Read this article in Hindi to learn about the equity theory of motivation by Adams.
अभिप्रेरण के समता सिद्धान्त का प्रतिपादन में यू. एस. ए. के ‘जे. एस. एडम्स’ (J. Stacy Adams) ने किया । अभिप्रेरणा के सामाजिक सिद्धान्तों की तुलना में यह सिद्धान्त महत्वपूर्ण है । इस सिद्धान्त का आधार शुद्ध या न्यायमुक्त प्रबन्ध की आवश्यकता है ।
इस सिद्धान्त के अनुसार हम सब अपने प्रयास की तुलना, अपने संगठन में व्यक्तियों के सापेक्ष पारितोषिक से करते हैं । यदि प्रयास के पारितोषिक (Remuneration) के अनुपात में समान है तो हमें समता की भावना का अनुभव होता है ।
असमानता की भावना कर्मचारियों की असन्तुष्टि का प्रमुख कारण है । अत: प्रबन्ध को अपनी पारितोषिक पद्धति में समानता स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए तथा कर्मचारियों की भावनाओं तथा संगठन की उपलब्धियों तथा उसकी पारितोषिक पद्धति के सम्बन्ध में निरन्तर सचेत रहना चाहिए ।
इस सिद्धान्त की मुख्य मान्यता यही है कि संगठन में नियोक्ता अपने कर्मचारियों के साथ कितना न्याय करते है, उनके साथ उचित व्यवहार करते हैं या नहीं । इसमें सदस्यों में तुलना होती है कि अन्य सदस्य कितना प्राप्त कर रहे हैं, उन्हें क्या अतिरिक्त सुविधायें प्रदान की जा रही हैं ।
साम्यता के सिद्धान्त में दो बातें मुख्य रूप से समझने की होती हैं- आदान तथा प्रदान । आदान प्रक्रिया में उन गुणों तथा तत्वों को सम्मिलित किया जाता है जो कि सदस्य द्वारा उसके कार्य में सम्मिलित की जाती है, इसमें सदस्य के गुण आते हैं; जैसे- शिक्षा, ज्ञान, अनुभव, वरिष्ठता, कुशलता प्रयास तथा अन्य ।
प्रदान में उसे सम्मिलित किया जाता है जो कि एक सदस्य अपने संगठन तथा कार्य से प्राप्त करता है । यह उस सदस्य की प्रत्याय, प्राप्ति या पारितोषिक होता है तथा इसमें कार्य की दशाओं, वेतन, प्रशंसा तथा प्रतिष्ठा इत्यादि को शामिल किया जाता है ।
आदान तथा प्रदान दोनों ही संगठन तथा सदस्यों के सम्बन्धों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण तत्व होते हैं । इनका अध्ययन करते समय इस प्रक्रिया का भी परीक्षण किया जा सकता है कि ये अभिप्रेरणा से किस प्रकार सम्बन्धित होते हैं ।
यदि किसी सदस्य की प्रत्याय अन्य की तुलना में वास्तव में कम है तो इसका आशय है कि सदस्य यह समझता है कि उसे कम पारितोषिक दिया जा रहा है तथा उसे उसकी मेहनत के अनुसार पर्याप्त पारिश्रमिक नहीं मिल रहा है तथा वह असन्तुष्ट है, परिणाम यह होगा कि वह क्रोधित हो जायेगा तथा कार्य से उसका मन ऊब जायेगा, भविष्य में कुछ करने की उसकी हिम्मत टूट जायेगी । इस असन्तुलन की स्थिति को कम करने हेतु कुछ सुझाव दिये जा सकते हैं ।
जो कि निम्नलिखित हैं:
(a) आदानों में परिवर्तन (Alteration in Inputs):
यदि कोई व्यक्ति यह समझता है कि उसे उसके प्रयास की तुलना में कम दिया जा रहा है तो वह अपने कार्य में आदानों को कम कर सकता हे । उदाहरणार्थ- वह अपने प्रयासों में कमी कर सकता है, अपने कार्य में भिन्नता उत्पन्न कर सकता है तथा अपनी कुशलताओं का प्रयोग कम कर सकता है ।
(b) प्रदानों में परिवर्तन (Alteration in Outcomes):
व्यक्ति अपने प्रदानों को घटा भी सकता है तथा बढ़ा भी सकता है । वह अपने बॉस को वेतन में वृद्धि करने के लिए दबाव डाल सकता है यदि वह ऐसा अनुभव करता है कि उसे कम मिल रहा है । वह अपने बॉस को प्रसन्न कर सकता है तथा प्रशंसा-पत्र देते हुए दबाव डाल सकता है ।
वह कार्य में अधिक रुचि दर्शाकर अधिक सन्तुष्टि प्राप्त कर सकता है । यदि कोई व्यक्ति यह समझता है कि उसे अधिक मिल रहा है तो वह आदानों की कीमत बढ़ा सकता है तथा यह कल्पना कर सकता है कि वह अधिक अनुभवी निपुण तथा परिश्रमी है ।
(c) क्षेत्र को छोड़ना (Leaving the Field):
यदि कोई व्यक्ति असमानता का अनुभव करता है तो वह स्थानान्तरण करा सकता है तथा समानता का अनुभव कर सकता है ।
(d) दूसरों के आदान-प्रदान में परिवर्तन (Alternating in Inputs and Outcomes of Others):
असमानता को दूर करने का उपाय यह भी है कि वह आदानों-प्रदानों पर अपने विचारों को बदल दे । वह प्रयास कर सकता है कि अन्य लोगों को भी साहसित करें कि वे स्वयं में विकास करें अथवा अपने प्रयासों में कमी करें ।
(e) तुलनात्मक उद्देश्यों को बदलना (Changing the Objects of Comparison):
तुलना के साधनों में परिवर्तन करके भी असमानता को कम किया जा सकता है, ऐसी तुलना के साधन जो कि वह दूसरों से करता है । इसके अतिरिक्त वह अपने तुलना के तरीके को बदल सकता है तथा समानता का सृजन किया जा सकता है ।
इस प्रकार असमानता को दूर करने के अनेक मार्ग हैं । यदि मनुष्य चाहे तो वह कुछ भी करने में सफल हो सकता है । कोई भी साधन यदि मनुष्य करें तो कोई शक्ति ऐसी नहीं होती जो कि उसमें बाधा उत्पन्न हो । यह असमानता को दूर करने या कम करने की स्थिति, विभिन्न परिस्थितियों पर निर्भर करती है ।
इसका चयन मनुष्य स्वयं कर सकता है । यदि किसी मनुष्य को अपने कार्यक्षेत्र के बाहर कोई अच्छा कार्य मिलता है तो वह अपने वर्तमान कार्य को छोड़ देगा । परन्तु यदि वह सोचता है कि अपने कार्य क्षेत्र के बाहर कार्य करना कठिन होगा तो वह ऐसा नहीं करेगा ।
समता सिद्धान्त की आलोचना (Criticism of Equity Theory):
समता सिद्धान्त सभी स्थानों पर खरा नहीं उतरता । इसकी कुछ आलोचनायें भी हैं ।
जो कि निम्नलिखित हैं:
(i) समता सिद्धान्त अभिप्रेरणा का सम्पूर्ण सिद्धान्त नहीं है वरन् यह अभिप्रेरणा के केवल एक विशेष आधार को लेकर चलता है ।
(ii) किसी व्यक्ति के लिए यह माप करना कठिन है कि असमानता किस सीमा तक है अर्थात् असमानता को मापने के उचित प्रमाप नहीं हैं । यह समता सिद्धान्त की महत्वपूर्ण आलोचना है ।
(iii) असमानता को दूर करने के उपाय अनेक गलत भावनाओं के विचारों को भी दूर करते हैं । ये गलत विचार दूसरों को अधिक भुगतान के सम्बन्ध में उत्पन्न हो सकते हैं ।
प्रबन्धकों को मार्ग-दर्शन कराने में समता सिद्धान्त वास्तव में लाभप्रद सिद्ध हुआ है । प्रबन्धकगण ऐसा महसूस कर सकते हैं कि समता प्रेरक तत्व महत्वपूर्ण प्रेरणाप्रद होते हैं । इस स्थिति में कर्मचारियों तथा श्रमिकों को उचित वेतन व मजदूरी मिलती है कार्य को निश्चित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि वेतन व मजदूरी ।