Read this article in Hindi to learn about the relationship between planning and control in an organisation.
प्रत्येक प्रबन्धक को नियन्त्रण करने के लिए योजना का सहारा लेना पड़ता है क्योंकि उसे नियन्त्रण करते समय यही देखना होता है कि कार्य योजना के अनुसार हो रहा है या नहीं इसी प्रकार नियोजन व नियन्त्रण प्रबन्ध को दोनों ही कार्य एक-दूसरी से सम्बद्ध हैं ।
इन दोनों को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता । नियोजन न केवल नियन्त्रण को प्रभावित करता है बल्कि इससे प्रभावित भी होता है । यदि पहले से ही उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए निश्चित मार्ग तय नहीं किया जाता निश्चित लक्ष्य निर्धारित नहीं किया जाता, उचित योजना नहीं बनाई जाती, प्रभावी नियन्त्रण करना सम्भव नहीं हो सकता ।
मैरी कुशिंग नाश्ल्स के अनुसार- “नियन्त्रण नियोजन का एक पहलू तथा प्रतिरूप है । जहाँ नियोजन मार्ग निर्धारित करता है, वहां नियन्त्रण उस मार्ग से विचलन का अवलोकन करता है तथा ऐसी कार्यवाही करता है कि चुने गए मार्ग पर अथवा एक उपयुक्त रूप में बदले हुए मार्ग पर लौटा जा सके ।”
इस प्रकार नियोजन व नियन्त्रण में घनिष्ठ सम्बन्ध है । ये दोनों एक-दूसरे से विपरीतार्थक रूप से जुड़े हुए हैं । इनको एक-दूसरे से अलग करना असम्भव है । इस तथ्य को स्वीकारते हुए ब्रेच ने अपने शब्दों में अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किये, “नियोजन और नियन्त्रण निश्चित रूप से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, नियन्त्रण नियोजन का एक दूसरा पक्ष है । नियोजन कार्य का सैद्धान्तिक और नियन्त्रण उसका व्यावहारिक पक्ष है । इस प्रकार नियोजन ओर नियन्त्रण व्यावसायिक कार्य के पहलू है । दोनों का उद्देश्य व्यावसायिक लक्ष्य की अधिकतम प्राप्ति है ।
नियोजन एवं नियन्त्रण के मध्य सम्बद्धता को निम्नलिखित वास्तविकता के आधार पर सिद्ध किया जा सकता है:
(1) नियन्त्रण नियोजन को बनाये रखता है (Controlling Sustains Planning):
नियन्त्रण ही नियोजन की कार्यविधि को निर्देशित एवं आवश्यकतानुसार परिवर्तित करता है । नियन्त्रण हमारे ध्यान को वहाँ आकर्षित करता है जहाँ नियोजन की आवश्यकता होती है ।
(2) नियोजन नियन्त्रण को उत्पन्न करता है (Planning Originates Controlling):
नियन्त्रण की प्रक्रिया एवं तकनीक का निर्धारण नियोजन के माध्यम से होता है ।
(3) नियोजन कार्य का सैद्धान्तिक और नियन्त्रण उसका व्यावहारिक पक्ष है (Planning is Theoretical, Whereas Controlling is Practical):
नियोजन एवं नियन्त्रण दोनों एक सिक्के के दो पहलू के समान हैं दोनों का एकमात्र उद्देश्य व्यावसायिक लक्ष्यों की अधिकतम प्राप्ति है । नियोजन लक्ष्य प्राप्ति के लिए योजनाएं बनाता है तथा नियन्त्रण उस योजना पर कार्य करता है ।
(4) नियन्त्रण नियोजन के लिए सांख्यिकीय सूचनाएँ प्रदान करता है (Controlling Provides Statistical Information for Planning):
नियन्त्रण में वास्तविक प्रगति की अपेक्षित प्रगति के साथ तुलना के लिए कुछ निश्चित सांख्यिकीय सूचनाएँ एवं रिपोर्ट तैयार करने की आवश्यकता रहती है जो प्रभावी नियोजन को आधार प्रदान करती है ।
(v) नियोजन एवं नियन्त्रण दोनों अन्तर्सम्बन्धित एवं अन्तर्सयुक्त हैं (Planning and Controlling Both are Inter Related to Interwoven):
नियोजन एवं नियन्त्रण की अन्तर्निभरता को निम्नलिखित रेखाचित्र के माध्यम से वर्णित किया जा सकता है:
उपरोक्त चार्ट से मालूम होता है नियोजन व्यावसायिक प्रबन्ध की पहली क्रिया है नियोजन संस्था के लक्ष्य की प्राप्ति की योजनाएँ बनाता है । प्रभावी संगठन, निदेशन व नेतृत्व द्वारा योजनाओं को कार्य रूप दिया जाता है । कार्य की वास्तविक प्रगति की समीक्षा नियन्त्रण द्वारा की जाती है ।
यदि अपेक्षित एवं वास्तविक प्रगति में कोई अन्तर पाया जाता है तो उस अन्तर के कारणों की जाँच करके सुधारात्मक कार्यवाही की जाती है । अन्त में नियन्त्रण द्वारा बताई गई कमियों, त्रुटियों तथा कमजोरियों को ध्यान में रखकर भावी योजनाएँ बनाई जाती है ।
(vi) नियन्त्रण का सम्बन्ध नियोजन से होता है (Control is Related to Plans):
नियन्त्रण सम्बन्धी समीक्षा पूर्व निर्धारित योजना कार्यक्रम एवं उद्देश्यों के अनुसार की जाती है ।
(vii) नियन्त्रण एवं नियोजन दोनों ही भविष्यदर्शी होते हैं (Planning and Controlling Both are Forward Looking):
नियन्त्रण एवं नियोजन दोनों का उद्देश्य व्यवसाय के लक्ष्यों को कुशलतापूर्वक प्राप्त करना है । इस सम्बन्ध में कूण्ट्ज तथा ओ’ डोनेल ने सच ही कहा है कि: “नियोजन की तरह नियन्त्रण भी भविष्यदर्शी होता है । एक सर्वश्रेष्ठ नियन्त्रण योजनाओं से विचलनों को उनके घटने से पूर्व ठीक करता है ।”
निष्कर्ष (Conclusion):
नियोजन एवं नियन्त्रण दोनों व्यवसाय के लक्ष्य को कुशलतापूर्वक प्राप्त करने की दिशा में प्रयास हैं । नियोजन और नियन्त्रण का पारस्परिक सहयोग, समन्वय, सामंजस्य और समायोजन संस्था के अधिकतम उद्देश्य की प्राप्ति, न्यूनतम प्रयासों पर उपलब्ध कराता है । इस प्रकार दोनों का लक्ष्य एक होने के कारण दोनों के प्रयास कभी अलग और कभी सम्मिलित रूप में एक ही दिशा में किये जाते हैं ।
“नियोजन के अभाव में नियन्त्रण अर्थहीन तथा नियन्त्रण के अभाव में नियोजन अर्थहीन है” (Control is Meaningless without Planning is Meaningless without Control):
नियन्त्रण और नियोजन एक ही सिक्के के दो पहलू है । इन दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध है । एक के बिना दूसरा प्रभावहीन है ।
(1) नियोजन के अभाव में नियन्त्रण अर्थहीन है:
नियोजन से आशय भविष्य की किया का वर्तमान में निर्धारित लम्बी को प्राप्त करने के लिए, भविष्य में क्या करना है ? कैसे करना है ? कब करना है ? और किसके द्वारा किया जाना है ? का पूर्व निर्धारण ही नियोजन है । इस दृष्टि से नियोजन एक बौम्कि क्रिया है जिसके लिए रचनात्मक विचार एवं कल्पना आवश्यक है । प्रबन्ध में नियोजन से अभिप्राय निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उपलब्ध वैकल्पिक विधियों नीतियों तथा कार्यक्रमों में से सर्वश्रेष्ठ का चुनाव करने से है ।
इसलिए नियन्त्रण आवश्यक हो जाता है । क्योंकि नियन्त्रण करने वाले प्रबन्धक को प्रत्येक विभाग और कर्मचारी की वास्तविक प्रगति की तथा पूर्व-निधर्ग्रस्त प्रगति की तुलना करने का अवसर मिल जाता है । नियोजन के बिना प्रबन्धकों के पास कोई ऐसा पैमाना (Scale) या मापदण्ड नहीं होता जिससे व्यक्तियों का मूल्यांकन किया जा सकता है । इसलिए नियोजन के अभाव में नियन्त्रण अर्थहीन हो जाता है ।
(2) नियन्त्रण के बिना नियोजन अर्थहीन हो जाता है:
मेरी कुशिंग नाइल्स (Marry Cushing Niles):
के अनुसार “नियन्त्रण किसी निश्चित लक्ष्य तथा लक्ष्मी के समूह की ओर निर्देशित क्रियाओं में सन्तुलन बनाये रखना है ।” इस प्रकार नियन्त्रण में यह देखा जाता है कि संगम में कार्य नियोजन के अनुसार हो रहा या नहीं । यदि कार्य नियोजन के अनुसार नहीं होता तो योजनाएं काल्पनिक बनकर रह जायेंगी, संगठन के साधनों का ठीक से सदुपयोग नहीं होगा तथा संगठन के लक्ष्य रखे के रखे रह जायेंगे । इस प्रकार नियोजन तभी सफल हो सकेगा जब उस पर नियन्त्रण रखा जा सकेगा । नियन्त्रण के बिना नियोजन अर्थहीन हो जाता है ।
“नियोजन आगे की ओर देखता है, जबकि नियन्त्रण पीछे की ओर देखता हैं” (Planning is Looking Ahead and when Control is Looking Back):
ऐलन (Allen) के अनुसार- “नियोजन भविष्य को पकड़ने के लिए बनाया गया पिंजरा है ।” (Planning is a Trap to Capture the Future) ।
इसी प्रकार के विचार हेयन्स तथा मेसी (Haynes and Massie) ने भी प्रकट किये हैं:
“नियोजन प्रबन्ध का वह कार्य है जिसके अन्तर्गत ‘वह क्या करेगा’ के विषय में पहले निर्णय लेने की प्रक्रिया जिसका सार तत्व (Essence) इसी भविष्यता है, एक ऐतिक क्रिया है जिसके लिए रचनात्मक चिन्तन (Constructive Thinking) तथा कल्पना की आवश्यक्ता होती है ।” इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि नियोजन आगे की ओर देखता है ।
इसके विपरीत, नियन्त्रण पीछे की और देखता है क्योंकि नियन्त्रण कार्य हो चुकने के बाद उस कार्य के लिए पूर्व निर्धारित प्रमापों तथा वास्तविक हुए कार्य को तुलना करता है । इस प्रकार नियन्त्रण जो काम हो चुका लेता है उसका मूल्यांकन करता है । लेकिन यह विचार कि नियन्त्रण केवल पीछे की और देखता है शत-प्रतिशत सही नहीं है क्योंकि नियम पीतेदेवने के साथ-साथ आगे भी देखता है क्योंकि सुधारात्मक कार्यवाही (Corrective Measures) जो नियन्त्रण (Control) प्रक्रिया का एक मुख्य अंग है वह आगे देखने से ही सम्बन्धित है । इसके अतिरिक्त नियन्त्रण सुधारात्मक कार्यवाही तो है ही अपितु इसके साथ-साथ प्रतिबन्धक या रोकने वाली कार्यवाही (Preventive Measures) भी है ।