Read this article in Hindi to learn about the importance of employee motivation in an organisation.
परम्परागत प्रबन्ध के अन्तर्गत कर्मचारियों की इच्छाओं, भावनाओं, अभिलाषाओं आदि को कोई महत्व नहीं दिया जाता था कर्मचारी को उत्पादन के अन्य साधनों के समान केवल एक साधन माना जाता था जिससे श्रम को वव्यु की भांति क्रय-विक्रय किया जा सकता था ।
लेकिन वैज्ञानिक प्रबन्ध के प्रादुर्भाव और परिस्थितियों के तीव्र गति से परिवर्तन ने उद्योगपतियों को मानवीय सम्पदा पर सर्वाधिक ध्यान देने के लिए बाध्य कर दिया और कर्मचारियों के श्रम को क्रय-विक्रय की वस्तु न मानकर उत्पादन का एक अभिन्न अंग माना जाना लगा । फलत: अभिप्रेरणा की आवश्यकता और महत्व को स्वीकार किया गया । वैज्ञानिक प्रबन्ध के जन्मदाता एफ. डब्ल्यू. टेलर (F.W. Taylor) ने भी अभिप्रेरणा के महत्व को स्वीकार किया और प्रेरणात्मक मजदूरी पद्धति को बल दिया ।
अभिप्रेरणा के महत्व का विस्तृत अध्ययन करने के पूर्व हमें यह समझ लेना चाहिए कि “कार्य की क्षमता” (Capacity of Work) और कार्य करने की इच्छा (Will to Work) दो अलग-अलग तथ्य हैं । एक व्यक्ति शारीरिक मानसिक, तकनीकी सभी दृष्टियों से कार्य करने योग्य हो सकता है लेकिन वह कार्य करना नहीं चाहता अर्थात् उसकी कार्य करने की इच्छा नहीं है, तो ऐसी स्थिति में आवश्यकता इस बात की है कि उसकी कार्य प्रति इच्छा जाग्रत की जाए और इस हेतु उसे अभिप्रेरित किया जाये ।
अत: जनरल फूड कारपोरेशन (General Food Corporation) के भूतपूर्व अध्यक्ष क्लेरेन्स फ्रान्सिस (Clearance Francis) ने ठीक ही कहा है, “आप व्यक्ति का समय खरीद सकते हैं, आप एक विशिष्ट स्थान पर किसी व्यक्ति की शारीरिक उपस्थिति खरीद सकते हैं लेकिन आप किसी व्यक्ति का उत्साह, पहलपन या वफादारी नहीं खरीद सकते ।”
अभिप्रेरणा की आवश्यकता एवं महत्व को हम निम्न शीर्षकों द्वारा और अच्छी तरह स्पष्ट कर सकते हैं:
(1) निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु (To Achieve the Required Objectives):
प्रत्येक संस्था के कर्मचारियों को आवश्यक अभिप्रेरणा प्रदान करने से निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति सरल हो जाती है । अभिप्रेरणाओं से कर्मचारियों की कार्य करने की इच्छा जाग्रत हो जाती है और उनके प्रयास निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति की ओर ही होते हैं ।
एक संस्था के पास भले ही प्रचुर मात्रा में वित्तीय साधन हों, उच्च किस्म का कच्चा माल हो आधुनिक मशीनें हों और प्रशिक्षित कर्मचारी हों लेकिन उत्पादन में वृद्धि उस समय तक नहीं हो सकती जब तक कि कर्मचारियों में कार्य करने की इच्छा जाग्रत न हो । अत: कर्मचारियों की कार्य करने की इच्छा जाग्रत कर निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु उन्हें मौद्रिक एवं अमौद्रिक प्रेरणाएँ दी जानी आवश्यक हैं ।
(2) कर्मचारियों का सहयोग प्राप्त करने हेतु (To Seek Co-Operation of the Workers):
कर्मचारियों का स्वैच्छिक सहयोग प्राप्त करने के लिए उन्हें आवश्यक प्रेरणाएँ दी जानी आवश्यक हैं । अभिप्रेरित कर्मचारी अपने अधिकारियों और साथियों दोनों के साथ ही सहयोगपूर्ण व्यवहार करते हैं । उपक्रम के निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति हेतु जी-जान लगाकार कार्य करे हैं और निश्चित समय में ही आबटित कार्य के निष्पादन का प्रयास करते हैं ।
(3) कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि करने हेतु (To Boost the Morale of the Employees):
कर्मचारी-मनोबल उनके उत्साह, जोश, अभिवृत्तियों आदि से सम्बन्ध रखता है जो उन्हें कार्य करने के लिए अभिप्रेरित करता है । अत: कर्मचारियों को दी जाने वाली विभिन्न अभिप्रेरणाएँ निश्चय ही उनके मनोबल में वृद्धि करती हैं । अभिप्रेरणाओं से जब एक कर्मचारी की विभिन्न प्रकार की आवश्यकताएँ सन्तुष्ट हो जाती हैं तो वह निश्चय ही मन लगाकर कार्य करता है और उनके मनोबल का निर्माण करने और उसमें वृद्धि करने में महत्वपूर्ण स्थान रखती है ।
(4) मानवीय सम्बन्धों की स्थापना हेतु (To Establish Human Relations):
वैज्ञानिक प्रबन्ध के प्रादुर्भाव के साथ-साथ ही सौहार्दपूर्ण मानवीय सम्बन्धों की स्थापना पर बल दिया जाने लगा । वर्तमान में हुए और हो रहे परिवर्तनों ने भी इस ओर सभी का ध्यान आकृष्ट किया है । मानवीय सम्बन्धों की विचारधारा इस तथ्य पर बल देती है कि कर्मचारी पहले मानव हे और बाद में कर्मचारी ।
अत: उसके साथ मानववादी दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए । कर्मचारियों के साथ मानवीय सम्बन्ध रखने पर उत्पादकता में भी वृद्धि की जा सकती है । वित्तीय और अवित्तीय प्रेरणाएँ इस दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं ।
(5) मानवीय साधनों का सदुपयोग करने हेतु (To Make Proper Use of Human Resources):
उत्पादन के विभिन्न साधनों में ‘मानव’ एक महत्वपूर्ण साधन है । इस साधन के सदुपयोग पर ही संस्था की प्रगति निर्भर करती है अत: उन्हें विभिन्न प्रकार की अभिप्रेरणाएँ प्रदान की जानी चाहिए । अभिप्रेरित कर्मचारी अपनी पूर्ण योग्यता एवं क्षमता से कार्य करता है और संस्था के विकास को ही अपना ध्येय समझता है ।
(6) कार्य के प्रति रुचि जाग्रत करने हेतु (To Create Interest in the Work):
हम आरम्भ में ही स्पष्ट कर चुके हैं कि कार्य करने की क्षमता और कार्य करने की इच्छा दो अलग-अलग तथ्य हैं । कर्मचारियों की कार्य के प्रति इच्छा जाग्रत करने हेतु उन्हें विभिन्न प्रकार की प्रेरणाएँ दी जाती हैं ।
एक विद्वान के अनुसार, “अभिप्रेरणाएँ एक इन्जेक्श्न के समान हैं ।” अभिप्रेरणाओं के अभाव में कर्मचारी कार्य के प्रति कोई विशेष रुचि नहीं लेते, परिणामस्वरूप उत्पादन में कमी आती है और संस्था को विभिन्न प्रकार की हानियाँ उठानी पड़ती हैं ।
(7) अच्छे श्रम सम्बन्धों के निर्माण हेतु (To From Better Labour Relation):
कर्मचारियों की आवश्यक प्रेरणाएँ प्रदान करने से सौहार्द्रपूर्ण श्रम सम्बन्धों का निर्माण किया जा सकता है और औद्योगिक अशान्ति को दूर किया जा सकता है । श्रम सम्बन्धों में कटुता आने का प्रमुख कारण कर्मचारियों को ठीक ढंग से अभिप्रेरित न करना माना गया है ।
अभिप्रेरित कर्मचारी नकारात्मक विचारधारा के स्थान पर सकारात्मक विचारधारा अपनाते हे । अभिप्रेरणाओं से जहाँ एक ओर उनकी कार्यकुशलता एवं मनोबल में वृद्धि की जाती है वहाँ दूसरी ओर उनकी शिकायतों एवं परिवेदनाओं का उचित निवारण भी किया जाता है ।
फलत: प्रबन्ध और श्रम के मध्य अशान्ति या मनमुटाव का वातावरण उत्पन्न ही नहीं हो पाता । इस प्रकार अभिप्रेरणाओं का प्रबन्ध एवं श्रम के मध्य मधुर सम्बन्धों की स्थापना के लिए विशेष महत्व है ।
(8) कर्मचारियों को सामाजिक, मानसिक, शारीरिक आर्थिक सभी प्रकार की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि प्रदान करने हेतु वित्तीय एवं अवित्तीय प्रेरणाएँदी जानी आवश्यक है ।
(9) कर्मचारियों को कार्य सन्तुष्टि (Job-Satisfaction) की उपलब्ध कराने हेतु भी अभिप्रेरणाओं का विशेष महत्व है ।
(10) संस्था की सम्पूर्ण कार्य: क्षमता में वृद्धि करने के लिए भी अभिप्रेरणा का महत्व दिन-दुगुनी रात-चौगुनी दर से बढ़ता जा रहा है ।
(11) नवीन एवं आधुनिक साधनों के प्रयोग हेतु भी कर्मचारियों को अभिप्रेरित करना आवश्यक है ।
(12) कर्मचारियों के आवागमन को रोकने के लिए तो अभिप्रेरणा एक रामवाण औषधि के समान है ।
जिलरमैन के अनुसार- अभिप्रेरणा तीन कारणों से आवश्यक है:
(i) इसके फलस्वरूप कार्य-कुशलता बढ़ती हे और उत्पादकता में वृद्धि होती है ।
(ii) अभिप्रेरणा कर्मचारियों को नये परिवर्तनों का विरोध करने से या उत्पादन को कम करने से रोकती है ।
(iii) अभिप्रेरणा से कर्मचारियों को अपना कार्य करने में सन्तोष मिलता है और वह उसे अधिक आनन्दपूर्वक करते हैं ।
अन्त में अभिप्रेरणा का महत्व दर्शाते हुए डेल.एस.बीच ने लिखा है- ”अभिप्रेरणा की समस्या व्यावहारिक प्रबन्ध की एक कुंजी है तथा निष्पादित रूप में यह प्रमुख प्रबन्ध अधिकारी का मुख्य कार्य है अत: निश्चित रूप में यह कहा जा सकता है कि संगठन की भावना उच्च स्तर से अभिप्रेरणा का प्रतिबिम्ब है ।”