Read this article in Hindi to learn about the future of personnel management in India.
भारत में कर्मचारी प्रबन्ध वर्तमान में पूर्ण युवावस्था को पार करने के लिए प्रतीक्षारत किशोर है । यह भी सत्य है कि विभिन्न संगठनों में काम कर रहे बड़ी मात्रा में कर्मचारियों में से केवल एक छोटी सी संख्या ही बोर्ड रूम तक पहुँची है । यदि कर्मचारी प्रबन्ध के साथ अच्छा व्यवहार किया जाता है तो निश्चय ही किसी भी संगठन के लिए यह दूरगामी तथा स्वस्थ परिणाम उत्पन्न करेगा ।
अत: कर्मचारी प्रबन्ध का भविष्य निम्न में से कुछ चरणों के क्रियान्वयन में निहित है:
1. इस देश में कर्मचारी प्रशासकों को स्वयं को कर्मचारी संगठन के साथ उचित तौर पर संगठित होना चाहिए ताकि एक Code of Ethics तथा पेशेवर कार्य के मानदण्ड लागू किये जा सकें ।
स्वयं कर्मचारी पेशा शायद ही संगठित हो तथा पेशेवाद को केवल संस्था विशेष द्वारा निर्धारित मानदण्डों तथा आचरण संहिता के पालन हेतु सदस्यों के बीच प्रबुद्धता विकसित करने के बाद ही लाया जा सकता है ।
2. कर्मचारी प्रबन्ध के अभ्यासार्थी को अपना निजी विशिष्टीकृत विकसित करना चाहिए । इस पेशे में किसी के भी प्रवेश करने से पूर्व एक उचित तौर पर निर्मित सघन प्रशिक्षण कार्यक्रम आवश्यक है ।
यह एक सेविवर्गीय डिप्लोमे की तुलना में स्नातकोत्तर डिग्री के समकक्ष एक दीर्घकालीन प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के विकास की अपेक्षा करता है जो एक पेशेवर व्यक्ति विशेष पाठ्यक्रम में 6 माह लगाकर या सामान्य पाठ्यक्रम में एक साथ लगाकर प्राप्त कर सकता है ।
यह मात्र अवधि का प्रश्न ही नहीं है वरन् प्रशिक्षण में विशिष्टीकरण की विषय-वस्तु का प्रश्न भी है जिस पर और अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये । कर्मचारी प्रबन्धकों द्वारा अपने कानूनी क्षेत्र को वकीलों के लिए छोड़ा जा सकता है । इसी तरह से कर्मचारी प्रबन्धकों के लिए यह आवश्यक होगा कि Industrial Engineering की कुछ जानकारी प्राप्त करें ।
लेकिन कर्मचारी प्रबन्ध में विशिष्टीकरण का मेरुदण्ड व्यावहारिक विज्ञानों के क्षेत्र में होना चाहिए । कर्मचारी प्रबन्धकों को स्वयं को संगठन में प्रभावी Change Agents के रूप में काम करने में निपुण होना चाहिए तथा अपनी भूमिका निभानी चाहिये ।
3. The National Institute of Personnel Management तथा इस पेशे से जुड़े अनेक विभिन्न संस्थानों को एक समयबद्ध योजना पर काम करना चाहिये । यह उसकी पहचान स्थापित करने के लिए अपेक्षा करेगी तथा साथ ही उपक्रम की निष्पत्ति के प्रति पेशे के योगदान को प्रायोजित करने के लिए शैक्षणिक कार्य को भी करेगी ।
4. कर्मचारी प्रबन्ध का भविष्य न केवल उपर्युक्त सुझाये गये चरणों के दौर पर स्वयं के लिए एक पहचान स्थापित करने पर ही निर्भर करेगा वरन् साथ ही अन्य देशों से सीखने के लिए एक इच्छा के साथ जुड़ी उसकी परिवर्तन उन्मुखताओं पर भी निर्भर करेगा ।
एक कर्मचारी को अन्य पेशों में भी काम करना चाहिए ताकि अन्तत: संगठन में मुख्य प्रशासक की स्थिति प्राप्त हो सके । अनेक बार यह प्रश्न पूछा जाता है कि क्यों अनेक कर्मचारी व्यक्ति मुख्य प्रशासक के स्तर तक नहीं पहुँच पाये ?
जैसा कि वित्त, वाणिज्य उत्पादन सहित अन्य पेशों के मामले में होता है । इस लक्ष्य की सफलता की कमी के लिए महत्वपूर्ण कारण अन्य दूसरे क्षेत्रों में भी अपनी महत्ता सिद्ध करने में कार्मिक व्यक्तियों की असफलता रही है ।
अंशत: अनेक संगठनों में यह एक संगठनात्मक असफलता रही है कि एक क्रमबद्धता के भाग स्वरूप आवसर उपलब्ध नहीं कराये जाते हैं तथा अन्य पेशों में चातुर्यों की अपेक्षा हेतु कार्मिक रेखा में प्रबन्धकों के प्रति पारीकरण योजनाएँ (Rotation Plan) के रूप में मौका नहीं दिया गया है तथा अंशत: अपने मौलिक विवाद-निदान कार्यों के प्रति चिपके रहने में कार्मिक लोगों की हठधर्मिता में समस्या निहित रहती है ।
एक कार्मिक प्रबन्धक की पहचान का प्रश्न नेतृत्व तथा इस विशिष्टीकरण के प्रति एक उचित स्थान देने के लिए उच्च स्तरों पर इसकी अभिप्रप्ति पर भी निर्भर करेगा ।
अब हमको यह देखना चाहिये कि भविष्य में कौन से परिवर्तनों की सम्भावना है तथा से कैसे आने वाले 10 वर्षों में कर्मचारी प्रबनन्ध को प्रभावित कर सकते हैं । यह सम्भावना है कि आने वाले 10 वर्षों में देश में बेरोजगारी समस्याएँ गम्भीर तौर पर उत्पन्न होगी ।
बेरोजगारी की विद्यमान दर पर, जब तक रोजगारी के अवसर नाटकीय तौर पर नहीं बढ़ जाते, इसका अर्थ होगा कि अनेक क्षेत्रों में तनाव तथा दबाव में वृद्धि जिसका नीचे वर्णन किया जा रहा है:
1. सेवा से निकाला जाना, छँटनी तथा स्थगन के सम्बन्ध में समस्याएं बढ़ती संख्या में सामने आयेंगी । कर्मचारियों को भी इन सभी विवादों में शामिल किया जायेगा तथा इन दबावों का सामना करना होगा ।
2. भारत में भर्ती प्रणाली रोजगार हेतु क्षेत्रगत दबावों का शिकार होती रहेगी जैसे ‘Son-of-the-Soil’ । कार्यों के लिए सर्वोत्तम प्रतिभा का चयन भी अत्यधिक दबाव में रहेगा ।
इसका अर्थ हुआ कि उपलब्ध व्यापक चयन के बावजूद, तकनीकों का परिष्करण बेरोजगारी की समस्या तथा Pulls and Pressures के कारण चयन की विधियों में सतत् परम्परागत व्यवस्थाओं के कारण, बढ़ नहीं पायेगा । साथ ही एक ही पद के लिए बड़ी मात्रा में प्रत्याशियों की संख्या के कारण कर्मचारी अपनी अवधि के अधिकांश भाग के लिए कार्य के इस पहलू से घिरे रहेंगे, अन्य महत्वपूर्ण कार्यों की उपेक्षा करते हुए ।
3. विद्यमान निकृष्ट आर्थिक संरचना तथा आने वाले दस वर्षों में गरीबी तथा बेरोजगारी में संभावित वृद्धि के बावजूद इस बात की प्रबल सम्भावना है कि अधिक औद्योगिक उत्पादन होगा तथा प्रबन्ध में चातुर्यों का और अच्छा संगठन होगा ।
यह विकास अपने नैत्यक दबावों तथा झुकावों के बावजूद एक अधिक सृजनात्मक दृष्टिकोण के प्रति अपना फोकस शिफ्ट करके कार्मिक प्रबन्ध को प्रभावित कर सकता है ।
अत: इस बात की सम्भावना है कि भविष्य में कार्मिक प्रबन्ध और अधिक ऊँचे स्तर पर होगा, मानव शक्ति नियोजन तथा संगठनात्मक विकास से और अधिक सम्बन्धित रहेगा, अधिक संगठित होगा तथा दीर्घकालीन नियोजन में और अधिक शामिल होगा ।
4. प्रौद्योगिकी में विकास के उपायों को प्रायोजित करना कठिन होता है जो आने वाले दस वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रों में अंजाम पा सकते हैं, साथ ही मानवीय संसाधनों की और अधिक भागीदारी हो सकती है तथा वर्तमान में शहरी क्षेत्र के साथ कार्मिक व्यक्तियों को सम्पूर्ण सम्बद्धता के स्थान पर अर्द्धनगरीय कृषि-आधारित उद्योगों में लोगों के प्रबन्ध के विशिष्ट चातुर्यों हेतु आवश्यकता होगी ।
5. कुल मिलाकर कार्मिक प्रबन्ध रेखीय प्रबन्ध पर निर्भर होता है । जैसा कि अन्य विकसित देशों में हुआ है कार्मिक प्रबन्ध को स्वतंत्र तौर पर विकसित होना होगा अपनी निजी पहचान करके तथा अपनी शाख स्थापित करके । यह भी सम्भावना है कि भविष्य में मानवीय संसाधन प्रबन्ध की एक संकाय के रूप में कार्मिक प्रबन्ध के स्वतंत्र कार्यों के प्रति और अधिक मान्यता दी जा
सकेगी ।
6. वर्तमान में विकसित देशों द्वारा वहन की जा रही कुछ समस्याएँ भारत में भी उभरनी शुरू हो सकती हैं । ये समस्याएँ कार्य की बदलती प्रवृत्ति तथा और अधिक स्वतंत्रता, आत्म गौरव तथा उद्योग में आत्म-अभिप्राप्ति हेतु अवसरों के लिए परिणामजन्य माँग से सम्बन्धित होगी । कार्मिक प्रबन्ध का भविष्य एक बड़ी मात्रा तक उनके प्रत्युत्तरों पर निर्भर करता है जो इस देश में कार्मिक पेशे में महत्वपूर्ण पदस्थितियों में है इस पेशे के विशिष्टीकरण को प्रायोजित करने में तथा सोच को ढालने में ।
एक महत्वपूर्ण पेशे के रूप में पेशेवर कार्य की स्वीकृति आने वाले समय में निश्चय ही बढ़ेगी । Crystal Ball पर दृष्टिपात करते हुए इस रहस्यवाद से ऐसा जान पड़ता है, जिसके माध्यम से यह पेशा गुजरा है कि विभेदीकरणों, विशिष्टीकरणों तथा तुलनीय स्वतंत्रता की एक पूर्ण विकसित स्थिति तक पहुँचने के लिए अभी काफी लम्बा सफर पूरा करना है ।
बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि कैसे कार्मिक पेशेवर निष्पादन करते हैं तथा एकमात्र उनकी निष्पत्ति ही पेशे को स्वीकार्यता, मान्यता तथा प्रतिष्ठा दिला पायेगी ।