Read this article in Hindi to learn about the various types of workers participation in management.

Type # 1. सुझाव कार्यक्रम (Suggestion Scheme):

श्रमिकों जो अपने कार्य की सूक्ष्म-से-सूक्ष्म तांत्रिकता एवं विवरणकी जानकारी रखता है, के पास प्राय: अत्यन्त उपयोगी सुझाव होते हैं, जिनके उपयोग द्वारा व्यवसाय की उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है । कर्मचारियों को अपने सुझाव प्रस्तुत करने के अवसर प्रदान करने से एक ओर उनके मूल्यवान सुझाव उपलब्ध हो जाते हैं, और दूसरी ओर श्रमिकों में संतोष की भावना उत्पन्न होती है ।

कर्मचारी यह अनुभव करते हैं, कि प्रबन्ध उनको कुछ महत्व देता है, और उनके योगदान में रुचि रखता है । कर्मचारियों के सुझावों का मूल्यांकन करने के लिए 5 या 6 सदस्यों की एक समिति बनायी जाती है, और सुझावों के उपयोगी होने पर कर्मचारियों को उचित पुरस्कार दिया जाता है ।

पुरस्कार के अतिरिक्त सुझावों के अधिक उपयोगी होने पर विशेष सभा बुलाकर सम्बन्धित कर्मचारी की प्रशंसा की जाती है, और कभी-कभी उसके द्वारा बतायी गयी तांत्रिकाओं को उसके नाम से चलाया जाता है ।

प्राप्त सुझावों पर शीघ्रातिशीघ्र विचार करना चाहिए और अनुपयोगी सुझावों को अस्वीकार करते समय बड़ी सावधानी से कार्य करना चाहिए क्योंकि कर्मचारियों के सुझावों को अस्वीकृत होने पर निराशा, भेदभाव आदि की भावनाएँ जागृत हो सकती है ।

Type # 2. संचालक मण्डल में प्रतिनिधित्व (Representation in Board of Directors):

कम्पनी के संचालक मण्डलों में श्रमिक के प्रतिनिधियों को स्थान देने से अच्छे औद्योगिक सम्बन्ध स्थापित होते हैं । श्रमिकों में सहयोग की भावना जाग्रत करने हेतु उनमें उत्तरदायित्व एवं भागीदारी की भावनाओं का प्रादुर्भाव होना अत्यन्त आवश्यक होता है ।

एक श्रमिक उस कार्य में अधिक रुचि रखता है, जिससे उसके ही प्रतिनिधियों द्वारा अथवा उनकी सलाह के द्वारा निर्धारित किया गया है । श्रमिक में प्रबन्धक की भावनाएँ और उत्तरदायित्व जागृत होने से उत्पादकता की वृद्धि होने के साथ-साथ औद्योगिक शान्ति की भी स्थापना होती है ।

जर्मनी और यूगोस्लाविया में इस प्रकार की भागीदारी का सफलतापूर्वक उपयोग किया गया है । पश्चिमी जर्मनी में ऐसी कम्पनियाँ जिनमें 1000 से अधिक कर्मचारीयों के संचालक मण्डलों में 5 सदस्य अंशधारियों द्वारा 5 सदस्य सम्बन्धित श्रम संघों द्वारा और एक सदस्य श्रमिकों एवं अंशधारियों द्वारा सामूहिक रूप से चुना जाता है ।

कम्पनी के लिए जो प्रबन्ध-मण्डल (Board of Management) बनाया जाता है, उसके 3 सदस्यों में से एक सदस्य श्रमिकों का प्रतिनिधि होता है । यूगोस्लाविया में श्रमिकों को श्रम संघ प्रबन्ध कला का प्रशिक्षण प्रदान करते हैं ।

श्रमिकों की भागीदारी के लिए इस देश में 1950 में विधान बनाया गया है । इस विधान के अन्तर्गत प्रत्येक औद्योगिक व्यवसाय में एक प्रबन्ध समिति तथा एक श्रमिक परिषद् (Worker’s Council) का निर्माण किया जाता है । श्रमिकों की परिषद् के सदस्य श्रमिकों द्वारा चुने जाते है ।

इस परिषद् द्वारा प्रबन्ध सम्बन्धी समस्त नीतियाँ निर्धारित की जाती हैं । यह परिषद् दिन-प्रतिदिन के प्रबन्ध कार्यों के लिए एक प्रबन्ध समिति चुन लेती है । भारत में टाटा (Tata) के कारखानों में श्रमिकों द्वारा संचालक मण्डलों में अपने प्रतिनिधि रखने की व्यवस्था की गई है । इस विधि के द्वारा कर्मचारियों की प्रबन्ध में भाग लेने की इच्छाओं की पूर्ति की जा सकती है । परन्तु यह व्यवस्था तब ही सफल हो सकती है, जबकि श्रमिकों में प्रबन्ध सम्बन्धी समस्याओं को समझने और निवारण करने की योग्यता हो ।

यदि श्रमिकों द्वारा संचालक मण्डल के लिए आयोग प्रतिनिधि भेजे जाएं तो वे निष्किय सदस्य के रूप मे कार्य करेंगे अथवा स्वयं औद्योगिक विवाद के कारण बन जायेंगे । श्रमिकों की भागीदारी की इस विधि का उपयोग करने से पहले श्रमिकों को अन्य सुलभ विधियों द्वारा प्रबन्ध कार्यों में अनुभव प्रदान करना अत्यन्त आवश्यक होता है ।

Type # 3. संयुक्त विचार विमर्श (Joint Consultation):

इस विधि के अन्तर्गत सामूहिक उत्पादन समितियाँ अथवा संयुक्त प्रबन्ध परिषदों की स्थापना हो जाती है । इनमें प्रबन्ध एवं श्रमिकों दोनों के ही प्रतिनिधि होते हैं, और ये परिषदें उत्पादन बढ़ाने, लागत कम करने, उत्पाद के गुणों में सुधार करने आदि समस्याओं के निवारण के लिए विचार-विमर्श करती हैं ।

श्रमिकों की भागीदारी कारखाना स्तर पर अधिक प्रभावशाली मानी जाती है । वास्तव में उत्पादन स्तर की भागीदारी को प्रारम्भिक अवस्था कहना चाहिए और धीरे-धीरे इस भागीदारी को प्रबन्ध के उच्चतम स्तर तक ले जाया जा सकता है ।

प्रारम्भिक अवस्था में इन परिषदों को निम्न कार्य दिये जा सकते हैं:

(1) उत्पादकता में सुधार करने के लिए सहयोग प्रदान करना ।

(2) सुझावों को प्रोत्साहित करना ।

(3) श्रमिकों के कार्य करने एवं रहन-सहन की दशाओं में सुधार करने हेतु सहयोग देना ।

(4) ऊपर जाने वाले तथा नीचे आने वाले संज्ञापन के लिए एक मध्य-बिन्दु का कार्य करना ।

(5) विधान तथा संविदाओं (Agreement) को लागू करने में सहयोग प्रदान करना ।

(6) उपयुक्त कार्यों के साथ-साथ सामूहिक प्रबन्ध परिषदों से निम्नलिखित विषयों पर परामर्श लिया जा सकता है:

(i) वर्तमान आदेशों में परिवर्तन करते समय ।

(ii) कर्मचारियों की छँटनी करते समय ।

(iii) विवेकीकरण के सुझाव पर विचार करते समय ।

(iv) उत्पादन कार्यों को रोकते कम करते अथवा समाप्त करते समय ।

(v) नई विधियों का उपयोग करने के लिए ।

(vi) कर्मचारियों की भर्ती एवं दण्डित करने के नियम बनाते समय ।

सामूहिक प्रबन्ध परिषदों को निम्नलिखित मामलों की सूचना प्राप्त करने एवं उन पर सुझाव देने का अधिकार होना चाहिए:

(a) व्यवसाय का संगठन एवं सामान्य संचालन ।

(b) व्यवसाय की सामान्य आर्थिक स्थिति, बाजार की स्थिति, उत्पादन एवं विक्रय के कार्यक्रम ।

(c) वे परिस्थतियों जिनमें व्यवसाय की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव पड़ता है ।

(d) निर्माण की विधियाँ ।

(e) स्थिति विवरण, लाभ-हानि खाता तथा इनसे सम्बन्धित प्रलेख एवं स्पष्टीकरण ।

संयुक्त प्रबन्ध परिषदों के उचित निर्माण एवं संचालन के द्वारा निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति होती है: 

(1) श्रमिकों और प्रबन्ध के घनिष्ठ सम्बना स्थापित हो जाते हैं, और उत्पादन सम्बन्धी समस्याओं के सभी पक्षों को पूर्णरूपेण समझ लिया जाता है ।

(2) कर्मचारियों में कारखाना सचालन के प्रति सामान्य: अधिक रुचि एवं विचार करने को प्रोत्साहन मिलता है, और कर्मचारियों के मनोबल में सुधार होता है ।

(3) कार्य करने की दशाओं में सुधार हो जाता है, और छोटीमोटी बाधायें प्रबन्ध के सम्मुख नहीं आती हैं ।

(4) साधनों का नाश तथा अपव्यय (Spoilage and Wastage) कम हो जाता है ।

(5) कर्मचारियों की अनुपस्थिति में कमी हो जाती है ।

(6) कर्मचारियों की कुशलता एवं उत्पादन के गुणों में सुधार होता है ।

(7) विभिन्न विभागों में सहयोग की भावना उत्पन्न हो जाती है, और समस्त व्यवसाय टीम के रूप में कार्य करता है । अधिक उत्पादन के लिए स्पष्ट विचार-विमर्श होता है, उसके द्वारा पारस्परिक मतभेद कम हो जाते हैं ।

(8) श्रमिकों को प्रबन्ध सम्बन्धी मामलों में प्रशिक्षण प्राप्त होता है ।

(9) श्रमिकों में उत्पादन विधियों के परिवर्तनों के विरोध करने की भावनाओं में कमी आती है ।

(10) अनुशासन की समस्याएँ अधिक गम्भीर रूप धारण नहीं करतीं और पर्यवेक्षण सुलभ होता है ।