Read this article in Hindi to learn about the top ten principles of scientific management. The principles are: 1. Mental Revolution 2. Task Idea 3. Standardisation 4. Experiment 5. Scientific Selection and Training of Workers 6. Scientific Selection and Use of Material 7. Modern Plants and Equipment’s 8. Wage Incentives 9. Good Working Conditions 10. Functional Organisation.
Principle # 1. मानसिक क्रान्ति (Mental Revolution):
मानसिक क्रान्ति वैज्ञानिक प्रबन्ध का मूल सिद्धान्त है । मानसिक क्रान्ति से अभिप्राय प्रबन्धकों एवं श्रमिकों की मान्यताओं एवं विचारों में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाना होता है । मानसिक क्रान्ति के बिना संस्थान में सहयोगात्मक प्रवृत्ति का अ भाव रहेगा तथा परिणामत: संस्थान के उद्देश्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकेगा । श्रम व प्रबन्ध के मध्य विरोध दूर करने के लिये मानसिक क्रान्ति करना आवश्यक है ।
टेलर के अनुसार- ”वैज्ञानिक प्रबन्ध के अन्तर्गत दोनों पक्षों के मानसिक दृष्टिकोण में एक बड़ी क्रान्ति आती है जिसके अन्तर्गत दोनों पक्ष अन्य महत्वपूर्ण मामलों की भांति आधिक्य के बँटवारे से अपनी निगाह दूर रखते हैं और इसके साथ ही आधिक्य आकार में वृद्धि करने की ओर अधिक ध्यान देते रहना चाहिये जब तक कि यह आधिक्य इतना बड़ा हो जाये कि इसमें वितरण के विषय में झगड़ना आवश्यक होगा ।”
Principle # 2. कार्य-अनुमान (Task Idea):
वैज्ञानिक प्रबन्ध में सर्वप्रथम यह निश्चित किया जाता है कि श्रमिकों से क्या कार्य कराना है ? एक कुशल श्रमिक से कितने कार्य की अपेक्षा की जा सकती है ? इस प्रकार वैज्ञानिक प्रबन्ध के अन्तर्गत प्रमापित कार्य निर्धारित किया जाता है जो कि प्रमापित दशाओं में एक औसत श्रमिक द्वारा पूर्ण किया जाता है । टेलर ने इसे ‘एक उचित दिन का कार्य’ (A Proper Day’s Work) कहा है ।
Principle # 3.प्रमापीकरण (Standardisation):
वैज्ञानिक प्रबन्ध के अन्तर्गत श्रमिकों द्वारा उसी स्थिति में कुशलतापूर्वक एवं सन्तोषजनक कार्य किया जा सकता है जबकि इस दिशा में प्रबन्ध द्वारा महत्वपूर्ण कदम उठाये जायें । श्रमिकों द्वारा प्रयुक्त किये जाने वाले औजारों, उपकरणों, विधियों, मशीनों एवं अन्य सामग्री का प्रमापीकरण किया जाना आवश्यक है । इसके लिये कार्य की दशाएँ समय एवं वस्तु की किस्म भी प्रमापित होनी चाहिये । प्रमापीकरण से उत्पादन लागत कम होती है, उत्पादन विधियों व किस्मों में सुधार होता है तथा श्रमिकों की कार्यकुशलता में भी वृद्धि होती है ।
Principle # 4. प्रयोग (Experiment):
वैज्ञानिक प्रबन्ध में प्रयोगों के द्वारा श्रमिकों की विभिन्न क्रियाओं की जाँच व उनका विश्लेषण किया जाता है जिससे कि इनकी कार्यकुशलता में और अधिक वृद्धि की जा सके ।
टेलर ने तीन प्रकार के वैज्ञानिक प्रयोग किये:
(i) समय अध्ययन (Time Study):
किसी कार्य को पूर्ण करने में लगे समय तथा उसका समय समय पर रिकॉर्ड रखना ही ‘समय अध्ययन’ कहलाता है । किम्बाल एवं किम्बाल के अनुसार- ”एक औद्योगिक कार्य के तत्व के रूप में उसमें लगें समय का अवलोकन एवं रिकॉर्ड रखने की कला ही समय अध्ययन के रूप में परिभाषित की जा सकती है ।”
(ii) गति अध्ययन (Motion Study):
किसी भी कार्य को करते समय किसी भी श्रमिक के शरीर में जितनी अधिक गति होगी उसे कार्य करने में उतना ही अधिक समय लगेगा । साथ ही श्रमिक को थकान का अनुभव भी अधिक होगा । इसलिये वैज्ञानिक आधार पर अनावश्यक गतियों को समाप्त करके कार्य को उचित समय पर बिना थकान के पूरा किया जाना चाहिये ।
इसके लिये ही गति अध्ययन आवश्यक है । गति अध्ययन का श्रेय श्री एवं श्रीमती गिलब्रेथ को दिया जाता है । श्री गिलब्रेथ ने शारीरिक गतियों को 18 मूलभूत वर्गों में विभाजित किया था जिसे ‘थर्बलिग’ (Therblig) का नाम दिया गया है ।
(iii) थकान अध्ययन (Fatigue Study):
कार्य करने में माँसपेशियों पर जोर पड़ने से थकान का अनुभव होता है । टेलर ने अध्ययन करके यह पता लगाने का प्रयास किया कि किस विधि से ऐसा सम्भव है कि श्रमिक को थकान कम-से-कम हो तथा उत्पादन अधिकतम किया जा सके ?
वैज्ञानिक प्रबन्ध इस बात पर बल देता है कि श्रमिक पर कार्य भार केवल इतना ही हो कि उसे थकान का अनुभव न हो ।
Principle # 5. श्रमिकों का वैज्ञानिक चयन एवं प्रशिक्षण (Scientific Selection and Training of Workers):
वैज्ञानिक प्रबन्ध में श्रमिकों की नियुक्तियों वैज्ञानिक विधि से की जाती हैं । वैज्ञानिक चयन न होने पर श्रमिकों की कार्यकुशलता तथा उनके मनोबल पर बुरा असर पड़ता है । प्रत्येक श्रमिक को उसकी कार्यकुशलता एवं योग्यता के अनुसार कार्य दिया जाना चाहिये ।
‘व्यक्ति के अनुसार कार्य और कार्य के अनुसार व्यक्ति’ (Man to Job and job to Man) का चयन किया जाना चाहिये कुशल श्रमिकों का चयन के उपरान्त उन्हें प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिये आधुनिक समय में श्रमविभाजन एवं विशिष्टीकरण का महत्व बढ़ जाने से कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया जाना आवश्यक हो गया है ।
Principle # 6. सामग्री का वैज्ञानिक चुनाव एवं प्रयोग (Scientific Selection and Use of Material):
उत्पादित माल उत्तम कोटि का हो । इसके लिये यह आवश्यक है कि कच्चा माल भी उच्च कोटि का होना चाहिये । श्रमिकों की कुशलता व उत्पादन क्षमता पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है कि जिस सामग्री से उन्हें माल तैयार करना है उसकी गुणवत्ता क्या है ? उत्तम किस्म की सामग्री होने पर श्रमिक कम समय में श्रेष्ठ उत्पादन कर सकता है ।
Principle # 7. आधुनिक यन्त्र तथा उपकरण (Modern Plants and Equipment’s):
श्रमिकों की कुशलता उन यन्त्रों व उपकरणों पर निर्भर करती है जो उनको कार्य करने के लिये दिये जाते हैं । पुराने यन्त्रों से उत्पादन न तो कुशलतापूर्वक किया जा सकता है और न ही उत्तम किस्म का माल उत्पादित किया जा सकता है । यन्त्रों का चयन बहुत ही सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिये । वर्तमान युग ‘स्वचालित यन्त्रों का युग’ (Automation Age) है । ऐसे में परम्परागत यन्त्रों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता है ।
Principle # 8. प्रेरणात्मक मजदूरी (Wage Incentives):
‘प्रेरणात्मक मजदूरी’ से यह तात्पर्य है कि जो श्रमिक नियत समय में सौंपे गये कार्य को कर लेते हैं उन्हें ऊँची दर पर मजदूरी दी जाती है तथा जो सौंपे गये कार्य को नियत समय में नहीं करते हैं उन्हें अपेक्षाकृत कम मजदूरी दी जाती है । वैज्ञानिक प्रबन्ध की मान्यतानुसार अधिक वेतन से कार्यकुशलता में वृद्धि होती है ।
Principle # 9. कार्य की अच्छी दशाएँ (Good Working Conditions):
कार्य की दशाएँ भी श्रमिकों के स्वास्थ्य एवं कार्यकुशलता पर सीधा प्रभाव डालती हैं । कार्य की दशाओं में कार्य के घण्टे, प्रकाश एवं वायु का प्रबन्ध, स्वच्छता, बच्चों का पालन-पोषण एवं कल्याणकारी कार्य आते हैं । स्वास्थ्यप्रद एवं सन्तोषजनक कार्य दशाओं में श्रमिकों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है तथा कार्यकुशलता बनी रहती है ।
Principle # 10. क्रियात्मक संगठन (Functional Organisation):
टेलर ने वैज्ञानिक पद्धति के अन्तर्गत ‘क्रियात्मक संगठन’ को मान्यता प्रदान की । क्रियात्मक संगठन के अन्तर्गत प्रबन्ध एवं कर्मचारियों के कार्यों को पद्धति के अनुसार विभक्त कर दिया जाता है । इस प्रकार यह संगठन श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण के सिद्धान्त पर आधारित है । प्रत्येक व्यक्ति को वही कार्य सौंपा जाता है जिसमें वह विशेषज्ञ होता है ।