The below mentioned article provides a paragraph on miscommunication in Hindi language.
यदि प्रेषक द्वारा प्रेषित विचार अथवा सूचना प्राप्तकर्ता तक उसी रूप (Form) एवं भाव (Sense) में पहुँच जाये जिस रूप एवं भाव में प्रेषक उसे पहुंचाना चाहता है तो संचार का उद्देश्य पूरा हो जाता है, ऐसा माना जाता है परन्तु सदैव ऐसा सम्भव नहीं होता है ।
अनेकानेक कारणों से प्रेषक द्वारा प्रेषित सन्देश अपने मूल्य रूप एवं भावना के प्राप्तकर्ता तक नहीं पहुँच पाता है तथा उसका रूप विकृत हो जाता है जिसके कारण संचार का मूल उद्देश्य ही नष्ट हो जाता है, जब इस प्रकार से सन्देश अनेक अवरोधों के कारण अपना अर्थ ही खो देता है, अथवा सन्देश का अर्थ ही बदल जाता है, तो इसे मिथ्या बोधित अथवा भ्रमित संचार (Mis-Communication) कहते है ।
परिभाषा (Definition):
अवरोधों दारा प्रभावित संचार को भ्रमित संचार कहते हैं । ”अनेकानेक अवरोधों के कारण से जब प्रेषक द्वारा प्रेषित सन्देश अपने मूल रूप में प्राप्तकर्ता तक नहीं पहुँच पाता है तो इस प्रकार से संचरित विकृत सन्देश ही मिथ्या बोधित अथवा भ्रमित संचार कहलाता है ।”
संक्षेप में, “संचार का एक विनाशित रूप भ्रमित संचार है । जिसका संचार करना है वह संचारित नहीं होता और उसके स्थान पर संदेश का एक बाधित रूप संचारित हो जाता हैं” ।
संचार अवरोध (Communication Barriers):
प्रेषक से प्राप्तकर्त्ता के बीच के मार्ग की वे बाधाएँ जिनके कारण सन्देश अपना मूल स्वरूप खो दे संचार अवरोध कहलाती है संचार के मार्ग में आने वाली बाधाएँ अनेक प्रकार से सन्देश को क्षति पहुँचाती हैं । यहां तक कि कभी-कभी भेजे गए सन्देश का अर्थ ही पूर्ण रूप से बदल जाता है तथा उसके परिणाम अत्यन्त अनर्थकारी एवं भयंकर होते है, जैसे एक सन्देश भेजा गया-रमेश जी अजमेर गये है ।
यह सन्देश विभिन्न अवरोधों को पार करता हुआ जब रमेश जी के घर पहुँचा तब उसका रूप इस प्रकार था-रमेश जी आज मर गये है । इस सन्देश का जो परिणाम हुआ होगा उसका अन्दाज आप सहज ही में लगा सकते हैं ।
विभिन्न स्तरों पर अवरोध (Barriers at Different Levels):
संचार प्रक्रिया पर यदि गहनता से दृष्टिपात किया जाय तो निम्न स्तरों पर संचार अवरोध रुकावटें या समस्याएं उत्पन्न होती है:
(i) प्रेषक के स्तर पर (At Sender’s Level):
संचार का प्रथम स्तर प्रेषक का स्तर है ।
प्रेषक के स्तर पर संचार में निम्न बाधाएँ अथवा समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं:
(a) सन्देश के अर्थ को संकेत प्रदान करने में (Meaning to put into code-encoding) ।
(b) सन्देश की रचना एवं विचार के गठन में (Formulation and Organizing thoughts of Message) ।
(ii) प्राप्तकर्त्ता के स्तर पर (At Receiver’s Level):
संचार प्रक्रिया का दूसरा महत्वपूर्ण स्तर प्राप्तकर्त्ता का होता है । प्राप्तकर्त्ता के स्तर पर संचार में अग्रलिखित बाधाएँ अथवा समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं ।
(a) प्राप्त सन्देश का समझने योग्य भाषा में परिवर्तन करने पर (Correct the encoded message into understandable language-Decoding) एवं
(b) सन्देश की प्राप्ति (Receiving the message)
(iii) प्रसारण स्तर पर (At Transmitting Level):
सन्देश जिस माध्यम से सम्प्रेषित किया जा रहा है ।
(iv) प्रतिपुष्टि या प्रतिक्रिया स्तर पर (At Feedback Level):
यह सन्देश प्रक्रिया का अन्तिम स्तर है क्योंकि यहां से सन्देश की प्रतिक्रिया सम्बन्धी जानकारी प्रेषक को वापस की जाती है ।
संचार प्रक्रिया में अवरोध की उत्पत्ति (Barrier Arises in Communication Process):
भ्रमित संचार या अवरोधी संचार के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं:
(1) संदेश के विकसित होने सम्बन्धी कठिनाइयां (Problems in Developing the Message):
जब सन्देश को बनाया या विकसित किया जाता है उस दौरान कुछ समस्याएँ उत्पन्न होती हैं विशेष रूप से बाधा तब उत्पन्न होती है जब संचार में संदेश की विषय-सामग्री के परिप्रेक्ष्य में निर्णय क्षमता का अभाव होता है और यह स्थिति तब और बिगड़ती जाती है जब सम्प्रेषक का सम्प्रेषणग्राही के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध न हो ।
इनमें आपस में सन्देश के आदान-प्रदान के दौरान भावनात्मक संघर्ष हो, इस स्थिति में सम्प्रेषक अपने विचारों को व्यक्त करने में कठिनाई महसूस करता है । यदि इन समस्याओं का निराकरण नहीं किया जाता तो संचार का वास्तविक स्वरूप बदल जाता है ।
(2) सन्देश के संचारण में कठिनाइयाँ (Problems in Transmitting the Message):
एक संचार प्रक्रिया में बाधा तब उत्पन्न होती है जब सोषक व प्राप्तकर्ता के मध्य स्थिति संचार माध्यम में अर्द्धभौतिक समस्या जैसे माध्यम का सही न जुड़ना, कमजोर ध्वनि या लिखित सामग्री जिसे पढ़ने में कठिनाई हो इत्यादि के कारण संदेश के संचारण में कठिनाई उत्पन्न होती है ।
इसके अतिरिक्त शोर (Noise) संचारण में बाधा उत्पन्न करता है । इसके अतिरिक्त जब संचार प्रक्रिया में दो प्रतिस्पर्द्धी संदेश सम्प्रेषणग्राही के ध्यान को बाँट देते है या जब संदेश का अर्थ अनुकूल नहीं होता तब संचार के संचारण में बाधा उत्पन्न होती है ।
(3) संदेश की व्याख्या सम्बन्धी कठिनाइयाँ (Problems in Interpreting the Message):
यह कठिनाई तब उत्पन्न होती है जब संचार प्रक्रिया अपना पूर्ण रूप धारण करने की अवस्था में होती है । यदि संदेश प्राप्तकर्त्ता व सम्प्रेषण की पृष्ठभूमि, शब्द कोष व उसकी भावनात्मक स्थिति में अन्तर हो तो संचार प्रक्रिया के दौरान संदेश का अधिकांश हिस्सा कहीं खो जाता है या उसका क्षय हो जाता है ? यह भी सम्भव है कि उसका मौलिक स्वरूप पूर्णत: नष्ट हो जाये या बदल जाये ।
(4) विचारों की अभिव्यक्ति सम्बन्धी कठिनाइयां (Difficulty in Expressing Ideas):
यदि सम्प्रेषक/सम्प्रेषपग्राही मैं लिखने-बोलने की क्षमता का अभाव होता है या उनमें बोलने/लिखने के पर्याप्त अनुभव की कमी खेती होती है तो सम्प्रेषप प्रक्रिया के दौरान प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण सम्भव नही हो पाता । अधिकांश व्यक्तियों में शब्दकोष का अभाव, व्याकरण के प्रयोग व शैली का अभाव जिससे ये लिखने/विचार व्यक्त करने/समूह में भाषण या व्याख्यान देने से डरते है जिससे संचार प्रक्रिया में कठिनाई उत्पन्न होती है ।
(5) संदेश की प्राप्ति सम्बन्धी कठिनाइयाँ (Problems in Receiving Message):
जन संचार प्रक्रिया में संदेश के प्रसारण के दौरान संदेशग्राही का ध्यान प्रतियोगी संदेश, खराब माध्यम, अत्यधिक शोर, संदेशग्राही का स्वास्थ्य इत्यादि के कारण बंट जाता है तो संदेश की प्राप्ति सम्बन्धी बाधाएँ उत्पन्न होती हैं । कभी-कभी सोषक के दृष्टिकोष, श्रव्य दोष के कारण भी संदेश की प्राप्ति में बाधाएं उत्पन्न होती हैं ।
यद्यपि उक्त कारण संदेश की प्राप्ति में पूर्ण बाधा तो उत्पन्न नहीं करते परन्तु संदेशग्राही की एकाग्रता को भंग करने में अहं भूमिका का निर्वहन अवश्य करते हैं । यदि उक्त बातों के सन्दर्भ में संदेशग्राही का संचार सावधानी बरतता तो संदेश की प्राप्ति में कठिनाइयों की उत्पत्ति एक सामान्य घटना होती ।
(6) सम्प्रेषक व संदेश प्राप्तकर्त्ता के मध्य विभिन्नताओं सम्बन्धी कठिनाइयाँ (Differences between Sender and Receiver):
किसी भी संचार प्रक्रिया के अपूर्ण रहने का सबसे बड़ा कारण सम्प्रेषण व संदेशग्राही के मध्य पायी जाने वाली विभिन्नताओं, यथा, एक-दूसरे के प्रति अनियमितता, आयु, जाति, लिंग, संस्कृति, सम्प्रदाय सम्बन्धी विभिन्नताओं की उपस्थिति है । उक्त अन्तर संदेश के संचारण को कठिन बना देते है । उचित व सफल संचार के लिए हमें व्यक्तियों की आवश्यकताओं एवं प्रतिक्रियाओं को समझने के अतिरिक्त उनमें विश्वसनीयता की स्थापना करनी होती है ।
किसी संचार प्रक्रिया में अवरोध की उत्पत्ति की प्रक्रिया को समझने के उपरान्त सम्प्रेषक व संदेशग्राही के बीच संदेश के संचारण में आने वाली रुकावटों के सन्दर्भ में चर्चा करेंगे क्योंकि ये अवरोध अथवा रुकावटें एक संगठन में प्रबन्धकीय कठिनाइयों या जटिलताओं को पैदा करती हैं ।