Read this article in Hindi to learn about the top seventeen principles of organisation. The principles are: 1. Principle of Definition 2. Principle of Objective 3. Principle of Span of Control 4. Principle of Co-Ordination 5. Scalar Principle 6. Principle of Flexibility 7. Principle of Authority and Responsibility 8. Principle of Specialisation 9. Principle of Ultimate Responsibility and a Few Others.
1. व्याख्या का सिद्धान्त (Principle of Definition):
यह सिद्धान्त के अनुसार संगठन के प्रत्येक व्यक्ति के अधिकार, कर्त्तव्य तथा दायित्वों की स्पष्ट व्याख्या होनी चाहिए । यह व्याख्या लिखित होनी चाहिए । अधिकारी कर्त्तव्यों एवं दायित्वों का पूर्ण एवं स्पष्ट ज्ञान होने से प्रत्येक व्यक्ति अपना कार्य सुचारु रूप से कर सकेगा ।
2. उद्देश्य का सिद्धान्त (Principle of Objective):
यह सिद्धान्त बतलाता है कि संगम का उद्देश्य सस्था के सामान्य उद्देश्य के अनुरूप होना चाहिए तथा उनकी पूर्ति में सहायक होना चाहिए । सगठन करते समय प्रत्येक विभाग तथा उसके उप-विभाग के उद्देश्य भी निश्चित किए जाने चाहिए । उपउद्देश्यों तथा संस्था के मूल-उद्देश्यों में एकरूपता होनी चाहिए अर्थात् वे सभी मिलकर एक रूप हो जाए ।
3. नियन्त्रण के विस्तार का सिद्धान्त (Principle of Span of Control):
इस सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक अधिकारी के नियन्त्रण का क्षेत्र सीमित होना चाहिए, जिससे वह प्रभावशाली ढंग से नियन्त्रण कर सके इसका कारण यह है कि प्रत्येक अधिकारी की संगठन करने की क्षमता सीमित होती है । अतएव अर्विक के अनुसार कोई एक व्यक्ति अपने तुरन्त आधीन अधिक-से-अधिक पाँच या छ: सहायक अधिकारियों की क्रियाओं पर नियन्त्रण रख सकता है, इससे अधिक नहीं । नियन्त्रण के क्षेत्र को निर्धारित करते समय व्यवसाय की प्रकृति, आकार प्रबन्ध तथा अधीनस्थों की योग्यता संचार-व्यवस्था आदि को भी ध्यान में रखना चाहिए ।
4. समन्वय का सिद्धान्त (Principle of Co-Ordination):
यह सिद्धान्त बतलाता है कि सस्था के उद्देश्यों साधनों, कार्यों तथा व्यक्तियों की क्रियाओं में समन्वय स्थापित किया जाना चाहिए ।
5. सोपानिक सिद्धान्त (Scalar Principle):
इस सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक संगठन में ऊपर से नीचे तक औपचारिक अधिकारों एवं सम्बन्धों की एक स्पष्ट रेखा होनी चाहिए । वरिष्ठ (Senior) तथा कनिष्ठ (Junior) अधिकारों में परस्पर औपचारिक सम्बन्ध शृंखला तय की जानी चाहिए । प्रत्येक सदस्य को चाहिए कि वह इस सत्ता शृंखला (Chain) का उल्लंघन न करें ।
6. लोचशीलता का सिद्धान्त (Principle of Flexibility):
इस सिद्धान्त के अनुसार संगठन का लोचशील होना आवश्यक है ताकि आवश्यकता पड़ने पर उसमें तकनीकी व अन्य परिवर्तन आसानी से लाए जा सकें । संगठन को लाल फीताशाही, अत्यधिक नियमन तथा नियन्त्रण से दूर रख कर ही, अधिक लोचशील बनाया जा सकता है ।
7. अधिकार एवं दायित्व का सिद्धान्त (Principle of Authority and Responsibility):
इस सिद्धान्त का अर्थ यह है कि कोई भी व्यक्ति अपने दायित्व को तभी निभा सकता है जब उसे अपने कार्य को करने के लिए आवश्यक अधिकार भी दिए जाएं । इस सिद्धान्त की मान्यता है कि अधिकार एवं दायित्व साथ-साथ चलते हैं और ये दोनों एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं । इस सिद्धान्त को “अधिकार एवं दायित्वों में समता” का सिद्धान्त भी कहते हैं । प्रत्येक कर्मचारी को जितना दायित्व सौंपा गया है उसे उस दायित्व के पालन के लिए उतने अधिकार भी दिए जाने जरूरी होते हैं ।
8. विशिष्टीकरण का सिद्धान्त (Principle of Specialisation):
यह सिद्धान्त बतलाता है कि कर्मचारियों को उनकी योग्यता, रुचि और क्षमता के अनुसार कार्य सौंपा जाना चाहिए । यह सिद्धान्त “कार्य के अनुरूप” व्यक्ति तथा “व्यक्ति के अनुरूप कार्य सुपुर्दगी” पर बल देता है । ऐसा करने से कर्मचारी लगन से कार्य करते हैं तथा उन्हें कार्य सन्तुष्टि प्राप्त होती है ।
9. अन्तिम दायित्व का सिद्धान्त (Principle of Ultimate Responsibility):
यह सिद्धान्त स्पष्ट करता है कि प्रत्येक उच्चाधिकारी अपने अधीनस्थों के कार्यों के लिए पूरी तरह उत्तरदायी होता है ।
10. निरन्तरता का सिद्धान्त (Principle of Continuity):
इस सिद्धान्त के अनुसार संगठन की संरचना ऐसी होनी चाहिए कि उसमें समय की आवश्यकता के अनुसार परिवर्तन किए जा सकें संगठन को समय के अनुकूल बनाए रखने के लिए उनमें पुनर्गठन या अन्य आवश्यक संशोधन होते रहने चाहिए ।
11. आदेश की एकता का सिद्धान्त (Principle of Unity of Command):
इस सिद्धान्त के अनुसार एक व्यक्ति का एक ही बाँस (Boss) होना चाहिए । अर्थात् प्रत्येक कर्मचारी का एक ही अधिकारी होना चाहिए । अन्य शब्दों में, प्रत्येक कर्मचारी को आदेश एक ही अधिकारी से मिलने चाहिए कई अधिकारियों से अलग-अलग आदेश मिलने पर कर्मचारी के दिमाग में भ्रम उत्पन्न होता है तथा वह अपना कार्य नहीं कर पाएगा ।
12. अपवाद का सिद्धान्त (Principle of Exception):
कर्मचारियों द्वारा दिन-प्रतिदिन किए जा रहे कार्यों के बारे में उच्चाधिकारियों से अधिक पूछताछ नहीं करनी चाहिए । परन्तु कुछ महत्वपूर्ण या अपवादजनक परिस्थितियों और मामलों में ही उच्च प्रबन्धकों की सलाह ली जानी चाहिए अथवा पूछताछ की जानी चाहिए कारण यहहै कि उच्चाधिकारियों का समय मूल्यवान होता है और उसे बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए ।
13. कुशलता का सिद्धान्त (Principle of Efficiency):
इस सिद्धान्त के अनुसार वही संगठन कुशल माना जाता है जो कम लागत पर सस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता करता है तथा कर्मचारियों को कार्य-सन्तुष्टि प्रदान करा सकता हो ।
14. सन्तुलन का सिद्धान्त (Principle of Balance):
संस्था की विभिन्न क्रियाओं को उनकी आवश्यकताओं तथा महत्च के आधार पर सन्तुलित किया जाना चाहिए तथा साथ ही कर्मचारियों प्रबन्धकों और विभागों की अधिकार रेखाओं को स्पष्ट किया जाना चाहिए । विभिन्न विभागों तथा कर्मचारियों को उनके द्वारा किए जाने वाले योगदान के अनुसार कोषों का आनुपातिक वितरण भी किया जाना चाहिए ।
15. सरलता का सिद्धान्त (Principle of Simplicity):
इस सिद्धान्त के अनुसार संरचना सरल होनी चाहिए परकिन्सन द्वारा प्रतिपादित यह सिद्धान्त यह स्पष्ट करता है कि जटिल संगठन सन्देशवाहन तथा समन्वय को प्रभावशाली नहीं रहने देता इसलिए संगठन का सरल होना अत्यन्त आवश्यक है । सरलता के कारण इसे आसानी से समझा जा सकता है जिस कारण यह अधिक प्रभावशाली बन पाएगा ।
16. निरन्तर जाँच का सिद्धान्त (Principle of Regular Checks):
इस सिद्धान्त के अनुसार संगठन में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि एक व्यक्ति के कार्य की जाँच दूसरा व्यक्ति कर सके और यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहे ।
17. सहभागिता का सिद्धान्त (Principle of Participation):
सहभागिता के सिद्धान्त के अनुसार संगठन में लिये जाने वाले निर्णयों में सभी सम्बन्धित व्यक्तियों को सहभागी बनाने से है । ऐसा करने से न तो निर्णयों को लागू करने में कठिनाई ही आती है और न अधिकारी व अधीनस्थों के बीच मधुर सम्बन्ध स्थापित करने में ।
उपरोक्त सभी सिद्धान्तों को ध्यान में रखकर स्थापित किया गया संगठन एक आदर्श व सुदृढ़ संगठन होगा ।
निष्कर्ष:
ध्यान रहे संगठन के ये सिद्धान्त कोई दृढ़ नियम (Rigid Rules) नहीं है । ये केवल मार्गदर्शक हैं । प्रत्येक व्यक्ति को इन्हें अपनी बुद्धि और तर्क के अनुसार प्रयोग करना चाहिए ।