Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning of Report 2. Characteristics of Reports 3. Types 4. Qualities 5. Written Vs. Oral Report 6. Importance.

Contents:

  1. प्रतिवेदन/रिपोर्ट का अर्थ (Meaning of Report)
  2. एक अच्छे प्रतिवेदन के मुख्य लक्षण (Characteristics of a Good Report)
  3. प्रतिवेदनों के प्रकार (Types of Report)
  4. अच्छी रिपोर्ट के गुण (Qualities of a Good Report)
  5. लिखित बनाम मौखिक प्रतिवेदन (Written Vs. Oral Report)
  6. प्रतिवेदनों का महत्त्व (Importance of Reports)


1. प्रतिवेदन/रिपोर्ट का अर्थ (Meaning of Report):

प्रतिवेदन या रिपोर्टें किसी विषय के सम्बन्ध में व्यवस्थित रूप से सूचना प्रदान करने के लिए बनायी जाती हैं । रिपोर्टें प्राय: ऐतिहासिक प्रगति अथवा सामयिक या भावी समस्याओं का पूर्वानुमान लगाने के सम्बन्ध में होती है । उदाहरणत: एक कम्पनी का अध्यक्ष विभिन्न सेल्समैनों द्वारा किये गये विक्रय के सम्बन्ध में रिपोर्ट मांग सकता है । यदि विभिन्न विभागों की स्थिति जाननी हो तो प्रबन्धक उन विभागों से यह रिपोर्ट मांग सकते हैं कि आजकल वे क्या कार्य कर रहे हैं तथा उनकी भावी योजनाएँ क्या हैं ।

कुछ प्रतिवेदन नैत्यिक प्रकृति के होते हैं, इन्हें नियमित अवधि के पश्चात् बार-बार तैयार किया जाना होता है । उदाहरणत: कार्यालय प्रबन्धक विभिन्न अनुभागों से साप्तहिक रिपोर्ट मांग सकता है कि वहां कितने पत्र प्राप्त हुए तथा कितनों के उत्तर दिये गये यह संगठन के ढांचे तथा प्रकृति पर निर्भर करता है कि वहां कितने तथा किस प्रकार के प्रतिवेदन तैयार किये जाते हैं । संगठन के सम्बन्ध में जब भी कोई रिपोर्ट की जानी होती है तो यह कार्य प्राय: कार्यालय प्रबन्धक को सौंपी जाती है या उससे इस सम्बन्ध में सहायता प्राप्त की जाती है ।

किसी अध्ययन के विषय या सभी तथ्यों की जाँच करके उस सम्बन्ध में निष्कर्ष निकालने व सुझाव प्रस्तुत करने को प्रतिवेदन अथवा रिपोर्ट कहते है । सामान्यत: रिपोर्ट एक ऐसा व्याख्यात्मक तथा वर्णनात्मक विवरण होती है जो किसी घटना, कार्य-पद्धति, व्यवसाय की स्थिति तथा अन्य तथ्यों पर प्रकाश डालती है ।

अंग्रेजी शब्दकोष के अनुसार- ”प्रतिवेदन से अभिप्राय एक मौखिक या लिखित लेखा-जोखा से है जो सुना हुआ, देखा हुआ, अध्ययन किया हुआ इत्यादि होता है” ।

सी. ए. ब्राउन (C. A. Brown) के अनुसार- ”प्रतिवेदन अथवा रिपोर्ट संचार की एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के लिए जो भी उन्हें प्रयोग करना चाहता है, कुछ सूचनाएँ अपने पास रखता है ।”

लेसिकर के शब्दों में- ”व्यावसायिक रिपोर्ट तथ्यों पर आधारित सूचना का क्रमबद्ध एवं वस्तुगत संचार है जो व्यावसायिक उद्देश्य की पूर्ति करता है ।”

मर्फी (Murphy) व चार्ल्स (Charles) के अनुसार- ”व्यावसायिक प्रतिवेदन एक निश्चित, महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक उद्देश्य से एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा किया गया तथ्यों का निष्पक्ष वस्तुपरक योजनाबद्ध प्रस्तुतीकरण है ।”

“एक व्यावसायिक रिपोर्ट का मुख्य उद्देश्य एक विस्तृत विषय सामग्री को एक ऐसे संक्षिप्त रूप में संगठित करना है जिसको कि शीघ्रता से देखा जा सके और जो उस विषय से सम्बन्धित मामले की सत्य स्थिति को तत्काल ही प्रकट कर सके ।”

रुचि रखने वाले व्यक्तियों के अध्ययन के लिए रिपोर्ट सुव्यवस्थित विवरण होती है और अनेक दशाओं में यह व्यवसायियों को सुझाव-विचार एवं प्रस्तावनाओं के विकास में सहायता देती है ।

डॉ॰ धर्मपाल मित्तल के शब्दों में- “सरकारी या गैर-सरकारी स्तर पर विभिन्न मामलों की छानबीन के लिए जो जाँच समितियां, आयोग, अध्ययन दल गठित किये जाते हैं, उनके द्वारा जाँच के पश्चात् प्रस्तुत किये गए विवरण, सुझाव और सिफारिशों आदि को सामूहिक रूप से ‘प्रतिवेदन’ कहा जाता है ।”

अर्थात्,


2. एक अच्छे प्रतिवेदन के मुख्य लक्षण (Characteristics of a Good Report):

किसी भी रिपोर्ट में चाहे उसका कोई भी रूप क्यों न हो निम्नलिखित गुण होने आवश्यक हैं:

(1) स्पष्टता (Clarity):

रिपोर्ट में सदेह का स्थान नहीं होना चाहिए तथा उसका भाव पढ़ने वाले को उन्हीं अर्थों में समझ में आना चाहिए जिसमें वह लिखी गयी है । रिपोर्ट लिखने वाले की एक-एक बात स्पष्ट होनी चाहिए, उसे साधनों को परिभाषित करना चाहिए तथा अन्तिम रूप से सिफारिश करनी चाहिए उसे अपनी रिपोर्ट को छोटे-छोटे भागों में बांटना चाहिए ।

(2) तथ्यों की शुद्धता (Accuracy of Facts):

एक अच्छे प्रतिवेदन के लिए तथ्यों की शुद्धता अत्यन्त आवश्यक है सभी तथ्यों एवं सूचनाओं को प्रतिवेदन में सम्मिलित करना चाहिए, क्योंकि इन्हीं तथ्यों के आधार पर निर्णय लिये जाते हैं यदि रिपोर्ट में दिये गए तथ्य ही अशुद्ध होंगे तो प्रबन्ध एवं संगठन को भारी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है ।

(3) यथार्थता (Precision):

एक अच्छे प्रतिवेदन में लेखक के रिपोर्ट लिखने के उद्देश्य पूर्ण रूप से स्पष्ट होने चाहिए अर्थात् उसे पता रहना चाहिए कि वह रिपोर्ट क्यों लिख रहा है । उसके अनुसंधान, विश्लेषण एवं सिफारिशें इसी उद्देश्य के लिए निर्देशित होती हैं । यथार्थता में विश्वास को बढ़ावा मिलता है एवं उद्देश्यों की प्राप्ति सरल हो जाती है ।

(4) स्पष्ट सिफारिशें (Clear Recommendations):

यदि रिपोर्ट के अन्त में सिफारिश की जानी है तो वह भी उद्देश्यात्मक होनी चाहिए सिफारिश पूर्ण अनुसंधान व विश्लेषण के उपरान्त ही करनी चाहिए रिपोर्ट में लेखक का कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं होना चाहिए उसके द्वारा प्रस्तावित सभी सिफारिशें पूर्ण एवं स्पष्ट होनी चाहिए ताकि वे अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में सफल हो सकें ।

(5) संक्षिप्तता (Conciseness):

कार्य से सम्बन्ध न रखने वाली बातों को रिपोर्ट में कोई स्थान नहीं देना चाहिए रिपोर्ट का रूप संक्षिप्त परन्तु पूर्ण होना चाहिए संक्षिप्तता को परिभाषा की सीमा में बांध पाना अत्यन्त दुष्कर कार्य है । यह तो परिस्थितियों एवं विषय सामग्री पर निर्भर करता है । जहाँ तक भी सम्भव हो सके इसका रूप संक्षिप्त होना चाहिए ।

परन्तु इसके साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि स्पष्टता की लागत को प्राप्त नहीं किया जा सकता तथा न ही संक्षिप्तता के नाम पर पूर्णता का त्याग किया जा सकता है । रिपोर्ट का अच्छा होना इसी तथ्य पर निर्भर करता है कि बात भी पूरी कही जाये तथा शब्दों का भी कम-से-कम प्रयोग हो ।

(6) पाठक की भावना का ध्यान (Reader Orientation):

प्रतिवेदन में सदैव पाठक की भावनाओं का ध्यान रखना चाहिए एवं उनका सम्मान करना चाहिए रिपोर्ट लिखने के समय ध्यान रखना चाहिए कि इस रिपोर्ट को कौन पड़ेगा ।

(7) व्याकरण सम्बन्धी शुद्धता (Grammatical Accuracy):

रिपोर्ट का व्याकरण के दृष्टिकोण से शुद्ध होना भी आवश्यक है । रिपोर्ट की भाषा में किसी भी रूप में कोई गलती नहीं रहनी चाहिए । जो भी व्यक्ति रिपोर्ट को पढ़े उस पर उसका अच्छा प्रभाव पड़ना चाहिए ।

(8) सरल भाषा (Simple Language):

अच्छे प्रतिवेदन की भाषा सदैव सरल होनी चाहिए संस्था के उद्देश्यों एवं नीतियों को व्यावहारिक रूप प्रदान करने के लिए यह महत्वपूर्ण प्रपत्र होता है । इसमें कोई बात ऐसी नहीं लिखी जानी चाहिए जिससे लगे कि भाषण दिया जा रहा है अथवा इसमें कुछ जटिलता है ।


3. प्रतिवेदनों के प्रकार (Types of Report):

लघु रिपोर्ट/प्रतिवेदन (Short Report):

जब किसी विवरण को छोटे रूप में प्रस्तुत किया जाता है तय उसकी भूमिका (Introduction), विषय-सामग्री (Subject-Matter), निष्कर्ष (Conclusion) इत्यादि सभी कुछ छोटे आकार में होते है । एक लघु रिपोर्ट को संक्षिप्त (Brief), सही (Correct) एवं निष्पक्ष (Impartial) होना चाहिए । इसमें दिये गये समस्त अनुमान अथवा तर्क तथ्यों (Facts) पर आधारित होने चाहिए ।

लघु रिपोर्ट को पत्र के रूप में (Letter Form) प्रस्तुत किया जा सकता है । प्राय: इनका प्रयोग व्यावसायिक संचार (Business Communication) में किया जाता है । प्राय: दिन-प्रतिदिन की समस्याओं पर लघु रिपोर्ट तैयार की जाती है जिन्हें कभी-कभी फैक्स अथवा ई-मेल द्वारा भी भेजा जाता है ।

लघु रिपोर्ट की विशेषताएं (Characteristics of a Short Report):

(i) लघु रिपोर्ट को पत्र या मेमो (Memo) के रूप में प्रस्तुत किया जाता है;

(ii) लघु रिपोर्ट का प्रयोग प्राय: दिन-प्रतिदिन की समस्याओं पर किया जाता है;

(iii) लघु रिपोर्ट का जीवन अल्पकालीन होता है;

(iv) इनका प्रत्यक्ष प्रारम्भ होता है अर्थात् विषय-सामग्री तुरन्त ही प्रारम्भ हो जाती है;

(v) इनमें निष्कर्ष व सुझाव भी दिये जाते हैं;

(vi) लघु रिपोर्ट सूचना का प्रत्यक्ष प्रस्तुतीकरण करती है;

(vii) लघु रिपोर्ट निजी विवरणों की तरह होती हैं, इनमें प्राय: व्यक्तिगत सम्बन्धों का होना पाया जाता है एवं

(viii) लघु रिपोर्ट प्राय: उन लोगों के द्वारा उन लोगों के लिए होती है जो एक-दूसरे को जानते हैं ।

लधु रिपोर्ट की योजना (Planning of a Short Report):

लघु रिपोर्ट अथवा अनौपचारिक विवरण रिपोर्ट का निर्माण निम्नलिखित ढंग से होता है:

(a) बाह्य लघु रिपोर्ट के लिए पत्र फॉरमेट का प्रयोग करें जिसका अपना कोई शीर्षक व विषय हो;

(b) आन्तरिक लघु रिपोर्ट के लिए मीमो (Memo) का प्रयोग करना चाहिए;

(c) लघु रिपोर्ट के प्रारूप का प्रारम्भ शीर्षक से होना चाहिए;

(d) शीर्षक के पश्चात् विषय दिया जाना चाहिए । विषय को अलग-अलग देना चाहिए, एक को दूसरे से नहीं मिलाना चाहिए;

(e) रिपोर्ट लिखते समय एक उपयुक्त लेखन शैली का प्रयोग करें;

(f) रिपोर्ट का निष्कर्ष प्रस्तुत करें एवं

(g) अन्त में अपने सुझाव प्रस्तुत करें । ध्यान रहे निष्कर्ष और सुझाव युक्तिसंगत ढंग से मूल पाठ (Text) में दिये गये तथ्यों से निकलें तथा सारांश (Summary), व सुझाव (Suggestions) में नई सामाग्री का प्रवेश न करें ।

दीर्घ रिपोर्ट/औपचारिक रिपोर्ट (Long Report/Formal Report):

दीर्घ रिपोर्ट एक औपचारिक रिपोर्ट होती है (A long report is a formal report) । यह वह रिपोर्ट होती है जिसे विस्तार से तैयार किया जाता है । इस रिपोर्ट में अधिक सूचनाएँ दी जाती हैं । साथ ही इन सूचनाओं के समर्थन में आवश्यक तथ्य भी दिये जाते हैं । इन रिपोर्टों में व्यवसाय की लेटी एवं बड़ी समस्याओं का गहनता से अध्ययन किया जाता है । इन रिपोर्टों को कई खण्डों (Volumes) में तैयार किया जाता है तथा प्रत्येक खण्ड में एक ही विषय से सम्बन्धित सूचनाएँ दी जाती हैं ।

दीर्घ रिपोर्ट की विशेषताएँ (Characteristics of a Long Report):

(i) इनको विस्तार से तैयार किया जाता है तथा ये कई खण्डों में विभाजित होती हैं,

(ii) इस प्रकार की रिपोर्ट अधिक विस्तृत एवं जटिल होती हैं,

(iii) इनमें लघु रिपोर्ट की तुलना में अधिक जानकारी दी होती है;

(iv) इस प्रकार की रिपोर्ट तैयार करने में एक निश्चित क्रम अपनाना होता है । यह क्रम भूमिका से चलता है और सुझाव पर जाकर समाप्त हो जाता है ।

औपचारिक अथवा दीर्घ रिपोर्ट की तैयारी (Preparation of a Formal or Long Report):

इस रिपोर्ट के कई भाग होते हैं । इसे तैयार करने के लिए एक निश्चित क्रम को अपनाना होता है ।

इसको निम्न भागों में बांट सकते हैं:

(1) प्रथम भाग-भूमिका (First Part-Introduction),

(2) द्वितीय भाग-रिपोर्ट का मूल विवरण (Second Part – Text of the Report),

(3) तृतीय भाग-मूल विषय का परिशिष्ट भाग (Third Part – Supplementary Part of the Text),

(1) प्रथम भाग-भूमिका (First Part – Introduction):

प्राय: इस भाग को तैयार करने के लिए निम्न क्रम को अपनाया जाता है:

(a) प्रथम पृष्ठ पर कम्पनी का नाम, पता व मार्का (Emblem) दिया जाता है;

(b) इसके बाद रिपोर्ट का शीर्षक व वर्ष दिया जाता है;

(c) इसके बाद विषय-सूची (Table of Content) अर्थात् पूरी रिपोर्ट को जिस क्रम में दिया गया है उसका विवरण दिया जाता है;

(d) विषय-सूची के बाद चित्र सूची (List of diagrams) अर्थात् रिपोर्ट में दिये गये चित्रों की सूची दी जाती है; एवं

(e) अन्त में पूरी रिपोर्ट का सारांश (Summary) दिया जाता है ।

(2) द्वितीय भाग-रिपोर्ट का मूल विवरण (Second Part- Text of the Report):

रिपोर्ट के मूल विवरण को निम्न क्रम में दर्शाया जाता है:

(i) भूमिका (Introduction),

(ii) मुख्य भाग (Main Part or Body),

(iii) सारांश (Summary),

(iv) निष्कर्ष (Conclusion),

(v) सुझाव (Suggestions or Recommendations) ।

किसी भी रिपोर्ट का मूल विवरण तैयार करते समय तथ्यों एवं कड़ी को एक निश्चित क्रम में दिया जाता है जो भूमिका से प्रारम्भ होकर सुझाव पर जाकर समाप्त हो जाता है । भूमिका के अन्तर्गत किसी कम्पनी का इतिहास, उसकी स्थापना के उद्देश्य, कार्य-क्षेत्र, कार्य प्रणाली इत्यादि आते हैं ।

इसके मुख्य भाग में वे सभी सूचनाएँ आती है जिनको सूचित किया जाना है । इन सभी सूचनाओं को सूक्ष्म में लिया जाता है । इसके पश्चात् निष्कर्ष दिया जाता है एवं सबसे अन्त में निकाले गये निष्कर्ष के आधार पर सुझाव एवं सिफारिशों को दिया जाता है ।

(3) तृतीय भाग-मूल विषय का परिशिष्ट भाग (Third Part – Supplementary Part of the Text):

प्रतिवेदन के अन्तिम भाग में सूची पत्र (Catalogue/List), प्रश्नावली (Questionnaire), प्रश्नों की सूची (List of Questions), तथा मुख्य भाग के समर्थन में प्रपत्रों (Supporting Documents) को संलग्न किया जाता है ।

इसकी तैयारी में अनेक व्यक्तियों से सहयोग लिया जाता है । इसके निर्माण की प्रक्रिया बड़ी होती है जिसे भागों में बांटकर पूरा किया जाता है ।


4. अच्छी रिपोर्ट के गुण (Qualities of a Good Report):

रिपोर्टों का प्रारूप तैयार करने के लिए कोई निश्चित नियम नहीं है । रिपोर्ट किस प्रकार लिखी जाए, उसकी क्या विषय-सामग्री हो, उसकी क्या भाषा हो, यह जांच किये जा रहे विषय जांच के उद्देश्य तथा इस पर निर्भर करेगा कि वह रिपोर्ट किस को प्रस्तुत को जानी है ? सांविधिक रिपोर्ट को निर्धारित ढंग से तैयार किया जाना होता है, अत: इसके रूप के विषय में कोई निर्णय लेने को आवश्यकता नहीं होती ।

एक अच्छी कार्यालय अथवा व्यावसायिक रिपोर्ट में निम्नलिखित गुण होने चाहिए:

(i) सरल व स्पष्ट भाला (Language should be Simple and Unambiguous):

रिपोर्ट की भाषा सरल तथा स्पष्ट होनी चाहिए । सरल शब्दों का प्रयोग करना श्रेयकर रहता है । सरल शब्द अधिक स्पष्ट होते है तथा उनके द्वारा रिपोर्ट के भाव को आसानी से व्यक्त किया या सकता है । रिपोर्ट लिखने के लिए स्पष्ट तथा छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग किया जाना चाहिए । रिपोर्ट में तकनीकी शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए कि नहीं, यह इस पर निर्भर करेगा कि रिपोर्ट के प्राप्तकर्ताओं को तकनीकी जानकारी है कि नहीं । यदि रिपोर्ट गैर-तकनीकी व्यक्तियों को प्रस्तुत की जानी है तो तकनीकी शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए ।

(ii) उद्देश्य की पूर्ति (Must Fulfill the Object):

रिपोर्टें किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए तैयार की जाती हैं । एक श्रेष्ठ रिपोर्ट को उस उद्देश्य की पूर्ति करनी चाहिए । उदाहरणत: किसी कार्यालय की टाइप मशीन चोरी हो जाये और उसकी जिम्मेदारी निश्चित करने के लिए रिपोर्ट मांगी जाये तो यदि उस रिपोर्ट में चोरी के लिए जिम्मेदारी निश्चित करने के स्थान पर चोरी को रोकने के यत्नों की चर्चा की जाती है तो वह रिपोर्ट बेकार होगी ।

(iii) विश्वसनीय तथा पूर्ण (Convincing and Complete):

रिपोर्ट ऐसी होना चाहिए कि जिस पर विश्वास किया जा सके । रिपोर्ट में विचार तथा तर्क विवेकपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किए जाने चाहिए । रिपोर्ट में अध्ययन किए जा रहे विषय से सम्बन्धित पूर्ण तथ्य प्रस्तुत किये जाने चाहिए श्रेष्ठ रिपोर्ट वह है जो पढ़ने वाले को सोचने के लिए विवश करके उसे क्रिया करने को प्रेरित करें । रिपोर्ट में ऐसे तर्क प्रस्तुत नहीं किए जाने चाहिए जिनका दोहरा अर्थ निकलता हो ।

(iv) संक्षिप्त तथा प्रासंगिक (Brief and Relevant):

रिपोर्ट संक्षिप्त होनी चाहिए । इसमें वहीं बातें लिखी जानी चाहिए जो अति आवश्यक हैं । चाहे जांच के दौरान कितने ही महत्त्वपूर्ण व रुचिकर तथ्य सामने क्यों न आयें, परन्तु रिपोर्ट में केवल जांच से सम्बन्धित विषय की ही चर्चा की जानी चाहिए ।

(v) पक्षपात रहित तथा तर्कपूर्ण (Unbiased and Objectives):

रिपोर्ट में निकाले गए निष्कर्ष तथा प्रस्तुत किये गए सुझाव पक्षपात रहित होने चाहिए । उनके द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुतकर्त्ता को किसी ओर झुकाव प्रतीत नहीं होना चाहिए । रिपोर्ट में कोई भी ऐसी बात नहीं कही जानी चाहिए जो उपलब्ध आकड़ों तथा तथ्यों पर आधारित न हो । रिपोर्ट में प्रस्तुत किये गये सुझाव अथवा सिफारिशे सुनिश्चित तथा व्यावहारिक होनी चाहिए ।

(vi) उचित प्रारूप (Suitably Drafted):

रिपोर्ट को उचित रूप में लिखा जाना चाहिए । व्याख्या के लिए रिपोर्ट में विवरणात्मक शीर्षक व उपशीर्षक दिये जाने चाहिए । प्रत्येक नये विचार अथवा तथ्य को नये अनुच्छेद में दिया जाना चाहिए । निष्कर्ष तथा सुझावों को रिपोर्ट के अन्त में दिया जाना चाहिए । रिपोर्ट पर प्रस्तुतीकरण की तिथि अंकित होनी चाहिए तथा उस पर प्रस्तुतकर्त्ता के हस्ताक्षर भी होने चाहिए ।


5. लिखित बनाम मौखिक प्रतिवेदन (Written Vs. Oral Report):

मौखिक रिपोर्ट का स्वरूप सरल होता है एवं इसे प्रस्तुत करने में सुविधा रहती है । कभी-कभी यह रिपोर्ट अत्यन्त लाभप्रद भी होती है । परन्तु लिखित रिपोर्ट को सदैव प्राथमिकता दी जाती है, क्योंकि मौखिक रिपोर्ट की तुलना में इसके अधिक लाभ होते हैं;

जैसे:

(i) मौखिक रिपोर्ट की प्राप्ति के बारे में किसी भी पक्ष द्वारा मना किया जा सकता है परन्तु रिपोर्ट के लिखित रूप में होने पर यह सम्भव नहीं, क्योंकि यह स्थायी रिकार्ड बन जाता है । एक बार प्रतिवेदक ने जो रिपोर्ट दे दी बाद में वह उससे इंकार नहीं कर सकता ।

(ii) लिखित रिपोर्ट में किसी प्रकार का भय नहीं रहता क्योंकि कोई भी व्यक्ति इसे परिवर्तित नहीं कर सकता जबकि मौखिक रिपोर्ट में झूठ बोलकर परिवर्तन किया जा सकता है ।

(iii) लिखित रिपोर्ट को सन्दर्भ के रूप में कभी भी प्रस्तुत किया जा सकता है ।


6. प्रतिवेदनों का महत्त्व (Importance of Reports):

प्रतिवेदन प्रबन्ध के निर्णय लेने की प्रक्रिया में मुख्य भूमिका निभाता है यदि निर्णय लेने के सम्बन्ध में रिपोर्ट को एक दिल की संज्ञा से सम्मानित किया जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । जो महत्त्व मानव शरीर में हृदय का होता है, वही महत्त्व प्रबन्धकीय वर्ग में रिपोर्ट का होता है रिपोर्ट के अभाव में उसके लिए यह सम्भव नहीं कि संस्था की सभी गतिविधियों की व्यक्तिगत रूप से जानकारी रखे एकाकी व्यवसाय की दशा में तो कार्य करना, निर्णय लेना व रिपोर्ट करना सभी कुछ एक ही व्यक्ति तक केन्द्रित होता है वह तुरन्त स्थिति को देखकर समयानुसार निर्णय ले सकता है तथा उसे रिपोर्ट की आवश्यकता नहीं होती ।

परन्तु जहां व्यवसाय बड़े आकार पर फैला होता है तथा उसकी विभिन्न शाखाएँ हों एव हजारों की संख्या में कर्मचारी कार्य करते हों, वहाँ रिपोर्ट ही संचार प्रणाली का कार्य करती है उच्चाधिकारी सभी क्रियाओं पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान नहीं दे सकते, अत: उन्हें विभिन्न विभागों की रिपोर्ट पर ही निर्भर रहना पड़ता है ।


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