Read this article in Hindi to learn about the analytical and non analytical methods of job evaluation.
परिणात्मक विधियाँ (Analytical Methods):
इन विधियों का वर्णन निम्न प्रकार से है:
1. घटक तुलना (Factor Comparison),
2. बिन्दु विधि (Point Rating or Assessment) ।
1. घटक तुलना विधि (Factor Comparison Method):
यह विधि क्रम एवं बिन्दु पद्धति को जोड़ है । थोमस ई. हिटन ने इस विधि का प्रथम प्रयोग किया था । यह विधि इस सिद्धान्त पर आधारित है कि प्रत्येक कार्य के कुछ घटक होते हैं जो क्रम अपेक्षाओं एवं परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं तथा इसका क्षतिपूर्ण (वेतन/मजदूरी) इन घटकों के आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए ।
यह अधिक व्यवस्थित तथा वैज्ञानिक पद्धति है । इसमें कार्य विश्लेषण कुछ प्रमापों के आधार पर किया जाता है । इसमें कार्य का पूरा विश्लेषण उसमें शामिल घटकों के आधार पर किया जाता है । इसमें विभिन्न कार्यों की तुलना कुछ चुने हुए कार्यों के साथ की जाती है ।
ये चुने गए कार्य संस्था के प्रतिनिधित्व कार्यों की तरह होते हैं जिसमें सभी आवश्यक घटक शामिल रहते हैं । यह पूर्व निर्धारित नहीं होते अपितु कार्य विश्लेषण के आधार पर इनका चुनाव किया जाता है ।
सामान्यत: पाँच घटकों को चुना जाता है:
(i) मानसिक आवश्यकता,
(ii) कुशलता,
(iii) शारीरिक आवश्यकता,
(iv) उत्तरदायित्व,
(v) कार्य दशाएँ ।
कार्य घटक अधिक भी हो सकते हैं । इसमें मजदूरी का निर्धारण कार्य के विभिन्न घटकों के महत्व के आधार पर होता है । विभिन्न घटकों के भार (Weightage) के आधार पर यह निर्धारण किया जाता है ।
इस विधि की प्रक्रिया निम्न प्रकार से है:
(i) घटकों का चुनाव (Selection of Factors):
इसमें कुशलता, शारीरिक एवं मानसिक योग्यता, कार्य दशाएँ, उत्तरदायित्व आदि को सम्मिलित किया जाता है । कार्य विश्लेषण करने वाले व्यक्ति को विभिन्न आधारों एवं सूचनाओं के आधार पर इन घटको का चुनाव करना होता है ।
(ii) महत्त्वपूर्ण कार्यों का चुनाव (Selection of Key Jobs):
महत्त्वपूर्ण कार्य प्रमाप के रूप में कार्य करते हैं । इससे विभिन्न कार्यों की तुलना की जानी होती है । साधारणतया यह वे कार्य हैं जिन्हें घटक कई वर्षों से स्थिर होते हैं तथा इनकी मजदूरी दर विभिन्न श्रम संघों द्वारा स्वीकार्य होती है ।
महत्वपूर्ण कार्य संस्था का उचित प्रतिनिधित्व करने वाले होने चाहिए तथा सभी स्तरों का संतुलन होने चाहिए । सामान्य 15 से 20 कार्यों को चुना जा सकता है । यह सभी स्पष्ट रूप से वर्णित होने चाहिए तथा घटकों के सन्दर्भ में भी उचित होने आवश्यक हैं ।
(iii) महत्त्वपूर्ण कार्यों का क्रम (Ranking of Key Jobs):
सभी कार्यों का घटकों के साथ क्रय निर्धारण सभी सदस्यों द्वारा स्वतंत्र रूप से किया जाना चाहिए । इसके पश्चात् समिति की बैठक में सामूहिक स्तर पर विचार करके अन्तिम क्रम निर्धारित किए जाने चाहिए ।
(iv) मौद्रिक कीमत तय करना (Assign Money Value):
प्रत्येक घटक को मौद्रिक कीमत दी जानी चाहिए ताकि मजदूरी निर्धारित की जा सके । प्रत्येक घटकों की आधारभूत मजदूरी निश्चित की जानी चाहिए । यह अधिकतम तथा न्यूनतम स्तर को भी दिखाती हुई होनी चाहिए ।
(v) महत्त्वपूर्ण पदों से तुलना (Comparing All Jobs with Key Jobs):
अन्य सभी कार्यों का इन महत्त्वपूर्ण पदों से तुलना की जानी चाहिए । ऐसा उन पदों की एवं घटकों की महत्ता जानने के लिए किया जाता है ।
घटक तुलना का एक उदाहरण (काल्पनिक) निम्न तालिका में दिया गया है:
उदाहरण के लिए यदि Total Making महत्वपूर्ण कार्य है और इसका मजदूरी दर रु 20 है तो यह निश्चित किया जाता है कि रु 9 कुशलता के आधार पर रु 5 मानसिक योग्यता के आधार पर रु 2 शारीरिक योग्यता के आधार पर, रु 3 उत्तरदायित्व के आधार पर तथा रु 1 कार्य दशाओं के आधार पर है । इसी तरह से अन्य पदों का विभिन्न घटकों के आधार पर मजदूरी निर्धारण किया जा सकता है ।
लाभ (Advantages):
(i) घटक तुलनात्मक विधि अन्य विधियों की अपेक्षा अधिक व्यवस्थित इसके प्रत्येक चरण को व्यवस्थित तरीके से वर्णित किया जाता है ।
(ii) यह अधिक स्पष्ट कार्य मूल्यांकन है क्योंकि घटकों पक्षपातपूर्ण तरीके से नहीं चुना जाता है तथा उनके महत्व का भी पूरा ध्यान रखा जाता है ।
(iii) यह लचीली पद्धति है क्योंकि घटकों की मौद्रिक कीमत की कोई उच्चतम सीमा पहले से तय नहीं की जाती है ।
(iv) नए उत्पन्न होने वाले कार्यों को महत्त्वपूर्ण पदों एवं घटकों के अनुसार समायोजित करना कठिन कार्य नहीं रह जाता है ।
(v) यह केवल कुछ चुने गए घटकों का अध्ययन करता है । अत: दोहराव की संभावना कम रहती है ।
(vi) यह पद्धति मजदूरी निर्धारण की प्रक्रिया को आसान बनाती है । घटकों की मौद्रिक कीमत के आधार पर ऐसा कर पाना संभव होता है ।
हानियाँ (Disadvantages):
(i) यह पद्धति जटिल है तथा श्रमिकों को इसे समझाना कठिन होता है ।
(ii) इसे स्थापित करना खर्चीली होता है, इसे सभी के द्वारा आसानी से लागू नहीं किया जाता क्योंकि इसके लिए विशेष कौशल की आवश्यकता होनी चाहिए ।
(iii) महत्त्वपूर्ण पदों के लिए वर्तमान मजदूरी को आधार लेना उस योजना में दोष उत्पन्न करता है । कार्य एवं उसके घटक समय एवं स्थान के साथ-साथ परिवर्तित होती रहती है । अत: यह भविष्य के लिए भी समस्या उत्पन्न कर सकती है ।
(iv) यह इस अवधारणा के भी विपरीत है कि कार्य मूल्यांकन तथा मजदूरी निर्धारण को अलग-अलग रखा जाना चाहिए ।
(v) पाँच घटको का संस्थाओं द्वारा चुनाव सामान्यत: सभी समस्याओं के लिए स्वीकार्य नहीं हो पाते ।
(vi) यह एक खर्चीली पद्धति है क्योंकि घटकों के चुनाव तथा उन्हें मौद्रिक कीमत प्रदान करना एक आसान प्रक्रिया नहीं है । इसके लिए विशेषज्ञों की नियुक्ति की आवश्यकता होती है ।
2. बिन्दु विधि (Point Method):
यह कार्य मूल्यांकन के लिए व्यापक स्तर पर प्रयोग की जाने वाली विधि है । यह घटक तुलनात्मक सेभी अधिक व्यापक स्तर पर कार्य की सापेक्षिक कीमत का निर्धारण का प्रयास करती है । वर्तमान दर में यह एक प्रचलित विधि है । इसके अन्तर्गत कार्यों को विभिन्न घटकों के रूप में व्यक्त किया जाता है ।
इसके पश्चात् प्रत्येक घटक को बिन्दु प्रदान किए जाते हैं तथा उनका महत्व निर्धारित किया जाता है । तत्पश्चात् विभिन्न बिन्दुओं का योग (जोड़) किया जाता है ताकि मजदूरी निर्धारित की जा सके । समान बिन्दुओं के लिए समान मजदूरी तय की जाती है । यह पद्धति से ही स्पष्ट रूप से बताई जानी चाहिए । मुख्यत: यह चरणों में विभाजित होती है ।
सामान्यत: ये चरण निम्न तरह से होते हैं:
(i) कार्य चुनना (Listing the Jobs):
सर्वप्रथम इन कार्यों को चुना जाता है जिनका विश्लेषण किया जाना होता है । सामान्यत: यह सामूहिक स्तर पर होता है । इसमें सभी तरह की श्रेणियों को शामिल किया जाना चाहिए जैसे- कुशल, अकुशल, पेशेवर, अधिशासी आदि ।
(ii) घटक का चुनाव एवं परिभाषा (Selections and Defining the Jobs):
उन घटकों का चुनाव किया जाता है जो सभी कार्यों में विद्यमान होते हैं जैसे-कुशलता, प्रयास, उत्तरदायित्व आदि । विभिन्न घटकों को चुना जाना चाहिए जिसके कि कार्य का सम्पूर्ण विश्लेषण किया जा सके । घटकों की संख्या कार्य की संख्या एवं प्रकृति पर निर्भर करता है ।
(iii) घटकों को डिग्री में विभाजित करना (Dividing the Factors into Degree):
घटकों के चुनाव के पश्चात् उन्हें लागू करने के लिए विभिन्न डिग्रियों में विभाजित किया जाता है । बिन्दु विधि इस चरण में इन्हें चार या पाँच डिग्रियों में विभाजित करता है । यहाँ यह ध्यान रखा जाता है कि प्रत्येक घटक के लिए समान डिग्री रखी जाए ताकि एकरूपता बनी रहे ।
(iv) घटकों को भार प्रदान करना (Weighting the Factors):
प्रत्येक घटक के महत्व को जानने का प्रयास उन्हें भार प्रदान करके किया जाता है । इसके लिए कोई वैज्ञानिक तरीका नहीं होता । यह सामान्य ज्ञान एवं उपलब्ध जानकारी के आधार पर किया जाता है । भार प्रदान करना संस्था के उद्देश्यों एवं नीतियों पर भी निर्भर करता है ।
(v) प्रत्येक डिग्री को बिन्दु प्रदान करना (Allocations Point to Each Degree):
घटकों की पहचान करने तथा उन्हें डिग्री के अनुसार विभाजित करने के पश्चात् प्रत्येक डिग्री को बिन्दु प्रदान किये जाते हैं । यह बिन्दु बाद में कार्य की कुल कीमत निकालने के लिये प्रयोग किये जाते हैं ।
(vi) कार्य मूल्यांकन (Job Evaluation):
एक बार इस विधि का चुनाव किये जाने के पश्चात् इसमें शामिल किये जाने वाले तत्वों का क्रम निर्धारित किया जाना चाहिए । इसके साथ-साथ कार्य मूल्यांकन के लिए आवश्यक जानकारी भी प्रदान की जानी चाहिए ।
(vii) बिन्दु को मौद्रिक कीमत प्रदान करना (Assign Money Value Points):
यहाँ कार्य की कीमत को विभिन्न बिन्दुओं को जोड़ने के आधार पर निश्चित किया जाता है ।
लाभ (Advantages):
(i) यह विधि अन्य विधियों की अपेक्षा अधिक वैज्ञानिक है । इस विधि द्वारा कार्य की कीमत को न्यायोचित आधार पर तय किया जाता है ।
(ii) एक बार घटक, डिग्री आदि का निर्धारण होने के पश्चात् यह लम्बे समय तक प्रयोग किये जा सकते हैं ।
(iii) यह वेतन के अन्तर को विभिन्न आधारों पर तय करता है । कार्य समय के साथ परिवर्तित होती रहती है, परन्तु बिन्दु विधि के द्वारा तय किए उनके अपरिवर्तित रहते हैं ।
(iv) इसके द्वारा अधिक-से-अधिक कार्यों का भी मजदूरी निर्धारण किया जा सकता है ।
हानियाँ (Disadvantages):
(i) यह एक खर्चीली पद्धति है । इस विधि की स्थापना एवं लागू करने में बहुत खर्च आता है ।
(ii) यह एक जटिल विधि है । पूरी विधि को लागू करना बहुत कठिन होता है तथा इसमें समय भी काफी लगता है ।
(iii) समय के साथ-साथ विभिन्न घटकों का महत्व भी परिवर्तित होता रहता है । अत: यह समायोजन करना कठिन होता है ।
(iv) कर्मचारी, श्रमसंघ, प्रबन्ध नियोक्ता एवं अन्य पत्रकार विभिन्न घटकों को भार (Weightage) देने के लिए अलग-अलग दृष्टिकोण रखते हैं । अत: सहमति होना काफी कठिन है ।
अपरिणात्मक विधियाँ (Non-Analytical Methods):
1. सामान्य श्रेणी विभाजन विधि (Job Ranking),
2. कार्य वर्गीकरण विधि (Job Classification or Grading) ।
1. श्रेणी विभाजन विधि (Job Ranking Methods):
यह कार्य मूल्यांकन की सबसे पुरानी एवं आसान विधि है । यह आमतौर पर छोटी संस्थाओं द्वारा प्रयोग की जाती है जहाँ कार्य मूल्यांकन करने वाला सभी कार्यों को अच्छी तरह से जानता है ।
इसमें कार्य को विभिन्न तत्वों को विभाजित करने का प्रयास नहीं किया जाता । सम्पूर्ण कार्य का मूल्यांकन करने के पश्चात् उसकी अन्य कार्यों के तुलना में स्तर निर्धारित किया जाता है । इसमें सम्पूर्ण कार्य का मूल्यांकन किया जाता है, उसके विभिन्न तत्वों का नहीं ।
इसके अन्तर्गत एक समिति स्थापित की जाती है जो विभिन्न कार्यों का अध्ययन करती है । इसके पश्चात् कार्य का उच्चतम से न्यूनतम स्तर पर उनकी योग्यता या मूल्य के आधार पर क्रम निश्चित किया जाता है । कार्य को उसकी कार्य के दौरान आने वाली समस्याओं के आधार पर भी क्रमानुसार रखा जा सकता है ।
कार्य को सबसे अधिक महत्वपूर्ण तथा सबसे कम महत्वपूर्ण के क्रम में भी रखा जा सकता है । सबसे अधिक कीमत महत्त्वपूर्ण तथा सबसे कम कीमत सबसे अन्तिम कार्य की ही होती है । यह विधि सभी विभागों के लिए लागू की जाती है तथा विभागीय स्तर पर तुलनात्मक अध्ययन भी किया जाता है ।
इसके पूर्ण होने के पश्चात् ग्रेड निर्धारित किए जाते हैं तथा वेतन समूह निश्चित किया जाता है । अन्तत: विभिन्न कार्यों को पूर्व निर्धारित आधारों पर भिन्न-भिन्न वेतन समूहों में डाल दिया जाता है ।
एक विशेषज्ञ समिति सामान्यत: कम समय में ही सैकड़ों कार्यों का नियमानुसार श्रम निर्धारित करती है । मुख्य तौर पर क्रम समिति के सामान्य ज्ञान तथा उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर ही तय किये जाते हैं ।
उपर्युक्त क्रम निर्धारित किए जाने के पश्चात् अन्य-उपलब्ध कार्यों को इन क्रमों में उचित स्तर पर शामिल कर लिया जाता है । यह विधि एक छोटी संस्था, जहाँ कार्यों को आसानी से परिभाषित किया जा सकता है, के लिए उचित उपयुक्त है ।
परन्तु एक विशाल संस्था हेतु वहाँ यह विधि उचित नहीं है । बड़ी संख्या में सभी कार्यों को परिभाषित एवं विभाजित करना एक कठिन प्रक्रिया होती है ।
लाभ (Advantages):
(i) सरल (Simple)- यह एक सरल विधि है इसे स्थापित करने में संस्था को ज्यादा प्रयास नहीं करने पड़ते ।
(ii) समझने में आसान (Easy to Understand)- यह विधि श्रमिकों को आसानी से समझ में आती है अत: इसे करना आसान होता है ।
(iii) कम समय (Less Time)- यह विधि कम से कम समय में लागू की जा सकती है ।
(iv) छोटी सस्थाओं हेतु उपयुक्त (Suitable for Smaller Concern)- यह विधि छोटी संस्थाओं के लिए उपयुक्त है । वहाँ क्रम निर्धारित करने वाला सभी कार्यों से भली-भांति परिचित होता है । अत: यह विधि सफलतापूर्वक लागू की जा सकती है ।
हानियाँ (Disadvantages):
(i) वैज्ञानिक विधि नहीं (No Scientific Approach)- इसमें कार्य मूल्यांकन का कोई निश्चित आधार नहीं होता अत: विभिन्न आधारों पर मूल्यांकन किया जाता है । कार्य की महत्ता काल्पनिक या पक्षपातपूर्ण होने की संभावना बनी रहती है ।
(ii) उचित न्याय (No Fair Judgment)- मूल्यांकन कार्य के महत्व को पहचानता है इसके कारण का उचित विश्लेषण नहीं करता । अत: मूल्यांकन कई बार उचित एवं न्यायपूर्ण नहीं हो पाता ।
(iii) बड़े स्तर की संस्थाओं में समस्या (Difficult for Large Organisation)- एक जटिल एवं बड़े औद्योगिक संस्थान में सभी कार्यों के बारे में जानकारी रखना आसान नहीं होता । अत: खेल सामान्य विश्लेषण के आधार पर मूल्यांकन उचित नहीं कहा जा सकता ।
2. कार्य वर्गीकरण या श्रेणीयन विधि (Job Classification or Grading Method):
यह प्रथम विधि से एक कदम आगे की विधि है । यह क्रम निर्धारित से मेल खाती है । क्योंकि उसमें भी कार्य को मौद्रिक कीमत या बिन्दु प्रदान नहीं किए जाते हैं । कोई जटिल प्रक्रिया भी लागू नहीं की जाती है । यह क्रम निर्धारित विधि में थोड़ा सुधार की गई विधि है ।
कार्य वर्णन एवं स्पष्टीकरण का इसमें व्यापक स्तर पर प्रयोग किया जाता है । अधिशासियों की समिति प्रत्येक कार्य विश्लेषण का अध्ययन करती है तथा उनके महत्व को निर्धारित करती है । ऐसा करते समय योग्यता, प्रयास, उत्तरदायित्व, अनुभव जैसे कारकों का पूरा ध्यान रखा जाता है ।
इसके अन्तर्गत प्रत्येक कार्य का एक समूह तैयार किया जाता है । इसके पश्चात् वर्गीकृत कार्यों को समूह के अनुसार समायोजित कर दिया जाता है । अत: इसके अन्तर्गत कार्य समूह का पहले निर्धारण किया जाता है इसके पश्चात् कार्य को समूह से संबंधित किया जाता है ।
यह समूह 7 से 15 अथवा आवश्यकतानुसार कम या अधिक भी हो सकते हैं । इसके अन्तर्गत प्रत्येक वर्ग में आने वाले कार्यों की सामान्य अपेक्षाएँ निश्चित की जाती हैं तथा उनके लिए दिए जाने वाले न्यूनतम तथा अधिकतम क्षतिपूर्ण का निर्धारण भी किया जाता है ।
निम्न तालिका कार्य वर्गीकरण का एक उदाहरण है:
अत: यह विधि अन्य विधियों से अलग एवं प्रभावी है ।
लाभ (Advantages):
(i) समझने में सरल (Easy to Understanding)- यह विधि समझने में तुलनात्मक स्तर से सरल है । इसे श्रमिकों को समझाने में कोई कठिनाई नहीं आती । इसे समझना एवं लागू करना बिना तकनीकी सहायता के भी संभव है ।
(ii) स्पष्ट (Accurate)- इसके अन्तर्गत कार्य मूल्यांकन अधिक स्पष्ट होता है क्योंकि इसका आधार कार्य विश्लेषण होता है ।
(iii) स्वीकार्य (Acceptable)- इसके आधार पर प्रभावी मजदूरी व्यवस्था स्थापित की जा सकती है । समूह वर्गीकरण के पश्चात् कार्य का मजदूरी निर्धारण कई प्रशासनिक समस्याओं से छुटकारा दिलवाना है ।
(iv) नए कार्य का समायोजन एवं क्रम (New Jobs Adjustments and their Ranking)- यदि संस्था में किसी नए कार्य को लागू किया जाता है तो वह भी आसानी से समूह से संबंधित किया जा सकता है ।
(v) उपयुक्त (Suitability)- यह सरकारी विभागों के लिए उपयुक्त विधि है । औद्योगिक समूहों में इसे कम प्रयोग में लाया जाता है ।
हानियाँ (Disadvantages):
(i) यह विषयात्मक विधि है । समिति को ही विभिन्न समूहों तथा कार्यों को वर्गीकृत करना होता है । अत: वैज्ञानिक आधार नहीं हो पाता है ।
(ii) बड़े संस्थानों के लिए यह उपयुक्त विधि नहीं है । कार्य वर्गीकरण कार्यों के घटकों एवं तत्वों के आधार पर होता है । अत: एक बड़े संस्थान में कार्यों की जटिलता एवं उसकी संख्या इस विधि को लागू करने में समस्या बनती है ।
(iii) यदि संस्था में पूर्ण कार्य विश्लेषण नहीं किया जाता है, तो मजदूरी निर्धारण भी उचित तरीके से नहीं हो सकता ।
(iv) वर्तमान मजदूरी एवं वेतन स्तर भी वर्गीकरण को प्रभावित करता है । प्रशासन इस स्तर को न्यायोचित ठहराने का प्रयास करते हैं । यदि इसमें कोई कमी की जानी हो तो श्रमिक इस नकारात्मक प्रभाव को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होते ।
(v) श्रेणीकरण करना अपने आप में एक कठिन कार्य है । यदि कार्यों की संख्या बढ़ती जाए तो इसमें कुछ कठिनाइयाँ आती हैं ।