Read this article in Hindi to learn about nine major steps involved in planning. The steps are: 1. Determination of Objectives 2. Establishment of Planning Premises 3. Search for Alternative Courses of Action 4. Evaluation of Alternative Courses of Actions 5. Selection of the Best Source of Action 6. Formulation of Sub-Plans and Few Others.
Step # 1. उद्देश्यों का निर्धारण करना (Determination of Objectives):
नियोजन प्रक्रिया का प्रथम चरण उद्देश्यों का निर्धारण करना है । सबसे पहले संस्था के सामान्य उद्देश्य निर्धारित किए जाते हैं । इसके बाद विभागीय तथा उप-विभागीय उद्देश्य भी निर्धारित किए जाने चाहिए निर्धारित किए गए उद्देश्य स्पष्ट होने चाहिए क्योंकि योजना की सफलता बहुत कुछ उद्देश्यों की स्पष्टता पर निर्भर करती है । संस्था के अधिकारियों तथा कर्मचारियों को योजना के उद्देश्यों से परिचित करा देना चाहिए ताकि वे इन उद्देश्यों की प्राप्ति में पूर्ण सहयोग दे सकें ।
Step # 2. नियोजन के आधारों पर निर्धारण (Establishment of Planning Premises):
नियोजन प्रक्रिया का दूसरा चरण उसके आधारों का निर्माण करना है नियोजन के आधार भविष्य के अनुमान होते हैं इस प्रकार नियोजन के आधारों को चुकना भी कहा जाता है । ये पूर्वानुमान भावी परिस्थितियों के सम्बन्ध में तथ्यपूर्ण सूचनाएँ देते हैं ।
उदाहरण के लिए भविष्य में हमारी वस्तु की माँग क्या होगी, बाजार की स्थिति क्या होगी, कीमतों की प्रकृति क्या होगी, सरकारी नीति कैसी होगी, पूंजी बाजार कैसा रहेगा श्रम-पूर्ति की स्थिति क्या होगी आदि के बारे में जानकारी प्राप्त करना पूर्वानुमान करना अथवा नियोजन के आधारों का निर्माण करना है । इन पूर्वानुमानों के आधार पर नियोजन सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण निर्णय किए जाएंगे । ये पूर्वानुमान जितने सही होंगे उतना ही नियोजन सफल होगा अतएव प्रभावी नियोजन मुख्य तथा नियोजन के आधारों के ज्ञान एवं सही चुनाव पर निर्भर करता है ।
Step # 3. वैकल्पिक कार्य-मार्गों की खोज (Search for Alternative Courses of Action):
नियोजन प्रक्रिया में तीसरा कदम कार्य करने के वैकल्पिक मार्ग में से सर्वोत्तम मार्ग का चुनाव करना है । कूण्ट्ज तथा ओ’ डोनेल के अनुसार- “शायद ही कोई ऐसी योजना हो, जिसके लिए कोई उचित विकल्प न हो ।” इस चरण के अन्तर्गत एकत्र की गई सूचनाओं, तथ्यों तथा जानकारी के आधार पर सम्भावित वैकल्पिक कार्य-मार्गों का निर्धारण किया जाता है । इस चरण का आधार यह सिद्धान्त होता है कि किसी कार्य को करने की एक से अधिक विधियाँ होती हैं जब तक वैकल्पिक विधि या कार्य-मार्ग विकसित नहीं किए जाते तब तक सर्वोत्तम योजना का निर्माण नहीं किया जा सकता ।
अतएव, सम्भावित वैकल्पिक विधियों की खोज करना आवश्यक है कुछ कार्य-विधियां तुरन्त स्पष्ट हो जाती हैं परन्तु बाद में अनुपयुक्त सिद्ध होती हैं जब कि कुछ कार्य-विधियाँ बहुत सोच-विचार के बाद समझ में आती हैं, परन्तु बाद में सर्वोत्तम सिद्ध होती हैं । अतएव इन कार्य-विधियों की खोज करनी चाहिए ।
Step # 4. वैकल्पिक कार्य-विधियों का मूल्यांकन (Evaluation of Alternative Courses of Actions):
किसी व्यावसायिक संस्था के लक्ष्यों तथा उद्देश्यों की प्राप्ति को ध्यान में रखकर सफल योजना का निर्माण करने के लिए विभिन्न विकल्पों का उचित मूल्यांकन करना नियोजन प्रक्रिया का चौथा कदम है । वैकल्पिक विधियों का तुलात्मक अध्ययन करना, उनका मूल्यांकन करना तथा उनमें से किसी सर्वोत्तम विधि का चुनाव करना एक कठिन कार्य है ।
प्रत्येक वैकल्पिक कार्य-विधि के अपने गुण व दोष होते हैं । एक विकल्प किसी एक दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ प्रतीत होता है तो दूसरा विकल्प किसी दूसरी दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ-प्रतीत होता है । ऐसी स्थिति में उनका तुलनात्मक मूल्यांकन करना कठिन हो जाता है । उदाहरण के लिए, कोई कार्यविधि अधिक लाभदायक तो हो सकती है, पर उसके लिए अधिक पूंजी चाहिए व जोखिम भी अधिक हो सकती है इसके विपरीत, दूसरी कार्यविधि अपेक्षाकृत कम लाभदायक है, पर उसके लिए कम पूंजी व कम जोखिम की आवश्यकता हो सकती है ।
इस प्रकार सर्वोत्तम विकल्प का चुनाव अत्यन्त कठिन होता है ऐसी स्थिति में योजनाकारों को यह देखना होगा कि प्रत्येक कार्य-विधि अथवा कार्य-मार्ग कितनी कुशलता, शीघ्रता तथा किफायत से लागू की जा सकती है । कौन-कौन-सी कार्यविधियाँ संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति से मेल खाती हैं, उनकी लागत क्या है तथा उनसे कितना लाभ हो सकता है इसलिए योजनाकारों को चाहिए कि वे नियोजन के आधारें। एवं लक्ष्यों को तथा भावी आवश्यकताओं को ध्यान में रखें तथा सतर्कता, सावधानी एवं दूरदर्शिता से कार्य लें ।
Step # 5. सर्वोत्तम कार्य-विधि का चुनाव (Selection of the Best Source of Action):
कार्य को करने के विभिन्न विकल्पों का मूल्यांकन करने के बाद यह निर्णय लिया जाता है कि उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कौन-सी कार्यविधि या कार्य-मार्ग सर्वश्रेष्ठ होगा चुनाव के सम्बन्ध में यह निर्णय अत्यन्त महत्वपूर्ण है अतएव, सर्वश्रेष्ठ कार्य-विधि का चुनाव करते समय व्यवसाय के निर्णायक तत्वों (Critical Factors) को अवश्य ध्यान में रखा जाना चाहिए इसलिए, एक विकल्प का चुनाव उसकी व्यावहारिकता, संस्था के साधनों की अनुकूलता तथा संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति में योगदान के स्तर पर निर्भर करता है ।
कभी-कभी प्रबन्धक एक सर्वोत्तम कार्य-विधि का चुनाव करने में असमर्थ रहते है ऐसी स्थिति में एक सर्वोत्तम विधि के स्थान पर अनेक कार्य-विधियों का संयोग करके एक श्रेष्ठ योजना बनाने का प्रयास किया जाता है ।
Step # 6. उप-योजनाओं का निर्माण (Formulation of Sub-Plans):
मूल, योजनाओं को सही अर्थों में लागू करने के लिए संगठन में अनेक सहयोगी योजनाओं (Supporting Plans) का निर्माण करना पड़ता है । ये योजनाएँ उप-योजनाएँ कहलाती हैं तथा मूल योजना का अंग होती हैं और उसको कार्यरूप देने के लिए संगठन के प्रत्येक भाग के लिए तैयार की जाती हैं ।
वास्तव में संस्था की मूल योजना तो एक ही होती हे परन्तु संस्था के उत्पादन विभाग क्रय-विभाग, विक्रय-विभाग, कर्मचारी विभाग आदि के लिए अलग-अलग योजनाएं-बनानी होती हैं, ये सहायक या उप-योजनाएँ स्वतन्त्र नहीं होती, बल्कि ये मूल योजना का अंग होती हैं मूल योजना बन जाने के बाद अन्य सहायक योजनाओं का निर्माण आवश्यक होता है । कूण्ट्ज तथा ओ’ डोनेल के अनुसार- “किसी योजना के प्रभावपूर्ण क्रियान्वयन के लिए सहायक योजनाएँ अत्यावश्यक हैं ।”
Step # 7. क्रियाओं का क्रम निर्धारित करना (Establishing the Sequence of Activities):
मूल योजना तथा उपयोजनाओं के तैयार हो जाने के बाद इन्हें लागू करना होता है । अत: नियोजन के इस चरण के अन्तर्गत प्रत्येक क्रिया का समय निर्धारित किया जाता है कि कब कौन-सी क्रिया प्रारम्भ होगी और कब समाप्त होगी इसी प्रकार योजनाओं के अन्तर्गत की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं का क्रम भी निर्धारित किया जाता है जिससे यह पता चलता है कि पहले कौन-सी क्रिया की जाएगी तथा उसके पश्चात् कौन-कौनसी क्रियाएँ की जाएँगी ।
Step # 8. सहयोग प्राप्त करना (Securing Participation):
नियोजन की सफलता के प्रबन्धकों तथा कर्मचारियों का सहयोग प्राप्त करना आवश्यक होता है । प्रत्येक योजना कर्मचारियों को अच्छी प्रकार समझाई जानी चाहिए जिससे योजना को लागू करने में उनका सहयोग प्राप्त हो सके । इसी प्रकार विभागीय प्रबन्धकों का सहयोग प्राप्त करना भी बहुत हितकर होता है ।
Step # 9. नियोजन का अनुवर्तन (Follow-Up of the Plan):
नियोजन प्रक्रिया में वाँछित परिणामों को मालूम करते रहना चाहिए । यदि पूर्व-निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं हो पा रही है, तो इसके कारणों को मालूम करके नियोजन में आवश्यकतानुसार सुधार करना चाहिए क्योंकि नियोजन निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है, इसलिए नियोजन का भी निरन्तर अनुवर्तन अथवा समीक्षा करते रहना चाहिए ।