Read this article in Hindi to learn about the traditional methods of performance appraisal along with its criticism.

असंरचित मूल्यांकन (Unstructured Appraisal):

इसके अन्तर्गत मूल्यांकनकर्त्ता से अपेक्षा की जाती है कि एक असंरचित तरीके से मूल्यांकन के अन्तर्गत चल रहे कर्मचारी के बारे में अपने मनोभावों को लिखता जाये ।

वैसे कुछ संगठनों में टिप्पणियों को विशिष्ट शीर्षकों के अन्तर्गत ग्रुप किया जाना होता है जैसे कार्य निष्पत्ति की गुणवत्ता, विशिष्ट कार्य व्यवहारों के लिए कारण, व्यक्तित्व गुण तथा विकास आवश्यकताएँ । यह प्रणाली अत्यन्त व्यक्तिनिष्ठ होती है तथा सरलता ही इसका एकमात्र लाभ हो सकता है । लेकिन छोटी-छोटी फर्मों में यह अभी भी चलन में है ।

योग्यता क्रम विधि (Ranking Method):

इस विधि में कर्मचारियों को उनके कार्य और व्यवहार के आधार पर योग्यता-क्रम में रखा जाता है । सबसे कुशल कर्मचारी को प्रथम तथा सबसे अकुशल को अन्तिम क्रम संख्या दी जाती है ।

यह योग्यता अंकन की सरल विधि है परन्तु इसमें पर्यवेक्षक के विवेक तथा पक्षपात से योग्यता अंकन प्रभावित होती है । यह विधि ऐसी संस्था में ही उपयोगी हो सकती है जहाँ कर्मचारियों की संख्या कम हो और पर्यवेक्षक आसानी से उन्हें क्रमबद्ध कर सकें ।

इस विधि को अधिक निष्पक्ष बनाने के लिए कभी-कभी कर्मचारियों को दो-दो के समूहों में बाँटकर उनका तुलनात्मक मूल्यांकन किया जाता है जैसे, ‘क, ख’ और ‘ग, घ’ का सापेक्षिक मूल्यांकन । इसे युगल तुलना विधि (Paired Comparison Method) भी कहते हैं ।

रेखाचित्रीय माप-क्रम (Graphic Rating Scale):

रेखाचित्रीय मापक्रम एक चित्र है जिस पर कर्मचारी का प्रत्येक गुण तथा उसके स्तर को बताने वाली संख्याएँ लिखी होती हैं । इन संख्याओं को विभिन्न श्रेणियों में बाँटा जाता है जैसे निम्न, औसत, श्रेष्ठ, सर्वश्रेष्ठ आदि ।

योग्यता का अंकन करने वाला व्यक्ति अंक पर निशान लगा देता है । प्रत्येक गुण के लिए निशान लगाये जाने के बाद अंकों को जोड़ लिया जाता है । इस प्रकार प्रत्येक कर्मचारी की योग्यता का अंकन हो जाता है ।

यह विधि वैज्ञानिक व तुलनात्मक अध्ययन पर आधारित है । यह सरल व परिमाणिक तरीका है लेकिन इसमें सभी गुणों को समान महत्व दिया जाता है जो उचित नहीं है । व्यवहार में अधिकांश कर्मचारियों को औसत श्रेणी में रखा जाता है ।

बलात वितरण विधि (Forced Distribution Method):

इस पद्धति के अन्तर्गत कर्मचारियों का विभिन्न गुणों के आधार पर उनकी सम्पूर्ण योग्यता (कार्य निष्पादन एवं पदोन्नति क्षमता) के आधार पर मूल्यांकन करने पर मूल्यांकन करने वाले व्यक्ति को अपना मूल्यांकन कई श्रेणियों में विभाजित करना पड़ता है जैसे निम्नतम, निम्न, औसत, श्रेष्ठ व सर्वश्रेष्ठ ।

इस प्रकार से क्रमश: 10%, 20%, 40%, 20% व 10% कर्मचारियों को रखा जाता है । इस प्रकार कर्मचारियों की तुलनात्मक मूल्यांकन हो जाता है तथा पक्षपात की सम्भावना कम हो जाती है ।

बलात चयन पद्धति (Force Choice Method):

इस विधि के अन्तर्गत विभिन्न गुणों के पक्ष व विपक्ष में व्यक्तव्य दिये होते हैं और योग्यता अंकन करने वाला उस वक्तव्य पर निशान लगाता है ।

जो कर्मचारी के व्यवहार का भी प्रतिबिम्ब हो-

यह विधि अपेक्षाकृत अधिक निष्पक्ष है किन्तु इसमें परिमाणात्मक मूल्यांकन नहीं हो पाता । इसमें समय भी अधिक लगता है और कर्मचारी इसे आसानी से समझ भी नहीं पाता है ।

भारित चैक सूची (Weighted Check List):

इस पद्धति के अन्तर्गत विभिन्न विवरणों को ऐसे तरीके से तैयार किया जाता है कि वे किसी कार्य विशेष के लिए व्यवहारों के विभिन्न प्रकारों तथा स्तरों का वर्णन कर सकें । प्रत्येक विवरण के साथ एक मापांकन मूल्य (Scale Value) जोड़ दिया जाता है ।

कर्मचारी का आकलन करते समय अधीक्षक सभी विवरणों को मात्र जुटाता है तथा जाँच करता है । व्यक्तिगत गुणों के साथ भारों या मूल्यों के जोड़े जाने के बाद इस स्तर तक की रेटिंग को रेटिंग शीट पर एकत्रित कर लिया जाता है । फिर भारों का औसत निकाला जाता है तथा कर्मचारी का मूल्यांकन किया जाता है ।

भारित चैक सूची को कार्य से भली प्रकार परिचित व्यक्तियों द्वारा ही तैयार किया जाना चाहिये तथा उनको विवरणों की रचना तथा उनके उत्तोलन में निपुण होना चाहिये । जब यह प्रक्रिया समाप्त हो तो अलग कार्डों पर रेटिंग रखी जाती है । फिर इन कार्डों को रेटर्स द्वारा सॉर्ट आऊट किया जाता है जो वास्तव में कार्य के निष्पादन का अवलोकन करते हैं । वे कर्मचारियों को Poor से Excellent के बीच मूल्यांकन हैं । फिर कथनों को उस तरीके से भार किये जाते हैं जैसा रेटर्स ने उनका मूल्यांकन किया है ।

इस विधि में सुपरवाईजर को रेटिंग के लिए आधार पर अस्पष्ट प्रभावों (Vague Impressions) को एकत्र करते जाने की आज्ञा नहीं दी जाती । इसी कारण यह व्यवहार के अत्यन्त विशिष्ट प्रकारों के तौर पर सुपरवाईजर को सोचने के लिए विवश कर देती है ।

इस विधि में कर्मचारियों के मूल्यांकन की एक लम्बी प्रक्रिया शामिल है । यह सुपरवाईजर से कुछ योग्यताओं को पूरा करने की माँग करती है उस कार्य के सम्बन्ध में जिसको देखने के लिए उसको सौंपा गया है । साथ ही यह विधि काफी महँगी भी है ।

यह संगठन के वित्तीय संसाधनों विशेषत: कार्मिक विकास के दम पर को भी प्रभावित करती । वित्तीय भार और बढ़ जाता है जब विभिन्न पदों का मूल्यांकन किया जाता है क्योंकि प्रत्येक पद के लिए एक अलग-अलग प्रक्रिया स्थापित की जानी चाहिये ।

निर्णायक घटना विधि (Critical Incident Method):

इस पद्धति में योग्यता का अंकन कुछ अत्यन्त महत्वपूर्ण व विशेष परिस्थितियों में कर्मचारियों द्वारा प्रदर्शित व्यवहार के आधार पर किया जाता है । इससे योग्यता का अंकन करने वाले के व्यक्तिगत विचारों तथा पक्षपात का प्रभाव कम हो जाता है । प्रत्येक कर्मचारी की असाधारण सफलता या असफलता का पता चल जाता है और मूल्यांकन का ठोस प्रमाण होता है ।

इसके लिए संस्था में होने वाली घटनाओं की सूची बनाई जाती है:

यह विधि प्रत्येक सुपरवाईजर से अपेक्षा करती है कि प्रत्येक कर्मचारी के व्यवहार में ऐसी सभी महत्वपूर्ण घटनाओं को रिकॉर्ड करें जो प्रभावी तथा सफल कार्यवाही का संकेत दे तथा ऐसी घटनाएँ जो अप्रभावी या घटिया व्यवहार को स्पष्ट करें ।

इनको एक विशिष्टत: अभिकल्पित नोटबुक में रिकॉर्ड किया जाता है जिसमें ऐसी श्रेणियों या लक्षणों का समावेश होता है जिनमें विभिन्न व्यवहारों को रिकॉर्ड किया जा सकता है ।

कर्मचारियों के लिए ऐसे प्रकारों की कार्य अपेक्षाओं के उदाहरण हैं निर्णयन (Judgment), सीखने की क्षमता (Learning Ability), उत्पादकता (Productivity), भरोसा (Dependability), कार्य में शुद्धता (Accuracy of Work), उत्तरदायित्व तथा पहल भावना (Responsibility and Initiative) ।

इन सभी का दैनिक अभिलेखन आवश्यक होता है अन्यथा अधीक्षक अपने अधीनस्थों के साथ घटनाओं को भूल सकता है । इस विधि में, अधीक्षक से अपेक्षा की जाती है कि कुल मिलाकर निर्णय देने से परहेज करें तथा जो कुछ उसने देखा है उन तथ्यों के आधार पर विचार-विमर्श पर संकेन्द्रित हो ।

सैद्धान्तिक तौर पर, इसको किसी कर्मचारी की निष्पत्ति के आकलन हेतु एक वस्तुनिष्ठ आधार प्रदान करना चाहिये । वस्तुत: यह विधि (Critical Incident Method) एक रेटिंग विधि नहीं है क्योंकि यह अधीक्षक से माँग करती है कि जो भी एक कर्मचारी कर रहा है उस पर गहन ध्यान दे ।

यह विधि इस दोष से ग्रस्त है कि विचित्र घटना इतनी आवृत्ति के साथ होती है कि व्यक्ति का आकलन किन्हीं भी दो समय अवधियों के बीच किसी विशेष अन्तर को सामने नहीं ला पाता ।

यह भी देखा गया है कि अधिकांश समय कर्मचारियों के पास न तो धनात्मक घटना होती है और न ही ऋणात्मक । यदि कोई महत्वपूर्ण घटना होती ही नहीं तो किसी कर्मचारी की रेटिंग करनी कठिन हो जायेगी । साथ ही यह निर्णय लेना भी एक अधीक्षक के लिए कठिन हो जायेगा कि महत्वपूर्ण या अपवादात्मक घटना कौन सी है ।

यहाँ पुन: महत्वपूर्ण घटना की रिकॉर्डिंग में मानवीय पक्षपात आयेगा ही । इस गलती से बचने के लिए Gerald Whitlock ने एक जाँच सूची तैयार की है जिसमें अनेक व्यवहार घटनाएँ शामिल हैं जिसको Uncommonly, Ineffective : or Effective कार्य व्यवहार के उदाहरणों के रूप में देखा जाता है ।

इस जाँच सूची को बनाने में सामान्य प्रक्रिया होती है इस क्षेत्र के किसी विशेषज्ञ से व्यवहार घटनाओं को जुटायें । ऐसे निष्पत्ति व्यवहारों की 80 से 150 घटनाओं तक है, जो प्रभावी तथा अप्रभावी व्यवहारों में समान तौर पर वर्गीकृत हैं ।

अवलोकन अथवा क्षेत्र जाँच पद्धति (Observation or Field Review Method):

इस विधि के अन्तर्गत एक पर्यवेक्षक या विशेषज्ञ काम करते समय कर्मचारियों का अवलोकन करता है और अपने निर्णय के आधार पर उनका मूल्यांकन करता है । कभी-कभी वह कर्मचारियों वह साथ साक्षात्कार भी करता है ।

यह विधि यद्यपि मितव्ययी है किन्तु इसमें पक्षपात की अत्यधिक सम्भावना रहती है । यह तभी उपयोगी सिद्ध हो सकती है जब अंकन करने वाले व्यक्ति पूर्णतया प्रशिक्षित तथा निष्पक्ष हो ।

क्षेत्र जाँच पद्धति की सफलता साक्षात्कारकर्त्ता के कौशल पर निर्भर करती है । यदि वह अपने काम में निपुण है तो वह सही-सही मूल्यांकन के प्रति महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है । यह विधि अधीक्षक को Appraisal Forms को भरने के नीरस लेखन कार्य से मुक्त करती है ।

यह इस बात की सम्भावना का आश्वासन देती है कि अधीक्षक मूल्यांकन के प्रति पर्याप्त ध्यान देंगे क्योंकि कार्मिक विभाग व्यापक तौर पर प्रक्रिया का नियंत्रण करता है । यदि मूल्यांकनकर्ता गहराई से छानबीन करता है तो अतिरंजित निर्णयों को निराकरण किया जा सकता है ।

परम्परागत विधियों की आलोचना (Criticism of Traditional Methods):

परम्परागत निष्पादन मूल्यांकन प्रणालियों की आलोचना की जाती है कि वे अपनी प्रवृत्ति में अत्यधिक व्यक्तिनिष्ठ हैं क्योंकि वे सभी रेटर के व्यक्तिगत निर्णय पर आधारित हैं ।

व्यक्तिगत निर्णय सदैव ही व्यक्तिगत पक्षपात या प्राथमिकता का शिकार होता है एवं साथ ही कई क्षेत्रों से उस पर दबाव भी पड़ते हैं । मूल्यनकर्ता हो सकता है उचित प्रशिक्षण के अभाव में कर्मचारियों की दक्षता का सही-सही आकलन भी न कर पाये ।

परम्परागत प्रणालियों में अधीक्षक की निर्णयन भूमिका के कारण निष्पत्ति आकलन बहुधा अनेक कमियों तथा गलतियों का शिकार हो जाता है जिसमें से कुछ का नीचे वर्णन किया जा रहा है:

1. HALO विभ्रम (Halo Error):

इस प्रकार की गलती उत्पन्न हो जाती है जब रेटर एक व्यक्ति की निष्पत्ति या उसके चरित्र के किसी एक पहलू को सम्पूर्ण मूल्यांकन पर हावी होने देता है । अधिकांश रेटर्स की यह प्रवृत्ति होती है कि किसी एक लक्षण को इतना अधिक महत्व दे देते हैं कि अन्य सभी तदोपरान्त लक्षण गौण हो जाते हैं । अनेक अधीक्षक सभी घटकों पर एक कर्मचारी को लगभग एक-सी रेटिंग ही दे देते हैं ।

इस गलती को Factor Scales पर भली प्रकार देखा जा सकता है । निष्पादन मूल्यांकन की रेटिंग स्केल तकनीक विशेषत: इसकी शिकार हो जाती है जब सुपरवाईजर अपने सभी अधीनस्थों का मूल्यांकन अगले लक्षण पर जाने से पूर्व ही एकाकी गुण या लक्षण अथवा घटक पर कर लेता है । इस तरीके से प्रत्येक गुण पर एक-दूसरे को या एक मानक पर सापेक्षिक करके सभी कर्मचारियों पर विचार कर सकता है ।

2. केन्द्रीय प्रवृत्ति (Central Tendency):

गलती तब होती है जब रेटर अधीनस्थ के बारे में संदिग्ध होता है या उनकी उसको पूरी जानकारी नहीं होती या व रेटिंग प्रक्रिया को कम ही ध्यान देता है । इन्हीं कारणों से सामान्यत: रेटर्स लोगों को स्केल के बाहरी सिटों पर आँकने में तटस्थ हो जाते हैं ।

रेटर जानता है कि उसको अवधिगत अन्तरालों पर अपने अधीनस्थों का मूल्यांकन करना है । लेकिन यदि वह कुछ अधीनस्थों से अपरिचित है या उसके पास उनकी रेटिंग के लिए पर्याप्त समय नहीं है तो वह बिना प्रशंसा किये या बिना अस्वीकार किये सुरक्षित खेल-खेल सकता है ।

वह उनको औसत कह कर बात समाप्त कर देता है । इस प्रकार की रेटिंग के लिए यह सम्भव होता है अर्थात् All Averages to be a True Rating लेकिन इसकी सम्भावना इसकी आवृत्ति की अपेक्षा कम ही होती है ।

3. नरमी या कठोरता (Leniency or Strictness):

कुछ अधीक्षकों में नरमी से रेटिंग करने की जबकि कुछ में कठोरता से रेटिंग करने की प्रवृत्ति रहती है । उदार या नरम रेटर्स अपने अधीनस्थों को जरूरत से ज्यादा ऊँचे मूल्य दे देते हैं । जबकि कठोर रेटर्स निरन्तर नीची रेटिंग्स देते हैं ।

दोनों ही प्रवृत्तियाँ सुपरवाईजर्स के बीच निष्पत्ति के परिवर्तनीय मानदण्डों से उभर सकती हैं तथा कर्मचारी निष्पत्ति में उनके अवलोकन के विभिन्न निर्वचनों का सृजन कर सकती है ।

यदि एक उदार रेटर की रेटिंग्स को ग्राफ पर अंकित किया जाये तो यह एक Normal Curve में वितरित होगा लेकिन वह स्केल के केवल ऊपर अर्द्धांश को ही काम लायेगा ।

उसका औसत 7.5 होता है तथा कठोर रेटर स्केल के निचले भाग में रहेगा तथा उसका औसत होगा 3.5 । विभिन्न रेटर्स द्वारा कर्मचारियों के उसी ग्रुप की ऐसी रेटिंग्स हों तो पहले रेटर की 7.5 की रेटिंग दूसरे की 3.5 की रेटिंग की बराबर हुई ।

इस गलती को आशिक तौर पर सुपरवाईजर्स के शिक्षण द्वारा तथा उनके बीच मीटिंग्स आयोजित करा कर ठीक किया जा सकता है ताकि वे किसी ठहराव पर पहुँच सकें कि वे अपने अधीनस्थों से क्या कुछ आशा करते हैं ।

4. अद्यतन व्यवहार पक्षपात (Recent Behavior Bias):

बहुधा कुछ रेटर्स हाल के कुछ सप्ताहों में उनकी निष्पत्ति के आधार पर ही लोगों का मूल्यांकन देते हैं; औसत सतत व्यवहार चैक नहीं हो पाता । कुछ कर्मचारी इस प्रवृत्ति का लाभ उठाकर अच्छे परिणाम दिखाते हैं जब वे महसूस करते हैं कि उनको गहनता से देखा जा रहा है तथा उनकी निष्पत्ति की रिपोर्ट को जल्दी ही तैयार किया जाना है ।

5. विविध पक्षपात (Miscellaneous Biases):

अनेक मामलों में रेटर अपेक्षाकृत ऊँची रेटिंग्स दे सकता है क्योंकि वह समझता है कि यह उसके लिए ठीक नहीं लगेगा यदि अन्य विभागों के कर्मचारी उसके ग्रुप की तुलना में अधिक वेतन वृद्धियाँ ले जाते हैं ।

सुपरवाईजर्स अपने अधीनस्थों का मूल्यांकन Middle of the Spectrum (Average) के समीप करने की प्रवृत्ति दिखाते हैं यदि उनके बॉस उन पर दबाव डालते हैं कि कर्मचारी के औसत आकलन को ठीक करें या उन अधीनस्थों से पीछा छुड़ायें ।

कुछ सुपरवाईजर्स विपरीत लिंग के सदस्यों के प्रति पक्षपात दिखाते हैं या जाति, धर्म या राष्ट्रीयता को बढ़ावा दे देते हैं । वे वरिष्ठ कर्मचारियों को अपेक्षाकृत ऊँची रेटिंग्स दे देते हैं क्योंकि वे यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होते कि उनके नेतृत्व में उनमें सुधार नहीं आया है ।

अनेक बार एक रेटर संगठनात्मक पदस्थितियों से प्रभावित होता है तथा उनको कहीं अधिक रेटिंग्स दे देते हैं जो ऊँचे पदों पर आसीन हैं । अनेक लोगों ने विभिन्न आधारों पर परम्परागत तंत्रों की वैधता तथा विश्वसनीयता को चुनौती दी है लेकिन आधारभूत आलोचना अधीक्षक की निर्णयन भूमिका तथा अधीनस्थों के प्रतिरोधी प्रत्युत्तरों पर आधारित है ।

General Electrical Co., U.S.A. में मूल्यांकन तंत्रों के अध्ययन में विश्लेषकों ने देखा कि निष्पत्ति मूल्यांकन की परम्परागत प्रणालियों ने निम्न प्रत्युत्तरों को जन्म दिया:

(a) प्रणाली के स्वभाव से ही आलोचनाएँ उत्पन्न होती हैं ।

(b) आलोचना का लक्ष्यों की अभिप्राप्ति पर ऋणात्मक प्रभाव होता है ।

(c) आलोचना प्रतिरोध तथा रक्षात्मकता को बढ़ाती है जो अपेक्षाकृत घटिया निष्पत्ति की ओर ले जाती है ।

(d) एक से या दूसरी से प्रशंसा का हल्का प्रभाव होता है । इस अध्ययन में 92 परम्परागत मापांकनों पर आधारित मूल्यांकन साक्षात्कारों की समीक्षा की गई । औसत से अधिक आलोचना पाने वाले अधीनस्थों ने कम आलोचना पाने वालों की तुलना में 10 से 20 सप्ताहों में कम सुधार दिखाया । जब आधे पर्यवेक्षकों द्वारा वैकल्पिक व्यवहारवादी तंत्र को लागू किया गया तो अधीनस्थ प्रत्युतर पैटर्न में अन्तर अपरिवर्तित ही रहे ।

व्यवहारवादी पर्यवेक्षकों द्वारा किये गये मूल्यांकनों के आधीन लोगों द्वारा ऐसे मामलों पर अधिक अनुकूल रुझान रिपोर्ट किये गये जैसे प्राप्त मदद, अपने पर्यवेक्षकों का सम्मान, नियोजन हेतु पर्यवेक्षकों की योग्यता, वह मात्रा जिस तक उनकी योग्यताओं का उपयोग किया गया ।

इसीलिए यह देखा गया:

(i) कोचिंग दैनिक होनी चाहिए न कि वार्षिक गतिविधि ।

(ii) पारस्परिक लक्ष्य निर्धारण निष्पत्ति में सुधर लाता है, न कि आलोचना ।

(iii) लक्ष्य निर्धारण प्रक्रिया में कर्मचारी द्वारा भागीदारी अनुकूल परिणामों की सहायता करती है ।

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