Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning of Profit-Sharing 2. Definitions of Profit-Sharing 3. Types 4. Advantages.
लाभ-भागिता का अर्थ (Meaning of Profit-Sharing):
सामान्य शब्दों में लाभ-भागिता का अर्थ किसी उत्पादक संस्था द्वारा किसी समझौते के अधीन अपने श्रमिकों को निश्चित क्षतिपूर्ति के अतिरिक्त लाभों में से एक हिस्सा प्रदान करना है । इस हेतु सेवानियोजकों और श्रमिकों के मध्य एक अनुबन्ध हो जाता है कि उपक्रम के होने वाले लाभ का अमुक भाग श्रमिकों को दिया जायेगा ।
लाभ का यह भाग श्रमिकों को निश्चित क्षतिपूर्ति के अतिरिक्त दिया जाता है । इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि सेवानियोजकों द्वारा श्रमिकों को दिये जाने वाले अधिलाभांश (Bonus) अथवा प्रीमियम (Premium) लाभ-भागिता (Profit-Sharing) से भिन्न होती है ।
इसका मुख्य कारण यह है कि अधिलाभांश अथवा प्रब्याजि का देना या न देना, उनकी मात्रा अथवा प्रतिशत उनकी गणना करने की रीति आदि सभी तथ्य सेवानियोजकों की इच्छा पर निर्भर करते हैं और लाभ-भागिता सेवानियोजकों और श्रमिकों के मध्य आपसी अनुबन्ध द्वारा निश्चित की जाती है । इसके सम्बन्ध में दोनों पक्षकारों के मध्य लिखित में अनुक्रम हो जाता है जिससे कोई भी पक्षकार इन्कार नहीं कर सकता ।
लाभ-भागिता की परिभाषाएँ (Definitions of Profit-Sharing):
1. लाभ भागिता की अन्तर्राष्ट्रीय कांग्रेस, पेरिस में 1897 में अपनायी गई परिभाषा के अनुसार- “लाभभागिता स्वतन्त्र रूप से किया गया वह ठहराव है, जिसके अनुसार कर्मचारी लाभ का एक पूर्व निर्धारित भाग प्राप्त करते हैं ।”
2. हेनरी आर. सीजर (Henry R. Seager) के अनुसार- ”लाभ-भागिता स्वतन्त्रपूर्वक किया गया एक समझौता है जिसके द्वारा कर्मचारी लाभों का एक भाग प्राप्त करता है, जिसका निर्धारण लाभ होने से पूर्व ही कर दिया जाता है ।”
3. अन्तर्राष्ट्रीय श्रम (I.L.O.) के अनुसार- ”औद्योगिक पारिश्रमिक की ऐसी विधि को लाभभागिता कहते हैं जिसके अन्तर्गत नियोक्ता अधीनस्थों को संस्थान के शुद्ध लाभांश में से कुछ भाग देता है जो उनके नियमित वेतन के अतिरिक्त है ।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन के पश्चात् यह कहा जा सकता है कि लाभ-भागिता एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें सेवानियोजक आपसी समझौते के आधार पर कर्मचारियों को साधारण क्षतिपूर्ति के अतिरिक्त उपक्रम के लाभों में से एक हिस्सा प्रदान करते हैं ।
कर्मचारी लाभभागिता योजना के प्रकार (Types of Employee Profit-Sharing Plan):
कर्मचारी लाभभागिता योजना के निम्न प्रकार हैं:
1. नकद या चालू वितरण (Cash or Current Distribution),
2. प्रन्यास या स्थगित वितरण (Trust or Deferred Distribution),
3. सम्मिश्रण योजना (Combination Plan) ।
नकद या चालू वितरण व्यवस्था में कर्मचारियों को प्रत्येक वर्ष में कम से कम एक बार लाभों का वितरण नकद रूप में किया जाता है । लाभभागिता योजना का यह स्वरूप अति प्राचीन होने के साथ-साथ सर्वाधिक लोकप्रिय भी है ।
इसके अन्तर्गत कर्मचारियों को लाभों का भुगतान मासिक, त्रैमासिक, अर्द्धवार्षिक और वार्षिक आधार पर किया जाता है । प्रन्यास या स्थगित वितरण व्यवस्था में कर्मचारियों को लाभ का नकद भुगतान नहीं किया जाता, अपितु लाभ की राशि एक कोष जिसे प्रन्यास कोष कहते हैं, में जमा कर दी जाती है ।
इस कोष में से कर्मचारियों को अथवा उनके आश्रितों को मृत्यु के समय अयोग्यता के समय, आवकाश ग्रहण के समय या रोजगार से पृथक् करने पर आवश्यक राशि का भुगतान किया जाता है ।
प्रन्यास कोष की स्थापना के समय में निम्न बातें तय की जानी चाहिए:
(a) कोष का हिस्सा लाभों के प्रतिशत के रूप में होगा या संचालक मण्डल द्वारा घोषित लाभांश पर निर्भर होगा ।
(b) लाभों का प्रतिशत स्थायी होगा या लाभों की मात्रा सर्पाकार अनुमान योजना पर आधारित होगा ।
(c) लाभों के प्रतिशत की गणना स्कन्ध पर लाभांश कर तथा संस्था में राशि के पुनर्विनियोजन के पूर्व या बाद में की जायेगी ।
(d) कोष में हस्तान्तरित किये जाने वाले लाभ की मात्रा कितनी होगी ।
सम्मिश्रण या संयोजन योजना (Combination Plan) के अनुसार कुछ संगठन लाभ-भागिता की दोनों योजनाओं यथा नकद या चालू वितरण तथा प्रन्यास या स्थगित वितरण का एक मिला-जुला स्वरूप अपनाते हैं ।
इस योजना के अन्तर्गत कर्मचारियों द्वारा अर्जित लाभ के कुछ अंश को प्रति वर्ष नकद में तथा शेष अंश को कोष के माध्यम से आकस्मिक घटनाओं के समय योजनाओं के प्रावधानों के अनुसार प्रदान किया जाता है ।
लाभ-भागिता के लाभ (Advantages of Profit-Sharing):
लाभ-भागिता योजना से निम्न लाभ प्राप्त होते हैं:
1. इस योजना का सबसे प्रमुख लाभ कर्मचारियों को यह है कि उन्हें उनकी मजदूरी के अतिरिक्त और धनराशि मिल जाती है जिससे उनमें कार्य करने का उत्साह उत्पन्न होता है और वे उपक्रम के प्रति निष्ठावान हो जाते हैं ।
2. इस योजना से श्रमिकों को सामाजिक न्याय प्राप्त होता है । श्रम उत्पादन का प्रमुख घटक है और यदि यह कार्य न करें तो लाभ होना सम्भव नहीं है । यह श्रमिक ही है जिसकी वजह से एक उपक्रम में लाभ उत्पन्न होता है, अत: बहुत ही अन्यायपूर्ण होगा यदि उसे लाभ का अंश न दिया जाये । इस प्रकार लाभ-भागिता योजना के पक्ष में सबसे प्रबल तर्क सामाजिक न्याय का है ।
3. यह योजना श्रम और प्रबन्ध के मध्य सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना करती है, फलत: औद्योगित शान्ति स्थापित होती है ।
4. कर्मचारी अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने की इच्छा से अधिक से अधिक परिश्रम करते हैं परिणामत: उत्पादन की मात्रा में वृद्धि होती है, वस्तु की प्रति इकाई लागत में कमी आती है और उपभोक्ताओं को सस्ती दर पर अच्छी किस्म की वस्तुएँ उपलब्ध हो जाती हैं ।
5. इस योजना में कर्मचारी उपक्रम के लाभों में वृद्धि करना अपना हित समझते हैं, अत: वे माल का अपव्यय कम करते हैं और मशीन एवं औजारों का विशेष ध्यान रखते हैं ।
राबर्ट ओवन को जब एक मिल-मालिक ने कहा कि- ”यदि मेरे कर्मचारियों चाहें तो अच्छा कार्य करके तथा अपव्ययता को दूर करके 10,000 पौण्ड प्रतिवर्ष बचा सकते हैं ।” तो ओवन ने उत्तर दिया कि- “तब आप उन्हें 5,000 पौण्ड प्रतिवर्ष इस कार्य के लिए क्यों नहीं दे देते ?”
6. उपक्रम में कर्मचारियों का निजी हित होने का कारण वे स्वयं ही पूर्ण सतर्कता एवं निष्ठा के साथ कार्य करते हैं, जिससे उन पर पर्याप्त निरीक्षण की आवश्यकता नहीं होती और निरीक्षण व्यय नहीं करने पड़ते हैं ।
7. इस योजना का एक अन्य लाभ यह भी है कि उच्च योग्यता वाले कर्मचारी लाभ-भागिता वाले उपक्रमों की ओर आकर्षित होते हैं और इससे उत्पादन-क्षमता में और वृद्धि हो जाती है ।
8. इस योजना से कर्मचारियों की कार्यकुशलता और आय में वृद्धि होती है, परिणामत: उनका जीवन-स्तर उच्च होने लगता है ।
9. यह योजना कर्मचारियों की सेवा में स्थायित्व लाती है ।
10. इस योजना द्वारा औद्योगिक शान्ति स्थापित होने से, कार्यकुशलता एवं मनोबल में वृद्धि होने से कर्मचारियों का उच्च जीवन-स्तर होता है ।
क्षतिपूर्ति पैकेज (Compensation Package):
कर्मचारियों की क्षतिपूर्ति उनके कार्य से हटाये जाने तथा छँटनी के सम्बन्ध में, मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936, श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 तथा औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के अन्तर्गत दी जाती है ।
क्षतिपूर्ति मजदूरी भुगतान के अन्तर्गत कर्मचारी को गलती से काटी गई राशि की दस गुनी तथा इस प्रकार कटी देय राशि के बराबर राशि दी जाती है । मजदूरी के भुगतान में विलम्ब होने पर सेवायोजक द्वारा रु 25 तक भुगतान किया जाता है ।
सेवायोजक कार्यस्थल पर तथा कार्यस्थल के बाहर घटित दुर्घटना के लिए कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 के अन्तर्गत क्षतिपूर्ति देने के लिए बाध्य है । ऐसी चोटें जो तीन दिन से कम समय में ठीक हो जाती हैं या स्वैच्छिक उल्लंघन द्वारा कर्मचारियों के शराब पीने से हुई हैं, क्षतिपूर्ति के लिए विचारणीय नहीं होती ।
कार्य करने के दौरान, पेशेवर बीमारियों के लिए क्षतिपूर्ति देय होती है, मरणान्तक गम्भीर चोटों के कारणों को सम्बन्धित अधिकारियों को रिपोर्ट करना होता है । मृत्यु, स्थायी कुल अपंगता आदि के लिए क्षतिपूर्ति की दरें अधिनियम में दी गई हैं ।
औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के अन्तर्गत कर्मचारी को छँटनी के लिए इस अवधि के दौरान मजदूरी का आधा भाग दिया जाता है । इसी अधिनियम के अन्तर्गत हटाये गये कर्मचारी को निरन्तर सेवा के प्रत्येक वर्ष के पीछे 15 दिन का औसत वेतन दिया जाता है । कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, (ESI) के अनुसार अपंगता तथा आश्रित हित लाभ देय होते हैं ।