Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning and Definition of Leading 2. Characteristics or Nature of Leading 3. Scope.

नेतृत्व कला का अर्थ तथा परिभाषा (Meaning and Definition of Leading):

प्राय: प्रबन्ध करना (Managing) तथा नेतृत्व करना (Leading) समानार्थी माने जाते हैं अर्थात् दोनों शब्दों का समान अर्थ लगाया जाता है यह ठीक है कि एक प्रभावी प्रबन्धक निश्चित रूप से एक प्रभावी नेता भी होता है तथा नेतृत्व करना प्रबन्धकों का एक अनिवार्य कार्य होता है, फिर भी नेतृत्व करने की अपेक्षा प्रबन्ध करने का क्षेत्र अधिक व्यापक है ।

अतएव प्रबन्ध करना अथवा प्रबन्ध-कला एक व्यापक विचार-बात है और इसके अन्तर्गत नियोजन, संगठन, नियुक्तियां तथा नियन्त्रण आदि को शामिल किया जाता है । इसके विपरीत नेतृत्व करना अर्थात् नेतृत्व कला एक संकुचित विचार है जो प्रबन्ध कला का केवल एक अंग मात्र है ।

नेतृत्व कला (Leading) शब्द की उत्पत्ति अंग्रेजी के शब्द (Lead) से हुई है जिसका अर्थ होता है मार्ग-दर्शन करना । इस तरह नेतृत्व-कला का अर्थ हुआ संस्था में कार्यरत कर्मचारियों का मार्ग-दर्शन करना । यहां यह बता देना भी उचित होगा कि मार्ग-दर्शन करना बिना ज्ञान के सम्भव नहीं होता । अतएव नेतृत्व कला में “ज्ञान” को शामिल किया जाता है ।

परिभाषा (Definition):

कूण्ट्ज व ओ’ डोनेल के अनुसार अग्रणीयता व्यक्तियों को प्रभावित करने की एक प्रक्रिया है जिससे वे स्वेच्छा तथा म्माह से संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयास करेंगे ।

उपरोक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि नेतृत्व कला मूल रूप से मानवीय घटक से सम्बन्धित है जो कर्मचारियों को प्रेरित व उत्साहित करके लक्ष्य प्राप्ति की ओर ले जाती है तथा उनके प्रयत्नों को प्रभावी नेतृत्व प्रदान करती है ।

नेतृत्व कला की विशेषताएँ अधवा प्रकृति (Characteristics or Nature of Leading):

नेतृत्व कला/अग्रणीयता की प्रकृति अथवा विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

(i) यह एक प्रबन्धकीय कार्य है:

नेतृत्व कला प्रबन्ध का एक अंग है । यह भी नियोजन, संगठन, नियुक्तियाँ व नियन्त्रण की तरह प्रबन्ध का एक कार्य है । इस प्रकार यह प्रबन्ध की एक अलग शाखा है ।

(ii) इसका सम्बन्ध मानवीय संसाधन से है:

नेतृत्व कला मानव घटक के महत्व को स्वीकार करती है क्योंकि प्रबन्ध का प्रत्येक निर्णय कर्मचारियों पर प्रभाव डालता है । अतएव प्रबन्धक को चाहिए कि वह कर्मचारियों की आर्थिक सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करके उन्हें कार्य के प्रति प्रोत्साहित करें ।

(iii) स्वेच्छा तथा उत्साहपूर्वक कार्य करवाना:

एक अच्छे नेतृत्व कला की विशेषता यह होती है कि वह कर्मचारियों से जोर-जबरदस्ती से कार्य न करवाए अपितु उनसे स्वेच्छ से तथा प्रेरित करके कार्य करवाया जाए यही समय की माँग भी है ।

(iv) उद्देश्यों में मैत्रीपूर्ण तालमेल नेतृत्य कला की कुंजी है:

किसी को भी यह मानकर नहीं चलना चाहिए कि अधीनस्थों के लक्ष्य तथा उच्चाधिकारियों के लक्ष्य समान होते हैं । दोनों पक्ष अपनी इच्छओं तथा उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कार्य करते हैं । इस प्रकार व्यक्तिगत लक्ष्य तथा संगठनात्मक लक्ष्यों में एकता का अभाव होता है जिससे पारस्परिक तनाव तथा मनमुटाव होता है । अतएव प्रबन्धकों का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य यह है कि वे व्यक्तिगत आवश्यकताओं एवं लक्ष्यों का संस्था की माँगों के साथ मैत्रीपूर्ण तालमेल बिठाएँ । यही नेतृत्व कला की कुंजी है ।

अत: “अग्रणीयता एक ओर तो सुनियोजित योजनाओं, सावधानीपूर्वक निर्मित संगठन संरचना, भर्ती के उत्तम कार्यक्रम तथा नियन्त्रण की कुशल तकनीकों में पाये जाने वाले अन्तर (Gap) को दूर करती है तो दूसरी ओर व्यक्ति को समझने तथा उन्हें अभिप्रेरित करने का प्रयास करती है ताकि संस्था के लक्ष्यों को प्राप्त करने में पूरा योगदान करें । – कूण्ट्ज एवं ओ’ डोनेल

नेतृत्व कला का क्षेत्र (Scope of Leading):

नेतृत्व-कला प्रबन्ध के सभी स्तरों व क्षेत्रों में व्याप्त है संस्था छोटी हो या बड़ी, आर्थिक हो या सामाजिक, व्यावसायिक हो या राजनीतिक, सैनिक गतिविधि हो या सरकारी कार्यालय सभी क्षेत्रों में नेतृत्व-कला का प्रयोग किया जाता है ।

नेतृत्व-कला के क्षेत्र में मुख्यतया निम्नलिखित कार्यों को शामिल किया जाता है:

(i) प्रबन्ध तथा मानवीय घटक (Management and Human Factor):

आज उत्पादन के विभिन्न साधनों में से सबसे अधिक महत्वपूर्ण साधन मानव है । अत: भौतिक साधनों के साथ मानवीय सम्पत्ति को उत्तम दशा में रखना जरूरी है । इसलिए नेतृत्व कला इस बात पर बल देती है कि प्रबन्धकों को मानवीय घटक को समझना आवश्यक है । मानवीय घटक से अभिप्राय ”श्रम के साथ उचित व्यवहार करने से है ।”

अत: आज के युग में वे प्रबन्धक सफल प्रबन्धकों की श्रेणी में गिने जा सकते हैं जो अपने अधीनस्थों को भली प्रकार समझते है, उनके लिए उत्तम वातावरण का निर्माण करते हैं तथा अच्छे मानवीय सम्बन्ध स्थापित करते हैं क्योंकि कोई भी वस्तु मानवीय घटक का स्थान नहीं ले सकती ।

(ii) सन्देशवाहन (Communication):

यह नेतृत्व कला का प्रमुख अंग होता है । सन्देशवाहन के अभाव में विभिन्न अन्य प्रबन्धकीय कार्यों को सम्पन्न करना सम्भव नहीं होता है । अत: एक प्रभावी एवं कुशल सन्देशवाहन का होना नितान्त आवश्यक है ।

(iii) अभिप्रेरणा (Motivation):

प्रबन्ध के क्षेत्र में “मानव-शक्ति के व्यवहार को निर्देशित करने तथा उनका सहयोग प्राप्त करने की कला को अभिप्रेरणा कहा जाता है ।” अन्य शब्दों में कर्मचारियों को कार्य-सन्तुष्टि प्रदान करते हुए अधिक-से-अधिक कार्य करने की प्रेरण देना, अभिप्रेरणा कहलाती है । अभिप्रेरणा के अन्तर्गत मनुष्य की इच्छाओं, आकांक्षाओं उद्वेगों, प्रयत्नों तथा आवश्यकताओं का अध्ययन किया जाता है ।

इस प्रकार अभिप्रेरणा नेतृत्व कला का एक महत्वपूर्ण अंग है । कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने के लिए वित्तीय तथा अवित्तीय दोनों प्रकार की प्रेरणाएँ देनी होती हैं । अतएव, प्रबन्धक को अपनी योग्यता के सर्वोत्तम स्तर तक कर्मचारियों से काम लेने तथा उनको अभिप्रेरित करने की कला का ज्ञान होना आवश्यक है ।

(iv) नेतृत्व (Leadership):

नेतृत्व भी प्रबन्ध-कला का एक महत्वपूर्ण अंग है । नेतृत्व से अभिप्राय अनुसरण से है । कर्मचारी उन प्रबन्धकों का अनुसरण करते हैं जो उनकी आकांक्षाओं, आवश्यकताओं एवं अभिलाषाओं को सन्तुष्ट करने में सफल होते है । नेपोलियन की एक उक्ति प्रसिद्ध है कि “निकृष्ट सिपाही नहीं होते अपितु उनके अधिकारी निकृष्ट होते हैं” (“There are Never Bad Soldiers, Only Bad Officers.”) ।

इसका यही आशय है कि किसी भी संगठन की सफलता में उसके प्रबन्धकों की नेतृत्वकारी भूमिका का महत्व सर्वाधिक है । नेतृत्व वह योग्यता है जिससे नेता अपने अधीनस्थों के व्यवहार व निष्पादन को प्रभावित करते हैं व उनसे इच्छित कार्य करवाने में सफल होते हैं ।

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