Here are some of the examples of business reports especially written in Hindi language.
यह आवश्यक नहीं है कि प्रतिवेदन किसी निश्चित रूप में लिखा जाये । विभिन्न संगठन अपनी-अपनी आवश्यकतानुसार इसके रूप को बदल सकते हैं । इसके लिए ऐसा कोई नियम नहीं है कि अमुक सीमा के अन्दर ही प्रतिवेदन को रखना है अपितु इसका प्रारूप परिस्थितियों पर निर्भर करता है ।
एक प्रतिवेदन को विभिन्न रूपी में लिखा जा सकता है, जोकि निम्नलिखित हैं:
(I) पत्र के रूप में (Letter Form):
जब रिपोर्ट छोटी हो या अनौपचारिक हो तो अधिकांश संगठनों में पत्र के रूप में लिखी जाती है । पत्र के रूप में लिखने के निम्न मुख्य भाग होते हैं- शीर्षक, तिथि, पता, अभिवादन, रिपोर्ट की विषय-सामग्री, समापन व हस्ताक्षर । पत्र के रूप में प्रतिवेदन को प्रथम व्यक्ति ”मैं या हम” के रूप में लिखा जाता है ।
पत्र के रूप में लिखने की विषय-सामग्री को निम्नलिखित भागों में बांटा जा सकता है:
(i) परिचय (Introduction):
परिचय पैराग्राफ में सन्दर्भ के तत्त्वों का वर्णन करते हैं । इसमें पत्र का लेखक समस्या का सन्दर्भ देता है तथा सभी परिस्थितियों का वर्णन करता है ।
(ii) अगले पैराग्राफ में लिखा जाता है कि अनुसंधान की क्या-क्या उपलब्धियां रहीं ?
(iii) यदि कोई सुझाव देना हो या सिफारिश करनी हो तो वह इस पैराग्राफ में की जाती है ।
(II) स्मारक-पत्र के रूप में (Memorandum Form):
रिपोर्ट लिखने का दूसरा रूप स्मारक-पत्र होता है । प्रतिवेदन देने का यह सरल रूप होता है । इसमें पत्र की औपचारिकताओं से भी छुट्टी मिल जाती है । विषय के शीर्षक को केवल रिपोर्ट के रूप में लिखा जाता है । उसमें तिथि, वास्तविक तथ्य तथा निष्कर्ष होता है । बड़े-बड़े व्यावसायिक गृह इस प्रकार के प्रतिवेदनों का प्रारूप छपवा लेते है तथा उन्हें भरकर भेजते रहते हैं । इससे प्रक्रिया में सरलता रहती है ।
(III) समन्वित रूप (Combination Form):
लम्बे-लम्बे प्रतिवेदन सामान्यत: इसी रूप में लिखे जाते हैं ।
प्रतिवेदन के रूप में मुख्यत: तीन भाग होते हैं:
(1) परिचय भाग (Introductory Parts):
ये भाग निम्नलिखित होते हैं:
(i) उपस्थितिकरण का पत्र,
(ii) शीर्षक,
(iii) सारांश ।
(2) प्रतिवेदन को विषय-सामग्री:
(i) समस्या की परिभाषा,
(ii) प्रक्रिया की विधि,
(iii) उपलब्धियां,
(iv) उपसंहार एवं सिफारिशें ।
(3) अन्तिम भाग:
यह आवश्यक नहीं है कि प्रतिवेदन में ये सभी भाग ही । केवल लम्बी-लम्बी रिपोर्ट में ये सभी भाग विद्यमान होते है । प्रत्येक प्रतिवेदन के अन्त में हस्ताक्षर अवश्य होने चाहिए अन्यथा रिपोर्ट का कोई महत्त्व नहीं रह जाता । यदि रिपोर्ट एक समिति द्वारा लिखी जा रही है तो आवश्यक है कि उस पर समिति के सभी सदस्य हस्ताक्षर करें अन्यथा चेयरमैन के हस्ताक्षर भी पर्याप्त होते हैं ।
व्यक्तिगत प्रतिवेदनों के उदाहरण:
(A) शाखा प्रबन्धक अपने प्रधान कार्यालय को रिपोर्ट करता है कि व्यवसाय के बढ़ जाने के कारण उसे भवन व स्टाफ कम पड़ता है, अतः इस सम्बन्ध में आवश्यक कदम उठाया जाये ।
(B) आपके कई सुरक्षित-जमा लॉकर-धारकों ने आपको सूचित किया है कि लॉकर्स में जंग लग गयी है । क्षेत्रीय प्रबन्धक को भेजी जाने वाली रिपोर्ट बनायें जिसमें इस बारे में आप द्वारा की गयी कार्यवाही का उल्लेख हो । साथ ही, भविष्य में की जाने वाली कार्यवाही के बारे में उनसे मार्ग-दर्शन का अनुरोध भी करें ।
(C) किसी जिले में आपके बैंक की शाखाओं में जमा राशियों में गिरावट आई है । इस प्रसंग में जमाराशियों में आई गिरावट के कारणों का अध्ययन करने तथा जमाराशियां बढ़ाने के लिए सुझाव देने स्तुए प्रधान कार्यालय ने वरिष्ठ अधिकारियों की एक समिति बनायी है । आप समिति के सदस्य हैं । इस हैसियत से संयोजक ने आपसे रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा है । रिपोर्ट का मसौदा बनाइये ।
(D) एक सहकारी बैंक के प्रधान कार्यालय ने अपने एक शाखा प्रबन्धक से कहा है कि वह अपने प्रशासकीय स्टाफ के कार्य-निष्पादन में सुधार की दृष्टि से उसके लिए प्रासंगिक पाठ्यक्रमयुक्त एक विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम की आवश्यकता पर रिपोर्ट तैयार करें । शाखा प्रबन्धक की रिपोर्ट का प्रारूप तैयार कीजिए ।
(E) हिन्दी माह मनाने की रिपोर्ट
(F) वसूली अभियान की रिपोर्ट