Here is a compilation of essays on ‘Human Resource Management’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Human Resource Management’ especially written for college and management students in Hindi language.
Essay on Human Resource Management
Essay Contents:
- मानव संसाधन प्रबन्ध का अर्थ (Meaning of Human Resource Management)
- मानव संसाधन प्रबन्ध का विकास (Evolution of Human Resource Management)
- मानव संसाधन प्रबन्ध की अवधारणा (Concept of Human Resource Management)
- मानवीय संसाधन प्रबन्ध गतिविधियाँ (Human Resource Management Activities)
- मानवीय संसाधन गतिविधियों के लिए उत्तरदायित्व (Responsibility for Human Resource Activities)
- मानव संसाधन प्रबन्ध के सिद्धान्त (Principles of Human Resource Management)
- भारत में सेविवर्गीय प्रबन्ध की स्थिति (Position of Human Resource Management in India)
Essay # 1. मानव संसाधन प्रबन्ध का अर्थ (Meaning of Human Resource Management):
संगठन का निर्माण व्यक्तियों से होता है तथा संगठन व्यक्तियों की सहायता से कार्य करते हैं । व्यक्तियों के बिना संगठन का कोई अस्तित्व नहीं है । मानव मुद्रा, माल, मशीन, आदि का संग्रहण तथा उपयोग मानव संसाधन द्वारा किया जाता है । अत: मानव संसाधन एक संगठन के लिए अति महत्वपूर्ण है ।
राष्ट्रीय दृष्टिकोण से मानव संसाधन को ज्ञान, कौशलता, सृजनात्मक योग्यता, गुण आदि के रूप में परिभाषित किया जा सकता है लेकिन संगठनात्मक विचार से मानव संसाधन का अर्थ ‘कार्य पर व्यक्तियों’ से लिया जाता है ।
मानव संसाधन की विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं:
(i) मानव संसाधन गतिशील होते हैं तथा अलग तरह से व्यवहार करते हैं ।
(ii) मानव संसाधन में बड़ी संख्या में लोग शामिल किए जाते हैं जिनकी अलग पहचान होती है, अलग व्यक्तित्व होता है, अलग तरह की आवश्यकताएँ होती हैं ।
(iii) मानव संसाधन संगठन का एक महत्वपूर्ण अंग है क्योंकि अन्य संसाधनों का कुशल प्रयोग मानव संसाधन की योग्यता पर निर्भर करता है । इसलिए इन्हें मानव सम्पत्ति अथवा मानव पूँजी कहा जाता है ।
(iv) मानव संसाधनों में आगे बढ़ने की क्षमता होती है यदि उन्हें उपयुक्त माहौल, वातावरण प्रदान किया जाए ।
(v) ‘मानव संसाधन’ शब्द सेविवर्ग शब्द से ज्यादा असरदार एवं व्यापक है ।
Essay # 2. मानव संसाधन प्रबन्ध का विकास (Evolution of Human Resource Management):
मानव संसाधन प्रबन्ध (HRM) की विचारधारा भारत में एक क्रांति के दौर से गुजर रही है जो विकास के विभिन्न आयामों के माध्यम से गुजरी है । बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में प्रारम्भिक दृष्टिकोण शोषण का समापन था जिसको ‘Sweated Industries’ (श्वेद पूरित उद्योग) कहा जाता था ।
इसके फलस्वरूप सरकारों द्वारा विभिन्न वैधानिक उपाय लागू किये गये ताकि कर्मचारियों को शोषण के विरुद्ध संरक्षण प्रदान किया जा सके । इसने मानवीय संसाधनों के प्रबन्ध में एक अहम् विचारधारा के रूप में कल्याणवाद (Welfarism) को जन्म दिया ।
बाद के विकासों में, अनेक दूरदर्शी सेवायोजकों ने कल्याण के प्रति सकारात्मक रुझान दिखाया तथा वैधानिक प्रावधानों से भी आगे बढ़कर कल्याण सुविधाएं उपलब्ध करायीं । उनके ऐसे उदार व्यवहार ने भारतीय प्रबन्धकों में एक प्रकार के पितृवाद (Paternalism) को जन्म दिया ।
इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण सर जमशेद जी टाटा का है जिन्होंने अपने कर्मचारियों को अपने बच्चे बताया । कारखाना अधिनियम के अन्तर्गत Welfare Officers की नियुक्ति तथा अन्य अनेक वैधानिक उपायों ने भारत में एक नये पेशे को जन्म दिया ।
बीसवीं शताब्दी के मध्य में हो रहे परिवर्तनों ने संस्थानों में ऐसे अनेक कार्यों का सूत्रपात किया जो कल्याण अधिकारियों की तुलना में सेविवर्गीय अधिकारी की माँग करते थे जो भर्ती, श्रम-शक्ति नियोजन, अनुशासन तथा अन्य अनेक भूमिकाओं को भली प्रकार संभाल सकें ।
यह वह दूसरा चरण था जिसमें सेविवर्गीय अधिकारी का पेशा अनेक संगठनों में प्रारम्भ किया गया । अनेक उद्योगों में Personnel Officer तथा Welfare Officer की भूमिका को जोड़ दिया गया । औद्योगिक सम्बन्धों के क्षेत्र में इस चरण में, अनेक विधान बने, विशेष तौर पर, श्रम विवादों के समाधान के रूप में तथा संगठनों को चलाने के लिए स्थायी आदेशों के रूप में ।
इन सभी वैधानिक उपायों ने ऐसे पेशेवरों की माँग की जो औद्योगिक सम्बन्धों को भली प्रकार संभाल सकें । फलस्वरूप अनेक दूरन्देशी कम्पनियों में Industrial Relations and Welfare Department स्थापित किये गये तथा इनको एक सम्पूर्ण Personnel Department के अन्तर्गत लाया गया ।
भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के स्टील उद्योग में इन दो शाखाओं में Personnel Departments की स्थापना हुई । अनेक अन्य उद्योगों में भी इस मॉडल पर काम हुआ । सत्तर के दशक में जाकर ही मानवीय संसाधनों के प्रबन्ध में अनेक व्यावहारात्मक तथा प्रौद्योगिकी परिवर्तनों के बारे में सोचा गया ।
तथाकथित मानव संसाधन तथा कल्याण कार्य को इतना बढ़ाया गया कि उसमें व्यावहारात्मक तथा अभिप्रेरणा व्यवस्थाओं, निष्पत्ति मूल्यांकन तंत्रों, उद्देश्यानुसार प्रबन्ध (MBOs) तथा कर्मचारियों की निष्पत्ति को सुधारने के लिए अभिप्रेरणा योजनाओं को शामिल किया गया ।
इस अवधि में एक नाटकीय विकास के दौरान प्रबन्ध अचानक कार्य संस्कृति तथा कार्य मूल्यों (Work Culture and Work Values) के प्रति सतर्क हो गया । Edgar H. Schien जैसे व्यक्तियों द्वारा किये गये काम के फलस्वरूप ‘संस्कृति की अवधारणा’ (Concept of Culture) को बल मिला ।
संस्कृति से एक समय अवधि के दौरान स्वीकृत, शेयर्ड संगठनात्मक विश्वासों तथा मूल्यों का संदर्भ लिया जाता है (Shared Organisational Beliefs and Values Accepted Over a Period of Time) । मानवीय संसाधन प्रबन्ध कार्य परिवेशों में बदलाव लाने के लिए कदम उठाने के लिए गहनता से सम्बन्धित प्रतीत हुआ ताकि सर्वोत्तम निष्पत्ति पाने के लिए एक सही वातावरण बनाया जा सके ।
दूसरे शब्दों में, इस क्रम में दबाव स्थानान्तरित होता जान पड़ा:
इन विचारधाराओं ने अन्तत: आज के मानव संसाधन प्रबन्ध के महत्वपूर्ण क्षेत्रों का आधार निर्माण किया । इन विकासों का अनुगमन करते हुए कोई भी भारत में मानव संसाधन प्रबन्ध की सूत्र व्यवस्था को समझ सकता है जिसका आज उद्योग में मानवीय पूंजी के प्रबन्ध से कहीं अधिक घनिष्ठ सम्बन्ध है ।
आज HRM को किसी संगठन में काम पर लगे मानवीय सम्भाविताओं के अनुकूलतम उपयोग की कला तथा विज्ञान के रूप में परिभाषित किया जा सकता है । अत: मानव संसाधन प्रबन्ध के उद्देश्यों को किसी संगठन के अपेक्षित परिणाम पाने के लिए कर्मचारियों की सर्वाधिक अभिप्रेरणा पाने के लिए व्यवस्थित किया जाता है ।
यह विचारधारा मानव संसाधन प्रबन्ध को केवल संरक्षणात्मक कल्याणवाद या आत्मीय पितृवाद तक ही सीमित नहीं करती वरन् गतिविधियों के एक व्यापक दायरे तक जाती है जिनको संगठनात्मक उद्देश्यों को पाने के लिए HRM के पेशेवर लोगों द्वारा प्रयास किया जाता है ।
अत: HRM Professionals से अपेक्षा की जाती है कि अपने कार्यों को करने के लिए व्यावहारात्मक, वैधानिक, सूचना प्रौद्योगिकी तथा सृजनात्मक चातुर्यों को एकत्रित करें । एक HRM Professional एक Generalist न होकर एक Specialist है ।
उसको विभिन्न शास्त्रों में बढ़ती जानकारी के माध्यम से इन चातुर्यों को विकसित करने की आवश्यकता है । संगठनात्मक व्यवहार मानवीय संसाधन प्रबन्ध का मेरुदण्ड बना रहेगा जबकि Group Theraphy, Team Building तथा सूचना प्रबन्ध के उपयोग में नये-नये आयाम विकसित हो रहे हैं ।
Essay # 3. मानव संसाधन प्रबन्ध की अवधारणा (Concept of Human Resource Management):
मानव संसाधन प्रबन्ध एक ऐसी प्रक्रिया है जो लोगों और संगठनों को आपस में बांधती है ताकि संगठनात्मक एवं निजी उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके ।
फिलिप्पो के अनुसार- ”मानव संसाधन प्रबन्ध का आशय संसाधनों की प्राप्ति, विकास का नियोजन, संगठन, निर्देशन तथा नियन्त्रण से है ताकि सामाजिक एवं व्यक्तिगत उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके ।”
यह परिभाषा स्पष्ट करती है कि सेविवर्गीय या मानवीय संसाधन प्रबन्ध का वह पहलू है जो एक उपक्रम के सेविवर्गीय कार्यों के नियोजन, संगठन, निर्देशन तथा नियंत्रण का वर्णन करता है ।
यह परिभाषा काफी व्यापक है तथा प्रबन्धकीय कार्यों (Management Functions) तथा क्रियात्मक कार्यों (Operative Functions) दोनों को शामिल करती है । इन सभी कार्यों का उद्देश्य मौलिक संगठनात्मक, व्यक्तिगत तथा सामाजिक लक्ष्यों की अभिप्राप्ति में सहायता करना है ।
विभिन्न प्रबन्ध विशेषज्ञों ने मानवीय संसाधन की अभिव्यक्ति के लिए अनेक मदों का प्रयोग किया है । इनमें शामिल हैं फिलिप्पो का ‘Personnel’, कीथ डेविस का ‘People at Work’ डेल योडर का ‘Man-Power’, आम प्रचलित शब्द ‘स्टॉफ’ तथा ‘कर्मचारीगण’ (Staff and Employees) आदि ।
चाहे जो भी शब्द प्रयोग किया जाये, एक संगठन के मानवीय संसाधनों में विभिन्न स्तरों पर अनेक संगठनात्मक गतिविधियों में लगे सभी लोगों को इसमें शामिल किया जाता है ।
Leon C. Megginson के अनुसार- “राष्ट्रीय दृष्टिकोण से मानवीय संसाधनों को समग्र में प्राप्त ज्ञान, चातुर्यों, सृजनात्मक योग्यताओं, प्रतिभाओं तथा सुरुचियों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जबकि एक व्यक्तिगत उपक्रम के दृष्टिकोण से वे अन्तर्निहित योग्यताओं प्राप्त ज्ञान तथा चातुर्यों के योग का प्रतिनिधित्व करते हैं जो उसके कर्मचारियों की प्रतिभाओं, दक्षताओं तथा सुरुचियों में साफ झलकती हैं ।”
इन्हीं को जूसियस माइकल ने ‘Human Factors’ (मानवीय घटक) कहा है जिनसे अन्त: सम्बन्धित तथा नैतिक प्रखण्डों के एक समग्र का बोध होता है ।
उन्होंने मानवीय संसाधन की निम्न परिभाषा दी है:
“Human Resource Management is the field of management which has to do with planning, organising and controlling various operative activities of processing, developing, maintaining and utilising labour force in order that the objective and interest for which the company is established and attained as effectively and economically as possible and the objectives and interest of all levels of personnel and community are served to the highest degree.”
वस्तुत: मानवीय संसाधन प्रकृति में बहुआयामीय (Multi-Dimensional) होते हैं । संगठन में काम करने वाले लोगों की विभिन्न मामलों पर अलग-अलग आवश्यकताएँ होती हैं । ये आवश्यकताएँ शारीरिक, सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक हो सकती हैं ।
Essay # 4. मानवीय संसाधन प्रबन्ध गतिविधियाँ (Human Resource Management Activities):
अपने उद्देश्यों तथा लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए मानवीय संसाधन विभाग एक उपयुक्त श्रम शक्ति की व्यवस्था हेतु सही संख्या में सही गुणवत्ता के श्रमिकों को जुटाता है, विकसित करता है, सदुपयोग करता है, मूल्यांकन करता है तथा उनको अक्षुण्ण बनाये रखता है ।
जब इन उद्देश्यों को प्राप्त कर लिया जाता है तो मानवीय संसाधन प्रबन्ध का उद्देश्य उन लोगों के माध्यम से प्राप्त हो जाता है जो संगठनात्मक रणनीतियों के प्रति तथा प्रभावोत्पाकदता एवं कार्यक्षमता के सर्वागीण लक्ष्यों के प्रति योगदान देते हैं ।
इन्हीं कारणों से मानवीय संसाधन प्रशासक घरेलू तथा अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों के संचालन में एक निरन्तर बढ़ रही महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं । मानवीय संसाधन गतिविधियाँ संगठन के लिए उपयुक्त, श्रम-शक्ति के प्रावधान तथा अनुरक्षण हेतु की जाने वाली कार्यवाहियाँ हैं ।
छोटी-छोटी संस्थाएँ बहुधा ऐसा करने में पर्याप्त बजटों या स्टॉफ की कमी अनुभव करती हैं । वे सामान्यत: ऐसी गतिविधियों पर संकेन्द्रित हो जाती हैं जो उनके संगठन के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं । बड़े-बड़े विभाग बहुधा पूर्ण सेवा प्रदायक होते हैं तथा वे सभी गतिविधियों को कुशलतापूर्वक करते हैं ।
जैसी ही कोई संगठन कुछ कर्मचारियों के साथ आगे बढ़ता है वैसे ही एक गतिविधि जिसे मानवीय संसाधन नियोजन (Human Resource Planning) कहा जाता है की मानवीय संसाधनों को आवश्यकता होने लगती है ।
भावी आवश्यकताओं के एक दृष्टिकोण के साथ भर्ती (Recruitment) इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कार्य के इच्छुक आवेदकों से आवेदन माँगती है ।
परिणाम होता है आवेदकों का एक समुच्चय (पूल) जिनकी चयन प्रक्रिया के माध्यम से जाँच पड़ताल की जाती है । यह प्रक्रिया ऐसे लोगों का चयन करती है जो मानवीय संसाधन नियोजन द्वारा निर्धारित जरूरतों को पूरा कर सकें ।
Essay # 5. मानवीय संसाधन गतिविधियों के लिए उत्तरदायित्व (Responsibility for Human Resource Activities):
सभी प्रबन्धकों द्वारा मानवीय संसाधन गतिविधियों के लिए निर्धारित उत्तरदायित्व में भागीदारी कर ली जाती है । जब सम्पूर्ण संगठन के प्रबन्धक अपने दायित्व को स्वीकार नहीं करते तो मानवीय संसाधन गतिविधियों को केवल आंशिक तौर पर ही पूरा किया जाता है या तनिक भी पूरा नहीं किया जाता ।
यहाँ तक कि जब संगठन के भीतर एक मानवीय संसाधन विभाग मौजूद होता है तो सभी परिचालन प्रबन्धक तथा मानवीय संसाधन विशेषज्ञों का कर्मचारी निष्पत्ति के लिए उत्तरदायित्व होता है ।
व्यक्तिगत प्रबन्धक नियोजन, चयन अभिन्मुखता, प्रशिक्षण, विकास, मूल्यांकन तथा अन्य सेविवर्गीय गतिविधियों में लगे रहते हैं भले ही मानवीय संसाधन विभाग में विशेषज्ञों द्वारा उनकी मदद की जा सकती है ।
मद मानवीय संसाधनों (Human Resources) को एक संगठन की श्रम शक्ति के सम्पूर्ण ज्ञान, चातुर्यों, सृजनात्मक योग्यताओं, प्रतिभाओं तथा रुझानों और साथ ही साथ संगठन के कार्यरत व्यक्तियों के मूल्यों, रुझानों, उपगमनों तथा विश्वासों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है ।
यह सभी अन्तर्निहित योग्यताओं, संगठन में कार्यरत लोगों के रुझानों तथा प्रतिभा द्वारा प्रतिबिम्बिता प्राप्त ज्ञान तथा चातुर्यों का कुल योग होता है ।
Essay # 6. मानव संसाधन प्रबन्ध के सिद्धान्त (Principles of Human Resource Management):
मानव संसाधन प्रबन्ध के निम्न सिद्धान्त हैं:
(i) वैज्ञानिक चयन का सिद्धान्त (Principle of the Scientific Selection):
कर्मचारियों का चयन वैज्ञानिक ढंग से होना चाहिए, अर्थात् सही कार्य के लिए सही व्यक्ति के सिद्धान्त का पालन किया जाना चाहिए ।
(ii) समूह भावना का सिद्धान्त (Principle of Team Spirit):
समूह भावना होने पर लोगों में आपसी विश्वास, एकता तथा साहस का विकास होता है । वे अपने काम में अधिक लगन से लग जाते हैं, जिससे कार्य-कुशलता एवं उत्पादन में वृद्धि होती है ।
(iii) उच्च मनोबल का सिद्धान्त (Principle of High Morale):
कर्मचारियों के उच्च मनोबल के लिए यथोचित पारिश्रमिक, उत्तम कार्य दशाएँ, निष्पक्ष तथा न्यायसंगत व्यवहार बहुत ही आवश्यक है । अच्छी मजदूरी के साथ-साथ प्रेरणात्मक व्यवस्थाएँ भी लागू करनी चाहिए ।
(iv) अधिकतम वैयक्तिक विकास का सिद्धान्त (Principle of Maximum Individual Development):
कर्मचारियों का वैयक्तिक विकास होने पर वे अधिक कुशलतापूर्वक काम करते हुए संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति में सहयोग दे सकते हैं । इसके लिए कर्मचारियों को प्रशिक्षण देना चाहिए तथा सेविवर्गीय नीतियाँ व कार्यक्रम इस प्रकार बनाने चाहिए ताकि कर्मचारीगण अपने कार्य से पूर्ण सन्तुष्टि प्राप्त कर सकें तथा अपनी योग्यता को भली-भांति दिखा सकें ।
(v) श्रम के प्रति आदर का सिद्धान्त (Principle of Dignity of Labour):
‘कार्य ही पूजा है’ ऐसी भावना कर्मचारियों में पैदा की जानी चाहिए । इसके लिए श्रम-विभाजन व विशिष्टीकरण के नियमों को उचित रूप से क्रियान्वित करना आवश्यक होता है ।
(vi) प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण का सिद्धान्त (Principle of Effective Communication):
प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण व्यवस्था वह है जिसमें कर्मचारियों को संगठन की नीतियों, उद्देश्यों तथा कार्यक्रमों की यथोचित जानकारी दी जाती है ।
(vii) संयुक्त प्रबन्ध का सिद्धान्त (Principle of Joint Management):
इस दृष्टि से कार्य समितियों का निर्माण किया जा सकता है तथा प्रबन्ध में श्रमिकों का भाग लेने की व्यवस्था की जा सकती है ।
(viii) राष्ट्रीय समृद्धि में योगदान का सिद्धान्त (Principle of Contribution to National Prosperity):
कर्मचारियों को यह विश्वास दिलाया जाना चाहिए कि वे संस्था के लक्ष्यों की पूर्ति में योगदान देकर राष्ट्रीय समृद्धि में सहायक हो सकते हैं ।
Essay # 7. भारत में सेविवर्गीय प्रबन्ध की स्थिति (Position of Human Resource Management in India):
भारत में सेविवर्गीय प्रबन्ध की उत्पत्ति तथा विकास एवं पेशाकरण मूलत: विभिन्न श्रम सन्नियमों एवं निजी तथा सार्वजानिक क्षेत्र के बड़े-बड़े उपक्रमों की उत्पत्ति का परिणाम है ।
यद्यपि भारत में सेविवर्गीय प्रबन्ध पेशेकरण की ओर बढ़ रहा है तथापित सेविवर्गीय प्रबन्ध को एक पेशे के रूप में मान्यता प्राप्त के लिए अभी बहुत कुछ करना है । सेविवर्गीय कार्यों में लगे व्यक्तियों द्वारा किये जा रहे कार्यों, उनकी शिक्षा, योग्यता, प्रशिक्षण, पद नाम, वेतन आदि के सम्बन्ध में अनेक विचलन व्याप्त हैं ।
इस दिशा में अनेक पेशेवर मानदण्ड पूरे हो रहे हैं लेकिन सेविवर्गीय प्रबन्ध को चिकित्सा, कानून एवं लेखांकन जैसे अन्य पेशों के समकक्ष आने के लिए अभी बहुत दूर तक जाना है ।
भारत में, सेविवर्गीय प्रबन्ध की धीमी प्रगति के लिए सेविवर्गीय व्यक्ति के प्रति कर्मचारी संघों का प्रतिकूल रुख, श्रम विवादों में मुकदमेबाजी का वर्चस्व, पेशेवर प्रशिक्षण सुविधाओं की कमी, कार्य की असुरक्षा, कार्य संतुष्टि की कमी, विश्वविद्यालयों में कालातीत पाठ्यक्रम महत्वपूर्ण घटक उत्तरदायी हैं ।
भारत में सेविवर्गीय प्रबन्ध के विशेषज्ञ एस. एन. पांडे ने देश में सेविवर्गीय प्रबन्ध के पेशेकरण के लिए निम्न सुझाव दिये हैं:
(i) सेवायोजकों तथा संगठन की ओर से इस बात की आवश्यकता है कि सेविवर्गीय व्यक्ति को वही दर्जा तथा मान्यता प्रदान की जाये जो वे अन्य पेशेवर व्यक्तियों को देते हैं तथा उनकी सलाह के समान महत्व दें ।
सेविवर्गीय प्रबन्धक को स्वस्थ सेविवर्गीय नीतियों के सृजन में पूर्ण स्वतंत्रता दी जानी चाहिये ताकि वे संगठनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति में अपना सर्वोत्तम योगदान दे सकें ।
(ii) श्रम संघ इस पेशे को विशेषत: व्यक्ति प्रबन्ध के क्षेत्र में भी मान्यता दें तथा उसी के अनुसार इससे व्यवहार करें । बिना कोई गलतफहमी पैदा करें रम संघों से तुष्टिकरण के व्यवहार, दृढ़ता एवं औचित्य के साथ करने का प्रयास करें ।
(iii) सरकार की ओर से भी यह आवश्यक होगा कि सार्वजनिक क्षेत्र में सेविवर्गीय प्रबन्धकों को पेशेवर बनने के लिए पहल करें तथा दूसरों के दैनिक सम्बन्धों में हस्तक्षेप न करें तथा स्थिति से निपटने के लिए सेविवर्गीय प्रबन्धकों को पूरी स्वतन्त्रता दे । सरकार एक संरक्षक के रूप में जब भी आवश्यकता पड़े पक्षकारों का दिशा निर्देश तथा मार्गदर्शन करें ।
भारत में सेविवर्गीय प्रबन्ध की दो पेशेवर संस्थाएँ हैं- भारतीय सेविवर्गीय प्रबन्ध संस्थान, कोलकाता (Indian Institute of Personnel Management, Kolkata) एवं राष्ट्रीय श्रम प्रबन्ध संस्थान, मुम्बई (National Institute of Labour Management, Mumbai) । ये दोनों संस्थान अब एक हो चुके हैं ।
सेविवर्गीय प्रबन्ध के पेशे को उसी प्रकार संचालित करना चाहिए जैसे कि देश में कम्पनी सचिव के पेशे को कम्पनी सचिवों का संस्थान संचालित करता है । यह संस्थान विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम, गोष्ठियाँ तथा कार्यशालाओं आदि के अतिरिक्त सेविवर्गीय प्रबन्ध में दो वर्षों का स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम चलाता है ।
सेविवर्गीय प्रबन्ध राष्ट्रीय संस्थान ने अपने सदस्यों के लिए आचार संहिता तैयार की है ताकि भारत में सेविवर्गीय प्रबन्ध के पेशे पर नियंत्रण रखा जा सके ।
आचार संहिता की व्यापक प्रकृति को एक शपथ पत्र के रूप में नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है:
सेविवर्गीय प्रबन्ध पेशे के दायित्वों को मानते तथा स्वीकार करते हुए मैं एक सेविवर्गीय प्रबन्ध के राष्ट्रीय संस्थान के सदस्य के रूप में:
पेशे तथा संस्थान की मान एवं मर्यादा की रक्षा करूँगा,
पेशेवर आचार व्यवहार के मूल-मंत्र के रूप में सहृदयता का अनुरक्षण तथा अनुशीलन करूँगा तथा अपने पेशेवर कर्तव्यों को पेशे की भलाई हेतु औचित्य, निष्पक्षता, स्वामीभक्ति एवं कटिबद्धता के साथ पूर्ण करूँगा,
जाति, धर्म, भाषा, वर्ग एवं सम्प्रदाय को ध्यान में न रखते हुए व्यक्ति को मानकर उसकी मान-मर्यादा का सम्मान तथा रक्षा करूँगा तथा उसके व्यक्तित्व के विकास में सदैव उद्विग्न रहूँगा,
दूसरों के साथ सूचना एवं अनुभव का आदान-प्रदान करके पेशे की कार्यक्षमता को अधिकतम बनाने में सहयोग करूँगा तथा अपनी सर्वोत्तम योग्यता के साथ पेशे के विकास में योगदान करूँगा,
सदैव उन समस्याओं का समाधान स्वविवेक से करूँगा जो अपने काम के दौरान मेरे सामने आयेंगी तथा दूसरों की समस्याओं के साथ पूरी सूझबूझ के साथ निपटूँगा,
अपने औपचारिक कार्य के साथ अपने पेशे के हितों के अतिरिक्त अन्य किन्हीं हितों को परस्पर टकराने नहीं दूँगा,
पेशे से सम्बद्ध विकसित प्रणालियों, ज्ञान, चातुर्य एवं अनुभव को प्राप्त करके मैं अपने आत्म विकास के प्रति सदैव उद्यत रहूँगा,
पेशेवर मामलों पर सार्वजनिक ज्ञान को बढ़ाने में सदैव उद्यत रहूंगा तथा पेशे के बारे में भ्रांतियों तथा गलतफहमियों को दूर करने का प्रयास करूँगा,
पेशेवर मामलों पर अपनी राय को सार्वजानिक रूप से व्यक्त केवल तभी करूँगा जब मैं आश्वस्त हो जाऊँ कि पर्याप्त ज्ञान तथा कथन में सच्चाई है ।
अन्य सदस्यों की पेशेवर प्रतिष्ठा अथवा व्यवहार को प्रत्यक्षत: अथवा अप्रत्यक्षत: क्षति नहीं पहुँचाऊँगा,
पेशेवर कार्य के लिए उन व्यक्तियों की प्रशंसा करने का साहस जुटाऊँगा, जिनको यह सम्मान मिलना चाहिए,
मेरे साथ जो व्यक्ति काम करते हैं, ऐसे पेशेवर व्यक्तियों के विकास एवं उन्नति के लिए उचित अवसर प्रदान करूँगा,
पेशेवर कार्य में लगे लोगों के उचित पारिश्रमिक के सिद्धान्तों की रक्षा करूँगा,
ऐसे दूसरे सदस्य के काम में शामिल नहीं होऊँगा जो नैतिक मानदण्डों का पालन नहीं करते तथा किसी भी सदस्य द्वारा अपनाई गई अनैतिक कार्यवाही की सूचना इस्टीट्यूट को बेहिचक दूँगा,
अपने नियोक्ता के प्रति स्वामिभक्त सहूंगा तथा नियोक्ता को स्पष्ट रूप से उन दुष्परिणामों को बताऊँगा जो उसकी सलाह न मानने पर उठाने पड़ सकते हैं,
विशेषज्ञों की नियुक्ति की सलाह दूँगा जब मैं इस बात के प्रति आश्वस्त हो जाऊँगा कि ऐसी सेवाएँ मेरे सेवायोजक या ग्राहक के सर्वोत्तम हितों में हैं,
पेशेवर सिद्धान्तों तथा व्यवहारों की चातुर्यपूर्वक पालन करूँगा तथा कार्य एवं पारिश्रमिक के उचित वितरण में समानता के सिद्धान्तों को उत्साहपूर्वक ध्यान में रखूँगा,
कार्यक्षेत्र के सभी विचारों, विधियों, चातुर्यों एवं तकनीकों को विकसित करूँगा जो उत्पादकता, प्रगति, लाभ एवं कर्मचारी संतुष्टि के प्रति योगदान करते हैं,
गुप्त प्रकृति की किसी भी ऐसी सूचना को तब तक प्रकट नहीं करूँगा जो पेशेवर कार्य के दौरान मुझे प्राप्त हो सकती हैं जब तक सम्बद्ध पक्षकारों से इसकी सहमति न ले ली जाए,
अपने पेशेवर कार्य के सम्बन्ध में, कार्य के दौरान किसी भी रूप में अथवा किसी भी तरीके से अनुचित प्रलोभन स्वीकार नहीं करूँगा और न ही किसी को दूँगा ।