Read this article in Hindi to learn about the process of manpower planning in a company.
मानव शक्ति नियोजन प्रक्रिया का आशय उन विभिन्न चरणों से है जिनके द्वारा प्रबन्धक मानव शक्ति नियोजन के उद्देश्यों को प्राप्त कर सकते हैं । वेटर एरिक डब्ल्यू. (Vetter Eric W.) ने अपनी पुस्तक ‘Manpower Planning for High Talent Personnel’ में मानव शक्ति नियोजन के चार चरण व्यक्त किए हैं । रेखाचित्र द्वारा मानव शक्ति नियोजन के इन चरणों को आसानी से समझा जा सकता है ।
प्रथम चरण में उपक्रम के उद्देश्यों नीतियों व योजनाओं को ध्यान में रखते हुए मानव शक्ति का नियोजन किया जाता है क्योंकि संस्था के उद्देश्य नीतियाँ व योजनाएँ मानव शक्ति को अत्यधिक प्रभावित करते हैं ।
प्रबन्धकों द्वारा जो उद्देश्य निर्धारित किए जाते हैं उनकी पूर्ति मानव शक्ति द्वारा की जाती है और कर्मचारियों को ये उद्देश्य स्वीकार करने होते हैं । अत: कर्मचारियों को यह समझना चाहिए कि उद्देश्यों का निर्धारण कैसे हुआ तथा किस सीमा तक वे इन उद्देश्यों की पूर्ति कर सकते हैं ।
इस चरण में सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं मानव शक्ति सूची तैयार की जाती है और यह संस्था की वर्तमान मानव शक्ति की क्षमता संस्था की वर्तमान प्राप्ति क्षमता को प्रभावित करती है । ये तथ्य संस्था के लक्ष्य की औचित्यता और इन्हें प्राप्त करने की क्षमता को भी प्रभावित करते हैं ।
दूसरे चरण में संगठन की नीतियों उद्देश्यों व योजनाओं का पुनरावलोकन कर संस्था की वर्तमान मानवशक्ति व भावी प्रबन्ध एवं नियोजन पर विचार किया जाता है । इस प्रकार मानवशक्ति की वर्तमान स्थिति कैसी है तथा भविष्य में स्थिति कैसी होगी का ज्ञान प्राप्त किया जाता है ।
तीसरे चरण में नियोजन एवं कार्यक्रम द्वारा नए कदम उठाने की और मानव शक्ति की नीतियों तथा उद्देश्यों में पूर्णरूपेण परिवर्तन की आवश्यकता हो सकती है ।
जब नए सिरे से विचार किया जाता है तथा स्थिति का पुनरावलोकन किया जाता है तो पहले लिए गये निर्णयों का परीक्षण आवश्यक हो जाता है । नियोजन तथा कार्यक्रम का मुख्य लक्ष्य वर्तमान मानव शक्ति की स्थिति को भविष्य में वांछित स्थिति तक पहुंचाना है ।
चौथा चरण कार्यक्रम के नियन्त्रण तथा मूल्यांकन से सम्बन्ध रखता है । इसमें नियोजकों को उनके द्वारा संचालित योजनाओं के विषय में जानकारी दी जाती है । इस चरण में एकत्रित सूचनाओं को वर्तमान समय के अनुसार समझा जाता है ।
यह नियोजकों को पूर्वानुमान की सत्यता और भविष्य के लिए मानव शक्ति अनुमान के लिए भी मार्गदर्शन करती है । नियन्त्रण और मूल्यांकन द्वारा नियोजकों को मानव-शक्ति नियोजन के विषय में आवश्यक कदम उठाने तथा भविष्य में परिवर्तन से सम्बन्धित सहायता प्राप्त होती है ।
वस्तुत: मानव शक्ति नियोजन एक सतत् प्रक्रिया है जैसा कि निम्न में दिखाया गया है:
मानव शक्ति नियोजन की प्रक्रिया में उठाये जाने वाले विभिन्न कदमों का एक संक्षिप्त विवेचन नीचे दिया गया है:
1. मानव शक्ति नियोजन का उद्देश्य (Objectives of Manpower Planning):
मानव शक्ति नियोजन से जुड़े व्यक्तियों को इसके उद्देश्यों के प्रति पूर्णत: स्पष्ट होना चाहिए । शुक्ला के अनुसार- ”मानव शक्ति नियोजन का एकमात्र उद्देश्य भावी मानवीय संसाधनों को भावी उपक्रम आवश्यकताओं से सम्बन्धित करना है ताकि मानव संसाधनों में निवेश पर भावी प्रत्ययों को अधिकतम किया जा सके ।”
मानव शक्ति नियोजन कारपोरेट नियोजन का एक आवश्यक अंग है । इसको सर्वागीण संगठनात्मक योजनाओं से एकजुट किया जाना चाहिये । मानव शक्ति नियोजन सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिये क्योंकि इसके दीर्घकालीन प्रभाव होते हैं ।
एक बार मानवीय संसाधनों की भावी आवश्यकताओं का गलत पूर्वानुमान तथा उपलब्ध मानव शक्ति स्टॉक की गलत समीक्षा यदि कर ली जाये तो अल्पकाल में गलतियों को ठीक करना सम्भव नहीं हो सकेगा ।
अत: मानव शक्ति नियोजन को विद्यमान कार्यों के साथ विद्यमान कार्मिकों को मिलाने की अपेक्षा सही प्रकार के लोगों द्वारा भावी पद रिक्तताओं को भरने से अधिक सम्बन्धित होना चाहिए ।
2. वर्तमान मानव शक्ति स्टॉक (Current Manpower Inventory):
वर्तमान मानव शक्ति आपूर्ति की समीक्षा विभागानुसार, कार्यानुसार, पेशे अनुसार या चातुर्य के स्तर के अनुसार अथवा योग्यतानुसार पूरी की जा सकती है । इनमें उपयुक्त समायोजन काम के साप्ताहिक घंटों अवकाशों, अवकाश अधिकृतताओं (Holidays, Leave Entitlements) आदि में किन्हीं दृश्य परिवर्तनों की पृष्ठभूमि में किये जाने होते हैं ।
क्रियात्मक लोगों के लिए माँग का आकलन अनिश्चितता की कम समस्याएँ उत्पन्न करता है तथा चालू मानवशक्ति आपूर्ति को तदानुसार समायोजित किया जा सकता है । लेकिन अधीक्षकीय तथा प्रबन्धकीय स्तरों के लिए मानव शक्ति आवश्यकता के पूर्वानुमान जटिल समस्या उत्पन्न करते हैं क्योंकि अल्प नोटिस पर अपेक्षित प्रतिभाओं का मिलाना कठिन हो जाता है ।
यह बात उपक्रम में वर्तमान मानव शक्ति स्टॉक के निर्धारण की आवश्यकता को स्पष्ट करती है । यह भविष्य में कुछ चातुर्यों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भर्ती तथा विकास योजनाओं की रचना में सहायता करती है । जब भी रिक्त स्थान सामने आयें व्यवस्थित चरण उठाये जाने चाहिये ताकि प्रतिभा का एक संचय उपलब्ध हो सके ।
संगठन में निपुण कर्मचारियों के लिए खोज निरन्तर होनी चाहिये । यह निश्चित होने के लिए कि उपलब्ध प्रतिभा शामिल की जा चुकी है विभिन्न चातुर्यों के स्टॉक की उपक्रम में विषम-सूची होनी चाहिये । मानव शक्ति स्टॉक में शामिल प्रत्येक व्यक्ति का व्यापक बायोडाटा (Bio-Data) मानव शक्ति नियोजन के लिए पृथकत: प्राप्त किया जाना चाहिये ।
यह रिकॉर्ड व्यक्तिगत विकास के एक कार्यक्रम के लिए आधार तैयार करेगा । साथ ही यह कुछ प्रतिभाओं की कमी या अनुपलब्धता को भी सामने लायेगा जिसके लिए मानवशक्ति के बाहरी स्रोतों का दोहन किया जा सकता है ।
3. माँग पूर्वानुमान (Demand Forecasting):
भविष्य में अपेक्षित श्रम शक्ति के उचित पूर्वानुमान का प्रयास किया जाना चाहिये ।
मानव शक्ति पूर्वानुमान हेतु सम्बद्ध घटक हैं:
(i) रोजगार की प्रवृत्तियाँ (Employment Trends):
कॉरपोरेट स्तर पर मानव शक्ति नियोजन समिति को प्रत्येक समूह की प्रवृत्ति को जानने के लिए विगत पाँच वर्षों के दौरान पेरॉल पर कर्मचारियों की संख्या का परीक्षण करना चाहिये । इसकी सहायता से यह निर्धारण करना सम्भव होगा कि क्या एक समूह विशेष स्थिर रहा है या अस्थिर तथा क्या यह बढ़ रहा है या सिकुड़ रहा है ।
(ii) प्रतिस्थापन्न आवश्यकताएँ (Replacement Needs):
प्रतिस्थापन्न आवश्यकता कर्मचारियों की मृत्यु, सेवानिवृत्ति, त्यागपत्र तथा निष्कासन के कारण उत्पन्न होती है । प्रतिस्थापन्न आवश्यकताओं का परीक्षण विशिष्ट मानव शक्ति समूहों से सम्बन्धित हो सकता है : अधीक्षकीय, निपुण, लिपिकीय, अनिपुण आदि ।
कुछ समूहों के लिए जैसे प्रबन्धकीय या अधीक्षकीय, आवश्यकताओं का पूर्वानुमान कठिन होता है । अत: प्रबन्धकीय मानव शक्ति की आवश्यकताओं का पर्याप्त अग्रिम तौर पर अनुमान लगा लेना चाहिये । मानव शक्ति के पूर्वानुमान बड़ी मात्रा में ऐतिहासिक आकड़ों पर आधारित हो सकते हैं ।
यह माना जाता है कि विगत आवृत्तियों को उत्पन्न करने वाले घटक भविष्य में भी ऐसी ही भूमिका निभाते रहेंगे । लेकिन समंक भविष्य के बारे में अन्य ज्ञात सूचना की पृष्ठभूमि में समायोजित किया जाना चाहिये । मुख्य कार्मिकों की कतिपय हानियों का पर्याप्त यथार्थता के साथ अनुमान लगाया जा सकता है ।
सेवानिवृत्ति शारीरिक अक्षमता तथा घटिया निष्पत्ति से हानियाँ इनमें शामिल हैं । लेकिन सेवानिवृत्ति प्रत्याशित अलगाव का सर्वाधिक सामान्य प्रकार होती है जो प्रतिस्थापन हेतु आवश्यकता को जन्म देती है । इस श्रेणी में वे सभी कर्मचारी आते हैं जो विचाराधीन अवधि के दौरान सामान्य सेवा निवृत्ति आयु पर पहुँचेंगे ।
इसी तरीके से ज्ञात शारीरिक अयोग्यताओं से हानियाँ तथा घटिया निष्पत्ति हेतु पूर्वानुमान लगाया जा सकता है । वास्तव में कार्मिकों की अन्य हानियाँ भी होंगी । यह अनुमान भी विगत अनुभव पर आधारित हो सकता है ।
मृत्यु, सेवा निष्कासन, विमुक्ति तथा विगत पाँच वर्षों की अवधि के दौरान त्यागपत्रों की संख्या का एक परीक्षण इन कारणों के लिए भविष्य में प्रतिस्थापन हेतु आवश्यकता के पूर्वानुमान हेतु आधार की व्यवस्था कर सकता है ।
(iii) उत्पादकता (Productivity):
एक महत्वपूर्ण क्षेत्र जिससे मानव शक्ति नियोजन सम्बन्ध रखता है वह है उत्पादकता में सुधार । उत्पादकता में लाभ संगठन की विकास सम्भावनाओं को बढ़ाता है तथा स्वस्थ मजदूरी वृद्धि संभव बना सकता है । उत्पादकता में वृद्धि मानव शक्ति की आवश्यकताओं को भी प्रभावित करेगी । उत्पादकता लाभों के लिए नियोजन के कई पहलू होते हैं । पहला तथा महत्वपूर्ण पहलू विद्यमान मानव शक्ति उपयोग में सुधारों द्वारा होने वाले लाभों से जुड़ा है ।
उपयोग के चालू स्तर तथा अपेक्षित सुधार के बारे में संकेत औद्योगिक इंजीनियरिंग या कार्य अध्ययन की विभिन्न समीक्षात्मक तकनीकों के प्रयोग द्वारा प्राप्त किया जा सकता है जैसे- गतिविधि चार्ट, प्रवाह चार्ट, बहु-विकल्पी गतिविधि चार्ट, गतिविधि सैम्पलिंग आदि ।
विधि सुधार तकनीकें कार्य विषय वस्तु को घटाने में सहायता करती हैं । सैद्धान्तिक तौर पर, ऐसी ही व्यवस्थाएँ प्रबन्धकीय स्तर पर उत्पादकता लाभों की अभिप्राप्ति में सहायतार्थ प्रबन्ध की निष्पत्ति को अपग्रेड करने का लक्ष्य लेकर चलती हैं ।
दूसरा पहलू अधिक उत्पादकीय उपकरणों, औजारों अथवा प्रक्रियाओं की स्थापना से सम्बन्धित होता है । स्वचालन के प्रादुर्भाव के कारण कोई प्रत्याशित परिवर्तन संयंत्रों तथा विभागीय कार्यालय में मानव शक्ति आवश्यकताओं को प्रभावित करेगा ।
मानव शक्ति नियोजन विशेषज्ञों की उनके सम्भाव्य प्रभावों पर, भविष्य में अपेक्षित कर्मचारियों की संख्या तथा प्रकारों पर आकलन हेतु पर्याप्त समय के साथ ऐसे परिवर्तनों के बारे में सीखने के लिए प्रयास करने चाहिए ।
अन्तिम पहलू कार्यों की अपेक्षाओं के साथ चातुर्यों के मिलान से सम्बन्ध रखता है । कार्य विश्लेषण तकनीकें कार्यों के चातुर्यों तथा अनुभव आवश्यकताओं के स्पष्ट निर्दिष्टीकरण को सुचारु बनाती हैं । इस समीक्ष के निकट उत्पाद हैं Job Description तथा Job Specification.
(iv) विकास तथा विस्तार (Growth and Explosion):
संगठन के विकास तथा विस्तार हेतु कार्मिक आवश्यकताएँ मानव शक्ति नियोजन का एक अन्य सम्बद्ध पहलू है । विभिन्न संयंत्रों तथा शाखाओं की विस्तार योजनाएँ भली प्रकार देखी जानी चाहिए ताकि उनके प्रत्येक समूह में अपेक्षित कर्मचारियों की संख्या पर संभाव्य पूर्वानुमानों का आकलन किया जा सके ।
मानव शक्ति अपेक्षाओं का पूर्वानुमान अन्य बातों के साथ-साथ उस शुद्धता की मात्रा पर निर्भर करेगा जिसको विस्तार कार्यक्रम के सम्बन्ध में प्राप्त किया जा सकता है । जहाँ विस्तार कार्यक्रम कम विशिष्ट होता है तथा समय आयाम अपेक्षाकृत बड़ा होता है वहाँ अनिश्चितताएँ कहीं अधिक होंगी ।
एक सुदीर्घ संस्थान (Going Concern) एक सुदृढ़ तथा बढ़ता तंत्र होता है । वह उत्पादन या लाभ के विद्यमान स्तर से संतुष्ट नहीं होता । वह बढ़ना चाहता है । तथा उद्योग की कुल गतिविधियों में अपने भाग को बढ़ाना चाहता है । उपक्रम को आगे तक ले जाना अधिकांश व्यावसायिक प्रबन्धकों की एक मौलिक महत्वाकांक्षा होती है जिसमें वे लगे होते हैं ।
प्रतिस्पर्द्धा की इस दुनिया में अविछिन्नता (Perpetuation) का अर्थ होगा कि प्रत्येक संगठन की गतिविधियों के सामने उसकी योजनाएँ होती है तथा वह कहीं अधिक अच्छी विकास दर का लक्ष्य लेकर चलता है तथा अपनी गतिविधियों के विविधीकरण तथा अच्छी छवि का उद्देश्य रखता है ।
ये सभी उद्देश्य तथा अपेक्षाएँ विस्तार तथा विकास को जन्म देते हैं जिससे विभिन्न स्तरों पर श्रम शक्ति हेतु अनेक पदस्थितियाँ उभरती हैं । यदि संगठन में विभिन्न पदों को सँभालने के लिए सक्षम लोगों की पर्याप्त संख्या हो तो इन उद्देश्यों तथा महत्वाकांक्षाओं को पूरा किया जा सकता है ।
एक अच्छा संगठन सदैव ही उत्पादन की विधियों तथा तकनीकों में परिवर्तनों से स्वयं को जोड़ना चाहता है । वैज्ञानिक दुनिया में विकास जैसे अन्तरिक्ष विज्ञान, परमाणु विज्ञान, इलैक्ट्रानिक आदि के उदय ने व्यावसायिक निवेश तथा विस्तार के नये-नये आयाम खोले हैं तथा साथ ही कम्पनियों के प्रबन्ध में अनेक जटिलताएँ उत्पन्न की हैं ।
इन परिवर्तनों ने नई परिस्थितियों से निपटने के लिए विद्यमान कर्मचारियों की क्षमता तथा योग्यता को पूरी तरह झकझोर दिया है जब तक वे पूरी तरह से शिक्षित तथा प्रशिक्षित नहीं हो जाते । मानव शक्ति नियोजकों की इन सभी बातों को ध्यान में रखना चाहिये । जब वे मानव शक्ति आवश्यकताओं पर विभिन्न व्यवसाय विस्तार योजनाओं के प्रभावों का अध्ययन कर रहे हों ।
(v) अनुपस्थितिवाद (Absenteeism):
इसका अर्थ है एक ऐसी स्थिति जब एक व्यक्ति काम पर आने में असफल हो जाता है जबकि उसको आना होता हो ।
अनुपस्थितिवाद की दर की निम्न सूत्र से गणना की जा सकती है:
ऐसे अनेक कर्मचारी होते हैं जो किसी संगठन में अनुपस्थितिवाद की बीमारी से ग्रस्त होते हैं । ऐसे कर्मचारियों का 10 से 20 प्रतिशत अनुपस्थितियों के 70-80 प्रतिशत के लिए उत्तरदायी हो सकता है ।
उल्लेखनीय है कि अत्यधिक अनुपस्थितिवाद (3 से 5 प्रतिशत की Irreducible Minimum की अपेक्षा अधिक) फर्म को एक विचारणीय लागत प्रदान करता है जबकि अनुपस्थिति वाले श्रमिकों को कोई भी वेतन न दिया जाये । ओवरटाइम कार्य के कारण काम के कार्यक्रम गड़बड़ा जाते हैं जिससे उत्पादन की लागत बढ़ जाती है ।
(vi) कार्य अध्ययन (Work Study):
कार्य अध्ययन तकनीक को काम में लाया जा सकता है जब यह जानने के लिए काम मापांकन लागू किया जाना सम्भव हो कि गतिविधियाँ कब तक चलेंगी तथा कितना श्रम अपेक्षित है ।
यह कार्यभार विश्लेषण (Work Load Analysis) कहलाता है । आने वाले वर्षों में प्रत्येक संयंत्र के कार्यभार के आधार पर अनुपस्थितिवाद तथा श्रम आवर्त की दरों को ध्यान में रखते हुए कार्य शक्ति समीक्षा की जाती है ।
4. कार्य अपेक्षाएँ (Job Requirements):
कार्य समीक्षा (Job Analysis) मानव शक्ति आवश्यकताओं का गुणात्मक पहलू होता है क्योंकि यह उत्तरदायित्वों तथा कर्तव्यों के रूप में किसी कार्य को माँग का निर्धारण करती हैं तथा फिर इन माँगो को चातुर्यों, गुणों तथा अन्य मानवीय गुण-तत्वों के रूप में बदलता है ।
यह कार्यों की संख्या तथा प्रकारों एवं इन कार्यों को भरने के लिए अपेक्षित योग्यताओं के निर्धारण में सहायता है क्योंकि कार्य समीक्षा की सहायता से यह जाना जाता है कि काम की कितनी मात्रा है जो एक औसत श्रमिक एक दिन में किसी काम को कर सकता है ।
अत: यह प्रभावी मानव शक्ति नियोजन का एक आवश्यक तत्व है । प्रबन्धकीय स्तरों पर, सही कार्य विवेचन प्रशासकीय प्रतिभा की स्टॉक सूचियों की रचना में सहायता करता है ।
5. रोजगार योजनाएँ (Employment Plans):
यह चरण इस नियोजन का वर्णन करता है कि कैसे संगठन सही प्रकार के व्यक्तियों की अपेक्षित संख्या को प्राप्त कर सकता है जैसा कार्मिक पूर्वानुमानों से पता चलता है ।
दूसरे शब्दों में, भर्ती, चयन, प्रशिक्षण, स्थानान्तरण तथा पदोन्नति के कार्यक्रम तैयार करने की आवश्यकता होती है ताकि संगठन के विभिन्न विभागों की कार्मिक आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके ।
6. प्रशिक्षण तथा विकास कार्यक्रम (Training and Development Programme):
चातुर्य स्टॉक सूची की रचना संगठन की प्रशिक्षण तथा विकास आवश्यकताओं की पहचान में मदद करती है । प्रशिक्षण न केवल नये कर्मचारियों के लिए वरन् पुराने कर्मचारियों के लिए भी जरूरी है । प्रशासकीय विकास कार्यक्रम प्रबन्धकीय कार्मिकों के विकास हेतु सुझाना पड़ता है ।
किसी भी उपक्रम के पास यह चयन नहीं होता कि क्या प्रशिक्षण दिया जाये या नहीं दिया जाये, एकमात्र विकल्प केवल विधि या तकनीक का होता है । सभी प्रकार के कार्य सामान्यत: अपनी प्रभावी निष्पत्ति के लिए बहुधा किसी न किसी प्रकार की प्रशिक्षण की अपेक्षा करते हैं ।
यहाँ तक कि जब नियुक्त व्यक्तियों के पास कार्य अनुभव भी होता है तो भी उनको प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे अपने ज्ञान तथा चातुर्यों का नवीनीकरण कर सके तथा उनको बतायें कि उनसे क्या करने की अपेक्षा की जाती है । कर्मचारियों की प्रतिभा, प्रशिक्षण तथा विकास के व्यवस्थित कार्यक्रम के बिना पूर्णत: उत्पादकीय नहीं होतीं ।
7. मानव शक्ति नियोजन का मूल्यांकन (Appraisal of Manpower Planning):
रोजगार तथा प्रशिक्षण कार्यक्रमों के क्रियान्वित होने के बाद, मानव शक्ति नियोजन की प्रभावोत्पादकता का आकलन किया जाना चाहिये । कार्यक्रम की कमियों को स्पष्ट किया जाना चाहिये तथा मानव शक्ति स्टॉक की विषय सूची सामयिक तौर पर अपडेट की जानी चाहिए ।
जहाँ भी मानव शक्ति नियोजन में कमियों के निराकरण हेतु ऐसा आवश्यक हो वहीं सुधारात्मक कार्यवाही भी की जानी चाहिए । विद्यमान मानव शक्ति योजनाओं का एक आकलन भावी मानव शक्ति नियोजन में एक गाइड के रूप में भूमिका निभायेगा ।
मानव संसाधन नियोजन मानव संसाधन प्रबन्ध के उद्देश्यों तथा संगठन के उद्देश्यों से गहनता से जुड़ी होती है । किसी विभाग में या किसी स्तर पर मानव संसाधनों की कमी या आधिक्य न्यूनतम किया जाना चाहिए ।
मानव संसाधन नियोजन (Human Resources Planning) कार्यक्रम प्रभावी होगा यदि यह समय रहते विभिन्न चातुर्यों की कमजोरियों का अनुमान लगा सकता है ताकि अपेक्षित मानवीय संसाधनों की भर्ती के लिए चरण उठाये जा सकें ।
इसी तरह यदि कुछ प्रकार के कार्मिक आधिक्य में हैं तो उनको उपयुक्त प्रशिक्षण देने के बाद समायोजित किया जाना चाहिए, यदि यह संभव न हो, तो उपयुक्त सेवा-निवृत्ति योजना (Voluntary Retirement Scheme) के माध्यम से उनको बाहर किया जा सकता है ।