Here is an essay on ‘Illegal Strikes and When do they Amount to Misconduct among Workers’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Illegal Strikes and When do they Amount to Misconduct among Workers’ especially written for school and college students in Hindi language.
Essay # 1. गैर-कानूनी हड़ताल (Introduction to Illegal Strikes):
एक गैर-कानूनी हड़ताल दुराचरण के तुल्य हो सकती है, जिसके लिए कर्मचारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही करनी पड़ती है । औद्योगिक विवाद अधिनियम ऐसी परिस्थितियों का उल्लेख करता है, जिसमें एक हड़ताल गैर-कानूनी होती है, तथा अवैधानिक हड़तालों को दुखद बनाती है ।
स्थायी आदेशों में बहुधा ऐसी व्यवस्था की जाती है, कि दूसरों को भाग लेने के लिए फुसलाना या भड़काना, या अन्यथा तत्कालीन प्रचलित किसी कानून के प्रावधानों के उल्लंघन में एक हड़ताल को आगे बढ़ाने में कोई गतिविधि एक श्रमिक के लिए दुराचरण की गतिविधि मानी जाती है ।
अत: यदि ऐसी व्यवस्था करते हुए स्थायी आदेश है कि एक गैर-कनूनी हड़ताल दुराचरण है, तो कर्मचारी को उसकी अपेक्षाओं के अनुसार दण्डित या निष्कासित किया जा सकता है ।
लेकिन यदि ऐसे कोई प्रावधान नहीं हैं तो यह आवश्यक होगा कि व्यक्तिगत कर्मचारी को नोटिस दिया जाये जिसने हडताल में भाग लिया है । उस इससे पहले दण्ड या निष्कासन का आदेश दिया जाए ।
चार्जशीटिड किया जाये तथा फिर दुराचरण की प्रकृति तथा दण्ड की मात्रा के निर्धारण हेतु विभागीय जाँच की जाए तथा यह मालूम किया जाए कि क्या हड़ताल शातिपूर्ण थी या हिंसक ।
एक हड़ताल को गैर-कानूनी घोषित किया जा सकता है । या तो उद्देश्य के कारण । या अवैधानिक उद्देश्य तरीके के कारण अवैधानिक उद्देश्य का सिद्धान्त आमतौर पर बताता है, कि हड़ताल का अधिकार किसी अन्य स्थापित नीति के टकराव में है ।
भारत में औद्योगिक विवाद अधिनियम (Industrial Disputes Act) की धारा 22, 23 तथा 24 के प्रावधानों के उल्लंघन में हड़ताल गैर-कानूनी होती है । 6 दिन का सेवायोजक को नोटिस दिये बिना एक जनोपयोगी सेवा में हड़ताल या ऐसे नोटिस दिये जाने के 14 दिन के भीतर या नोटिस में निर्दिष्ट हड़ताल अवधि की तिथि के बीतने से पूर्व या एक समझौता अधिकारी के समक्ष किन्हीं समझौता कार्यवाही के पूर्व की गई हड़ताल तथा ऐसी कार्यवाही के समापन के बाद 7 दिन में हड़ताल अधिनियम की धारा 22 के अन्तर्गत गैर-कानूनी है ।
यदि एक सार्वजनिक उपादेयता सेवा में लगे श्रमिकों का दो यूनियनों द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाता है, तथा एक यूनियन वाले कर्मचारी हड़ताल पर जाते हैं, जबकि समझौता कार्यवाही सेवायोजक तथा दूसरी यूनियन के बीच सभी श्रमिकों से जुड़े सामान्य किसी विषय के सम्बन्ध में लम्बित है, तो हड़ताल गैर-कानूनी होगी तथा अधिनियम की धारा 26 के अन्तर्गत दण्डनीय होगी ।
श्रमिकों के एक वर्ग द्वारा कार्यस्थल में दाखिल होने के बाद Pen-Down या Sit-Down हड़ताल, जब उनको वहाँ से जाने के लिए कहा जाये तो स्थान छोड़ने से मनाही करना गैर-कानूनी हड़ताल होती है । एक हड़ताल कानूनी होती है, यदि यह विधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करती ।
यह अनुबन्ध का एक विखंडन हो जायेगा यदि श्रमिक अपने रोजगार के या सेवा के अनुबन्ध से विवश हैं, काम करने के लिए जब वे हड़ताल पर जाते हैं, तो ऐसी दशा में हडताल गैरकानूनी होगी ।
Essay # 2. हड़ताल का अधिकार (Rights to Strike):
काफी समय तक हड़ताल को अपनी शिकायतों के निदान हेतु या अपने अधिकारों के क्रियान्वयन हेतु श्रमिकों को एक वास्तविक हथियार के रूप में माना जाता रहा है ।
लेकिन यह एक मूलभूत अधिकार (Fundamental Right) नहीं है, अन्यथा इसको औद्योगिक विवाद अधिनियम (Industrial Disputes Act) जैसे विधानों द्वारा नियंत्रित नहीं करना पड़ता । भारतीय संविधान हड़ताल के अधिकार को आधारभूत अधिकार नहीं मानता ।
हड़ताल का कदम उठाने का सामान्य अधिकार उन परिस्थितियों की व्याख्या करके समझा गया है, जिसके अन्तर्गत एक हड़ताल को गैरकानूनी माना जाना होता है । वैसे हड़ताल का अधिकार अमर्यादित नहीं है । यह एक सापेक्षिक अधिकार है, जिसको अन्य अधिकारों को ध्यान में रखकर ही लागू किया जा सकता है ।
अत: एक हड़ताल को केवल अन्तिम हथियार मानकर ही काम में लाया जाना चाहिए जब सभी अन्य उपाय असफल हो जायें तथा जब तक इसको एक बाधित रूप में काम लाया जाता है, शान्तिपूर्ण तरीके से, न्यायोचित कारणों से सबके भले के लिए ।
महात्मा गाँधी ने हड़ताल के श्रमिकों के अधिकार ने मान्यता दी थी लेकिन उन्होंने चेतावनी दी थी कि ऐसी हड़ताल तभी की जाये जब अन्य तरीके फेल हो जायें ।
The National Commission on Labour की राय है कि ”हड़ताल करने का अधिकार तथा तालाबन्दी का अधिकार जो उचित बाधाओं के साथ रहे सभी प्रजातांत्रिक समाजों में मान लिया गया है, यद्यपि उनके अनुभाव हेतु स्वीकृत स्वतंत्रता की मात्रा वहाँ व्याप्त सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक तंत्र के अनुसार विभिन्न देशो में परिवर्तित होती है ।”
Essay # 3. हड़तालों को रोकना (Prevention of Strikes):
प्रो.लास्की ने कहा है:
”एक हड़ताल इस दृष्टि से अनुचित होती है, यदि यह एक विवादग्रस्त अधिकार के मामले में लागू करने की एक अपील हो, यह अमानवीय होती है उस दुखदर्द के कारण जो यह श्रमिकों से उत्पन्न करती है; यह पूँजी तथा श्रम के साधनों की बर्बादी है, यह दुष्ट है, क्योंकि यह घृणा को बढ़ावा देती है, यह समाज विरोधी है, क्योंकि यह समाज की एकता को नकारती है तथा अवरुद्ध करती है । हड़ताल चाहे कितनी ही भी रक्षात्मक हों वे किसी विशिष्ट औद्योगिक विवाद के संदर्भ में हो सकती हैं, लेकिन एक व्यापक राष्ट्रीय दृष्टिकोण से निश्चय ही माँगों को स्वीकार कराने के लिए तरीकों के क्रियान्वयन हेतु बर्बादी भरे तरीके होते हैं । टिकाऊ औद्योगिक एकता तथा सुझाव श्रम-प्रबन्ध सम्बन्धों को इस तरीके से कदापि प्राप्त नहीं किया जा सकता ।”
यदि अच्छे औद्योगिक सम्बन्धों का एक अनुकूलतम स्तर विकसित करना तथा बनाये रखना होता है, तो हड़तालों की आवृत्ति तथा प्रभाव प्रबन्ध द्वारा निरन्तर प्रयासों के माध्यम से न्यूतनम किया जाना चाहिए ।
इस सम्बन्ध में निम्न सुझाव उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं:
(1) प्रबन्ध को सुपरिभाषित, सटीक, स्पष्ट तथा प्रगतिशील मानव संसाधन प्रबन्ध (HRM) नीतियों का संस्थान में अच्छे औद्योगिक सम्बन्धों के अनुरक्षण हेतु अपनाना चाहिए ।
(2) इसको इन नीतियों के प्रभावी प्रशासन तथा सामयिक क्रियान्वयन को सुनिश्चित करना चाहिए ।
(3) इसको सुनिश्चित करना चाहिए कि एक प्रभावी द्विचरणीय संचार तत्र चलन में है । यह प्रबन्ध की संगठन में ख्याति तथा भरोसे के अनुकूल वातवरण के सृजन हेतु मदद करेगा तथा श्रमिकों को समर्थ बनायेगा कि सही परिप्रेक्ष्य में प्रबन्ध की नीतियों को समझ सकें ताकि उनके बीच कोई गलतफहमी पैदा न हो ।
(4) इसको काम की उचित तथा मानवीय परिस्थितियों की व्यवस्था करनी चाहिए, श्रमिकों के लाभार्थ उपयुक्त कल्याण गतिविधियों के साथ-साथ सभी स्तरों पर कर्मचारियों के साथ निकट व्यक्तिगत सम्बन्धों को विकसित करना चाहिए ।
(5) इसको श्रमिकों की समस्याओं के प्रबन्ध हेतु उपयुक्त तथा तत्पर शिकायत निदान प्रक्रिया का प्रतिपादन तथा पालन करना चाहिए ।
(6) इसको एक प्रतिनिधिक यूनियन को मान्यता देनी चाहिए तथा यूनियन गतिविधियों के प्रति एक प्रगतिशील उपगमन की व्यवस्था करनी चाहिए ।
(7) इसको विभिन्न स्तरों पर संयुक्त परामर्श को सुनिश्चित करना चाहिए तथा उनके बीच अन्तरों के समाधान हेतु सामूहिक सौदाकारी को बढ़ावा देना चाहिए ।