Read this article in Hindi to learn about the features of a good business letter.
एक अच्छा व्यापारिक पत्र वह है जो अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल होता है अर्थात् जिस उद्देश्य से उसे लिखा गया है, यदि वह पूरा हो जाता है तो इस प्रकार के पत्र को श्रेष्ठ एवं प्रभावी व्यापारिक पत्र कहा जा सकता है । व्यापारिक पत्र को अच्छा बनाने के लिए इसमें कुछ गुणों का होना आवश्यक है ।
ये गुण दो प्रकार के होते हैं:
1. विषय-सामग्री सम्बन्धी गुण:
एक अच्छे व्यावसायिक पत्र में विषय-सामग्री सम्बन्धी गुण निम्नलिखित हैं:
(1) स्पष्टता,
(2) शृंखलाबद्धता,
(3) एकता,
(4) यथार्थता,
(5) संक्षिप्तता,
(8) पूर्णता,
(7) सरल सामंजस्यता,
(8) ध्यान आकर्षण,
(9) विशिष्टता,
(10) मौलिकता,
(11) स्वच्छता तथा
(12) प्रभावशीलता ।
(1) स्पष्टता (Clearness):
व्यावसायिक पत्र सरल, प्रचलित तथा स्पष्ट भाषा में लिखे जाने चाहिए । पत्र की भाषा में कठिन शब्द या साहित्यिक भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए इन पत्रों में जो कुछ भी लिखा जाये, उसका एक ही अर्थ निकलता हो इस सम्बन्ध में लेखक लॉर्ड चैस्टरफील्ड ने लिखा है कि- “दुनिया का सबसे कम समझदार व्यक्ति भी उसका गलत अर्थ न निकाले और न ही उसे समझने के लिए दोबारा पढ़ने की जरूरत पड़े ।”
(The clearest writer Lord Chesterfields says, “that the dullest fellow in the world will not able to mis state it, nor be obliged to read it, twice in order to understand it.”)
जो कुछ कहना हो, वही पत्र में स्पष्ट व्यक्त किया जाना चाहिए यदि पत्र में अस्पष्टता होगी तो फिर से पत्र-व्यवहार करना पड़ेगा जिससे व्यर्थ ही विलम्ब या मतभेद की सम्भावना बनी रहेगी ।
(2) शृंखलाबद्धता (Continuation):
पत्र में स्वाभाविक रूप से एक के बाद दूसरा विचार जुड़ा होना चाहिए अर्थात् विचार प्रवाहपूर्ण होने चाहिए । साथ ही प्रत्येक विचार उसके अगले और पिछले वाक्य से उचित रूप से सम्बन्धित हो । विचारों एवं भावों की स्टष्टता व शुद्धता उसकी शृंखलाबद्ध पर निर्भर करती है ।
(3) एकता (Compactness):
पत्र में कृत्रिम शब्दों का प्रयोग भाषा को दुरूह बना देता है जिससे विचार व भाव तितर-बितर हो जाते हैं जिससे पाठक को समझने के लिए विशेष प्रयत्न और प्रयास करना पड़ना है । प्रत्येक विचार तर्कपूर्ण और कारण सहित कहा जाना चाहिए ।
(4) यथार्थता (Correctness):
पत्र में जो भी लिखा जाये, वह सत्य होना चाहिए । सत्यता और ईमानदारी व्यापार के मूल स्रोत माने जाते हैं । सत्य लिखने का आशय यह नहीं है कि अपने व्यापारिक भेदों को खोलकर रख दिया जाये अपीतु झूठी बातें नहीं लिखनी चाहिए क्योंकि ग्राहक को धोखा देने का मतलब अपने व्यापार की जड़ें काटना है । पत्र में जो भी बातें, मूल्य या कड़े दिये जायें, वे सर्वथा सत्य, विश्वसनीय एवं ठीक होने चाहिए इस सम्बन्ध में डॉ. रॉबर्ट रे आरनर ने कहा है कि- “अच्छा शिष्टाचार जो एक सज्जन मनुष्य की सम्पत्ति है, उसी प्रकार यथार्थता या सत्यता एक व्यापारी की सम्पत्ति है ।”
सत्य बातों व आंकड़ों को तोड़ना-मरोड़ना या गलत ढंग से प्रस्तुत करना व्यापार में बहुत हानिप्रद होता है । बिक्री का हिसाब, लेन-देन का लेखा, बीजक, चैक, ड्राफ्ट आदि भेजते समय उनकी राशि को अंकों और शब्दों दोनों में लिख देना चाहिए । ”व्यापारी को बात का पक्का और गांठ का पूरा होना चाहिए ।” यह कहावत अक्षरत: सत्य है । व्यापार की उन्नति उत्तम किस्म के माल, सत्य व्यापार एवं उत्तम आचार-व्यवहार से ही होती है ।
(5) संक्षिप्तता (Conciseness):
आधुनिक काल में व्यवसायी अत्यन्त व्यस्त होता है और फिर व्यापार में विशेषकर समय ही सम्पत्ति है । हर एक व्यापारी अपने समय का पूरा मूल्य समझता है । इसलिए व्यापारिक पत्रों में संक्षिप्तता होनी आवश्यक है कम शब्दों में अधिक बातें लिखी जानी चाहिए ।
व्यर्थ के लम्बे पत्र लिखने व पढ़ने में समय बर्बाद होता है संक्षिप्तता का यह अर्थ नहीं कि शिष्टता, पूर्णता और स्पष्टता के गुणों का ध्यान न रखा जाये, न ही व्याकरण के निमयों का उल्लंघन किया जाये उदाहरण के लिए, माल खरीद के समय आदेश देते समय तार की भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए, न भाषा ही कोर होनी चाहिए, जैसे- “माल तुरन्त भेजी देरी होगी तो आदेश रह समझो ।” इसी बात को पत्र में इस प्रकार लिखना चाहिए, “कृपया निम्नलिखित वस्तुएँ शीघ्र भेजने की व्यवस्था कीजिए तथा यह माल 10 दिन के अन्दर ही हमें मिल जाना चाहिए ।”
यदि संक्षिप्तता के कारण अनेक बार पत्र-व्यवहार करना पड़े तो संक्षिप्तता वरदान न रहकर विनाश का कारण बन जाती है इसलिए जहाँ तक उचित हो, वहाँ तक ही श्रेयस्कर है । संक्षिप्तता की वेदी पर स्पष्टता व पूर्णता का बलिदान महान् विनाशकारी एवं मूर्खतापूर्ण कार्य है ।
(6) पूर्णता (Completeness):
व्यापारिक पत्र में संक्षिप्तता होनी चाहिए परन्तु यह अत्यन्त आवश्यक है कि वह पूर्ण हो । पत्र जिस विषय के सम्बन्ध में लिखा गया है, उस विषय सम्बन्धी सभी आवश्यक बातों का समावेश उसमें होना चाहिए । कोई ऐसी बात उससे छूटनी नहीं चाहिए जिसे कि पत्र पाने वाला जानने की इच्छा व्यक्त करता हो अन्यथा अपूर्ण पत्र लिखने से व्यर्थ के पत्र-व्यवहार में समय, धन ही बर्बादी हो सकती है एवं मतभेद बढ़ सकते है उदाहरण के लिए, किसी वस्तु की खरीद के लिए आदेश भेजते समय उसकी मात्रा, किस्म, मूल्य, पैकिंग, भेजने का साधन, बीमा, बिल्टी, बैंक भुगतान आदि के बारे में भी स्पष्ट कर देना चाहिए ।
(7) सरल सामंजस्यता (Comprehensiveness):
व्यापारिक पत्र में भाषा व शैली ऐसी होनी चाहिए जिससे स्वाभाविक सरल सामंजस्यता के साथ स्पष्टता बनी रहे । अत: उसमें अप्रचलित शब्दों, कविताओं आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।
(8) ध्यान आकर्षण (Consideration):
व्यापारिक पत्र देखने में सुन्दर तथा आकर्षक होना चाहिए । साथ ही साथ उसे लिखते या टाइप करते समय विषय-सामग्री एवं विराम चिह्न का उचित ध्यान रखना चाहिए । विशेष महत्त्वपूर्ण शब्दों या वाक्यों की लिखावट या टाइप इस ढंग से हो कि वह पढ़ने वाले का ध्यान आकर्षित कर सके और उसके दिमाग में मन्त्र की तरह जम जाए ।
(9) शिष्टता (Courtesy):
व्यापारिक पत्र में शिष्ट और नम्र भाषा का प्रयोग होना चाहिए । चाहे पत्र पाने वाले ने भले ही अपने पत्र में अशिष्टता का परिचय दिया हो परन्तु कभी भी शिष्टता का व्यवहार नहीं छेड़ना चाहिए क्योंकि व्यापार में अशिष्ट भाषा और क्रोधवश लिखे गये पत्र घातक सिद्ध हो सकते है ।
जल जिस प्रकार अग्नि को बुझा देता है, उसी प्रकार नम्रता एवं शिष्टता अप्रसन्न और अस्पष्ट व्यक्ति को शान्त कर देती है । शिष्ट पत्र व्यापारी की ख्याति में सहायक होते हैं रकम वसूल करने, शिकायती-पत्र लिखने, अस्वीकृति के पत्र लिखने आदि में कड़े शब्द और अशिष्ट भाषा को दूर रखना चाहिए । शिष्टता को बनाये रखने में स्पष्टता और आत्म-सम्मान को नहीं छोड़ना चाहिए ।
(10) मौलिकता (Creativeness or Originality):
पत्र में प्राचीन वाक्यों का प्रयोग नहीं करना चाहिए, विषय में मौलिकता होनी चाहिए । इस प्रकार नूतन एवं मौलिक विधि प्रयोग करने और मौलिकतापूर्ण पत्रों द्वारा कुछ ही समय में बिक्री के नये स्रोत उभर आते हैं और आश्चर्यजनक वृद्धि हो सकती है । कभी भी कृत्रिम पत्र प्रभावशाली नहीं हो सकते । पत्र लेखक को अपने विषय में नहीं किन्तु पाने वाले के विषय को ध्यान में रखकर अधिक लिखना चाहिए ।
इस प्रतियोगिता के युग में आकर्षण एवं मौलिकता द्वारा ग्राहकों को अपने माल को लेने के लिए आग्रहपूर्वक प्रेरित करना पड़ता है । उदाहरण के लिए, जब से संयुक्त राज्य अमेरिका के व्यापारियों ने प्राचीन काल के कृत्रिम भाषा में लिखे गये लम्बे-लम्बे पत्रों की विधि को त्याग दिया और उनके स्थान पर छोटे-छोटे नूतन ढंग से मौलिक प्रभावशाली पत्र लिखने प्रारम्भ किये, तब से उनके व्यापार में अभूतपूर्व प्रगति हुई है । इस तरह मौलिक रीति से लिखे गये पत्र बिक्री और लाभ में आशातीत वृद्धि करते हैं ।
(11) स्वच्छता (Cleanliness):
व्यापारिक पत्र में स्वच्छता एवं सुन्दरता का होना परम आवश्यक है । असुन्दर व गन्दी लिखावट वाले पत्र पाठक पर कोई भी प्रभाव नहीं डाल पाते । शब्दों को स्थान-स्थान पर काटना नहीं चाहिए । शब्दों के हिज्जे (Spelling) ठीक ही तथा पत्र का अभिन्यास (Layout) विषय-सामग्री के अनुसार कागज के मध्य में एवं चित्ताकर्षक होना चाहिए ।
(12) प्रभावशीलता (Commanding or Forceful):
व्यापारिक पत्र प्रभावशाली होना चाहिए । प्रभावशीलता का अर्थ इस प्रतियोगिता के युग में व्यापारी को ग्राहकों के आदेश की पूर्ति ही करना नहीं होता बल्कि नये ग्राहक बनाना, नये बाजार क्षेत्र ढूँढ निकालना, अनिश्चित व्यक्तियों को प्रेरणा प्रदान करना आदि होता है । इस तरह पत्र में अपना उद्देश्य पूरा करने की योग्यता होनी चाहिए ।
पत्र इतना हृदयग्राही, आकर्षक और मन-विजयी होना चाहिए कि वह पाने वाले को लेखक के उद्देश्य व निवेदनानुसार कार्य करने के लिए उत्साहित करें व्यापारिक पत्र में मूल कथन और प्रेरणात्मक-पक्ष विशेष रूप से विश्वसनीय एवं प्रभावशाली होने चाहिए । व्यापारिक पत्र का प्रभावशाली होना सबसे बड़ा गुण है । पत्र में यह गुण सर्वगुण-सम्पन्न होने पर ही आ पाता है ।
2. बाह्य रूप सम्बन्धी गुण:
एक अच्छे व्यापारिक पत्र में बाह्य रूप सम्बन्धी निम्न गुण होने चाहिए:
(1) पत्र का कागज,
(2) लिफाफे आदि,
(3) पत्र का टाइप करना,
(4) पत्र को लिफाफे में रखना,
(5) टिकट लगाना, एवं
(6) पत्र को भेजना ।
(1) पत्र का कागज:
पत्र के लिए जो कागज प्रयोग में लाया जाये, वह उत्तम किस्म का होना चाहिए । वह न तो अधिक मूल्यवान् अर्थात् अनावश्यक रूप से खर्च बढ़ाने वाला न हो और न निम्न कोटि का ही हो । मितव्ययिता का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए । प्रयोग में आने वाले कागज का रंग प्राय: सफेद ही होना चाहिए ।
वैसे रंगीन कागज भी प्रयोग में लाया जा सकता है । इस दशा में यह देख लेना चाहिए कि लिखने वाली स्याही या टाइप के रिबन का रंग उस पर ठीक मेल खाये । इसके अलावा लैटर पैड की प्राय: दो साइजें प्रचलित हैं: 20X26 से.मी. और 13X21 से.मी. । साइज के सम्बन्ध में कोई नियत नियम नहीं है । पत्रों के साइज का चुनाव व्यापार की आवश्यकताओं के अनुरूप तथा पत्र में लिखी जाने वाली विषय-सामग्री के अनुसार ही होना चाहिए ।
(2) लिफाफे आदि:
देखने में आता है कि व्यापार-गृही में चौकोर लिफाफे प्रयोग में नहीं लाये जाते । साधारण: 9X15 से॰मी॰ से 8X16 से॰मी॰ साइज के लिफाफे अधिक प्रयोग होते हैं । यदि पत्रों के साथ अन्य प्रलेख भी भेजे जायें, तब बड़े साइज के लिफाफे 10.5X23 से॰मी॰ से 12X28 से॰मी॰ प्रयोग में लाये जाने चाहिए ।
लिफाफे के नीचे बायीं ओर प्रेषक, व्यापारिक फर्म का नाम व पता छपवा लेना चाहिए जिससे कि कर्मचारी इन्हें अपने लिए प्रयोग में न ला सकें । लिफाफे का कागज भी अच्छी किस्म का सफेद रंग का होना चाहिए यदि कार्बन का प्रयोग किया जाता है तो काला कार्बन अधिक उत्तम होता है । नीले या बैंगनी रंग के कार्बन भी आते हैं ।
(3) पत्र का टाइप करना:
पत्र हाथ से लिखने के स्थान पर यदि टाइप करके भेजा जाये तो ठीक होता है । आजकल पत्रों को कम्प्यूटर से तैयार करके भी भेजा जाता है ।
टाइप करते समय पत्र को खूबसूरत व आकर्षक बनाने के लिए निम्न बातों का अवश्य पालन करना चाहिए:
(i) पत्र की सजावट का ध्यान रखना:
पत्र बड़ी खूबसूरती से टाइप अथवा कम्प्यूटर से तैयार करना चाहिए । विषय-वस्तु बीचों-बीच में टाइप की जानी चाहिए प्रत्येक लाइन के बीच में ‘डबल स्पेस’ होनी चाहिए । यदि अधिक विषय टाइप करना हो तो ‘सिंगल स्पेस’ पर भी टाइप किया जा सकता है ।
(ii) हाशिया का ध्यान रखना:
पत्र के बायीं ओर प्राय: 2X3.5 से.मी. तक का हाशिया छोड़ा जाता है । दायीं ओर इससे आधा हाशिया होता है दायीं ओर से हाशिये के लिए टाइप मशीन में बजने वाली घाटी का ध्यान रखना चाहिए ।
(iii) शुद्धता:
टाइप करते समय शुद्धता की ओर अधिक ध्यान देना चाहिए । एक भी त्रुटि अथवा ओवर-टाइपिंग न होने पाये जहाँ तक हो सके, रबड़ का उपयोग न किया जाये ।
(iv) नया पैराग्राफ:
इस सम्बन्ध में अमेरिकन व इंग्लिश दो तरीके हैं । इंग्लिश तरीके के अनुसार 5 से 10 डिग्री तक की स्पेस नये पैरा के लिए छोड़ी जाती है । अमेरिकन तरीके में शुरू से ही टाइप किया जाता है किन्तु यह आवश्यक है कि पैराग्राफ समाप्त होने के बाद दूसरा पैराग्राफ डबल या ट्रिपल स्पेस देकर टाइप करना चाहिए, ताकि पैराग्राफ अलग-अलग दिखाई दे सकें ।
(v) एकरूपता:
टाइप करते समय सभी अक्षर एक ही दबाव से टाइप करने चाहिए । ऐसा करने से सब अक्षर एकसमान लगते हैं । यदि अधिक या कम दबाव देकर टाइप किया जाता है तो पत्र में कहीं हल्का टाइप व कहीं गहरा टाइप दिखायी देगा ।
(vi) रेखांकन करना:
जिस बात पर प्राप्तकर्त्ता का विशेष ध्यान दिलाना हो, उसे रेखांकित कर देना चाहिए ।
(4) पत्र को लिफाफे में रखना:
पत्र को बड़ी सावधानी से मोड़कर रखना चाहिए जिससे कि एक भी सिलवट न पड़े । इस कार्य के लिए बड़े-बड़े व्यापार-गृहों में फोल्डिग मशीन का प्रयोग किया जाता है लिफाफे पर पता शुद्ध व स्पष्ट लिखा जाना चाहिए तथा पता बीचों-बीच ही लिखा जाये । पारदर्शी लिफाफे (Window envelops) का भी प्रयोग किया जा सकता है । उस दशा में पत्र को ठीक प्रकार से फोल्ड करके इस तरह रखना चाहिए कि पत्र का पता लिफाफे के बाहर से पढ़ा जा सके । Local, Personal, Urgent, Registered, Through Courier, Express Delivery व Air Mail शब्द लिफाफे पर रबड़ की स्टाम्प से छापे जाने चाहिए ।
(5) टिकट लगाना:
पत्र को लैटर बॉक्स में डालने से पूर्व उस पर उचित मूल्य के टिकट ऊपर की ओर लगाने चाहिए । यदि टिकट छोटे मूल्य के है तो लिफाफे के पीछे भी इन्हें लगाया जा सकता है । बड़े-बड़े कार्यालयों में टिकट लगाने के लिए ‘फ्रैन्किग मशीन’ का प्रयोग किया जाता है जिससे टिकट चिपकने के स्थान पर छप जाता है ।
(6) पत्र को भेजना:
पत्र पर टिकट लगाने के बाद यदि पत्र को साधारण डाक से भेजना है, तब तो उसे लैटर बॉक्स में डलवा देना चाहिए । यदि उसे पंजीकृत डाक से भेजना है, तब उसे किसी व्यक्ति के माध्यम से डाकघर में पंजीकरण हेतु देना चाहिए । पत्र को कौरियर के माध्यम से भी भेजा जा सकता है ।