Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning and Definitions of Wages 2. Characteristics of Wages 3. Levels 4. Determining Factors 5. Basis 6. Advantages.
Contents:
- मजदूरी का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Wages)
- मजदूरी के लक्षण अथवा विशेषताएँ (Characteristics of Wages)
- मजदूरी के स्तर (Levels of Wages)
- मजदूरी निर्धारक घटक (Wage Determining Factors)
- सुदृढ़ मजदूरी प्रशासन के लिए आधार (Basis for Sound Wage Administration)
- उचित मजदूरी भुगतान कार्यक्रम के लाभ (Advantages of Fair Wage Payment Programme)
1. मजदूरी का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Wages):
आज के मशीनीकरण के युग में जिस तरह से प्रशिक्षित श्रम का महत्व बढ़ा है, इसी तरह से मजदूरी की समस्याएं भी जटिल हो गई हैं । उद्योग का वह दौर समाप्त हो चुका है जब नियोक्ता अपनी मर्जी से मजदूरी का निर्णय लेता था । आज मजदूरी औद्योगिक विवाद का विषय बनता है ।
अत: नियोक्ता को इसका निर्णय सावधानी से लेना होता है क्योंकि यह श्रमिकों की सन्तुष्टि को भी व्यक्त कराता है । यह श्रमिक सन्तुष्टि ही है जो उसे कार्य के प्रति उत्तरदायी बनाती है तथा यह एक साधन भी है जो नियोक्ता को अधिकतम लाभ भी पहुँचाता है ।
साधारण बोलचाल की भाषा में मजदूरी का अर्थ श्रमिकों द्वारा प्रदान की गई सेवाओं के बदले में प्राप्त होने वाले प्रतिफल से है । यह दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, प्रति घण्टा अथवा प्रति इकाई हो सकती है । श्रमिकों द्वारा प्रदान की गई सेवाओं के अन्तर्गत शारीरिक एवं मानसिक दोनों प्रकार की सेवाएं सम्मिलित होती हैं ।
मजदूरी की कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं:
(1) बेन्हम के अनुसार- ”मजदूरी एक अनुक्रम के अन्तर्गत दी गई वह राशि है जो नियोक्ता द्वारा श्रमिकों को उसकी सेवाओं के बदले में दी जाती है ।”
(2) जोड के अनुसार- ”मजदूरी वह आय है जो एक कर्मचारी को उसके काम के बदले में प्राप्त होती है ।”
(3) प्रो. मैकोनेल के अनुसार- “श्रम के उपयोग के बदले में दी गई कीमत को मजदूरी कहा जाता है ।”
(4) प्रो. स्ट्रेटाफ के अनुसार- “मजदूरी उस श्रम का पुरस्कार है जो उपयोगिता का सृजन करता है ।”
(5) टोडर एवं हैनसैन के अनुसार- “मजदूरी उन श्रमिकों एवं अन्य कर्मचारियों को दी गई क्षतिपूर्ति है, जो अपने नियोक्ता के लिए वस्तुएँ एवं सेवाएं उपलब्ध करते हैं तथा उत्पादन कार्यों के लिये नियोक्ता के उपकरणों का प्रयोग करते हैं ।”
(6) अन्तर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन के अनुसार- “मजदूरी किसी श्रमिक की सेवाओं के लिए जिसे प्रति घण्टा, दैनिक, साप्ताहिक या पाक्षिक भुगतान की शर्तों पर नियुक्त किया गया है, नियोक्ताओं द्वारा चुकाया गया भुगतान है ।”
उपयुक्त परिभाषा- ”मजदूरी से आशय उस पुरस्कार से है जो श्रमिक द्वारा प्रदान की गई सेवाओं के प्रतिफल में नियोक्ता से प्राप्त होता है तो साप्ताहिक, पाक्षिक, प्रति घण्टा या प्रति इकाई होता है । इसमें भत्ते भी सम्मिलित होते हैं ।”
2. मजदूरी के लक्षण अथवा विशेषताएँ (Characteristics of Wages):
(1) मजदूरी का भुगतान श्रमिक एवं नियोक्ता को प्रदान की गई सेवाओं का प्रतिफल है ।
(2) मजदूरी श्रमिक द्वारा अपने नियोक्ताओं को प्रदान की गई सेवाओं का प्रतिफल है ।
(3) मजदूरी नकद अथवा वास्तविक होती है ।
(4) मजदूरी साप्ताहिक, मासिक, पाक्षिक, प्रति घण्टा या प्रति इकाई होती है ।
(5) मजदूरी उपयोगिता का सृजन करती है ।
(6) मजदूरी में भत्ते भी सम्मिलित होते हैं ।
(7) मजदूरी में परिवर्तन कार्य के घण्टों के अनुरूप हो सकता है ।
(8) मजदूरी का निर्धारण समय अथवा कार्य के अनुसार किया जाता है ।
3. मजदूरी के स्तर (Levels of Wages):
मजदूरी के सम्बन्ध में उचित मजदूरी समिति ने निम्न स्तर बताये हैं:
(1) न्यूनतम मजदूरी (Minimum Wage):
न्यूनतम मजदूरी से आशय उस मजदूरी की दर से है जो श्रमिकों तथा उनके परिवार के पालन-पोषण के योग्य हो तथा उनकी चिकित्सा, शिक्षा व मनोरंजन की व्यवस्था कर सकें । अखिल भारतीय सेवायोजक संगठन के अनुसार- ”न्यूनतम मजदूरी वह मजदूरी है जो श्रमिक तथा उसके परिवार की भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करें ।”
(2) उचित मजदूरी (Fair Wage):
सामाजिक ज्ञान शब्दकोष के अनुसार उचित मजदूरी वह मजदूरी है जो श्रमिकों को समान कुशलता कठिन व अरुचिकर कार्यों के लिए प्राप्त होती है । यह मजदूरी संस्था द्वारा किसी प्रामाणिक स्तर पर निर्धारित की जाती है ।
मार्शल के अनुसार किसी उद्योग में उचित मजदूरी उस मजदूरी की सापेक्षिक है जो सामान्यत: उद्योग में पायी जाए । यदि श्रम की माँग की स्थिरता में पाये जाने वाले अन्तर का ध्यान रखा जाए तो मजदूरी की दर का स्तर अन्य उद्योगों में समान कठिन और अरुचिकर कार्य के लिए दिये गये द्रव्य के बराबर होगी, जिसमें समान स्वाभाविक शक्तियों व समान व्यय की परीक्षा की आवश्यकता पड़ती है ।
(3) निर्वाह मजदूरी (Living Wage):
भारतीय संविधान के नीति निदेशक तत्वों (राज्य) की धारा 43 के अनुसार- ”राज्य सभी कर्मचारियों को निर्वाह मजदूरी प्रदान करेगा ।” न्यायाधीश हिगिन्स के अनुसार- “निर्वाह मजदूरी वह मजदूरी है जो श्रमिक की भोजन, आवास, वस्त्र, सामान्य आराम, कठिन समय के लिए बचत सम्बन्धी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करती है तथा कलाकार की कला को पर्याप्त सम्मान प्रदान करती है ।”
अधिकांश विद्वानों का विचार है कि उचित मजदूरी, न्यूनतम मजदूरी की उच्चतम सीमा व निर्वाह मजदूरी की निम्नतम सीमा के समकक्ष होती है ।
4. मजदूरी निर्धारक घटक (Wage Determining Factors):
उचित मजदूरी का निर्धारण करने वाले तत्व या घटक निम्न हैं:
(1) प्रचलित मजदूरी की दरें (Prevailing Rates of Wages):
अनेक नियोक्ता प्रचलित दरों के आधार पर अपनी मजदूरी की दर निर्धारित करते हैं । मजदूरी की दर निर्धारित करते समय केवल स्थानीय बाजारों की दरें ही ध्यान में नहीं रखनी चाहिए अपितु अपने ही उद्योग की किस्म के अन्य उद्योगों के वेतनमान का भी ध्यान रखना चाहिए ।
साथ ही, बाजार में श्रम की माँग तथा पूर्ति का भी ध्यान रखा जाना चाहिए । यदि किसी विशिष्ट प्रकार के श्रम की पूर्ति कम है तो उसके लिए मजदूरी की ऊँची दर भी दी जा सकती है किन्तु श्रमिक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं अथवा श्रम की बहुलता या बेरोजगारी फैली हुई है तो मजदूरी की दर कम होती है ।
(2) देय क्षमता (Ability of Pay):
किसी उद्योग में दी जाने वाली मजदूरी इस पर भी निर्भर करती है कि उद्योग की देय क्षमता क्या है ? किन्तु अधिकांश उद्योग जो सामान्यत: कम लाभ अर्जित करते हैं अपने कर्मचारियों को कम मजदूरी देते हैं ।
(3) निर्वाह-लागत (Cost of Living):
मूल्य निर्देशांक में परिवर्तन के साथ मजदूरी की दरों में भी परिवर्तन होता रहता है जिससे श्रमिकों की क्रय-क्षमता को यथासम्भव समान स्तर पर रखना आवश्यक है । अत: निर्देशांकों में वृद्धि के साथ मजदूरी की दरों में वृद्धि आवश्यक है ।
जहाँ मजदूरी का निर्देशांक के साथ कोई समन्वय नहीं है वहाँ श्रम संघ अथवा श्रमिक तथा नियोक्ता के मध्य सौदेबाजी क्षमता के आधार पर मजदूरी का निर्धारण किया जाता है ।
(4) उत्पादकता (Productivity):
अधिक उत्पादन करने वाले श्रमिक अधिक मजदूरी पाने के अधिकारी होते हैं तथा कम उत्पादन करने वाले श्रमिकों को कम मजदूरी दी जाती है । न्याय के आधार पर अधिक उत्पादन का लाभ श्रमिकों को उसकी ऊँची मजदूरी के रूप में, अंशधारियों को अधिक लाभ के रूप में, उपभोक्ताओं को कम दर पर अच्छी वस्तुएँ उपलब्ध होने के रूप में प्राप्त होता है । अधिक उत्पादन, तकनीकी सुधार, अच्छा संगठन एवं प्रबन्ध अधिक कुशल श्रम एवं अधिक उत्पादकता आदि के मिले-जुले कार्य का प्रतिफल है ।
(5) श्रमिकों की सौदेबाजी की क्षमता (Bargaining Power of Workers):
वे उद्योग जहाँ श्रम संघ शक्तिशाली हैं वहाँ श्रम संघ सामूहिक सौदेबाजी के माध्यम से अधिक मजदूरी प्राप्त करने में सफल होते हैं ।
(6) कार्य की अपेक्षाएँ (Job Requirements):
ऐसे कार्य जिनमें श्रम, कौशल, उत्तरदायित्व तथा जोखिम की मात्रा कम होती है, उनके लिए कम मजदूरी निर्धारित की जाती है तथा जिन कार्यों में इन सभी गुणों की अधिक आवश्यकता होती है, उनके लिए मजदूरी की दर भी ऊँची होती है ।
सरकार (Government):
शक्तिशाली सेवायोजकों के शोषण से कर्मचारियों को बचाने के लिए सरकार ने अनेक कानून लागू किये हैं । न्यूनतम मजदूरी, काम के घंटे, समान काम के लिए समान वेतन, मँहगाई तथा अन्य भत्तों के भुगतान, बोनस भुगतान, आदि पर कानूनों को लागू किया जा चुका है ताकि कर्मचारियों की क्षतिपूर्ति करने में औचित्य लाया जा सके ।
अत: लागू किये गये कानून तथा सरकार द्वारा बनाई गई श्रम नीतियों का सेवायोजकों द्वारा चुकाई गई मजदूरी तथा वेतन पर महत्वपूर्ण प्रभाव होता है । मजदूरी तथा वेतन को सरकार द्वारा निर्धारित स्तर से नीचे तय नहीं किया जा सकता है ।
उपर्युक्त घटक मजदूरी दरों पर एक सामान्य प्रभाव लागू करते हैं । साथ ही ऐसे अनेक घटक हैं जो मजदूरी दरों में व्यक्तिगत अन्तरों को प्रभावित करते हैं ।
ऐसे सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक जो मजदूरी दरों में व्यक्तिगत अन्तरों को प्रभावित करते हैं, निम्न प्रकार हैं:
(i) श्रमिक की क्षमता (Worker’s Capacity),
(ii) शैक्षणिक योग्यताएँ (Educational Qualifications),
(iii) कार्य अनुभव (Work Experience),
(iv) काम के खतरे (Hazards Involved in Work),
(v) पदोन्नति सम्भावनाएँ (Promotion Possibilities),
(vi) रोजगार का स्थायित्व (Stability of Employment),
(vii) विशिष्ट चातुर्यों के लिए माँग (Demand for Special Skills),
(viii) संगठन द्वारा अर्जित आधिक्य या लाभ (Profits or Surplus Earned by the Organisation) ।
5. सुदृढ़ मजदूरी प्रशासन के लिए आधार (Basis for Sound Wage Administration):
उचित मजदूरी प्रशासन के लिए एकमात्र पुष्ट आधार में स्वस्थ नीतियों के एक सैट का समावेश होता है जो प्रबन्ध टीम के सभी सदस्यों को ज्ञात हो तथा उनके द्वारा उसको उचित तथा न्यायपूर्ण माना जाये । जब तक ऐसी परिस्थितियाँ व्याप्त न हों मजदूरी प्रशासन संभवत: जरूरत तथा मौके के आधार पर ही संभाला जाता रहेगा ।
निर्णय स्थापित नीति के आधार पर न होकर विशिष्ट मामलों के दृश्य गुणों के आधार पर होते हैं । चूंकि निर्णयन एक लम्बे समय के दौरान अनेक लोगों द्वारा लिये जाते हैं अत: यह पूर्णत: स्पष्ट है कि वे सतत् निर्णय नहीं होंगे ।
भले ही मजदूरी स्थिति प्रारम्भ में पुष्ट हो, इसमें ज्यादा देर नहीं लगती कि वह गड़बड़ानी शुरू हो जाये । अधिकांश मजदूरी प्रोत्साहन योजनाएँ जिनको त्यागा जा चुका है इसलिए असफल नहीं हुई कि उनकी अनुचित स्थापना रही वरन् इसलिए कि प्रशासन असावधान रहा ।
(1) मजदूरी निर्धारण एक निश्चित योजना के अनुसार होना चाहिए जिससे कार्य सम्बन्धी विविधताओं जैसे कुशलता, श्रम, उत्तरदायित्व, जोखिम आदि के अनुसार मजदूरी का ढाँचा तैयार किया जा सके तथा विभिन्न वेतनमानों में भिन्नता का औचित्य प्रदर्शित किया जा सके ।
(2) मजदूरी की दरें क्षेत्र में प्रचलित मजदूरी की दरों के अनुरूप होनी चाहिए जिससे कि श्रमिक सन्तुष्ट रह सकें और मजदूरी से सम्बन्धित औद्योगिक विवाद उत्पन्न न हों ।
(3) यदि कार्य समान स्तर का हो, समान रूप से कठिन हो तथा उनके क्रियान्वयन में समान कुशलता की आवश्यकता हो तो ऐसे कार्य कर रहे सभी श्रमिकों को समान मजदूरी दी जानी चाहिए ।
(4) श्रमिकों की कार्यप्रणाली के अन्तर ज्ञात करने के लिए समान प्रमापों का प्रयोग किया जाना चाहिए ।
(5) मजदूरी सम्बन्धी परिवादों के निवारण हेतु एक निश्चित प्रणाली का पालन किया जाना चाहिए ।
(6) मजदूरी की दर निर्धारण करने की प्रविधि कर्मचारियों तथा श्रम संघों को ज्ञात होनी चाहिए । प्रत्येक कर्मचारी को अपनी मजदूरी एवं वेतन स्तर का ज्ञान होना चाहिए ।
(7) मजदूरी का नियन्त्रण लागत नियन्त्रण तथा प्रवर्तन श्रम बजट से किया जाना चाहिए ।
(8) मजदूरी व्यवस्था सरल, बोधगम्य तथा कम खर्चीली होनी चाहिए ।
(9) मजदूरी भुगतान प्रणाली लोचशील होनी चाहिए ।
(10) मजदूरी पर्याप्त होनी चाहिए जिससे श्रमिक अपना व अपने परिवार का आसानी से पालन-पोषण कर सके तथा जीवन में आने-जाने वाली असंदिग्धताओं से अपनी रक्षा कर सके । इसके अतिरिक्त समाज में एक सभ्य नागरिक की भांति जीवन व्यतीत कर सके ।
6. उचित मजदूरी भुगतान कार्यक्रम के लाभ (Advantages of Fair Wage Payment Programme):
सुव्यवस्थित मजदूरी भुगतान से प्राप्त होने वाले लाभों को दो भागों में बाँटा जा सकता है:
(1) कर्मचारी को प्राप्त होने वाले लाभ तथा
(2) नियोक्ता को प्राप्त होने वाले लाभ ।
(1) कर्मचारी को प्राप्त होने वाले लाभ (Advantages of Employee):
i. श्रमिक को उसकी योग्यता के अनुरूप मजदूरी प्रदान करने से (अर्थात् कुशल श्रमिक को अधिक मजदूरी, अर्द्ध-कुशल को उससे कुछ कम तथा अकुशल को न्यूनतम मजदूरी) उनके मनोबल में वृद्धि होती है तथा वह एक अच्छा उत्पादक बन सकता है ।
ii. इससे पक्षपात के अवसर न्यूनतम हो जाते हैं अथवा प्राय: समाप्त हो जाते हैं ।
iii. कार्य अथवा पदोन्नति का क्रम आसानी से निर्धारित किया जा सकता है जिससे श्रमिक अपनी पदोन्नति के प्रति आश्वस्त रहता है और कार्य में अधिक रुचि प्रदर्शित करता है ।
iv. कर्मचारी के मनोबल में वृद्धि होती है तथा नैतिक स्तर में सुधार होता है क्योंकि भुगतान कार्यक्रम सुव्यवस्थिति तथा तर्कसंगत होता है ।
(2) नियोक्ता को प्राप्त होने वाले लाभ (Advantages to Employer):
i. वे अपनी श्रम शक्ति का भली-भाँति आयोजन कर सकते हैं तथा उत्पादन लागत की दृष्टि से श्रम तत्व की लागत को नियन्त्रित कर सकते हैं ।
ii. उचित मजदूरी के निर्धारण के परिणामस्वरूप, नियोक्ता को श्रम संघों के साथ सामूहिक सौदेबाजी में किसी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता क्योंकि मजदूरी स्तर तर्कसंगत होते हैं इससे औद्योगिक शान्ति के विकास में सहायता मिलती है ।
iii. मजदूरी की असमानता के फलस्वरूप श्रमिकों में आपसी मतभेद अथवा विवाद नहीं उत्पन्न हो पाते हैं ।
iv. इससे कर्मचारी मनोबल तथा अभिप्रेरणा में वृद्धि होती है क्योंकि सुनियोजित मजदूरी प्रणाली कर्मचारी की आवश्यकता के आधार पर निश्चित की जाती है ।
v. वे कुशल तथा दक्ष श्रमिक को उचित पुरस्कार द्वारा आकर्षित करने में सफल होते हैं ।