Read this article in Hindi to learn about the various factors affecting industrial relations.

1. संस्थागत घटक (Institutional Factors):

संस्थागत घटकों में ऐसी मुदों का समावेश होता है जैसे: राजकीय नीति, प्रब्रन्ध/नीति सन्नियम, स्वैच्छिक संहिताएँ, सामूहिक सौदेकारी समझौते, प्रबन्ध यूनियनें, सेवायोजक संगठन/फैडरेशन्स, आदि ।

2. आर्थिक घटक (Economic Factors):

आर्थिक घटकों में शामिल हैं आर्थिक संगठन (समाजवादी, साम्यवादी, पूँजीवादी), व्यवसाय का स्वामित्व, व्यक्तिगत कम्पनी-क्या घरेलू या MNC, सरकार, सहकारी स्वामित्व, श्रम शक्ति की प्रकृति तथा गठन, प्रबन्ध आपूर्ति के स्रोत, सापोक्षिक स्तर, गुपो के बीच मजदूरी की विसगतियाँ, बेरोजगारी का स्तर, आर्थिक चक्र । ये घटक अनेक तरीकों से औद्योगिक सम्बन्धों को प्रभावित करते हैं ।

3. सामाजिक घटक (Social Factors):

सामाजिक घटकों के अन्तर्गत शामिल हैं सामाजिक गृप (जैसे जाति या संयुक्त परिवार) समुदाय, सामाजिक मूल्य, तौर तरीके, सामाजिक दर्जे (ऊँचे या नीचे) औद्योगीकरण के प्रारम्भिक चरणों में औद्योगिक सम्बन्धों को प्रभावित करते हैं वे मालिक तथा सेवक के रूप में सम्बन्धों को जन्म देते हैं, सम्पन्नों तथा विपन्नों, ऊँची जाति तथा नीची जाति, आदि के रूप में सम्बन्धों को जन्म देते हैं ।

औद्योगीकरण की तेज रफ्तार के साथ में घटक धीरे-धीरे अपनी पहचान खोते जा रहे हैं लेकिन उनकी महत्ता को नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता है ।

4. प्रौद्योगिकी घटक (Technological Factors):

प्रौद्योगिकी घटकों के अन्तर्गत कार्य विधियों, प्रयुक्त प्रौद्योगिकी के प्रकार, प्रौद्योगिकी परिवर्तन की दर, शोध तथा विकास गतिविधियाँ, उभरती प्रवृत्तियों से आत्मसात करने की योग्यता, आदि घटकों का समावेश होता है ।

ये घटक विचारणीय तौर पर औद्योगिक सम्बन्धों की प्रणाली को प्रभावित करते हैं क्योंकि ये एक संगठन में रोजगार स्तर, मजदूरी स्तर, सामूहिक सौदेकारी प्रक्रिया पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालते हुए देखे जा सकता है ।

5. मनोवैज्ञानिक घटक (Psychological Factors):

मनोवैज्ञानिक घटकों के अन्तर्गत औद्योगिक सम्बन्धों से सम्बन्धित विषय जैसे: मालिकों का रुझान, श्रम शक्ति का नजरिया, काम के प्रति श्रमिकों का रुख, उनकी अभिप्रेरणा, मनोबल, रुचि, तटस्थता, असंतुष्टि तथा मानव-मशीन अन्तर्मिलन से उत्पन्न नीरसता आते हैं ।

कार्य से उत्पन्न मनोवैज्ञानिक समस्याओं का श्रमिकों के कार्य तथा व्यक्तित्व दोनों पर समान रूप से दूरगामी प्रभाव होता है जो एक उपक्रम के औद्योगिक सम्बन्ध तंत्र को प्रत्क्षत: या अप्रत्यक्षत: प्रभावित करता है ।

6. राजनीतिक घटक (Political Factors):

राजनीतिक संस्थान, सरकार की प्रणाली, राजनीतिक दर्शन, सरकार का रुझान, शासक वर्ग तथा प्रबन्ध समस्याओं के प्रति विरोध राजनीतिक घटक है । उदाहरण के लिए, नये राजनीतिक दर्शन के लागू होने से पूर्व विभिन्न साम्यवादी देशों मे औद्योगिक सम्बन्ध वातावरण बहुत कुछ सरकार के नियंत्रण में था तभी से वहाँ पूँजीवादी अर्थव्यवस्थाओं की तरह विचारणीय परिवर्तन आ चुके हैं ।

वहाँ भी प्रबन्ध गतिविधियों के संघ हैं तथा औद्योगिक सम्बन्ध प्रबन्धकीय नैराश्य से ग्रस्त है । अधिकांश श्रम संघों को राजनीतिक दलों द्वारा नियन्त्रित किया जाता है, अत: यहाँ औद्योगिक सम्बन्ध राजनीतिक दलों की भागीदारी की गम्भीरता द्वारा श्रम संघ गतिविधियों में व्यापक तौर पर ढाले जाते हैं ।

7. उपक्रम-सम्बद्ध घटक (Enterprise Related Factors):

उपयुक्त सम्बद्ध घटकों के अन्तर्गत उपक्रम मे व्याप्त प्रबन्धकीय शैली, उसका दर्शन तथा मूल्य तत्र, संगठनात्मक जलवायु, संगठनात्मक स्वास्थ्य, प्रतिस्पर्द्धा की मात्रा, परिवर्तन के प्रति ग्राह्यता तथा विभिन्न मानवीय सम्बन्ध प्रबन्ध नीतियों का समावेश होता है ।

8. सार्वभौमिक घटक (Global Factors):

सार्वभौमिक घटको में अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध, सार्वभौमिक टकराव, वर्चस्वकारी आर्थिक-राजनीतिक विचारधाराएँ, वैश्विक सांस्कृतिक परिदृशय, पॉवर ब्लॉकों की आर्थिक तथा व्यापारिक नीतियाँ, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार समझौते तथा सम्बन्ध अन्तर्राष्ट्रीय प्रबन्ध समझौते (अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की भूमिका), आदि जैसे महत्वपूर्ण विषय शामिल होते हैं ।

अत: औद्योगिक सम्बन्धों को उद्योग, सरकार तथा प्रबन्ध के अन्त: सम्पर्क द्वारा निर्मित एक जटिल प्रणाली के रूप में देखा जा सकता है जिनका विद्यमान तथा उभरते सामाजिक, आर्थिक, संस्थागत तथा प्रौद्योगिकी घटकों द्वारा गहन अवलोकन किया जाता है ।

इस संदर्भ में, यह मत काफी महत्वपूर्ण है: औद्योगिक सम्बन्धों की किसी देश की प्रणाली पक्षपात का परिणाम नहीं होती, यह उस समाज पर निर्भर करता है जो उसका उत्पादन करता है । यह न केवल औद्योगिक परिवर्तन का एक उत्पाद है वरन् पूर्ववर्ती सम्पूर्ण सामाजिक परिवर्तनों का परिणाम भी है जिनसे औद्योगिक समाज का सृजन होता है (तथा औद्योगिक संगठन उभरता है) |

यदि उन संस्थाओं के अनुसार स्वयं को विकसित करता है तथा ढालता है, जो एक निर्दिष्ट समाज में व्याप्त है (पूर्व औद्योगिक तथा आधुनिक दोनों में) | यह इन संस्थाओं के साथ-साथ उत्पन्न होता है, विकसित होता है, जड़ हो जाता है तथा नष्ट होता है । औद्योगिक सम्बन्धों की प्रक्रिया एक निर्दिष्ट समय पर संस्थागत शक्तियों से गहनता से जुड़ी होती है जो सामाजिक-आर्थिक नीतियों को आकार तथा विषय-वस्तु प्रदान करती है ।”

देश के औद्योगिक सम्बधों के बाहरी तथा आदृश्य चिह्न देश के इतिहास तथा उसके राजनीतिक, ऐतिहासिक तथा सामाजिक दर्शन तथा रुझानों की सामान्य: अभिव्यक्ति करते हैं ।

औद्योगिक सम्बन्धों का विकास केवल एक एकाकी घटक के कारण ही नहीं होता वरन् यह विभिन्न देशों में विद्यमान सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक परिस्थितियों के साथ-साथ पश्चिमी यूरोप में औद्योगिक क्रान्ति की पूर्व संध्या को व्याप्त परिस्थितियों द्वारा निर्धारित होता है ।

ऐसे परिवर्तन जो इस क्राति के दौरान उत्पन्न हुए विभिन्न देशों में उन्होंने एक समान प्रणाली का अनुगमन नहीं किया वरन् ऐसी आर्थिक तथा सामाजिक शक्तियाँ प्रकट हुई जिन्होंने इन देशों में औद्योगिक सम्बन्धों के सिद्धान्तों तथा व्यवहारों को लम्बे समय तक आकार दिया ।

सारांश में, बलजीत सिंह लिखते हैं कि औद्योगीकरण के सबसे पहले चरणों से, जब श्रमिक, पहले अपनी निजी औजारों के साथ काम करते थे, शक्ति-चालित कारखानों में दाखिल हुए जिनके दूसरे मालिक थे, ताकि बाद के दिनों में औद्योगिक टकरावों के कारण व्यवधान न्यूनतम हो तथा औद्योगिक शान्ति आगे बढ़े, रोजगार बढ़े जब एक निष्कासन की धमकी आगे वास्तविक न रहे, तथा अन्तत: प्रबन्धकीय साझेदारी पर आधारित औद्योगिक प्रजातंत्र न केवल लाभों के विभाजन तक रहे वरन् स्वयं प्रबन्धकीय निर्णयों में भी । वास्तव में एक लम्बी यात्रा रही ।”