Read this article in Hindi to learn about the motivation theory of McGregor.

डगलस मैकग्रेगर (Doghlas Mcgregar) ने मानवीय अभिप्रेरण के सम्बन्ध में परम्परागत ”एक्स” (X) विचार धारा तथा आधुनिक ”वाई” (Y) विचारधारा की विवेचना की है ।

मैस्लो के आवश्यकता प्राथमिकता क्रम समर्थन करते हुए संगठन में कर्मचारियों की अभिप्रेरणा को बढ़ाने के लिए विकेन्द्रीयकरण तथा अधिकार सौंपने कार्य-विस्तार (Job Enlargement), भागीदारी तथा परामर्शात्मक प्रबन्ध तथा प्रगति मूल्यांकन (Performance Appraisal) आदि प्रणालियों का सुझाव दिया है ।

मैकग्रेगर की ”एक्स विचारधारा” की यह मान्यता है कि औसत कर्मचारी आलसी होते हैं, कार्य से मन चुराते हैं उनमें कार्य करने की इच्छा नहीं होती, वे उत्तरदायित्वों को टाल देना चाहते हैं, वे स्वार्थी होते हैं और संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति से उनका कोई सम्बन्ध नहीं होता इसलिए किसी उपक्रम के निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कर्मचारियों पर आवश्यक दबाव एवं नियन्त्रण रखना पड़ता है ।

लेकिन कर्मचारी की प्रकृति के सम्बन्ध में ”एक्स विचारधारा” की मान्यताएँ ठीक नहीं हैं और इन मान्यताओं के आधार पर कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने के लिए आरम्भ की गई प्रत्येक योजना सफलता प्राप्त नहीं कर सकती ।

सिद्धान्त X की विचारधारा (Ideology of X Theory):

यह प्रबन्ध दर्शन का परम्परागत सिद्धान्त है । इस सिद्धान्त की मुख्य विचारधारा है “शक्ति सर्वोत्तम है” (Power is Supreme) जहाँ काम पर लगे लोगों को कोई सुझाव देने या आपत्ति करने का तनिक भी अधिकार नहीं होता सिवाय सुपरवाइजर्स के आदेशों के क्रियान्वयन के ।

अधिसत्ता श्रृंखला (Line of Authority or Chain of Command) परम्परागत रूप से संगठन की विभिन्न लेयर्स के माध्यम से अधिसत्ता के कुछ भारार्पण के साथ ऊपर से नीचे की ओर प्रत्यक्षत: जाती है । कार्य स्तर पर लोगों के सामने अधिकारियों के आदेशों को मानने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प ही नहों होता ।

इसकी मुख्य मान्यताएँ हैं:

(i) अधिकांश लोग जन्मजात ही काम करना पसन्द नहीं करते हैं तथा अपने उत्तरदायित्व से भागते हैं । अत: उनका उत्पीड़न किया जाना चाहिये । (Must be Coerced, Controlled, Directed and Threatened with Punishment, Relieffed or Rebuked) ताकि उनको संगठनात्मक लक्ष्यों की अभिप्राप्ति के प्रति अपना पर्याप्त प्रयास देने के लिए विवश किया जा सके ।

(ii) औसत व्यक्ति निर्देशित होकर काम करना चाहता है, उत्तरदायित्व से भागना चाहता है तथा काम छोड़ देना चाहता है । काम में सुधार के प्रति उनके हृदय में बहुत ही कम महत्वाकांक्षा रहती है ।

वे रुचि लेकर काम नहीं करते वरन् निर्देशन की प्रतीक्षा करते हैं तथा उसके अनुसार ही काम करते हैं औसत प्राणी को सुरक्षा चाहिये अत: वे काम धीमा करने की प्रवृत्ति दिखाते हैं ।

(iii) अधिकांश कम्पनियों में संगठनात्मक समस्याओं के समाधान के प्रति योगदान करने की कम ही क्षमता होती है क्योंकि अधिसत्ता द्वारा उनकी महत्ता सदैव ही कम की जाती है तथा उनको सामान्यत: एक मशीन का तंत्र माना जाता है ।

(iv) लोगों की काम करने की विधि सामान्यत: परम्परागत होती है अत: विकास शोध का उसमें शायद ही कहीं स्थान हो ।

(v) लोगों को केवल मुद्रा उद्देश्य से ही अभिप्रेरित किया जा सकता है । वित्तीय अभिप्रेरकों के आधार पर वे वही कर सकते हैं जो प्रबन्ध चाहता है ।

उल्लेखनीय है कि सिद्धान्त X आधुनिक समय में एकदम अवांछनीय हो जाता है क्योंकि यह अधिनायकवादी परम्परा पर आधारित है जो आज सम्भव नहीं है । प्रबन्ध को साफ कर लेना चाहिये कि संगठन में काम कर रहा व्यक्ति सबसे संवेदनशील घटक है जिसका सावधानीपूर्वक नियंत्रण किया जाना चाहिये । अस्थायी समय के लिए ही उत्पीड़न, दबाव, डर या दण्ड के रास्तों से काम कराया जा सकता है ।

स्वयं मैकग्राँजर ने इस सिद्धान्त को खारिज करते हुए लिखा है:

”सिद्धान्त X की परम्परागत पहुँच इन गलत धारणाओं पर आधारित है कि क्या कारण है तथा क्या परिणाम हे ।”

अब यह बात केवल इतिहास के लिए ही है जब प्रबन्ध किसी भी नेतृत्व शैली का प्रयोग करने की स्थिति में होता था या कर्मचारियों पर दबाव डाल सकता था ।

अच्छे परिणाम पाने का एक मात्र प्रभावी तरीका है ‘श्रमिकों का संगठन, श्रमिकों द्वारा, श्रमिकों के लिए’ (An Organisation of the Workers, By the Workers and for the Workers) दुनिया भर में स्वीकार किया जा चुका है श्रम को प्रबन्ध में सम्माननीय सहभागिता दी जानी चाहिये तथा इस स्वस्थ उपगमन की पृष्ठभूमि में आज यह सिद्धान्त कालातीत हो चुका है तथा त्यागा जाना चाहिये एवं सिद्धान्त ‘Y’ का पालन किया जाये जो प्रजातांत्रिक है तथा श्रमिकोन्मुखी है ।

सिद्धान्त Y की विचारधारा (Ideology of Y Theory):

सिद्धान्त ‘Y’ सिद्धान्त ‘X’ से पूरी तरह से विपरीत है । यह मानता है कि संगठन के उद्देश्य तथा व्यक्तियों के उद्देश्य बहुत महत्व के नहीं होते लेकिन अधिकांश संगठनों में मूल समस्या होती है संगठनात्मक उद्देश्यों के प्रति श्रमिकों की वचनबद्धता पाना श्रमिकों की वचनबद्धता विशेषत: उच्च या बाह्य आवश्यकताओं की संतुष्टि से प्रत्यक्षत: सम्बन्धित है ।

बाई-विचारधारा (Y-Theory) मानवीय व्यवहार का वास्तविक चित्रण प्रस्तुत करती है । इस विचारधारा की मान्यता है कि जिस प्रकार व्यक्ति के लिए आराम करना और खेलना स्वाभाविक है, ठीक उसी प्रकार कार्य करना भी स्वाभाविक है ।

औसत कर्मचारी उत्तरदायित्वों के निर्वाह करने की कला सीख सकते हैं, व्यक्ति स्वत: अपने से अधिक अनुभवी व्यक्तियों से निर्देशन प्राप्त कर सकते हैं एवं यदि उन्हें ठीक ढंग से अभिप्रेरित किया जाए तो ये महान् सृजनशील कार्य कर सकते हैं ।

मैकग्रेगर के अनुसार- एक प्रभावशाली संगठन वह है जिसमें निर्देशन एवं नियन्त्रण के स्थान पर सत्यनिष्ठा एवं सहयोग हो और जिसके प्रत्येक निर्णय में निर्णय से प्रभावित होने वाले को सम्मिलित किया जाता हो ।

सारांश रूप में मैकग्रेगर का विचार है कि कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने के लिए प्रबन्धकों को चाहिए कि वे विकेन्द्रीयकरण, कार्य-विस्तार तथा भागीदारी व परामर्शात्मक प्रबन्ध प्रणालियों का प्रयोग करें और कर्मचारियों को स्वयं अपना कार्य तय करने तथा अपने दायित्व का स्व-मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित करें ।

मैकग्रेगर के अनुसार, प्रबन्धक एक शिक्षक, परामर्शदाता तथा सहयोगी तो होता है, अधीक्षक (Boss) नहीं । यह घटक नियंत्रण तथा आदेश के एक तंत्र के रूप में अधिसत्ता के प्रयोग पर भरोसा नहीं करता ।

सिद्धान्त Y निम्न मान्यताओं पर आधारित है:

(i) औसत व्यक्ति काम करना नापसंद नहीं करता । उतना ही स्वाभाविक होता है जैसे आराम या खेलकूद । नियंत्रणीय परिस्थितियों पर निर्भर होकर कार्य संतुष्टि या दण्ड का एक स्रोत हो सकता है ।

(ii) संगठनात्मक उद्देश्यों की अभिप्राप्ति हेतु बाहरी नियंत्रण तथा दण्ड की धमकी एकमात्र साधन नहीं होती । श्रमिक उद्देश्यों के प्रति वचनबद्ध होते हैं तथा उनकी प्राप्ति के लिए आत्म नियंत्रण तथा आत्म निर्देशन लागू करते हैं । यदि उनको अच्छा वातावरण मिलता है तो वे अपने कार्य के प्रति पूर्णत: सचेत रहते हैं ।

(iii) औसत व्यक्ति उचित परिस्थितियों में काम करना चाहता है, न केवल स्वीकार करने के लिए वरन् उत्तरदायित्व पाने के लिए । उत्तरदायित्व का परित्याग, महत्वाकांक्षा की कमी तथा सुरक्षा पर जोर व्यक्ति के जन्मजात गुण नहीं होते वरन् वे सभी अनुभव के परिणाम होते हैं ।

(iv) कार्य की निष्पत्ति के लिए प्रतिफल यही होता है कि उसके काम को उचित मान्यता मिले । उनके जनून की तृष्टि तथा (Actualisation Needs) की संतुष्टि संगठनात्मक लक्ष्यों के प्रति निर्देशित प्रयासों का प्रत्यक्ष परिणाम होते है ।

(v) प्रबन्ध को श्रम प्रबन्ध सम्बन्धों के महत्व को समझ लेना चाहिये । मूलत: श्रमिकों में कल्पना शक्ति तथा संगठनात्मक समस्याओं के समाधान में सृजन की भारी मात्रा विद्यमान होती है ।

(vi) प्रत्येक कर्मचारी में विविध योग्यताएँ, दक्षताएँ तथा सम्भावनाएँ होती हैं जिनका आमतौर पर पूरा विकास नहीं हो पाता । आधुनिक प्रबन्ध विशेषज्ञों को सुनिश्चित करना चाहिये कि मानवीय क्षमताओं को पूर्ण स्तर तक काम लाया जाये ।

(vii) यह सिद्धान्त X सिद्धान्त के विपरीत प्रजातांत्रिक सिद्धान्तों पर आधारित है जिसमें सभी व्यक्तियों को अपने व्यक्तित्व के विकास के समान अवसर मिलते हैं ।

सिद्धान्त Y शिक्षित निपुण तथा पेशेवर कर्मचारियों पर कहीं अधिक लागू हुआ जान पड़ता है जो अपने उत्तरदायित्वों को समझते हैं तथा कुछ अपवादों को छोड़कर आत्म-नियंत्रित होते हैं आजकल परम्परागत प्रबन्धकों के विपरीत पेशेवर प्रबन्धक यह स्वीकार करने लगे हैं कि औद्योगिक सम्बन्धों को प्रखर करने के लिए मानवीय मूल्य महत्वपूर्ण हैं तथा प्रबन्धक में उनकी भागीदारी में विश्वास करते हैं ।

इस सम्बन्ध में कुछ वैधानिक प्रावधान जैसे सहभागी प्रबन्ध, न्यूनतम मजदूरी, कर्म घंटों आदि के सम्बन्ध में प्रावधान सरकार द्वारा बनाये गये हैं । कार्य परिस्थितियों के सुधार हेतु भारतीय कारखाना अधिनियम को सभी उद्योगों पर लागू किया गया है ताकि श्रमिक उन सभी लाभों को पा सकें जो उनको मिलने चाहिए । ये सभी प्रयास और कुछ नहीं हैं सिद्धान्त Y के प्रति संकल्प के जो उनको प्रोत्साहित करके उनको जीतने में विश्वास करता है ।

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