Read this article in Hindi to learn about the techniques used for motivating employees in an organisation. The ways are: 1. Positive and Negative Motivation 2. Financial and Non-Financial Motivation 3. Individual and Group Motivation 4. External and Internal Motivation.
अभिप्रेरणाओं को निम्नलिखित भाग विभाजित किया जा सकता है:
Technique # 1. धनात्मक एवं ऋणात्मक अभिप्रेरणाएँ (Positive and Negative Motivation):
(i) धनात्मक अभिप्रेरणाएँ (Positive Motivation):
एडविन बी.के अनुसार- ”धनात्मक अभिप्रेरणा वह प्रक्रिया है जिनके द्वारा लाभ या पारिश्रमिक का प्रलोभन देकर कर्मचारियों को अपनी इच्छनुसार काम लेने के लिए अभिप्रेरित किया जाता है ।” धनात्मक अभिप्रेरणा को सकारात्मक अभिप्रेरणा भी कहा जाता है । ऐसी अभिप्रेरणा वित्तीय एवं अवित्तीय दोनों तरह की हो सकती है ।
धनात्मक अभिप्रेरणा कर्मचारियों को आनन्द तथा सन्तुष्टि प्रदान करती है तथा केर्मचारियों को निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए पूर्ण सहयोग देने के लिए प्रेरित करती है । यह अभिप्रेरणा कर्मचारियों के मनोबल को बढ़ती है, उनकी परिवेदनाएं (Grievances) को दूर करती है तथा उन्हें अपने विचार प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान करती है ।
इस तरह धनात्मक अभिप्रेरणा का अभिप्राय एक ऐसी क्रिया से है जिसमें कार्य करन बाल व्याँक्त का कुछ लाभ पुरस्कार या अधिक अधिकार देकर अधिक कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाता है । इस प्रकार की अभिप्रेरणा का कर्मचारियों के व्यव्हार पर अनूकूल प्रभाव पड़ता है तथा उसकी कार्य के प्रति रुचि एवं शक्ति का विकास होता है ।
धनात्मक अभिप्रेरणा में निम्न प्रेरणाएँ दी जाती हैं:
(a) अधीनस्थों में व्यक्तिगत रुचि दिखाना;
(b) नकद पारिश्रमिक देना;
(c) वेतन व मजदूरी देना;
(d) कुशल तथा योग्य कर्मचारियों के बारे में सूचनाएँ प्रसारित करना;
(e) कर्मचारियों को निर्णय लेने एवं प्रबन्ध करने में हिस्सा देने का मौका देना;
(f) कार्य की सुरक्षा (Security of Job) का विश्वास दिलाना;
(g) कार्य से सन्तुष्ट करना (Job-Satisfaction);
(h) अधिकार सौंपना;
(i) स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का वातावरण तैयार करना;
(j) किए गए कार्य की प्रशंसा करना तथा कर्मचारियों को सम्मान देना;
(k) मान्यता (Recognition) प्रदान करना;
(l) कल्याणकारी सुविधाएँ (Welfare Facilities) प्रदान करना;
(m) कर्मचारियों को पुरस्कृत करना;
(n) पदोन्नति करना;
(o) कर्मचारियों के प्रति विश्वास एवं निष्ठा रखना आदि ।
आजकल व्यावसायिक तथा औद्योगिक जगत् में अधिकतर इन्हीं धनात्मक आम प्रेरणाओं का प्रयोग व्यापक पैमाने पर किया जाता है ।
(ii) ऋणात्मक अभिप्रेरणाएँ (Negative Motivation):
एडविन बी. फिलिप्पो के अनुसार ऊणात्मक अभिप्रेरणा का उद्देश्य की धनात्मक अभिप्रेरण की तरह अन्य व्यक्तियों को अपनी इच्छानुसार कार्य करने के लिए प्रेरित करना है, परन्तु इस अभिप्रेरणा की तकनीक का आधार भयपूर्ण दबाव होता है ।
इस प्रकार ऋणात्मक अभिप्रेरणा का सम्बन्ध भय कठोरता, धमकी तथा आलोचनाओं से है । इस अभिप्रेरणा के समर्थकों की यह मान्यता है कि व्यक्तियों को कभी-कभी भय या डर या दबाव या दण्ड के आधार पर अभिप्रेरित करना पड़ता है ।
यदि कोई कर्मचारी काफी कोशिशों के बावजूद भी समय पर नहीं आता या अपने काम में सुधार नहीं करता है या समूह को सहयोग नहीं करता तो ऐसी स्थितियों में ऋणात्मक अभिप्रेरणा को काम में लाना पड़ता तथा उसे रोजगार की समाप्ति या वेतन में कटौती आदि का डर दिखाना पड़ता है जिससे कि वह अपने कार्य-व्यवहार में सुधार कर सके ।
इस तरह से अभिप्रेरणाएँ किसी विशिष्ट व्यवहार को हतोत्साहित करने (Discourage) के लिए प्रयोग में लायी जाती हैं । ऋणात्मक अभिप्रेरणा को नकारात्मक अभिप्रेरणा भी कहा जाता है ।
इन अभिप्रेरणाओं में निम्नलिखित को शामित किया जा सकता है:
(i) सेवा-मुक्ति (बर्खास्त करना);
(ii) आलोचना व निन्दा करना;
(iii) भय दिखाना तथा डाँट-फटकार लगाना;
(iv) उपेक्षा करना (To Ignore);
(v) घटिया तरीके से व्यवहार करना;
(vi) वेतन में कटौती करना;
(vii) बढ़ोतरी (Increment) को रोकना,
(viii) पदावनति (Demotion) करना,
(ix) अन्य सुविधाओं को समाप्त करना;
(x) जबरी (Lay off) करना आदि ।
हठी या जिद्दी किस्म के व्यक्तियों से काम लेने के लिए इन प्रेरणाओं का प्रयोग करना पड़ता है । यद्यपि ऋणात्मक प्रेरणाएँ काफी प्रभावशाली होती हैं, किन्तु उनका प्रयोग आवश्यक स्थितियों में ही करना चाहिए । कारण, यह कि जिन कर्मचारियों को ऐसी अचिप्रेरणाएँ दी जाती हैं वे अशांत, असन्तुष्ट विद्रोही तथा संघर्षशील हो जाते हैं । ऐसे कर्मचारी सहयोग नहीं करते ।
इस तरह ऋणात्मक अभिप्रेरणा प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं (Unfavourable Reactions) को जन्म देता है । इसलिए ऐसी अभिप्रेरणाओं का प्रयोग सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए ।
इन दोनों अभिप्रेरणाओं में अन्तर होते भी ये दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं । अत: किसी भी संस्था में दोनों प्रकार की अभिप्रेरणाओं को अपनाना पड़ता है । फिर भी, जहाँ तक सम्भव हो, धनात्मक अभिप्रेरणा को ही अपनाना चाहिए ।
Technique # 2. वित्तीय और अवित्तीय अभिप्रेरणाएँ (Financial and Non-Financial Motivation):
(a) वित्तीय अभिप्रेरणाएँ (Financial Motivation):
इन्हें मौद्रिक अभिप्रेरणाएँ (Monetary Motivation) भी कहते हैं । वित्तीय अभिप्रेरणाओं में वे सभी साधन शामिल किए जाते हैं जिनका मुद्रा से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सम्बन्ध होता है । इस तरह, जब किसी कार्य के निष्पादन के प्रतिफल के रूप में दिया जाने वाला पारिश्रमिक मुद्रा में दिया है, तो यह वित्तीय या मौद्रिक अभिप्रेरणा कहलाती है ।
वित्तीय अभिप्रेरणा अधिकतर वेतन, मजदूरी, प्रीमियम, बोनस, लाभांशभागिता, पैन्शन आदि के रूप में दी जाती है । यह अभिप्रेरणा अत्यन्त प्रभावशाली तथा महत्वपूर्ण होती है । क्योंकि मुद्रा की सर्व-व्यापक है तथा यह बहुत-सी आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करती है । इसलिए इसे अभिप्रेरणा का एक महत्चपूर्ण साधन माना गया है । मार्शल (Marshal) ने सबसे अधिक शक्तिशाली प्रेरणा घटक-मजदूरी या वेतन को माना है ।
वित्तीय अभिप्रेरणा को देते समय एक उचित योजना बनाई जानी चाहिए ऐसी योजना का निर्माण निम्नलिखित सिद्धान्तों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए:
(i) जीवन-निर्वाह सिद्धान्त:
दिया जाने वाले पारिश्रमिक या परिपूर्ति (मुआवजा) (Compensation) इतनी अवश्य होनी चाहिए कि वह कर्मचारी के लिए पर्याप्त हो तथा वह अपना जीवन-निर्वाह कर सके ।
(ii) अर्थशास्त्र का सिद्धान्त:
दिया जाने वाले पारिश्रमिक अथवा दी जाने वाली अभिप्रेरणा ऐसी न हो कि संस्था की आर्थिक स्थिति बिगड़ जाए अर्थात् संस्था के वित्तीय स्वास्थ्य पर उसका विपरीत प्रभाव न पड़े ।
(iii) प्रतिस्पर्धा का सिद्धान्त:
इस सिद्धान्त के अनुसार दी जाने वाली अभिप्रेरणा की राशि प्रतिस्पर्धात्मक होनी चाहिए यदि यह प्रतिस्पर्धात्मक नहीं होगी तो न तो यह कर्मचारियों को आकर्षित कर सकेगी न बनाए रख सकेगी और ही उन्हें अभिप्रेरित कर सकेगी ।
(iv) विभिन्नता सिद्धान्त:
इस सिद्धान्त के अनुसार वित्तीय अभिप्रेरणा विभिन्न योग्यता तथा क्षमता वाले कर्मचारियों के लिए भिन्न-भिन्न भी हो सकती है ।
(v) सहयोग का सिद्धान्त:
कर्मचारियों के सहयोग प्रबन्धक तभी प्राप्त कर सकते हैं जब वे कर्मचारियों की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करें उन्हें सुरक्षा व मान्यता प्रदान करें; तभी उन्हें अभिप्रेरित किया जा सकता है ।
(vi) परिवर्तन का सिद्धान्त:
इस सिद्धान्त के अनुसार वित्तीय अभिप्रेरणा ऐसी होनी चाहिए जिसे आवश्यकताओं के अनुसार बदला जा सके ।
(vii) अन्य सिद्धान्त:
(a) वित्तीय अभिप्रेरणा सरल तथा समझने योग्य होनी चाहिए ।
(b) प्रत्येक संस्था को अपनी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर अभिप्रेरणा योजना बनानी चाहिए ।
(c) ऐसी योजना का सम्बन्ध संस्था की दीर्घकालीन सफलता के साथ होना चाहिए ।
वित्तीय अभिप्रेरणाओं में मुख्यतया निम्न प्रेरणाओं को शामिल किया जाता है:
(i) वेतन या मजदूरी या कमीशन आदि के रूप में नकद पारिश्रमिक;
(ii) बोनस देना;
(iii) लाभ विभाजन;
(iv) नि:शुल्क चिकित्सा सुविधाएं;
(v) छुट्टियों क्या वेतन;
(vi) विभिन्न प्रीमियम योजनाएँ- उत्पादकता में वृद्धि होने पर प्राप्त लाभ में से कर्मचारियों को हिस्सा देना;
(vii) विशेष वार्षिक वृद्धियाँ (Special Annual Increments);
(viii) प्रोवीडैण्ड फण्ड में अधिक अंशदान (Contribution);
(ix) पेन्शन तथा ग्रेच्यूइटी में वृद्धि (Increase in Pension and Gratuity);
(x) अधिलाभांश (Dividend) देना;
(xi) नि:शुल्क स्वास्थ्य बीमा;
(xii) इनाम;
(xiii) नि:शुल्क मकान, कार, नौकर;
(xiv) विनियोग पर ब्याज आदि ।
उपरोक्त अभिप्रेरणाएँ कर्मचारियों की मूलभूत आर्थिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करती हैं व्यक्ति को अभिप्रेरित करने में इन अभिप्रेरणाओं की अहम् भूमिका होती है ।
(b) अवित्तीय अभिप्रेरणाएँ (Non-Financial Motivation):
इन्हें अमौद्रिक अभिप्रेरणा भी कहते हैं । अवित्तीय अभिप्रेरणा का अभिप्राय उन प्रेरणाओं से है जिनका मुद्रा से कोई सम्बन्ध नहीं है, अर्थात् जिन्हें देने के लिए मुद्रा की आवश्यकता नहीं होती है । अवित्तीय अभिप्रेरणा मानसिक एवं अदृश्य अभिप्रेरणा होती है । यह अभिप्रेरणा तो कर्मचारियों की सामाजिक एव मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करती है । इन अभिप्रेरणाओं के समर्थकों केअनुसार मनुष्य केवल धन के लिए कार्य नहीं करता वह अपनी मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करना चाहता है ।
मनुष्य के अपने जीवन-मूल्य होते हैं और वह उनकी प्राप्ति के लिए भी कार्य करता है । इसलिए सदैव व सभी दशाओं में धन या मुद्रा कर्मचारियों को अभिप्रेरित नहीं करती इसलिए अवित्तीय या अमौद्रिक अभिप्रेरणाएँ भी कर्मचारियों को प्रेरित करने के लिए आवश्यक होती हैं । इन अभिप्रेरणाओं के विकास का श्रेय समाजशास्त्रियों तथा मनोवैज्ञानिक विद्वानों को जाता है ।
इन अभिप्रेरणाओं से कर्मचारियों को व्यक्तिगत तथा सामाजिक सन्तुष्टि प्राप्त होती है तथा उसमें समूह-भावना विकसित होती है । ये अभिप्रेरणाएँ कर्मचारियों की अनुपस्थिति तथा प्रत्यावर्तन (Turnover) में कमी लाती है । अत: अवित्तीय अभिप्रेरणाओं को भी किसी संस्था में महत्वपूर्ण स्थान होता है ।
अवित्तीय प्रेरणाओं में मुख्यतया निम्नलिखित को शामिल किया जाता है:
(i) भय का अभाव (Lack of Fear):
यह एक सर्वमान्य सत्य है कि कर्मचारियों को भयभीत करके उनसे कुछ समय तक अधिक कार्य लिया जा सकता है, लेकिन अधिक समय तक नहीं, क्योंकि कर्मचारी भय से परिश्रमपूर्वक कार्य तो करते हैं लेकिन स्वेच्छा से नहीं । ऐसा करना अल्प समय के लिए तो लाभप्रद हो सकता है लेकिन दीर्घकाल के लिए नहीं, अत: कर्मचारियों को भयभीत करने वाली अभिप्रेरणाओं के स्थान पर स्वतन्त्र रूप में कार्य करने योग्य अभिप्रेरणाएँ दी जानी चाहिए । भय की भावना कुछ समय तक के लिए श्रमिकों में रहती है लेकिन इसे हटाने पर विरोध में और विरोध बदले की भावना में परिणित हो जाता है जो उद्योग के लिए घातक सिद्ध होता है ।
(ii) नौकरी की सुरक्षा (Security of Services):
प्रत्येक श्रमिक केवल यह ही नहीं चाहता कि उसे एक निश्चित समय के बाद उचित मजदूरी या वेतन के रूप में एक निर्धारित राशि मिल जाये बल्कि यह भी चाहता है कि उनकी नौकरी स्थायी एवं सुरक्षित हो ।
छाँटनी, पद अवनति (Demotion) या सेवा मुक्ति आदि जोखिमें उसकी सेवा में नहीं होनी चाहिए यदि एक कर्मचारी यह महसूस करता है कि आज उसे इस उद्योग से और कहीं किसी दूसरे उद्योग में कार्य करना है तो वह मन लगाकर कार्य नहीं करता और उसके मानसिक तनाव में वृद्धि होती है ।
जिसका अन्तिम परिणाम यह होता है कि उत्पादन की मात्रा एवं किस्म में गिरावट होती है । इसके विपरीत ऐसे उद्योग में जहाँ श्रमिकों की नौकरी सुरक्षित होती है वहाँ उत्पादन अधिक मात्रा में होता है और उसका मनोबल उच्च होता हे इसलिए यह देखने को मिलता है कि श्रमिक कम मजदूरी वाले स्थायी कार्य को अधिक मजदूरी वाले अस्थायी कार्य की तुलना में करना अधिक पसन्द करते हैं ।
(iii) मान्यता तथा प्रशंसा (Recognition and Praise):
अधिकांश व्यक्ति अपने द्वारा किये गये कार्यों के बारे में मान्यता प्राप्त करना चाहते हैं । मेरी कुशिंग नाइल्स (Marry Cushing Nilam) के अनुसार- कार्य को मान्यता और मनुष्य को एक मानवीय प्राणी होने के नाते मान्यता प्रदान करना अच्छे कार्य की प्राप्ति का सार है यद्यपि पर्यवेक्षक के लिए प्रत्येक कर्मचारी और उनके कार्य की प्रशंसा करना असम्भव होता है, फिर भी उनकी तथा उनके कार्यों की प्रशंसा की जानी चाहिए । क्योंकि यह कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने का एक महत्वपूर्ण साधन होता है । इससे कर्मचारियों के अहम की तुष्टि होती है ।
(iv) भागीदारी (Participation):
औद्योगिक प्रजातन्त्र की स्थापना के लिए कर्मचारियों को प्रबन्ध में हिस्सा दिया जाना नितान्त आवश्यक है । उद्योग की नीति-निर्धारण कार्य में कर्मचारियों को पूर्ण हिस्सा दिया जाना चाहिए कर्मचारियों की नीति-निर्धारण में हिस्सा देने से निर्धारित की गयी नीतियों का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन हो जाता है और कर्मचारी भी अधिक कार्य करने के लिए प्रेरित होते हैं ।
(v) पदोन्नति के अवसर (Promotional Opportunities):
प्रत्येक मानव में यह भावना होती है कि वह उन्नति करे और इसके लिए वह विकास के अवसरें । की आशा करता है । अत: उद्योगों में प्रत्येक कर्मचारी के विकास के लिए पर्याप्त अवसर होने चाहिए कर्मचारियों को उनकी योग्यता, अनुभव और वरीयता के आधार पर पदोन्नत किया जाना चाहिए । यद्यपि कुछ व्यक्ति पदोन्नति पदों पर कार्य करना पसन्द नहीं करते क्योंकि ऐसा होने से उनकी जिम्मेदारियों में वृद्धि हो जाती है, फिर भी अधिकांश व्यक्ति पदोन्नति पद पर कार्य करना चाहते हैं अत: उद्योग में पदोन्नति के पर्याप्त अवसर होने चाहिए ।
(vi) अधिकारों का भारार्पण (Delegation of Authority):
किसी व्यक्ति को कार्य-भार सौंपना ही पर्याप्त नहीं है अपितु उसे इस कार्य-भार को पूरा करने के लिए आवश्यक अधिकार भी प्रदान किये जाने चाहिए । उच्च अधिकारियों द्वारा अधीनस्थों को अधिकारों का भारार्पण करना उन्हें अभिप्रेरित करने का एक मुख्य घटक है । ऐसा करने से कर्मचारियों में कार्य की भावना प्रोत्साहित होती है और उनमें विश्वास भी भावना पैदा होती है । परिणामत: श्रमिकों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है और उनका विकास भी होता है ।
(vii) अच्छा नेतृत्व (Good Leadership):
उद्योग की सफलता अथवा असफलता नेतृत्व पर निर्भर करती है । अच्छा नेतृत्व विभिन्न रुचि के कर्मचारियों में कार्य के प्रति समान रुचि जाग्रत करता है और-उन्हें एक धागे में पिरोकर मार्ग-प्रशस्त करता है । अत: किसी औद्योगिक संस्था में प्रबन्ध स्तर के सभी व्यक्तियों को अपने अधीनस्थों के समक्ष आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए कर्मचारियों के प्रति सम्मानजनक दृष्टिकोण उनकी समस्याओं के निवारण में रुचि तथा निरीक्षण कार्य में उनके साथ सद्व्यवहार आदि बातें श्रम-प्रबन्ध को मधुर बनाती है । अच्छे नेतृत्व में संस्था में मानव, सामग्री एवं यन्त्र आदि सभी का अपव्यय कम हो जाता है और उत्पादन बढ़ जाता है ।
(viii) कार्य में गर्व की भावना (Pride in the Job):
यह निर्विवाद सत्य है कि प्रत्येक कर्मचारी यह अनुभव करना चाहता है कि जिस संस्था में वह कार्य कर रहा है जिस वस्तु का यह उत्पादन कर रहा है वह सर्वश्रेष्ठ है यद्यपि वर्तमान मशीनीकरण के युग में इस भावना का निर्वाह एवं विकास अत्यन्त कठिन हो गया है फिर भी प्रत्येक व्यक्ति की इस भावना का निर्वाह एवं विकास करना अत्यन्त आवश्यक होता है । अच्छा उत्पादन, परिवर्तनशील नेतृत्व उचित व्यवहार और समाज के प्रति सेवा आदि अनेक बातें एक कर्मचारी का कम्पनी में गर्व की भावना को प्रोत्साहित करती है ।
(ix) वैयक्तिक स्थिति (Individual Status):
प्रत्येक व्यक्ति को अपनी योग्यता, कुशलता एवं स्थिति का गर्व होना है और वह चाहता है कि उसे कार्य में एक महत्वपूर्ण स्थिति प्राप्त हो तथा उसे उत्पादन कार्य में अति आवश्यक समझा जाये । अत: औद्योगिक संस्थाओं में अभिप्रेरणाएँ प्रदान करते समय प्रबन्धकों को यह चाहिए कि प्रत्येक कार्य में श्रमिक का इस प्रकार का सम्बन्ध स्थापित करें जिससे श्रमिक यह अनुभव करने लग जाए कि वह कार्य उसी पर निर्भर है । जब श्रमिक को ऐसा अनुभव होने लगता है तब वह अधिक परिश्रम व जिम्मेदारी से कार्य करने लगता है ।
(x) न्याय (Justice):
सभी कर्मचारियों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए । वेतन एवं मजदूरी भी न्यायोचित होनी चाहिए । यदि कर्मचारी अश्वस्त ही कि उनके साथ न्यायोचित व्यवहार किया जाएगा तो वे अधिक लगन से कार्य करेंगे ।
(xi) कार्य करने की अच्छी दशाएँ (Good Working Conditions):
इसमें कार्य की आन्तरिक दशाएं तथा बाहरी दशाएँ दोनों शामिल की जा सकती हैं । यदि कर्मचारियों को अच्छा वातावरण मिलता है तो निश्चय ही उनके कार्य करने की क्षमता में वृद्धि होगी और वे संस्था में अधिक मेहनत से कार्य करने में रुचि लेंगे ।
(xii) कृत्य बदलाव (Job-Rotation):
इस व्यवस्था के अन्तर्गत कर्मचारी का एक कार्य से दूसरे कार्य का बदलाव किया जाता है इस कृत्य-बदलाव से कार्य के सम्बन्ध में उत्पन अरुचि एवं असन्तुष्टि में कमी आती है तथा वह नये कार्य पर अधिक मेहनत से कार्य कर सकेगा ।
(xiii) कुशल संदेशवाहन व्यवस्था (Efficient Communication System):
उपक्रम में कार्य करने वाले व्यक्तियों का सहयोग प्राप्त करने के लिए प्रभावशाली सन्देशवाहन व्यवस्था का निर्माण करना लाभदायक होगा । कुशल सन्देशवाहन व्यवस्था के माध्यम से एक प्रबन्धक कर्मचारियों को कम्पनी की सभी योजनाओं से अवगत करा सकते है तथा उपक्रम के कर्मचारी के मन में उत्पन्न भ्रमों को दूर कर सकते है, जिनका कर्मचारियों की कार्य-क्षमता पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है ।
(xiv) अच्छे मानवीय सम्बन्ध (Good Human Relations):
अच्छे मानवीय सम्बन्धों का अभिप्राय इस प्रकार के सम्बन्धों के विकास से है जिससे कर्मचारियों में अपनत्व की भावना का विकास हो सके तथा वे अपने आर्थिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक सन्तोष के लिए मिलकर संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने का कार्य कर सकें इसका अभिप्राय यह बिकुल नही लगाना चाहिये कि इसमें निर्देशन बिल्कुल ही नहीं होता है । यदि उपक्रम में काम करने वाले व्यक्तियों को पहल करने के तथा स्वयं-विकास करने के सभी अवसर प्रदान किये जायें तो वह पहले की अपेक्षा अधिक रुचि से कार्य करेगा ।
(xv) कृत्य पोषण (Job Enrichment):
कृत्य पोषण से अभिप्राय कृत्य को पहले की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण तर्कसंगत, रुचिकर एवं मान्यता वाला बनाने से है । एक कृत्य में कर्मचारियों को निर्णय लेने की अधिक स्वतन्त्रता प्रदान कर, उनको सहभागिता प्रदान कर, अधिक उत्तरदायित्व प्रदान कर, व्यक्तिगत विकास के अवसर प्रदान कर अभिप्रेरित किया जा सकता है ।
कृत्य पोषण क्योंकि कार्य को रुचिकर, चुनौतीपूर्ण, महत्वपूर्ण एवं तर्कसंगत बनाता है, इसलिए इससे कर्मचारियों की उत्पादकता बढ़ेगी, अनुपस्थिति की दर में कमी आयेगी कार्य सन्तुष्टि में वृद्धि होगी तथा कार्य करने की इच्छा एवं प्रतिबद्धता में सुधार आयेगा । अत: इसे कर्मचारियों के प्रेरणा का महत्वपूर्ण साधन माना जा सकता है । अनेक सर्वेक्षणों से पता चलता है कि कृत्य पोषण से कर्मचारियों का नैतिक उत्थान होगा एवं उनकी प्रवृत्ति में सुधार आयेगा ।
वर्तमान में कुछ विद्वानों द्वारा प्रेरणा की तकनीक के रूप में कृत पोषण की आलोचना की गई है । कुल आलोचनाएं निम्न है:
सभी प्रकार के कृत्यों को न तो रुचिकर बनाना सम्भव है और न ही अर्थपूर्ण, यह एक खर्चीली पद्धति है एवं कुछ आलोचकों की मान्यता है कि अधिकांश कर्मचारी कृत्य पोषाभ के स्थान पर अपनी शारीरिक एवं सुरक्षा की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करना चाहते हैं ।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि किसी भी संस्था में कर्मचारियों को प्रेरित करने के लिए वित्तीय तथा अवित्तीय अभिप्रेरणाएं दोनों उसी प्रकार आवश्यक होतीं हैं जिस प्रकार चलने के लिए किसी व्यक्ति को कुनह पैरों की आवश्यकता होती है ।
Technique # 3. व्यक्तिगत तथा समूह अभिप्रेरणाएँ (Individual and Group Motivation):
(i) व्यक्तिगत अभिप्रेरणाएँ (Individual Motivation):
ये वे प्रेरणाएं हैं जिनमें एक व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से प्रेरित किया जाता है । इन प्रेरणाओं से एक व्यक्ति को व्यक्तिगत सन्तुष्टि प्राप्त होती है । उसकी कार्यक्षमता में वृद्धि होती हैं तथा वह अपने आप को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है ।
इन प्रेरणाओं में निम्नलिखित को शामिल किया जा सकता है:
(a) प्रशंसा तथा नौकरी की सुरक्षा;
(b) प्रेरणात्मक वेतन पद्धति;
(c) भावी पदोन्नति का प्रलोभन;
(d) रचनात्मक प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन देकर;
(e) सहभागिता प्रदान करके;
(f) सम्मान देकर;
(g) मान्यता प्रदान करना आदि ।
जिस उद्योग में कार्य ऐसा हो कि कर्मचारियों के व्यक्तिगत कार्य को मापा जा सकता हैं तथा उसका मूल्यांकन किया जा सकता है वहाँ व्यक्तिगत अभिप्रेरणाएँ अधिक उपयोगी सिद्ध होती हैं ।
व्यक्तिगत अभिप्रेरणा के लाभ (Advantages of Individual Motivation):
किसी उद्योग में कर्मचारियों को व्यक्तिगत अभिप्रेरणाएँ प्रदान करने से निम्न लाभों की प्राप्ति होती है:
(a) यह अभिप्रेरणा कर्मचारियों को अत्यधिक कार्य करने की ओर प्रेरित करती है । इसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपने द्वारा किये गये कार्य के फलस्वरूप आवश्यक प्रयत्न मिलता है । अत: वह अधिक प्रयत्न करने के लिए प्रेरित होता है ।
(b) कर्मचारियों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है और उनका मनोबल उच्च होता है ।
(c) अकार्यकुशल कर्मचारी अभिप्रेरणाओं के प्रलोभन से कार्य करने के लिए प्रेरित होते हैं, अत: उनकी भी कार्यक्षमता का विकास होता है ।
(d) इस प्रकार की अभिप्रेरणाओं से कर्मचारियों को व्यक्तिगत सन्तुष्टि प्राप्त होती है जो उनकी मनोवैज्ञानिक उत्तेजना के लिए आवश्यक है ।
(e) इस प्रकार की अभिप्रेरणाओं का प्रशासन सरल एवं प्रभावी होता है । इसमें प्रत्येक व्यक्ति के कार्यों का आसानी से मूल्यांकन किया जा सकता है और उसके प्रतिफल की गणना भी शीघ्रता से की जा सकती है । प्रतिफल की गणना शीघ्र हो जाने से अभिप्रेरणाएँ भी शीघ्र प्रदान की जा सकती हैं जो श्रमिक के लिए अधिक प्रभावी सिद्ध होती है ।
(ii) सामूहिक अभिप्रेरणाएँ (Group Motivation):
ये वे प्रेरणाएँ होती हैं जो कि समूह को एक साथ अधिक मेहनत से कार्य करने के लिए प्रेरित करती हैं । इन प्रेरणाओं से आपसी संघर्ष एवं मतभेद कम होते हैं । प्रबन्धन का कार्य-भार कम हो जाता है तथा सामूहिक व्यवहार में सुधार आता है ।
इनमें निम्नलिखित को शामिल किया जा सकता है:
(a) विशिष्ट वार्षिक वृद्धियाँ (Special Annual Increments);
(b) अधिलाभांश तथा सामूहिक पुरस्कार;
(c) पैन्श्न तथा लाभों में सहभागिता;
(d) समितियों का निर्माण;
(e) दलीय भावना (Team Spirit) का विकास;
(f) स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का विकास;
(g) मानवीय सम्बन्धों की स्थापना;
(h) नैतिक उत्थान;
(i) कुशल सन्देशवाहन;
(j) विभागीय पारितोषण आदि ।
जहाँ कर्मचारियों के व्यक्तिगत कार्य को मापना सम्भव न हो तथा कार्य पूर्णता के लिए के लिए सभी कर्मचारियों को एक-दूसरे पर निर्भर रहना पड़े वहाँ समूह अभिप्रेरणाएँ अधिक उपयोगी तथा लाभप्रद होती हैं ।
समूह अभिप्रेरणा के लाभ (Advantages of Group Motivation):
समूह अभिप्रेरणाओं से निम्नलिखित लाभों की प्राप्ति होती है:
(a) इस प्रकार की अभिप्रेरणाओं से समूह कर्मचारियों में आपसी मतभेद एवं संघर्ष की भावना कम हो जाती है और उनके मध्य समूह-भावना का विकास होता है ।
(b) इस प्रकार की अभिप्रेरणाओं से कर्मचारियों पर अत्यधिक पर्यवेक्षण की आवश्यकता नहीं रहती फलत: पर्यवेक्षण व्ययों में कमी आती है ।
(c) इस प्रकार की अभिप्रेरणाओं से कर्मचारियों की अनुपस्थिति में कमी आती है और उद्योग में कर्मचारियों की देर से कार्य पर आने की प्रवृत्ति भी समाप्त-सी हो जाती है । यह दोनों बातें कर्मचारी और उद्योग दोनों के लिए लाभप्रद होती हैं ।
(d) उपर्युक्त सभी का प्रभाव यह होता है कि उत्पादित वस्तु की प्राप्ति इकाई लागत में कमी आ जाती है जो उपभोक्ता समुदाय और राष्ट्र के लिए हितकर होती है ।
(e) समूह अभिप्रेरणाएं औद्योगिक शान्ति बनाये रखने में भी सहायक सिद्ध होती हैं ।
Technique # 4. बाह्य तथा आन्तरिक अभिप्रेरणाएँ (External and Internal Motivation):
(a) बाह्य अभिप्रेरणाएँ (External Motivation):
इन अभिप्रेरणाओं के अन्तर्गत वे सभी घटक शामिल किए जाते हैं जो कि कार्य के पश्चात् अथवा कार्य से दूर प्राप्त होते हैं । ये अभिप्रेरणाएंकार्य के दौरान उत्पन्न नहीं होती है, परन्तु कार्य के समय लाभ प्रदान करती है ।
सेवा-निवृत्ति योजनाएँ, स्वास्थ्य बीमा, छुट्टियाँ, परेशान आदि बाहरी अभिप्रेरणा के उदाहरण है । इनमें से कोई घटक कर्मचारियों को कार्य के दौरान प्रेरणा प्रदान नहीं करता । इर्जबर्ग के अनुसन्धानों से पूर्व, प्रबन्धक बाह्य अभिप्रेरक तत्वों को अधिक महत्व देते थे जिनका परिणाम बहुत अनुकूल नहीं होता है । इन अनुसन्धानों के बाद अभिप्रेरणा के आन्तरिक घटकों को महत्व दिलाया जाने लगा है जिन्हें अभिप्रेरणा के लिए बाहरी तत्वों से अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है ।
(b) आन्तरिक अभिप्रेरणाएं (Internal Motivation):
ये वे अभिप्रेरणाएँ हैं जो कार्य के निष्पादन के समय उत्पन्न होती है । इनका सम्बन्ध कार्य करने की प्रेरणा से सीधा सम्बन्ध होता है । ये अभिप्रेरणाएँ कार्य के समय सन्तुष्टि प्रदान करती है । इनकी प्रकृति अक्सर अमौद्रिक होती है । इनमें मान्यता, सम्मान, उन्नति, उत्तरदायित्व, सहभागिता, उपलब्धि आदि को शमिल किया जाता है ।
प्रेरणा एवं अभिप्रेरणा में अन्तर (Difference between Incentive and Motivation):
प्रेरणा और अभिप्रेरणाएँ दो ऐसे शब्द हैं जिनका अधिकांश व्यक्ति एक ही अर्थ लगाते हैं लेकिन यह गलत है । इन दोनों में पर्याप्त अन्तर है ।
हर्जबर्ग (Herzberg) ने जहां एक ओर अभिप्रेरणा की एक नवीन विचारधारा का विकास किया वहां दूसरी ओर प्रेरणा एवं अभिप्रेरणा में अन्तर स्पष्ट किया है । प्रेरणा (Incentive) वह बाह्य वस्तु है जो एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को देता है । जबकि अभिप्रेरणा (Motivation) आन्तरिक है जो व्यक्ति में स्वयं होती है । इस प्रकार यह स्पष्ट है कि प्रेरणाएं एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को दी जाती है, जबकि अभिप्रेरणाएँ एक व्यक्ति में स्वयं होती है ।
इन दोनों के मध्य अन्तर को हम निम्न उदाहरण द्वारा और अधिक स्पष्ट कर सकते हैं:
प्रेरणाएँ (Incentives) कुछ हद तक बैटरी (Battery) के समान है जिसे चार्ज (Charge) एवं रिचार्ज (Recharge) करने की आवश्यकता होती है, जबकि अभिप्रेरणाएँ एक जेनरेटर (Generator) के समान है जिसे बाहरी उत्तेजना या प्रोत्साहन (Stimulation) की आवश्यकता नहीं होती ।