Read this article in Hindi to learn about:- 1. Introduction to Wages and Salary Administration 2. Meaning of Wages and Salary Administration or Compensation Management 3. Principles 4. Characteristics.
मजदूरी एवं वेतन प्रशासन का आशय (Introduction to Wages and Salary Administration):
मजदूरी तथा वेतन अधिकांश संस्थाओं के उत्पादन लागत का एक मुख्य अंश होता है । मजदूरी प्रत्येक श्रमिक के लिए एक महत्वपूर्ण विषय रहता है । यह मजदूरी ही है जिसका प्रत्यक्ष सम्बन्ध उनके कार्य के स्तर से होता है । संस्था के प्रति मजदूरों की लगन एवं संस्था प्रबन्धन के प्रति उनका रवैया भी मजदूरी से जुड़ा होता है ।
श्रमिकों का जीवन स्तर, नैतिक स्तर तथा अन्य बातें भी मजदूरी से सम्बन्ध रखती हैं । अत: मजदूरी एवं वेतन वह धुरी है जिसके आसपास श्रम समस्याएँ घूमती रहती हैं । मजदूरों को कितनी मजदूरी दी जानी चाहिए यह हमेशा एक विवादपूर्ण विषय रहा है ।
अत: यह केवल आर्थिक समस्या नहीं है अपितु सामाजिक समस्या भी है । अत: प्रत्येक संस्था के लिए यह आवश्यक है कि वह मजदूरों को अपेक्षित मजदूरी दें ताकि वह संस्था से जुड़े रहें । लेकिन मजदूरी का निर्धारण उतना आसान नहीं है जितना यह दिखता है ।
उद्यमी यह चाहता है कि उसे श्रमिकों को कम से कम भुगतान करना पड़े तथा श्रमिकों की यह इच्छा रहती है कि अधिक से अधिक मजदूरी प्राप्त कर सके । मजदूरों की सन्तुष्टि एवं उद्यमी के हित इन दोनों के बीच सामंजस्य रखना अति आवश्यक है ।
अत: यह आवश्यक है इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मजदूरी एवं वेतन प्रशासन स्थापित किया जाए । यह प्रत्येक औद्योगिक संस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया जाना चाहिए ।
मजदूरी एवं वेतन प्रशासन का अर्थ या क्षतिपूर्ति प्रबन्धन (Meaning of Wages and Salary Administration or Compensation Management):
श्रमिकों की क्षतिपूर्ति को दो हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है:
(A) आधारभूत क्षतिपूर्ति (Base Compensation),
(B) क्षतिपूर्ति (Supplementary Compensation) ।
आधारभूत से आशय एक श्रमिक को दिये जाने वाले मौद्रिक लाभों से है जो सामान्यत: उसके कार्य की प्रगति से सम्बन्धित होते हैं । अनुषंगी (Fringe) से आशय श्रमिकों को दिए जाने वाले लाभों से है जो सामान्यत: उसके कार्य की प्रगति से सबंधित होते हैं ।
अनुषंगी लाभों (Fringe Benefits):
अनुषंगी लाभों से तात्पर्य उन सुविधाओं से है जो नियाक्ता द्वारा श्रमिक एवं उसके परिवार के सदस्यों को दी जाती हैं । उसके मुख्य उदाहरण हैं; प्रोविडेण्ड फण्ड, ग्रेच्यूटी, लाभांश, पेंशन, श्रमिक, क्षतिपूर्ति, घर, स्वास्थ्य, सुविधाएं, कैन्टीन, उपभोक्ता स्टोर, शिक्षा सुविधाएं, वित्तीय सलाह आदि ।
इन लाभों एवं सुविधाओं को देने का मुख्य उद्देश्य औद्योगिक शान्ति बनाए रखना है । इससे श्रमिकों का मनोबल भी बढ़ता है और वह अधिकतम कार्यकुशलता से कार्य करते हैं । इससे वह संस्था के प्रति अपनत्व की भावना भी महसूस करते हैं ।
यह लाभ कार्य की गुणवत्ता बनाए रखने तथा उसे बढाने में भी सहायता करते हैं । श्रमिकों में सामाजिक सुरक्षा की भावना भी इससे जागृत होती है । अत: यह सुविधाएँ मजदूरी तथा वेतन के अतिरिक्त होने के बावजूद भी अत्यन्त महत्वपूर्ण होती हैं ।
अत: क्षतिपूर्ति एक व्यापक शब्द है जिसमें श्रमिकों को दिए जाने वाले मौद्रिक एवं गैर-मौद्रिक लाभों को सम्मिलित किया जाता है । क्षतिपूर्ति में लाभांश, कमीशन, लाभ-भागिता शामिल होते हैं जो श्रमिकों को कार्य के लिए प्रोत्साहित करते हैं ।
कुछ अन्य लाभ; जैसे- बीमा, स्वास्थ्य, सुविधा, आदि अप्रत्यक्ष रूप में मजदूरी एवं वेतन का अंश बनती है । अत: मजदूरी एवं वेतन एक व्यापक अवधारणा है जिसमें वेतन, अप्रत्यक्ष लाभ, प्रत्यक्ष लाभ आदि सभी शामिल किये जाते हैं ।
यह वित्तीय सुविधाओं के अतिरिक्त प्रेरणात्मक तत्वों से भी सम्बन्धित होता है । यह सही कहा गया है कि मनुष्य जो भी कार्य करते हैं, किसी आवश्यकता की सन्तुष्टि के लिए ही होता है । इसके लिए वे अवश्य ही इसके प्रतिफल को भी देखते हैं । यह प्रतिफल मौद्रिक या तरक्की या पहचान या एक मुस्कान के रूप में भी हो सकते हैं ।
मजदूरी एवं वेतन प्रशासन के सिद्धान्त (Principles of Wages and Salary Administration):
एक प्रभावी मजदूरी एवं वेतन प्रणाली स्थापित करना कर्मचारी विभाग का एक मुख्य कार्य होता है । यह प्रभावी व्यवस्था अच्छे श्रमिकों को प्राप्त करने, उन्हें बनाये रखने तथा पूर्ण कार्यक्षमता से कार्य करने के लिए प्रेरित करती है ।
एक पूर्व नियोजित मजदूरी एवं वेतन व्यवस्था नियोक्ता, श्रमिकों, समाज तथा उपभोक्ता को बहुत से लाभ प्रदान करती है । अत: इस व्यवस्था का निर्धारण सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए । इसके निर्धारण के समय कुछ आधारभूत सिद्धान्तों को ध्यान में रखा जाना चाहिए ।
इसके कुछ मुख्य सिद्धान्त अग्रलिखित हैं:
(1) मजदूरी नीति का निर्धारण श्रमिकों, नियोक्ताओं, उपभोक्ताओं एवं समाज को मिलने वाले लाभों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए ।
(2) एक ही उद्योग में काम करने वाले समान कुशलता एवं अनुभव वाले कर्मचारियों की मजदूरी दर समान रखी जानी चाहिए ।
(3) विभिन्न कार्यों के वेतन में अन्तर के लिए न्यायोचित आधार तैयार किये जाने चाहिए । अन्य शब्दों में इस व्यवस्था में लचीलापन शामिल होना चाहिए ।
(4) एक स्वीकार्य नीति वह होती है जो अपने संस्था के प्रतियोगियों के स्तर को भी ध्यान में रखती है ।
(5) मजदूरी नीति निर्धारित करते समय संस्था के उद्देश्यों को अवश्य ही ध्यान में रखा जाना चाहिए । हमेशा यह प्रयास रहना चाहिए कि संस्था की आधारभूत नीति एवं वेतन नीति एक ही दिशा में कार्यरत हों ।
(6) मजदूरी तथा वेतन नीति सदैव लिखित में होनी चाहिए ताकि एकरूपता एवं स्थायित्व स्थापित रहे । इसी तरह से सरकारी नियमों का भी पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए ।
(7) मजदूरी योजना एक साधारण रूप में होनी चाहिए ताकि अनावश्यक परेशानियों से बच जा सके । दूसरी तरफ यह प्रशासनिक कार्यों में बाधा उत्पन्न करने वाली नहीं होनी चाहिए ।
(8) मजदूरी नीति का समय-समय पर मूल्यांकन किया जाना चाहिए । इसमें औद्योगिक तथा सामाजिक वातावरण में होने वाले परिवर्तनों को शामिल किया जाना चाहिए ।
(9) नीति निर्धारण करते समय अर्थव्यवस्था (आर्थिक) नीति की अवहेलना नहीं होनी चाहिए । आर्थिक नीति का मुख्य उद्देश्य समाज में आय का समान विरण, कीमत स्थिरता, जीवन-स्तर में वृद्धि आदि हो सकते हैं । इन आर्थिक उद्देश्यों को इस नीति से जोड़ा जाना चाहिए ।
(10) श्रमिकों की भावनाओं एवं आशाओं का सम्पूर्ण सम्मान किया जाना चाहिए । श्रमिक तथा श्रमिक संघों को भी नीति निर्धारण के समय विश्वास में लिया जाना चाहिए ।
आदर्श मजदूरी प्रणाली की विशेषताएँ (Characteristics/Essentials of an Ideal Wage System):
एक आदर्श मजदूरी प्रणाली/पद्धति में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए:
(1) दोनों पक्षों के लिए हितकारी:
मजदूरी प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जिससे श्रमिकों एवं नियोक्ता दोनों को लाभ पहुँचे । ऐसा तभी सम्भव है जब मजदूरी प्रणाली श्रमिकों के सहयोग से अपनाई जाए ।
(2) न्यूनतम मजदूरी निश्चित होनी चाहिए:
आदर्श प्रणाली में मजदूरी की न्यूनतम सीमा निश्चित होनी चाहिए जिससे नियोक्ता, श्रमिकों का शोषण न कर सकें । साथ ही न्यूनतम सीमा इतनी अवश्य होनी चाहिए जिससे श्रमिक अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सके ।
(3) सरलता:
मजदूरी प्रणाली का सरल होना भी आवश्यक है जिससे श्रमिक को ज्ञात हो सके कि उसको कितना काम करने के पश्चात् कितनी मजदूरी मिलेगी साथ ही नियोक्ता को भी श्रम-लागत (Labour Cost) की गणना में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए ।
(4) स्थायित्व:
श्रमिकों को दी जाने वाली मजदूरी स्थायी होनी चाहिए । अस्थायी तथा परिवर्तनशील मजदूरी में श्रमिकों का विश्वास नहीं होता और वे इसका विरोध भी करते हैं ।
(5) श्रमिकों को योग्यतानुसार मजदूरी (Wages According to the Ability of Labour):
श्रमिकों को मजदूरी उनकी कार्यक्षमता के अनुसार मिलनी चाहिए जिससे अधिक कार्यक्षम श्रमिकों में अधिक काम करने की इच्छा प्रबल हो ।
(6) निश्चित आधार (Fixed Base):
मजदूरी भुगतान का कोई-न-कोई निश्चित आधार अवश्य होना चाहिए । ऐसा होने पर मजदूरी की राशि की गणना सरलता से निर्धारित हो जाएगी, साथ ही कोई वाद-विवाद भी पैदा नहीं होगा ।
(7) प्रणाली प्रेरणात्मक होनी चाहिए (It Should be Incentive Method):
मजदूरी प्रणाली इस प्रकार की होनी चाहिए जिसमें कुशल व अकुशल कर्मचारियों के बीच अन्तर किया जा सके । परिश्रमी, उत्साही व उत्पादक कर्मचारियों को अधिक पारिश्रमिक दिया जाना चाहिए ।
(8) औद्योगिक शान्ति की स्थापना (Establishment of Industrial Peace):
व्यावसायिक क्षेत्र में नियोक्ता एवं मजदूरों के बीच अधिकांश झगड़े मजदूरी के प्रश्न को लेकर ही उत्पल होते हैं । अत: मजदूरी प्रणाली में ऐसी कोई बात नहीं होनी चाहिए जिसके कारण श्रमिकों में असन्तोष पैदा हो ।
(9) व्यावहारिक (Practical):
मजदूरी प्रणाली की सफलता के लिए यह भी आवश्यक है कि वह व्यावहारिक हो अर्थात् उसे सफलतापूर्वक लागू किया जा सकता हो ।
(10) शिकायत का निपटारा (Settlement of Complaints):
मजदूरी प्रणाली में इस प्रकार की व्यवस्था होनी चाहिए जिससे कोई भी व्यक्ति जिसे वेतन के विषय में कोई भी शिकायत है, वह अपनी शिकायत सम्बन्धित प्रबन्धकों तक पहुँचा सके । साथ ही ऐसी शिकायतें सुनने, उनकी विस्तृत जाँच करने एवं दिए गए निर्णयों के अनुसार परिवर्तन करने के लिए भी उपयुक्त मशीनरी होनी चाहिए ।