Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning of Organisation Structure 2. Determination of Organisation Structure 3. Purpose and Importance 4. Factors 5. Development.
Contents:
- संगठन संरचना का अर्थ (Meaning of Organisation Structure)
- संगठन संरचना का निर्धारण (Determination of Organisation Structure)
- संगठन संरचना को विकसित करना (Developing the Organisation Structure)
- संगठन संरचना को प्रभावित करने वाले तत्व (Factors Affecting the Organisation Structure)
- संगठन संरचना का उद्देश्य एवं महत्व (Purpose and Importance of Organisation Structure)
1. संगठन संरचना का अर्थ (Meaning of Organisation Structure):
संगठन में पूर्व-निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु एक उपयुक्त संरचना की स्थापना की जाती है । एक संगठन की संरचना यह प्रदर्शित करने के लिए की जाती है कि कौन किसको रिपोर्ट करता है, सामान्यत: एक संगठनात्मक चार्ट (Organisational Chart) या Job-Task Pyramid पर दिखाई जाती है ।
संगठन में विभिन्न पद-स्थितियों के बीच अधिकार एवं उत्तरदायित्व सम्बन्धों को प्रस्तुत किया जाता है । यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक होगा कि संगठन संरचना संगठनात्मक उद्देश्यों में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है । उदाहरण के लिए, यदि एक संस्थान उत्पादकीय श्रृंखला में है तो उसके संगठनात्मक चार्ट में निर्माणी (Manufacturing) तत्व महत्वपूर्ण होगा ।
एक संगठनात्मक संरचना ‘कौन किसे रिपोर्ट करता है’ स्पष्ट करते हुए संगठन में विभिन्न पद-स्थितियों के बीच अधिकार एवं उत्तरदायित्व सम्बन्धों की अभिव्यक्ति करती है । यह सम्बद्ध कार्यों के बीच नियोजित सम्बन्धों का एक समुच्चय होती है तथा संगठनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अपेक्षित कार्मिकों एवं भौतिक घटकों के बीच सम्बद्धता प्रकट करती है ।
संगठन में अधिकार तथा उत्तरदायित्व सम्बन्धों का एक नेटवर्क होता है । विभिन्न पद स्थितियाँ बनाई जाती हैं तथा उनको विशिष्ट कार्य सौंपे जाते है । कार्यों को पूरा करने के लिए प्रत्येक पदस्थिति को पर्याप्त अधिकार भारार्पित (Delegated) किये जाते हैं ।
संगठन के माध्यम से अधिसत्ता तथा उत्तरदायित्व सम्बन्ध स्पष्टत: परिभाषित किये जाने चाहिए ताकि व्यक्तियों एवं विभागों के टकरावों को समाप्त करते हुए समन्वय लाया जा सके ।
संगठन के प्रभावी कामकाज के लिए संगठनात्मक संरचना निम्न तरीकों से योगदान प्रदान करती है:
(1) स्पष्ट अधिसत्ता सम्बन्ध (Clear-Cut Authority Relationship):
संगठनात्मक संरचना अधिसत्ता तथा उत्तरदायित्व का आबंटन करती है । यह निर्दिष्ट करती है कि कौन किसको निर्देश देगा ? (Who is to Direct Whom ?) तथा किन परिणामों के लिए किसकी जबावदेही होगी ? (Who is Accountable for What Results ?) । संगठनात्मक संरचना संगठन के सदस्यों को यह जानने में सहायता करती है कि उसकी क्या भूमिका है तथा कैसे यह अन्य भूमिकाओं से जुड़ी है ?
(2) संरचना का पैटर्न (Pattern of Communication):
संगठनात्मक संरचना संचार तथा समन्वय का एक पैटर्न प्रदान करती है । गतिविधियों तथा व्यक्तियों का समूह बनाकर संरचना अपनी-अपनी कार्य गतिविधियों पर केन्द्रित लोगों के बीच संचार संभव करती है । ऐसे व्यक्ति जिनकी समाधान हेतु संयुक्त समस्याएँ होती हैं सूचनाओं को बहुधा शेयर करने की आवश्यकता अनुभव करते हैं ।
(3) निर्णयन केन्द्र की स्थिति (Location of Decision Centre):
संगठनात्मक संरचना संगठन में निर्णयन की स्थिति का निर्धारण करती है । उदाहरण के लिए, एक विभागीय भंडार एक ऐसी संरचना का अनुशीलन कर सकता है जो मूल्य, विक्रय संवर्द्धन तथा अन्य विषयों को व्यापक तौर पर व्यक्तिगत विभागों पर छोड़ दे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि विविध विभागीय परिस्थितियों को देखा जाता है ।
इसके विपरीत एक ऑयल रिफाइनरी उत्पादन, कार्यक्रमण तथा अनुरक्षण निर्णयों को अन्य स्तरों पर संकेन्द्रित कर सकती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कार्य के प्रवाह के साथ अन्त: निर्भरताएँ (Interdependencies) भली प्रकार देखी जाती हैं ।
(4) उचित सन्तुलन (Proper Balancing):
संगठनात्मक संरचना गतिविधियों के उचित संतुलन तथा दबाव पर अधिक ध्यान देती है । ऐसी गतिविधियाँ जो उपक्रम की सफलता के लिए आवश्यक होती हैं उनको संगठन में अपेक्षाकृत अधिक ध्यान दिया जा सकता है ।
उदाहरण के लिए फार्मास्युटीकल्ज कम्पनी में शोध को कम्पनी के महाप्रबन्धक या प्रबन्ध निदेशक के प्रतिवेदन हेतु अलग-अलग किया जा सकता है । तुलनीय महत्ता की गतिविधियों को संरचना में सामान्यत: समान स्तरों पर रखा जा सकता है ताकि उन पर समान जोर दिया जा सके ।
(5) सृजन का अनुकरण (Stimulating Creativity):
अधिसत्ता के सुपरिभाषित पैटर्नों की व्यवस्था करके पुष्ट संगठनात्मक संरचना सृजनात्मक सोच को संगठन के सदस्यों में पहल भावना उत्पन्न करती है । प्रत्येक व्यक्ति उस क्षेत्र से परिचित होता है जिसमें उसको विशिष्टीकरण प्राप्त है तथा जहाँ उसके प्रयासों की प्रशंसा की जायेगी ।
(6) विकास को प्रोत्साहन (Encouraging Growth):
एक संगठनात्मक संरचना ऐसे ढाँचे की व्यवस्था करती है जिसमें उपक्रम काम करता है । यदि यह लोचपूर्ण होती है तो यह चुनौतियों का सामना करने तथा विकास हेतु अवसरों का सृजन करने में मदद करेगी । एक स्वस्थ संगठनात्मक संरचना गतिविधि के बढ़ते स्तरों को संभालने के लिए उसकी क्षमता को बढ़ाकर उपक्रम के विकास का मार्ग प्रशस्त करती है ।
(7) प्रौद्योगिकी विकास एवं सुधारों का उपयोग सम्भव (Making Use of Technological Improvements):
एक स्वस्थ संगठनात्मक संरचना जो परिवर्तनों को प्रति वचनबद्ध है अद्यतन प्रौद्योगिकी का सर्वोत्तम सम्भव उपयोग कर सकती है । यह प्रौद्योगिकी के सुधारों की पृष्ठभूमि में अधिसत्ता-उत्तरदायित्व सम्बन्धों के विद्यमान ढाँचे को संशोधित करेगी ।
संक्षेप में, एक अच्छी संगठनात्मक संरचना की विद्यमानता अच्छे प्रबन्ध की प्रमुख शर्त होती है । विधिवत् अभिकल्पित संगठन एक ऐसे ढाँचे की व्यवस्था करके टीमवर्क तथा उत्पादकता को सुधार सकता है जिसमें कर्मचारी अधिक प्रभावी तौर पर एकजुट होकर काम कर सकते हैं । संगठनात्मक संरचना का सृजन करते समय यह आवश्यक होता है कि लोगों को अभिकल्पना (Design) से जोड़ा जाये ।
संगठनात्मक संरचना जिसमें नवीनतम प्रौद्योगिकी का प्रभाव होता है व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए पूर्णत: अर्थहीन हो सकती है क्योंकि यह लोगों की आवश्यकताओं के प्रति उपयुक्त नहीं होती है । अत: संगठनात्मक संरचना को संगठन की आवश्यकताओं के अनुरूप विकसित किया जाना चाहिये ।
2. संगठन संरचना का निर्धारण (Determination of Organisation Structure):
किसी व्यवसाय में संगठन संरचना का उतना ही महत्व है जितना कि मानव शरीर में रक्त का महत्व है । विलियम एच. न्यूमैन के अनुसार- संगठन संरचना किसी व्यवसाय की सम्पूर्ण संगठन व्यवस्था से सम्बन्ध रखती है और इसे निर्धारित करते समय प्रबन्धकों को अनेक बातों जैसे विशिष्टीकरण के लाभ, कार्यात्मक अधिकारों की सीमा, सम्प्रेषण की समस्या, उपलब्ध व्यक्तियों की योग्यता तथा संगठन की लागत आदि बातों का ध्यान रखना चाहिए ।
संगठन संरचना का निर्धारण निम्नलिखित तत्वों को ध्यान में रखकर किया जाता है:
(1) संगठन का उद्देश्य (Objectives):
संगठन किसी संस्था का उद्देश्य नहीं होता बल्कि संगठन संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने का साधन मात्र है । आर. सी. डेविस के अनुसार- “संस्था का उद्देश्य ही संगठन संरचना का निर्णायक तत्व होता है ।”
इस सम्बन्ध में पीटर एफ. ड्रकर का भी मत है कि संगठन संरचना ऐसी होनी चाहिए जिससे कोई संस्था निकट भविष्य में भी अपने उद्देश्यों को सरलतापूर्वक प्राप्त कर सके । उद्देश्य प्राप्ति के लिए संस्था को अनेक कार्य करने पड़ते हैं और अनेक निर्णय लेने पड़ते हैं ।
(2) संगठन का आकार (Size):
संस्था का आकार भी संगठन संरचना का निर्णायक तत्व होता है क्योंकि छोटे संगठनों में केन्द्रीय व्यवस्था और बड़े संगठनों में विकेन्द्रीकरण व्यवस्था अधिक लाभदायक सिद्ध होती है ।
(3) सामाजिक एवं मानवीय आवश्यकताएँ (Social and Human Needs):
संगठन संरचना का निर्धारण करते समय संस्था में कार्यरत कर्मचारियों एवं अधिकारियों की सामाजिक एवं मानवीय आवश्यकताओं का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए, इसके लिए यह आवश्यक है कि सभी व्यक्तियों में परस्पर अच्छे सम्बन्ध होने चाहिए ।
(4) उच्च प्रबन्ध व्यवस्था (Provision for Top Management):
उच्च प्रबन्ध व्यवस्था न्यायपूर्ण होनी चाहिए विशेषकर कम्पनियों में उच्च प्रबन्ध व्यवस्था का विशेष महत्व है क्योंकि कम्पनी विधान द्वारा निर्मित एक अदृश्य, अमूर्त एवं कृत्रिम व्यक्ति है जिसका प्रबन्ध प्राकृतिक व्यक्तियों के हाथ में होता है ।
(5) सुविधाजनक इकाइयाँ (Facilitating Units):
संस्था के सम्पूर्ण कार्यों को विभागों एवं उप-विभागों में बाँटकर उत्तरदायित्व केन्द्र बनाए जाते हैं और फिर कार्यों को सुविधाजनक इकाइयों में विभक्त किया जाता है जिससे सभी कार्य व्यवस्थित रूप से चलाए जा सकें । सुविधाजनक इकाइयों का निर्धारण करते समय सहयोग, समन्वय, कार्यों में समानता, नियन्त्रण का विस्तार, आदि बातों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए ।
(6) निरन्तरता (Continuity):
संगठन संरचना में निरन्तरता के सिद्धान्त को अपनाया जाना चाहिए जिससे अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन सभी उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके ।
(7) उच्च प्रबन्ध की योग्यताएँ एवं क्षमताएँ (Abilities and Capacities of Top Management):
संगठन संरचना का निर्धारण करते समय उच्च प्रबन्ध की योग्यताओं एवं क्षमताओं का भी विशेष ध्यान रखना पड़ता है । योग्य एवं कुशल प्रबन्ध रेखा संगठन में भी बड़ी से बड़ी संस्था का अच्छी तरह प्रबन्ध कर सकते हैं लेकिन यदि उच्च प्रबन्ध में विशेष योग्यता नहीं है तो संस्था को रेखा एवं कर्मचारी संगठन का सहारा लेना पड़ता है क्योंकि इसमें सभी विभागों में रेखा अधिकारियों के साथ-साथ विशेषज्ञों की नियुक्ति की भी सुविधा होती है ।
(8) प्रबन्ध की नीतियाँ (Policies of Management):
संगठन संरचना प्रबन्ध की नीतियों से भी प्रभावित होती है । अत: संगठन संरचना का निर्माण करते समय इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि उच्च प्रबन्ध केन्द्रीयकरण की नीति के पक्ष में है या विकेन्द्रीयकरण की नीति अपनाना चाहता है ।
(9) विभागीकरण (Departmentation):
संगठन का विभागीकरण चाहे किसी भी आधार पर क्यों न किया जाए, संगठन संरचना पर प्रत्येक का अपना-अपना पृथक् प्रभाव पड़ता है ।
3. संगठन संरचना को विकसित करना (Developing the Organisation Structure):
वस्तुत: दो प्रकार के संरचनात्मक चर होते हैं- मौलिक संरचना तथा क्रियात्मक तंत्र व्यवस्था (Basic Structure and Operating Mechanism) । मौलिक संरचना की अभिकल्पना में ऐसे महत्वपूर्ण विषयों का समावेश होता है जैसे विभिन्न पद-स्थितियों, वर्गों, विभागों, शाखाओं आदि के बीच संगठन का काम किस प्रकार विभाजित करके सौंपा जायेगा, तथा संगठनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु आवश्यक समन्वय (Coordination) लाया जायेगा ।
लेकिन दूसरी ओर, क्रियात्मक तंत्र व्यवस्था में सूचना तंत्र (Information System), नियंत्रण प्रक्रिया (Control Procedure), नियम एवं विधान (Rules and Regulations), पुरस्कार तथा दण्ड की व्यवस्था (System of Reward and Punishment), आदि घटकों का समावेश करती है ।
संगठन संरचना की अभिकल्पना द्वारा दो आयामों का वर्णन किया जाता है- ऐसे कार्य जिनको किया जाना है तथा संरचना का स्वरूप । पहला आयाम ऐसी गतिविधियों के निर्धारण की अपेक्षा करता है जिनकी संगठन को विशिष्टीकरण की मात्रा (Degree of Specialisation) को देखते हुए गतिविधियों के विभाजन हेतु आवश्यकता है ।
दूसरा आयाम अर्थात् संरचना का आकार (From of Structure) संगठनात्मक सिद्धान्तों तथा व्यवहारों के व्यापक अध्ययन तथा प्रयोग की अपेक्षा करता है । संगठनात्मक संरचना उपक्रम में विभिन्न पद-स्थितियों के बीच औपचारिक सम्बन्धों (Formal Relationships) की स्थापना करती है ।
औपचारिक सम्बन्धों को निम्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
(1) अधिकारी-अधीनस्थ सम्बन्ध (Relationships between the Senior and Subordinates and Vice Versa);
(2) विशेषज्ञ पदस्थितियों तथा रेखीय पदस्थितियों के बीच सम्बन्ध (Relations between the Specialist Positions and the Line Positions);
(3) स्टॉफ सम्बन्ध (Staff Relations) तथा
(4) समपार्श्विक सम्बन्ध (Lateral Relations) ।
एक संगठन में औपचारिक सम्बन्ध उत्तरदायित्वों की ऐसी व्यवस्था से उत्पन्न होते हैं जिन्हें प्रबन्ध द्वारा बनाये जाते हैं । ये प्रकृति में स्थिर होते हैं लेकिन गतिशील गतिविधि के लिए ढाँचे की व्यवस्था करते हैं ।
जैसे ही प्रबन्धकीय कार्यवाही प्रारम्भ होती है संगठन में औपचारिक सम्बन्ध व्यक्तियों के व्यक्तिगत रुझानों तथा व्यवहार द्वारा समाहित हो जाते हैं । ऐसे सम्बन्धों को सामान्यत: ‘अनौपचारिक सम्बन्ध’ (Informal Relations) कहा जाता है ।
संगठनात्मक संरचना विकसित करते समय ऐसे सम्बन्धों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिये । यदि औपचारिक सम्बन्ध कठोर होते हैं तथा संचार की लम्बी प्रक्रिया तथा श्रृंखलाओं की अपेक्षा करते हैं तो व्यक्ति एक अच्छे तरीके से अपने दायित्वों का निर्वाह करने के लिए कुछ ‘शॉर्टकट’ विकसित कर सकते हैं ।
गतिविधियों का विभेदीकरण तथा एकीकरण (Differentiation and Integration of Activities):
गतिविधियों का विभेदीकरण तथा एकीकरण एवं अधिसत्ता सम्बन्ध संगठनात्मक अभिकल्पना में अत्यन्त महत्वपूर्ण विचार माने जाते हैं । विभेदीकरण को विभिन्न क्रियान्वयन विभागों में प्रबन्धकों के बीच संज्ञात्मक तथा भावात्मक अभिन्मुखताओं में अन्तरों तथा इन विभागों के महत्वपूर्ण औपचारिक संरचना में भेदों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है ।
दूसरी ओर, एकीकरण से समन्वय की स्थिति की ऐसी गुणवत्ता का संदर्भ लिया जाता है जो प्रयास की एकता पाने के लिए अपेक्षित हो तंत्र व्यवस्था (System Approach) सुझाव देती है कि चूंकि विभिन्न विभाग सम्पूर्ण तंत्र के महत्वपूर्ण भाग होते हैं । अत: उनको एक-दूसरे से अलग करके नहीं देखा जाना चाहिये ।
लेकिन प्रत्येक विभाग एक अलग ही तरीके से वातावरण के साथ अन्त: सम्पर्क में आता है अत: विभिन्न विभाग वातावरण की प्रकृति के आधार पर विभेदीकरण की कुछ न कुछ मात्रा संभवत: विकसित कर लेंगे । इस प्रकार एक विभाग की संरचना की अभिकल्पना एक अन्य विभाग की संरचना से अलग हो सकती है ।
लेकिन संगठनात्मक अभिकल्पना का सर्वांगीण उद्देश्य गतिविधियों का एकीकरण होना चाहिए तथा विभिन्न विभागों में विद्यमान अधिसत्ता भूमिकाओं तथा सम्बन्धों में सामंजस्य होना चाहिये ।
4. संगठन संरचना का उद्देश्य एवं महत्व
(Purpose and Importance of Organisation Structure):
“This pattern of organisation is an important factor in management effectiveness and that it needs correspondingly careful and intelligent consideration”
-E. F. L. Brech
संगठन संरचना का मुख्य उद्देश्य कर्मचारियों में सहकारिता एवं सहयोग की भावना जागृत करना है जिससे प्रबन्धकों का काम सुविधापूर्वक चल सके । छोटे संगठनों की अपेक्षा बड़े संगठनों में संगठन-संरचना का विशेष महत्व होता है क्योंकि छोटे संगठनों में सभी व्यक्ति यह जानते हैं कि उनको क्या काम करना है, उनका बड़ा अधिकारी कौन है और वे अपने काम के लिए किसके प्रति उत्तरदायी हैं, लेकिन बड़े संगठन का कार्य एक सुनियोजित संगठन संरचना के बिना नहीं चल सकता ।
यद्यपि छोटे संगठनों में इसका विशेष महत्व नहीं होता लेकिन फिर भी कार्य के सुचारु रूप से संचालन के लिए संगठन-संरचना का कोई न कोई रूप अवश्य निश्चित करना पड़ता है । ब्रेच (Brech) के शब्दों में- ”यदि संगठन संरचना के निर्माण के लिए व्यवस्थित मार्ग अपनाना है तो कुछ स्वीकृत सिद्धान्तों को ध्यान में रखा जाना चाहिए ।”
(If there is to be systematic approach to the formulation of organisation structure, there ought to be body of accepted principles.)
इस सन्दर्भ में उर्विक का यह कथन भी महत्वपूर्ण है कि ”यदि संगठन संरचना सिद्धान्तों पर आधारित नहीं है तो वे लोग जो संगठन का निर्देशन करते हैं अपने व्यक्तित्व निर्माण के अतिरिक्त कुछ भी नहीं कर सकते । सिद्धान्तहीन व्यक्तित्व संगठन को शीघ्र ही राजनीति की ओर ले जाते हैं और व्यक्तिगत लाभ के कार्यों में फँस जाते हैं ।”
इस सम्बन्ध में पीटर एफ. ड्रकर का यह कथन भी उल्लेखनीय है कि ”संगठन संरचना एक महत्वपूर्ण साधन है । गलत संगठन संरचना व्यवसाय की कार्यक्षमता को भयंकर रूप से प्रभावित करेगी और यहाँ तक कि गलत संगठन-संरचना व्यवसाय के लिए विनाशकारी भी सिद्ध हो सकती है ।”
संगठन-संरचना का व्यवसाय में निम्नलिखित कारणों से विशेष महत्व है:
(1) अधिकार निश्चित करना (Determination of Authority):
संगठन-संरचना में सभी कर्मचारियों एवं अधिकारियों के अधिकार निश्चित किए जाते हैं जिससे संस्था के कर्मचारियों को इस बात का स्पष्ट ज्ञान हो जाता है कि उनका अधिकारी कौन है, वे किसके प्रति अपने काम के लिए उत्तरदायी हैं और उनके स्वयं के क्या अधिकार हैं और कौन-कौन व्यक्ति अपने काम के लिए उनके प्रति उत्तरदायी हैं अर्थात् वे स्वयं किसके अधिकारी हैं ।
(2) उत्तरदायित्व का निर्धारण (Fixing of Responsibility):
एक सुनियोजित संगठन संरचना में सभी विभागों एवं उनमें कार्यरत कर्मचारियों के उत्तरदायित्व की स्पष्ट व्याख्या की जाती है जिससे किसी भी कर्मचारी को अपने उत्तरदायित्व के विषय में किसी प्रकार का कोई भ्रम नहीं रहता ।
(3) कर्मचारियों की कार्यक्षमता का कुशलतम उपयोग (Optimum Staff Use):
संगठन संरचना में कार्य का विभाजन इस प्रकार किया जाता है कि प्रत्येक कार्य-बिन्दु पर उससे सम्बन्धित कर्मचारियों का उत्तरदायित्व निश्चित होता है और कोई भी व्यक्ति जो किसी कार्य विशेष से सम्बन्धित है, अपने उत्तरदायित्व से नहीं बच सकता ।
(4) व्यक्तिगत व्यक्तित्व (Personal Identity):
संगठन संरचना में सभी विभागों एवं उनमें कार्यरत कर्मचारियों के उत्तरदायित्व एवं कार्य निश्चित होते हैं जिससे उन्हें इस बात का ज्ञान हो जाता है कि उनका स्वयं का और उनके विभाग का संस्था में क्या महत्व है ।
(5) विशिष्टीकरण के लाभ (Specialisation):
संगठन संरचना में प्रत्येक कर्मचारी का कार्य निश्चित होता है उसके कार्य की स्पष्ट व्याख्या की जाती है । सभी कार्य-बिन्दुओं पर विशेष योग्यता प्राप्त व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता है और इस प्रकार संस्था द्वारा विशिष्टीकरण के लाभ उठाए जा सकते हैं ।
(6) समन्वय (Co-Ordination):
संगठन संरचना में किसी कार्य की विभिन्न अवस्थाओं और उनके क्रम का स्पष्ट उल्लेख किया जाता है और इस बात की भी स्पष्ट व्याख्या कर दी जाती है कि कौन व्यक्ति किस अवस्था में कार्य का निरीक्षण करेगा जिससे सभी क्रियाओं में आसानी से समन्वय स्थापित किया जाता है ।
(7) कुशल कार्यक्रम (Efficient Functioning):
एक सुनियोजित संगठन संरचना में कार्यों की इस प्रकार व्याख्या की जाती है जिससे कार्य के दोहरीकरण और आदेश की विविधता की कोई सम्भावना नहीं रहती । इतनी ही नहीं, संगठन संरचना में प्रभावी सन्देशवाहन और नियन्त्रण की भी पूर्ण सुविधा होती है, जिससे सभी दैनिक कार्य विधिवत् एवं व्यवस्थित रूप से चलते रहते हैं ।
5. संगठन संरचना को प्रभावित करने वाले तत्व (Factors Affecting the Organisation Structure):
किसी भी संगठन की संरचना का निर्माण करना आसान कार्य नहीं है क्योंकि संगठन संरचना पर अनेक तत्वों का प्रभाव पड़ता है । इन तत्वों को मुख्य रूप से चार भागों में विभक्त किया जा सकता है- वातावरण, आकार, तकनीक और व्यक्ति ।
ये तत्व एक संगठन संरचना को किस प्रकार प्रभावित करते हैं, इसका संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार है:
(1) वातावरण (Environment):
संगठन एक ऐसी प्रणाली है जो कि वातावरण में एक अंग के रूप में कार्य करती है । वातावरण में हम सभी दशाओं, परिस्थितियों तथा अन्य तत्वों को शामिल कर सकते हैं । ये तत्व सामाजिक, आर्थिक, कानूनी, राजनीतिक, तकनीकी आदि हो सकते हैं । इन तत्वों का संगठन संरचना पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है ।
उदाहरण के लिए आर्थिक तत्वों को ही लिया जाए । यदि कोई उद्योग छोटे पैमाने पर सफल नहीं होता तो उसके लिए हमें बड़े पैमाने की संगठन संरचना करनी होगी । सरकार के द्वारा बनाए गए विभिन्न कानून भी संगठन संरचना को प्रभावित करते हैं ।
वातावरण में भी अनेक प्रकार की भिन्नता एवं जटिलताएँ पाई जाती हैं इनके आधार पर एक संगठन का निर्माण इस प्रकार से किया जाता है कि उन सभी परिस्थितियों में वे प्रभावी ढंग से कार्य कर सकें । इन सभी में सबसे महत्वपूर्ण तत्व है, परिवर्तन ।
वातावरण में परिवर्तन होता है जिसका प्रभाव संगठन के संचालन पर पड़ता है । अनेक शोध अध्ययन किए गए हैं, जिनसे यह बात स्पष्ट हुई है कि वातावरण का प्रभाव संगठन संरचना पर अवश्य पड़ता है ।
(2) तकनीक (Technology):
तकनीक का आशय किसी भी कार्य को करने की निश्चित विधि से होता है, जिससे हम नवीनतम मशीनों आदि का सहारा भी ले सकते हैं । वर्तमान युग को तकनीकी दृष्टि से आधुनिकतम युग कहा जाता है । जैसे-जैसे तकनीक में परिवर्तन होते हैं वैसे-वैसे हमारी संगठन संरचना में भी परिवर्तन होते रहते हैं ।
यदि तकनीकी परिवर्तन के साथ-साथ स्वयं को परिवर्तित नहीं करता तो वह जीवित नहीं रह सकता । उदाहरण के लिए, पहले अधिकांश-उत्पादन शारीरिक श्रम के द्वारा किया जाता था, जिसमें पर्यवेक्षण की अधिक आवश्यकता पड़ती थी ।
इस दृष्टि से पर्यवेक्षण का विस्तार बहुत कम होता था लेकिन वर्तमान समय में प्रशिक्षित कर्मचारियों के माध्यम से नई तकनीक का प्रयोग करके वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है । अत: एक प्रबन्धक अनेक कर्मचारियों के कार्य की देखभाल कर सकता है । यदि हम ध्यानपूर्वक देखें तो व्यवहार में इस प्रकार के अनेक उदाहरण मिल सकते हैं ।
(3) संगठन का आकार (Size of the Organisation):
संगठन का आकार संगठन संरचना को प्रभावित करने वाला एक अन्य तत्व है । यद्यपि संगठन संरचना में इसका इतना प्रभाव नहीं होता, जितना कि वातावरण एवं तकनीक का होता है । आकार का आशय साधारणतया कर्मचारियों की संख्या, वस्तु उत्पादन का पैमाना, पूँजी की मात्रा, आदि के संदर्भ में लिया जाता है ।
इस संदर्भ में किए गए विभिन्न अनुसंधानों से यह बात पता चलती है कि जितना बड़ा संगठन होगा उसमें विशिष्टीकरण, प्रमापीकरण, विभागीकरण आदि की उतनी ही अधिक आवश्यकता होगी, लेकिन कुछ व्यक्तियों का कहना है कि संगठन के आकार और संगठन संरचना में किसी भी प्रकार का कोई सम्बन्ध नहीं होता । लेकिन यह कथन पूरी तरह से सही नहीं है ।
(4) व्यक्ति (Human Beings):
संगठन व्यक्तियों का एक समूह होता है । संगठन संरचना उनकी स्थिति, उनके कार्य एवं उत्तरदायित्व तथा पारस्परिक सम्बन्धों की अभिव्यक्ति करती है । इस प्रकार संगठन के सदस्यों के विचार संगठन संरचना को प्रभावित करते हैं ।
जब संगठन संरचना का निर्माण किया जाता है तब इस पर उच्च प्रबन्ध के व्यक्तित्व, उनके मूल्यांकन तथा उत्तरदायित्व का व्यापक प्रभाव पड़ता है । इसके अतिरिक्त प्रबन्धकों द्वारा नेतृत्व की कौन-सी तकनीक अपनाई जाती है, इस बात पर भी संगठनात्मक संरचना निर्भर करती है ।