Read this article in Hindi to learn about the concept of management.
प्रबन्ध की अवधारणा निश्चित या स्थिर नहीं है । समय और परिस्थितियों में परिवर्तन के कारण प्रबन्ध की में भी होते रहे हैं । यही कारण अब तक प्रबन्ध अवविकसित चुकी हैं । इन विभिन्न अवधारणाओं पर करने से पूर्व एक लघु कथा का उल्लेख करना आवश्यक न होगा ।
प्रबंधन की अवधारणा | Concept of Management in Hindi Language
कथानक के अनुसार पाँच अन्धे व्यक्तियों ने एक हाथी को पकड़ लिया और जिसके हाथ में हाथी का अंग आया, वह उसी रूप में हाथी की अवधारणा करने लगा । हाथी का पैर पकड़ने वाले अन्धे ने उसे खम्भा जैसा बताया, पूँछ पकड़ने वाले व्यक्ति ने उसे सर्प की संज्ञा दी, सूँड पकड़ने वाले व्यक्ति उसे बल्ली जैसा बताया, कान पकड़ने वाले व्यक्ति ने उसे सूप जैसा बताया और पेट वाले व्यक्ति ने हाथी को मशक जैसा बताया । इसी प्रकार ‘प्रबन्ध’ को भी जिस व्यक्ति ने जिस रूप में देखा, उसने उसी के अनुरूप की अवधारणा कर ली ।
हमारी सम्पत्ति में प्रबन्ध की विभिन्न अवधारणाओं का वर्णन करने से पूर्व “अवधारणा” शब्द का अर्थ स्पष्ट करना आवश्यक है । वेब्स्टर (Webster) शब्दकोष के अनुसार, ”अवधारणा एक निराकार विचार है जिसे विशिष्ट उदाहरणों या दृष्टान्तों से सामान्यीकृत किया गया है ।” वास्तव में, अवधारणा एक विचार मन स्थिति या धारणा है जो किसी भी वस्तु, क्रिया, तकनीक आदि के सम्बन्ध में व्यक्ति के मन मस्तिष्क पर अंकित होती है ।
थियो हैमन की प्रबन्ध की अवधारणा (Theo Haimann’s Concept of Management):
प्रोफेसर थियो हैमन ने प्रबन्ध की निम्न तीन अवधारणाओं का उल्लेख किया है:
(1) प्रबन्ध अधिकारियों (Managerial Personnel) की अवधारणा स्वरूप,
(2) प्रबन्ध विज्ञान (Management Science) की अवधारणा स्वरूप तथा
(3) प्रबन्ध प्रक्रिया (Management Process) की अवधारणा स्वरूप ।
प्रथम अवधारणा के अनुसार प्रबन्ध से आशय, सामान्यत: प्रबन्ध अधिकारियों में होता है जिसके अन्तर्गत किसी सम्बन्धित इकाई में कार्य करने वाले लोगों के कार्यो पर नियन्त्रण स्थापित किया जाता है ।
द्वितीय अवधारणा के अनुसार प्रबन्ध से आशय ऐसे विज्ञान से होता है जिसमें व्यावसायिक नियोजन संगठन संचालन समन्वय प्रेरणा तथा नियन्त्रण से सम्बन्धित सिद्धान्तों का वैज्ञानिक विश्लेषण होता है ।
तृतीय अवधारणा के अनुसार, प्रबन्ध शब्द का अर्थ एक प्रक्रिया के रूप में लिया गया है जिसके अन्तर्गत लोगों के साथ मिल-जुलकर कार्य किया जाता है । इन तीनों अवधारणाओं में से तृतीय अवधारणा अर्थात् प्रक्रिया अवधारणा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है ।
प्रबन्ध प्रक्रिया में नियोजन, संगठन, अभिप्रेरणा तथा नियन्त्रण को सम्मिलित करते हैं क्योंकि उद्योग में पाँच ‘एम’ अर्थात्:
(i) मानव (Men),
(ii) माल (Material),
(iii) मशीन (Machine),
(iv) मुद्रा (Money) तथा
(v) विधि (Method) के श्रेष्ठतम एवं कुशलतम उपयोग से ही अन्तिम लक्ष्य की प्राप्ति सम्भव है ।
हैराल्ड कूण्ट्ज ओ‘ डोनेल की प्रबन्ध की अवधारणा (Harold Koontz’s O. Donnel Concept of Management):
हैरोल्ड कूण्ट्ज ओ. डोनेल की प्रबन्ध सम्बन्धी अवधारणा के अनुसार- “प्रबन्ध औपचारिक रूप से संगठित व्यक्तियों के समूह के साथ उनके द्वारा कार्य कराने की कला है ।” इनकी प्रबन्ध सम्बन्धी यह अवधारणा प्रबन्ध के आधुनिक दर्शन पर आधारित है । आधुनिक परिस्थितियों में प्रबन्ध अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से तभी काम ले सकता है जबकि वह स्वयं उनके साथ मिलकर काम करने के लिए तत्पर हो । उपरोक्त दोनों अवधारणाओं के साथ-साथ प्रबन्ध की अन्य विद्वानों द्वारा दी गई अवधारणाएँ भी हैं ।
इस दृष्टि से प्रबन्ध की प्रमुख अवधारणाएँ निम्नलिखित हैं:
(1) उत्पादन के साधन की अवधारणा (Factor of Production Concept):
प्राचीन अर्थशास्त्रियों ने प्रबन्ध को उत्पादन के एक साधन की संज्ञा दी उनके अनुसार भूमि, श्रम, पूँजी साहस आदि के समान प्रबन्धन भी उत्पादन का एक साधन ही है । यह उत्पादन के अन्य साधनों के कुशल उपयोग को सम्भव बनाता है ।
(2) वर्ग अवधारणा (Class Concept):
वर्ग के रूप में प्रबन्ध व्यक्तियों का ऐसा समूह है जो किसी सस्था के प्रबन्ध का कार्य करता है । इस प्रकार प्रबन्ध का अर्थ प्रबन्ध करने वाले व्यक्तियों से है जिन्हें प्रबन्धक कहा जाता है । ये प्रबन्धक सस्था में कार्यरत कर्मचारियों की क्रियाओं का मार्गदर्शन एवं नियन्त्रण करते हैं और निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति का प्रयास करते हैं । प्रबन्धकों में उच्चस्तरीय प्रबन्धकों से लेकर निम्नतम स्तर का पर्यवेक्षकीय दायित्व निर्वाह करने वाले पर्यवेक्षकों, निरीक्षकों आदि को भी सम्मिलित किया जाता है ।
(3) अधिकार सत्ता अवधारणा (Power of Right Concept):
प्रबन्ध को अधिकार सत्ता की प्रणाली भी कहा गया है यह प्रणाली निर्णय लेने और उनको क्रियान्वित करने की अधिकार सत्ता से बनी होती है । हरबिसन तथा मायर्स (Harbison and Myers) के अनुसार- “प्रबन्ध नियम बनाने तथा नियमों का पालन कराने वाली संस्था है जो अधीनस्थों एवं अधिकारियों के सम्बन्ध के धागों से बँधी होती है ।”
यदि हम इतिहास पर दृष्टिपात करें तो ज्ञात होगा कि प्रबन्ध का अधिनायकवादी रूप ही सर्वप्रथम सामने आया और तत्पश्चात् ही क्रमश: मानवतावादी संवैधानिक तथा वर्तमान में प्रजातान्त्रिक एवं सहभागी रूप विकसित हुआ ।
(4) वैज्ञानिक अवधारणा (Scientific Concept):
कुछ विद्वानों के अनुसार वैज्ञानिक अवधारणा आधुनिक प्रबन्ध की आधारशिला है । प्रबन्ध की वैज्ञानिक अवधारणा के अनुसार प्रबन्ध एक ऐसा विज्ञान है जो नियोजन, संगठन, समन्वय, संचालन । अभिप्रेरण तथा नियन्त्रण से सम्बन्धित सिद्धान्तों का वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत करता है । प्रबन्ध के अन्तर्गत की जाने वाली प्रत्येक क्रिया का कुछ-न-कुछ वैज्ञानिक आधार होता है ।
वैज्ञानिक प्रबन्ध अवधारणा की एक आधारभूत मान्यता है कि- “प्रत्येक कार्य को करने की एक सर्वोत्तम विधि है ।” प्रबन्ध से आशय कार्य करने की सर्वोत्तम विधि की खोज करना एव न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन को सम्भव बनाना है । इस अवधारणा के जन्मदाता टेलर के शब्दों में, “प्रबन्ध यह जानने की कला है कि आप क्या करना चाहते हैं, तत्पश्चात् यह देखना है कि आप इसे सर्वोत्तम एवं मितव्ययितापूर्वक करते हैं ।”
(5) कार्यात्मक अवधारणा (Functional Concept):
प्रबन्ध की कार्यात्मक अवधारणा इसे एक प्रक्रिया के रूप में मानती है । इस अवधारणा को मानने वालों में हेनरी, फेयोल, पीटर एफ. ड्रकर, थियो हैमन, जार्ज आर. टैरी, कूण्ट्ज एवं ओ डोनैल, मिलवर्ड, ब्रेच, मैकफारलैण्ड आदि प्रमुख हैं । जी.ई. मिलबर्ड के अनुसार, “प्रबन्ध एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से नीतियों का क्रियान्वयन, नियोजन एवं पर्यवेक्षण किया जाता है ।” यदि देखा जाये तो आधुनिक प्रबन्ध अवधारणा का व्यावहारिक रूप प्रबन्ध की कार्यात्मक अवधारणा ही है ।
इस अवधारणा के अनुसार प्रबन्ध नियोजन, संगठन, निर्देशन एव नियन्त्रण आदि कार्यों की प्रक्रिया को कुशलतापूर्वक सम्पन्न कर निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है । कार्यात्मक या प्रक्रिया अवधारणा यह मानकर चलती है कि प्रबन्ध के कुछ सिद्धान्त होत हैं जो सार्वभौमिक हैं और इन सिद्धान्तों के आधार पर ही प्रबन्ध-प्रक्रिया को सम्पादित किया जाना चाहिए ।
(6) विधा अवधारणा (Discipline Concept):
विधा अथवा विषय अथवा ज्ञान की शाखा अवधारणा के रूप में प्रबन्ध एक व्यवस्थित ज्ञान है जिसका शिक्षण-प्रशिक्षण किया जा सकता है इस अर्थ में प्रबन्ध भी प्राकृतिक एवं भौतिक विधाओं के समान ही एक विधा है जिसके अनेक अनुयायी है जो प्रबन्ध ज्ञान की निरन्तर खोज एवं सत्यापन तथा ज्ञान के प्रसार मै लगे हुए हैं विधा के रूप में प्रबन्ध, विज्ञान व कला का मिश्रण माना गया है ।
(7) नेतृत्व अवधारणा (Leadership Concept):
प्रबन्ध की इस अवधारणा का आशय एक ऐसी विचार-शक्ति से है जो संगठन के निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु नेतृत्व द्वारा सम्पूर्ण सगठन में प्रयुक्त की जाती है । सामान्य स्तर पर औपचारिक रूप से इस प्रकार के नेतृत्व का निर्माण एवं विकास सगठन के वातावरण एव उसके सदस्यों की आवश्यकताओं का पूर्ण रूप से ध्यान देते हुए किया जाता है । संस्था में ऐसा नेतृत्व व्यापक रूप से लागू होने पर ही सम्पूर्ण संगठन में कुशलता सन्तुलन एव निरन्तरता की आशा की जा सकती है । कुशल नेतृत्व द्वारा ही उत्पादन एवं उत्पादकता दोनों में वृद्धि की जा सकती है ।
(8) निर्णय की अवधारणा (Decision-Making Concept):
इस अवधारणा के अनुसार प्रबन्ध एक निर्णय प्रक्रिया है क्योंकि प्रबन्धकों का अधिकांश समय निर्णय लेने में ही व्यतीत होता है । निर्णयों की गुणवत्ता पर ही लक्ष्यों की प्राप्ति सम्भव होती है श्रेष्ठनिर्णयन हेतु आवश्यक है कि प्रबन्धन न केवल उपलब्ध तथ्यों सूचनाओं व विद्यमान परिस्थितियों को ध्यान में रखे बल्कि उन निर्णयों के भविष्य में पड़ने वाले प्रभावों को भी पर्याप्त महत्व दे ।
(9) सार्वभौमिकता की अवधारणा (Universality Concept):
प्रबन्ध की सार्वभौमिकता की अवधारणा हेनरी फेयोल की देन है । उनके अनुसार, “प्रबन्ध एक सार्वभौमिक किया है जो प्रत्येक संस्था में चाहे वह धार्मिक हो, सामाजिक हो अथवा व्यावसायिक एवं औद्योगिक हो समान रूप से सम्पन्न की जाती है ।”
लारेंस ए. एप्पले के अनुसार, “जो प्रबन्ध कर सकता है, वह किसी का भी प्रबन्ध कर सकता है ।” थियो हैमन के अनुसार, “जो प्रबन्ध के सिद्धान्त विश्व-व्यापक हैं । वे किसी भी प्रकार के उपक्रम में, जहाँ पर मनुष्य के समन्वित प्रयास होते हैं, लागू किये जा सकते हैं ।” आधुनिक प्रबन्धक प्रबन्ध की सार्वभौमिकता की अवधारणा पर आज सबसे अधिक बल देते हैं । यही कारण है कि इस अवधारणा का आज द्रुतगति से विकास हो रहा है ।
(10) पेशेवर अवधारणा (Professional Concept):
आधुनिक प्रबन्धक प्रबन्ध को एक पेशा मानते हैं । अमेरिकन प्रबन्ध ऐसोसिएशन के अनुसार- “प्रबन्ध एक पेशा है और उसी रूप में आज इसका विकास हो रहा है ।” विश्व के लगभग सभी विकसित राष्ट्रों (जैसे: अमेरिका, जापान, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी आदि) ने प्रबन्ध को एक पेशे के रूप में स्वीकार किया है ।
हमारे देश में भी वर्तमान में पूँजीपति प्रबन्धकों का स्थान पेशेवर प्रबन्धकों ने ग्रहण करना आरम्भ कर दिया है ।
प्रबन्ध का शिक्षण एवं प्रशिक्षण प्रदान करने वाले संस्थानों की संख्या तेजी से बड़ी है जिनमें प्रतिवर्ष हजारों पेशेवर प्रबन्धक तैयार हो-होकर निकल रहे हैं । इस प्रकार प्रबन्ध तेजी से एक कैरियर (Career) या पेशा बनता जा रहा है ।
(11) अन्य लोगों द्वारा उनके साथ मिलकर कार्य करने की अवधारणा (Getting Things done through and with Other’s Concept):
कुछ व्यक्ति प्रबन्ध की अवधारणा का अर्थ अन्य व्यक्तियों से कार्य लेने से लगाते हैं ।
इस परम्परागत अवधारणा के समर्थकों का कथन है कि प्रबन्धक दूसरे व्यक्तियों से कार्य कराते हैं और स्वयं कोई कार्य नहीं करते किन्तु केवल अन्य व्यक्तियों से कार्य लेना ही अब आधुनिक प्रबन्ध अवधारणा का अंग नहीं समझा जाता क्योंकि:
(i) यह अत्यन्त संकीर्ण अर्थ है और
(ii) इसमें तानाशाही की दुर्गन्ध आती है ।
अत: आधुनिक युग में प्रबन्ध की इस अवधारणा का कोई महत्व नहीं है । इसके विपरीत, आधुनिक प्रबन्धक- “अन्य लोगों द्वारा तथा उनके साथ मिलकर कार्य करना” ही प्रबन्ध दर्शन की आधुनिक अवधारणा मानते हैं । वर्तमान में किसी संस्था को सफलता प्राप्त करनी है तो उसके प्रबन्धकों को अन्य व्यक्तियों के साथ मिलकर कार्य करना होगा । कुण्द्ज एवं ओ डोनैल के अनुसार- ”औपचारिक वर्गों में संगक्ति व्यक्तियों द्वारा एवं उनके साथ मिलकर कार्य करने की कला का नाम ही प्रबन्ध है ।”
(12) सामूहिक प्रयास अवधारणा (Group Effort Concept):
प्रबन्ध की सामूहिक प्रयास अवधारणा के अनुसार एक व्यक्ति अलग-अलग रहकर कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकता । अत: निर्धारित उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सामूहिक प्रयासों की व्यवस्था अर्थात् नियोजन, सगठन, निर्देशन, समन्वय अभिप्रेरण तथा नियन्त्रण आवश्यक है और इसी का नाम प्रबन्ध है ।
(13) प्रणाली अवधारणा (System Concept):
आधुनिक प्रबन्ध विशेषज्ञ प्रबन्ध को एक प्रणाली के रूप में मानते हैं । उनके अनुसार विभिन्न प्रकार की औद्योगिक एवं व्यावसायिक जटिलताओं पर विजय पाने के लिए प्रबन्ध की प्रणाली अवधारणा एक मुख्य आधार है । या अवधारणा संगठन में समस्त क्रियाओं की अन्त: निर्भरता एवं अन्तर्सम्बन्धितता पर जोर देता है ।
क्रियात्मक अनुसंधान, व्यवहारवादी विज्ञान (Behavioural Science), सूचना प्रणाली आदि तकनीकें इसी में सम्मिलित हैं । प्रणाली अवधारणा सभी क्रियाओं के एकीकरण एक समन्वय पर बल देती ही है, साथ ही उपप्रणालियों के पूर्ण विकास की ओर भी पर्याप्त ध्यान देती है ।
(14) मानवीय सम्बन्ध अवधारणा (Human Relations Concept):
इस अवधारणा के प्रतिपादक प्रो. एल्टन मेयो एवं उनके सहयोगियों के अनुसार कर्मचारी भी एक मानव है । अत: प्रबन्धकों को चाहिए कि के कर्मचारियों के साथ समानता का व्यवहार करें और उनके हितों को सामान्य हितों के साथ सम्बद्ध कर अच्छे पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित करें । इससे कर्मचारियों के आत्म-सम्मान में वृद्धि होती है और कार्य का वातावरण सुधरता है । परिणामस्वरूप कार्य-कुशलता बढ़ती है और लक्ष्यों की प्राप्ति आसान हो जाती है ।
(15) व्यवहारवादी अवधारणा (Behavioural Concept):
प्रबन्ध की यह नवीन अवधारणा व्यक्ति के व्यक्तिगत एवं सामूहिक व्यवहार के सम्बन्ध में अन्तर्दृष्टि विकसित करने की प्रेरणा देती है । इस अवधारणा का सम्बन्ध मनोविज्ञान (Psychology), समाजशास्त्र (Sociology) तथा मानवशास्त्र (Anthropology) के समूह से है । यह व्यक्तियों एवं संगठन को प्रभावी तग से एकीकृत करती है । व्यवहारवादी अवधारणा का उद्देश्य साक्ष्य पर आधारित मानवीय व्यवहार को समझना, स्पष्ट करना, पूर्वानुमान करना एवं नियन्त्रित करना है ।
(16) सांयोगिक अधवा परिस्थितिजन्य (Situational Concept):
इस अवधारणा के अनुसार प्रबन्ध परिस्थितिजन्य (Situational) है । अत: परिस्थितियों व घटनाओं के अनुरूप प्रबन्ध करके ही सफलता प्राप्त की जा सकती है । पूर्व-निर्धारित विधियों या सिद्धान्तों का प्रयोग करने के स्थान पर तात्कालिक परिस्थितियों के अनुरूप कार्य किया जाना चाहिए ।