Here is a compilation of essays on ‘Motivation’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Motivation’ especially written for college and management students in Hindi language.
Essay on Motivation
Essay Contents:
- अभिप्रेरणा-अर्थ एवं परिभाषाएँ (Motivation-Meaning and Definitions)
- अभिप्रेरणा की प्रक्रिया (Process of Motivation)
- अभिप्रेरणा के उद्देश्य (Objects of Motivation)
- अभिप्रेरणा के सिद्धान्त (Principles of Motivation)
- अभिप्रेरणा के मूल तत्व (Fundamentals of Motivation)
- अभिप्रेरणा व्यवस्था की स्थापना (Setting Up Motivation System)
- अभिप्रेरणा के लिए आवश्यक बातें (Essentials of Motivation)
- अच्छी अभिप्रेरणा व्यवस्था के आवश्यक तत्व (Essentials of a Sound Motivational System)
- अभिप्रेरणा की समस्याएँ (Problems of Motivation)
Essay # 1. अभिप्रेरणा के अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Motivation):
जहाँ व्यक्ति कार्य करते हैं वहाँ उनसे उनकी श्रेष्ठतम क्षमता तक कार्य कराने के लिए अभिप्रेरणा की आवश्यकता होती है । अत: अभिप्रेरणा का अर्थ मनुष्य के भीतर उस तत्व से है जो उसे कार्य के लिए उत्साहित करता है । अभिप्रेरणा शब्द प्रेरणा (Motive) से निकला है ।
प्रेरणा मानवी जरूरतों (Human Needs) की अभिव्यक्ति है । इसका अर्थ है कि एक मनुष्य जब कोई कार्य करता है तो इसके पीछे उसकी कोई न कोई ऐसी जरूरत होती है जो उसे इस कार्य को करने के लिए प्रेरित करती है । काम करने के लिए प्रेरित करने वाली इन जरूरतों को प्रेरणा कहते हैं ।
परिभाषाएँ (Definition):
प्रबन्ध के विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं में से अभिप्रेरणा की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं:
(1) एम.जे.जूसियस के अनुसार- “वांछित कार्य-पथ को अपनाने के लिए स्वयं को अथवा किसी अन्य व्यक्ति को प्रेरित करने अथवा सही काम कारवाने के लिए सही बटन दबाने का कार्य अभिप्रेरणा है ।”
(2) डेल एस.बीच के शब्दों में- “अभिप्रेरणा को किसी लक्ष्य अथवा पुरस्कार प्राप्त करने के लिए अपनी शक्ति के प्रयोग करने की तत्परता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है ।”
(3) डी.ई. मैक्फारलैंड के अनुसार- “अभिप्रेरणा एक तरीका है जिसमें संवेगों, उद्वेगों, इच्छओं, आकांक्षाओं, प्रयासों या आवश्यकताओं के जरिये मानवीय आचरण का निर्देशन, नियन्त्रण तथा स्पाडीकरण किया जाता है ।”
(4) केरोल शार्टर के शब्दों में- ”अभिप्रेरणा एक निश्चित दिशा में अग्रसर होने अथवा निश्चित लक्ष्य को प्राप्त करने की उत्कृष्ट इच्छा या तनाव को कहते हैं ।”
(5) स्टेनले वान्स के शब्दों में- “कोई भी भावना अथवा इच्छा जो किसी व्यक्ति के संकल्प को इस प्रकार अनुकूलित करती है कि वह व्यक्ति कार्य करने को प्रेरित हो जाये, उसे अभिप्रेरणा कहते हैं ।”
(6) कूण्ट्ज तथा ओ’ डोनेल के अनुसार- “अभिप्रेरित करना लोगों को इच्छित ढंग से कार्य करने के लिए प्रेरित करना है ।”
(7) डब्ल्यू.जी.स्टाफ के अनुसार- “अभिप्रेरणा का अर्थ अपेक्षित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु काम करने के लिए लोगों को प्रेरित ।”
अधिकांश परिभाषाओं में अभिप्रेरणा को प्रबन्धकीय दृष्टिकोण से देखा गया है अर्थात् दूसरे व्यक्तियों से कार्य करवाने हेतु उन्हें प्रोत्साहित करने को अभिप्रेरणा कहा गया है । कर्मचारियों एवं स्वयं प्रबन्धकों को इसलिए अभिप्रेरित किया जाता है ताकि संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति की जा सके । इस दृष्टि से अभिप्रेरणा कर्मचारी एवं प्रबन्धकों के बीच एकीकरण पैदा करने का कार्य करती है ।
निष्कर्ष रूप में हम कह सकते है कि अभिप्रेरणा से आशय उस मनोवैज्ञानिक उत्तेजना से है जो संगठन के विभिन्न स्तरों पर कर्मचारियों को कार्य करने के लिए प्रेरित करती है, उन्हें कार्य पर बनाये रखती है तथा उन्हें अधिकतम सन्तुष्टि प्रदान करती है ।
Essay # 2. अभिप्रेरणा की प्रक्रिया (Process of Motivation):
कूण्ट्ज तथा ओ‘ डोनेल के अनुसार अभिप्रेरणा की प्रक्रिया को निम्न प्रकार चित्रित किया है:
इसके अनुसार सर्वप्रथम मनुष्य को कोई जरूरत अनुभव होती है जो आवश्यकता को जन्म देती है । इस आवश्यकता के परिणामस्वरूप तनाव पैदा होता है, जो कार्यवाही को जन्म देता है और इस कार्यवाही के फलस्वरूप मनुष्य की जरूरत की सन्तुष्टि हो जाती है । एक आवश्यकता की सन्तुष्टि प्राय: दूसरी आवश्यकता की सृष्टि कर देती है जैसे भोजन की इच्छा पूरी हो जाने पर जल की इच्छा और जल की इच्छा पूरी हो जाने पर आराम की इच्छा ।
कभी-कभी हमें एक साथ कई इच्छाओं का सामना करना पड़ता है । ऐसी स्थिति में प्राय: मनुष्य सबसे पहले उस इच्छा की पूर्ति करता है जो अधिक बलवती होती है । जब एक आवश्यकता पूर्ण हो जाती है या तात्कालिक रूप से सन्तुष्ट हो जाती है तो वह शिथिल (Quiescent) पड़ जाती है और मनुष्य की दूसरी आवश्यकता उत्पन्न हो जाती है और इस प्रकार मनुष्य उस दूसरी अधिक बलवती आवश्यकता की पूर्ति में प्रयत्नशील हो जाता है और इस प्रकार जरूरत उत्पन्न होती है और उसकी संतुष्टि हो जाती है और यह क्रम निरन्तर चलता रहता है ।
Essay # 3. अभिप्रेरणा के उद्देश्य (Objects of Motivation):
अभिप्रेरणा का उद्देश्य सामान्यत: निम्नांकित उद्देश्यों की प्राप्ति करना होना है:
(1) संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति करना;
(2) संस्था में कार्यरत कर्मचारियों का स्वैच्छिक सहयोग प्राप्त करना;
(3) कर्मचारियों के मनोबल को ऊंचा उठाना;
(4) मधुर श्रम सम्बन्धों की स्थापना करना;
(5) कर्मचारियों की कार्यकुशलता में वृद्धि करना;
(6) कर्मचारियों के मध्य पारस्परिक सहयोग की भावना में वृद्धि करना;
(7) बाहर से थोपे गये नियन्त्रण के स्थान पर कर्मचारियों में आत्म-नियन्त्रण (Self-Control) की प्रवृत्ति को प्रभावित करना;
(8) कर्मचारियों की आर्थिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना,
(9) कार्य में मिलने वाली सन्तुष्टि में वृद्धि करना एवं
(10) उत्पादन में वृद्धि करना ।
Essay # 4. अभिप्रेरणा के सिद्धान्त (Principles of Motivation):
कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं:
( कर्मचारियों में सुरक्षा की भावना उत्पन्न की जानी चाहिए;
(2) कर्मचारियों को उनकी उपलब्धियों से अवगत करवाना चाहिए;
(3) उनके कार्यों के लिए उनकी प्रशंसा करनी चाहिए तथा उन्हें मान्यता देनी चाहिए;
(4) कर्मचारियों में संस्था के प्रति आत्मीयता का भाव उत्पन्न करना चाहिए;
(5) कर्मचारियों की उन्नति एवं विकास का अवसर देना चाहिए;
(6) कर्मचारियों को कुशल नेतृत्व प्रदान करना चाहिए;
(7) कर्मचारियों के साथ मानवीय व्यवहार करना चाहिए;
(8) कर्मचारियों के धार्मिक, नैतिक एवं सामाजिक विचारों का स्वागत करना चाहिए;
(9) कर्मचारियों के सुझावों पर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए;
(10) कर्मचारियों को संस्था के नीति-निर्धारण में पर्याप्त सहभागिता देनी चाहिए;
(11) संगठन में समूह भावना (Team Spirit) उत्पन्न करनी चाहिए;
(12) कर्मचारियों को निराशा नहीं होने देना चाहिए;
(13) कार्य को रुचिकर बनाने का प्रयास करना चाहिए;
(14) कर्मचारी के व्यक्तिगत अस्तित्व को स्वीकार करना चाहिए;
(15) कर्मचारी की आन्तरिक दबी हुई शक्तियों के विकास का प्रयोग करना चाहिए ।
Essay # 5. अभिप्रेरणा के मूल तत्व (Fundamentals of Motivation):
प्रोफेसर नाइल्स (Mary Cushing Niles) अनुसार अभिप्रेरणा के चार मूल्य तत्व हैं:
(1) सुरक्षा (Security):
यह तीन प्रकार की हो सकती है, रोजगार की सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा, मनोवैज्ञानिक सुरक्षा । मनोवैज्ञानिक सुरक्षा का अर्थ है संस्था में ऐसा विश्वास कि प्रत्येक कर्मचारी के साथ न्यायोचित व्यवहार किया जायेगा ।
(2) मान्यता (Recognition):
प्रत्येक कर्मचारी अपने प्रोत्साहन के लिए अपनी और अपने कार्य की मान्यता तथा प्रतिष्ठ चाहता है । अत: अभिप्रेरणा योजना में इसकी व्यवस्था होनी चाहिए ।
(3) प्रगति तथा विकास के अवसर (Opportunities for Progress and Growth):
कर्मचारियों को यह ज्ञान कि अच्छा काम दिखाने पर उन्हें तरक्की दी जायेगी और नये-नये अवसर प्रदान किये जायेंगे ज्यादा अच्छा काम करने के लिए सबसे अधिक प्रभावित करता है ।
(4) अपनत्व व आत्मीयता की भावना (Sense of Belonging):
आधुनिक व्यावसायिक संस्थाओं में कर्मचारियों के बीच इस भावना का होना कि वे सब एक संस्था के अभिन्न अंग हैं और वे अपने-अपने स्थान पर महत्वपूर्ण काम करते हैं अभिप्रेरणा का एक बहुत बड़ा तत्व है ।
Essay # 6. अभिप्रेरणा व्यवस्था की स्थापना (Setting Up Motivation System):
किसी भी संस्था में एक अच्छी अभिप्रेरणा व्यवस्था स्थापित करने के लिए अग्र कार्यवाही की जाती है:
(i) अभिप्रेरणा की आवश्यकता का अध्ययन (Study of the Need of Motivation):
अर्थात् यह तय करना कि अभिप्रेरणा की व्यवस्था किस वर्ग के कर्मचारी के लिए की जा रही है तथा वे किन अभिप्रेरण तत्वों से प्रोत्साहित किये जा सकते हैं, आदि ।
(ii) अभिप्रेरणा साधनों की सूची तैयार करना (To Prepare a List of Motivational Methods):
व्यक्तियों की अभिप्रेरणा आवश्यकताओं को जान लेने के बाद दूसरी समस्या यह तय करना है कि अभिप्रेरणा आवश्यकता को पूरा करने के लिए प्रबन्धक किन-किन अभिप्रेरक तत्वों का इस्तेमाल कर सकते हैं, उदाहरण के लिए-ऊंचा पद अधिक वेतन अधिक सुविधाएँ आदि ।
(iii) अभिप्रेरणा योजना का चुनाव और उपयोग (Selection and Use of Motivation):
अभिप्रेरक तत्व तय हो जाने के बाद अभिप्रेरणा की भिन्न-भिन्न योजनाएँ बनाई जाती हैं और फिर उन्हें लागू करने के समय उसके उपयोग की दशाओं को निश्चित किया जाता है ।
(iv) अभिप्रेरणा योजनाओं के परिणामों का अवलोकन (Observation of the Results of Motivation Plans):
अभिप्रेरणा योजना लागू कर देने के पश्चात् इसके परिणामों का अध्ययन किया जाता है और यह देखा जाता है कि योजना इच्छित उद्देश्य को प्राप्त करने में कितनी सहायक रही ।
Essay # 7. अभिप्रेरणा के लिए आवश्यक बातें (Essentials of Motivation):
किसी भी संगठन में कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने के लिए कुछ आवश्यक बातों का पालन करना होता है ।
इनमें से कुछ बातें इस प्रकार हैं:
(1) कर्मचारियों को कुशल नेतृत्व प्रदान करना चाहिए ।
(2) कर्मचारियों के सुझावों पर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए ।
(3) कर्मचारियों से पारस्परिक सहयोग एवं दलीय-भावना (Team Spirit) पैदा करनी चाहिए ।
(4) कर्मचारियों के व्यक्तिगत अस्तित्व (Personal Existence) को स्वीकार करना चाहिए ।
(5) कर्मचारियों में सुरक्षा की भावना जागृत करनी चाहिए ।
(6) कर्मचारियों के द्वारा किये गए कार्यों की प्रशंसा करनी चाहिए एवं मान्यता दी जानी चाहिए ।
(7) कर्मचारियों को उन्नति एवं विकास के अवसर उपलब्ध कराना चाहिए ।
(8) कर्मचारियों को उनकी उपलब्धियों से अवगत कराना चाहिए ।
(9) कर्मचारियों में संस्था के प्रति लगाव उत्पन्न करना चाहिए ।
(10) कर्मचारियों के साथ मानवोचित व्यवहार करना चाहिए ।
(11) कर्मचारियों को संगठन की नीति निर्धारण में सहभागिता (Participation) देनी चाहिए ।
(12) कर्मचारियों के धार्मिक, नैतिक एवं सामाजिक विचारें का स्वागत करना चाहिए ।
(13) कर्मचारियों के अन्दर दबी हुई शक्तियों के विकास का प्रयास करना चाहिए ।
उपरोक्त सिद्धान्त अथवा नियमों का पालन करने से कर्मचारियों में संस्था के प्रति लगाव उत्पन्न होगा । उनका काम करने में मन लगेगा एवं संस्था प्रगति करेगी ।
Essay # 8. अच्छी अभिप्रेरणा व्यवस्था के आवश्यक तत्व (Essentials of a Sound Motivational System):
कूण्ट्ज तथा ओ‘ डोनेल के अनुसार एक अच्छी अभिप्रेरणा व्यवस्था में निम्नांकित चार बातें होनी जरूरी हैं:
(1) उत्पादक (Productive):
अभिप्रेरणा की अच्छी व्यवस्था वही है जो उत्पादक हो, अर्थात् जो अधीनस्थ कर्मचारियों को अधिक कुशलता और परिश्रम से काम करने के लिए प्रेरित कर सके । इस प्रकार की व्यवस्था हो जाने पर कर्मचारियों की उत्पादकता अधिकतम हो जाती है ।
(2) व्यापकता (Comprehnsive):
उपयुक्त अभिप्रेरणा योजना संगठन में लगे व्यक्तियों की न केवल निम्न स्तर की जरूरतों को पूरा करती है, जैसे: आत्म-सन्तुष्टि की जरूरत, सामाजिक महत्व की जरूरत आदि । यही नहीं, अभिप्रेरणा की वह योजना, संगठन में लगे सभी कर्मचारियों पर समान रूप से लागू होनी चाहिए ।
(3) प्रतिस्पर्धात्मक (Competitive):
अभिप्रेरणा की व्यवस्था तभी अच्छी मानी जायेगी जब वह कर्मचारियों में ज्यादा परिश्रम करने की होड़ को जन्म दे । यही नहीं, अधिप्रेरण की लागत, इससे प्राप्त अधिक उत्पादकता से, ज्यादा भी नहीं होनी चाहिए ।
(4) लचीली (Flexible):
अभिप्रेरण की योजना ऐसी होनी चाहिए जिसमें भिन्न-भिन्न व्यक्तियों की भिन्न-भिन्न माँगो को तथा जरूरतों को पूरा किया जा सके और समय के बदलने के साथ-साथ समयानुकूल परिवर्तन भी किया जा सके ।
उपरोक्त के अन्तर्गत एक प्रभावी एवं सुदृढ़ अभिप्रेरणा व्यवस्था में निम्न बातों अथवा कदमों का समावेश भी होना चाहिए:
(a) अभिप्रेरणा की प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जो कर्मचारियों की आर्थिक, सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति में समर्थ हो ।
(b) अभिप्रेरणा की प्रणाली अभिप्रेरणा के नियमों एवं सिद्धान्तों पर आधारित होनी चाहिए । मानवीय व्यवहार को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए ।
(c) अभिप्रेरणा प्रणाली से उपक्रम की ख्याति एवं प्रतिष्ठा में वृद्धि होनी चाहिए । इससे उसमें कार्य करने वाले कर्मचारियों की ख्याति एवं प्रतिष्ठ में भी वृद्धि होगी । वे उसमें कार्य करने में अपना गौरव अनुभव करेंगे; जैसे- दिल्ली क्लॉथ मिल्स, हिंदुस्तान मशीन टूल्स कम्पनी, बाटा, टाटा आदि ।
(d) उक्त प्रणाली से कर्मचारियों में स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा का विकास होना चाहिए ।
(e) अभिप्रेरणा प्रणाली ऐसी हो जो उपक्रम की दृष्टि से भार रूप प्रतीत न होती हो और कर्मचारियों की दृष्टि से प्रेरणात्मक हो ।
(f) आधुनिक अभिप्रेरणा प्रणाली व्यापक होनी चाहिए जो कर्मचारियों की अधिक-से-अधिक आवश्यकताओं की पूर्ति करके उन्हें अधिकतम सन्तुष्टि प्रदान कर सके ।
(g) अभिप्रेरणा प्रणाली लोचपूर्ण होनी चाहिए अर्थात् इसमें व्यक्तियों एवं समय के अनुसार आवश्यक परिवर्तन करना सरल होना चाहिए ।
(h) अभिप्रेरणा प्रणाली उपक्रम के आकार तथा आवश्यकताओं के अनुरूप होनी चाहिए ।
(i) अभिप्रेरणा प्रणाली उत्पादक होनी चाहिए अर्थात् इसमें अधीनस्थ कर्मचारी दक्षता एवं प्रभावपूर्ण ढंग में कार्य करने के लिए प्रेरित होने चाहिए तथा यह प्रेरणा निरन्तर जारी रहनी चाहिए ।
(j) प्रस्तुत अभिप्रेरणा प्रणाली का संचालन किसी योग्य एवं अनुभवी व्यक्ति को सौंपा जाना चाहिए जो कर्मचारियों की समस्याओं का समाधान करने में समर्थ तथा कल्याणकारी कार्यों में लगन रखता हो ।
(k) अभिप्रेरणा प्रणाली न्यायोचित होनी चाहिए अर्थात् अभिप्रेरणा से होने वाले लाभ स्वत: दिखाई देने चाहिए ।
(l) अभिप्रेरणा प्रणाली से संगठन के लक्ष्य, मेश्य एवं दर्शन प्रकट होने चाहिए ।
(m) अभिप्रेरणा प्रणाली में मितव्ययिता होनी चाहिए जिसे उपक्रम सरलता से स्वीकार कर सके एवं लागू कर सकें ।
(n) अभिप्रेरणा प्रणाली निरन्तरता तथा स्थायित्व के सिद्धान्त पर आधारित होनी चाहिए यह संगठन का स्थायी घटक होनी चाहिए ।
(o) अभिप्रेरणा प्रणाली सरल एवं व्यावहारिक होनी चाहिए जिसे कर्मचारी सरलता से समझ सकें एवं आसानी से लागू किया जा सके ।
Essay # 9. अभिप्रेरणा की समस्याएँ (Problems of Motivation):
अभिप्रेरणा की योजना अधिशासी और कर्मचारियों के मध्य सम्बन्धों को प्रभावित करती है इससे कुछ महत्वपूर्ण समस्याएँ उत्पन्न होना स्वाभाविक है और उनका अध्ययन किया जाना आवश्यक है ।
ये समस्याएँ निम्नांकित प्रकार हैं:
(1) उत्पादकता (Productivity):
यहाँ मुख्य समस्या यह है कि ऐसी स्थितियों किस प्रकार उत्पन्न की जाएँ जो कर्मचारियों में उच्चतर उत्पादन और कुशल स्तरों पर कार्य का सम्पादन करने के लिए इच्छा और क्षमता उत्पन्न करें । ऐसे कई अनुमान लगाये जाते हैं जिससे किसी संगठन में उत्पादन प्रयल में बहुत वृद्धि की जा सकती है, जबकि कर्मचारी अपनी वास्तविक क्षमताओं से लगभग केवल आधी क्षमता तक ही कार्य करते हैं जिसके कारण उत्पादकता में कमी आती है ।
(2) परिवर्तन (Change):
ऐसी परिवर्तन जो बेतुके, ढुलमुल, समस्याओं से असम्बद्ध अथवा मनमाने ढंग से और अचानक लागू किये जाते हैं, उनसे विरोध उत्पन्न होता है और इस प्रकार उत्पादन में अवरोध उत्पन्न होता है ।
(3) कार्य का ढाँचा (Job Design):
आधुनिक विशिष्टीकरण के युग में कार्यों को छेटे-छोटे खण्डों में विभक्त कर दिया गया है और प्रत्येक कर्मचारी उसकी योग्यतानुसार तथा उनकी विशिष्टता के आधार कार्यों का विभाजन कर दिया है जिसके कारण उसका कार्य संकीर्ण बन गया है और वह अभिप्रेरित नहीं हो पाता है ।
(4) अभिप्रेरण एक अन्त: प्रेरणा है (Motivation is an Internal Feeling):
अभिप्रेरण एक मानवीय अन्त: प्रेरणा है । अत: कोई भी प्रबन्धक केवल आदेश देकर अपने अधीनस्थों को कदापि प्रेरित नहीं कर सकता । उसके लिए कर्मचारी में जब तक हार्दिक इच्छा नहीं होगी तब तक सब बेकार होगा ।
(5) संदिग्ध कर्मचारी (Problem Employees):
कर्मचारी सम्बन्ध विभाग का कार्य करने का परम्परागत तरीका पर्यवेक्षकीय माध्यम द्वारा है, अर्थात् व्यक्ति अधिपुरुष (Man Boss) सम्बन्ध के द्वारा है । प्रबन्धकों को प्रतिक्षण देते समय यह बताया जाता है कि अपने अधीनस्थों के साथ कार्य करते हुए अधिक कठिन समस्याओं में से कुछ का सामना किस प्रकार किया जाना चाहिए । इस प्रकार संदिग्ध कर्मचारियों को अभिप्रेरित करते समय काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि संदिग्ध कर्मचारियों की अपनी-अपनी अलग-अलग समस्याएँ होती हैं ।
(6) कर्मचारियों की सीमाएँ (Limitations of Employees):
कर्मचारी केवल संस्था के प्रति ही उत्तरदायी नहीं होते वरन् वे अपने परिवार समाज सरकार इत्यादि के प्रति भी उत्तरदायी होते हैं । अत: उनसे यह आशा रखना कि वे अपनी सारी निष्ठ संस्था के प्रति ही रखें तो यह सम्भव नहीं । अत: हमें अभिप्रेरण की ऐसी व्यवस्था विधि को अपनाना होगा जो न केवल संस्था के प्रति वरन् वह कर्मचारियों के व्यक्तिगत दायित्वों की भी पूर्ति कर सके ।
(7) कर्मचारियों की सभी माँगों को पूरा करना सम्भव नहीं (Not Possible of Fulfill all the Demands of the Employees):
क्योंकि कर्मचारियों की सभी माँगों को पूरा करना सम्भव नहीं है अत: उनसे यह आशा रखना कि वे शतप्रतिशत क्षमता तक कार्य करेंगे ठीक नहीं हे कर्मचारियों को एक निश्चित सीमा तक ही अभिप्रेरित किया जाना चाहिए ।
(8) असमान अभिप्रेरणा की समस्या (Problem of Unequal Motivation):
अकुशल कर्मचारियों की तुलना में कुशल कर्मचारियों को अधिक ऊँचे स्तर तक अभिप्रेरित किया जा सकता है । अधिकांश व्यक्तियों को एक निश्चित सीमा अथवा औसत तक ही अभिप्रेरित किया जा सकता है । क्योंकि वे इस सीमा तक ही सन्तुष्ट हो जाते हैं ।
अत: निष्कर्ष रूप से कह सकते हैं कि प्रबन्ध वर्ग को चाहिए कि वह उपरोक्त समस्याओं को ध्यान में रखकर ही कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने की योजनाएँ बनाये ।