Here is an essay on ‘Workers’ Participation in Management’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Workers’ Participation in Management’ especially written for school and college students in Hindi language.

Workers’ Participation in Management


Essay Contents:

  1. प्रबन्ध में श्रमिकों की भागीदारी की अवधारणा (Concept of Workers’ Participation in Management)
  2. प्रबन्ध में श्रमिकों की भागदारी के उद्देश्य (Objectives of Workers’ Participation in Management)
  3. प्रबन्ध में श्रमिकों की भागीदारी का महत्व (Importance of Workers’ Participation in Management)
  4. भागीदारी की असफलता के कारण (Causes of the Failure of Participation)
  5. प्रबन्ध में श्रमिकों की भागीदारी को सफल बनाने के लिए सुझाव (Suggestion for the Success of Workers’ Participation in Management)


Essay # 1. प्रबन्ध में श्रमिकों की भागीदारी की अवधारणा (Concept of Workers’ Participation in Management):

आधुनिक युग में किसी भी व्यवसाय की सफलता केवल उरपके आर्थिक एवं सामाजिक वातावरण पर ही निर्भर नहीं करती वरन् उसके सदस्यों की सहयोग की भावना पर भी निर्भर करती है । कर्मचारियों का सहयोग संतोष के वितरण अथवा निर्माण पर निर्भर करता है ।

व्यवसाय द्वारा कर्मचारियों को उनके कार्य के प्रतिफलस्वरूप पारिश्रमिक दिया जाता है । यह पारिश्रमिक अपने आप में संतोष नहीं होता अपितु यह संतोष का एक साधन मात्र होता है, और कर्मचारी सन्तोष प्राप्त करने के लिए पारिश्रमिक द्वारा प्राप्त धन का व्यवसाय से बाहर उपयोग करता है ।

यही बात व्यवसाय द्वारा प्रदान की गयी अवकाश बीमा पेप्शन तथा मनोरंजन की सुविधाओं के लिए भी लागू होती हैं । यह बात कुल आश्चर्यजनक लगती है, कि कर्मचारियों से अधिक उत्पादन कराने के लिए जो भी सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं, उन सुविधाओं द्वारा उत्पन्न होने वाला संतोष कर्मचारियों को अपना निश्चित कार्य करने के पश्चात् अन्य स्थितियों में पहुँचने पर ही मिलता है ।

उदाहरणार्थ, किसी व्यवसाय में प्रत्येक सप्ताह कर्मचारियों के मनोरंजन के लिए फिल्म दिखाने का आयोजन किया जाता है । फिल्म देखने का कार्य कर्मचारी द्वारा अपने पद से सम्बन्धित कार्यों को समाप्त करने के पश्चात् ही किया जाता है, अर्थात् कर्मचारी फिल्म देखने के लिए अवकाश काल में ही जाते हैं ।

इस प्रकार इस सुविधा द्वारा जो संतोष उत्पन्न हुआ, वह कर्मचारी के कार्य के समय के बाहर ही उत्पन्न हुआ है, और इसका परिणाम यह हो सकता है कि कार्य को कर्मचारी एक प्रकार का दण्ड माने और संतोष प्राप्त करने के लिए कार्य के बाहर साधनों की खोज करे ।

कर्मचारियों को कार्य द्वारा ही सन्तोष प्रदान करने के लिए प्रबन्ध सम्बन्धी नीतियों में परिवर्तन करने की आवश्यकता होती है, और यह संतोष कर्मचारियों में व्यवसाय के प्रति अपनेपन की भावना उत्पन्न करके ही प्रदान किया जा सकता है ।

कर्मचारियों को प्रबन्ध के मामलों में भाग लेने का अधिकार देने से भी यह भावना उदय हो सकती है । औद्योगिक प्रबन्ध में श्रमिकों की भागीदारी द्वारा कर्मचारियों में अपने कार्य को दण्ड मात्र मानने की भावना समाप्त हो जाती है, और उनकी सोई हुई शक्तियाँ व्यवसाय के हित में जागृत हो जाती हैं । कर्मचारी कार्य के समय को बन्धन न मानते हुए अपना एवं अपने परिवार का कार्य मानने लगता है ।

श्रमिकों की भागीदारी के अन्तर्गत श्रमिकों को प्रबन्ध की नीतियों एवं कार्यो की आलोचना करने एवं व्यवसाय के संचालन, उत्पादन तात्रिकताओं एवं कल्याण कार्यक्रमों में सुधार करने के लिए सुझाव देने की स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है । इस प्रकार प्रबन्ध और कर्मचारियों में घनिष्ठ सम्पर्क स्थापित हो जाता है, और वह सामूहिक रूप से अपने उद्योग के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रयत्न करते हैं ।

वास्तव में श्रमिकों की भागीदारी का अर्थ विभिन्न व्यवसायों एवं विभिन्न देशों में अलग-अलग समझा जाता है । किसी क्षेत्र की औद्योगीकरण की गति, औद्योगिक सम्बन्धों, प्रबन्ध की जागृति एवं प्रशिक्षण तथा श्रमिकों की जागरूकता के आहगर पर इस भागीदारी का स्तर एवं मात्रा निर्धारित की जाती है ।

उद्योगों में श्रमिकों को उत्पादन का साधन मानने के साथ-साथ यदि एक मानव भी माना जाय तो औद्योगिक सम्बन्धों की समस्याएँ बड़ी सुविधा के साथ हल की जा सकती हैं । वास्तव में औद्योगिक सम्बन्धों से तीन पक्ष-श्रम, प्रबन्ध एवं राज्य घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होते हैं ।

यदि प्रबन्ध और श्रम एक परिवार के रूप में कार्य करें तो राज्य की समस्याएँ इस सम्बन्ध में नाममात्र की रह जाती हैं । उद्योगों में सामूहिक पारिवार की भावना का उत्पन्न होना अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि इसके सदस्यों में यदि एकता की भावना उत्पन्न न हो सकी तो औद्योगिक शान्ति का वातावरण उत्पन्न नहीं हो सकेगा और उद्योगों के उद्देश्यों की पूर्ति भी नहीं हो सकेगी ।

प्रबन्ध में श्रमिकों की भागीदारी की व्यवस्था औद्योगिक प्रजातन्त्र का मूल अंग मानी जाती है । श्रमिकों की भागीदारी का अर्थ विभिन्न प्रकार से समझा जाता है । प्रबन्ध इसका अर्थ निर्णय करने से पूर्व किये जाने वाले संयुक्त परामर्श से लेता है, दूसरी ओर श्रमिक भागीदारी का अर्थ सह-निर्णय एवं सह-निश्चय समझते हैं ।

सरकार एवं प्रकश विशेषज्ञ भागादारी को श्रम एवं प्रबन्धक का सहचर्य मानते हैं, जिसमें निर्णय करने का अंतिम अधिकार अथवा दायित्व सम्मिलित नहीं होता है । विश्लेषण के दृष्टिकोण से श्रमिकों की भागीदारी प्रबन्ध सम्बन्धी क्रियाओं से सम्बद्ध अधिकारों, दायित्वों के प्रतिनिधिकरण (Delegation) की एक प्रक्रिया होती है ।

इसके अन्तर्गत निर्णय करने में सत्ता की नीचे के श्रेणी के कर्मचारियों को भागीदार बनाया जाता है । कीथ डेविस के अनुसार, ”यह एक व्यक्ति का मानसिक एवं भावनात्मक अपने समूह के प्रति लगाव है, जो उसे उद्देश्य प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है, तथा समूह के अन्तर्गत अपनी जिम्मेदारी भी समझता है ।”

मैमोरिया के अनुसार, ”यह एक संचार एवं परामर्श की औपचारिक एवं अनौपचारिक विधि है, जिसकी सहायता से संगठन के कर्मचारियों को सूचना दी जाती हैं, तथा वे इसके द्वारा अपनी सलाह पेश कर सकते हैं, और इस तरह से कर्मचारी प्रबन्धकीय निर्णयों में अपना योगदान देते हैं ।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के आहगर पर कर्मचारियों को प्रबन्ध में भागीदारी के निम्न लक्षणों की पहचान की जा सकती है:

(1) शारीरिक उपस्थिति की बजाए कर्मचारियों की मानसिक एवं भावनात्मक उपस्थिति होती है ।

(2) कर्मचारी प्रबन्ध में व्यक्तिगत रूप से भाग नहीं लेते हैं, बल्कि उनका प्रतिनिधि भाग लेता है ।

(3) प्रबन्ध में कर्मचारी की भागीदारी इस सिद्धान्त पर आधारित है, कि कर्मचारी का भाग्य कार्य के स्थान से जुड़ा हुआ है ।

(4) प्रबन्ध में कर्मचारियों की भागीदारी औपचारिक एवं अनौपचारिक हो सकती है । दोनों ही परिस्थितियों में कर्मचारी को अपने विचार एवं परामर्श देने का अधिकार होता है ।

(5) कर्मचारी भागीदारी सामूहिक सौदेबाजी से भिन्न है ।

(6) भागीदारी के चार स्तर हो सकते हैं:

(i) कार्य के स्थान पर भागीदारी,

(ii) प्लांट के स्तर पर भागीदारी,

(iii) विभागीय स्तर पर भागीदारी, और

(iv) निगमीय स्तर पर भागीदारी ।


Essay # 2. प्रबन्ध में श्रमिकों की भागदारी के उद्देश्य (Objectives of Workers’ Participation in Management):

प्रबन्ध में श्रमिकों की भागदारी से निम्न उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता मिलती है:

(1) आर्थिक उद्देश्य (Economic Objectives):

इसमें नियोक्ता एवं कर्मचारियों के बीच सहयोग बढ़ता है, जिसके कारण उत्पादकता में भी वृद्धि होती है । उत्पादकता में वृद्धि कार्य सन्तुष्टि एवं अच्छे औद्योगिक सम्बन्धों में सुधार करके जा सकती है ।

(2) सामाजिक उद्देश्य (Social Objectives):

इसके अन्तर्गत उद्योग को एक सामाजिक संस्थान समझा जाता है, जिसमें प्रत्येक श्रमिक का अपना हित होता है । प्रबन्ध में भागीदारी से श्रमिकों का मान बढ़ता है, और समाज में उनकी इज्जत में भी वृद्धि होती है ।

(3) मनोवैज्ञानिक उद्देश्य (Psychological Objectives):

प्रबन्ध में श्रमिकों की भागीदारी से उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन आता है । श्रमिकों के अन्दर यह भावना उत्पन्न होती है, कि वे सभी संगठन का भाग हैं, तथा अपनी अमौद्रिक माँगों को पूरा कर लेते हैं ।


Essay # 3. प्रबन्ध में श्रमिकों की भागीदारी का महत्व (Importance of Workers’ Participation in Management):

इसके निम्नलिखित लाभ हैं:

(1) आपसी समझ (Mutual Understanding):

भगिादारी (Participation) दो पक्षों को निकट लाती है, जिससे वे एक-दूसरे की समस्याओं को समझते है । परिणामस्वरूप, नियोक्ता एवं कर्मचारियों के मद्यप अच्छी समझ एवं आपसी विश्वास की स्थापना की जा सकती है ।

(2) उच्च उत्पादकता (Higher Productivity):

प्रबन्ध और श्रम के मध्य सहयोग के कारण उत्पादकता में वृद्धि होती है, जिसके कारण उद्योग में लाभ की स्थिति भी सुधरती है । भागीदारी से कर्मचारियों को कार्य सन्तुष्टि तथा अभिप्रेरणा मिलती है, जिससे उनकी कार्य कुशलता में वृद्धि होती है ।

(3) औद्योगिक शान्ति (Industrial Peace):

प्रबन्ध में श्रमिकों की भागीदारी में औद्योगिक विवादों में कमी आती है, तथा कर्मचारियों की संगठन के प्रति निष्ठा में वृद्धि होती है ।

(4) परिवर्तन का कम विरोध (Less Resistance to Change):

श्रमिक अधिकतर डर एवं उपेक्षा की वजह से परिवर्तन का विरोध करते हैं । जब श्रमिक प्रबन्धकीय निर्णयों के भागीदार बन जाते हैं, तो वे ऐसे परिवर्तनों का कम विरोध करते हैं ।

(5) सृजनात्मक एवं नवीनीकरण (Creativity and Innovation):

भागीदारी श्रमिकों को सोचने के लिए प्रोत्साहित करती है । इसकी सहायता से उनके गुण एवं योग्यता का प्रयोग किया जा सकता है ।


Essay # 4. भागीदारी की असफलता के कारण (Causes of the Failure of Participation):

(1) संयुक्त परिषद् की सफलता के लिए दीर्घकाल में रहने वाले अच्छे औद्योगिक सम्बन्ध आवश्यक हैं । भारत में अनुशासन संहिता (Code of Discipline) के होते हुए भी बहुत कम ऐसी औद्योगिक इकाइयाँ हैं, जिनमें हड़ताल, प्रदर्शन आदि न होते हों ।

(2) श्रमिकों में शिक्षा एवं प्रशिक्षण की कमी के कारण श्रमिकों की भागीदारी केवल उत्पीड़न को व्यक्त करने की संस्था बन गई है, और जब इन परिषदों द्वारा श्रमिकों की सम्भावना के अनुसार उन्हें लाभ नहीं पहुँचता तो वे इन परिषदों को व्यर्थ की संस्था मानने लगते हैं ।

श्रमिकों में इन परिषदों के मूलभूत आदर्शों एवं उद्देश्यों को समझने की योग्यता नहीं है, और जब तक वे यह योग्यता अर्जित न कर लें उनकी भागीदारी द्वारा सम्भावित फल प्राप्त नहीं हो सकते ।

(3) भारत में श्रम संघों द्वारा संयुक्त परिषदों का विरोध किया जाता है । श्रम संघों के नेता यह मानते हैं, कि संयुक्त प्रबन्ध परिषदों की स्थापना से उनके अधिकारों एवं महत्च को क्षति पहुँचती है । वे यह महसूस करते हैं, कि श्रमिकों की प्रबन्ध में भागीदारी धीरे-धीरे श्रमिकों पर से उनका प्रभाव समाप्त कर देगी और श्रम संघ एवं नेताओं को महत्वहीन स्थिति में पहुँचा देंगी ।

(4) देश में अन्तर संघीय शत्रुता एवं वैमनस्यता भी संयुक्त प्रबन्ध परिषदों एवं कार्य समितियों की असफलता का कारण है ।

(5) कर्मचारियों के प्रतिनिधियों की अकुशलता एवं अयोग्यता भी भागदारी के असफल होने का कारण है ।

(6) कार्य स्थानों पर श्रम कानून के प्रावधानों के अनुसार कार्य किया जाता है, इसलिए श्रमिक भागीदारी की आवश्यकता को महसूस नहीं करते हैं ।

(7) उच्च स्तरीय निर्णयों में श्रमिकों को शामिल नहीं किया जाता है ।

(8) श्रम संघों के नेता राजनीतिक पार्टी से सम्बन्ध रखते हैं, इसलिए वे प्रबन्ध के साथ विचार-विमर्श में राजनीतिक हितों को सर्वोपरि रखते हैं ।


Essay # 5. प्रबन्ध में श्रमिकों की भागीदारी को सफल बनाने के लिए सुझाव (Suggestion for the Success of Workers’ Participation in Management):

भागीदारी को सफल बनाने के लिए निम्न कदम उठाने चाहिए:

(1) सफल पक्षकारों के मध्य आपसी विश्वास होना चाहिए ।

(2) प्रबन्ध की सोच कर्मचारियों के प्रति अच्छी होनी चाहिए ।

(3) एक मजबूत एवं प्रजातांत्रिक यूनियन होनी चाहिए ।

(4) श्रम संघों तथा प्रबन्ध के बीच मधुर सम्बन्ध होने चाहिए ।

(5) भागीदारी प्रबन्ध के सभी स्तरों पर होनी चाहिए ।

(6) संगठन की संचार व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए ।

(7) दोनों पक्षों को सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए ।

(8) सरकार एवं प्रबन्ध को श्रमिकों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए ।

(9) भागीदारी से होने वाले लाभों के प्रति दोनों पक्ष जागरूक होने चाहिए ।


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