Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning of Job Evaluation 2. Definitions of Job Evaluation 3. Features 4. Objectives 5. Principles 6. Advantages 7. Limitations 8. Essentials.
Contents:
- कार्य मूल्यांकन का अर्थ (Meaning of Job Evaluation)
- कार्य मूल्यांकन की परिभाषाएँ (Definitions of Job Evaluation)
- कार्य मूल्यांकन की विशेषताएँ (Features of Job Evaluation)
- कार्य मूल्यांकन के उद्देश्य (Objectives of Job Evaluation)
- कार्य मूल्यांकन के सिद्धान्त (Principles of Job Evaluation)
- कार्य मूल्यांकन की सफलता की महत्वपूर्ण शर्तें (Essentials for Success of Job Evaluation)
- कार्य मूल्यांकन के लाभ (Advantages of Job Evaluation)
- कार्य मूल्यांकन की सीमाएँ (Limitations of Job Evaluation)
1. कार्य मूल्यांकन का अर्थ (Meaning of Job Evaluation):
किसी भी संस्था की उत्पादकता काफी सीमा तक उस संस्था के कर्मचारियों के मनोरंजन एवं उत्साह पर निर्भर करती है । मनोबल एवं प्रेरणा को प्रभावित करने वाले एक आधारभूत सिद्धान्त वेतन नीति या वेतन संरचना है ।
मजदूरी एवं वेतन भुगतान में उन सभी तत्वों एवं नीतियों को शामिल किया जाता है जो श्रमिकों के वित्तीय/मौद्रिक भुगतान नीतियों में सम्बन्धित होती हैं । भिन्न-भिक्षा मौद्रिक भुगतान नीतियों का उद्देश्य संस्था में साधन एवं उत्पाद में सम्बन्ध स्थापित करना होता है ताकि संस्था को अधिकतम उत्पादन स्तर तक पहुँचाया जा सके ।
दूसरे शब्दों में वेतन नीति का उद्देश्य संस्था में प्रत्येक श्रमिक को उसकी कार्य कुशलता स्तर तक पहुँचाने के लिए प्रेरित करना होता है । जैसा कि सभी जानते हैं मजदूरी श्रमिक एवं उत्पादक/नियोक्ता के सम्बन्धों में सबसे महत्वपूर्ण विषय होता है ।
इसमें केवल साधारण मजदूरी स्तर ही नहीं अपितु मजदूरी का अन्तर भी शामिल होता है । यह अन्तर भी कई तरह का हो सकता है । यह देशों, उद्योगों, कार्यों, समूहों, व्यक्तियों या अन्य स्तरों पर भी हो सकता है । फर्म में आन्तरिक स्तर पर विभागों या व्यक्तियों में भी यह अन्तर विद्यमान रहता है ।
यह अन्तर विभिन्न कारणों से हो सकता है जैसे कार्य की प्रकृति, कार्य हेतु आवश्यक योग्यता कार्य दशाएँ, नौकरी की अवधि आदि । इसीलिए यह समस्या हमेशा बनी रहती है कि श्रमिकों को मजदूरी उनके स्तर के आधार पर अनुचित लगती है । इस समस्या के समाधान के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि श्रमिकों एवं नियोक्ता के मध्य एक तालमेल उत्पन्न करने का प्रयास किया जाए ।
कार्य मूल्यांकन कार्य एवं कार्य के तत्वों के विश्लेषण की प्रक्रिया है । इसमें इनका विश्लेषण करने के पश्चात् उन्हें एक निश्चित क्रम में लगाने का प्रयास किया जाता है । इसी के अन्तर्गत कार्य की अन्य कार्यों से भी तुलना की जाती है ।
इसके पश्चात् इसके आधार पर एक स्वीकार्य वेतन नीति निर्धारित करने का प्रयास किया जाता है । यह प्रक्रिया प्रबन्धकों द्वारा कार्य सन्तुष्टि एवं श्रमिक उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रयोग की जाती है । संक्षेप में कार्य मूल्यांकन कार्य के मूल्य की गणना करना है ।
इस प्रक्रिया में एक उचित, विवेकपूर्ण एवं न्यायोचित आधार पर प्रत्येक कार्य का मूल्यांकन किया जाता है । इसमें पक्षपता, अनावश्यक लचीलाचन जैसे तत्वों की अवहेलना की जाती है । कार्य मूल्यांकन एक कार्य की सापेक्षिक कीमत अन्य कार्यों की तुलना में निश्चित करने का प्रयास है ।
यह कार्य की अन्य कार्यों से विधिपूर्वक तरीके से तुलना भी करता है जिससे एक स्वीकार्य वेतन नीति निर्धारित करने में मदद मिलती है । अत: कार्य मूल्यांकन एक उचित एवं न्यायोचित मजदूरी एवं वेतन निर्धारण करने की प्रक्रिया की आवश्यक प्रक्रिया है ।
2. कार्य मूल्यांकन की परिभाषाएँ (Definitions of Job Evaluation):
(i) किंबाल एवं किंबाल के अनुसार- ”कार्य मूल्यांकन किसी संयंत्र में प्रत्येक कार्य का मूल्यांकन करने तथा ऐसे कार्य के उचित आधारभूत मजदूरी होनी चाहिए, इसके लिए किया गया एक प्रयास है ।”
(ii) अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघ के अनुसार- ”एक विशेष कार्य को सामान्य रूप से निष्पादन करने में एक सामान्य कर्मचारी से की जाने वाली अपेक्षाओं को संबंधित कर्मचारी की वैयक्तिक योग्यता एवं प्रगति को ध्यान में रखे बिना निर्धारित करने एवं एक-दूसरे की तुलना करने का प्रयास ही कार्य मूल्यांकन है ।”
(iii) डेल योडर के अनुसार- ”कार्य मूल्यांकन एक विधि है जो एक संगठन में तथा इसके समान संगठनों में विभिन्न कार्यों के तुलनात्मक अध्ययन का माप करने में एक दृढ़ता प्रदान करती है । एक आवश्यकीय तौर पर एक कार्य अंकन प्रक्रिया है जो कर्मचारियों के अंकन से भिन्न नहीं है ।”
(iv) वीथल, अरवाटर स्मिथ एवं स्टेकथन के अनुसार- ”कार्य मूल्यांकन में प्रमापित शब्दावली में स्पष्ट किए गए कर्मचारियों के विश्लेषण के साथ-साथ कार्यों को उनके महत्व या भुगतान के क्रम में व्यवस्थित करना सम्मिलित है ।”
(v) एस. सी. शुक्ला के अनुसार- ”कृत्य मूल्यांकन प्रत्येक कार्य का सापेक्षिक मूल्य निर्धारण करने के लिए विशिष्ट पद्धतियों के अनुसार कृत्यों का अंकन करना है ।”
(vi) विलिमन आर. स्प्रीगल के अनुसार- ”कृत्य मूल्यांकन एक तकनीक है जिसके द्वारा एक व्यवसाय या उद्योग में एक कृत्य की अन्य कृत्यों से तुलना तथा श्रेणीयन या अंकन किया जाता है जिससे यह विदित हो जाए कि प्रत्येक कार्य के लिए किसी योग्यता वाले श्रमिक की आवश्यकता है ।”
(vii) जॉन ए. शुविन के अनुसार- “कृत्य मूल्यांकन मजदूरी और वेतन अन्तरों के निर्धारण के उद्देश्य से धन्धों का उनके सामान्य घटकों (कुशलता, प्रशिक्षण, प्रयास) के आधार पर सापेक्षिक मूल्य और महत्व के मापन की एक व्यवस्थित पद्धति है । कृत्य मूल्यांकन धंधे से संबंधित है, कर्मचारी द्वारा धारण किए गए पद से नहीं ।”
(viii) अलबर्ट एफ. बीटी के अनुसार- “कार्य मूल्यांकन, कार्य विश्लेषण का ही प्रयोगात्मक रूप है जिसके आधार पर कार्य का गुणात्मक माप, सौद्देश्य वर्गीकृत, मजदूरी मान निर्धारित करने के लिए, प्राप्त किए जाते हैं, यह कार्य की आवश्यकता के आधार पर कार्यों में पाए जाने वाले अन्तर को मापता है । कार्य मूल्यांकन तथा इसके आधार पर मजदूरी स्तर निर्धारत किए जाते हैं ।”
3. कार्य मूल्यांकन की विशेषताएँ (Features of Job Evaluation):
कार्य मूल्यांकन का प्राथमिक उद्देश्य एक कार्य की कीमत निर्धारित करने से है । यह कीमत समय, स्थान तथा अन्य आर्थिक तत्वों के दबाव में परिवर्तित भी होती रहती है ।
इसकी मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं:
(i) वेतन निर्धारण के लिए आवश्यक एवं तथ्यपूर्ण सूचनाएं प्रदान करना ।
(ii) यह कार्य के मूल्यांकन का प्रयास है, व्यक्ति के नहीं ।
(iii) कार्य मूल्यांकन, कार्य विश्लेषण का उत्पाद है ।
(iv) कार्य मूल्यांकन वेतन निर्धारित नहीं करता बल्कि इसके लिए आधार तैयार करता है । वेतन में अन्तर को भी कम करने का प्रयास किया जाता है ।
(v) कार्य मूल्यांकन व्यक्ति द्वारा नहीं बल्कि विशेष प्रशिक्षित दल द्वारा किया जाता है ।
(vi) कार्य मूल्यांकन कार्य का मूल्य निर्धारित करता है । इसके अन्तर्गत विभिन्न तत्व जैसे योग्यता, उत्तरदायित्व स्तर आदि को कार्य के संबंध में ध्यान में रखा जाता है ।
(vii) कार्य मूल्यांकन प्रबन्धन को अधिकतम श्रमिक संतुष्टि एवं अधिकतम उत्पादकता का स्तर प्राप्त करने में सहायता करता है ।
4. कार्य मूल्यांकन के उद्देश्य (Objectives of Job Evaluation):
कार्य मूल्यांकन का मुख्य उद्देश्य एक निश्चित विधि के द्वारा कार्य का मूल्य निर्धारण है जिससे कि संस्था में विभिन्न स्तरों पर श्रमिकों का वेतन निर्धारण किया जा सके । कार्य मूल्यांकन कार्य की कीमत निर्धारित करता है व्यक्ति की नहीं ।
यह मूल्यांकन इस तरह से किया जाता है कि संस्था के विभिन्न स्तरों के श्रमिकों के कार्यों की सम्पूर्ण सूचना रखी जा सके । इससे कार्य के आधार पर एक उचित एवं स्वीकार्य वेतन निर्धारित किया जाता है जो तुलनात्मक दृष्टि से भी उचित होता है ।
यह प्रक्रिया ऐसा प्रयास भी करती है कि समाज में एक स्तर के कार्य की मजदूरी निर्धारण एक ही तरह से की जाये । यह अवश्य ध्यान में रखा जाना चाहिए कि कार्य मूल्यांकन यह सभी उद्देश्य प्राप्त नहीं करता अपितु इनमें मदद अवश्य करता है ।
कार्य मूल्यांकन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
(i) एक स्वीकार्य मजदूरी एवं वेतन नीति की स्थापना करना ।
(ii) एक कार्य मूल्यांकन के लिए एक निश्चित नीति को निर्धारित करना ।
(iii) कार्य के ऐसा मजदूरी, वेतन निर्धारित करना जो संस्था में अन्य कार्यों की तुलना में उचित एवं स्वीकार्य भी हो ।
(iv) एक उद्योग में एक ही तरह के कार्यों के लिए वेतन निर्धारित करने हेतु तथ्यपूर्ण आधार प्रदान करना ।
(v) कार्य, संस्था, श्रमिक की भर्ती एवं चुनाव, प्रशिक्षण तथा अन्य तत्वों के बारे में सूचना प्रदान करना ।
(vi) व्यक्ति स्तर पर मजदूरी में अन्तर के संबंध में उत्पन्न होने वाले विवादों को सुलझाने हेतु शिकायत निवारण व्यवस्था स्थापित करना ।
(vii) कार्य दशाओं में सुधार करने हेतु आधार प्रदान करना ।
(viii) वेतन संस्थानों पर प्रभावी नियंत्रण करना ।
(ix) वेतन समीक्षा के लिए एक उचित मशीनरी की स्थापना करना ।
5. कार्य मूल्यांकन के सिद्धान्त (Principles of Job Evaluation):
ILO की रिपोर्ट के अनुसार- कार्य मूल्यांकन की मुख्य विधियों का उद्देश्य एक स्वीकार्य एवं न्यायोचित आकार पर, कार्य की सापेक्षिक कीमत का निर्धारण करना है । अत: कार्य मूल्यांकन योग्य कर्मचारियों द्वारा किया जाना चाहिए । यह कर्मचारी संस्था के इस कार्य के लिए आवश्यक योग्यता वाले ही होने चाहिए ।
प्रशिक्षण विशेषज्ञों के पास उच्च प्रबन्धकों की मान्यता होनी चाहिए । श्रमिक सहभागिता, सामूहिक सौदेबाजी, सहभागिता जैसे तत्वों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए ।
एक कार्य मूल्यांकन की सफलता के लिए निम्न सिद्धान्तों की पालन की जानी चाहिए:
(i) कार्य मूल्यांकन में कार्य मूल्यांकन किया जाना चाहिए व्यक्ति का नहीं । कार्य के प्रत्येक तत्व का मूल्यांकन करना चाहिए ।
(ii) कार्य मूल्यांकन से पहले सुस्पष्ट एवं स्वीकार्य कार्य स्पष्टीकरण एवं विशिष्टीकरण किया जाना चाहिए ।
(iii) कार्य तत्वों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने के पश्चात ही चुना जाना चाहिए । सामान्यत: यह तत्व योग्यता, उत्तरदायित्व कार्य दशाएँ आदि होते हैं ।
(iv) प्रत्येक सुपरवाइजर को संबंधित विभाग के कार्य मूल्यांकन की प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए ।
(v) कार्य मूल्यांकन सभी श्रमिकों को स्वीकार्य होना चाहिए । कार्य मूल्यांकन के परिणाम उचित, विवेकपूर्ण एवं पक्षपात रहित होने चाहिए ।
(vi) कार्य मूल्यांकन का पर्याप्त प्रसारण किया जाना चाहिए । संस्था में उपलब्ध सभी संदेश के साधनों का प्रयोग किया जाना चाहिए ।
(vii) किसी भी तरह की गुप्त मंशा नहीं रखी जानी चाहिए । कार्य मूल्यांकन की प्रक्रिया के उद्देश्यों को सभी पक्षों को स्पष्ट किया जाना चाहिए ।
(viii) सभी कार्यों को उद्देश्यपूर्ण एवं स्वतंत्रतापूर्वक अध्ययन किया जाना चाहिए । अन्तिम निर्णय लेने से पहले इसकी संबंधित पक्षों से बातचीत भी की जानी चाहिए ।
(ix) इसके लिए श्रमिकों एवं प्रबंधकों की ओर से कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए ।
(x) इसकी तैयारी एवं लागू करने के समय अधिकतम पारदर्शिता रखने का प्रयास किया जाना चाहिए ।
6. कार्य मूल्यांकन की सफलता की महत्वपूर्ण शर्तें (Essentials for Success of Job Evaluation):
यदि एक कम्पनी ने कार्य मूल्यांकन प्रणाली को लागू करने का अन्तिम निर्णय कर लिया है तो इसे कार्यान्वित करने से पहले अत्यधिक ध्यान रखना चाहिये । यह आवश्यक है कि वह सभी व्यक्ति जो कि कार्य मूल्यांकन कार्यक्रमों से सम्बन्धित हैं उन्हें इससे सम्बन्धित उपलब्ध विभिन्न प्रणालियों तथा तकनीकों की एवं उनके प्रभावों की पूर्ण जानकारी होनी चाहिये ।
कार्य मूल्यांकन प्रणाली को लागू करते समय अग्रलिखित आवश्यक शर्तों का ध्यान रखना चाहिए:
(i) उच्च स्तरीय प्रबन्ध को प्रणाली का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए । उन्हें इसकी समझ होनी चाहिये तथा अपने लोगों को इस योजना इसकी उपयोगिता एवं उद्देश्यों का वर्णन करना चाहिये ।
(ii) कार्य मूल्यांकन कार्यक्रम का सावधानीपूर्वक चयन किया जाना चाहिए । इसको रोजगार बाजार की शर्तों को ध्यान में रखकर बनाना एवं प्रशासन किया जाना चाहिये । संगठन की सफलता के लिए इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता ।
(iii) कार्य के सभी महत्वपूर्ण तत्वों को क्षतिपूर्ण तत्वों से प्रतिनिधित्व करना चाहिए । तत्वों में……से बचना चाहिये । इनको परिभाषित करना एवं मापना सम्भव होना चाहिए ।
(iv) कार्यक्रम के बारे में श्रमिकों में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रबन्धक को कार्यक्रम के प्रत्येक पहलू का खुलकर प्रचार करना चाहिये ।
(v) कार्यक्रम को एक-एक कदम से लागू किया जाना चाहिए । इसे एक-एक प्लांट के आधार पर लागू किया जाना चाहिए तत्पश्चात् सम्पूर्ण उद्योग में लागू करना चाहिए ।
(vi) सभी कर्मचारियों को कार्य मूल्यांकन तकनीकों एवं कार्यक्रमों को पूरी जानकारी होनी चाहिए ।
(vii) क्रियात्मक प्रबन्धकों को एक ग्रुप में योजना के बारे में पूर्व प्रशिक्षण मिलना चाहिए जिससे कि वे इसकी नीतियों, सिद्धान्तों तथा प्रक्रियाओं को जो कोई भी समझना चाहे बता सकें ।
(viii) कार्य मूल्यांकन कार्यक्रम में समूहों एवं स्तर के कर्मचारियों को सम्मिलित करना चाहिए ।
(ix) कार्यक्रम के समर्थन में श्रम संघों की स्वीकृति लेनी चाहिए ।
प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध सेक्शन के अनुसार, कार्य मूल्यांकन कार्यक्रम को सफलतापूर्वक चलाने के लिए निम्नलिखित शर्तों का होना आवश्यक है:
(A) इसको सावधानीपूर्वक स्थापित किया जाना चाहिए एवं ध्यान रखना चाहिये कि:
(i) प्रबन्ध के उद्देश्य सभी को स्पष्ट हैं केवल शारीरिक कार्य करने वालों ही नहीं बल्कि सभी स्तरों के पर्यवेक्षक तथा प्रबन्ध कर्मचारियों को इसके प्रभावों की पूरी समझ होनी चाहिए ।
(ii) स्कीम को अन्तिम रूप देते समय सभी सम्बन्धित आन्तरिक एवं बाह्य तत्वों को ध्यान में रखना चाहिए ।
(B) इसे उच्च प्रबन्धकों की पूर्ण स्वीकृति एवं निरन्तर समर्थन मिलना चाहिए ।
(C) इसे श्रम संघों का समर्थन मिलना चाहिए ।
(D) पर्याप्त प्रशासनिक नियन्त्रण स्थापित किया जाना चाहिऐ ताकि:
(i) स्कीम का केन्द्रीय समन्वय ।
(ii) नयी एवं परिवर्तित कार्यों का मूल्यांकन ।
(iii) व्यक्तिगत रेट सीमाओं पर पर्याप्त नियन्त्रण ।
(iv) अन्तर-प्लाण्ट सीमाओं के बारे में आवश्यक सूचना प्राप्त करने के लिए मजदूरी सर्वेक्षण कराये जा सकें ।
(E) कार्य के विभिन्न घटकों के अतिरिक्त अन्य तत्वों जैसे रोजगार बाजार की स्थिति, सरकारी नीति, भौगोलिक परिस्थितियाँ, श्रम संघ, सामूहिक सौदेबाजी आदि को ध्यान में रखा जाना चाहिए ।
(F) कार्य मूल्यांकन लागू किये जाने से पहले क्रय महत्वपूर्ण बातों को निश्चित कर लेना चाहिए ।
उदाहरणत:
(i) किन श्रमिकों को इसमें शामिल किया जाएगा तथा किस सीमा तक ।
(ii) कार्य मूल्यांकन किस के द्वारा किया जाएगा बाहरी पत्रकार या व्यापार विश्लेषक या कर्मचारी विभाग के द्वारा ।
(iii) कार्य मूल्यांकन करते समय श्रमिकों से किस तरह से सुझाव दिए जाएंगे ।
(iv) क्या संस्था में कार्य मूल्यांकन हेतु पर्याप्त वातावरण तैयार है अथवा नहीं ।
7. कार्य मूल्यांकन के लाभ (Advantages of Job Evaluation):
कार्य मूल्यांकन के द्वारा संस्था एवं उससे संबंधित सभी पक्षों को लाभ मिलता है ।
प्रबंध (Management)- प्रबंधक को वेतन नीति निर्धारण करने एवं लागू करने में बहुत मदद मिलती है ।
संघ (Unions)- श्रम संघ वेतन नीति निर्धारण एवं वेतन के अंतर को जानने का प्रयास करते हैं तथा अंतर को कम करने में भी भूमिका निभा सकते हैं ।
कर्मचारी (Employees)- कार्य मूल्यांकन पक्षपातपूर्ण रवैया छोड़कर स्वीकार्य आधार प्रदान करता है । यह कार्य के अतिरिक्त योग्यता, अनुभव एवं उत्तरदायित्व को भी महत्व देता है ।
सभी (Everyone)- इसके द्वारा बाधाओं को दूर किया जाता है । इसके द्वारा नये कार्यों का पुराने आधारों पर मजदूरी निर्धारण भी किया जाता है ।
इसके अतिरिक्त संस्था को कार्य मूल्यांकन के अन्य लाभ भी हैं, जैसे:
(i) अंतर को मिटाना (Elimination the Inequalities):
कार्य असन्तुष्टि का सबसे बड़ा कारण कार्य में भुगतान का अंतर है । प्रबंधकों के लिए कार्य मूल्यांकन एक महत्त्वपूर्ण विधि है जो अधिक उचित एवं न्यायपूर्ण मजदूरी निर्धारण में मदद करती है । वेतन भुगतान के समय सामाजिक लागत को भी ध्यान में रखा जाता है । इससे असमानताओं को दूर करने में मदद मिलती है ।
(ii) विवेकपूर्ण मजदूरी एवं वेतन संरचना (Evaluation of Rational Wage and Salary Structure):
कार्य मूल्यांकन कार्य को मूल्य के आधार पर मजदूरी निर्धारित करता है । कार्य के मुख्य तत्वों के महत्व के आधार पर मजदूरी निर्धारित की जाती है । अत: मजदूरी एवं वेतन निर्धारण हेतु यह आधार का कार्य करता है ।
(iii) व्यक्तिगत अन्तर को समाप्त करना (Eliminates Personal Grades):
कार्य मूल्यांकन कार्य का होता है । व्यक्ति विशेष का नहीं । श्रमिक कार्य मूल्यांकन द्वारा निर्धारित वेतन प्राप्त करते हैं । अत: व्यक्तिगत नाराजगियों एवं पक्षपातपूर्ण रवैये की संभावना कम हो जाती है ।
(iv) तुलना एवं सर्वेक्षण का आधार (Basis of Comparison and Survey):
कार्य मूल्यांकन कार्य सर्वेक्षण तथा विभिन्न कार्यों का तुलनात्मक अध्ययन करता है । यह संस्था के विभिन्न कार्यों की तुलना भी करता है ।
(v) भर्ती एवं चुनाव की कम लागत (Lower Cost of Recruitment and Selection):
यह श्रमिकों की भर्ती एवं चुनाव लागत को कम करने में भी मदद करता है । यह श्रमिकों को संस्था से जुड़े रहने में भी मदद करता है श्रमिक की योग्यता के आधार पर कार्य विशिष्टीकरण, चुनाव एवं भर्ती जैसे कार्यों को किया जाता है ।
(vi) सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना (Maintenance of Harmonious Relations):
कार्य मूल्यांकन मजदूरी के अंतर को कम करने का प्रयास करता है । इससे श्रमिक तथा श्रमिक संघ संतुष्ट तथा प्रसन्न रहते हैं तथा श्रम-प्रबंध में अच्छे संबंध स्थापित होते हैं । अत: श्रम तथा प्रबंध के तनाव को कम करने में सहायता मिलती है ।
(vii) मजदूरी निर्धारण का वास्तविक आधार (Real Base for Determination of Wages):
मशीनीकरण के आधुनिक युग में सामान्यत: मशीनें उत्पादक एवं उत्पादकता को तय करती हैं । परन्तु इसके बावजूद भी कार्यमूल्यांकन की भूमिका मजदूरी निर्धारण में महत्त्वपूर्ण रहती है ।
(viii) कार्य तत्वों पर पूर्ण ध्यान (Proper Emphasis on Job Factor):
कार्य मूल्यांकन विभिन्न कार्य तत्वों जैसे योग्यता, कार्य दशाएँ, उत्तरदायित्व आदि को ध्यान में रखकर किया जाता है । कार्य सिर्फ योग्यता के आधार पर विभाजित नहीं किया जाता । मजदूरी निर्धारण के समय सभी महत्वपूर्ण तत्वों को ध्यान में रखा जाता है ।
उपरोक्त वर्णित लाभों के अतिरिक्त भी कार्य मूल्यांकन की प्रक्रिया के कुछ अन्य लाभ स्वयं प्राप्त होते जाते हैं:
(a) मानव संसाधन नियोजन भर्ती, चुनाव, पदोन्नति, प्रशिक्षण, विकास तथा संस्था के अन्य प्रबंधन कार्यों में सहायता ।
(b) संस्था के संगठनात्मक संरचना, कार्य विधियों, कार्य समस्याओं आदि के बारे में जानकारी प्रदान करना ।
(c) आर्थिक प्रभावी बजटरी एवं लागत नियंत्रण प्रणाली की स्थापना ।
8. कार्य मूल्यांकन की सीमाएँ (Limitations of Job Evaluation):
(i) कार्य मूल्यांकन कार्य की कीमत निर्धारित करने की वैज्ञानिक पद्धति नहीं है । सभी कार्यों एवं घटकों को शुद्धता एवं स्पष्टता से विश्लेषित करना बहुत कठिन होता है ।
(ii) कार्य मूल्यांकन की यह अवधारणा है कि समान कीमत वाली कार्यों को समान महत्व रहता है । वास्तविकता में ऐसा नहीं होता । यदि किसी कार्य में पदोन्नति के अवसर हैं तो वह कर्मचारियों को आकर्षित करती है । अन्य कार्य जहाँ ऐसे अवसर नहीं हैं, कर्मचारी ज्यादा आकर्षित नहीं होते हैं ।
(iii) संस्था के घटकों तथा बाह्य वातावरण के घटकों में बहुत अन्तर होता है । इन्हीं कारणों को कई बार एक उद्योग की विभिन्न फर्मों के वेतन भुगतान में काफी अन्तर होता है ।
(iv) कार्य मूल्यांकन में विभिन्न घटकों को चुना एवं विश्लेषित किया जाता है । परन्तु इसकी कोई प्रमापित सूची नहीं है । यह संस्थाओं के अनुसार परिवर्तित होती रहती है ।
(v) कार्य मूल्यांकन में विचारधारा संकुचित रखी जाती है । अधिक भुगतान करने वाली फार्मों या उद्योगों को संस्था अधिक महत्व नहीं देती ।
(vi) कर्मचारी, श्रम संघ, नियोक्ता, प्रबन्ध तथा अन्य पक्ष घटकों के चुनाव एवं महत्व के बारे में भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण रखते हैं । अत: इनमें सहमति हो पाना सम्भव नहीं होता ।
(vii) कार्य मूल्यांकन किसी एक समय नि:सम्पन्न की जाने वाली क्रिया नहीं है । इसमें निरन्तरता आवश्यक है । अत: इसकी समीक्षा न होने पर यह अपना महत्व खो देती है ।
(viii) यह एक सरल प्रणाली नहीं है । इसे स्थापित एवं लागू करने के लिए विशेषज्ञों की मदद आवश्यक है । इसमें काफी समय तथा लागत भी लगती है ।
(ix) कार्य मूल्यांकन वेतन निर्धारण का केवल एक पक्ष है । अन्य तत्व जैसे: सरकारी नीति आदि भी वेतन/मजदूरी स्तर को प्रभावित करते हैं ।
(x) कार्य मूल्यांकन कर्मचारियों के मन में भय तथा सन्देह उत्पन्न करता है । इससे ओद्योगिक सम्बन्धों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है ।
(xi) प्रत्येक श्रमिक चाहता है इसके व्यक्तिगत स्तर पर किए गए प्रयासों को मान्यता मिले तथा इसका पुरस्कार अलग से भी मिले । इस तरह की अपेक्षाएँ कार्य मूल्यांकन प्रक्रिया को कठिन बनाती हैं ।
परन्तु इन सभी कठिनाइयों एवं समस्याओं के बावजूद भी कार्य मूल्यांकन एक व्यापक स्तर पर प्रयोग की जाने वाली प्रक्रिया है । यह कार्य की सापेक्षिक कीमत जानने की एक व्यवस्थिति एवं स्वीकार्य विधि है ।