Read this article in Hindi to learn about the Vroom’s theory of expectancy.
अभिप्रेरण के सम्बन्ध में 1964 में विक्टर व्रुम ने प्रत्याशा विचारधारा का प्रतिपादन किया था । व्रुम का मत था कि सन्तुष्टि घटक सिद्धान्त कार्य अभिप्रेरण प्रक्रिया की व्याख्या स्पष्ट रूप से नहीं कर पाते ।
अत: विकल्प के रूप में उन्होंने अभिप्रेरण की प्रक्रिया विचारधारा का प्रतिपादन किया जो मनोवैज्ञानिक कुर्त लेविन (Kurt Lewin), एडवर्ड टोलमेन (Edward Tolman) की संज्ञानात्मक अवधारणाओं तथा अर्थशास्त्र के चयन व्यवहार व उपयोगिता सिद्धान्तों पर आधारित है ।
यह सिद्धान्त अभिप्रेरणा, निष्पादन तथा कार्य सन्तुष्टि के कारणों को विभिन्न विवरण प्रदान करता है । इस सिद्धान्त के अन्तर्गत व्यक्ति अपने कार्य का चयन स्वयं करता है । सभी व्यक्ति अपने उद्देश्यों, आवश्यकताओं, मूल्यों, कुशलताओं, योग्यताओं तथा भूमिकाओं के सम्बन्ध में सतर्क रहते हैं ।
उनके अन्दर भी अपने कुछ अनुमान होते हैं, कुछ व्यक्तिगत गुण होते हैं, जिनके आधार पर किया जाता है । इसके अतिरिक्त आवश्यकताओं, प्रयासों की प्राथमिकताओं तथा गणनाओं का अनुमान भी इन्हीं के आधार पर किया जाता है । इस सिद्धान्त में मनुष्य की शक्ति को परिभाषित किया जाता है ।
यदि किसी श्रमिक का इस तथ्य में विश्वास है कि कठिन परिश्रम करना ही उच्च निष्पादन की कुंजी है तो इसका आशय स्पष्ट है कि वह उच्च आशावादी है । यदि किसी श्रमिक का यह दृढ़ विश्वास है कि उच्च निष्पादन से ही उसकी मजदूरी में वृद्धि होगी तो इसका आशय है कि उसमें तान्त्रिकता (Instrumentality) है ।
इस सिद्धान्त का निम्न रूपों में वर्गीकरण किया जा सकता है:
(a) किसी व्यक्ति के कार्य का निष्पादन अर्थात् उसकी क्षमता केवल उसके द्वारा किये गये प्रयासों पर ही निर्भर नहीं करती वरन् उसकी योग्यताओं, कुशलताओं, कार्य के उद्देश्यों की स्पष्टता, पर्यवेक्षण की किस्म, कार्य प्रबन्ध तथा तकनीकी पर भी निर्भर करती है । आशावाद का स्तर इन सभी तत्वों से प्रभावित होता है ।
(b) यह भी कोई वास्तविकता नहीं है कि व्यक्ति अभिप्रेरणा के सम्बन्ध में स्वयं चयन करेंगे ।
(c) व्यक्ति को विश्वास होना चाहिए कि जो कार्य वह कर रहा है वह अवश्य पूरा होगा तथा आशावादी दृष्टिकोण का सामना किया जा सकता है । यदि अभिप्रेरणा को उच्च स्तर तक पहुँचाना हो तो इन सभी शर्तों को पूरा करना चाहिए ।
व्रुम के सिद्धान्त में तीन चर होते हैं जिनको एक समीकरण के रूप में दिया गया है । चूंकि मॉडल सभी तीनों चरों का एक मल्टीप्लायर है अत: इसे अभिप्रेरित निष्पत्ति चयनों के समावेश वाला अत्यधिक सकारात्मक मूल्य का होना चाहिये । यदि कोई चर ‘0’ (शून्य) है तो अभिप्रेरित निष्पत्ति की सम्भावना भी ‘शून्य’ होगी ।
(1) कर्षण-शक्ति (Valence):
इसे Reward Preference के रूप में जाना जाता है । यह एक पुरस्कार पाने के लिए एक व्यक्ति की प्राथमिकता की शक्ति का बोध कराता है । यह वह मूल्य है जो वह परिणाम या प्रतिफल पर डालता है ।
एक परिणाम या पुरस्कार से जुड़ा मूल्य व्यक्तिनिष्ठ होता है क्योंकि यह हर व्यक्ति में परिवर्तित होता है जैसे यदि एक युवक स्मार्ट तथा गतिशील कर्मचारी पदोन्नति चाहता है तो पदोन्नति की अधिक Valence या शक्ति होती है उस कर्मचारी के लिए तथा एक रिटायर हो रहा कर्मचारी भी इसी तरह पुन: रोजगार (Re-Employment) के लिए (High Valence) रख सकता है ।
कर्मचारी अपनी आयु, शिक्षा तथा कार्य प्रकार के अनुसार Valence के प्रति सापेक्षिक मूल्य जोड़ते हैं । Valence सकारात्मक तथा नकारात्मक हो सकता है जो उसके लक्ष्यों के लिए उसकी सकारात्मक तथा ऋणात्मक प्राथमिकता पर निर्भर करता है । यदि वह अपने परिणाम के प्रति तटस्थ होता है तो उसका Valence शून्य होता है ।
(2) प्रत्याशा (Expectancy):
यह प्रयास-निष्पत्ति सम्भावना है, उस मात्रा तक जिस तक व्यक्ति विश्वास करता है कि उसके प्रयास परिणाम तक ले जायेंगे अर्थात् एक कार्य की पूर्णता । प्रत्याशा इंगित करती है किसी गतिविधि से एक परिणाम की सम्भावना की मात्र ।
यदि कर्मचारी अनुभव करता है कि किसी परिणाम को पाने के अवसर शून्य हैं तो वह प्रयास भी नहीं करेगा लेकिन यदि वह प्रत्याशा को ऊँचा अंकिता है तो वह अपेक्षित परिणाम पाने के लिए कहीं अधिक प्रयास करेगा ।
(3) करणत्व (Instrumentality):
इससे Performance Reward Probability का बोध होता है अर्थात् सम्भावना जिस तक निष्पत्ति अपेक्षित प्रतिफल तक ले जायेगी । उदाहरण के लिए यदि एक संगठन एक उप खाता अधिकारी समझता है कि सुपीरियर तथा उच्च निष्पत्ति स्तरीय परिणाम है तथा पदोन्नति द्वितीय स्तरीय परिणाम ।
इस मामले में सुपीरियर निष्पत्ति पदोन्नति पाने में तंत्र व्यवस्था होगी जो द्वितीय स्तर का परिणाम होता है । तंत्र व्यवस्था का मूल्य 0 से 1 के बीच रह सकता है ।
उपरोक्त से यह स्पष्ट कि अभिप्रेरणाएँ Valence, Expectancy तथा Instrumentality के गुणनफल हैं । प्रत्याशा मॉडल में ये तीनों घटक अनेक संयोजनों में विद्यमान हो सकते हैं तो Valence के दायरे तथा Expenctancy तथा Instrumental की मात्रा पर निर्भर करता है ।
वह संयोजन जो सबसे सुदृढ़ अभिप्रेरणा उत्पन्न करता है उच्च सकारात्मक Valence, High Expectancy तथा High Instrumentality होता है । यदि ये तीनों ही निम्न होते हैं तो अभिप्रेरणा कमजोर होगी लेकिन अन्य मामले में अभिप्रेरणा मध्यम होगी । इसी तरह त्याज्य व्यवहार की ताकत नकारात्मक Valence तथा Expenctancy तथा Instrumental घटकों द्वारा निर्धारित की जायेगी ।
मान्यताएँ (Assumptions):
व्रुम की विचारधारा निम्न मान्यताओं पर आधारित हैं:
(1) कर्मचारी की उपेक्षाओं तथा कर्षण शक्ति (Valences) में अन्तर होता है ।
(2) व्यवहार का निर्धारण व्यक्ति एवं वातावरण के निश्चित घटकों से होता है ।
(3) कर्मचारी कार्य के लिए तभी तैयार होता है जब उसे वांछित परिणामों की आशा होती है ।
(4) व्यक्ति अपने व्यवहार सम्बन्धी निर्णय चैतन्यता से करता है ।
सिद्धान्त का लागू होना (Implications of the Theory):
अभिप्रेरणा के इस सिद्धान्त में प्रबन्धकों के लिए अनेक मार्ग दर्शाये गये हैं, जो कि निम्नलिखित हैं:
(1) प्रबन्धकों को ऐसा पारितोषिक या कमियों को निश्चित करना होगा जिन्हें कि कर्मचारी या श्रमिक प्राथमिकता देते हैं ।
(2) प्रबन्धकों को यह भी निश्चित करना होगा कि निष्पादन के कौन-कौन से स्तर होंगे तथा उत्पाद की लागत क्या आयेगी तथा वस्तु की किस्म के प्रमाप क्या होंगे ।
(3) प्रबन्धकों को कार्य की दशाओं, अनौपचारिक समूहों, निष्पादन की आवश्यकताओं के बारे में आधार निर्धारित करने होंगे । मतभेद होने की दशा में क्या कदम उठाये जायेंगे ।
(4) निष्पादन मूल्यांकन तथा पारितोषिक पद्धतियों के निर्धारण में प्रबन्धकों को वास्तविक निष्पादन पर ध्यान देना होगा कि मनुष्यों को जो पारितोषिक दिया जा रहा है वह उचित है या नहीं तथा उन्होंने संगठन में कितने दिन कार्य किया है ।
(5) कार्यों में भी आधुनिक ढंग से सुधार किया जा सकता है ताकि उनमें होने वाली घटनाओं को न्यूनतम किया जा सके ।
सिद्धान्त की आलोचना (Criticism of the Theory):
इस सिद्धान्त को काफी लाभप्रद बताया गया है परन्तु फिर भी आलोचनाओं से मुक्त नहीं है ।
ये अग्र लिखित हैं:
(1) मनुष्य की सभी इच्छाओं को पूर्णरूप से सन्तुष्ट नहीं किया जा सकता । कुछ आवश्यकतायें ऐसी रह जाती हैं कि जो कि अनेक कारणों से सन्तुष्ट नहीं हो पातीं ।
(2) यह भी कोई वास्तविकता नहीं है कि व्यक्ति अभिप्रेरणा के सम्बन्ध में स्वयं चयन करेंगे ।
(3) यह भी कोई वास्तविकता नहीं है कि उच्च आशावादी सिद्धान्त होगा तो अभिप्रेरणा का स्तर भी उच्च होगा ।
यद्यपि आशावादी सिद्धान्त की उपरोक्त आलोचनाएँ की गयी हैं परन्तु इसका आशय यह नहीं है कि यह सिद्धान्त निरर्थक है । यदि इसका उचित ढंग से प्रयोग एवं इस पर उचित नियन्त्रण किया जाये तो निश्चित है कि अमुक आलोचनाओं का उन्मूलन किया जा सकता है तथा आशावादी दृष्टिकोण सार्थक हो सकता है ।