Read this article in Hindi to learn about Maslow’s need theory of motivation.

यह सिद्धान्त सर्वप्रथम 1943 में एक पत्रिका में प्रकाशित हुआ था और अब एक पुस्तक ”मोटिवेशन एण्ड पर्सनलिटी” (Motivation and Personality) में (न्यूयार्क, हार्पर एण्ड ब्रादर्स 1954-New York, Harper and Bros. 1954) में विस्तारपूर्वक समझाया गया है । मैस्लो ने ”आवश्यकता” (Need) को उत्प्रेरणा का आधार माना है ।

आवश्यकताओं के उन्होंने पाँच भाग निकाले हैं, और उन्हें एक के बाद एक प्रकट होने के कारण ”सीढ़ी” के रूप में दिखाया है । यह सिद्धान्त अभिप्रेरण की व्यवहारात्मक विचारधारा (A Hierarchy of Needs) के अनुकूल है ।

इसके अनुसार, एक व्यक्ति कोई कार्य इसलिए करता है क्योंकि उसके अन्दर कोई अतृप्त आवश्यकता, इच्छा या तनाव उस कार्य को करने की प्रेरक शक्ति उत्पन्न करती है । उदाहरणार्थ, वह किसी संगठन में इसलिए कार्य करता है क्योंकि यह संगठन उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आवश्यक साधन उपलब्ध कराता है ।

मैस्लो ने मनुष्य की आधारभूत आवश्यकताओं को पाँच वर्गों में बाँटा है:

1. शारीरिक आवश्यकताएँ (Physiological Needs):

ये मानवीय जीवनयापन की मूल आवश्यकताएँ हैं- भोजन, जल, गर्मी, छाया, निद्रा तथा यौनतृप्ति । मैस्लो (Maslow) के अनुसार जब तक इन इच्छाओं को जीवन में बनाए रखने के स्तर तक सन्तुष्ट नहीं किया जाता अन्य आवश्यकताएँ व्यक्तियों को अभिप्रेरित नहीं करेंगी ।

इन आवश्यकताओं की पूर्ति के अभाव में मनुष्य का जीवित रहना भी दुर्लभ हो जाता है । लेकिन जैसे ही मनुष्य की शारीरिक आवश्यकताएँ पूरी हो जाती हैं, इसके बाद वे उत्प्रेरणा का कार्य नहीं करतीं । जिस मनुष्य की ये आवश्यकताएँ पूरी नहीं होतीं उसे इनके अतिरिक्त कुछ और दिखाई नहीं देता ।

2. सुरक्षा सम्बन्धी आवश्यकताएँ (Safety Needs):

जब मनुष्य की शारीरिक आवश्यकताएँ सन्तुष्ट हो जाती हैं तो वह इन आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के बारे में विचार करता है । इनका अभिप्राय भौतिक, आर्थिक तथा मनोवैज्ञानिक सुरक्षा से है ।

भौतिक सुरक्षा (Physical Safety) का अभिप्राय दुर्घटना, आक्रमण, बीमारियों व अन्य आकस्मिताओं से बचाव करना है, जबकि आर्थिक सुरक्षा (Economic Safety) का अभिप्राय रोजगार की सुरक्षा, वृद्धावस्था के लिए व्यवस्था, आदि से है । मनोवैज्ञानिक सुरक्षा (Psychological Needs) का अर्थ है- विभिन्न प्रकार की अनिश्चितताओं से मुक्ति जैसे न्याय व सहानुभूति की आशा ।

3. सामाजिक संबद्धता आवश्यकताएँ (Social Belonging Needs):

शारीरिक एवं सुरक्षा सम्बन्धी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के बाद मनुष्य की सामाजिक आवश्यकताएँ उत्पन्न होती हैं । इसमें मनुष्य का अपनत्व, प्रेम व स्नेह की आवश्यकता शामिल होती है ।

दूसरे शब्दों में मनुष्य चाहता है कि उसके मित्र व सम्बन्धी हों जिसके साथ वह अपना दु:ख दर्द बाँट सके, मिलकर खुशी मना सके तथा अपना समय व्यतीत कर सके ।

यदि मनुष्य की स्नेह एवं प्रेम जैसी सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती है तो वह कार्य में असहयोग करने लगता है तथा अनेक बाधाएँ डालता है । यदि उपक्रम में कार्य करने वाले कर्मचारियों की सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती तो उसका बुरा प्रभाव संगठन के उद्देश्यों पर पड़ता है ।

4. सम्मान तथा पद की आवश्यकताएँ (Esteem and Status Needs):

मैस्लो (Maslow) के अनुसार जब व्यक्ति अपने सम्बन्ध बनाने की आवश्यकता पूरी करने लगता है तो उसमें उनसे तथा अन्य व्यक्तियों से सम्मान पाने की प्रवृत्ति पायी जाती है । इस प्रकार की आवश्यकताएँ, शक्ति, प्रतिष्ठा, पद-स्थिति एवं आत्मविश्वास के रूप में सन्तुष्टि को जन्म देती हैं ।

इनमें से अधिकांश आवश्यकता, सन्तुष्ट नहीं हो पातीं । यद्यपि इन आवश्यकताओं की सन्तुष्टि अच्छे परिणाम दे सकती हैं फिर भी अधिकांश संस्थाएँ इन आवश्यकताओं की संतुष्टि का प्रयास नहीं करतीं ।

5. आत्म-विकास की आवश्यकताएँ (Self-Development Needs):

मैस्लो (Maslow) ने इसको अपनी क्रम व्यवस्था की उच्चतम आवश्यकता माना है । यह वह बनने की चाह है, जो एक व्यक्ति बन सकता है- अर्थात् अपनी सम्भाविता को अधिकतम करके कुछ प्राप्त करना ।

ये आवश्यकताएँ मनुष्य की योग्यता को उभारने की इच्छा के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती हैं । प्रत्येक मनुष्य में कुछ छिपी हुई योग्यताएँ होती हैं जिनको प्रत्येक व्यक्ति उभारने का प्रयास करता है । अत: वह अधिकाधिक कार्य करने के लिए अभिप्रेरित होता है ।

डॉ. मैस्लो के अनुसार- ”एक संगीतकार को संगीत बनाना चाहिए, एक कलाकार को पेन्टिंग करनी चाहिए, एक कवि को कविता की रचना करनी चाहिए यदि वह अन्ततोगत्वा प्रसन्न होना चाहता है । एक मनुष्य जो भी बन सकता है उसे बनना चाहिए ।” एक आवश्यकता अभिप्रेरणा का कार्य तब करेगी जबकि अन्य आवश्यकताएँ पूरी हो चुकी हों ।

अभिप्रेरण के सम्बन्ध में मैस्लो के विचारों को तीन सिद्धान्तों के रूप में समझा जा सकता है:

(a) मनुष्य का प्रत्येक व्यवहार किसी न किसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए किया जाता है हम सम्पूर्ण मानवीय आवश्यकताओं को इनके मौलिक रूप में पाँच आधारभूत वर्गों में बाँट सकते हैं ।

(b) सामान्यतया मनुष्य की पाँच प्रकार की आवश्यकताएँ एक निश्चित प्राथमिकता क्रम में बंटी होती हैं । मनुष्य सबसे पहले शारीरिक आवश्यकता की पूर्ति करता है और तत्पश्चात् सुरक्षा सम्बन्धी आवश्यकता की ।

मनुष्य की इन आवश्यकताओं का यह प्राथमिकता-क्रम अटल नहीं है, भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में तथा भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में यह प्राथमिकता-क्रम कुछ बदल भी सकता है ।

(c) मानवीय आवश्यकताएँ अनन्त हैं जब मनुष्य की कोई विशेष आवश्यकता पूरी हो जाती है तब वह अपनी किसी दूसरी आवश्यकता की पूर्ति में लग जाता है, और जब दूसरी आवश्यकता भी पूरी हो जाती है तो वह तीसरी आवश्यकता की पूर्ति में लग जाता है और इस प्रकार आवश्यकताओं की पूर्ति का यह क्रम निरन्तर चालू रहता है ।

कूण्ट्ज एवं ओ डोनेल ने इसकी विवेचना करते हुए लिखा है- मैस्लो की आवश्यकताओं की क्रम व्यवस्था का वास्तविकता पर शोध, इसकी आवश्यकताओं के क्रमबद्ध व्यवस्थात्मक पहलू की शुद्धता के सम्बन्ध में अनेक प्रश्न उत्पन्न करते हैं । फिर भी आवश्यकताओं के प्रकारों का परिचय उपयोगी जान पड़ता है ।

यह नि:सन्देह सत्य है कि यदि शारीरिक एवं सुरक्षात्मक मूल आवश्यकताएँ स्पष्टतया अतृप्त रहें, तो इस स्थिति का अभिप्रेरणा पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है । लेकिन ये आवश्यकताएँ भी पर्याप्त लोचदार होती हैं । उदाहरणार्थ कपड़ा और मकान । एक व्यक्ति उस स्तर पर सन्तुष्ट हो सकता है जो दूसरों की दृष्टि में अपर्याप्त है ।

इसी तरह शोध से यह पाया गया है कि नीचे से नीचे स्तर पर कर्मचारी में आत्म-गौरव एवं आत्म-अभिव्यक्ति की आवश्यकताएँ होती हैं, यद्यपि प्राप्ति का गौरव तथा परिस्थिति जो एक व्यक्ति के लिए संतुष्टि का कारण है, दूसरे के लिए पूरी तरह सन्तुष्टि सम्भवत: न दे सके ।

एक व्यक्ति को केवल यही देखना है कि इन बचतों से जैसे कार्यालय का स्थान संलग्न आत्मगौरव क्या हो सकता है । एक प्रथम स्तरीय अधीक्षक एक छोटे एवं सामान्य कार्यालय को पाकर बहुत खुश हो सकता है, जबकि एक उच्चाधिकारी एक बड़े एवं सुसज्जित कार्यालय को पाकर संतुष्ट होगा ।

व्यवहार में इसका अर्थ होगा कि प्रशंसनीय प्रबन्धकों को मैस्लो (Maslow) के सिद्धान्तों के प्रयोग के लिए एक स्थितिगत एवं आकस्मिक नीति का अनुसरण करना चाहिए । किन आवश्यकताओं का पक्ष वे ले सकते हैं यह व्यक्तियों के व्यक्तित्व, आवश्यकताओं एवं अभिलाषाओं पर निर्भर होगा ।

किसी भी देश में प्रबन्धकों को यह नहीं भूलना चाहिए कि अधिकांश व्यक्तियों को विशेषतया विकसित समाज में, अनेक आवश्यकताएँ होती हैं, जो मैस्लो (Maslow) की क्रम व्यवस्था की सम्पूर्ण परिधि में बिखरी हुई हैं ।

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