Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning of Written Communication Process 2. Characteristics of Written Communication 3. Utility 4. Methods 5. Essentials 6. Merits 7. Limitations.

Contents:

  1. लिखित संचार प्रक्रिया का अर्थ (Meaning of Written Communication Process)
  2. लिखित संचार की विशेषताएँ (Characteristics of Written Communication)
  3. लिखित संचार की उपयोगिता (Utility of Written Communication)
  4. लिखित संचार के साधन (Methods of Written Communication)
  5. प्रभावी लिखित संचार के आवश्यक तत्व (Essentials of Effective Written Communication)
  6. लिखित संचार के गुण (Merits of Written Communication)
  7. लिखित संचार की सीमाएँ (Limitations of Written Communication)


1. लिखित संचार प्रक्रिया का अर्थ (Meaning of Written Communication Process):

लिखित संचार प्रक्रिया से आशय उस सन्देश सम्प्रेषण से है जो लिखित में हो । लिखित सम्प्रेषण के लिए पत्र, पत्रिकाएँ, बुलेटिन, समाचार-पत्र रिपोर्ट, पैष्फलेट डायरियाँ, फैक्स, ई-मेल, काम्पैक्ट डिस्क फ्लापी हैण्डबुक और मैन्यूअल्स तथा सुझाव पुस्तके आदि का प्रयोग किया जा सकता है । इसमें श्रमिकों के लिए निर्देश एवं उनके लिए उपयोगी सूचनाएँ आदि प्रसारित की जाती हैं ।

लिखित सन्देश को तैयार करने मैं बड़ी सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है । यह स्पष्ट सुन्दर तथा आकर्षक ढंग से लिखा होना चाहिए । सन्देश की भाषा ऐसी हो जिसके अनेक अर्थ न निकलते हों । अशुद्धि के कारण अनावश्यक विवाद उत्पन्न हो सकता है, अत: भाषा की शुद्धता पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ।

सन्देश संक्षिप्त रूप में लिखा हो, जिससे पढ़ने वाले का समय व्यर्थ न हो और वह सन्देश का आशय तुरन्त ग्रहण कर सके । किन्तु भाषा की संक्षिप्तता से तात्पर्य विषय-सामग्री की अपूर्णता या अभद्रता कदापि नहीं है । सन्देश में प्रस्तुत की गई सामग्री में क्रमबद्धता एवं धारावाहिकता का होना भी नितान्त आवश्यक है ।

विचारों को क्रमबद्ध तरीके से न रखने के कारण अस्पष्टता उत्पन्न हो जाती है । इसके अतिरिक्त संदेशों की भाषा भी शिष्ट, नम्र तथा सम्मानपूर्ण होनी चाहिए । आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचाने वाली भाषा का प्रयोग करने से न केवल संदेश ही निरर्थक हो जाता है अपितु सम्बन्ध भी कटु होने का भय रहता है, अत: लिखित संदेश के तैयार करने में बड़ी सावधानी रखनी चाहिए अधिकांश संदेश अब या तैयार किए हुए होते हैं अथवा छपे हुए होते हैं । सन्देश के टाइप करने में भी इसके कलात्मक पहलू पर पूरा-पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए ।


2. लिखित संचार की विशेषताएँ (Characteristics of Written Communication):

लिखित संचार की विशेषताएँ निम्न है:

(i) लिखित संचार में सूचनाओं का आदान-प्रदान लिखित रूप में किया जाता है ।

(ii) लिखित संचार में सोच-समझकर या चिन्तन-मनन करके प्रारूपण (Drafting) की सुविधा है ।

(iii) यह व्यवस्था एक स्थायी दस्तावेज या रिकार्ड होता है और इसे भविष्य में सन्दर्भ हेतु सुरक्षित रखा जा सकता है ।

(iv) यह एक कानूनी प्रपत्र होता है जो भविष्य के विवादों को निपटाने की क्षमता रखता है ।

(v) यह संचार भी दो प्रकार का होता है-सामूहिक लिखित संचार तथा व्यक्तिगत लिखित संचार ।


3. लिखित संचार की उपयोगिता (Utility of Written Communication):

लिखित संचार की उपयोगिता निम्न दशाओं में विशेष रूप से होती है:

(a) जब प्राप्तकर्त्ता अनेक व दूर-दूर स्थानों पर हो;

(b) जब सन्देश स्थायी प्रकृति का हो;

(c) जब सन्देश विस्तृत हो;

(d) जब सन्देश में संख्याओं एवं चित्रों का प्रयोग किया गया हो;

(e) जब सन्देश को मौखिक रूप से समझना लगभग असम्भव हो ।


4. लिखित संचार के साधन (Methods of Written Communication):

(i) सामूहिक लिखित संचार (Group Written Communication):

सामूहिक लिखित संचार का अर्थ है संगठन में काम करने वाले कर्मचारियों को किसी सार्वजनिक सूचना के माध्यम से सूचित करना । इसके भी अनेक माध्यम हैं; जैसे- बुलेटिन तथा गृह पत्रिकाएँ, कर्मचारी निर्देशिका व नियमावली सूचनापट्ट तथा प्रशासनिक परिपत्र ।

इनकी संक्षिप्त चर्चा नीचे दी गई है:

(a) बुलेटिन व गृह-पत्रिकाएँ (Bulletine and House Organs):

अधिकांश बड़ी-बड़ी व्यावसायिक संस्थाएं विभाग के सहयोग से अपने कर्मचारियों के लाभ के लिए अनेक प्रकार के पाक्षिक, मासिक या त्रैमासिक पत्रों, बुलेटिनों या गृह-पत्रिकाओं के नियमित प्रकाशन की व्यवस्था भी करती हैं ।

इन पत्रिकाओं में कम्पनी, कर्मचारी तथा काम से सम्बन्धित अनेक आवश्यक सूचनाएँ भी प्रकाशित की जाती है और कर्मचारियों के सामाजिक-सांस्कृतिक तथा मनोरंजन की बातें भी लिखी जाती हैं संस्था के अधिकारी इन बुलेटिन व पत्रिकाओं के माध्यम से अपने कर्मचारियों को कम्पनी की नीतियों, उपलब्धियों तथा प्रगति के बारे में बड़े प्रभावशाली ढंग से सूचित कर सकते है ।

साथ ही, वे कर्मचारियों के पत्रों व लेखों के द्वारा उनके विचारी, मतों तथा प्रतिक्रियाओं को बड़े सरल ढंग से जान सकते हैं । बुलेटिन में प्राय: एक मार्गीय संदेशवाहन ही होता है क्योंकि ये प्रबन्धकों की ओर से प्रकाशित की जाती हैं । लेकिन गुरु-पत्रिकाओं में द्वि मार्गीय संदेशवाहन की सम्भावना होती है क्योंकि इनमें प्रबन्ध अधिकारी विशेष सूचनाएं तथा कर्मचारी अपने विचार और लेख भी प्रकाशित करा सकते हैं ।

बुलेटिन का सम्पादन अधिकारी वर्ग के द्वारा ही किया जाता है जबकि गृह-पत्रिका के सम्पादन में कर्मचारी विभाग तथा कर्मचारियों के प्रतिनिधि भी शामिल होते हैं । बुलेटिन और गृह-पत्रिकाओं को उपयोगी बनाने के लिए यह आवश्यक है कि उसे सरल, ज्ञानवर्द्धक, विवाद-मुक्त तथा रोचक बनाया जाए जिससे सभी कर्मचारी इसे पढ़ने में रुचि लें । इसको अधिक रोचक बनाने के लिए इसमें चित्रों तथा रंगों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग भी किया जाता है ।

(b) कर्मचारी निर्देशिका व नियमावली (Employees Hand Book and Manuals):

बड़ी व्यावसायिक संस्थाओं में कर्मचारियों के सामान्य निर्देशन तथा पथप्रदर्शन के लिए प्राय: कर्मचारी निर्देशिका व नियमावलियों का प्रकाशन भी कराया जाता है । कर्मचारी निर्देशिका एक ऐसी हस्तपुस्तक (Hand Book) है जिसमें कर्मचारियों से सम्बन्धित विभिन्न नियमी व निर्देशों का उल्लेख किया जाता है ।

(c) प्रशासनिक परिपत्र (Administrative Circulars):

सभी छोटे-बड़े संगठनों में सामूहिक सम्प्रेषण की एक अत्यन्त लोकप्रिय औपचारिक प्रणाली प्रशासनिक परिपत्र जारी करना है । इन परिपत्रों में प्रशासन से सम्बन्धित नवीनतम निर्णयों तथा योजनाओं की जानकारी दी जाती है । उदाहरणार्थ- मान लीजिए कम्पनी ने अपने श्रम संघ के साथ नौकरी की शर्तों के बारे में कोई नया समझौता किया है सभी कर्मचारियों तथा प्रबन्धकों को इसकी सही तथा अधिकृत सूचना देने के लिए एक प्रशासनिक परिपत्र निकाला जाएगा ।

यह परिपत्र टाईप कराके साइक्लोस्टाइल भी कराया जा सकता है और प्रेस में छपवाया भी जा सकता है । प्रशासनिक परिपत्र जारी करने से संस्था में काम करने वाले सभी सम्बद्ध कर्मचारियों तथा अधिकारियों को प्रबन्धकों के द्वारा लिये गए निर्णयों और किये गए समझौतों की एक साथ, शीघ्र तथा सही जानकारी मिल जाती है । ये प्रशासनिक परिपत्र कर्मचारी निर्देशिका तथा कार्य-नियमावली को आज तक का (Upto date) रखने में भी मदद देते हैं ।

(d) सूचना पट्ट (Notice Board):

प्राय: सभी व्यावसायिक सा संस्थाओं में कर्मचारियों को सार्वजनिक सूचना देने के लिए केन्द्रीय स्थानों पर कुछ सूचना पट्ट लगाने की व्यवस्था भी की जाती है । इन सूचना-पट्टी में कम्पनी के सम्बन्ध में नवीनतम सूचनाओं को लिख या चिपका दिया जाता है । इसका उद्देश्य कर्मचारियों को दिन-प्रतिदिन की कार्यवाहियों के बारे में आवश्यक निर्देश तथा सूचना देना है ।

सूचना पट्ट पर प्रदर्शित की जाने वाली सूचनाओं के उदाहरण हैं: कर्मचारियों को छुट्टी, पदोन्नति, स्थानान्तरण आदि की सूचना देना, काम की पालियां, काम के घण्टों में बदली के बारे में सूचना देना, आवश्यक बैठकों और चर्चाओं की सूचना देना, स्थायी आदेश (Standing Order), सरकारी सूचनाओं तथा विविध अधिनियम सम्बन्धी जानकारी की सूचना देना ।

सूचना पट्ट के प्रयोग का सबसे बड़ा लाभ यह है कि संस्था में लगे सभी कर्मचारी सम्बन्धित सूचना को एक ही स्थान पर देख सकते हैं । इसका दूसरा लाभ यह है कि सार्वजनिक सूचना का यह एक अत्यन्त सस्ता और सुविधाजनक साधन है । अधिकारी जैसे ही किसी आवश्यक सूचना को सम्प्रेषित करना चाहे, सूचना पट्ट पर स्पष्ट रूप से लिख दे । कर्मचारी आते-जाते इस सूचना को ध्यान के साथ पढ़ सकते हैं ।

(e) रिपोर्ट (Reports):

किसी भी संस्था के कारोबार को सही ढंग से चलाने के लिए प्रबन्धकों को तरह-तरह की सूचना की जरूरत पड़ती है । इनमें से कुछ सूचनाएँ बार-बार तथा निश्चित कड़ी व तथ्यों के आधार पर इकट्ठी की जाती है, जैसे- प्रतिदिन उत्पादन, बिक्री, स्टॉक, बैंक आदि के विवरण तैयार कराना । इन्हें हम रिपोर्ट कहते हैं और ये दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक या त्रैमासिक बनायी जा सकती हैं । इसके विपरीत, विशेष परिस्थितियों में विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विशेष रिपोर्ट भी बनवायी जा सकती है ।

उदाहरण के लिए बैंक से नये ऋण की प्रार्थना करने पर उसे कम्पनी की वित्तीय स्थिति के बारे में विशेष रिपोर्ट, या किसी विभाग में कर्मचारियों की बारम्बार ज्यादा अनुपस्थिति का पता लगाने के लिए विशेष रिपोर्ट तैयार करना ।

व्यावसायिक संस्थाओं में से सामान्य तथा विशेष रिपोर्ट सम्प्रेषण का सशक्त माध्यम है क्योंकि उच्च प्रबन्धक उनके आधार पर सही तथा सन्तुलित निर्णय ले सकते हैं । अपने उद्देश्य में सफल होने के लिए रिपोर्टों को संक्षिप्त, सरल, निष्पक्ष, तर्कपूर्ण तथा तथ्य आधारित होना चाहिए । रिपोर्ट न केवल नीचे से ऊपर पेश की जाती है बल्कि सूचनाओं का ऊपर से नीचे की ओर सम्प्रेषण भी करती है ।

संचालकों की रिपोर्ट तथा प्रबन्धकी की रिपोर्ट ऐसी रिपोर्ट है जो संस्था के काम करने वाले कर्मचारियों को संस्था की उपलब्धियों तथा लक्ष्यों का ज्ञान भी कराती है और प्रबन्धकों के इरादों और वायदों की जानकारी भी देती है ।

(ii) व्यक्तिगत लिखित सम्प्रेपण (Personal Written Communication):

जब सूचनाओं और विचारों का आदान-प्रदान केवल दो व्यक्तियों के बीच लिखकर किया जाता है तो इसे व्यक्तिगत लिखित सम्प्रेषण कहते हैं ।

इसके भी दो स्वरूप हो सकते हैं:

(a) आपसी मामलों पर एक-दूसरे को पत्र, स्मरण-पत्र या नोट लिखना जो औपचारिक भी हो सकते है तथा अनौपचारिक भी ।

(b) संस्था की भलाई के लिए सुझाव आमन्त्रित करना तथा शिकायतें सुनना आजकल अधिकांश व्यावसायिक संस्थाओं में कर्मचारियों को संस्था का अभिन्न अंग बनाने के लिए उनकी शिकायतों और सुझावों को सुनने की नियमित व्यवस्था बनायी जाती है ।

संस्था में जगह-जगह शिकायत पेटिका तथा सुझाव पेटिका (Complaint Box) रखी जाती हैं जिनमें कर्मचारी तथा बाहरी लोग अपनी शिकायतें व सुझाव बिना किसी हिचकिचाहट के डाल सकते हैं । शिकायतें एक शिकायत निवारण समिति को सौंप दी जाती हैं जो शिकायत किये जाने वाले पक्षों को बुलाकर तथा उनकी बातें समझकर उचित कार्यवाही करती है । इसके विपरीत, सुझाव समिति के सामने खोले जाते हैं और उनकी उपयोगिता, व्यावहारिकता तथा कुशलता का अनुमान लगाया जाता है । सुझाव उपयोगी होने पर उन्हें क्रियान्वित करा दिया जाता है ।

शिकायतों और सुझावों की उपर्युक्त व्यवस्था से प्रबन्धकों को न केवल अपने कर्मचारियों के विचारी तथा काम का पता चलता रहता है बल्कि कई बार संस्था की तरक्की के लिए ऐसे सुझाव भी मिलते हैं जिन्हें वे अपनी आराम-कुर्सी पर बैठकर सोच नहीं सकते ।


5. प्रभावी लिखित संचार के आवश्यक तत्व (Essentials of Effective Written Communication):

व्यावसायिक संगठन में अधिकांश औपचारिक सम्प्रेषण लिखित होते हैं । आधुनिक सामाजिक परिवेश में किसी भी व्यावसायिक संगठन के संचालन में लिखित सम्प्रेषण रीढ़ की हड्डी (Back-Bone) है यद्यपि लिखित सम्प्रेषण की कुछ सीमाएँ हैं ।

आज भी व्यावसायिक कार्याधिकारियों का आधा समय लिखित सम्प्रेषण में ही व्यतीत होता है, फिर भी लिखित सम्प्रेषण के महत्त्व को कम नहीं किया जा सकता है वर्तमान में सूचना तकनीक ने काफी प्रगति की है, लेकिन लिखित सम्प्रेषण आज भी व्यवसाय संगठन के लिए अपरिहार्य है ।

प्रभावी लिखित सम्प्रेषण के आवश्यक तत्त्व निम्नलिखित है:

(i) स्पष्ट एवं संक्षिप्त (Clear and Concise):

लिखित सम्प्रेषण स्पष्ट एवं संक्षिप्त होने चाहिए । सन्दर्भ (Context), विषय-वस्तु (Subject-Matter) तथा उद्देश्यों (Objects) में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होना चाहिए । लिखित सम्प्रेषण में विचार (Thoughts) एवं उनकी व्याख्या (Expression) पूर्ण रूप से स्पष्ट होने चाहिए । लिखित सम्प्रेषण में अनेकार्थी (Ambiguity) तथा अनावश्यक सजावटी (Flowery) भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।

(ii) सामान्य एवं सकारात्मक भाषा (Simple and Positive Language):

लिखित सम्प्रेषण की भाषा सरल एवं सकारात्मक होनी चाहिए । जटिल एवं कठिन भाषा के प्रयोग से बचना चाहिए । शब्द चयन, वाक्य-विन्यास, व्याकरण आदि में सम्बन्धित भाषा के नियमों को ध्यान में रखना चाहिए क्योंकि लिखित सम्प्रेषण भविष्य में सन्दर्भ होते हैं ।

(iii) बोधगम्य (Intelligible):

लिखित सम्प्रेषण का सार उसका बोधगम्य होना है । भाषा तथ्य विचार अथवा सन्देश इस ढंग से लिखित होने चाहिए कि सन्देश प्राप्तकर्त्ता प्रथम द्रष्टा में ही उसके अर्थ को आसानी से समझ सके । शब्दी एवं वाक्यों का लेखन एवं विश्लेषण (Interpretation) इस प्रकार किया जाए कि उसकी विवेचना सुबोध हो ।

(iv) मुख्य बिन्दुओं पर अचित ध्यान (Due Emphasis on Main Points):

लिखित सम्प्रेषण के सभी सम्बन्धित तथ्य एवं अंक ढंग से प्रस्तुत करने चाहिए एवं सभी मुख्य बिन्दुओं को सुव्यवस्थित क्रम से इस प्रकार लिखना चाहिए कि उनका यथोचित प्रदर्शन (Proper Highlight) हो सके ।

(v) शिष्टता (Courtesy):

लिखित सम्प्रेषण व्यावसायिक संरचना के निर्माण के मूल भाग होते हैं । व्यावसायिक संगठन में परस्पर मैत्रीपूर्ण सौहार्द्र एवं समन्वय स्थापित करने में लिखित सम्प्रेषण की भूमिका सबसे प्रभावी होती है । अत: इनका गठन एवं रचना शिष्ट भाषा में की जानी चाहिए ताकि संगठन में अनावश्यक विवाद न उत्पन्न हो सके ।


6. लिखित संचार के गुण (Merits of Written Communication):

(i) यह स्थायी रिकॉर्ड होता है (It is a Permanent Record):

मौखिक रूप से बोले गये शब्दों को भूल जाना मानव स्वभाव होता है क्योंकि मानव मस्तिष्क में स्मरण शक्ति की एक सीमा होती है संदेशवाहक कुछ समय बाद यह भूल जायेगा कि पहले उसने क्या कहा था तथा संदेश प्राप्तकर्त्ता यह भूल जायेगा कि उससे क्या कहा गया था परन्तु लिखित सूचना हमेशा रहती है, अत: यह स्थायी रिकार्ड बन जाता है लिखित सूचना प्रेषक व प्राप्तकर्त्ता के मध्य एक मध्यस्थ एवं प्रमाण के रूप में हमेशा उपलब्ध रहती है कोई भी व्यक्ति यह कहकर नहीं ख सकता कि वह सूचना के बारे में भूल गया ।

लिखित संदेश भविष्य में सन्दर्भ के रूप में भी कार्य करता है । भविष्य के लिए लक्ष्य एवं नीतियां निर्धारित करने के लिए पूर्व अवधियों के कड़े लाभप्रद होते हैं ।

(ii) यह कानूनी प्रपत्र होता है (It is a Legal Document):

व्यावसायिक व्यवहारों में अनेक प्रकार के मतभेद होने की सम्भावना बनी रहती है । लिखित संचार इस शंका को दूर करता है । कार्यालय की प्रत्येक फाइल में उसका अपना इतिहास छिपा रहता है । यह साक्ष्य के रूप में कार्य करता है कि दो पक्षों के मध्य क्या हुआ ? यह हमें याद दिलाता है कि अमुक व्यवहार कब, कहाँ और कैसे हुआ था ? लिखित प्रमाण-पत्रों के आधार पर व्यावसायिक विवादों को सरलता एवं शीघ्रता से निपटाया जा सकता है ।

(iii) यह शुद्ध एवं यथार्थ होता है (It is Accurate and Precise):

लिखित संचार अत्यन्त ध्यानपूर्वक किया जाता है क्योंकि इसमें जरा सी भी लापरवाही व्यवसाय के मार्ग में बाधाएं उत्पन्न कर सकती है । यह प्रक्रिया व्यक्ति को सावधान बनाती है । यह अत्यन्त सोच-विचार कर निर्णय लेता है । लिखित संचार सत्यापन हेतु हमेशा खुला होता है तथा इसके सही एवं यथार्थ होने को आसानी से चुनौती दी जा सकती है । इस प्रकार लिखित संचार में शुद्धता व यथार्थता का गुण पाया जाता है ।

(iv) दोहराने में सरलता (It Can Be Repeatedly Referred to):

लिखित संचार का प्राप्तकर्त्ता सूचना को आवश्यकतानुसार बार-बार देख सकता है जब तक वह उसे पूर्ण रूप से नहीं समझता, तब तक बार-बार पढ़ सकता है । इसमें किसी सूचना के गुम होने अथवा समझ में न आने का भय नहीं रहता । लिखित संचार को भविष्य में आवश्यकता पड़ने पर कभी भी दोहराया जा सकता है ।

(v) उत्तरदायित्वों की सुपुर्दगी को सुविधाजनक बनाता है (It Facilitate the Assignment of Responsibilities):

संचार लिखित में होने से उत्तरदायित्वों के साँपने में बहुत सुविधा मिलती है । मौखिक संचार में कोई गलती हो जाने से यह खोजना एवं कह पाना अत्यन्त कठिन होता है कि सूचना प्रेषक अथवा प्राप्तकर्त्ता में से किसके कारण गलत हुई है । परन्तु जब यह लिखित रूप में होता है तो इस प्रकार की सम्भावनाओं का स्वत: ही उन्मूलन हो जाता है ।

(vi) कुछ परिस्थितियों में यह आवश्यक है (It is Essential in Some Circumstances):

यदि सूचना प्रेषक व प्राप्तकर्त्ता दोनों एक-दूसरे से दूर रहते हैं तो उनके मध्य बार-बार यह सम्भव नहीं है कि उस स्थान पर जाकर समाचार दिया जाये, वरन् इसके लिए लिखित संचार उपयुक्त रहता है । इसी प्रकार व्यापार प्रतिनिधि या विक्रय प्रतिनिधि के लिए बार-बार यह सम्भव नहीं है कि वह प्रबन्धकों को अपने कार्य की प्रगति के बारे में सूचित करें । उनके लिए भी लिखित संचार ही उपयुक्त रहता है । मुख्य कार्यालय तथा शाखाओं के मध्य भी लिखित संचार ही उपयुक्त रहता है ।


7. लिखित संचार की सीमाएँ (Limitations of Written Communication):

लिखित संचार विभिन्न दृष्टिकोणों से लाभप्रद होता है परन्तु इसका आशय यह कदापि नहीं है कि यह पूर्णतया दोषमुक्त होता है ।

लिखित संचार की अपनी कुछ सीमाएं भी हैं जिनमें से कुछ प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित हैं:

(i) खर्चीला (Costly):

लिखित संचार प्रणाली अत्यन्त खर्चीली पड़ती है क्योंकि इसमें रिकार्ड रखने के लिए फाइल, फाइल केबिनेट आदि रखने पड़ते हैं एवं इनकी देखभाल हेतु एक रिकॉर्ड कीपर रखना पड़ता है । पत्र लेखन की प्रक्रिया केवल डाक-व्ययों के दृष्टिकोण से ही खर्चीली नहीं होती वरन् पत्र भेजने की प्रक्रिया में जो लोग सम्मिलित होते हैं, वे संगठन के लिए कहीं अधिक महत्वपूर्ण होते है एवं उनका मूल्यवान समय पत्र लिखने की प्रक्रिया में व्यय होता है ।

(ii) अधिक समय (Time Consuming):

लिखित संचार की सबसे बड़ी कमी यह है कि इसमें समय बहुत अधिक लगता है एक पत्र को अपने स्थान तक पहुँचने में 2-3 दिन यहाँ तक कि 8-10 दिन भी लग जाते हैं, जबकि मौखिक संचार में आधुनिक तकनीकी साधनों के द्वारा तुरन्त बात हो सकती है एवं प्राप्तकर्त्ता को तुरन्त समाचार मिल सकता है ।

(iii) शीघ्र स्पष्टीकरण सम्भव नहीं (Quick Clarification is Not Possible):

यदि सूचना का प्राप्तकर्त्ता समाचार के बारे में कोई शंका रखता है या कोई प्रश्न पूछना चाहता है तो वह इसका तुरन्त स्पष्टीकरण नहीं कर सकता । उसे अपनी शंका को दूर करने के लिए दोबारा लिखना पड़ेगा एवं उत्तर की प्रतीक्षा करनी होगी जबकि मौखिक संचार में यह सरल कार्य है क्योंकि मौखिक मंदार में एक बात को बार-बार पूछा जा सकता है ।

(iv) गोपनीय नहीं (Not Confidential):

लिखित संचार में अनेक व्यक्तियों का योगदान होता है, अत: सन्देश की गोपनीयता बनाए रखना एक जटिल कार्य है । आधुनिक प्रतिस्पर्द्धा के युग में गोपनीयता भंग होने से व्यावसायिक प्रगति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ।

(v) व्याख्या की कठिनाई (Problem of Interpretation):

लिखित संचार में प्रयुक्त शब्दों की अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा भिन्न-भिन्न व्याख्या की जा सकती है जिससे सम्प्रेषण का अर्थ परिवर्तित हो सकता है । इससे अधीनस्थों में कार्यों में टालमटोल एवं स्थगित रखने की प्रवृत्ति बढ़ती है ।

निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि उपर्युक्त सुविधाओं के बावजूद भी जो सुविधा लिखित सम्प्रेषण में है, वह मौखिक सम्प्रेषण में नहीं है क्योंकि प्रारूपण (Drafting) एक कला है । यह सबके वश की बात नहीं है क्योंकि इसमें प्रारूपमकर्त्ता के विषय में सम्बद्ध सूझ-बूझ, परिपक्वता, दूरदर्शिता भाषा की सूक्ष्मतम जानकारी आदि का सम्यक् परिचय प्राप्त होता है ।

इसके साथ-साथ इसमें गोपनीयता व गुप्त सूचनाएं देने की सुविधा, किसी गलतफहमी को दूर करने के उद्देश्य से लेखन का सहारा अनिवार्य होता है । संविदा व करार सम्बन्धी सभी वाणिज्यिक व व्यावसायिक सम्बन्ध लिखित सम्प्रेषण के माध्यम से सम्पन्न होते है ।


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