगठन के पूरक (Supplementary) के रूप में काम करते हैं ।

आर.सी.डेविस (R.C. Davis) लिखते हैं कि- “समिति संगठनात्मक तत्व का एक प्रकार है जिसे व्यवसाय के छात्र संगठन का एक रूप प्रारूप समझ बैठते हैं ।

वस्तुत: संगठनात्मक प्रारूप तो दो ही हैं:

“रेखा” एवं “कर्मचारी” प्रारूप । समिति तो कर्मचारी संगठन का एक विशिष्ट प्रकार है ।”

इस प्रकार समिति संगठन को बड़ी संस्थाओं में एक पूरक व्यवस्था के रूप में अपनाया जाता है जैसे विशेषज्ञों के कार्यों में समन्वय लाने नियोजन व क्रियान्वयन में सहयोग प्राप्त करने तथा प्रजातान्त्रिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए आदि ।

(1) डब्ल्यू.एच.न्यूमैन (W.H. Newman) के अनुसार- “समिति कुछ प्रशासनिक कार्यों को सम्पन्न करने के लिए विशिष्ट रूप से नियुक्त किए गए व्यक्तियों का समूह है । यह केवल समूह के रूप में ही कार्य करता है और इसके सदस्यों में विचारों का स्वतन्त्र विनिमय होना आवश्यक है ।

(2) अर्विक के अनुसार- “समिति व्यक्तियों का समूह होती है, जिन्हें इस शर्त पर कुछ कार्य सौंपे जाते हैं कि वे उन कार्यों को मिलकर तथा सम्मिलित रूप में करेंगे ।”

(3) जार्ज आर. टैरी (George R. Terry) के अनुसार- “समिति चुने हुए या नियुक्त किए गए व्यक्तियों की इकाई है जो अपने सामने आने वाली समस्याओं पर संगस्ति रूप से विचार-विमर्श करने के लिए मिलती है ।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि समिति व्यक्तियों का समूह है जिन्हें कुछ प्रशासनिक कार्य सौंपे जाते हैं । वे उन पर स्वतन्त्र विचार-विमर्श करने के बाद सामूहिक निर्णय लेते है ।


Essay # 2. समिति संगठन की विशेषताएँ (Characteristics of Committee Organisation):

समिति संगठन की कुछ मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

(1) यह चुने हुए विभागीय व्यक्तियों का समूह है;

(2) इसके सदस्यों में स्वतन्त्र सामूहिक विचार-विनिमय होता है;

(3) सदस्यों के आपसी विचार-विनिमय के बाद सामूहिक निर्णय (Joint Decision) लिये जाते हूँ;

(4) समिति को मुख्य रूप से प्रशासनिक अथवा वे कार्य सौंपे जाते हैं जिनमें कई विभागों अथवा व्यक्तियों का सहयोग जरूरी होता है;

(5) यह संरचना प्रजातान्त्रिक प्रणाली पर आधारित है एवं

(6) समिति के सभी सदस्यों का संयुक्त उत्तरदायित्व होता है ।


Essay # 3. समिति के प्रकार (Types of Committee):

समितियों को विभिन्न उद्देश्यों अथवा कार्यों के आधार पर कई भागों में बाँटा जा सकता है ।

उनके कुछ प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:

(1) स्थायी समितियाँ (Standing or Permanent Committees):

ये वे समितियां हैं जो निश्चित कार्य करने के लिए हमेशा बनी रहती हैं । ये स्थायी प्रकृति की होती हैं अर्थात् उन्हें स्थायी रूप से कार्य-भार वहन करने के लिए गठित किया जाता है जैसे कार्यकारिणी समितियाँ (Executive Committee) । इन समितियों को निर्णय लेने तथा उसके लागू करने का अधिकार होता है ।

(2) अस्थायी समितियाँ अथवा विशेष उद्देश्य समितियाँ (Temporary of Special Purpose Committee):

वे समितियाँ हैं जो किसी उद्देश्य या कार्य के लिए बनाई जाती हैं और जैसे ही उद्देश्य या कार्य पूरा हो जाता है वे समाप्त हो जाती है । जैसे बोनस समिति, मजदूरी वृद्धि समिति आदि ।

(3) परामर्शदात्री समितियाँ (Advisory Committees):

इनका कार्य केवल परामर्श देना होता है । इनमें विशेषज्ञों को रखा जाता है ताकि उत्तम परामर्श प्राप्त किया जा सके । इन्हें स्टॉफ समितियाँ भी कहते हैं ।

(4) समन्धय समितियां (Co-Ordination Committees):

इन समितियों का गठन व्यवसाय अथवा उद्योग के विभिन्न अंगों अथवा विभागों में समन्वय स्थापित करने के लिए किया जाता है ।

(5) अनुसन्धान समितियां (Investigating Committees):

ये समितियाँ संस्था की किसी समस्या आदि के बारे में समंकों तथा तथ्यों के आधार पर जांच-पड़ताल करके अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करने हेतु बनाई जाती है ।

(6) औपचारिक एवं अनौपचारिक समितियाँ (Formal and Informal Committees):

औपचारिक समिति का संगठन संरचना में एक निश्चित स्थान होता है और इसके निश्चित अधिकार एवं दायित्व होते हैं, जबकि अनौपचारिक समिति का संगठन संरचना में कोई निश्चित स्थान नहीं होता और यह किसी तत्कालीन समस्या से निपटने के लिए बनाई जाती है ।

सी.एस.जार्ज (C.S.George) ने निम्नलिखित समितियों का उल्लेख किया है:

(i) नियन्त्रण के लिए समिति (Committee on Control),

(ii) समन्वय व चर्चा समिति (Co-Ordination and Discussion Committee) एवं

(iii) अनुसन्धान एवं परामर्शदात्री समिति (Investigatory and Advisory Committee) ।


Essay # 4. समिति संगठन के लाभ (Advantages of Committee Organisation):

(1) ठोस निर्णय (Better Decisions):

समिति के सदस्यों द्वारा किसी समस्या के सभी पहलुओं पर अधिक गहराई तथा पूर्णता से विचारविमर्श किया जा सकता है इसलिए समिति द्वारा लिए जाने वाले निर्णय अधिक सन्तुलित, ठेस तर्कपूर्ण व न्यायसंगत होते है ।

(2) समन्वय में आसानी (Easy in Co-Ordination):

समितियाँ विभिन्न विभागों एवं व्यक्तियों में समन्वय स्थापित करने का सर्वोत्तम तरीका होता है क्योंकि सभी विभागाध्यक्ष व अधिशासी समिति के सदस्य होते हैं ।

(3) सहकारिता की भावना को प्रोत्साहन (Incentive for Co-Operation):

समिति संगठन परस्पर सहयोग, विश्वास तथा निर्भरता को जन्म देता है सामूहिक निर्णय लेने, मिलकर काम करने तथा आपसी अधिकार व दायित्वों का सम्मान करने की भावना पैदा होती है ।

(4) सूचना-प्रसार (Quick Communication):

समिति संगठन सूचना-प्रसार का एक उत्तम साधन है । प्रबन्ध सम्बन्धी निर्णय शीघ्र प्रेषित किए जा सकते हैं तथा स्पष्ट रूप से भी समझे जा सकते हैं ।

(5) अधिकारों का विकेन्द्रीकरण (Decentralisation of Authority):

समिति संगठन में अधिकार सत्ता किसी व्यक्ति विशेष के पास नहीं होती है । वह समिति के सभी सदस्यों के पास होती है । इस कारण कोई भी व्यक्ति सामूहिक हितों की उपेक्षा नहीं कर सकता और न ही अपनी मनमानी कर सकता है ।

(6) सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व (Representation of all Classes):

समिति संगठन का एक बड़ा लाभ यह भी है कि इसमें सभी वर्गों (जैसे- मजदूरों, सुपरवाइजरों मध्य प्रबन्धक, सरकार तथा जनता आदि) का प्रतिनिधित्व रहता है जिससे कि सब के हितों की रक्षा होती है ।

(7) निर्णयों को लागू करना आसान (Easy Implementation):

समिति द्वारा लिए गए निर्णयों को लागू कराने में आसानी होती है क्योंकि उनमें वे सभी सदस्य रुचि लेते हैं जिन्होंने निर्णय लेने में भाग लिया था ।

(8) उत्तरदायित्व से बचने के लिए (Prevents from Liabilities):

कई बार समितियों का प्रयोग कठिन हालात से गुजरने तक निर्णय को टालने के लिए या अप्रिय निर्णय लेने के उत्तरदायित्व से बचने के लिए भी किया जाता है ।

(9) अधीनस्थों को हिस्सेदारी (Participation of Subordinates):

पारस्परिक सहयोग में वृद्धि, नैतिक उत्थान तथा उत्प्रेरण के लिए उन्हें निर्णयन की प्रक्रिया में हिस्सेदारी दिया जाना आवश्यक है समिति संगठन के उपक्रम के कार्यरत अधीनस्थों को यह सहभागिता प्रदान कर कार्यकलापों में सुधार लाया जाना सम्भव है ।

(10) अधिकार का विस्तार (Diffusion of Authority):

क्योंकि समिति व्यक्तियों का समूह है इसलिए जिस जिम्मेदारी को एक व्यक्ति स्वीकार करने से डरता है इसे समिति आसानी से स्वीकार का सकेगी । इससे अधिकार का फैलाव बढ़ेगा एवं अधिक बातों पर निर्णय लिया जा सकेगा ।

(11) प्रबन्धकीय ज्ञान का विकास (Development of Managerial Authority):

क्योंकि समिति संगठन के अन्तर्गत कई व्यक्ति मिलकर निर्णय लेते हैं इसलिए एक-दूसरे व्यक्ति के विचारों को सुनने से समिति के सदस्यों के ज्ञान में वृद्धि होती है । इसलिए ही इसे प्रबन्धकीय प्रशिक्षण का साधन माना जाता है ।

(12) प्रभावशाली सन्देशवाहन (Effective Communication):

यह सामान्य मान्यता है कि लिखित सन्देशवाहन के स्थान पर मौखिक सन्देशवाहन अधिक प्रभावशाली होता है । क्योंकि समिति के सदस्य एक ही स्थान पर आमने-सामने बैठ कर निर्णय करते हैं, प्रश्न पूछो हैं तथा उत्तर देते हैं जो कि सदस्यों के मध्य सूचनाओं के आदान-प्रदान का एक महत्वपूर्ण साधन माना जा सकता है ।


Essay # 5. समिति संगठन के दोष (Disadvantages of Committee Organisation):

समिति संगठन का व्यावहारिकता के बारे में ब्रेच के शब्दों में- “प्रबन्धकीय निर्णयों के लिए कार्य समिति बनाना एक अबुद्धिमत्तापूर्ण कार्य है ।”

समिति संगठन के दोष अथवा सीमाएँ निम्नलिखित हैं:

(1) निर्णय में देरी (Delay in Decision):

अनावश्यक वाद-विवाद तथा समिति के सदस्यों में किसी विषय पर मत भिन्नता होने से निर्णय लेने में देरी हो सकती है ।

(2) उत्तरदायित्व का अभाव (Lack of Responsibility):

समिति द्वारा लिए गए निर्णयों के लिए किसी एक व्यक्ति को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि सभी निर्णय बहुमत अथवा सर्वसम्मति द्वारा विचार-विमर्श के बाद लिए जाते है । साथ ही गलत निर्णय के लिए किसी एक सदस्य को उत्तरदायी नहीं ठहराया का सकता ।

(3) बड़े संगठनों तक सीमित (Confined to Only Big Organisations):

समिति संगठन प्रणाली केवल बड़े संगठनों के लिए ही उपयोगी है । छोटे संगठनों में इसका कोई महत्व नहीं होता ।

(4) खर्चीली (Expensive):

सभाएँ आमन्त्रित करने उनकी व्यवस्था करने, विचार-विमर्श करने तथा निर्णय लेने में काफी धन व समय खर्च होता है । इसलिए समिति संगठन प्रणाली शक्ति साधनों व समय का अपव्यय है साथ ही अधिकारियों द्वारा बैठकों में भाग लेने से संस्था का काम रुक जाता है ।

(5) प्रभुत्व (Dominance):

संगठन के इस प्रारूप में कुछ अधिक बोलने वाले सदस्य समिति की बैठकों में प्रभुत्व जमाने का प्रयत्न करते हैं तथा वे निर्णयों को अनुचित रूप से प्रभावित करने का प्रयास करते हैं ।

(6) समझौते की प्रवृत्ति (Tendency of Compromise):

कई बार समिति के सदस्यों में कुछ विषयों पर इतनी विचार-भिन्नता होती है कि कोई सर्वमान्य निर्णय लेना असम्भव हो जाता है । ऐसी स्थिति में विरोधी विचारों में समझौता करके निर्णय लिए जाते हैं । ऐसे निर्णय उपयोगी व व्यावहारिक नहीं होते । डोनेल के शब्दों में- समिति ऐसी होती है कि घोड़ा बनाने वे और ऊँट बनाकर आ जाओ ।

(7) गोपनीयता का अभाव (Lack of Secrecy):

समिति संगठन में सामूहिक निर्णन लेने के कारण गोपनीयता का अभाव पाया जाता है ।

(8) पहल शक्ति का अभाव (Lack of Initiative):

समिति संगठन के अन्तर्गत समस्त निर्णय एक साथ लेने तथा उनके बारे में सदस्यों की संयुक्त जिम्मेदारी होने के कारण व्यक्तिगत उत्तरदायित्व की भावना समाप्त हो जाती है, जिससे पहल शक्ति का विकास नहीं हो पाता । पहलपन सामूहिक सोच में बदल जाता है ।

(9) स्वयं-विनाश की प्रवृत्ति (Tendency of Self-Destruction):

ऐसा बहुत कम देखा गया है कि समिति के सभी सदस्य समूह भावना से कार्य करते हैं । सामान्यतया समिति के सदस्य अपने आप को अधिक कुशल सिद्ध करने की दृष्टि से छोटे-छोटे भागों में बँटकर कार्य करते हैं । इसका परिणाम सुदृढ़ निर्णय तक न पहुँचना होता है जिसे समिति के विनाश के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है ।

(10) संस्था के कार्यों में शिथिलता (Slackness in Work):

महत्वपूर्ण अधिकारियों को समय-समय पर सभाओं (Meetings) में बुलाया जाता है जिससे संस्था के कार्यों में शिथिलता आती है ।

(11) अनिर्णयात्मक कार्यवाहियाँ (Indecisive Action):

समिति के कार्य करने का ढंग धीमा सुस्त और कभी-कभी अनिर्णयात्मक होता है । प्राय: समितियों की बैठकों में सही प्रश्नों की बजाए, बेकार तथा अनर्गल मामलों पर अनावश्यक रूप से लम्बी बहस होती रहती है । कई बार सामूहिक विचार-विमर्श का अन्त न सुलझने वाली गुत्थियों, विभाजित मतों और विरोध प्रदर्शनों से होता है और कोई भी निर्णय नहीं हो पाता ।

अन्त में समिति के बारे में यह कहना उचित होगा कि, “समिति अनावश्यक करने के लिए अनिच्छुकों द्वारा अनुपयुक्त चुनाव द्वारा निर्मित संस्था है ।”


Essay # 6. समिति संगठन को प्रभावशाली बनाने के लिए सुझाव (Suggestions for Making Committee Organisation Effective):

समिति संगठन को उपयोगी व प्रभावशाली बनाने तथा उपरोक्त दोषों को दूर करने के लिए निम्नलिखित सुझाव उपयोगी सिद्ध होंगे:

(1) समिति के उद्देश्यों को भली प्रकार निर्धारित एवं परिभाषित किया जाना चाहिए ताकि सदस्यों में किसी प्रकार का भ्रम पैदा न हो ।

(2) समिति के सदस्यों की संख्या सीमित रखी जानी चाहिए । सदस्यों की संख्या न तो इतनी अधिक हो कि निर्णय न कर सकें और न इतनी कम कि विवेकपूर्ण निर्णय न लिए जा सकें ।

(3) समिति के कार्य-क्षेत्र, अधिकारों वदायित्योंका निर्धारण किया जाना चाहिए । इससे सदस्यों में आपसी वाद-विवाद कम होगा ।

(4) समिति का गठन करते समय सभी सम्बद्ध विभागों के प्रतिनिधि समिति में शामिल किये जाने चाहिए ।

(5) समिति के सदस्य योग्य, अनुभवी व कुशल होने चाहिए ।

(6) समिति का अध्यक्ष योग्य व प्रभावशाली व्यक्ति ही नियुक्त किया जाना चाहिए ताकि समिति का कार्यवाही सुचारु रूप से संचालित की जा सके । अध्यक्ष ऐसा हो जो संसदीय प्रणाली एवं अध्यक्षता करने के नियमों को जानता हो निष्पक्ष हो एवं खुले विचारों वाला हो ।

(7) समितियों का कार्य-संचालन पूर्व-निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार किया जाना चाहिए ।

(8) समिति गठन करते समय इस पर आने वाली लागत को ध्यान में रखा जाना चाहिए अर्थात् लागत की तुलना में लाभ अधिक होने पर ही इसका गठन किया जाना चाहिए अन्यथा नहीं ।

(9) समिति के क्रिया-कलापों को अच्छा बनाने के लिए सम्प्रेषण की व्यवस्था का प्रभावशाली होना अत्यन्त आवश्यक है ।

(10) समिति के कार्यों का समय-समय पर मूल्यांकन एवं समीक्षा भी की जानी चाहिए ताकि वास्तविक स्थिति का पता लगाया जा सके ।

(11) समिति के कुशल संचालन के लिए यह आवश्यक है उसके पास एक स्पष्ट कार्य सूची (Clear-Cut Agenda) हो ।


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