प्रबंधन का विकास सोचा | Read this article in Hindi to learn about the development of management thought by eminent management thinkers.

मानव सभ्यता के विकास के साथ ही प्रबन्ध के विकास की कहानी जुडी है । यदि यूँ कहा जाए कि प्रबन्ध की कला उतनी ही प्राचीन है जितना कि मानव सभ्यता का इतिहास तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । डेविड होल्ड (David Holt) के अनुसार- “प्रबन्ध उतना ही पुराना है जितना कि मानव समाज ।”


प्रबंधन का विकास सोचा | Development of Management Thought in Hindi

सी.एन.ग्रेगर (C.N. Gregar) के शब्दों में- “प्रबन्ध के विकास की कहानी आवश्यक तौर पर मानव के विकास की कहानी है ।” प्रारम्भ में प्रबन्ध सामान्य रूप में व्यक्तिगत नेतृत्व के रूप में था । समय गुजरने के साथ मनुष्यों के समूहों का जन्म हुआ, जिनका नेतृत्व करने वालों ने कुछ सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए समूह के लोगों को निर्देशित, नियन्त्रित तथा समन्वित करना प्रारम्भ कर दिया । थियो हैमन के अनुसार- “मानवीय प्रयासों का समन्वय उतना ही पुराना है जितना कि मनुष्य । अत: यह कहा जा सकता है कि प्रबन्ध का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि मनुष्य ।” अतएव प्रबन्ध क्रिया का सूत्रपात उसी से हो गया था जब से मनुष्य ने एक-दूसरे के साथ मिलकर समूह में कार्य शुरू किया होगा ।

प्राचीन काल में भी प्रबन्ध का प्रयोग होता था आज से 5000 वर्ष पूर्व सुमेरियन सभ्यता में आधुनिक प्रबन्धकीय नियन्त्रण का उदाहरण मिलता है । मिस्र के पिरामिडों से वहाँ की तकनीकी एवं प्रबन्धकीय क्षमता का पता लगता है । बेबीलोनीयन के राजा हम्मूराबी के शासन काल में शहरों की व्यवस्था, व्यक्तिगत सम्पत्ति की रक्षा के लिए वैधानिक व्यवस्था, हम्मूराबी कोड (Code of Hammurabi) में न्यूनतम मजूदूरी का दृष्टिकोण, विशेषज्ञों का होना, उस समय की प्रबन्ध व्यवस्था को स्पष्ट करते हैं ।

यूनान की सभ्यता में सुकरात एवं प्लेटो आदि विद्वानों ने प्रबन्ध के विचारों को एक नई प्रेरणा दी । सुकरात प्रबन्ध को कला मानते थे । प्लेटो के अनुसार विशिष्टीकरण के बिना कार्य कुशलता से पूरा नहीं किया जा सकता ये प्रबन्ध प्रचलन के अच्छे उदाहरण हैं चीन में ईसा से 1644 वर्ष पूर्व श्रम-विभाजन के सिद्धान्त का प्रयोग किया गया चीन का सविधान जो सम्भवतया ईसा से 1100 वर्ष पूर्व लिखा गया उसमें अधीनस्थों के अधिकार, कर्त्तव्य एवं उत्तरदायित्वों की स्पष्ट व्याख्या, उस समय की व्यवस्था के अच्छे संकेत हैं ।

रोम जो दूसरी शताब्दी का सभ्यतम देश माना जाता है, वहाँ के लेखों से स्पष्ट है कि वहाँ आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक मामलों के लिए कुशल-संगठन विद्यमान था । वहाँ के प्रशासन में स्केलर सिद्धान्त तथा अधिकार का भारापर्ण जैसे सिद्धान्तों का व्यापक प्रयोग हुआ ।

भारत में, कौटिल्य ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र में नगरों तथा राज्य के प्रबन्ध तथा प्रशासन के सिद्धान्तों का विवेचन किया है । सिन्धु घाटी की सभ्यता से प्राप्त शिलालेखों आदि से उस समय की प्रबन्धकीय क्षमता का अनुमान लगाया जा सकता है । “वेदों” में वर्णित प्रशासन व्यवस्था उस युग के प्रबन्ध के स्वरूप को बतलाती है ।

इसी प्रकार, रामायण एवं महाभारत काल में अनेक उल्लेख उस समय की प्रबन्धकीय क्षमता के अच्छे उदाहरण हैं प्राचीन मैसोपोटामिया में पादरियों का एक दल था जो अपने प्रबन्ध कौशल के लिए विख्यात था बाइबल में भी प्रबन्ध सम्बन्धी एक उदाहरण उल्लेखनीय है ।

“मूसा ने सारे इजराइल में से योग्य व कुशल व्यक्तियों को प्रबन्ध के लिए चुना तथा उन्हें विभिन्न विभागों एवं कर्मचारियों का प्रधान बनाया । इन्हीं चुने हुए व्यक्तियों को लोगों के मामलों का फैसला करने का अधिकार दिया गया तथा केवल कठिन मामले ही मूसा के सम्मुख पेश किए जाते थे ।”

इस उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि उस समय भी योग्य व्यक्तियों का चुनाव एवं अधिकारों का भारापूर्ण का सिद्धान्त तथा अपवाद का सिद्धान्त आदि का प्रचलन था सैनिक संगठनों ने भी प्रबन्ध के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।

केमिरालिस्ट (The Cameralists) जर्मन तथा आस्ट्रियन (Austrian) सार्वजनिक प्रशासकों तथा विद्वानों का एक समूह था । जिन्होंने कार्यात्मक विशिष्टीकरण तथा प्रशासकीय पदों के लिए व्यक्तियों के चुनाव तथा प्रशिक्षण के सिद्धान्त प्रतिपादित किए । इन्होंने सरकार में ‘नियन्त्रक’ के पद की स्थापना की सिफारिश की तथा प्रशासकीय विधियों के सरलीकरण पर बल दिया ।

अल्फराबी (Alfarabi) ने दसवीं सदी के प्रशासकों के लिय कार्य-विवरण (Job Description) का वर्णन किया था । सन् 1100 में गाज़ालि (Ghazali) ने राजा को यह सलाह दी थी कि प्रबन्ध के रूप में कौन-कौन से गुणों का विकास किया जाना चाहिए सर थामस मूर (Sir Thomas More) ने एक आदर्श समाज के प्रबन्ध के लिए अपने विचार प्रकट किये थे इस काल में बारहवीं तेरहवीं शताब्दी तक इग्लैंड, क्रास तथा इटली में ‘गिल्ड प्रणाली’ (Guild System) का विशेष महत्व रहा है ।

“मध्य युग के ओद्योगिक प्रबन्ध का इतिहास इंग्लैंड फ्रांस तथा इटली में इन्हीं गिल्डों का इतिहास है ।” व्यापारिक गिल्ड से अभिप्राय उन लोगों एवं कारीगरों की संस्थाओं से है, जो विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए थे । इन गिल्डों की प्रमुख विशेषता यह थी कि इनमें वे ही लोग शामिल हो सकते थे जो कि स्वयं कारीगर अथवा शिल्पकार थे ।

इससे एक यह लाभ हुआ कि विशिष्टीकरण (Specialisation) को प्रोत्साहन मिला । किन्तु उपभोक्ताओं की रुचि में परिवर्तन तथा पारस्परिक द्वेष के कारण पन्द्रहवीं शताब्दी तक इन गिल्डों का अन्त हो गया इग्लैंड की गिल्डों की तरह ही भारत में जातीय पचायतें संगठित थी । इनमें व्यवसाय का विभाजन जाति के आधार पर था ।

अतएव इस काल में उत्पादन क्रिया सरल थी तथा उत्पादन छोटे पैमाने पर होता था बाजार का क्षेत्र सीमित था उत्पादक तथा ग्राहक का सीधा सम्बन्ध था उद्योग का स्वामित्व-हस्तान्तरण पिता से पुत्र को होता था । पुत्र अपने पिता से ही उत्पादन की तकनीकें तथा विधियाँ सीखता था । इस प्रकार इस काल में “परम्परागत प्रबन्ध (Traditional Management) का प्रचलन था ।

औद्योगिक क्रान्ति (Industrial Revolution):

अठारहवीं शताब्दी को औद्योगिक क्रान्ति की जन्मदात्री कहा जाता है । इस क्रान्ति के फलस्वरूप औद्योगिक जगत में क्रान्तिकारी परिवर्तन होने प्रारम्भ हो गए । उत्पादन के क्षेत्र में मशीनों का बड़े पैमाने पर प्रयोग शुरू हुआ । परिणामस्वरूप बड़े पैमाने के उत्पादन को प्रोत्साहन मिला तथा फारखाना प्रणाल का जन्म हुआ ।

इस क्रान्ति ने प्रबन्ध के स्वरूप को ही बदल दिया जैसा कि निम्नलिखित से स्पष्ट है:

(i) “प्रबन्ध” तथा “स्वामित्व” अलग-अलग हो गए ।

(ii) प्रबन्धक वर्ग की आवश्यकता उत्पन्न हुई ।

(iii) प्रबन्ध में श्रम-विभाजन तथा विशिष्टीकरण के सिद्धान्तों को प्रोत्साहन मिला ।

(iv) नए वैज्ञानिक आविष्कारों तथा तकनीकी अनुसंधानों ने प्रबन्धकीय दर्शन में आधारभूत परिवर्तन किए ।

(v) प्रबन्ध में नवीन टैक्नोलॉजी व तकनीकों का प्रभाव बढ़ गया ।

(vi) प्रबन्ध का व्यवसायीकरण भी सम्भव हुआ अर्थात् प्रबन्ध एक पेशे के रूप में स्वीकार किया जाने लगा ।

सन् 1700 से पूर्व का समय ऐसा रहा जिसमें या तो तकनीकों का विकास हुआ ही नहीं या फिर जो विकास हो पाया, उसको एक व्यवस्थित रूप नहीं मिल पाया । यहाँ यह कहना उचित होगा कि यह काल प्रबन्ध विचारधारा के दृष्टिकोण से इतना महत्वपूर्ण नहीं है । इसका केवल शैक्षणिक महत्व (Academic Importance) है ।

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