Read this article in Hindi to learn about the fifteen factors affecting organisation structure. The factors are: 1. Objects of Organisation 2. Scope 3. Span of Control 4. Size of Organisation 5. Departmentation 6. Policies of the Management 7. Equal Status 8. Social and Human Needs 9. Position of Competition 10. Flexibility 11. Professional Ability of Managers and a Few Others.

Factor # 1. संगठन के उद्देश्य (Objects of Organisation):

संगठन संरचना का निर्धारण करते समय संस्था के उद्देश्यों को अवश्य ध्यान में रखा जाना चाहिए क्योंकि संगठन संरचना स्वयं में कोई उद्देश्य न होकर संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने का एक माध्यम होती है । संस्था के उद्देश्य संगठन संरचना का प्रमुख निर्धारक माना जाता है । श्री आर.सी.डेविस (R.C. Davis) ने लिखा है कि- “संस्था के उद्देश्य संगठन संरचना के प्रमुख निर्धारक हैं ।”

Factor # 2. क्षेत्र (Scope):

किसी संस्था का व्यावसायिक क्षेत्र यदि सीमित है अर्थात् उस संस्था की व्यापारिक क्रियाएंयदि स्थानीय हैं तो संगठन संरचना का आकार निश्चय ही छोटा होगा । इसके विपरीत यदि संस्था का व्यावसायिक क्षेत्र काफी विस्तृत है अर्थात् वह संस्था यदि राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी क्रियाएँ करती है तो संगठन संरचना का आकार बड़ा होगा । इस प्रकार संरचना पर संस्था के बाजार (क्षेत्र) अर्थात् व्यापारिक क्षेत्र का भी बहुत प्रभाव पड़ता है ।

Factor # 3. नियन्त्रण का विस्तार (Span of Control):

प्रबन्धकों के कार्य करने की क्षमता की भी एक सीमा होती है । वे एक समय में कुछ निश्चित अधीनस्थों के कार्यों का पर्यवेक्षण तथा मार्गदर्शन कर सकते हैं । अत: संगठन संरचना बनाते समय नियन्त्रण के विस्तार पर ध्यान रखना चाहिए ताकि प्रत्येक प्रबन्धक अपने अधीनस्थ कर्मचारियों का उचित रूप से पर्यवेक्षण कर सके । अतएव स्पष्ट है कि नियन्त्रण का विस्तार भी संगठन संरचना को प्रभावित करता है ।

Factor # 4. संगठन का आकार (Size of Organisation):

संगठन का आकार भी संगठन संरचना को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख घटक है । आकारा छोटा होने पर संगठन संरचना को केन्द्रीयकरण के आधार पर विकसित करना पड़ेगा अर्थात् केन्द्रीय संगठन संरचना का निर्माण किया जायेगा । इसके विपरीत, आकार बड़ा होने पर विकेन्द्रीय संगठन संरचना का निर्माण करना पड़ेगा ।

Factor # 5. विभागीयकरण (Departmentation):

विभागीयकरण से अभिप्राय किसी कार्य विशेष से सम्बन्धित क्रियाओं को वर्गीकृत करने तथा प्रत्येक वर्ग के लिए एक अलग विभाग उप-विभाग बनाकर उन्हें सौंपने से है । विभागीयकरण के अनेक आधार होते है, जैसे: वस्तु या सेवा ग्राहक, प्रक्रिया, भौगोलिक क्षेत्र, विक्रेता आदि । विभागी करण चाहे किसी भी आधार को मानकर किया जाये वह प्रत्यक्ष रूप से संगठन संरचना को प्रभावित करता करता है, इसलिए विभागीय करण संगठन संरचना को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण घटक है ।

Factor # 6. प्रबन्ध नीतियाँ (Policies of the Management):

प्रबन्धकों द्वारा प्रजातान्त्रिक प्रबन्ध नीतियाँ अपननाने पर संगठन सरचना अधिक व्यापक होगी । इसके विपरीत, प्रबन्धकी द्वारा पैतृकतावादी अथवा अधिनायकवादी नीतियाँ अपनाये जाने पर संगठन संरचना केन्द्रीयकरण की होगी ।

Factor # 7. पद समता (Equal Status):

पद समता संगठन संरचना का एक महत्वपूर्ण निर्धारक है । पद समता के अर्न्तगत एक जैसा काम करने वाले सभी व्यक्तियों के पद व अधिकारों में समानता रखनी चाहिए वरना उनके पारस्परिक सम्बन्धों में कड़वाहट पैदा होगी । इसलिए एक ही अधिकारी के अधीन दो समान पद वाले अधीनस्थों के अधिकारों में अन्तर नहीं होना चाहिए । पद समता से संगठन संरचना विस्तृत बनेगी ।

Factor # 8. सामाजिक व मानवीय आवश्यकताएँ (Social and Human Needs):

किसी भी व्यावसायिक अथवा औद्योगिक संस्था में काम करने वाले व्यक्तियों की सामाजिक, आर्थिक, कार्यकारी तथा मनोवैज्ञानिक आदि आवश्यकताएँ होती हैं । ये आवश्यकताएँ जैसे आदर,मान्यता,पर्याप्त व समान वेतन-पदोन्नति विचार व्यक्त करने की स्वतन्त्रता आदि संगठन संरचना के निर्धारण पर प्रभाव डालती हैं इसलिए संगठन संरचना ऐसी होनी चाहिए जो इन आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके तथा अच्छे मानवीय सम्बन्धों को स्थापित कर सके । लारेन्स के अनुसार- ”प्रभावपूर्ण संगठन संरचना वह है जो कि संगठन को वातावरण के अनुकूल ढाल सके ।”

Factor # 9. प्रतिस्पर्धा की स्थिति (Position of Competition):

बाजार में कुछ संस्थाएँ एकाधिकारी स्थिति (Monopoly Positition) में होती हैं तो बाकी संस्थाओं को प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है अर्थात् उनकी स्थिति प्रतिस्पर्धात्-क होती हैं । यदि किसी संस्था की बाजार में एकाधिकारी स्थिति है तो उसकी संगठन संरचना केन्द्रीयकरण पर आधारित होगी तथा छोटी होगी । इसके विपरीत, संस्था की प्रतिस्पर्धात्मक (Competitive) स्थिति होने पर संगठन संरचना काफी विस्तृत व विकेन्द्रीकरण पर आधारित होगी । अक्सर प्रतिस्पर्धा की स्थिति को ध्यान में रखकर ही संगठन संरचना की जानी चाहिए क्योंकि आज के युग में एकाधिकार की स्थिति कम देखने को मिलती है ।

Factor # 10. लोचशीलता (Flexibility):

किसी भी व्यावसायिक सस्था में परिस्थितियाँ व आवश्यकताएँ बदलती रहती है । ये बदलती परिस्थितियाँ तथा आवश्यकताएँ भी संगठन सरचना के निर्माण को प्रभावित करती हैं इसलिए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि संगठन बदलती परिस्थितियों तथा आवश्यकताओं के अनुसार बदला जा सके । यदि ये परिवर्तन आकस्मिक होने वाले हों और उनका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता हैतो ऐसी परिस्थिति में संगठन सरचना जटिल बनानी पड़ेगी इसकेविपरीत स्थिति में, संगठन सरचना सरल बनाई जायेगी ।

Factor # 11. प्रबन्धकों की पेशेवर योग्यताएँ (Professional Ability of Managers):

यदि प्रबन्धकों में पेशेवर योग्यताएँ हैं तो उन्हें दूसरों से सलाह लेने की जरूरत नहीं होगी । अत: रेखा संगठन प्रारूप को अपनाया जा सकता है इसके विपरीत यदि उनमें पेशेवर योग्यताएं नहीं है तो उन्हें विशेषज्ञों से सलाह लेनी पड़ेगी, तब रेखा एवं कर्मचारी संगठन संरचना को अपनाना पड़ेगा ।

पेशेवर योग्यताओं के अतिरिक्त प्रबन्धकों की सामान्य योग्यता भी संगठन संरचना को प्रभावित करती है । योग्य प्रबन्धक होने पर संगठन संरचना विस्तृत बनानी होगीं । इसके विपरीत योग्य प्रबन्धक न होने पर संस्था की संगठन संरचना केन्द्रित होगी ।

Factor # 12. तकनीक (Technology):

यहाँ तकनीक से अभिप्राय कार्य को निष्पादित करने के तरीके से है । किसी संस्था में उत्पादन के क्षेत्र में प्रयोग की जाने वाली तकनीक भी संगठन-संरचना को प्रभावित करती है । यदि प्रयोग की जाने वाली तकनीक सरल तथा नैत्यक (Routine) प्रकृति की है, तो संरचना का प्रारूप कम जटिल होगा, परन्तु अति-आधुनिक तकनीक का प्रयोग संगठन संरचना के कार्य को जटिल बनाता है । जोन जुड़वार्ड के मत के अनुसार तकनीक तथा संगठन संरचना में प्रत्यक्ष सम्बन्ध पाया जाता है ।

Factor # 13. प्रबन्धकीय व्यूह-रचना (Managerial Strategy):

संस्था का प्रबन्ध, उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किस प्रकार की व्यूह-रचना करता है । यह संगठन-संरचना को प्रभावित करेगी क्योंकि संगठन-संरचना का प्रबन्धकीय व्यूह-रचना के अनुकूल होना आवश्यक है ।

Factor # 14. निर्भरता (Dependence):

विलियम एफ. ग्लूक के मत के अनुसार निर्भरता एक महत्वपूर्ण तत्व है, जो संगठन संरचना को प्रभावित करता है । संस्था के कार्यों में पूर्तिकर्त्ता निवेशक श्रम संघ, अंशधारी सरकार, ग्राहक आदि रुचि लेते हैं और एक बड़ी सीमा तक संस्था के कार्य उनकी आवश्यकताओं भावनाओं आदि से प्रभावित होते हैं । अत: किसी भी संस्था को इन पर निर्भरता का पता लगाए बिना संगठन संरचना करना उचित नहीं होगा ।

Factor # 15. व्यक्ति (People):

संगठनात्मक संरचना की रूपरेखा इस तरह से बनाई जानी चाहिए कि जिससे व्यक्ति कर्मचारी, प्रबन्धक और गैर-प्रबन्धक उस संरचना में स्वयं को उपयुक्त महसूस करें । इसलिए संरचना की रूपरेखा बनाते समय लोगों की आवश्यकताओं अपेक्षाओं योग्यताओं और रुचियों पर पर्याप्त विचार होना चाहिए ।

मानवीय संगठनों को लम्बे समय तक मशीन की तरह अव्यक्तिगत संरचना के रूप में नहीं चलाया जा सकता । कार्यों और सम्बन्धों के तन्त्र अधिक अर्थपूर्ण तभी बनाए जा सकते है जब लोगों को ध्यान में रख कर उनकी रचना की जाती है । अनेक व्यक्ति स्वायत्तता लोचशीलता, सहभागिता और उपलब्धिपूर्ण अवसरों को अधिक पसन्द करते हैं ऐसे व्यक्तियों के लिए संरचना अधिक विकेन्द्रित होनी चाहिए ।

इसमें प्रत्येक स्तर पर स्वायत्तता और अधिकार सत्ता की मात्रा अधिक होनी चाहिए ताकि अधिकतम निष्पादन को सम्भव बनाया जा सके वास्तव में व्यक्तियों की अभिप्रेरणा, निष्पादन और सन्तुष्टि में संगठनात्मक सरचना का भारी योगदान होता है ।