Read this article in Hindi to learn about:- 1. Definitions of Control 2. Nature of Control 3. Need and Importance of Control 4. Conclusion to Control. 

नियन्त्रण की परिभाषाएँ (Definitions of Control):

नियन्त्रण को प्रबन्ध विशेषज्ञों ने विभिन्न प्रकार से पारिभाषित किया है ।

कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाएं निम्नलिखित हैं:

(i) हेनरी फेयोल के शब्दों में- ”नियन्त्रण का आशय यह जाँच करने से है कि प्रत्येक कार्य अपनायी गई योजनाओं, दिये गये निर्देशों तथा निर्धारित नियमों के अनुसार हो रख है या नहीं । इसका उद्देश्य (कार्य की) कमजोरियों तथा त्रुटियों का पता लगाना है, जिन्हें यथासम्भव सुधारा जा सके और (भविष्य में) उनकी पुनरावृति रोकी जा सके । नियन्त्रण हर बात वस्तुओं, व्यक्तियों तथा क्रियाओं पर लागू होता है ।”

(ii) ई.एफ.एल.ब्रेच के अनुसार- “नियन्त्रण, वर्तमान निष्पादन की, योजनाओं में समाविष्ट पूर्व-निर्धारित प्रमाप से तुलना है ताकि पर्याप्त प्रगति तथा सन्तोषजनक निष्यादन को सुनिश्चित किया जा सके तथा इन योजनाओं को कार्यान्वित करने से प्राप्त अनुभव को भावी सम्भावित क्रियाओं के लिए मार्ग-दर्शन के लिए रखना है ।”

(iii) जार्ज आर. टैरी के शब्दों में- “नियन्त्रण से आशय यह निर्धारित करना है कि क्या किया जा रहा है अर्थात् कार्यों का मूल्यांकन करना तथा यदि आवश्यकता हो तो उनमें सुधारात्मक उपाय करना ताकि कार्य निष्पादन योजना के अनुसार हो सके ।”

(iv) कूण्ट्ज व ओ’ डोनेल के अनुसार- “नियन्त्रण का प्रबन्धकीय कार्य अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा किये गये कार्यों का माप तथा उनमें आवश्यक सुधार करना होता है, जिससे कि इस खात का निश्चय हो सके कि कार्यक्रम के उद्देश्यों तथा क्योंके प्राप्त करने के लिए निर्धारित योजनाओं को कार्यान्धित किया जा रहा है या नहीं ।”

(v) बिली ई. गोज के अनुसार- “प्रबन्धकीय नियन्त्रण का आशय घटनाओं को योजनाओं के अनुसार बाध्य करने का प्रयास है ।”

(vi) मैक फारलैण्ड के शब्दों में- “नियन्त्रण का कार्य योजना के अनुसार क्रियाओं को निर्देशित करना होता है ।”

(vii) थियो हेमैन के शब्दों में- “नियन्त्रण छानबीन द्वारा यह निश्चय करने की प्रक्रिया है कि कार्य योजना के अनुसार चल रहा है या नहीं, उद्देश्यों व लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में उचित प्रगति हो रही है या नहीं और यदि कोई अन्तर हो तो उसके सुधार के लिए आवश्यक कार्यवाही करना ।”

(viii) मेरी कुशिंग नाइल्स के शब्दों में- “नियन्त्रण नियोजन का एक पहलू तथा प्रतिरूप है । जहाँ नियोजन मार्ग निर्धारित करता है, वहाँ नियन्त्रण उस मार्ग में विचलनों का अवलोकन करता है तथा पूर्व निश्चित या उचित रीति से परिवर्तित मार्ग पर वापस आने की किया प्रारम्भ कर देता है ।”

(ix) राबर्ट एन्थोनी के अनुसार- ”नियन्त्रण एक ऐसी प्रक्रिया है जो प्रबन्धकों को इस बात को आश्वासन दिलाती है कि संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए साधनों की उपलब्धि एवं उपयोग प्रभावशाली रूप में कुशलता से किया जा रहा है ।”

नियन्त्रण की परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि “नियन्त्रण प्रबन्ध प्रक्रिया का वह अंग है जो वास्तविक निष्पादन की निर्धारित प्रमापों से तुलना करता है तथा इनमें पाये जाने वाले विचलनों को दूर करने के लिए आवश्यक सुधारात्मक उपाय करता है ताकि भविष्य में इनकी पुनरावृत्ति न हो सके तथा उपक्रम की सभी क्रियाएँ निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए योजनाओं के अनुसार निर्देशित की जा सकें ।”

नियन्त्रण की प्रकृति (Nature of Control):

नियन्त्रण की प्रकृति के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातें उल्लेखनीय हैं:

(i) नियन्त्रण प्रत्येक प्रबन्धक का आवश्यक कार्य है (Control is Essential Function of Every Manager):

नियन्त्रण प्रत्येक प्रबन्धक का आवश्यक कार्य है चाहे वह मुख्य प्रबन्धक हो अथवा पर्यवेक्षक यह ठीक है कि प्रबन्ध-स्तर के अनुसार नियन्त्रण का स्वरूप विस्तार व क्षेत्र में अन्तर अवश्य पाया जायेगा । जैसे उच्च-स्तर नियन्त्रण का स्वरूप सामयिक व संकेतात्मक अधिक होता है, जबकि निम्न-स्तर पर यह नियमित व प्रत्यक्ष होता है ।

(ii) नियन्त्रण एक निरन्तर प्रक्रिया है (Control is a Continuous Process):

नियन्त्रण एक निरन्तर चलते रहने वाला कार्य है । जैसे- नियोजन एक निरन्तर प्रक्रिया है, ठीक उसी प्रकार नियन्त्रण भी एक सदैव चलते रहने वाली प्रक्रिया मानी जाती है । जब तक संस्था उद्देश्यों या लक्ष्यों को प्राप्त करने में लगी रहती है तब तक नियन्त्रण प्रक्रिया भी निरन्तर चालू रहती है । प्रबन्धक निरन्तर पूर्व-निर्धारित मार्ग व वास्तविक कार्य-निष्पादन पर नजर रखते हैं ।

(iii) नियन्त्रण एक गतिशील प्रक्रिया है (Control is a Dynamic Process):

समय के साथ-साथ संस्था के लक्ष्य, उसकी नीतियाँ, उसकी आवश्यकताएँ तथा योजनाएँ बदलती रहती हैं । अत: नियन्त्रण की भी इन बदलती परिस्थितियों के अनुकूल बनाया जाता है अन्यथा यह प्रभावशाली सिद्ध नहीं होगा । अत: नियन्त्रण को नियोजन की भांति एक गतिशील प्रक्रिया माना जाता है ।

(iv) नियन्त्रण व्यक्तियों से सम्बन्धित प्रक्रिया है (Control is a Dynamic Process):

नियन्त्रण का सम्बन्ध व्यक्तियों से होता है अर्थात् नियन्त्रण में प्रबन्धकों या पर्यवेक्षकों द्वारा कार्य-निष्पादन में लगे व्यक्तियों पर देखरेख और रोकथाम रखी जाती है । यह ठीक है कि नियन्त्रण का प्रत्यक्ष सम्बन्ध मशीन, माल व मुद्रा आदि वस्तुओं से होता है किन्तु इन वस्तुओं का प्रयोग व्यक्ति करते हैं । अत: इन व्यक्तियों की क्रियाओं पर ही नियन्त्रण लागू होता है ।

(v) नियन्त्रण प्रबन्ध प्रक्रिया का अन्तिम कार्य है (Control is the End Function of Management Process):

नियन्त्रण प्रबन्ध प्रक्रिया का अन्तिम कार्य माना जाता है अर्थात् नियन्त्रण का कार्य प्रबन्धकीय क्रियाओं के अन्त में आता है । नियन्त्रण की आवश्यकता योजना बन जाने, संगठन स्थापित हो जाने तथा काम प्रारम्भ हो जाने के बाद पड़ती है । नियन्त्रण कार्य तो हमेशा पूर्व निर्धारित लक्ष्यों, योजनाओं, नीतियों, प्रमापों, निर्णयों आदि के आधार पर किया जाता है ।

(vi) नियन्त्रण सकारात्मक कार्य है (Control is a Positive Process):

कुछ सम्बन्ध विशेषज्ञों का मत है कि नियन्त्रण एक नकारात्मक प्रकृति का कार्य है वास्तविकता यह है कि नियन्त्रण एक सकारात्मक कार्य है । यह कार्य संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक सिद्ध होता है । यह क्रियाओं को दिशाहीन होने से बचाता है तथा उनकी गति को तीव्र करता है ।

(vii) नियन्त्रण अग्रदर्शी कार्य अर्थात् आगे देखने वाला कार्य है (Control is Forward Looking):

नियन्त्रण तो आगे की जाने वाली क्रियाओं या प्रयासों का ही हो सकता है । इस प्रकार नियन्त्रण भविष्य से सम्बन्ध रखता है जो क्रियाएँ अथवा घटनाएँ भूतकाल में हो चुकी हैं उनको नियन्त्रित नहीं किया जा सकता किन्तु भूतकाल के कड़ी, सूचनाओं तथा अनुभवों के आधार पर भविष्य की क्रियाओं को नियन्त्रित करने का प्रयास किया जा सकता है । अतएव नियन्त्रण अग्रदर्शी विकास एवं सुधार की प्रक्रिया है ।

(viii) सुधारात्मक कार्यवाही ही नियन्त्रण का सार है (Corrective action is the Essence of Control):

केवल निष्पादन की जाँच तथा मूल्यांकन करना ही नियन्त्रण नहीं होता बल्कि विचलनों को दूर करने के लिए सुधारात्मक कार्यवाही करना ही नियन्त्रण का सार माना गया है ।

(ix) सूचनाएँ नियन्त्रण की मार्ग-दर्शक होती हैं (Information are the Guide of Control):

सूचनाएँ नियन्त्रण के लिए अत्यन्त आवश्यक होती हैं । इनके अभाव में नियन्त्रण करना सम्भव नहीं होता नियन्त्रण में सूचनाओं की आवश्यकता विशेष रूप से दो बार पड़ती है । एक तो कार्य के प्रमाण निर्धारित करते समय और दूसरी बार कार्यवाही करते समय । सुधारात्मक कार्यवाही तभी सम्भव है जब निश्चित मार्ग से विचलन की कोई विश्वसनीय सूचना प्राप्त हो । इस प्रकार की सूचनाओं को सूचना पुनर्निवेशन प्रणाली कहते हैं ।

‘सूचना पुनर्निवेशन प्रणाली’ से प्रबन्धक को ज्ञात होता है कि निर्धारित लक्ष्य या उद्देश्य कहाँ तक वास्तव में प्राप्त हुए हैं । यदि सूचना पुनर्निवेशन प्रणाली से पता चलता है कि निर्धारित लक्ष्य या उद्देश्य प्राप्त हो गए हैं तो उसे अपने अधीनस्थों की अवश्य ही प्रशंसा करनी होगी । ऐसा करने से अधीनस्थों का मनोबल बढ़ेगा । इसके विपरीत, यदि ‘फीड बैक’ से यह पता चलता है कि निर्धारित लक्ष्यों तथा निष्पादित लक्ष्यों में अन्तर विचलन है तब प्रबन्धक को निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सुधारात्मक कार्यवाही करनी पड़ेगी महत्वपूर्ण विचलनों को उसे उच्च प्रबन्धकों को सूचित करना पड़ेगा । इस प्रकार ‘फीडबैक’ व्यक्तियों को अपने कार्य निष्पादन में सुधार करने के लिए आवश्यक सूचना प्रदान करती है तथा उन्हें आत्म-अभिप्रेरणा (Self-Motivation) में योगदान देती है । अत: यह सूचना प्रणाली सरल, उचित व शीघ्र (Promt) होनी चाहिए ।

नियन्त्रण की आवश्यकता तथा महत्व (Need and Importance of Control):

नियन्त्रण का महत्व निम्न बातों से प्रकट हो जाते हैं:

(i) नियन्त्रण समन्वय स्थापित करने में सहायता प्रदान करता है (Control Helps the Task of Coordination):

समन्वय नियन्त्रण की सहायता से सुगम बन जाता है । पूर्व निर्धारित लक्ष्यों उद्देश्यों व प्रमापी की सहायता से नियन्त्रण समस्त संगठन को एक समन्वित रूप में काम करते हुए उन लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में अग्रसर करता है ।

नियन्त्रण के इस बिन्दु को जार्ज आर. टैरी ने इस प्रकार दर्शाया है:

“नियन्त्रण क्रियाओं की योजनाओं के अनुसार सम्पन्न होने से सहयोग देता है और यह निश्चित करता है कि उनकी दिशा ठीक है तथा विभिन्न घटकों में उचित अन्तर्सम्बन्ध बना हुआ है ताकि समन्वय की प्रप्ति हो सके ।”

(ii) नियन्त्रण भारार्पण या मिकैन्द्रीकरण में सहायता देता है (Control Helps the Process of Delegation and Decentralisation of Authority):

नियन्त्रण की आधुनिक प्रणालियों ने उच्च प्रबन्धकों को बिना नियन्त्रण खोये हुए विकेन्द्रीकरण की सीमा को बढ़ाने में सहायता प्रदान की है । यही कारण है कि नियन्त्रण को भारार्पण तथा विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया में सहयोग देने वाला कार्य माना गया है । नियन्त्रण के माध्यम से उच्चाधिकारी अपने अधिकारों का भारार्पण अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को करते हुए भी नियन्त्रण-सूत्र को अपने हाथ में बनाये रखते हैं अतएव अधिकारों का भारार्पण या विकेन्द्रीकरण तभी सम्भव हो पाता है, जबकि नियन्त्रण की उचित व्यवस्था हो ।

(iii) नियन्त्रण कर्मचारियों के मनोबल को बढ़ाता है (Control Enhances Employee’s Morals):

डाल्टन ई. मक फाररलैण्ड लिखते हैं कि कर्मचारी स्थिति को पसन्द नहीं करते जो कि नियन्त्रित न हों ? ऐसा होने पर वे यह अनुमान नहीं लगा सकते कि उनके प्रति क्या होगा ? वे लाभकारी बनने के बदले स्वेच्छाचारिता के शिकार बन जाते हैं । अत: नियन्त्रण न होने पर कर्मचारियों का मनोबल गिरता है । इसलिए नियन्त्रण किसी संस्था के कर्मचारियों का मनोबल बनाए रखने के लिए आवश्यक होता है ।

(iv) नियन्त्रण निर्णय लेने में सहयोग देता है (Control Facilitates Decision Making):

नियन्त्रण उच्च प्रबन्ध को निर्णय लेने में महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करता है । व्यवहार के लिए जाने वाले अधिशासी निर्णय प्राथमिक तौर पर ‘नियन्त्रण निर्णय’ ही होते है ।

(Executive Decisions are Considered to be Primarily Control Decisions) व्यवहार में देखा जाए तो उच्च प्रबन्ध द्वारा लिए गए निर्णय ही नियन्त्रण का रूप होता है । अत: नियन्त्रण व निर्णयन में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है । इसलिए उचित निर्णय लेने के लिए नियन्त्रण व्यवस्था प्रभावशाली होनी चाहिए ।

(v) नियन्त्रण अभिप्रेरणा का साधन है (Control is Means of Motivation):

नियन्त्रण से यह पता लग जाता है कि कौन-सा कर्मचारी कुशल है और कौन-सा अकुशल, कौन-सा अच्छा कार्य करता है और कौन काम से जी चुराता है अतएव कुशल कर्मचारियों की प्रशंसा करके उन्हें अभिप्रेरित किया जा सकता है तथा अकुशल या काम से जी चुराने वाले कर्मचारियों को दण्ड देकर उन्हें कुशलतापूर्वक काम करने के लिए अभिप्रेरित किया जा सकता है ।

(vi) नियोजन योजनाओं व लक्ष्यों की व्यावहारिकता का परीक्षण करता है (Control Tests the Feasibility of Plans and Objectives):

संस्था की बनाई गई योजनाओं की व्यावहारिकता नियन्त्रणा द्वारास्पष्ट प्रकट होती है । अनावश्यक तौर पर ऊंचे लक्ष्यों अथवा अव्यावहारिक नीतियों व निर्देशों से शीघ्र ज्ञान हो जाता है आवश्यक होने पर लक्ष्य पुनर्निरीक्षित कर दिये जाते हैं और निष्पादन सुनिश्चित हो जाता है ।

(vii) नियन्त्रण भावी योजनाओं का मार्ग-दर्शन करता है (Control is Guide for Future Plans):

वर्तमान योजनाओं को लागू करने से प्राप्त अनुभवी व परिणामों का विवरण रखा जाता है जो भावी योजनाओं व क्रियाओं का पथ-प्रदर्शन करता है । साथ ही वर्तमान नियोजन की त्रुटियों को दूर करने तथा योजना की प्रभावशीलता को बनाये रखने के लिए भी नियन्त्रण आवश्यक है ।

(viii) नियन्त्रण अवाँछित क्रियाओं पर रोक लगाता है (Control Checks the Various Undesirable Activities):

एक प्रभावशाली नियन्त्रण व्यवस्था किसी भी संस्था में पाई जाने वाली अवरित क्रियाओं जैसे- चोरी, भ्रष्टाचार, अनैतिकता, कार्य में देरी आदि पर रोक लगाती है तथा अनुशासन को बनाये रखती है ।

(ix) नियन्त्रण प्रबन्ध के अन्य कार्यों को लागू करने में सहायता करता है (Control Helps Carrying Out Other Functions of Management):

नियन्त्रण, नियोजन तथा संगठन की परख करता है । यह नियोजन के दोषी को बताता है जिसके फलस्वरूप संगल, निशान, नियुक्तियों आदि में पाई जाने वाली दुर्बलताओं तथा सीमाओं को ज्ञात किया जा सकता है । नियन्त्रण सन्देथ्वाइन को भी दृढ़ करता है और प्रबन्ध की सम्पूर्ण प्रक्रिया को सफल बनाता है ।

(x) नियन्त्रण का अन्य क्षेत्रों में महत्व (Importance of Control in Other Fields):

(a) व्यापार में बढ़ते हुए आकार तथा इसमें बढ़ती हुई जटिलताओं ने भी नियन्त्रण के महत्व को और बढ़ा दिया है ।

(b) नियन्त्रण जोखिम से सुरक्षा प्रदान करने का एक महत्वपूर्ण बीमा साधन है ।

(c) नियन्त्रण लागत में कमी लाता है ।

(d) नियन्त्रण संस्था द्वारा बनायी गई तथा बेची जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की किस्म को प्रमाणित करता है ।

नियन्त्रण का निष्कर्ष (Conclusion to Control):

“नियन्त्रण ही व्यावसायिक प्रबन्ध की आत्मा है । यह प्रधन्ध के सभी कार्यों में व्याप्त है । व्यावसायिक प्रबन्ध का प्रभावी नियोजन और कुशल संगठन निर्देशन पर्यवेक्षण, समन्यय और नेइत्य नियन्त्रण के ही ऋणी है । व्यवसाय के निर्दिष्ट लक्ष्य की प्राप्ति प्रभावी नियन्त्रण का ही परिणाम है ।”

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