Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning of Selection 2. Selection Policy 3. Selection Procedure 4. Scientific Selection.
चयन का अर्थ (Meaning of Selection):
रिक्त स्थानों के सम्बन्ध में अनेक आवेदन-पत्र प्राप्त होते हैं । प्राप्त आवेदन-पत्रों में से जिस आवेदक की योग्यता, अनुभव आदि कार्य विशिष्टता के अनुरूप होते हैं उनका चयन कर लिया जाता है ।
डेल योडर (Dale Yoder) के शब्दों में- ”चयन वह किया है जिसमें सम्भावित कर्मचारियों का, जिनकी भर्ती विभिन्न स्रोतों से की गई है, परीक्षण किया जाता है, तथा उन्हें दो श्रेणियों में बाँटा जाता है-एक वे जिनको नौकरी दी जाती हैं और दूसरे वे जिन्हें नौकरी नहीं दी जाती हैं ।”
चयन शब्द केवल नए कर्मचारियों की भर्ती तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके अन्तर्गत उन कर्मचारियों का चुनाव-कार्य भी सम्मिलित है, जिन्हें प्रशिक्षण दिया जाता है ।
वस्तुत: चयन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा संस्था के रिक्त स्थानों की पूर्ति की जाती है । इसके अन्तर्गत उपयुक्त प्रार्थियों को रोजगार प्रदान किया जाता है तथा अनुपयुक्त प्रार्थियों को अलग कर दिया जाता है ।
चयन शब्द केवल नये कर्मचारियों की भर्ती तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके अन्तर्गत उन कर्मचारियों का चुनाव का कार्य भी सम्मिलित होता है, जिन्हें प्रशिक्षण दिया जाता है ।
संस्था में कर्मचारियों का चयन एक अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य होता है, जिसके द्वारा योग्य एवं कुशल कर्मचारियों की प्राप्ति की जा सके । कर्मचारी चयन का उद्देश्य सही व्यक्ति को सही काम सौंपना होता है ताकि न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन किये जा सकें ।
कर्मचारियों का चयन उपक्रम के भीतरी तथा बाहरी व्यक्तियों में से किया जाता है । आन्तरिक व्यक्तियों का चयन उनकी पदोन्नति, स्थानान्तरण तथा पदावनति द्वारा किया जा सकता है तथा बाहरी व्यक्तियों का चयन उनका साक्षात्कार लेकर किया जा सकता है ।
यहाँ कर्मचारी चयन से आशय बाहरी व्यक्तियों में से योग्य व्यक्तियों का चुनाव करने से होता है । भर्ती किये गये कर्मचारियों में किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को कार्य के योग्य घोषित करना चयन कहलाता है ।
चयन करते समय उपक्रम के विभिन्न विभागों में आवश्यक व्यक्तियों की संख्या ज्ञात करके रिक्त स्थानों की जानकारी प्राप्त की जाती है, कार्य विवरणों की सहायता से कर्मचारियों की अपेक्षित योग्यतायें मालूम की जाती हैं तथा कार्य विवरण द्वारा निर्धारित योग्यताओं एवं व्यक्ति की योग्यता का मिलान करके उपयुक्त का चुनाव किया जाता है ।
इस प्रकार कर्मचारी चयन में निम्न बातों का समावेश किया जाता है:
1. भर्ती के माध्यम से विभिन्न स्रोतों से कर्मचारियों की उपलब्धता को ज्ञात करना तथा उन्हें उपक्रम में कार्य करने के लिये तत्पर करना ।
2. कार्य विवरण तथा कार्य मूल्यांकन द्वारा विभिन्न पदों पर नियुक्त किये जाने वाले कर्मचारियों की योग्यता, गुण, अनुभव, दायित्व तथा वेतन इत्यादि का निर्धारण करना ।
3. उपक्रम में विभिन्न रिक्त पदों तथा नवसृजित पदों की संख्या ज्ञात करना ।
4. भर्ती किये गये कर्मचारियों का परीक्षण करना तथा साक्षात्कार करना और अपेक्षित योग्यताओं से मेल खाने वाले कर्मचारियों का चुनाव करना ।
चयन-नीति (Selection Policy):
कर्मचारियों का चयन करने के लिए एक उपयुक्त चयन-नीति का होना आवश्यक है ।
एक उपयुक्त चयन-नीति में निम्न बाते सम्मिलित होनी चाहिए:
1. चयन का कार्य एक कुशल एवं महत्वपूर्ण मण्डल की स्थापना करके उसको सौंप देना चाहिए ।
2. कर्मचारियों का चयन कार्य के अनुरूप किया जाना चाहिए ।
3. अच्छे तथा कुशल व्यक्तियों को प्राप्त करने के लिए चयन-कार्य केवल एक स्रोत से ही नहीं बल्कि सभी स्रोतों से किया जाना चाहिए ।
4. चयन-नीति लोचदार होनी चाहिए ताकि आवश्यकता के अनुसार उसमें पर्याप्त परिवर्तन किया जा सके ।
5. चयन-नीति पक्षपात रहित होनी चाहिए ।
6. अलग-अलग उद्योगों से आवश्यकतानुसार नीति को अपनाना चाहिए ।
7. संस्था में भिन्न-भिन्न स्तरों पर कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए एक जैसी नीति का पालन नहीं करना चाहिए ।
8. कर्मचारियों के चयन के लिए पहले से ही प्रमाप निश्चित कर लेने चाहिए इन प्रमापो के अनुरूप ही कर्मचारियों का चयन किया जाना चाहिए ।
9. चयन-नीति कर्मचारियों को व्यवसाय-सम्बन्धी मार्ग दिखाने वाली होनी चाहिए ।
10. चयन-नीति स्पष्ट एवं सुगम होनी चाहिए । द्विअर्थीय भाषा संस्था को समस्याओं के जाल में फँसा देती है ।
11. चयन-नीति संगठन के सिद्धान्तों एवं सरकारी नीति के अनुरूप होनी चाहिए ।
12. संस्था को अपने चयन-उद्देश्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए चयन-नीति का कठोरता के साथ पालन करना चाहिए ।
चयन-क्रिया विधि (Selection Procedure):
प्रत्येक संस्था के लिए कर्मचारियों का सही चुनाव करना अत्यन्त महत्वपूर्ण है । सही चुनाव करने से संस्था की कार्य-कुशलता में वृद्धि होती है, कर्मचारियों में स्थायित्व की भावना पनपती है, उनका मनोबल ऊँचा होता है तथा इससे संस्था अपने लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त कर सकती है ।
कर्मचारियों के सही चयन की विधियाँ निम्न हो सकती हैं:
1. आवेदन पत्र प्राप्त करना तथा उनकी जाँच करना (Scrutiny of Application):
सर्वप्रथम प्रार्थियों से आवेदन-पत्र मँगाए जाते हैं । इस आवेदन में प्रार्थियों से उनकी आयु, शैक्षिक योग्यता, अनुभव, अपेक्षित वेतन, आदि के बारे में सूचना माँगी जाती है ।
इसके पश्चात् इन आवेदन-पत्रों की गहनता से जाँच की जाती है तथा पूर्णत: अनुपयुक्त व्यक्तियों को इसी प्रारम्भिक अवस्था में छाँटकर अलग कर दिया जाता है ।
ऐसा करने से संस्था उनके सम्बन्ध में चयन क्रिया के अन्य कार्यों को नहीं करती, इससे समय व धन दोनों की बचत होती है । कुछ संस्थाएँ आवेदन-पत्र मँगाने के स्थान पर प्रारम्भिक साक्षात्कार करके अनुपयुक्त व्यक्तियों को छींट देती हैं ।
2. प्रारम्भिक साक्षात्कार (Preliminary Interview):
प्रारम्भिक साक्षात्कार का उद्देश्य यह निश्चित करना है कि प्रार्थी शारीरिक व मानसिक रूप से उस पद के लिए उपयुक्त है या नहीं इस प्रकार इस क्रिया से भी अनुपयुक्त प्रार्थियों को छाँटकर अलग कर दिया जाता है । प्रारम्भिक साक्षात्कार प्रत्येक दशा में आवश्यक नहीं होता है ।
3. रिक्त आवेदन-पत्र (Blank Application Forms):
प्रारम्भिक जाँच पड़ताल के पश्चात् संस्था प्रार्थियों को एक छपा खाली आवेदन-पत्र भेजती है । इस फार्म में प्रार्थियों से उनकी आयु, शैक्षिक योग्यता, अनुभव, वर्तमान कार्य का स्थान, वर्तमान वेतन, अपेक्षित वेतन आदि के बारे में अनेक बातें लिखित रूप से पूछी जाती हैं ।
आवेदन-पत्र जहाँ तक सम्भव हो संक्षिप्त तथा स्पष्ट होना चाहिए, जिससे प्रार्थी सही-सही सूचना दे सके । जब ये फार्म भर कर संस्था के पास पहुँच जाते हैं तो प्राप्त सूचनाओं को वर्गीकृत किया जाता है ।
जिन आवेदकों की योग्यताएँ व अनुभव आदि संस्था द्वारा निर्धारित चयन-योग्यता प्रमाप में कम होते हैं, उनको अस्वीकार कर दिया जाता है, यदि फिर भी आवेदकों (प्रार्थियों) की संख्या आवश्यकता से अधिक होती है तो चयन-योग्यता प्रमाप से स्तर को ऊँचा उठाकर संख्या को संस्था की वांछित संख्या के बराबर कर लिया जाता है ।
4. मनोवैज्ञानिक या चयन-परीक्षण (Psychological Tests):
किसी व्यक्ति की कार्य के लिए उपयुक्तता की जाँच करने के लिए परीक्षण भी किया जा सकता है । चुनाव प्रक्रिया में परीक्षण का विशेष महत्व होता है । परीक्षण द्वारा कर्मचारियों की शारीरिक एवं मानसिक योग्यता की जाँच की जा सकती है ।
परीक्षण के अनेक रूप हो सकते हैं:
(i) व्यापारिक अथवा विशिष्ट परीक्षण (Trade Tests):
यह परीक्षण विधि वहाँ प्रयोग में लाई जाती है जहाँ विशेष निपुणता व कुशलता की आवश्यकता होती है । इसमें प्रार्थी की उस कार्य को करने की योग्यता की जाँच करने के लिए इस प्रकार का परीक्षण किया जाता है ।
जैसे एक टाइपिस्ट (Typist) से टाइप करवाकर उसकी टाइप करने की गति की जाँच की जा सकती है, मिस्त्री से मशीन चलवाकर व मशीन के पुर्जों आदि के विषय में प्रश्न पूछकर उसके ज्ञान की जाँच की जा सकती है । इस परीक्षण से यह जानकारी प्राप्त होती है कि प्रार्थी उस कार्य को कितनी कुशलता से कर सकता है ।
(ii) बुद्धि या ज्ञान-परीक्षण (Intelligence Tests):
बुद्धि परीक्षण प्रार्थी के मानसिक स्तर (Mental Calibre) का पता लगाने के लिए किया जाता है । मानसिक स्थिति की जाँच में समझने तथा तर्क देने की क्षमता व बुद्धि की प्रमुख विशेषताओं का मूल्यांकन किया जाता है । बुद्धि-परीक्षण से प्रार्थी की विकास सम्भावनाओं (Growth Potential) का अनुमान लगाया जा सकता है ।
(iii) प्रवृत्ति-परीक्षण (Interest Tests):
रुचि-परीक्षण का उद्देश्य प्रार्थियों की कार्य के प्रति रुचि तथा व्यवहार को मापना है । जिस कार्य में उसकी रुचि है उसे वही कार्य दिया जाए । रुचि के अनुसार कार्य मिल जाने पर व्यक्ति अधिक कार्य कर सकता है ।
(iv) रुचि परीक्षण (Personality Test):
व्यक्तित्व परीक्षण सबसे जटिल होता है । इस परीक्षण से व्यक्ति के गुणों की जाँच की जाती है कि वह अपने सहयोगियों के साथ कैसा व्यवहार करता है, उसमें नेतृत्व (Leadership) के गुण हैं या नहीं । इस परीक्षण का प्रयोग पर्यवेक्षकों (Supervisors) तथा उच्च श्रेणी के व्यक्तियों के चयन के लिए किया जाता है ।
5. साक्षात्कार (Interview):
विभिन्न प्रकार के परीक्षणों के पश्चात् सफल प्रार्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया जाता है । साक्षात्कार चयन करने की अत्यन्त लोकप्रिय तथा प्रचलित प्रणाली है । साक्षात्कार में प्रार्थियों को सामने बैठाकर प्रश्न पूछे जाते हैं ।
साक्षात्कार का उद्देश्य प्रार्थी की मुद्रा, बातचीत करने का तरीका, हाव-भाव, जागरूकता, हाजिर जवाबी, परिपक्वता आदि की जाँच करना है । यदि साक्षात्कार करने वाले कुशल एवं अनुभवी व्यक्ति हैं तो वे प्रार्थी के सम्पूर्ण व्यक्तित्व की जाँच कर सकते हैं ।
वैज्ञानिक चयन (Scientific Selection):
उद्योग में व्यक्तिगत कार्यक्षमता विकसित करने में प्रथम तथा सर्वाधिक महत्वपूर्ण चरण कार्य के प्रति कर्मचारी को कार्य पर लगाना होता है । कर्मचारियों का वैज्ञानिक चयन कार्मिक विभाग का एक महत्वपूर्ण कार्य होता है ।
वैज्ञानिक चयन का उद्देश्य प्रत्येक कार्य पर एक श्रमिक स्थापित करना जो ऊर्जा के न्यूनतम व्यय के साथ एक निर्दिष्ट उत्पादन बनाये रख सके तथा जो कार्य के लिए सर्वोत्तम सिद्ध हो सके ।
सही कार्य के लिए सही व्यक्ति को चुनने के लिए विचारणीय घटक हैं:
1. शारीरिक लक्षण (Physical Characteristics)- स्वस्थ शरीर, ऊँचाई, भार, दृष्टि तथा अन्य शारीरिक गुण ।
2. व्यक्तिगत लक्षण (Personal Characteristics)- आयु, लिंग, वैवाहिक स्थिति, बच्चों की संख्या, पारिवारिक पृष्ठभूमि, आदि ।
3. वाक्पटुता या चातुर्य तथा योग्यता (Proficiency or Skill and Ability)-योग्यताएँ तथा विगत अनुभव ।
4. दक्षता (Competency)- कार्य में सीखने तथा पटुता पाने के लिए एक व्यक्ति की सम्भाविता दक्षता कार्य पर सफलता हेतु ज्ञान तथा चातुर्य पाने के लिए क्षमता को इंगित करती है ।
5. स्वभाव तथा चरित्र (Temperament and Character):
भावनात्मक, नैतिक तथा सामाजिक गुण, ईमानदारी, स्वामीभक्ति आदि भारी मात्रा की बुद्धिगम्य दक्षता कभी भी ऐसे गुणों के लिए एक विकल्प की भूमिका नहीं निभा सकती है जैसे ईमानदारी तथा विश्वास ।
यह व्यक्ति के चरित्र, उसकी काम की आदतें, इस या उस स्थिति में प्रतिक्रिया करने का उसका तरीका कार्य के लिए उसकी उपयुक्तता के निर्धारण में उसकी प्रचालन शक्तियों के बारे में जानने के लिए महत्वपूर्ण होती हैं ।
6. रुचि (Interest)- बिना रुचि के काम नीरस हो जाता है । रुचि के साथ काम व्यक्ति को सार्थक तथा उपादेय जान पड़ता है तथा योग्यताएँ विकसित की जाती हैं साथ ही अभिप्राप्तियाँ प्राप्त कर ली जाती हैं ।
यदि एक व्यक्ति में चातुर्य होता है तथा दक्षता होती है लेकिन यदि उसकी काम में रुचि नहीं होती है तो वह अपने काम में खुशी अनुभव नहीं करेगा ।