Here is an essay on ‘Organisation’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Organisation’ especially written for college and management students in Hindi language.
Essay on Organisation
Essay Contents:
- संगठन की परिभाषाएँ (Definitions of Organisation)
- संगठन की विशेषताएँ (Characteristics of Organisation)
- संगठन के उद्देश्य अथवा लक्ष्य (Objectives or Goals of Organisation)
- संगठन के लिए आवश्यक कदम (Essential Steps in Organisation)
- आदर्श संगठन के लिए आवश्यक बातें (Essential Requirements for a Sound Organisation)
- बुरे संगठन के दोष (Defects of Bad Organisation)
Essay # 1. संगठन की
परिभाषाएँ (Definitions of Organisation):
संगठन प्रबन्धन का वह तन्त्र है जिसके द्वारा प्रबन्ध अपना कार्य करता है । इसलिए बिना संगठन बनाए प्रबन्ध का कोई कार्य नहीं चलाया जा सकता । अत: कोई भी कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व उसका उचित संगठन कर लेना आवश्यक होता है । किसी संस्था के उद्देश्यों को निर्धारित करने तथा इन्हें प्राप्त करने के लिए योजनाओं व्यूह-रचनाएँ, नीतियों तथा कार्यक्रमों को बनाने के बाद प्रबन्ध प्रक्रिया का अगला कदम संगठन करना है ।
इसके अन्तर्गत की जाने वाली क्रियाओं का निर्धारण किया जाता है, फिर विभिन्न क्रियाओं को समूहों में बाँटा जाता है, उन्हें व्यक्तियों को सौंपा जाता है और अधिकार सत्ता (Authority) के भारार्पण से अधिकारी-अधीनस्थ सम्बन्धों की स्थापना की जाती है । अतएव एक अच्छा संगठन कर लेने से, पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति में कठिनाई नहीं आती ।
विभिन्न विद्वानों ने संगठन की परिभाषा भिन्न-भिन्न अर्थों में दी है ।
यहाँ हम कुछ प्रमुख विद्वानों की परिभाषाओं का वर्णन करेंगे:
(1) लूथर गुलिक के शब्दों में- “संगठन सत्ता का औपचारिक ढाँचा है जिसके द्वारा किसी निर्धारित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कार्यों को निर्धारित, विभाजित तथा समन्वित किया जाता है ।”
(2) अर्विक के अनुसार- “संगठन, किसी प्रयोजनवश आवश्यक क्रियाओं को विभाजित करना और व्यक्तियों को उन्हें सम्पादित करने के लिए उनका समूहों में व्यवस्थित करना है ।”
(3) प्रो. हैने के शब्दो में- “किसी सामान्य उद्देश्य या उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए विशिष्ट अंगों के मैत्रीपूर्ण समायोजन को संगठन कहते हैं ।”
(4) लुईस ए. ऐलन के अनुसार- “संगठन कार्यों को पूर्ण करने के लिए मनुष्यों को मिल कर प्रभावपूर्व ढंग से कार्य करने योग्य बनाने के उद्देश्य से किए जाने वाले कार्य की पहचान तथा समूहबद्ध करने, उत्तरदायित्व तथा अधिकार की परिभाषा तथा सम्पादन करने तथा सम्भन्धों की स्थापना करने की प्रक्रिया है ।”
(5) हॉज एवं जॉनसन के अनुसार, “संगठन मानवीय एवं भौतिक साधनों और कार्य के बीच का जटिल सम्बन्ध है जो प्रणाली-तन्त्र के रूप में सुदृढ़ किया गया है ।”
(6) मैकफारलैंड के अनुसार, “समान व्यक्तियों के समूह के दारा लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले कार्यों को ही संगठन कहते हैं ।”
(7) जी.ई. मिलवर्ड के अनुसार- “कार्य और कर्मचारी समुदाय का मधुर सम्बन्ध संगठन कहलाता है ।”
(8) आर.सी.डेविस के अनुसार- “संगठन मूलत: व्यक्तियों का एक समूह है जो एक नेता के निर्देशन में सामान्य उद्देश्य की पूर्ति हेतु सहयोग करते हैं ।”
(9) चैस्टर आई. बरनार्ड के अनुसार- “संगठन उस अवस्था में अस्तित्व में आता है जब कुछ व्यक्ति एक-दूसरे के साथ संचार (Communication) और सम्बन्ध स्थापित करते हैं एवं साथ ही सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करते हैं ।”
उपरोक्त परिभाषा के संगठन की तीन विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं:
(i) संचार (Communication);
(ii) सहयोग से कार्य करना (Co-Operative Efforts);
(iii) समान उद्देश्य (Common Objective) ।
प्रत्येक संस्था के कुछ निश्चित उद्देश्य होते है । ये उद्देश्य साझे होते हैं एवं इनकी प्राप्ति के लिए संगठन बनाया जाता है व्यक्ति संगठन में कार्य करते हैं एवं साथ ही एक-दूसरे के साथ विचारों का आदान-प्रदान करते हैं तथा उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मिल-जुलकर कार्य करते हैं ।
Essay # 2. संगठन की विशेषताएँ (Characteristics of Organisation):
संगठन की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
(1) संगठन प्रबन्ध का एक तन्त्र है (Organisation is Mechanism of Management):
क्लाइड एस. जार्ज जुनियर संगठन का प्रबन्ध का एक तन्त्र मानते है जिसके द्वारा प्रबन्ध अपना कार्य करता है । संगठन प्रबन्ध के कार्य को सुविधाजनक बनाता है । संगठन वह आधार प्रस्तुत करता है जिसमें नियोजन, निर्देशन व नियन्त्रण कार्य किए जाते हैं ।
(2) यह एक प्रक्रिया है (It is a Process):
संगठन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत:
(i) संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए गतिविधियों (Activities) की पहचान व समूहीकरण किया जाता है ।
(ii) इन गतिविधियों को उपयुक्त प्रभागों (Divisions), विभागों (Departments), अनुभागों (Sections) तथा कृत्यों (Jobs) में बाँटा जाता है ।
(iii) अधिकार सत्ता, भारार्पण, समन्वय तथा सम्प्रेषण की व्यवस्था की जाती है । भौतिक वातावरण के सन्दर्भ में आवश्यक सुविधाओं और साज-सामान की व्यवस्था की जाती है ।
(3) संगठन एक “साधन” है, “साध्य” नहीं (Organisation is a “Means” Not an “End”):
संगठन एक ऐसा साधन है जिसके अन्तर्गत सस्था की कार्यविधि तथा कार्यों की इस तरह व्याख्या की जाती है जिससे कि संस्था के उद्देश्यों को सफलतापूर्वक प्राप्त किया जा सके । इस तरह संगठन संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति में एक साधन है, साध्य नहीं ।
(4) संगठन प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण कार्य है (Organisation is a Structure):
प्रबन्ध के विभिन्न कार्य हैं, जिसे नियोजन समन्वय अभिप्रेरणा एवं नियन्त्रण संगठन भी इन्हीं कार्यों जैसा एक महत्वपूर्ण कार्य है ।
(5) संगठन एक संरचना (ढाँचा) है (Organisation is a Structure):
संगठन एक ढाँचा है जिसमें कार्यरत कर्मचारियों एवं अधिकारियों के पारस्परिक सम्बन्धों का विश्लेषण किया जाता है । यह विश्लेषण संस्था के कार्यों को सम्पन्न करने तथा साधनों के उपयोग में सुविधा प्रदान करता है ।
(6) संगठन एक प्रणाली है (Organisation is a Structure):
संगठन एक एकीकृत (Unified) प्रणाली है जिसका निर्माण कई विभागों उप-विभागों तथा उनके बीच की क्रियाओं से होता है । यह प्रणाली जटिल होती है तथा संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति करती है । खुली प्रणाली के रूप में संगठन अपने वातावरण से जुड़ा होता है ।
(7) संगठन व्यक्तियों का समूह है (Organisation is a Group of Individuals):
संगठन व्यक्तियों का समूह है जो निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मिलकर काम करते हैं बिना व्यक्तियों के समूह संगठन का कोई अर्थ नहीं है । इस समूह का एक नेता होता है जो इसकी क्रियाओं को उद्देश्यों की दिशा में निर्देशित करता है ।
(8) संगठन उद्देश्यात्मक होता है (Organisation is Objectives):
संगठन का उद्देश्य मानवीय प्रयासों में कुशलता क्रमबद्धता तथा समन्वय लाना है । इसके अतिरिक्त यह कार्यरत व्यक्तियों के अधिकारों कर्त्तव्यों एवं उत्तरदायित्व को स्पष्ट करता है । इसलिए इसे उद्देश्यात्मक कहा गया है ।
(9) संगठन सार्वभौमिक होते हैं (Organisations are Universal):
संगठन का निर्माण व्यावसायिक तथा गैर-व्यावसायिक सभी प्रकार की संस्थाओं में किया जाता है ।
(10) संगठन संचार की प्रणाली है (Organisations are Universal):
संगठन के अन्तर्गत नियमों, उप-नियमों, आदेशों व निर्देर्शो को संस्था में काम करने वाले सभी कर्मचारियों को सम्प्रेषित किया जाता है ।
Essay # 3. संगठन के उद्देश्य अथवा लक्ष्य (Objectives or Goals of Organisation):
जब किसी भी उपक्रम की स्थापना की जाती है तो संगठन-कार्य निम्न उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए किया जाता है:
(1) संस्था के लक्ष्यों व उद्देश्यों की प्राप्ति में सहयोग करना:
संगठन प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण कार्य है जिसका उद्देश्य संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति में सहयोग करना है । इस तरह “संगठन उपक्रम के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को प्राप्त करने का एक उपकरण है ।”
(2) संसाधनों का मितव्ययी उपयोग:
जैसा कि हम जानते हैं कि संसाधन सीमित होते हैं । इसलिए एक संगठन का उद्देश्य यह होना चाहिए कि वह इन संसाधनों का मितव्ययी उपयोग करे । समय श्रम व वित्त सभी का सदुपयोग करे ।
(3) श्रम तथा पूंजी में मधुर सम्बन्धों की स्थापना:
एक अच्छे संगठन का उद्देश्य होता है कि वह श्रम तथा पूंजी के बीच मधुर सम्बन्ध स्थापित करे । इनमें मतभेद न आने दे तथा इनमें वर्ग-संघर्ष पैदा न होने दे ।
(4) सामाजिक उद्देश्य:
संगठन एक ओर व्यवसाय तथा उद्योग का तथा दूसरी ओर समाज का प्रतिनिधि है । इसलिए संगठन का उद्देश्य समाज को सस्ती व अच्छी वस्तुएं उपलब्ध कराना होता है । सेवा की भावना से कार्य करना भी अच्छे संगठन का उद्देश्य होता है ।
(5) कर्मचारियों का सहयोग प्राप्त करना:
संगठन का उद्देश्य कर्मचारियों का सहयोग प्राप्त करना होना चाहिए उनमें सहयोग प्राप्त करने के लिए उचित मजदूरी अच्छा व्यवहार,पदोन्नति के अवसर उचित कार्य करने की दशाएँ आदि द्वारा उनको प्रेरित किया जा सकता है ।
(6) संगठन की प्रभावशीलता में वृद्धि करना:
संगठन का एक प्रमुख उद्देश्य बदलती हुई तकनीकों तथा वातावरण को ध्यान में रखते हुए अपनी संगठन-संरचना में इस प्रकार सुधार करना है ताकि उसकी प्रभावशीलता तथा कुशलता में वृद्धि हो ।
(7) मितव्ययिताओं को प्राप्त करना:
न्यूनतम व्यय पर अधिकतम उत्पादन करना प्रत्येक संगठन का प्राथमिक उद्देश्य होता है इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रभावशाली संगठन प्रणाली की स्थापना की जाती है ।
(8) संगठन के अन्य उद्देश्य:
(i) संस्था को स्थायित्व प्रदान करना भी संगठन का उद्देश्य होता है;
(ii) संगठन देश में प्रजातान्त्रिक समाजवाद की स्थापना करने में भी सहायक होता है;
(iii) संगठन देश के सन्तुलित विकास में भी सहायक होता है ।
Essay # 4. संगठन के लिए आवश्यक कदम (Essential Steps in Organisation):
किसी संस्था में संगठन के निर्माण के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाते हैं । इन्हें संगठन-प्रक्रिया कहा जाता है ।
अत: संगठन प्रक्रिया के आवश्यक कदम निम्नलिखित हैं:
(i) क्रियाओं की पहचान तथा उनका विभाजन (Identification and Division of Activities):
संगठन प्रक्रिया के पहले चरण में संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक क्रियाओं की पहचान की जाती है । इसके बाद इन सभी क्रियाओं को उनकी प्रकृति आकार उद्देश्य, उत्तरदायित्वों के आधार पर उप-क्रियाओं में विभाजित क्रिया जाता है । संस्था की आवश्यकताओं के अनुसार इन्हें और भी छोटी-छोटी क्रियाओं में विभक्त किया जा सकता है ।
(ii) क्रियाओं का समूहीकरण करना (Grouping of Activities):
इसके अन्तर्गत सामान्यतया सबसे पहले समान प्रकार की तथा सम्बन्धित क्रियाओं को एक समूह में रखा जाता है । क्रियाओं के इस समूहीकरण से विभागों का निर्माण होता है क्योंकि सभी मिलती-जुलती क्रियाओं को एक विभाग में रखा जाता है ।
जैसे उत्पादन विभाग में उत्पादन से सम्बन्धित तथा विपणन विभाग में विक्रय आदि से सम्बन्धित सभी सम्बन्धित क्रियाओं को रखा जाता है । क्रियाओं को समूहों अथवा वर्गों में विभाजित करने के अनेक आधार होते हैं, जैसे: विभाग का क्षेत्र, ग्राहक की सन्तुष्टि अथवा उत्पादन के तरीके, आधार हो सकते है ।
(iii) कार्यों का आबंटन (Allotment of Work):
क्रियाओं का समूहीकरण करने के बाद विभिन्न व्यक्तियों को उनकी योग्यता तथा रुचि के अनुसार कार्य सौंपा जाता है और उनके उत्तरदायित्व की सीमा भी निर्धारित कर दी जाती है ।
(iv) अधिकारों का सौंपना (Delegation of Authority):
इसके पश्चात् कर्मचारियों को आवश्यक अधिकार सौंपे जाते हैं ताकि व अपने कार्यों को सुचारु रूप से कर सकें तथा अपने उत्तरदायित्व को निभा सकें । ये अधिकार कर्मचारी के पद उसके उत्तरदायित्व तथा उसके कार्य की प्रकृति के अनुसार सौंपे जाने चाहिए ।
(v) समन्वय तथा एकीकरण (Co-Ordination and Integration):
संगठन प्रक्रिया का अन्तिम चरण विभिन्न विभागों, उप-विभागों, समूहों तथा कर्मचारियों की क्रियाओं में समन्वय तथा एकीकरण को स्थापित करना होता है । इसकी आवश्यकता इसलिए है कि संस्था के सभी पद तथा विभाग मिलकर संस्था के सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति में अग्रसर हो सकें । अधिकार सत्ता सम्बन्धों तथा सन्देशवाहन की व्यवस्थाओं के माध्यम से संस्था के विभिन्न पदों व क्रियाओं के बीच समन्वय एवं एकीकरण की स्थापना की जाती है । कुछ विद्वान उद्देश्यों को निर्धारित करना भी संगठन की प्रक्रिया का एक कदम मानते हैं ।
Essay # 5. आदर्श संगठन के लिए आवश्यक बातें (Essential Requirements for a Sound Organisation):
एक अच्छा संगठन वही माना जाता है जो संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक सिद्ध हो । इसी भाव को कूण्ट्ज एवं ओ’ डोनेल ने इन शब्दों में व्यक्त किया है, संगठन स्वयं में एक साध्य नहीं अपितु साधन है । किसी भी संगठन की स्थापना एवं उसके अस्तित्व को बनाए रखने का औचित्य उसकी उत्तमता से नहीं बल्कि व्यवहारिकता तथा उपक्रम के उद्देश्यों की पूर्ति क्षमता से सिद्ध होता है ।” पीटर एफ. ड्रकर के अनुसार- ”श्रेष्ठ संगठन वह है जो साधारण व्यक्तियों को असाधारण कार्य करने में मदद करता है ।”
अतएव एक अच्छे संगठन में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए:
(1) उद्देश्यों की प्राप्ति (Realisation of Objectives):
संगठन किसी भी संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति का साधन है । अत: उसे इनकी प्रगति के लिए सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिए ।
(2) कार्यों का स्वस्थ समूहीकरण (Harmonious Grouping of Functions):
किसी अच्छे संगठन की दूसरी विशेषता यह है कि यह संस्था के कार्यों का समूहीकरण इस प्रकार करे जिससे वे कम-से-कम असुविधाजनक व न्यूनतम समय में किए जा सकें तथा उनमें समन्वय भी स्थापित किया जा सके यह सारा कार्य नियमानुसार तथा योजनाबद्ध ढंग से होना चाहिए ।
(3) कर्त्तव्यों एवं दायित्वों का स्पष्ट आबंटन (Clear Allocation of Duties and Responsibilities):
प्रत्येक प्रबन्धक, अधिकारी, पर्यवेक्षण तथा कर्मचारी को स्पष्ट रूप से परिभाषित उनके कर्त्तव्यों एवं दायित्व सौंपे जाने चाहिए । इसके साथ-साथ उन्हें अपने कार्य-क्षेत्र तथा सीमाओं, वे किसके प्रति उत्तरदायी हैं तथा उनके प्रति कौन उत्तरदायी हैं, आदि बातों के सम्बन्ध में पूरी जानकारी दी जानी चाहिए ।
(4) नियन्त्रण की अचित सीमा (Responsible Span of Control):
प्रबन्ध के प्रत्येक स्तर पर सम्बन्धित अधिकारी के नियन्त्रण में अधीनस्थों की उचित संख्या होनी चाहिए यह संख्या संस्था के कार्य की प्रकृति एवं आवश्यकता के अनुसार निर्धारित की जानी चाहिए एक प्रबन्धक एक समय में कुछ सीमित अधीनस्थ कर्मचारियों के कार्य का कुशलतापूर्वक नियन्त्रण कर सकता है इसलिए एक प्रबन्धक के नियन्त्रण में कर्मचारियों की संख्या 5 या 6 से अधिक नहीं होनी चाहिए ।
(5) विकास एवं विस्तार की व्यवस्था (Scope for Development and Expansion):
एक अच्छे संगठन में संस्था के विकास एवं विस्तार की व्यवस्था अवश्य होनी चाहिए । इसमें लोच भी होना चाहिए ताकि परिस्थितियों के अनुसार उसमें परिवर्तन करना सम्भव हो ।
(6) प्रभावशाली सन्देशवाहन (Effective Communication):
प्रबन्ध के क्षेत्र में सन्देशवाहन का व्यापक महत्व है । इसलिए संगठन के प्रत्येक स्तर पर एक प्रभावशाली सन्देशवाहन की व्यवस्था होना नितांत आवश्यक है । सन्देश द्विमार्गीय (Two Way) होना चाहिए । आदेश ऊपर में नीचे व सुझाव शिकायत आदि नीचे से ऊपर की ओर होने चाहिए ।
(7) विशिष्टीकरण (Specialisation):
जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि विशिष्टीकरण संगठन का अभिन्न अंग है । इसलिए विशिष्टीकरण के अन्तर्गत प्रत्येक कर्मचारी को उसकी रुचि तथा योग्यता के अनुसार कार्य दिया जाना चाहिए ।
(8) कार्य सन्तुष्टि का विकास (Promotion of Job Satisfaction):
उत्पादन के विभिन्न पटकी में मानवीय घटक महत्वपूर्ण होते है । इसलिए संगठन की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वह वहाँ तक अपने कर्मचारियों को कार्य सन्तुष्टि प्रदान करता है । संगठन को इस दिशा में निरन्तर प्रयत्नशील रहना चाहिए ।
(9) समन्वय (Co-Ordination):
एक अच्छा संगठन संस्था के विभिन्न विभागों व उप-विभागों, कार्यों व उप-कार्यों में समन्वय स्थापित करने में समर्थ होना चाहिए ।
(10) क्रियान्वित करने में सुगम (Easy to Execute):
एक अच्छे संगठन की एक विशेषता यह भी होनी चाहिए कि उसमें कार्य बड़ी आसानी से तथा मितव्ययिता से हो सके । अन्य शब्दों में संगठन सरल और व्यावहारिक होना चाहिए ।
(11) समन्वय (Co-Ordination):
एक आदर्श अथवा संगठन ऐसा होना चाहिए जो दीर्धकाल तक चलता रहे ।
(12) संगठनात्मक सन्तुलन (Organisational Balance):
एक स्वस्थ संगठन वह है जिसके विभागों, व्यक्तियों की क्रियाओं, साधनों तथा उद्देश्यों में सन्तुलन हो । साधनों और कार्यों का बंटवारा आनुपातिक हो अर्थात् योगदान के अनुपात में हो ।
(13) मानव शक्ति का अधिकतम उपयोग (Fullest Utilisation of Man Power):
एक स्वस्थ संगठन का एक गुण यह भी है कि संस्था में उपलब्ध श्रम-शक्ति का अधिकतम एवं मितव्ययी उपयोग हो सके ।
“निष्कर्ष रूप में पीटर एफ. ड्रकर (Perer F.Drucker) का कथन महत्वपूर्ण है, स्वर्वोत्तम संगठन वह है जो सामान्य व्यक्तियों को असामान्य कार्य करने में सहायता करता है ।” वास्तव में आदर्श संगठन वह है, जिसमें आदर्श संगठन के सभी सिद्धान्तो का पालन किया जाए ।
Essay # 6. बुरे संगठन के दोष (Defects of Bad Organisation):
श्री पीटर एफ. ड्रकर (Peter F. Drucker) के शब्दों में- “गलत संगठन संरचना व्यावसायिक निष्पादन को रोकती हैं तथा यहाँ तक कि उसे नष्ट तक कर देती है ।”
एक बुरे संगठन के निम्नलिखित गम्भीर परिणाम निकलते हैं:
(1) समन्वय का अभाव रहता है ।
(2) कार्य में लाल फीताशाही को बल मिलता है ।
(3) सम्पूर्ण लक्ष्यों की प्राप्ति में असमर्थता का अनुभव होना ।
(4) सम्बन्धों की स्पष्ट व्याख्या का नहीं होना ।
(5) निर्णय धीमे तथा निम्न श्रेणी के होना ।
(6) अधिकार तथा उत्तरदायित्व में साम्य का अभाव ।
(7) औपचारिकताओं की भरमार होना ।
(8) गलत क्रियाओं का सम्पन्न होना ।
(9) प्रयत्नों का अपव्यय होना ।
(10) सरल संगठन तालिका के स्थान पर जटिल एवं कठिन संगठन तालिका का निर्माण होना ।
(11) भ्रष्टाचार अनैतिकता एवं बेईमानी का पनपना ।
(12) कर्मचारियों के मनोबल (Morale) का गिरना ।
(13) रचनात्मक तथा सृजनात्मक विचारी को प्रोत्साहित नहीं किया जाना ।
(14) उच्च प्रबन्धकों का दैनिक कार्यों (Routine Work) में फँसे रहना ।