Read this article in Hindi to learn about:- 1. Emerging Issues in Human Resource Management 2. New Role of Human Resource Management 3. Functions.
मानव संसाधन प्रबन्ध में उभरते आयाम (Emerging Issues in Human Resource Management):
निरन्तर बदलती सामाजिक-आर्थिक प्रौद्योगिकी तथा राजनैतिक परिस्थितियों के कारण भविष्य के मानव संसाधन या कार्मिक प्रबन्धकों को श्रम के प्रबन्ध में अनेक कठिनाइयों का सामना करना होगा । आज का मानव संसाधन प्रबन्धक स्वयं को वातावरण में आ रहे परिवर्तनों के कारण अप्रचलित हुआ सा अनुभव कर सकता है यदि वह आज के उद्योगों एवं व्यवसायों के सामने आ रही हैं ।
ऐसी कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियों के प्रति स्वयं को अद्यतन नहीं कर लेता:
(i) श्रम शक्ति का बढ़ता आकार (Increasing Size of Workforce)
(ii) शिक्षा के स्तर में वृद्धि (Increase in Education Level)
(iii) प्रौद्योगिकी विकास (Technological Advances)
(iv) राजनैतिक वातावरण में परिवर्तन (Changes in Political Environment)
(v) कर्मचारियों की बढ़ती महत्वाकांक्षाएँ (Increasing Aspirations of Employees)
(vi) बदलता मनोवैज्ञानिक तंत्र (Changing Psychological System)
(vii) कम्प्यूटरीकृत सूचनातंत्र (Computerised Information System)
(viii) पेशेवर कर्मियों की गतिशीलता (Mobility of Professional Personnel)
(ix) वैधानिक परिदृश्य में बदलाव (Changes in Legal Environment)
(x) मानवीय सम्बन्धों का प्रबन्ध (Management of Human Resources):
औद्योगिक सम्बन्धों पर सरकार द्वारा किये गये अनेक प्रयासों के बावजूद बहुत कुछ सुधार नहीं दिखाई दे रहा है । यद्यपि औद्योगिक अशान्ति के लिए अनेक कारण उत्तरदायी हैं लेकिन अलग-अलग राजनैतिक विचारधाराओं वाले औद्योगिक समूहों में बहु-संघीय व्यवस्था की उत्पत्ति (Multiunions) एक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण कारण है ।
वर्तमान परिस्थितियों में ऐसा जान पड़ता है कि अन्त: यूनियन संघर्ष आने वाले वर्षों में बड़ी संख्या में सामने आयेंगे तथा उद्योगों के सम्मुख इनसे और अधिक समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं । भविष्य में मानवीय सम्बन्धों का प्रबन्ध आज की तुलना में कहीं अधिक जटिल होगा ।
”कर्मचारियों की अनेक नई पीढ़ियाँ अपने पूर्ववर्तियों की अपेक्षा अभिप्रेरित करनी कहीं अधिक कठिन होंगी । यह सब बढ़ते शिक्षा स्तरों के साथ मूल्य तंत्रों में आने वाले परिवर्तनों के कारण होगा । बड़े संगठनों के सम्बन्ध में अत्यधिक दुराव तथा अधिसत्ता के लिए कम रुझान सामान्य हो जायेगा । नियमों की चुपचाप स्वीकृति शायद ही संभव होगी ।”
नई श्रम-शक्ति अच्छे, शिक्षित तथा आत्म-प्रबुद्ध श्रमिकों को समावेश करेगी । वे आत्म-सन्तुष्टि हेतु और अधिक आयामों तथा बड़ी मात्रा में भागीदारी की माँग करेंगे । साथ ही पेशेवर तथा तकनीकी कर्मचारियों का अनुपात सम्पूर्ण श्रम-शक्ति में बढ़ेगा ।
प्रबन्धकीय पदों पर महिलाओं की एकजुटता अपने आप में एक समस्या होगी । अधिकांश श्रमिकों के लिए मौद्रिक अभिप्रेरणा एकमात्र शक्ति नहीं रहेगा । गैर-वित्तीय अभिप्रेरणाएँ भी श्रमशक्ति को अभिप्रेरित करने में अहम भूमिका निभायेगी । संक्षेप में मानवीय संसाधनों को सम्पत्तियों के रूप में देखा जायेगा जो भविष्य में व्यावसवायिक संगठनों के चिट्ठे में देखने को मिलेंगी ।
मानव संसाधन प्रबन्ध की नई भूमिका (New Role of Human Resource Management):
नब्बे के दशक में मानव संसाधन प्रबन्ध व्यापक क्रांति के दौर से गुजरा जिसने स्वीकृत व्यवहारों के प्रति प्रश्न उठाये हैं तथा संगठनों एवं संरचनाओं का पुन: आविष्कार किया है । अनेक परम्परागत व्यवहार दरकिनार किये जा चुके हैं । उदाहरण के तौर पर यह देखा जा सकता है कि क्रम-व्यवस्थाएँ समाप्त हो रही हैं तथा Flatter Organisation को अधिक महत्व दिया जा रहा है ।
इसका अर्थ है कि विशिष्टिकरण तथा चातुर्य सामने आ रहे हैं । साथ ही कार्य तथा निष्पत्ति के मानदण्ड तथा पैमानों को भी अपग्रेड किया जा रहा है । उदाहरण के लिए, अमेरिका में Chrysler Plant के 20 प्रतिशत श्रमिक स्नातक हैं ।
इसी तरह उसी संयंत्र में आज 20 वर्ष पहले के प्रति प्रबन्धक 20 श्रमिकों की तुलना में 50 श्रमिक प्रति प्रबन्धक रखा जा रहा है । संख्या भविष्य में 100 तक बढ़ सकती है । यह Empowerment की नई भूमिका प्रतीत होती है ।
John Payne के शब्दों में- ”एक काम करने के लिए तथा उनके व्यवधान के बिना परिणाम पाने के लिए लोगों पर भरोसा करने हेतु प्रत्यार्पण (Delegation) को तैयार किया जा रहा है । यह करने से कहना कहीं आसान है । ऐसे प्रबन्धक जो उनके लिए प्रत्यार्पण का काम करते हैं वे जो डर मिटा चुके हैं । वे प्रत्यार्पण नहीं करते तथा फिर चिन्तित रहते हैं कि काम सुचारु ढंग से नहीं हो पायेगा तथा उनको दोषारोपित किया जायेगा या बाहर का रास्ता दिखाया जायेगा । उनका अपनी निजी स्थिति में भरोसा है तथा वे डरे हुए भी नहीं हैं कि व्यक्ति एक अच्छा काम करेगा तथा उनकी स्थिति तथा अधिसत्ता को बौना बना देगा । साथ ही, वे उचित तौर पर प्रत्यार्पण करने के लिए समय बनाते हैं । प्रारम्भ में, प्रत्यार्पण में समय वचनबद्धता का समावेश तो होता है लेकिन निकट भविष्य में यथार्थ समय बचतें होती हैं ।”
मानवीय संसाधन प्रबन्ध की नई भूमिका Stuart Crainer ने निम्न प्रकार समझाई है:
(A) परिवर्तन अग्रदूत (A Facilitator of Change),
(B) प्रबन्ध के प्रति एक समेकित व्यवस्था (An Integrated Approach to Management),
(C) एक मध्यस्थ (A Mediator) ।
निष्पत्ति में सुधार लाकर तथा लागतों को कम करके जो परिवर्तन लाये जा रहे हैं वे लोगों के विकास के प्रति संगठन की ओर अधिक वचनबद्धता का समावेश करते हैं ।
फलस्वरूप, अवधि की लम्बाई, जो परम्परागत तौर पर लम्बी होती थी अब सीमित हो गई है, भविष्य कम निश्चित हो गया है, प्रबन्धकीय अवसर स्वत: निर्धारित हुए हैं तथा अभिप्रेरक तत्व कम्पनी के प्रति स्वामीभक्ति की अपेक्षा भावी रोजगारशीलता को बढ़ाने से अधिक सम्बन्ध रखते हैं तथा साथ ही अधिक वेतन के रूप में प्रतिफल बढ़ रहे हैं ।
जैसा कि P-A Consulting Group द्वारा परिचयांकित किया गया, भावी सृजनात्मक करीयर्स को Career Development के प्रति और अधिक सन्निहित्ता की अपेक्षा होगी ।
(1) आन्तरिक दौरों के स्थान पर व्यूहरचनात्मक साझेदार संगठनों (ग्राहकों या सप्लायर्स) के साथ कर्मचारियों को भागीदारी करना ।
(2) Career Development के लिए स्वतंत्रता को प्रोत्साहित करने हेतु कर्मचारी अन्यत्र जा सकते हैं, संभवत: कुछ वर्षों में लौटने के लिए ।
(3) संगठन के बाहर सप्लायर्स की तरह कर्मचारियों के फन्ड-ग्रुप्त स्थापित किये जायें ।
(4) अपने आप कर्मचारियों को यह सोचने के लिए प्रेरित करना कि वे ग्राहकों की तरह संगठन के एक व्यवसाय में हैं तथा विभिन्न विभागों में हैं ।
(5) कर्मचारियों को संगठन के बाहर ग्राहक विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करना ।
(6) अपने स्वयं के लिए तथा संगठन के लिए दोनों ही दृष्टियों से नये अवसर पैदा करने या पहचानने की खोज में उनको समर्थ बनाने के लिए उनके Self-Marketing, Networking तथा परामर्शदात्री चातुर्यों को विकसित करने में सहायता करना ।
(7) अन्य संगठनों के निपुण कर्मचारियों की पहचान करना तो अंशकालिक तौर पर या अस्थायी रूप से योगदान दे सकते हैं ।
(8) आविष्कारों को बढ़ावा देने के लिए कर्मचारियों को नियमित तौर से नये-नये व्यक्तियों तथा नये विचारों के सम्पर्क में लाना ।
(9) खुली प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने के लिए आन्तरिक पदोन्नति के विपरीत सभी स्तरों पर बाहरी भत्तीं का सन्तुलन बनाये रखना ।
(10) आत्म-विकास के लिए और अधिक अन्त: क्रियात्मक टीमवर्क को विकसित करना ।
(11) अपेक्षाकृत बड़ी परियोजनाओं, अभिप्राप्तियों तथा सीखे गये नये चातुर्यों की क्रमबद्धता के तौर पर एक भविष्य के प्रदर्शन के पक्ष में भविष्य उद्देश्यों के रूप में पद-स्थितियों का मूल्यांकन करने की संस्कृति को मिटाना ।
(12) आन्तरिक ग्राहक संतुष्टि सर्वेक्षणों के आधार पर आत्म-आकलन के पक्ष में अधोगामी निष्पत्ति मूल्यांकन को त्यागना ।
(13) आत्म-आकलन तकनीकों के द्वारा अधोगामी निर्धारण प्रक्रियाओं को प्रतिस्थापित करना तथा परिणामों के रूप में निष्पत्ति को मापना ।
स्पष्ट है कि HRM मानव संसाधन उपयोग में सुधार के माध्यम से किसी संगठन के रणनीति लक्ष्यों को पाने की प्रक्रिया में तेजी से विकास कर रहा है । भविष्य में HRM संगठनों को परिवर्तित करने में और अधिक सृजन का समावेश करेगा ।
संगठनों को समझना लोचदार बनेगा तथा प्रत्येक संगठन में व्यक्तियों की क्षमताएँ तथा दक्षताएँ बदल रही हैं तथा बढ़ रही हैं । अत: HRM के विशेषज्ञों को संगठनात्मक प्रभावोत्पादकता के प्रति इन इनपुटों को समृद्ध बनाना है ।
कल के मानव संसाधन प्रबन्धकों को अनेक चुनौतियों का सामना करना होगा जो उनकी बहुआयामी प्रतिभाओं और विकास हेतु क्षेत्र प्रदान करेंगी । कार्मिक कार्य की प्रकृति अस्पष्ट तथा भ्रमित जान पड़ती है । कार्मिक प्रबन्धकों को उच्च तथा ज्ञात स्तर गतिविधियों में लगना होगा ।
यद्यपि सेविवर्गीय कार्य एक पृथक् विशिष्टता है तो भी यह प्रत्येक प्रबन्धकीय कार्य का आधार है । अन्त: उनको व्यक्तियों के उन पहलुओं के बीच संतुलन बनाये रखना होगा जो रेखीय प्रबन्धकों द्वारा देखे जाने चाहिए तथा जिनको स्टॉफ विशेषज्ञों द्वारा संभाला जाना चाहिये ।
निरन्तर बदल रही प्रौद्योगिकी तथा अर्थव्यवस्था में विकास की तीव्र गति कार्मिक प्रबन्धकों से अत्यधिक योगदान की माँग करेगी । यह संगठनात्मक ढाँचे में तथा प्रौद्योगिकी में अनेक परिवर्तनों के प्रशासन की अपेक्षा करेगा ।
इन परिवर्तनों का प्रशासन करने में कार्मिक प्रबन्धकों को एक सुचारु तरीके से ऐसे परिवर्तनों के लिए मानवीय संसाधनों को तैयार करके एक अहम् भूमिका निभानी होगी तथा साथ ही संगठनात्मक उद्देश्यों की अभिप्राप्ति तथा व्यक्तियों की प्रगति तथा विकास को भी सुनिश्चित करना होगा ।
नेतृत्व तथा अभिप्रेरणा (Leadership and Motivation):
कल के मानव संसाधन प्रबन्धकों को न केवल कार्मिक कार्यों में ही देखना होगा वरन् सम्पूर्ण संगठन के Actuating Process अर्थात् नेतृत्व तथा अभिप्रेरणा में भी शामिल होना होगा ।
इसी तरह से, मानवीय संसाधन प्रबन्ध एकमात्र HR प्रबन्धक का काम नहीं होगा वरन् संगठन का प्रत्येक अधिकारी अपनी-अपनी यूनिट में लोगों के प्रभावी प्रबन्ध हेतु उत्तरदायी बनाया जायेगा ।
अत: मानवीय संसाधनों का प्रबन्ध ऊपर नीचे तक सभी प्रबन्धकों का और अधिक ध्यान आकृष्ट करेगा । मानवीय संसाधन प्रबन्धक संगठन की नीतियों, कार्यक्रमों, योजनाओं तथा रणनीतियों में अहम् भूमिका निभायेगा जबकि अन्य क्रियात्मक अधिकारी कार्मिक कार्यक्रमों में शामिल होंगे ।
प्रत्येक मानव संसाधन प्रबन्ध कार्यक्रम अन्य क्रियात्मक प्रबन्धकों से परामर्श करके मानव संसाधन प्रबन्धक द्वारा भली प्रकार नियोजित तथा निर्देशित करना होगा ।
परिवर्तन के अग्रदूत (Change Agent):
मानव संसाधन प्रबन्धकों से अपेक्षा की जायेगी कि वातावरणीय खोजबीन तथा विकास नियोजन में और अधिक भागीदारी के माध्यम से परिवर्तन वाहकों की भूमिका निभायें । मानव संसाधन कार्य कहीं अधिक सृजनात्मक तथा कम यांत्रिक हो जायेगा । यह स्वरूप की अपेक्षा सारतत्व, गतिविधियों की अपेक्षा अभिप्राप्तियों तथा सिद्धान्त की अपेक्षा व्यवहार से अधिक सम्बद्ध होगा ।
कार्मिक कार्य संगठन को बनाये रखने मात्र से सम्बन्धित न होकर उसको आगे बढ़ाने के लिए उत्तरदायी होगा । मानव संसाधन प्रबन्धकों को यथास्थिति बनाये रखने की अपेक्षा परिवर्तनों को लागू कराने में और अधिक समय लगाना होगा ।
और अधिक पेशाकरण (Greater Professionalization):
भविष्य के मानव संसाधन प्रबन्धकों को व्यावहारात्मक विषयों में विशेषज्ञ होना होगा । वे एक सृजनात्मक तथा विकासात्मक भूमिका निभायेंगे । मानव संसाधन प्रबन्ध अपने आप में एक संकाय के तौर पर उभर चुका है तथा मानव संसाधन प्रबन्धक एक पेशेवर बन चुका है ।
पेशेवर गतिविज्ञान उसकी प्रतिष्ठा तथा सेवा की गुणवत्ता में वृद्धि लायेगा । लेकिन भविष्य में इसकी सफलता तथा अस्तित्व उपलब्ध ज्ञान तथा चातुर्यों के विवेकपूर्ण उपयोग पर निर्भर करेंगे ।
कार्मिक प्रबन्ध अन्य स्थापित पेशों के समान एक सुस्थापित, सम्मानजनक तथा भली प्रकार पुरस्कृत पेशे के रूप में उभरेगा बशर्ते कि उसके विकास हेतु चुनौतियों तथा अवसरों को सफलतापूर्वक अवशोषित कर लिया जाये ।
नई कार्य संस्कृति (New Work Ethics):
मानव संसाधन प्रबन्धकों को एक नई संस्कृति को गतिशील करना होगा ताकि अच्छे गुणवत्ता मानदण्डों की स्थापना तथा क्रियान्वयन में रेखीय प्रबन्धकों की सहायता हो सके । समूह संश्लिष्टता पाने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता होगी क्योंकि श्रमिकों की समूह के प्रति स्पष्टत: वचनबद्धता होगी ।
बदलती कार्य संस्कृति व्यक्तियों पर बढ़ते दबाव की अपेक्षा करती है अत: कार्यों की पुन: अभिकल्पना करनी होगी ताकि चुनौतियों की व्यवस्था हो सके । कर्मचारियों का लोचदार आगमन तथा प्रस्थान समय (फ्लैक्सी समय) आवश्यक हो सकता है ।
बाहर से आन्तरिक अभिप्रेरणा को और अधिक केन्द्रित करना होगा । भविष्य में, परिवर्तनों को लागू तथा प्रबन्धित करना होगा ताकि संगठनात्मक प्रभावोत्पादकता सुधारी जा सके ।
प्रौद्योगिकी, आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक-सांस्कृतिक तथा अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण में बदलावों के अवशोषण के प्रति उपादेय एक कार्य संस्कृति मानव संसाधन/कार्मिक प्रशासकों द्वारा पल्लवित करनी होगी यदि वे उद्योग तथा समाज में ऊँचा स्थान पाना चाहते हैं ।
उनको वातावरण की चुनैतियों का सामना करने के लिए तथा संगठनात्मक प्रभावोत्पादकता बढ़ाने के लिए मानवीय संसाधनों के विकास में उच्च प्रबन्ध को भी और अधिक सक्रिय तौर पर भागीदार बनाना होगा ।
आज के मानव संसाधन प्रबन्ध के कार्य (The Functions of Today’s Human Resource Management):
मानव संसाधन प्रबन्ध के अभ्यास में विगत के अभ्यास के साथ समानताएँ तथा असमानताएँ दोनों ही हैं । सम्पूर्ण रोजगार सम्बन्धों पर HRM का निरन्तर संकेन्द्रण समानताओं में शामिल हैं । आज का मानव संसाधन प्रबन्ध अभ्यास अनेक तरीकों से विगत से भिन्न है ।
प्रथम, HRM को परम्परागत कार्मिक प्रबन्ध गतिविधियों तथा साथ ही सर्वांगीण संगठनात्मक नियोजन तथा परिवर्तन में HRM की भागीदारी के एकीकरण पर जोर देकर लक्षित किया जाता है । द्वितीय, आज का HRM संगठनात्मक परिवर्तन में एक साझेदार संगठनात्मक संस्कृति का निर्माता तथा संगठनात्मक वचनबद्धता का अग्रदूत माना जाता है ।
तीसरे, HRM को कार्मिक विशेषज्ञों से वरिष्ठ रेखीय प्रबन्ध तक परम्परागत HRM गतिविधियों में अनेक विकेन्द्रीकरण द्वारा व्यक्त किया जाता है । चौथे, चालू HRM सामूहिक प्रबन्ध-श्रम संघ सम्बन्धों की अपेक्षा व्यक्तिगत कर्मचारियों पर फोकस द्वारा व्यक्त किया जाता है ।
सामान्यत: आज का HRM कार्य कर्मचारी की आवश्यकताओं से निपटने तथा संगठनात्मक निष्पत्ति को बढ़ाने के उद्देश्यों के साथ उसके उत्तरदायित्वों में गतिमान होकर, एकल सर्वाधिक महत्वपूर्ण संगठनात्मक सम्पत्ति के रूप में कर्मचारियों के सम्बन्ध में सभी प्रबन्धकीय कार्मिकों का समावेश करते हुए, एक व्यापक तथा व्यूहरचनात्मक कार्य के रूप में माना जाता है ।
साथ ही, HRM अन्य प्रबन्ध कार्यों के साथ एक साझेदार बन चुका है तथा अपेक्षित संस्कृति को पल्लवित करने के लिए उत्तरदायी हो चुका है । मानव संसाधन पेशेवर अब विगत के IR तथा PM कार्यों में दक्ष मात्र साधारण तकनीशिन नहीं रहे हैं ।
वरन् उनको प्रतिस्पर्द्धी संगठनात्मक सामाजिक तंत्रों के विकास में आर्किटैक्ट तथा लीडर्स होना चाहिये । आज का HRM कार्य न केवल मात्र समेकित कार्य है वरन् साथ ही आदर्शमूलक है । आज के मानव संसाधन अश्यासकर्त्ता अपने कार्मिक कार्यों के क्षेत्र में संकीर्णत: विशेषज्ञ नहीं हैं ।
इसके स्थान पर उसको प्रभावी HRM तंत्र बनाने में समर्थ होना चाहिये जिनमें गतिविधियों जैसे भर्ती, चयन, प्रशिक्षण तथा विकास, निष्पत्ति, निष्पत्ति मूल्यांकन तथा क्षतिपूर्ति एक रणनीतिगत फोकस के साथ संश्लिष्ट तौर पर एक साथ काम करें ।
मानव संसाधन प्रबन्ध के अनेक आलोचक हैं तथा साथ ही साथ अनेक समर्थक भी हैं । आलोचना का मेरुदण्ड है कि HRM वास्तविकता की अपेक्षा कहीं अधिक जटिल है तथा उसके समर्थकों ने काफी अतिशयोक्ति उत्पन्न कर दी है ।
साक्ष्य का इसको कम ही समर्थन मिला है तथा बाजार दबावों द्वारा लाये गये रोजगार सम्बन्धों में एक विचाराधारा परिवर्तन के समर्थन हेतु विवेकीकरण का एक सुविधाजनक डस्टबिन रहा है । HRM न केवल अपने अर्थ में वरन् साथ ही व्यवहार में भी अनेक विरोधाभास हैं ।
‘HRM’ अपने आप में आलोचना का विषय रहा है । HRM शब्द में एक बुद्धिमानीभरी अस्पष्टता छिपी है । इस शब्द का वही अर्थ है जो कोई समझना चाहे । मान लेते हैं कि मद HRM द्वारा स्वीकार कर ली जाती है तो भी औद्योगिक सम्बन्धों तथा कार्मिक प्रबन्ध के पुराने मॉडल्स को बदलने या प्रतिस्थापित करने के लिए इसमें क्षमता की कमी है ।
अन्य आलोचकों ने देखा है कि अनेक संगठनों को HRM की अपेक्षा दृढ़ उद्देश्यों द्वारा चलाया जाता है । कम्पनियों के वित्तीय आयाम अमूल्य मानवीय संसाधन व्यवहारों पर वर्चस्व लेते हैं । साथ ही यह विश्वास कि प्रश्नाधीन रहा है HRM राष्ट्रीय संस्कृतियों को बदल सकता है ।
आलोचकों के तर्कों को निरस्त करने के लिए यह कहा जा सकता है कि सुझाव, नीति तथा समीक्षा का एक दृश्य व्यवस्था रही है जो एक परिप्रेक्ष्य के तौर पर HRM की विचारधारा पर निर्देशित होती है जो रोजगार सम्बन्ध के प्रति अहम् होता है ।
साथ ही HRM उद्देश्यों से चालित होता है- विचारधारागत, व्यूहरचनात्मक, क्रियात्मक, विपणन आदि- उसकी भाषा, व्यवहार तथा ग्राह्यता सुझाते हैं कि यह शायद विगत चालीस वर्षों के दौरान उभरने वाला रोजगार सम्बन्धों पर सर्वाधिक महत्वपूर्ण परिप्रेक्ष्य है । इसकी महत्ता इसके कार्यों के दृश्य व्यवहार में उतनी निहित नहीं है लेकिन यह मान्यता जो यह प्रैक्टिशनर्स को बनाने की आज्ञा देता है ।
मान्यताएँ हैं:
(i) यह प्रबन्धकीय नीति के सर्वोच्च स्तरों के प्रति योगदान करने तथा उनसे आहरण करने में समर्थ होता है;
(ii) यह व्यूहरचनात्मक तथा क्रियात्मक उद्देश्यों दोनों द्वारा चालित होता है;
(iii) यह एक ऐसे वातावरण के रूप में संगठन की कल्पना करता है जिसमें प्रबन्धकीय विवेक एक अधिक परम्परागत रोजगार सम्बन्ध में अपेक्षाकृत स्वतंत्र चलन की आज्ञा देता है, तथा
(iv) संगठन में कर्मचारी आसक्ति तथा संलग्नता को महत्वपूर्ण प्रबन्धकीय उत्तरदायित्वों के रूप में देखा तथा स्वीकार किया जाता है जिनको बाहरी संस्थाओं जैसे ट्रेड यूनियनों द्वारा मॉडरेट नहीं किया जाता है ।
मानव संसाधन व्यवहार भी संगठनों में अत्यधिक दृश्य होते जा रहे हैं । प्रबन्धकों की पदस्थितियों को परम्परागत कार्मिक प्रबन्धकों से मानव संसाधन प्रबन्धकों के रूप में बदला जा चुका है तथा विभागों का नामकरण भी ‘मानव संसाधन विभाग’ परिवर्तित हो चुका है ।
संगठन व्यक्तियों का एक महत्वपूर्ण संसाधन के रूप में सम्मान करना शुरू कर चुके हैं तथा अपने कर्मचारियों को मौद्रिक मूल्य दे रहे हैं । एक संगठन के मानव संसाधनों का मूल्य निरन्तर स्पष्ट हो जाता है जब उपक्रम को बेचा जाता है ।
बहुधा क्रय प्रतिफल भौतिक तथा वित्तीय सम्पत्तियों के कुल मूल्य की अपेक्षा अधिक है । यह अन्तर लोकप्रिय तौर पर ख्याति माना जाता है जो अंशत: संगठन के मानवीय संसाधनों के मूल्य को प्रदर्शित करता है । अत: मानव संसाधन प्रबन्ध को बहुत आगे तक जाना है ।