Read this article in Hindi to learn about the steps to be followed for presenting reports.
1. प्रारम्भिक जानकारी (Preliminary Information):
जांच आरम्भ करने से पहले जांचकर्त्ता को यह ज्ञात होना चाहिए कि उस जांच का उद्देश्य क्या है, ऊसकी आवश्यकता क्यों है, वह समस्या क्या है तथा किन मामलों की जांच की जाती है ? जब तक रिपोर्ट तैयार करने वाले व्यक्ति को रिपोर्ट का उद्देश्य ज्ञात नहीं होगा तब तक उसके द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर सकेगी ।
रिपोर्ट तैयार करने समय यह भी ध्यान में रखना होता है कि रिपोर्ट का प्राप्तकर्त्ता कौन है । यदि जाँचकर्ता को यह ज्ञात हो कि रिपोर्ट प्राप्त करने वाला कौन है तो वह यह अनुमान लगा सकता है कि प्राप्तकर्त्ता को उस मामले की कितनी जानकारी पहले से है तथा उस रिपोर्ट में कितनी और जानकरी प्रदान की जानी है तथा रिपोर्ट की भाषा कैसी होनी चाहिए ?
रिपोर्ट तैयार करने में समय की पाबन्दी को भी पूरा महत्त्व दिया जाना चाहिए । जाँचकर्त्ता को ज्ञात होना चाहिए कि उसे कितने समय के अन्दर रिपोर्ट प्रस्तुत करनी है । शीघ्र निपटाये जाने वाले मामलों में विलम्ब करना न केबल महंगा, बल्कि खतरनाक भी सिद्ध हो सकता है । अच्छा यह रहता है कि रिपोर्ट तैयार करने के मूल कार्य को अवस्थाओं में बांट लिया जाये तथा विभिन्न अवस्थाओं को पूरा करने के लिए समय निर्धारित कर लिया जाये ।
उपर्युक्त वर्णित तथ्यों के आधार पर जाँचकर्त्ता जाँच की रूपरेखा. अर्थात् मास्टर प्लान के सम्बन्ध में निर्णय से सकेगा तथा उसे अध्ययन किये जाने वाले विषय की प्रकृति तथा क्षेत्र का ज्ञान भी हो सकेगा ।
2. तथ्य तथा आंकड़े एकत्रित करना (Collection of Facts and Figures):
कार्य की रूपरेखा की सहायता से जाँचकर्त्ता यह निर्णय ले सकेगा कि कौन-कौन सी सूचनाएँ, तथ्य तथा कड़े एकत्रित किए जाने हैं । यह निर्णय लेने के पश्चात् जांचकर्त्ता को यह फैसला करना होगा कि तथ्यों तथा आंकड़ों को किस ढंग से एकत्रित किया जाये, क्या व्यक्तिगत साक्षात्कार किये जायें अथवा प्रश्नावलिया तैयार की जाये या द्वितीयक आंकड़े प्रयोग में लाये जाये, यह सब जांच की प्रकृति पर निर्भर करेगा ।
यह सिद्ध करने के लिए कि तथ्य सत्य व विश्वसनीय हैं रिपोर्ट क लेखक को तथ्य प्राप्त करने के सोत व ढंगों का वर्णन करना चाहिए । अधिकारी यह ही नहीं जानना चाहते कि तथ्य क्या हैं ? वे यह भी जानना चाहते हैं कि आपको वे कैसे पता चले ?
3. विश्लेषण तथा निष्कर्ष (Analysis and Conclusion):
आवश्यक तथ्य तथा आंकड़े एकत्रित करने के पश्चात् अगला कदम उनका विश्लेषण करने के सम्बन्ध में होता है । आंकड़ों को वर्गीकृत करके सारणियां बनाई जानी होंगी । तथ्यों का विश्लेषण करने के बाद निष्कर्ष निकाले जायेंगे । यह तो स्पष्ट ही है कि विश्लेषण तथा निष्कर्ष निकालने का कार्य सबसे महत्वपूर्ण होता है ।
जाँचकर्त्ता तथ्यों का विश्लेषण करके कितनी कुशलता व समझदारी से निष्कर्ष निकालता है यह उसकी योग्यता, बुद्धिबल तथा अनुभव पर निर्भर करेगा । त्रुटिपूर्ण समानताओं के आधार पर जल्दबाजी में निष्कर्ष निकालना जोखिमपूर्ण होता है । विश्लेषण से जो भी ज्ञात हो रिपोर्ट के लेखक को बिल्कुल वही बतलाना चाहिए ।
4. विषय-सामग्री की व्यवस्था (Arrangement of Subject Matter):
तथ्यों का विश्लेषण करने तथा निष्कर्ष निकालने के पश्चात् पूर्ण जानकारी को रिपोर्ट के रूप में प्रस्तुत किया जाता है । रिपोर्ट इस प्रकार से लिखी जानी चाहिए कि उससे अध्ययन किये गये विषय का सार संक्षिप्त रूप में इस प्रकार से प्रस्तुत किया जाये कि पढ़ने वाले उसे आसानी से समझ जायें ।
रिपोर्ट की सामग्री को छ: भागों में बाटा जा सकता है:
(i) शीर्षक,
(ii) विषय-सूची,
(iii) विषय-प्रवेश,
(iv) सिफारिशों,
(v) तर्क तथा
(vi) परिशिष्ट ।
रिपोर्ट प्रस्तुत करने के प्रचलित ढंग का वर्णन नीचे किया गया है:
रिपोर्ट का मुख्य शीर्षक (Heading) तैयार किया जाता है जो रिपोर्ट की विषय-सामग्री का संकेतक होता है । यदि आवश्यकता हो तो मुख्य शीर्षक की व्याख्या करने के लिए कुछ व्याख्यात्मक वाक्य भी साथ में लिखे जा सकते हैं ।
उदाहरणत: ‘टाइपराइटर चोरी हो जाने के विषय में जाँच समिति की रिपोर्ट’ के शीर्षक से स्पष्ट है कि इस रिपोर्ट में चोरी हो गये टाइपराइटर के सम्बन्ध में जानकारी होगी ।
किसको प्रस्तुत (Addressed to):
रिपोर्ट के इस भाग में उस व्यक्ति का नाम या पद या किस वर्ग को यह रिपोर्ट प्रस्तुत की जा रही है उसका उल्लेख किया जाता है । उदाहरणत: रिपोर्ट कम्पनी के संचालकों अथवा अंशधारकों को प्रस्तुत की जा सकती है । रिपोर्ट का अगला भाग विषय-सूची (Table of Contents) के सम्बन्ध में होता है । विषय-सूची में विभिन्न शीर्षकों व उपशीर्षकों का वर्णन होता है तथा यह प्रदर्शित किया जाता है कि कौन-सी सूचना किस पृष्ठ पर छा जा सकती है ।
रिपोर्ट के मुख्य अंश में सबसे पहले विषय-सूची (Introduction) के सम्बन्ध में लिखा जाता है । विषय-प्रवेश में पढ़ने वाले को समस्या अथवा जाँच की शर्तों, विद्यमान परिस्थितियों तथा मूल धारणाओं से परिचित कराया जाता है । रिपोर्ट के अगले भाग में लेखक अपने तर्क प्रस्तुत करता है ।
सम्बन्धित तथ्यों तथा आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए जहाँ तक सम्भव हो सके, तर्क अति संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किये जाने चाहिए यदि पढ़ने वाले को बहुत विस्तृत सूचनाओं के सम्बन्ध में पढ़ना पड़े तो वह रिपोर्ट के मुख्य विचार पर अपनी पकड़ खो बैठता है ।
रिपोर्ट के मुख्य अंग के अगले भाग में लेखक अपनी मुख्य सिफारिशें प्रस्तुत करता है सिफारिशें प्रस्तुत करते समय यह निश्चित कर लेना चाहिए कि जाँच की शती तथा विषय को पूर्ण रूप से वर्णित कर दिया गया है कि नहीं । रिपोर्ट में तर्क, तथ्य व कड़े प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने के लिए लेखक सारणियों, ग्राफों, रेखा-चित्रों आदि का प्रयोग कर सकते हैं ।
रिपोर्ट में प्रस्तुत किये गये अन्वेषण आकड़ों व तथ्यों पर आधारित व विषय से सम्बन्धित होने चाहिए । रिपोर्ट के अन्तिम भल को परिशिष्ट (Appendix) कहते हैं । इसमें रिपोर्ट में प्रशंसा किये गए आंकड़ों की सारणियां, फार्मों के प्रारूप, महत्त्वपूर्ण प्रलेखों की प्रतियां तथा महत्वपूर्ण संदर्भों की नकल दी जाती है । यदि रिपोर्ट सामान्य से अधिक बड़ी हो तो परिशिष्ट के पश्चात् संदर्भों (Reference) की सूची तथा ग्रन्य-सूची (Bibliography) देने का प्रचलन है ।
5. रिपोर्ट का तैयार करना (Drafting the Report):
सूचनाओं को एकत्रित करके उनका विश्लेषण किया जाता है और निष्कर्ष निकालने तथा विषय-सामग्री की व्यवस्था के सम्बन्ध में निर्णय लेने के पश्चात् रिपोर्ट लिखने का कार्य आरम्भ होता है ।
रिपोर्ट लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
(i) रिपोर्ट उस ही विषय पर केन्दित रहनी चाहिए जिसका अध्यापन किया जा रहा है । न तो असम्बन्धित तथ्यों को शामिल किया जाना चाहिए और न ही सम्बन्धित बातों को बेड़ा जाना चाहिए ।
(ii) रिपोर्ट संक्षिप्त होनी चाहिए ।
(iii) इसे ऐसी सरल भाषा में लिखा जाना चाहिए जिसे पढ़ने वाले आसानी से समझ सकें । लेखक को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वह वही लिख रहा है जो उसके मस्तिष्क में है । ऐसा न हो कि उसके मस्तिष्क में कुछ और हो तथा कागज पर कुछ और उतरे ।
(iv) पाठकों की रुचि बनाये रखने के लिए रिपोर्ट की शैली रोचक व सरल होनी चाहिए ।
(v) रिपोर्ट की भाषा सीधी, स्पष्ट व स्वीकारात्मक (Affirmative) होनी चाहिए । जो कुछ भी तथ्य हों उन्हें घुमा-फिरा कर नहीं सीधे व स्पष्ट रूप से लिखा जाना चाहिए ताकि तथ्यों को पढ़कर पाठक अपना निर्णय स्वयं ले सकें ।
(vi) व्याकरण के विचार से भी रिपोर्ट की भाषा शुद्ध होनी चाहिए ।
(vii) रिपोर्ट में शब्दों के प्रयोग पर भी विचार किया जाना चाहिए । गलत शब्दों का प्रयोग अर्थ का अनर्थ कर सकता है ।
6. रिपोर्ट का सम्पादन (Editing the Report):
लेखक को अपनी रिपोर्ट की जाँच कर लेनी चाहिए । जब तक वह इस सम्बन्ध में सन्तुष्ट न हो जाए कि रिपोर्ट सही अर्थ प्रदर्शित करती है तथा उसमें किसी सुधार की आवश्यकता नहीं है, तब तक उसकी प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए । यह अच्छा रहता है कि तथ्यों की शुद्धता, तर्कों की विवेकता तथा भाषा के सम्बन्ध में अन्य व्यक्तियों की राय भी ले ली जाये तथा किसी अन्य व्यक्ति से रिपोर्ट का सम्पादन करा लिया जाये ।
7. रिपोर्ट प्रस्तुतीकरण (Presenting the Report):
जितनी प्रतियों की आवश्यकता हो, उसके अनुसार रिपोर्ट को टाइप, साइक्लोस्टाइल अथवा छपवाया जा सकता है । रिपोर्ट का प्रारूप इस प्रकार का होना चाहिए कि वह देखने में सुन्दर लगे तथा उसके विभिन्न अनुच्छेदों इत्यादि को आसानी से ढूंढा जा सके । यदि रिपोर्ट काफी बड़ी हो अथवा उसे बार-बार पढ़ा जाना हो तो उसे जिल्दों में बंधवा लिया जाना चाहिए । रिपोर्ट पर प्रस्तुतीकरण की तिथि अंकित होनी चाहिए तथा प्रस्तुतकर्त्ता के हस्ताक्षर होने चाहिए ।