Read this article in Hindi to learn about the quantitative and qualitative aspects of manpower planning.
मानव शक्ति नियोजन का परिमाणात्मक पहलू (Quantitative Aspect of Manpower Planning):
माँग पहलू (Demand Aspect):
यह किसी संगठन में अपेक्षित कर्मचारियों की कुल संख्या के निर्धारण से सम्बन्धित है । उचित निर्धारण के लिए, नियोजनकर्ता को संस्था की भावी उत्पादन तथा विक्रय योजनाओं का व्यापक ज्ञान होना चाहिये क्योंकि मानवीय संसाधन की माँग सर्वांगीण संगठनात्मक उद्देश्यों से सम्बन्धित होती है जो कर्मचारियों की संख्या तथा लक्षणों के रूप में मानव शक्ति आवश्यकताओं के अनुमान का आधार प्रदान करती है ।
किसी संगठन में अपेक्षित कर्मचारियों की संख्या ज्ञात करने के लिए प्रबन्ध विशेषज्ञों ने अनेक विधियाँ सुझाई हैं । इनमें कुछ विधियों पर नीचे विचार किया जा रहा है ।
(i) कार्य भार विश्लेषण (Work Load Analysis):
यह विधि काम के कुल परिमाण से सम्बन्धित है जिसका अनुमान बजटिड उत्पादन, विक्रय तथा वितरण, प्रशासन, शोध आदि के आधार पर किया जा सकता है ।
(ii) कार्य शक्ति विश्लेषण (Work Force Analysis):
इसमें विद्यमान कार्य शक्ति, अनुपस्थिति की दर, स्थानान्तरण तथा पदोन्नति, पदत्याग अथवा त्यागपत्र आदि के कारण उत्पन्न सम्भावित रिक्त स्थानों का व्यापक विश्लेषण किया जाता है ।
(iii) प्रबन्ध निर्णय विचारधारा (Management Judgment Approach):
यह देखा गया है कि अधिकांश लघु आकार की इकाइयाँ मानव शक्ति सूचना तथा कार्य विश्लेषण के लिए ठोस समंक आधार नहीं बना पाते । ऐसे संगठन मानव शक्ति आवश्यकता निर्धारण के लिए प्रबन्धकीय निर्णय व्यवस्था की सहायता लेते हैं ।
इस विधि में सेविवर्गीय प्रशासन जो कर्मचारियों की कार्यक्षमता, कार्यभार एवं योग्यता आदि से भली प्रकार परिचित होते हैं, कर्मचारियों की भावी क्षमताओं तथा कार्यभार के विषय में विचार करते हैं और फिर नियुक्त किए जाने वाले कर्मचारियों की किस्म तथा संख्या का निर्णय लेते हैं ।
(iv) सांख्यिकीय तथा गणितीय तकनीकें (Statistical & Mathematical Techniques):
सांख्यिकीय एवं गणितीय तकनीकें अपेक्षित कर्मचारी संख्या का औसत अनुमान ही दे पाती हैं । ये तकनीकें केवल अल्पकालीन पूर्वानुमान के लिए ही उपयुक्त रहती हैं । दीर्घकालीन सेविवर्गीय पूर्वानुमान अधिक सांख्यिकीय तथा गणितीय तकनीकों की अपेक्षा करता है ।
ऐसा गत वर्षों में अनेक नई गणितीय तकनीकों के विकसित होने से सिद्ध हुआ । उच्च गति के कम्प्यूटर को सेविवर्गीय नियोजन समंकों को तेजी से बड़ी मात्रा में विश्लेषण के लिए प्रयोग किया जा सकता है ।
पूर्वानुमान की कुछ महत्वपूर्ण सांख्यिकीय तथा गणितीय व्यवस्थाओं को नीचे स्पष्ट किया गया है:
(a) अनुपात तथा प्रवृत्ति विश्लेषण (Ratio and Trend Analysis):
इस विधि में मुख्य ध्यान अनुपातों पर दिया जाता है जो प्रत्येक श्रेणी के उत्पादन स्तर, विक्रय स्तर, गतिविधि स्तर/कार्यभार स्तर तथा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर्मचारियों की संख्या से सम्बन्धित विगत आंकड़ों के लिए निकाली जाती हैं ।
भावी उत्पादन स्तर, विक्रय स्तर, गतिविधि स्तर/कार्यभार का संगठन, विधि तथा कार्यों में परिवर्तन हेतु प्रावधान रख कर अनुमानित किया जा सकता है । जब संगठन तथा मानवीय संसाधनों में परिवर्तन हेतु प्रावधान रख कर अनुमानित किया जा सकता है ।
जब संगठन, विधि तथा कार्यों में परिवर्तन हेतु प्रावधान रख कर अनुमानित किया जा सकता है । जब संगठन तथा मानवीय संसाधनों में परिवर्तन आने को होते हैं तब भावी अनुपातों का अनुमान भी लगाया जा सकता है फिर स्थापित अनुपातों के आधार पर भावी मानव शक्ति आवश्यकताओं को ज्ञात किया जाता है ।
(b) रेखीय प्रतीगमन (Linear Regression):
यह तकनीक भी समय के किसी भावी बिन्दु पर विक्रय, उत्पादन, प्रदत्त सेवा आदि घटकों के आधार पर संगठन की मानव शक्ति आवश्यकताओं के अनुमान हेतु काम में लाई जाती है । जब आश्रित तथा स्वतंत्र चर एक-दूसरे से क्रियात्मक रूप से सम्बन्धित होते हैं तब ऐसा विश्लेषण किया जाता है ।
(c) अर्थमितीय मॉडल्स (Econometric Models):
अर्थमिति विश्लेषण आर्थिक सामंकों पर गणितीय तथा सांख्यिकीय प्रविधि के प्रयोग का बोध कराती है ताकि परिमाणात्मक निष्कर्ष निकाले जा सकें । आर्थिक मॉडल युगपत समीकरणों के समुच्चयों के रूप में आते हैं ।
इस विधि में, अर्थमिति मॉडल जो मानव शक्ति नियोजन हेतु बनाये जाते हैं, विगत सांख्यिकीय समंकों के विश्लेषण तथा चरों के मध्य सम्बन्धों की स्थापना द्वारा बनाये जाते हैं । इनमें ऐसे घटकों का समावेश है जो मानव शक्ति आवश्यकता को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं ।
(d) ब्यूरैक्स-स्मिथ मॉडल (Bureks Smith Model):
ऐल्मर एच. ब्यूरैम्स तथा रॉबर्ड डी. स्मिथ ने ऐसे मुख्य चरों के आधार पर सेविवर्गीय पूर्वानुमान हेतु गणितीय मॉडल विकसित किया है जो संगठन की सर्वांगीण मानवीय संसाधन आवश्यकताओं को प्रभावित करते हैं ।
इस मॉडल का निम्न समीकरण है:
यहाँ En नियोजन अवधि n में (अर्थात् वर्षों में) सेविवर्गीय माँग के अनुमानित स्तर का बोध होता है ।
Lafg रुपयों में चालू व्यवसाय गतिविधि का सर्वांगीण या मूल स्तर ।
G- आज के रुपयों में n अवधि के माध्यम से पूर्वानुमानित व्यावसायिक गतिविधि की कुल प्रगति ।
X- नियोजन अवधि n जैसे यदि x = 1.08 तो इसका अर्थ है एक औसत उत्पादकता सुधार 8% के माध्यम से आज से सम्भावित औसत उत्पादकता सुधार ।
Y- अपेक्षित कर्मचारियों से आज की सर्वांगीण गतिविधि से सम्बन्धित परिवर्तन संख्या (आज की व्यावसायिक गतिविधि का कुल स्तर-व्यक्तियों की चालू संख्या; यह प्रत्येक व्यक्ति व्यावसायिक गतिविधि के स्तर को व्यक्त करती है) ।
यहाँ एक उल्लेखनीय है कि व्यक्तियों का उपयोग (रोजगार) अनुमान करने वाले मॉडल कुल उत्पत्ति (G) औसत उत्पादकता सुधार (X) तथा परिवर्तन दर (Y) के सही अनुमान प्राप्त करने पर विशेष रूप से निर्भर करती है । इन आयामों की प्राप्ति के लिए पृथक सांख्यिकीय तकनीकों का प्रयोग किया जा सकता है ।
उपर्युक्त सांख्यिकीय तथा गणितीय मॉडलों के परिणामों के पूर्वानुमान की शुद्धता सम्बन्धों की शक्ति पर निर्भर करती है । ज्ञात शुद्धता से मॉडलों द्वारा इन सम्बन्धों को जाना जाता है, या सम्बन्धों की वह मात्रा जो भविष्य में बनी रहेगी ।
घटिया सम्बन्धों के (मॉडलों के), अशुद्ध सम्बन्धों, या कालातीत सम्बन्ध जो भविष्य में स्थापित नहीं रहेंगे, उन पर आधारित पूर्वानुमान अशुद्ध ही जायेंगे । अति जटिल स्थिति में किसी मॉडल का प्रयोग कठिन भी रहेगा क्योंकि अनेक ऐसे घटक (चर) हो जायेंगे जिनको ध्यान में रखना होगा । इन मॉडलों का प्रयोग अन्तर्निहित मान्यताओं तथा मॉडल विशेष की परिसीमाओं के ज्ञान की अपेक्षा करता है ।
इसमें अतिरिक्त, व्यक्तियों की परिमाणात्मक व्यवस्था की बात का प्रयास करने वाले व्यक्ति को सांख्यिकी, क्रियात्मक शोध, प्रबन्ध विज्ञान अथवा कम्प्यूटर विज्ञान की ठोस जानकारी होनी चाहिए । इन मॉडलों से उत्पन्न अनुमानों तथा पूर्वानुमानों के लिए प्रयुक्त सूचना की गुणवत्ता सही तथा सावधानीपूर्वक संकलित होनी चाहिए ।
पूर्ति पहलू (Supply Aspect):
यह वर्तमान संसाधनों तथा भावी उपलब्धता के सम्बन्ध में किए गए विश्लेषण पर मानव शक्ति आपूर्ति के अनुमान से सम्बन्धित है । यहाँ सेविवर्गीय नियोजनकर्त्ता को बाहरी आपूर्ति (संगठन की भौगोलिक श्रम शक्ति में उच्च पदों के लिए उपलब्ध कर्मचारी) तथा अन्त: आपूर्ति संगठन के चालू कर्मचारी दोनों को ध्यान में रखना चाहिए ।
व्यक्तियों की बाहरी आपूर्ति दो कारणों से महत्वपूर्ण होती है । प्रथम, स्वैच्छिक आवर्त अवकाश-ग्रहण, बीमारी, मृत्यु तथा पदत्याग के माध्यम से कर्मचारियों का सामान्य ध्यान अपेक्षा कर सकता है कि संगठन रोजगार संस्थानों, कॉलेज तथा विश्वविद्यालयों एवं अन्य साधनों की ओर देखे ताकि रिक्त स्थान भरे जा सकें ।
दूसरे, संगठनात्मक विकास एवं विविधीकरण अतिरिक्त कर्मचारियों की प्राप्ति के लिए बाह्य साधनों की अपेक्षा करता है । नियोजनकर्त्ता को कर्मचारियों की प्राप्ति के लिए बाह्य साधनों की अपेक्षा करता है । नियोजनकर्त्ता कर्मचारियों के उपलब्ध स्रोतों से परिचित होना चाहिए ।
व्यक्तियों की आन्तरिक आपूर्ति एक अवधि विशेष में कर्मचारियों में उत्पन्न परिवर्तनों से प्रभावित होती है । ये परिवर्तन संस्था के भीतर कर्मचारियों के प्रशिक्षण एवं विकास कार्यक्रम, पदोन्नति नीति एवं सम्बद्ध कार्य अनुभव में योगदान प्रदान करते हैं ।
यदि कर्मचारी संस्था को छोड़कर चला जाता है तो वातावरणीय घटक जैसे स्थानीय मजदूरी दरों में परिवर्तन तथा प्रतियोगी की प्रतिस्पर्द्धी संरचना कर्मचारी आवर्त को प्रभावित कर सकते हैं ।
सेवानिवृत्ति कानूनों में परिवर्तन भी कर्मचारियों की अन्त: आपूर्ति को बदल देते हैं क्योंकि अपेक्षाकृत पुराने कर्मचारी अपनी योजनाओं तथा लक्ष्यों का पुन:र्मूल्यांकन करते हैं ।
जैसे ही कर्मचारी जाते हैं या संगठन के भीतर नये पदों पर अन्तरित होते हैं, तो रिक्तताएँ भरी जानी चाहिए । अनेक संगठन पहले इनको भरने के लिए अन्तरित स्रोतों की ओर देखते हैं । अत: सेविवर्गीय नियोजनकर्त्ताओं के लिए अनुमान लगाना तथा सेविवर्गीय आपूर्ति में परिवर्तनों को स्पष्ट करना महत्वपूर्ण होता है ।
मानव शक्ति आपूर्ति का अनुमान लगाने के लिए अनेक महत्वपूर्ण विधियाँ काम में लाई जाती हैं जिनमें से कुछ प्रमुख का वर्णन निम्न प्रकार है:
(i) मार्कोव विश्लेषण (Markov Analysis):
यह विधि सेविवर्गीय गतिशीलन पर ऐतिहासिक सूचना का प्रयोग करती है जो एक विशिष्ट नियोजन अवधि में घटित होती है । समंकों को कई वर्षों के लिए संकलित तथा विश्लेषित किया जाता है ताकि इस संभावना का अनुमान लगाया जा सके कि व्यक्ति किसी कार्य विशेष में बने रहेंगे या हस्तांतरित, पदोन्नति, निष्काषित, पदोपतन या सेवानिवृत्त नहीं कर दिये जायेंगे ।
संगठन के माध्यम से व्यक्तियों के ये ऐतिहासिक प्रवाह (संक्रमण) संभावनाओं द्वारा व्यक्त किये जाते हैं । संभावनाएँ एक ‘संक्रमण आव्यूह’ में व्यवस्थित किये जाते हैं तथा भावी सेविवर्गीय प्रवाह आव्यूह के आधार पर अनुमानित किये जाते हैं ।
(ii) छद्नवेशन या साइमूलेशन (Simulation):
मार्कोव विश्लेषण पर आधारित इस तकनीक में वैकल्पिक प्रवाहों (ऐतिहासिक की अपेक्षा) का अध्ययन किया जाता है जो भावी मानव शक्ति उपलब्धताओं पर प्रभावों के लिए जाँची जाती है । वैकल्पिक प्रवाह स्वैच्छिक अथवा गैर-स्वैच्छिक आवर्त्त, अवकाश-ग्रहण पदोन्नति आदि से सम्बन्धित नीतियाँ कार्यक्रम परिवर्तनों के संभावित परिणामों को प्रस्तुत करता है ।
(iii) नवीकरण समीक्षा (Renewal Analysis):
यह तकनीक:
(a) संगठन द्वारा निर्मित रिक्तताओं,
(b) रिक्तताएँ भरने के लिए लागू होने वाले निर्णय नियमों के परिणाम निकालकर भावी प्रवाहों तथा क्रय शक्ति की उपलब्धताओं का अनुमान लगाते हैं । वैकल्पिक मॉडल प्रगति अनुमानों आवर्त्त, पदोन्नति अथवा निर्णय नियमों में परिवर्तनों के प्रभाव का निर्धारण कर सकते हैं ।
(iv) लक्ष्य कार्यक्रमण (Goal Programming):
इस क्रियात्मक शोध तकनीक में, सेविवर्गीय नियोजनकर्त्ता उद्देश्य को अनुकूलतम बनाते हैं । इस दशा में, अनुकूलतम करने का लक्ष्य अनेक घटकों से सम्बन्धित बाधाओं के साथ स्टाफिंग पैटर्न की अभिलाषा करता है जैसे प्रवाहों पर उच्चता सीमाएँ, प्रत्येक दशा में स्वीकृत नई भर्तियों का प्रतिशत एवं कुल वेतन बजट ।
सेविवर्गीय समंकों का समाधान (Reconciliation of Personnel Data):
एक बार सेविवर्गीय आवश्यकताएँ एवं माँग ज्ञात हो जाती है तथा कर्मचारियों की चालू आपूर्ति ज्ञात कर ली जाती है तो माँग तथा आपूर्ति का संतुलन ज्ञात कर लेना चाहिये ताकि उचित समय पर सही कर्मचारियों द्वारा रिक्तताएँ भरी जा सकें ।
माँग एवं आपूर्ति का संतुलन बहुत कुछ नियोजन, कालबद्धता तथा विभिन्न सेविवर्गीय सम्बन्धित कार्यक्रमों के प्रयोग का मामला है ताकि इच्छित परिणाम प्राप्त हो सकें ।
मानव शक्ति नियोजन के गुणात्मक पहलू (Qualitative Aspects of Manpower Planning):
संगठन में अपेक्षित मानव शक्ति की गुणवत्ता जानने के लिए अनेक गुण सम्बन्धों को ध्यान में रखा जाना चाहिये जैसे उपक्रम द्वारा अपेक्षित कर्मचारियों की योग्यता, अनुभव, रुझान आदि । इसके लिए संगठन में कार्य विश्लेषण तथा अभिकल्पना की आवश्यकता होती है ।
कार्य विश्लेषण किसी कार्य के सभी तत्वों के व्यापक तथा व्यवस्थित अध्ययन को कहते हैं इसमें सन्निहित कार्य, कर्त्तव्य, योग्यताएँ, उत्तरदायित्व, कार्यदशाएँ, चातुर्य तथा ज्ञान आदि को सम्मिलित किया जाता है ।
मिल्कावॉइच एन्ड बॉडरेव के अनुसार- कार्य विश्लेषण समंक संकलन तथा किसी कार्य विशेष की प्रकृति से सम्बन्धित महत्वपूर्ण सभी सूचना के बारे में निर्णय करने की एक व्यवस्थित प्रक्रिया है । कार्य विश्लेषण के परिणाम अनेक मानवीय संसाधन गतिविधियों के साधन की भूमिका निभाते हैं ।
डैविड ए. डिकैज्जो तथा स्टैफन पी. रॉबिन्स के अनुसार- कार्य विश्लेषण किसी कार्य के कर्त्तव्य, दायित्व तथा जवाबदेही की व्याख्या करने के लिए प्रयोग किया जाता है ।
इस विश्लेषण में कार्यों के व्यापक विवरण का संकलन कार्य के सम्बन्धों का निर्धारण तथा ज्ञान योग्यता अथवा रोजगार मानदण्ड, जवाबदेही तथा अन्य प्रार्थी आर्हताओं के परीक्षण का समावेश होता है ।
संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि कार्य विश्लेषण संकेत देता है कि एक कार्य किन गतिविधियों तथा जवाबदेहियों की अपेक्षा करता है । कार्य विश्लेषण के बारे में कोई रहस्य नहीं है, यह तो मात्र सन्निहित गतिविधियों का सही अभिलेखन है ।
अत: कार्य विश्लेषण विशिष्ट कार्यों के बारे में सूचनाएँ एकत्रित करता है अथवा बताता है कि एक व्यक्ति क्या कुछ है ? किसी व्यक्ति द्वारा निष्पादित-कार्यों का एक समूह एक स्थिति का सृजन करते हैं । समान स्थितियाँ एक काम करती हैं और व्यापक रूप में सभी के कार्य एक धंधे के रूप में जुड़ जाते हैं ।