Read this article in Hindi to learn about the behaviour motivation theory.
इस सिद्धान्त को प्रतिपादित करने का श्रेय हावर्ड विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक बी. एफ. स्कीनर को जाता है । यह सिद्धान्त मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं व समस्याओं को व्यक्तिगत रूप से समझने में कोई प्रयास नहीं करता । यह सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि व्यक्ति का व्यवहार उसके पूर्व अनुभव पर निर्भर करता है ।
यह व्यवहार साहसित व गैर-साहसित (Encouraged or Discouraged) हो सकता है । साहसित व्यवहार भविष्य में बार-बार दोहराया जाता है जबकि असाहसित व्यवहार भविष्य में कभी दोहराया नहीं जाता ।
उदाहरणार्थ, एक कर्मचारी को प्रतिदिन सही समय तथा नियमित रूप से कार्यालय आने पर मासिक कुछ इनाम स्वरूप दिया जाता है तो यह साहसित व्यवहार होगा । इसके विपरीत यदि कार्यालय में देरी से आने पर कर्मचारियों को हर महीने दण्ड दिया जाता है तो यह असाहसित व्यवहार होगा ।
इस प्रकार की अग्रलिखित आकस्मिकताएँ (Contingencies) होती हैं जो कि आपसी सम्बन्धों को स्पष्ट करती हैं:
(1) सकारात्मक शक्तिप्रद (Positive Reinforcement):
व्यक्ति के वास्तविक व्यवहार से यदि प्रशासन प्रसन्न होता है, अर्थात् यदि कोई व्यक्ति अच्छा कार्य करें तो प्रशासन को चाहिए कि वह उसके लिए उचित पारिश्रमिक की व्यवस्था करें । इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं- प्रशंसा, उन्नति के अवसर, मौद्रिक इनाम, इत्यादि ।
(2) नकारात्मक शक्तिप्रद (Negative Reinforcement):
प्रत्येक मनुष्य से यह आशा की जाती है कि वह अच्छे व्यवहार को अपनाकर अनुचित व्यवहार का परित्याग करें । ऐसे परिणाम जिनकी मनुष्य को इच्छा नहीं होती, इस श्रेणी में आते हैं । यदि कोई मनुष्य अपनी शक्ति से अधिक कुछ सीख लेता है तो वह अपने बॉस का ध्यान अधिक केन्द्रित कर सकेगा ।
(3) दण्ड (Punishment):
मनुष्य के गलत कार्यों पर प्रशासन दण्ड की व्यवस्था कर सकता है । दण्ड की व्यवस्था होने से अनियमितता में निश्चित रूप से कमी आयेगी जैसे कि अच्छा कार्य करने से उसके कार्य करने की शक्ति में वृद्धि होती है ।
यदि कोई पर्यवेक्षक (Supervisor) अपने किसी अधीनस्थ को देरी से आने से रोकता है तथा ऐसी घटना चार-पाँच बार हो जाती है तो उसे अर्थात् अधीनस्थ को कुछ गिरावट-सी महसूस होगी तो वह देर से आना बन्द कर देगा तो इसका श्रेय पर्यवेक्षक को जायेगा ।
इस प्रकार उपरोक्त सभी आकस्मिकताओं को समझना प्रबन्धकों के लिए अति आवश्यक है तभी वे प्रशासन प्रक्रिया को प्रभावी बना सकते हैं तथा अपने अधीनस्थों पर नियन्त्रण कर सकते हैं ।
संशोधित-तकनीकें (Modified Techniques):
उपरोक्त को प्रयोग करने हेतु कुछ आधुनिक तकनीकियों के बारे में वर्णन किया गया है जो कि निम्नलिखित हैं:
(1) पारितोषिक की व्यवस्था विभिन्न व्यक्तियों के लिए विभिन्न तरीकों से प्रशासन द्वारा की जाती है जो कि निष्पादन के निश्चित प्रमापों पर आधारित होती हैं । उच्च निष्पादन वाले व्यक्तियों को उच्च पारितोषिक की व्यवस्था की जाती है, इसके विपरीत निम्न निष्पादन वाले व्यक्तियों के लिए निम्न पारितोषिक की ।
(2) प्रबन्धकों को अपने अधीनस्थों के सम्बन्ध में आश्वस्त रहना पड़ता है ताकि उन्हें समयानुसार सभी सुविधायें उत्पन्न करायी जा सकें ।
(3) प्रबन्धकों को अपने अधीनस्थों को यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि उनके क्या कर्तव्य हैं तथा उन्हें कार्य का निष्पादन कब तक पूरा करना है । सभी उद्देश्यों को स्पष्ट कर देना होता है । क्योंकि उन्हें पता होता है कि किस कार्य को कब पूरा करके देना है ।
(4) यदि अधीनस्थ कोई गलत कार्य करते हैं तो इसका उत्तरदायित्व उनके प्रबन्धकों पर होता है ।
(5) प्रबन्धकों को कार्य में सुधार करना होता है क्योंकि दण्ड देना किसी समस्या का समाधान नहीं होता । दण्ड देने से तो परिणाम विपरीत ही हो सकते हैं । वास्तविकता के दृष्टिकोणों से भी देखा जाये तो यह सही भी है क्योंकि दण्ड से उद्देश्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता ।
(6) पारितोषिक व दण्ड की व्यवस्था में परस्पर मेल-जोल होना चाहिए । न तो अधिक दण्ड व न अधिक पारितोषिक की व्यवस्था होनी चाहिए ।
(7) प्रत्येक कर्मचारी के लिए विशेष उद्देश्य होने चाहिए जो कि उसकी योग्यता के अनुसार हों ।
(8) प्रत्येक कर्मचारी व श्रमिक को अपने कार्य का लेखा-जोखा रखना चाहिए कि उसने क्या कार्य किया है तथा भविष्य में क्या अतिरिक्त करने की योजना है । इससे उनके कार्य पर स्वत: ही नियन्त्रण हो जायेगा तथा पीछे की सम्बन्धित सूचनायें भी मिलती रहेंगी ।
(9) पर्यवेक्षक को प्रत्येक कर्मचारी के कार्य का परीक्षण करना चाहिए, जिसने अच्छा कार्य किया है, उसकी प्रशंसा करनी चाहिए ।
संशोधन व्यावहारिक तकनीकियों का मूल्यांकन (Evaluation of Behaviour Modification Techniques):
गत पृष्ठों के अध्ययन से पता चलता है कि ये तकनीकियाँ कुशलता, निष्पादन, उत्पादकता, उत्पादन किस्म, उपस्थिति, नियमितता, अनुशासन, समन्वय तथा मनोबल इत्यादि को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होती हैं । परन्तु इस सिद्धान्त की कुछ तत्वों के आधार पर आलोचना की गयी है ।
ये तत्व अग्रलिखित हैं:
(1) इसके अन्तर्गत आन्तरिक विचारधाराओं, आवश्यकताओं, मूल्य तथा योग्यताओं की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता जबकि कर्मचारियों के व्यक्तित्व को बढ़ाने के लिए अत्यावश्यक हैं । सभी कर्मचारियों व श्रमिकों को केवल एक हाड़-माँस का पुतला माना जाता है जो कि केवल कार्य करने के लिए होते हैं ।
(2) इसके अन्तर्गत अनौपचारिक कार्य समूह पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता अर्थात् प्रत्येक कार्य को, नियमों को इतना औपचारिक कर दिया जाता है । कि इनसे बाहर कुछ कार्य किया ही नहीं जा सकता ।
(3) इसके अन्तर्गत आन्तरिक पारितोषिक तथा अभिप्रेरणा को भी पूर्ण रूप से भुलाया जाता है । यह पूर्ण रूप से बाहरी अभिप्रेरणा व पारितोषिक पर ही ध्यान केन्द्रित करता है ।