प्रबंधन विचार के योगदानकर्ता | Read this article in Hindi to learn about the four main contributors of management. The contributors are: 1. Robert Owen, 1771 – 1858 2. Charles Babbage 3. Henry Robinson Towne, 1844-1924 4. James Watt and Mathew Robinson Boulton, 1796-1848 and 1770-1842.
प्रबंधन विचार के योगदानकर्ता | Contributors of Management Thought
Contributor # 1. राबर्ट ओवन (Robert Owen, 1771 – 1858):
श्री राबर्ट ओवन सन् 1690 में न्यू लेनार्क (स्कॉटलैंड) स्थित एक वस्त्र मिल के प्रबन्धक नियुक्त किए गये सन् 1794 में इन्होंने इस मिल को छोड़ कर चार्लेटन ट्विस्ट कम्पनी में साझेदारी स्वीकार ली जिसमें आप सन् 1800 से 1828 तक प्रबन्ध संचालक रहे । इस प्रकार राबर्ट ओवन एक प्रबन्धक तथा सफल उद्योगपति के साथ-साथ समाज सुधारक भी थे ।
प्रबन्ध में उनका योगदान निम्नलिखित है:
(1) मानवीय दृष्टिकोण (Human Approach):
उन्होंने मानवीय संसाधनों के महत्व को पहचाना उनके अनुसार उद्योग के दो अंग होते हैं:
(i) निर्जीव यन्त्र (मशीन);
(ii) सजीव यन्त्र (मनुष्य) ।
उनका मत था कि जितना ध्यान मशीन की सुरक्षा सफाई एवं परीक्षण आदि पर दिया जाता है उतना ही ध्यान कर्मचारी पर दिया जाना चाहिए । यदि कर्मचारियों के साथ मानवीय व्यवहार किया जाएगा तो वे अच्छा कार्य करेंगे तथा उत्पादन में वृद्धि होगी आज के युग के सकारात्मक अभिप्रेरण (positive Motivation) के सिद्धान्त को इसी का सुधरा रूप कहा जा सकता है ।
(2) कार्यदशाओं में सुधार (Improvement in Working Conditions):
ओवन का विश्वास था कि कर्मचारियों की कार्यक्षमता आन्तरिक तथा बाहरी दोनों प्रकार के वातावरण से प्रभावित होती हैं । इसलिए किसी भी संस्था के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए कुल वातावरण में सुधार लाना चाहिए ।
उन्होंने कार्यदशाओं में सुधार के लिए निम्न विचार रखे:
(i) कार्य के घण्टों में कमी,
(ii) बाल श्रमिकों को कारखाने में कार्य पर न लेना,
(iii) अनुशासन बनाए रखना,
(iv) श्रमिकों को स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा देना,
(v) श्रमिकों के बच्चों को शिक्षा की सुविधाएँ प्रदान करना,
(vi) कर्मचारियों को कारखाने में भोजन की सुविधा प्रदान करना,
(vii) मनोरंजन केन्द्रों का आरम्भ करना एवं
(viii) श्रमिकों को आवासीय सुविधा प्रदान करना ।
(3) सहकारी आन्दोलन (Co-operative Movement):
राबर्ट ओवन सहकारी आन्दोलन के बड़े पक्षधर थे । उनका मत था कि श्रमिकों की सहकारी संस्थाओं के माध्यम से ही जीवन-स्तर में वृद्धि की जा सकती है ।
(4) श्रम-संघ आन्दोलन (Trade Union Movement):
उनके अनुसार श्रमिकों को अपने अधिकारों की रक्षा करने का अधिकार है, इसलिए उनके संघों को मान्यता दी जानी चाहिए उनके अनुसार यह धारणा गलत है कि श्रम-संघ उत्पादकता में बाधा उत्पन्न करते हैं ।
(5) निरीक्षण पद्धति (Appraisal System):
औद्योगिक जगत् में पहली बार ओवन ने अपनी स्काटलैंड स्थित न्यू लेनार्क कॉटन मिल में निरीक्षण पद्धति का प्रयोग किया ।
ओवन के कार्य प्रबन्ध के प्रारम्भिक काल में बड़े महत्वपूर्ण थे । उनके श्रम-संघ, सहकारिता, कर्मचारी निरीक्षण आदि के विचार इतने महत्वपूर्ण थे कि एक लेखक ने उन्हें “आधुनिक सेविवर्गीय प्रथन्ध का जन्मदाता” तक कह दिया है ।
Contributor # 2. चार्ल्स बैबेज (Charles Babbage):
श्री चार्ल्स बैबेज ब्रिटिश गणितज्ञ थे । उन्होंने प्रबन्ध में विज्ञान तथा गणित के प्रयोग पर बल दिया बैबेज ने ब्रिटेन तथा फ्रांस के अनेक कारखानों के अध्ययन के पश्चात् पाया कि अधिकतर कारखाने परम्परावादी विधियों का प्रयोग करते हैं । उन्होंने देखा कि निर्माताओं ने विज्ञान अथवा गणित का बहुत ही कम प्रयोग किया । वे अनुसन्धान तथा सही ज्ञान की बजाए परम्परावादी विचारों पर अधिक विश्वास करते थे । उनका मत था कि वैज्ञानिक तथा गणित विधियों का प्रयोग कारखाने के संचालन में किया जा सकता है ।
उन्होंने गणक मशीन (Calculating Machine) का आविष्कार किया जो Differential Engine के नाम से जानी जाती है ।
बैबेज का प्रबन्ध क्षेत्र में योगदान:
उनका योगदान निम्नलिखित से स्पष्ट होता है:
(1) लागत लेखांकन का उपयोग (Use of Cost Accounting):
बैबेज ने लागत लेखाकन के उपयोग पर बल दिया तथा ऐसी विधियों की खोज करने के लिए कहा जिनसे प्रत्येक प्रक्रिया पर होने वाले खर्च में कमी की जा सके ।
(2) कार्य-मापन (Work Measurement):
बैबेज ने कर्मचारियों द्वारा कार्य पर लगाए समय के अध्ययन के लिए विराम-घड़ी (Stop Watch) के प्रयोग का सुझाव दिया । उनके अनुसार कार्य के मापन से कर्मचारियों की कार्यकुशलता में सुधार आएगा ।
(3) गणित तथा विज्ञान के प्रयोग पर बल (Use of Mathematics and Science):
बैबेज ने परम्परावादी विचारों तथा अनुमानों के स्थान पर अनुसन्धान, गणित तथा वैज्ञानिक विचारों के प्रयोग पर बल दिया ।
(4) कार्य विभाजन (Division of Work):
बैबेज का मत था कि एक व्यक्ति को पूरा कार्य करने की बजाए उसे कार्य की एक विशिष्ट प्रक्रिया करने के लिए दी जाए । ऐसे करने से विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त होंगे ।
(5) प्रबन्ध की सार्वभौमिकता पर बल (Emphasis on the Universality of Management):
बैबज के अनुसार प्रबन्ध तथा संगठन के सिद्धान्त उन सभी क्षेत्रों में समान रूप से लागू किये जा सकते हैं । जहाँ उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मानवीय प्रयासों मे समन्वय लाना आवश्यक है ।
(6) कर्मचारियों की लाभ में सहभागिता (Employee’s Profit Sharing):
बैबेज के अनुसार कर्मचारियों को संस्था के बढ़ते हुए लाभों में हिस्सा मिलना चाहिए । ऐसा करने से कर्मचारी निश्चित रूप से अपने नियोक्ता के लाभों को बढ़ाने का प्रयत्न करेंगे ।
(7) अच्छे प्रबन्ध की आवश्यकता (Need for Good Management):
बैबेज का मानना था कि किसी व्यावसायिक संस्था की सफलता केवल उसकी वैज्ञानिक तकनीकों पर ही निर्भर नहीं होती अपितु इसके लिए अच्छे प्रबन्ध की भी जरूरत होती है । इसलिए इन्होंने प्रबन्ध को एक अलग विषय के रूप में विकसित करने का सुझाव दिया ।
(8) स्वचालित मशीनों के प्रयोग पर बल (Emphasis on use of Automatic Machine):
बैबेज स्वचलित मशीनों के प्रयोग के पक्ष में थे । उनके अनुसार ऐसा करने से वस्तु की किस्म में सुधार होगा, लागत में कमी आएगी तथा कर्मचारियों की कार्यक्षमता में भी वृद्धि होगी ।
(9) प्रबन्धकों के लिए सुझाव (Suggestions of Managers):
उन्होंने प्रबन्धकों के लिए अनेक नियम एवं सिद्धान्त सुझाए जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं:
(i) उत्पादन प्रक्रिया एवं लागत का विश्लेषण;
(ii) समय-अध्ययन (Time Study) तकनीकों का प्रयोग;
(iii) अनुसन्धान के लिए प्रमाणित प्रारूपों का (Standard Performas) प्रयोग;
(iv) व्यावसायिक के अध्ययन व्यवहारों के लिए तुलनात्मक पद्धतियों का प्रयोग एवं
(v) शोध एवं विकास को प्रारम्भ करना आदि ।
Contributor # 3. हेनरी रोबिन्सन टाऊने (Henry Robinson Towne, 1844-1924):
श्री हेनरी रोबिन्सन टाऊने एक अमरीकी यांत्रिक इन्जीनियर (Mechanical Engineer) थे । ये अमेरिकन सोसाइटी ऑफ मैकेनिकल इन्जीनियर्स के सन् 1889 प्रेजिडेन्ट भी रहे । इन्होंने कहा कि इन्जीनियर्स तथा अर्थशास्त्रियों को ही प्रबन्ध का कार्य करना चाहिए ।
टाऊने के मतानुसार प्रबन्धकों के बीच अपने अनुभव का संगठित विनिमय होना चाहिए । वे इस मत के भी थे कि किसी सस्था के सफल संचालन के लिए इन्वीनियरिग कौशल तथा प्रबन्धकीय कौशल का एक साथ प्रयोग होता है । कुछ लोगों का विचार है कि वैज्ञानिक प्रबन्ध की दिशा में हैनरी रोबिन्सन टाऊने अगुआ (Pioneer) रहे हैं और 1870 में ही उन्होंने कुशल प्रबन्ध-विधियों का क्रमबद्ध प्रयोग आरम्भ किया था ।
Contributor # 4. जेम्स वाट तथा मैथ्यू रोबिन्सन बोल्टन (James Watt and Mathew Robinson Boulton, 1796-1848 and 1770-1842):
जैम्स वाट जूनियर तथा मैथ्यू रोबिन्सन बोल्टन भाप इजन के प्रसिद्ध आविष्कारी जेम्स वॉट तथा मैथ्यू बोल्टन के पुत्र थे । ये दोनों उच्चकोटि के इजीनियरस थे ।
इन्होंने अपनी इंजीनियरिंग फैक्टरी में अपने अनुभव के आधार पर प्रबन्ध के क्षेत्र में निन्नलिखित योगदान दिया:
(1) उत्पादन नियोजन तथा पूर्वानुमान:
नियोजन के लिए वैज्ञानिक विधि काम में लाई गई तथा तथ्यों के आधार पर उत्पादन की या तय की गई । भविष्य के उत्पादन तथा विक्रय का पूर्व-निर्धारण किया जाने लगा ।
(2) मजदूरी भुगतान (Wage Payment):
मजदूरी भुगतान के लिए तीन विधियों का प्रयोग किया जाने लगा ।
(3) कर्मचारी कल्याण योजनाएँ (Employees Welfare Schemes):
उनका मत था कि कर्मचारियों के कल्याण पर किया गया व्यय एक बुद्धिमत्तापूर्ण विनियोग (Wise Investment) है तथा यदि आप के कर्मचारी सन्तुष्ट हैं तो निश्चित रूप से वे अधिक उत्पादन करने में समर्थ होंगे । इसलिए उन्होंने अपने कर्मचारियों के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाएं लागू कीं ।
(4) संयन्त्र अभिन्यास (Plant Layout):
उन्होंने संयन्त्र अभिन्यास को लागू किया ताकि कार्य बिना रुकावट के चलता रहे ।
(5) विज्ञान का प्रयोग (Application of Science):
उन्होंने कार्य तथा गति अध्ययन प्रणाली का विकास किया ।
(6) अधिकारियों के विकास की योजना (Scheme of Developing Executives):
उन्होंने अधिकारियों के विकास की योजना प्रारम्भ की ।
(7) लागत-लेखा प्रणाली (Cost Accounting) को लागू किया ।
अत: यह कहना उचित होगा कि बोल्टन तथा वाट कम्पनी में जो विधियाँ तथा सिद्धान्त प्रचलित थे, उन्हीं को आगे चल कर टेलर तथा उनके अनुयायियों ने व्यवस्थित रूप प्रदान किया ।
प्रबन्ध के विचारों के विकास के उपरोक्त काल को यदि हम “आधुनिक प्रबन्ध की पूर्व बेला” कहें, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । इस काल में प्रबन्ध के सिद्धान्तों व विचारो के विकास का आधार तैयार किया प्रबन्ध का आधुनिक स्वरूप जो आज है वह इसके प्रारम्भिक काल में नहीं था ।
इसका वर्तमान स्वरूप प्रबन्ध के क्रमागत विकास की देन है । प्रबन्ध विचारधारा के विकास का अध्ययन निम्नलिखित प्रमुख विचारधाराओं या स्कूलों के अन्तर्गत किया गया है । कूण्ट्ज़ (Koontz) ऐसे पहले शिक्षाविद् हैं, जिन्होंने विभिन्न दृष्टिकोणों को प्रबन्ध के स्कूलों या विचारधाराओं में वर्गीकृत करने का प्रयास किया । उनके इस काम को जॉन मी, जोसेफ लिद्र कपूर आदि विशेषज्ञों ने आगे बढ़ाया ।