Read this article in Hindi to learn about the types of workers’ participation in management seen in India.
श्रमिकों की प्रबन्ध में भागीदारी अलग-अलग देशों में अलग-अलग है ।
भारत में यह भागीदारी निम्न प्रकार से निम्न रूपों में पाई जाती है:
(1) कार्य समिति,
(2) संयुक्त प्रबन्ध परिषद्,
(3) संयुक्त परिषद्,
(4) शॉप परिषद्
इनका विवरण निम्न प्रकार है:
(1) कार्य समितियाँ (Work Committee):
Industrial Dispute Act, 1949 के प्रावधानों के अनुसार श्रमिकों की प्रबन्ध में भागीदारी के लिए कार्य समितियाँ बनाना जरूरी है, जिसमें नियोक्ता एवं कर्मचारियों के प्रतिनिधि सदस्य के रूप में कार्य करेंगे ।
कार्य (Functions) इनके कार्यों में निम्न शामिल हैं:
(i) कार्य की दशाओं के बारे में विचार-विमर्श करना जैसे रोशनदान, प्रकाश, ताप, सैनीटेशन सुविधाएं आदि ।
(ii) पीने के पानी की व्यवस्था, कैन्टीन, चिकित्सा तथा सेहत सम्बन्धी सुविधाओं की व्यवस्था पर विचार करना ।
(iii) सुरक्षा तथा दुर्घटना की रोकथाम पर विचार करना ।
(iv) त्योहारों एवं राष्ट्रीय अवकाशों के समायोजन पर विचार करना ।
(v) कल्याणकारी कोष का निर्माण करना ।
(vi) प्रबन्ध एवं श्रम के बीच मधुर सम्बन्ध बनाना ।
(vii) शिक्षा एवं मनोरंजन आदि की व्यवस्था करना ।
ये कार्य समितियाँ कुछ संगठनों जैसे टाटा आयरन एवं स्टील कम्पनी, इंडियन एल्युमिनियम वर्क्स, हिन्दुस्तान यूनीलिवर आदि में बहुत अच्छा कार्य कर रही हैं ।
(2) संयुक्त प्रबन्ध परिषद् (Joint Management Councils):
द्वितीय पंचवर्षीय योजना में इन परिषदों की स्थापना का सुझाव दिया गया था । इनकी स्थापना 1968 में की गई ।
कार्य (Functions):
एक संयुक्त प्रबन्ध परिषद् के निम्न कार्य हैं:
(i) उत्पादन, उत्पादन अनुसूची तथा सामान्य प्रशासन में परिवर्तन करने से पहले प्रबन्ध परिषद् से सलाह करेगी ।
(ii) कर्मचारियों की कार्यशील कुशलता में वृद्धि करना ।
(iii) कर्मचारियों के कल्याण हेतु विभिन्न योजनाएँ बनाना एवं लागू करना ।
(iv) कर्मचारियों को शिक्षित करना ।
(v) कर्मचारियों की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना ।
(vi) अच्छे औद्योगिक सम्बन्ध स्थापित करना ।
(vii) सूचना प्राप्त करना, उसका अध्ययन करना तथा अपने सुझाव देना ।
संयुक्त प्रबन्ध परिषद् (JMC) की स्थापना ऐसे संगठन में अनिवार्य है, जहाँ पर कम-से-कम 500 या अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं । इस संस्था में एक सुसंगठित श्रम संघ होना चाहिए तथा कर्मचारियों की एक मजबूत यूनियन भी होनी चाहिए ।
(3) संयुक्त परिषद (Joint Councils):
प्रत्येक औद्योगिक इकाई, जिसमें 500 या अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं, में एक संयुक्त परिषद् होगी ।
इसकी विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
(i) इसका कार्यकाल 2 वर्ष का होगा ।
(ii) संगठन के वास्तविक कर्मचारी इसके सदस्य होंगे ।
(iii) संयुक्त परिषद् का चेयरमैन इसका कार्यकारी अधिकारी होगा ।
(iv) इसमें एक सदस्य सचिव के रूप में कार्य करेगा ।
(v) इसकी वर्ष में तीन बार मीटिंग होगी ।
(vi) संयुक्त परिषद् का प्रत्येक निर्णय आम राय से होगा ।
कार्य (Functions):
इसके कार्य निम्न प्रकार हैं:
(i) शॉप परिषद् द्वारा पेश किए गए विषयों को हल करना ।
(ii) उत्पादकता मानकों का निर्धारण करना ।
(iii) कार्य नियोजन एवं उत्पादन लक्ष्यों को प्राप्त करना ।
(iv) कार्य घण्टों का निर्धारण करना ।
(v) कर्मचारियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करना ।
(vi) सुरक्षा स्वास्थ्य तथा कल्याणकारी कार्यों को अमल में लाना इत्यादि ।
(4) शॉप परिषद (Shop Councils):
शॉप परिषद् एक संगठन इकाई में प्रत्येक विभाग या कार्य स्थान (शॉप) का प्रतिनिधित्व करती है । इसमें कर्मचारियों एवं प्रबन्ध के बराबर सख्या में प्रतिनिधि होते हैं । इस परिषद् में निर्णय आम राय से लिए जाते हैं, तथा प्रबन्ध को इन निर्णयों का एक महीने के अन्दर लागू करना होता है । इस परिषद् का कार्यकाल 2 वर्ष का होता है ।
कार्य (Functions):
इस परिषद् के कार्य निम्न प्रकार हैं:
(i) उत्पादन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रबन्ध की सहायता करना ।
(ii) कार्यकुशलता एवं उत्पादकता में सुधार करना ।
(iii) शॉप अथवा विभाग में सामान्य अनुशासन बनाए रखना ।
(iv) स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं कल्याण सम्बन्धी सुझाव देना ।
(v) शॉप/विभाग में कर्मचारियों की अनुपस्थिति का अध्ययन करना ।
(vi) कार्य स्थान पर कार्यशील स्थितियों का अध्ययन करना ।