Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning and Definitions of Effective Communication 2. Model For Effective Communication 3. Essential Elements 4. Importance 5. Limitations.
Contents:
- प्रभावी संचार का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Effective Communication)
- प्रभावी संचार का मॉडल (Model For Effective Communication)
- प्रभावी संचार के आवश्यक तत्त्व (Essential Elements of an Effective Communication)
- प्रभावी संचार का महत्त्व (Importance of Effective Communication)
- प्रभावी संचार की सीमाएं (Limitations of Effective Communication)
1. प्रभावी संचार का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Effective Communication):
प्रभावी संचार किसी भी व्यवसाय के लिए जीवन रक्त है क्योंकि संचार प्रक्रिया में जब एक सन्देश सम्प्रेषक (Sender) से प्राप्तकर्त्ता (Receiver) की ओर प्रवाहित अथवा संचारित होता है तो इसके प्रवाह में सम्प्रेषक के व्यवहार का अंश भी प्रवाहित होता है ।
संचार को तभी प्रभावी माना जाता है जब वह दूसरे व्यक्ति पर अपना महत्त्वपूर्ण प्रभाव छोड़ता है तथा वे सभी उद्देश्य प्राप्त करता है जिनके लिए संचार किया जाता है । मौखिक या लिखित रूप से प्रभावी संचार करना एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कौशल है । एक संचार को प्रभावी होने के लिए आवश्यक है कि वह स्पष्ट हो सक्षेप में हो तथा अर्थ पूर्ण हो अर्थात् उसमें किसी भी प्रकार की अशुद्धता न हो व उसकी प्रतिक्रिया अथवा प्रतिपुष्टि (Feedback) पूर्ण व अनुकूल हो ।
परिभाषा (Definition):
हैनेयागर व हेकरमैन (Haneyagar and Heckermann) के अनुसार-“प्रभावी संचार वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सूचना भेजी व प्राप्त की जाती है । यह प्रबन्ध के लिए आधारभूत व्यवस्था है जिसके बिना संगठन का अस्तित्व ही नहीं रह सकता इसका कारण अत्यन्त स्पष्ट है कि यदि हम अपने कर्मचारियों के साथ संवाद नहीं कर सकेंगे तो हम किस प्रकार का काम चाहते हैं, यह सूचित नहीं कर सकेंगे ।”
संचार केवल सूचनाओं को भेजने तक ही सीमित नहीं होता वरन् उसका प्राप्तकर्त्ता (Receiver) पर क्या प्रभाव पड़ा इस पर भी निर्भर है । प्रत्येक भेजे गये सन्देश का कोई-न-कोई उद्देश्य अवश्य होता है । यदि संचार से इस उद्देश्य की पूर्ति हो जाती है तब हम उसे प्रभावी संचार कहेंगे अन्यथा वह श्रम व धन का अपव्यय माना जायेगा ।
के. ओ. लोकर (K॰O॰ Locker) के शब्दों में- “प्रभावी संचार वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्तियों तथा संगठनों के बीच में सूचित करने निवेदन करने या प्रेरित करने या प्रतिष्ठ में वृद्धि करने के लिए सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है । यह स्पष्ट पूर्ण तथा सही होती है एवं अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक होती है ।”
प्रभावी संचार के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति को संचार शृंखलाओं का पर्याप्त ज्ञान हो तथा प्रत्येक अधिकारी के पास निश्चित संचार प्रणाली व शृंखला उपलब्ध हो । इसके लिए यह आवश्यक है कि संचार केन्द्रों पर जो कर्मचारी कार्य करते हैं वे सक्षम हों तथा उनके द्वारा दिए गए आदेश स्पष्ट, पूर्ण तथा सही ही वास्तव में प्रभावी संचार भेजने तथा प्राप्त करने वाले की कला पर निर्भर करता है ।
2. प्रभावी संचार का मॉडल (Model For Effective Communication):
वर्धमान एवं वर्धमान (Vardhaman & Vardhaman) के अनुसार- प्रभावपूर्ण संचार का आधार अंग्रेजी वर्णमाला व पाँच अक्षरों PRIDE मॉडल द्वारा प्रकट किया जा सकता है ।
(i) उद्देश्य (Purpose):
संचार प्रक्रिया में संचार का मुख्य उद्देश्य अपने लक्ष्य (Goal) की प्राप्ति है । यदि संचारक अपने उद्देश्य के प्रति सजग नहीं है तो संचार स्वत: ही असफल हो जायेगा ।
(ii) प्राप्तकर्त्ता (Receiver):
प्राप्तकर्त्ता से हमारा आशय सन्देश प्राप्तकर्त्ता का वह स्रोत होता है जिसमें सन्देश के प्रति सम्मति (समझ) की क्षमता निहित होती है । एक संचारक को सदैव अपने प्राप्तकर्त्ता की योग्यता, मानसिकता एवं समर्थता का ज्ञान होना चाहिए ।
(iii) प्रभाव (Impact):
प्रभाव से हमारा अभिप्राय एक सम्प्रेषक (Communicator) द्वारा अपने सन्देश को प्राप्तकर्त्ता तक, जिस रूप में वह सन्देश पहुँचाना चाहता है, पहुँचाना है । इस तरह वह अपने उद्देश्य में सफल होता है ।
(iv) रूपरेखा (Design):
रूपरेखा से हमारा तात्पर्य एक सम्प्रेषक द्वारा अपने सन्देश के वास्तविक स्वरूप अथवा प्रभाव को अंकित करने के लिए अपनाई गई रूपरेखा अथवा योजना से है ।
(v) निष्पादन (Execution):
निष्पादन से हमारा तात्पर्य एक सम्प्रेषक के द्वारा सन्देश के सफल प्रवाह (Flow) के लिए अपनाई गई योजना के वांछित निष्पादन अथवा क्रियान्वयन से है ।
प्रभावपूर्ण संचार का प्राइड (PRIDE) मॉडल इस तथ्य को प्रमाणित करता है कि एक प्रभावपूर्ण संचार के लिए पूर्व निर्धारित योजना अथवा रूपरेखा (Outlines) का सफल क्रियान्वयन (निष्पादन) अत्यन्त आवश्यक है ताकि सन्देश की सम्पूर्णता, सन्देश का समय पर संचारण ही संचार के वांख्ति लक्ष्य की प्राप्ति कर प्राप्तकर्त्ता पर अनुकूल प्रभाव डाले ।
प्रभावी संचार का एक अन्य मॉडल (Another Model for Effective Communication):
प्रभावी संचार के उपरोक्त मॉडल के अतिरिक्त एक अन्य मॉडल भी है जिसे अंग्रेजी वर्णमाला के छ: अक्षरों PAIBOC के नाम से जाना जाता है ।
(i) उद्देश्य (Purpose):
संचार प्रक्रिया का उद्देश्य क्या है ? इस संचार की कोई भी संगठनात्मक समस्या सुलझाने के लिए क्या करना चाहिए ? अपने समस्त बड़े एवं छोटे उद्देश्यों की एक सूची बनाए एवं देखें कि आप अपने पाठक को क्या बताना समझाना या अनुभव कराना चाहते हैं ?
(ii) श्रोतागण (Audience):
आपके श्रोतागण कौन हैं ? वे अन्य श्रोताओं से किस प्रकार अलग हैं ? आपके श्रोता संवाद के बाद किस प्रकार की प्रतिक्रिया देंगे ?
(iii) सूचना (Information):
दिये गये सन्देश में किन-किन सूचनाओं का समावेश होना चाहिए ?
(iv) लाभ (Benefits):
अपने प्रस्ताव के पक्ष में आप पाठक को कौन-कौन से लाभ प्रदान कर सकते हैं ?
(v) विरोध (Objection):
आप अपने पाठकों से किस-किस प्रकार के विरोध की आशा रखते है ? आपने अपने सन्देश के कौन-कौन से नकारात्मक पहलुओं (Negative Aspects) को समाप्त करना है अथवा उनके बुरे प्रभाव (Bad Effect) को रोकना है ?
(vi) प्रसंग (Context):
पाठक की प्रतिक्रिया को संचार का प्रसंग किस प्रकार प्रभावित करेगा ? क्या पाठक आपको पसन्द करता है अथवा नहीं ? क्या संस्था उन्नति कर रही है अथवा नहीं ?
3. प्रभावी संचार के आवश्यक तत्त्व (Essential Elements of an Effective Communication):
संचार की कार्यकुशलता केवल समाचारों के आदान-प्रदान पर ही निर्भर नहीं है बल्कि यह देखना चाहिए कि इससे प्राप्तकर्त्ता पर क्या प्रभाव पड़ा ? जिस उद्देश्य से संदेश किसी व्यक्ति को दिया जाता है वह उद्देश्य यदि पूर्ण हो जाता है तो इसे कार्यकुशल संचार कहेंगे ।
संचार को कार्यकुशल बनाने के लिए निम्नलिखित तत्त्वों पर ध्यान देना आवश्यक है:
(i) स्पष्ट, सक्षिप्त एवं परिपूर्ण कथन (Clear, Brief and Complete Statement):
संचार की सफलता काफी सीमा तक इस बात पर निर्भर है कि संदेश बिल्कुल स्पष्ट हो, संक्षिप्त हो व अर्थपूर्ण हो । स्पष्टता के लिए सूचनाकर्त्ता को स्वयं सम्पूर्ण संदेश का ज्ञान होना चाहिए । यदि संदेश लिखित हो तो साफ-साफ लिखा हुआ होना चाहिए अथवा टाईप किया हुआ होना चाहिए सन्देश में ऐसे शब्दों का प्रयोग होना चाहिए जिनके विभिन्न अर्थ न निकलें और कम-से-कम शब्दों में संदेश देना चाहिए ।
(ii) शिष्टता व शालीनता (Courtesy):
सन्देशों की भाषा शिष्ट एवं शालीन होनी चाहिए जिससे सन्देश पाने वाले व्यक्ति पर उसका अच्छा प्रभाव पड़े और वह यह समझे कि उसके साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया जा रहा है । लेकिन यदि ऐसा नहीं किया जाता तो प्राय: सन्देश पाने वाले उन सन्देशों के अनुसार आचरण नहीं करते जिससे सन्देश भेजने में किए गए समय, श्रम और धन की बर्बादी होती है ।
(iii) आदर्श व्यवहार (Ideal Behaviour):
सभी विवेकशील व्यक्ति यह चाहते है कि उनके आदर्श का कर्मचारी पूरी तरह पालन करें । इसके लिए प्रबन्धकर्त्ता को स्वयं को आदर्श बनाना पड़ेगा और सबसे पहले अपने को नियमों पर चलना चाहिए जो नियम दूसरों के लिए बनाये गए हैं । जैसे जब हम कहते हैं कि प्रत्येक को समय पर कार्यालय पहुँचना चाहिए तो यदि प्रबन्धकगण स्वयं समय पर कार्यालय नहीं पहुँचेंगे तो वे दूसरों के सामने क्या आदर्श उपस्थित करेंगे ?
(iv) सहयोग (Co-Operation):
संचार वाहन को प्रभावी बनाने के लिए सन्देश देने वाले और सन्देश पाने वाले के बीच पारस्परिक सहकारिता की भावना का होना आवश्यक है । यदि सन्देश देने वाले ने सन्देश दे दिया लेकिन सन्देश पाने वाले ने सन्देश प्राप्त नहीं किया तो सन्देश भेजने के सभी उद्देश्य विफल हो जायेंगे । यहाँ हम इस बात का उल्लेख करना भी आवश्यक है कि सन्देश देना और सन्देश स्वीकार करना दोनों ही समान रूप से महत्त्वपूर्ण है ।
(v) समुचित सम्प्रेषण विधि (Adequate Transmission Technique):
संदेश की भाषा मधुर होने के यावश्न यदि प्राप्तकर्त्ता तक न पहुँचे तो संदेशवाहन व्यर्थ है । अत: सूचनाकर्त्ता को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि उसे क्या कहना है, किससे कहना, कब कहना है तथा कैसे कहना है ? इन पहलुओं पर पूर्व नियोजन के बिना सन्देशवाहन सफल नहीं हो सकता ।
(vi) सम्प्रेषण निरन्तर हो (Communication Must be Continuous):
संचार कुशल होने के लिए यह आवश्यक है कि वह सम्बन्धित पक्षों के बीच निर्बाध गति से निरन्तर चालू रहना चाहिए जिससे निरन्तर विचारों के आदान-प्रदान का लाभ प्राप्त हो सके ।
(vii) उचित समय पर संदेश (Communication at Proper Time):
सन्देश उचित समय पर दिया जाना चाहिए जिससे तुरन्त उसके अनुसार कार्यवाही प्रारम्भ की जा सके अन्यथा आदेश फाइल में रखे रह जाएंगे और उनका कोई उपयोग नहीं किया जा सकेगा ।
(viii) सम्प्रेषण की पुष्टि (Confirmation of Communication):
संचार को प्रभावी बनाने के लिए यह आवश्यक है कि सन्देश भेजने वाला इस बात की जानकारी कर ले कि क्या सन्देश पाने वाले तक सन्देश पहुँच चुका है ? वह इससे सहमत है अथवा असहमत और इस सम्बन्ध में उसका कोई सुझाव तो नहीं है ।
4. प्रभावी संचार का महत्त्व (Importance of Effective Communication):
सूचना क्रान्ति के फलस्वरूप संचार के क्षेत्र में हुए नित नये आविष्कारों ने हमारी व्यावसायिक गतिविधियों को एक नया आयाम दिया है । व्यवसाय की सफलता बहुत कुछ संचार पर निर्भर है सम्प्रेषण में दक्षता किसी भी व्यावसायिक क्रिया की पूर्ण आवश्यकता है ।
यह उस समय और अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है, जब व्यवसायी और उससे सम्बन्ध रखने वालों के मध्य संवाद सम्पन्न होता है । एक व्यवसायी की सफलता उसके अपने विचारों, सूचना की स्पष्टता, स्वच्छता इत्यादि पर निर्भर होती है क्योंकि संचार सदैव से ही उसके अस्तित्व की रक्षा का आधार होता है ।
निम्नलिखित विश्लेषण से प्रभावी संचार के महत्व को जाना जा सकता है:
(i) संगठनात्मक छवि में सुधार का आधार (Basis of Improvement of Organisational Image):
आज सामाजिक उत्तरदायित्व प्रत्येक व्यवसाय की आवश्यकता है क्योंकि समाज का प्रत्येक व्यक्ति, सरकार, ग्राहक, जनता, व्यवसायी के रूप में एक-दूसरे के सम्पर्क में बना रहता है । इसलिए एक प्रभावपूर्ण संचार तन्त्र की स्थापना अत्यन्त आवश्यक हो जाती है यद्यपि एक संगठन अपनी अच्छी छवि का प्रवाह एक प्रभावी संचार तन्त्र के द्वारा ही कर सकता है, अत: प्रभावी संचार तन्त्र के जरिये संगठन का प्रबन्धक समाज के साथ निरन्तर सम्वादरत् रहता है । स्पष्ट है कि इस प्रक्रिया के जरिये एक संगठन अपनी अच्छी छवि का प्रसार एवं प्रवाह कर सकने में सक्ष्म होता है । इस तरह एक व्यवसाय को सुदृढ़ आधार प्राप्त होता है ।
(ii) समन्वय की स्थापना का आधार (Basis of Establishment of Co-Ordination):
किसी भी संगठन के विस्तार के साथ-साथ संचार का महत्व भी बढ़ता जाता है । वृहद् औद्योगिक इकाइयों में संगठन के प्रकार के निर्धारण का आधार कार्य विभाजन व विशिष्टीकरण होता है संगठन में इन आधारों पर कार्य का सम्पादन केवल समन्वय के द्वारा ही सम्भव है ।
इस हेतु संगठन में कार्यरत कर्मचारियों को संगठन के उद्देश्यों व उनकी प्राप्ति के सम्बन्ध में जानकारी होना अत्यन्त आवश्यक है प्रभावी संचार एकमात्र ऐसा साधन है जो कि व्यवसाय में कार्यरत कर्मियों के कार्यों के मध्य परस्पर समन्वय स्थापित कर संगठन के सफल संचालन में सहायक होता है ।
(iii) प्रभावी नेतृत्व की स्थापना का आधार (Basis of Establishment of Effective Leadership):
किसी भी संगठन के प्रभावी नेतृत्व काआधार प्रभावपूर्ण संचार प्रक्रिया होता है क्योंकि एक सफल नेतृत्व के लिए सम्बन्धित व्यवसाय के प्रबन्धक में सम्प्रेषण कला में दक्ष व योग्य होना पूर्व अनिवार्य शर्त है । एक प्रबन्धक सफल नेतृत्व करने में तभी सफल होगा जब वह प्रभावी सम्प्रेषण प्रक्रिया के सम्बन्ध में जानकारी रखता हो ।
(iv) नियोजन का आधार (Basis of Planning):
किसी भी संगठन के वांछित नियोजन का आधार प्रभावपूर्ण संचार होता है क्योंकि किसी भी व्यवसाय की उत्तरोत्तर प्रगति प्रमुखत: व्यवसाय में कार्यरत् कर्मचारियों के बीच अधिकाधिक संवाद के द्वारा ही सम्भव है, ताकि नियोजित कार्यक्रमों के सफल क्रियान्वयन व सम्बद्ध कर्मियों की गतिविधियों पर नियन्त्रण किया जा सके । अत: एक प्रभावपूर्ण संचार ही नियोजन के समस्त उद्देश्यों की पूर्ति का आधार है ।
(v) प्रबन्धन क्षमता में वृद्धि का आधार (Basis of Increasing in Managerial Efficiency):
संचार एक संगठन में कार्यरत प्रबन्धक वर्ग के तीव्र व व्यवस्थित कार्य सम्पादन का आधार होता है । संचार के द्वारा ही प्रबन्धक, व्यवसाय के संगठन के उद्देश्यों के सम्बन्ध में अपने अधीनस्थ कार्यरत् कर्मियों को बता सकने निर्देशित करने व कार्य विभाजन तथा अर्थ नियन्त्रण में सक्षम होता है । संचार प्रक्रिया की उपस्थिति ही एक प्रबन्धक को प्रभावशील बनाती है ।
(vi) निर्णयन का आधार (Basis of Decision Making):
प्रभावपूर्ण संचार के अभाव में एक प्रबन्धक के लिए निर्णय लेना कठिन होता है क्योंकि किसी भी निर्णय लेने के पूर्व तत्सम्बन्ध में सम्पूर्ण जानकारी का अर्जित करना अनिवार्य होता है और समस्त जानकारी का संग्रहण केवल प्रभावी सम्प्रेषण प्रक्रिया के द्वारा ही सम्भव है यह प्रभावी संचार तन्त्र केवल सूचना के एकत्रीकरण में ही सहायक नहीं होता बल्कि इसके सफल क्रियान्वयन में भी सहायक होता है ।
(vii) मानवीय सम्बन्धों का विकास (Development of Human Relations):
एक व्यवसाय के उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए यह आवश्यक है कि व्यवसाय में कार्यरत मानव कार्यों को एकत्रित किया जाये जब तक एक प्रबन्धक द्वारा अपने श्रमिकों से मानवीय व्यवहार नहीं किया जाता, तब तक प्रबन्धक उनसे कार्य करा पाने में असफल रहता है ।
आज के व्यावसायिक पर्यावरण ने एक संगठन के नौकर-मालिक सम्बन्धी को एक नया आयाम जिसे साझेदारी कहा जाता है, दिया है । स्पष्ट है कि प्रभावी संचार एक संगम में प्रबन्धकी अधीनस्थ कर्मचारियों के विचारी को बदलने में प्रभावी नैतिक शास्त्र की वृद्धि में सहायक है जिससे एक संगठन सुगम रूप में क्रियाशील होता है ।
(viii) प्रभावशाली नियंत्रण का आधार (Basis of Effective Control):
आज व्यावसायिक संगठनों का स्वरूप बदल चुका है । वर्तमान में व्यावसायिक संगठनों का आकार अत्यन्त विशाल है जिसकी केवल एकमात्र इकाई में हजारों लाखों लोग कार्यरत होते हैं । अत: अत्यन्त विशाल संगठनों का सफल संचालन अपने आप में एक अत्यन्त कठिन व दुष्कर कार्य है । इस स्थिति में प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण का महत्त्व बढ़ जाता है । इसके द्वारा एक प्रबन्धक अपने कर्मचारियों द्वारा किये गये कार्य की सूचना प्राप्त कर यदि सुधार की आवश्यकता हो तो उसमें सुधार करता है तथा प्राप्त सूचना के आधार पर भविष्य सम्बन्धी निर्णय लेता है ।
(ix) यदि किसी भी व्यवसाय का जीवन रक्त होता है (Life Blood of any Business):
जिस प्रकार मानव शरीर के सुचारु संचालन के लिए रक्त अनिवार्य होता है, ठीक उसी प्रकार संचार किसी भी व्यवसाय के लिए आवश्यक होता है । प्रभावपूर्ण संचार के द्वारा ही समस्त प्रबन्धकीय कार्यों का सफल सम्पादन होता है । इसके द्वारा ही हम व्यवसाय में सम्पन्न हो रहे कार्यों की व्याख्या या भविष्य में परिवर्तन की अपेक्षा कर सकते हैं । प्रभावी सम्प्रेषण के द्वारा ही एक संगठन में कार्यरत् कर्मचारियों में सम्मान की भावना जाग्रत कर एकता व एकरूपता की स्थापना सम्भव हो सकती है ।
(x) निम्न लागत पर अधिकतम उत्पादन का आधार (Basis of Maximum Production at Minimum Cost):
प्रत्येक संगठन का प्रमुख उद्देश्य निम्न लागत पर अधिकतम उत्पादन करना होता है । इसकी प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि उसके पास एक सशक्त प्रभावपूर्ण आन्तरिक और बाह्य सम्प्रेषण तन्त्र हो क्योंकि इस तन्त्र के माध्यम से ही उसे जनता के विचार सरकारी नीतियों वर्तमान बाजार की गतिविधियों से सम्बन्धित सूचनाएं प्राप्त होती है जिसके माध्यम से वह अपने प्राथमिक उद्देश्यों की प्राप्ति करता है । उसी संचार तन्त्र के माध्यम से वह अपने कर्मियों में सहकारिता की भावना को जाग्रत कर संगठन के उद्देश्यी को प्राप्त कर सकने में सक्षम हो पाता है ।
(xi) औद्योगिक शान्ति को बढ़ावा (Promotion of Industrial Peace):
एक संगठन के प्रबन्धकों व कर्मियों के मध्य मधुर सम्बन्ध का अभिप्राय औद्योगिक शान्ति से है । यद्यपि प्रत्येक व्यवसायी का मुख्य उद्देश्य कम-से-कम लागत पर अधिकाधिक उत्पादन कर लाभ अधिक करना होता है । प्रबन्धन व कर्मियों के मध्य सहयोगी वातावरण का निर्माण केवल प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण के माध्यम से ही सम्भव है चाहे संचार का स्वरूप आरोह हो या अवराही । इसके फलस्वरूप दोनों ही वर्गों को अपने विचारों, भावनाओं, संवेदनाओं, कठिनाइयों को बांटने का अवसर मिल जाता है जिससे औद्यौगिक शान्ति स्थापित होती है । निरन्तर प्रभावी सम्प्रेषण का प्रयोग संगठन में औद्योगिक शान्ति का बढ़ाता है ।
(xii) एक व्यवसायिक फर्म के निर्बाध कार्य-विधि का आधार (Basis of Smooth Working of a Business Firm):
एक उपक्रम को सफल/निर्बाध कार्य करने के लिए सम्प्रेषण महत्त्वपूर्ण है । प्रत्येक संगठन में सवादवाहन संचार पर निर्भर करता है । एक संगम के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए प्रबन्धक व्यक्तियों व सम्बन्धित भौतिक तत्त्वों में समन्वय स्थापित करता है । संचार के माध्यम से ही किसी संगठन में क्रय-विक्रय, उत्पादन, वित्त सम्बन्धी क्रियाएं सम्भव हो पाती हैं ।
एक संगम में बाह्य व आन्तरिक संचार प्रक्रिया द्वारा ही विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सम्बद्ध गतिविधियों को सम्पन्न करने सम्बन्धी निर्णय लिये जाते हूँ । अत: सम्प्रेषक किसी संगठन के प्रारम्भिक नाम से ही उसके अस्तित्व का आधार होता है । यदि संचार में किसी प्रकार की रुकावट आती है तो समस्त गतिविधियाँ ठप्पा हो जाती हैं ।
संक्षेप में, प्रत्येक व्यवसाय की प्रगति तथा सफलता में प्रभावी संचार का महत्वपूर्ण योगदान होता है प्रभावी संचार के महत्त्व के विषय में हैराल्ड यास्किन का कथन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, “संचार हमारे व्यापार के परिचलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है-हमें अधिक व्यक्तियों को सूचित करना होता है, अधिक व्यक्तियों की सुननी होली है एवं उनसे अपनी समस्याओं को सुलझाने में मदद लेनी होती है तथा अधिक चीजों के बारे में बातचीत करनी होती है ।”
5. प्रभावी संचार की सीमाएं (Limitations of Effective Communication):
प्रभावी संचार की निम्नलिखित शर्ते अथवा सीमाएँ हैं:
(i) अनुभूति (Perception):
सम्प्रेषक को यह बात पता होनी चाहिए कि उसके द्वारा सम्प्रेषित सन्देश किस तरहप्राप्त किया जायेगा । सम्प्रेषक हमेशा प्राप्तकर्त्ता की प्रतिक्रिया (Feedback) की अपेक्षा करता है तद्नुसार वह सन्देश को उसी के अनुरूप ढालता है । वह हमेशा प्रतिक्रिया अथवा प्रतिपुष्टि का विश्लेषण कर सन्देश में सम्भावित भ्रम को दूर करने का प्रयास करता है ।
(ii) परिशुद्धता (Precision):
एक संचार प्रक्रिया में भेजने वाला (सम्प्रेषक) व प्राप्त करने वाला (Receiver) अपने-अपने विचारों का परस्पर मिलान करते हैं । जिस समय दोनों ही अभिव्यक्ति की क्रिया पूरी कर लेते हैं तब अपने-अपने मस्तिष्क में एकसमान मानसिक चित्र निर्मित कर लेते हैं जिससे सन्देश की स्पष्टता (Clarity) व यथार्थता (Factuality) बनी रहे ।
(iii) विश्वसनीयता (Credibility):
एक सम्प्रेषक को सन्देश सदैव विश्वसनीय (Reliable) होता है, उसे इसकी वास्तविकता पर विश्वास होता है । इसके साथसाथ उसे सम्प्रेषक के इरादे पर भी विश्वास होता है ।
(iv) नियन्त्रण (Control):
एक सम्प्रेषक सन्देश को इस प्रकार सम्प्रेषित करता है कि प्राप्तकर्त्ता (Receiver) सम्प्रेषित सन्देश का अभिप्राय यथार्थ रूप में समझ ले । इसके साथ-साथ एक सोषक अपने उद्देश्य के अनुरूप अपनी मानसिकता को बदल कर अन्य किसी कार्यवाही के लिए प्रेरित करने में भी सक्षम (Competent) होता है ।
(v) सौहार्द्रपूर्णता (Congeniality):
एक सम्प्रेषक सदैव सन्देश प्राप्त करने वाले के चाहने अथवा न चाहने पर भी अपने मधुर सम्बन्ध बनाये रखता है । वह सदैव अपने सन्देश प्राप्तकर्त्ता के मन में आदर, सम्मान व सद्भावना भी बनाये रखता है । इसके साथ-साथ वह सदैव सन्देश प्राप्तकर्त्ता के साथ संचार प्रक्रिया हेतु तैयार रहता है ।